गुरुवार, 11 जून 2020

BBAU की 378 सीटों पर होगा EWS वाले सवर्णों का प्रवेश, OBC आरक्षण के लिए AIOBC ने MHRD और NCBC को लिखा पत्र

ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ अदर बैकवर्ड क्लासेस इंप्लाइज वेलफेयर एसोशिएशन्स (एआईओबीसी)के महासचिव जी. करुणानिधि ने पत्र में साफ तौर पर कहा है कि बीबीएयू प्रशासन केंद्रीय ने शिक्षण संस्थान (प्रवेश में आरक्षण) अधिनियम-2006 और केंद्रीय विश्वविद्यालय अधिनियम के साथ मानव संसाधन विकास मंत्रालय के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन किया है....

वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो

खनऊ स्थित बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय (बीबीएयू) में  शिक्षा सत्र-2020-21 के दौरान ईडब्ल्यूएस (आर्थिक रूप से वंचित वर्ग) कोटा के तहत 378 सीटों पर सवर्णों को प्रवेश मिलेगा लेकिन अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) कोटा के तहत यहां एक भी सीट पर पिछड़ों का प्रवेश नहीं होगा। विश्वविद्यालय प्रशासन की इस विसंगति के खिलाफ ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ अदर बैकवर्ड क्लासेस इंप्लाइज वेलफेयर एसोशिएशन्स (एआईओबीसी) ने भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल 'निशंक', राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग और अन्य पिछड़ा वर्ग की संसदीय समिति को पत्र लिखकर इसी सत्र से विश्वविद्यालय में प्रवेश की सीटों पर ओबीसी आरक्षण लागू करने के लिए निर्देश देने की मांग की है। 

प्रतापगढ़ कांडः कुर्मी समुदाय के किसानों पर हुए हमलों को लेकर सरदार सेना ने लखनऊ में किया प्रदर्शन, दर्जनों गिरफ्तार

लखनऊ में प्रदर्शन कर रहे सरदार सेना के कार्यकर्ता
प्रदर्शन में शामिल कार्यकर्ता प्रतापगढ़ के पट्टी इलाके के गोविंदपुर गांव में गत 22 मई को दबंग ब्राह्मणों और पुलिस द्वारा कुर्मी समुदाय के किसानों पर हुए हमलों में पीड़ित किसानों की ओर से एफआईआर दर्ज करने और हमलावरों को गिरफ्तार करने की कर रहे थे मांग...

वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो

लखनऊ। प्रतापगढ़ के गोविंदपुर गांव में दबंग ब्राह्मणों द्वारा कुर्मी समुदाय के किसानों पर हुए हमलों और फिर उन्हें जेल भेजे जाने के मामले को लेकर सरदार सेना ने आज लखनऊ में विरोध प्रदर्शन किया। इस दौरान प्रदर्शनकारियों से पुलिसकर्मियों और अधिकारियों की झड़प भी हुई। प्रदर्शनकारी पूर्व नियोजित कार्यक्रम के तहत विधानसभा के सामने धरना देने जा रहे थे। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को वाहनों में जबरन बैठाकर अन्य किसी स्थान पर भेज दिया है। 

बुधवार, 10 जून 2020

सहायक अध्यापक भर्तीः पहले निरस्त किया आवेदन फिर दिला दी जौनपुर में नियुक्ति

उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा परिषद द्वारा संचालित परिषदीय प्राथमिक विद्यालयों में 69000 सहायक अध्यापकों की भर्ती में कृष्ण कुमार पांडेय नाम के अभ्यर्थी का आवेदन-पत्र निरस्त होने के बाद भी उसे मिली जौनपुर में नियुक्ति...

वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो

इलाहाबाद (प्रयागराज)। उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार के दौरान उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा परिषद द्वारा संचालित परिषदीय प्राथमिक विद्यालयों में 69000 सहायक अध्यापकों की भर्ती में फर्जीवाड़ा रुकने का नाम नहीं ले रहा है। अब एक नया मामला सामने आया है जिसमें परिषद ने एक ऐसे अभ्यर्थी की नियुक्ति जौनपुर में कर दी है जिसका आवेदन-पत्र परीक्षा नियामक प्राधिकारी उत्तर प्रदेश ने पहले ही निरस्त कर दिया था। इसका ब्योरा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'फेसबुक' पर वायरल हो गया है।

मंगलवार, 9 जून 2020

गैर-आदिवासी इतिहासकारों के फुटनोट में सिमटा 'उलगुलान' का नायक बीरसा, ‘अबुआ दिशुम अबुआ राज’ कहां?

बीरसा मुंडा
अमर शहीद बीरसा मुंडा 19वीं सदी के अंतिम दशक में हुए स्वतंत्रता आंदोलन के महान लोकनायक थे। उनका ‘उलगुलान’ (आदिवासियों का जल-जंगल-जमीन पर दावेदारी का संघर्ष) भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास का महत्वपूर्ण अध्याय है। इस आंदोलन ने आधे दशक से भी अधिक समय तक अंग्रेजी हुकूमत के दाँत खट्टे कर दिये थे। जिस ब्रिटिश साम्राज्य में कभी सूर्यास्त नहीं होता था, उसके खिलाफ़ इतने लंबे समय तक उलगुलान को टिका लेना कोई आसान कार्य नहीं था। बावजूद इसके लिखित इतिहास में इसे एक प्रमुख अध्याय के रूप में स्थान देने के बजाय महज ‘फुटनोट’ तक ही सीमित कर दिया गया। इतिहास लेखन पर साम्राज्यवादी शक्तियों के साथ-साथ ‘दिकू’ (गैर-आदिवासी) वर्चस्व के कारण ही संभवतः ऐसा देखने में आता है। यही कारण है कि आज बीरसा मुंडा के बारे में हमारे पास बहुत सीमित जानकारी है...

written by डॉ. मुकेश कुमार

बीरसा मुंडा का जन्म 15 नवम्बर 1875 को वर्तमान झारखंड राज्य के रांची जिले में उलिहातु गाँव में हुआ था। उनकी माता का नाम करमी हातू और पिता का नाम सुगना मुंडा था। बीरसा पढ़ाई में बहुत होशियार थे इसलिए उनका दाखिला चाइबासा के जर्मन मिशन स्कूल में कराया गया। उस वक्त ईसाई मिशन स्कूल में दाखिला लेने हेतु उनका धर्म अपनाना जरूरी हुआ करता था तो बीरसा का नाम परिवर्तन कर बीरसा डेविड रख दिया गया। कुछ दिनों तक उन्होंने उस मिशन स्कूल में पढ़ाई की किन्तु उन्होंने महसूस किया कि मुंडाओं के प्रति ईसाई मिशनरी का रवैया सरकार से बहुत अलग नहीं है। उस समय आदिवासियों का शोषण-उत्पीड़न चरम पर था। इस शोषण में अंग्रेजी हुकूमत, जमींदार और सेठ-साहूकार सभी सहभागी थे। इस कारण आदिवासियों की बदहाली और भुखमरी दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी। बीरसा के परिवार की आर्थिक स्थिति भी काफी चिंताजनक थी। लगभग सारे आदिवासियों की यही हालत थी। इसी हालात को बदलने के लिए बीरसा ने तमाम शोषकों के खिलाफ उलगुलान का नेतृत्व किया था। यह उलगुलान तकरीबन 6 वर्षों तक चला था।