शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2021

रैदास का चिंतन एक समाज वैज्ञानिक का चिंतन हैः डॉ. अनीता भारती

संत शिरोमणि गुरु रविदास की 644वीं जयंती के मौके पर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय परिसर स्थित केएन उडुप्पा सभागार में "भारत की वर्तमान समस्याओं के निवारण में संत रविदास के क्रांतिकारी चिंतन की भूमिका" विषक संगोष्ठी का हुआ आयोजन। 

वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो

वाराणसी। रैदास का जो चिंतन है, वह एक समाज वैज्ञानिक का चिंतन है। वे एक समाज वैज्ञानिक थे। सच में वह समाज के नायक थे। उन्होंने मध्यकाल में सामाजिक क्रांतिकारी चिंतन से समाज को उद्वेलित किया।

ये बातें दलित लेखक संघ की अध्यक्ष डॉ. अनिता भारती ने आज काशी हिन्दू विश्वविद्यालय परिसर स्थित केएन उडुप्पा सभागार में कहीं। वह वहां संत सिरोमणि गुरु रविदास की 644वीं जयंती के मौके पर आयोजित "भारत की वर्तमान समस्याओं के निवारण में संत रविदास के क्रांतिकारी चिंतन की भूमिका" विषयक संगोष्ठी में बतौर मुख्य वक्ता अपनी बात रख रही थीं। 

केएन उडुप्पा सभागार में आयोजित संगोष्ठी में उपस्थित श्रोता

बीएचयू बहुजन इकाई की ओर से आयोजित दो दिवसीय संगोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि और बसपा के राज्यसभा सांसद डॉ. अशोक सिद्धार्थ ने कहा कि समाज में गैर बराबरी को गुरु रैदास के चिंतन बेगमपुरा को समाज मे स्थापित किया जा सकता है। उन्होंने युवाओं से, जिन्हें समाज मे परिवर्तन का आधार माना जाता है, बहुजन आंदोलन को आगे बढ़ाने, सामाजिक कुरीतियों को दूर करने, संगठित होने और समाज में ऊर्जा भरने का काम करने की। साथ ही उन्होंने कहा कि दलित समाज को जो आरक्षण मिला है, वह बाबा साहब डॉ भीमराव आंबेडकर के प्रयास से मिला है। इसलिए बहुजन समाज के महापुरुषों के चिंतन को जमीनी स्तर पर उतारने की जरूरत है। उन्होंने भारत में बेरोजगारी, गरीबी और आरक्षण के मुद्दे पर संत रविदास के विचारों के प्रभाव का उल्लेख भी किया। 

कार्यक्रम का संचालन करते काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के शोधार्थी रविंद्र प्रकाश भारतीय

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष और वरिष्ठ आलोचक प्रो. चौथीराम यादव ने कहा कि कबीर और रैदास का भक्तिकालीन समय एक सामाजिक क्रांति का समय है। उसकी प्रतिक्रांति में बनारस समेत हिन्दी क्षेत्र में तुलसीदास को प्रचारित किया। रैदास का चिंतन सामाजिक बदलाव का क्रांतिकारी चिंतन है। बहुजन समुदाय को उनके चिंतन को अपनाना चाहिए। लोग बहुजन समुदाय के महापुरुषों के भक्त नहीं, उनके अनुयायी बनें, तभी उन्हें उनका अधिकार मिल पाएगा। 

उप-जिलाधिकारी के रूप में कार्यरत शैलेंद्र प्रताप ने संगोष्ठी में कहा कि आरक्षित वर्ग से के लोगों के बारे में समाज में यह राय है कि इन समुदाय के लोग अपने पद के साथ न्याय नहीं कर पाते हैं जबकि यह धारणा पूरी तरह से गलत है । लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में हुए शोध का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि आरक्षित वर्ग से आया व्यक्ति ज्यादा कार्यशील और वफादार होता है। वह ऐसे मामलों में ज्यादा परिश्रम करता है। उन्होंने बहुजन समाज में भड़ते सुपीरियर और इंफिरियर के मनोभाव को समाज के लिए नुकसानदेय बताया। 

बीएचयू बहुजन इकाई के संरक्षक और भूतपूर्व प्रोफेसर कृषि वैज्ञानिक प्रो. लालचन्द प्रसाद ने कहा कि गुरु रैदास की ही तरह आपको भी क्रांतिकारी और विचारवान बनना होगा, तभी समाज मे वैचारिक क्रांति आएगी। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रो. महेश प्रसाद अहिरवार ने संगोष्ठी में आये अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापन किया। कार्यक्रम का संचालन विवेक कुमार, रेखा विजेता और रविन्द्र भारती ने संयुक्त रूप से किया। कार्यक्रम में प्रमुख रूप से प्रो. आरएन खरवार, डॉ. प्रमोद बांगडे, डॉ. प्रतिमा गोंड, प्रो. बृजेश कुमार अस्थवाल, डॉ. शिवेंद्र कुमार मौर्य, चंदन सागर, महेश प्रसाद समेत सैकड़ों लोग शामिल रहे।  

(प्रेस विज्ञप्ति)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Thank you for comment