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मंगलवार, 26 मई 2020

BBAU में OBC आरक्षण को लागू करने से नहीं रोकता है विश्वविद्यालय के विशेष दर्जे का कानूनी प्रावधान!

बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय अधिनियम-1994 की धारा-7 कहती है कि विश्विविद्यालय सभी व्यक्तियों के लिए खुला होगा, चाहे वह किसी भी लिंग, जाति, पंथ, नस्ल, वर्ग या निवास स्थान का हो। विश्वविद्यालय के शिक्षक के रूप में नियुक्ति प्रदान करने, इसके कार्यालयीन पद को धारण करने, विश्वविद्यालय में विद्यार्थी के रूप में प्रवेश लेने, स्नातक होने या उसके किसी भी विशेष प्रावधान का लाभ उठाने की अर्हता को निर्धारित करने में किसी व्यक्ति पर उसकी धार्मिक आस्था या पेशे से संबंधित कोई परीक्षण अपनाना या थोपना विश्वविद्यालय के लिए विधिसम्मत नहीं होगा।
इस खण्ड में कोई भी प्रावधान विश्वविद्यालय को महिलाओं, दिव्यांगों, समाज के वंचित तबके के व्यक्तियों, विशेष रूप से अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति, के रोजगार अथवा शैक्षणिक हितों के संवर्द्धन के लिए विशेष प्रावधान बनाने से नहीं रोकेगा।

 reported by Shiv Das

खनऊ स्थित बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय का विशेष दर्जे का कानूनी प्रावधान विश्वविद्यालय में भारतीय संविधान के तहत मिले अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) या अन्य किसी भी वंचित समुदाय के आरक्षण को लागू करने से नहीं रोकता है! विश्वविद्यालय महिलाओं, दिव्यांगों और समाज के वंचित तबके के व्यक्तियों के रोजगार अथवा शैक्षणिक हितों के संवर्द्धन के लिए विशेष प्रावधान को बना सकता है और लागू कर सकता है। बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए बने कानून में इसका स्पष्ट रूप से जिक्र किया गया है। इसके बावजूद विश्वविद्यालय प्रशासन ने अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति वर्ग के विशेष प्रावधान का हवाला देकर केंद्र सरकार के अधीन शिक्षण संस्थाओं में अन्य पिछड़ा वर्ग को मिले 27 प्रतिशत संवैधानिक कोटे को आज तक लागू नहीं किया जबकि सवर्णों के आरक्षण के रूप में चर्चित ईडब्ल्यूएस (आर्थिक रूप से वंचित समूह) के 10 प्रतिशत कोटे को साल भर के अंदर लागू कर दिया। हालांकि ईडब्ल्यूएस वर्ग के अंदर आने वाले लोगों के बारे में अभी तक कोई अधिकारिक एवं विश्वसनीय आंकड़ा नहीं है कि वे भारतीय समाज के वंचित वर्गों की श्रेणी में आते हैं।