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मंगलवार, 27 जून 2017

ये धर्म है, शब्द है या फिर संस्कृति...

ये धर्म है, शब्द है या फिर संस्कृति। जो भी हो, इनसे मेरा वास्ता तकरीबन दस साल का है। अजान के बारे में पहली बार अपै्रल 2008 में तब मालूम चला जब मड़ियाहूं के मरहूम मौलाना खालिद मुजाहिद की आतंकवाद के नाम पर की गई गिरफ्तारी के बाद देर शाम के एक प्रोग्राम के दौरान एकाएक माइक बंद करने को कहा गया। तो मालूम चला की मस्जिद से वक्त-वक्त पर निकलने वाली आवाज अजान के वक्त तेज आवाज नहीं करनी चाहिए। यहीं पहली बार खालिद के चचा जहीर आलम फलाही ने फजर-मगरिब जैसे शब्दों से भी परिचय कराया।
राजीव यादव
19 सितंबर 2008 को जब बाटला हाउस में फर्जी मुठभेड़ हुई, रमजान चल रहा था। उसको लेकर जो इमोशनल सेंटीमेंट संजरपुर, सरायमीर समेत पूरे आजमगढ़ में दिखा। उससे मालूम चला कि यह धार्मिकता के लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण है। कितना महत्वपूर्ण है, इस बात के बारे में 2013 में खालिद मुजाहिद की मौत के बाद के धरने के दौरान रमजान पड़ जाने के दौरान मालूम चला।