बुधवार, 28 अक्तूबर 2020

BHU में फिर दिखा सवर्णों का जातिवाद, प्रोफेसर पद पर OBC के गोल्ड मेडलिस्ट योग्य अभ्यर्थी का साक्षात्कार लेने से किया इंकार

विश्वविद्यालय प्रशासन ने ओबीसी कैटगरी के पद पर एकल योग्य उम्मीदवार का साक्षात्कार नहीं लेने के विवादित नियम का दिया हवाला। 

reported by Shiv Das

आज बहुत दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि महामना पंडित मदन मोहन मालवीय जी की बगिया में मेरे साथ अन्याय हो रहा है। पढ़ाई लिखाई में हमेशा गोल्ड मेडल लाया। एलएलबी, एलएलएम, एमफिल, सभी में अव्वल रहा। 25 पुस्तकें लिखीं, 500 से ज्यादा पेपर लिखे, 500 से अधिक पेपर पढ़ा। 100 अवार्ड पाया। मेरे गुरुजन, मेरे साथी, मेरे सहयोगी सभी मेरी काबलियत से वाकिफ हैं।...बीएचयू में प्रोफेसर का इश्तहार पढ़कर मैंने भी फॉर्म डाला। 31.10.2020 को मुझे इंटरव्यू देना था। न मालूम किस की नजर लगी। मेरे नाम को आज हटा दिया गया। पहले बुलाया, बाद में अपने से हटा दिया गया। ये किसी योग्यता प्राप्त व्यक्ति के साथ होना एक दुर्भाग्यपूर्ण बात है। मैं ओबीसी हूं। ...आज चंद लोंगो की भेदभाव भरी अनीति से मेरी योग्यता का अंतिम संस्कार हो गया।

यह दर्द है काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU) के विधि संकाय में कार्यरत डॉ. मुकेश कुमार मालवीय का। वह मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र के मूल बाशिंदे हैं और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) से आते हैं। उन्होंने पिछले दिनों काशी हिन्दू विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित भर्ती के विज्ञापन के आधार पर विधि संकाय में अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए रिक्त प्रोफेसर और एसोसिएट प्रोफेसर पद पर आवेदन किया था। विश्वविद्यालय प्रशासन की फैकल्टी अफेयर्स कमेटी (FAC) ने उन्हें दोनों पदों के योग्य पाया था। कमेटी ने उनकी योग्यता के आधार पर प्रोफेसर (कोड-10181) और एसोसिएट प्रोफेसर (कोड-20264), दोनों पदों पर उन्हें पहले स्थान पर रखा। प्रोफेसर पद पर डॉ. मुकेश कुमार मालवीय ही आवेदकों में ऐसे उम्मीदवार थे जो विश्वविद्यालय द्वारा निर्धारित योग्यता को पूरा करते थे। शेष आवेदकों आदेश कुमार, शिवानी वर्मा और रजनीश कुमार यादव को प्रोफेसर आरपी राय की अध्यक्षता वाली विधि संकाय की एफएसी ने अयोग्य घोषित कर दिया था। विश्वविद्यालय प्रशासन के रिक्रूटमेंट सेल ने साक्षात्कार के लिए योग्य और अयोग्य अभ्यर्थियों की सूची जारी करते हुए गत 25 अक्टूबर तक आपत्तियां आमंत्रित की थी। अब विश्वविद्यालय प्रशासन ने आगामी 31 अक्टूबर को इन पदों पर होने वाले साक्षात्कार के लिए चयनित अभ्यर्थियों की अंतिम सूची जारी करते हुए प्रोफेसर पद के लिए योग्य डॉ. मुकेश कुमार मालवीय का साक्षात्कार लेने से इंकार कर दिया है। 

ऐसा करने के पीछे विश्वविद्यालय प्रशासन ने बीएचयू ऑर्डिनेंस-11(A)(1) का हवाला देते हुए कहा कि ओबीसी कैटगरी के पद पर एकल योग्य उम्मीदवार का साक्षात्कार नहीं लिया जा सकता है। विश्वविद्यालय प्रशासन जिस नियम का  हवाला दे रहा है, उसमें कहीं भी नहीं लिखा है कि ओबीसी कैटेगरी के पद पर एकल योग्य उम्मीदवार का साक्षात्कार नहीं लिया जाएगा। नियम के मुताबिक एफएसी प्रत्येक पद के सापेक्ष 10 उम्मीदवारों की सूची साक्षात्कार के लिए तैयार करेगी जो उनकी अकादमिक या रिसर्च स्कोर के आधार पर तैयार होगी। इसमें कहीं भी न्यूनतम या अधिकतम जैसे शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है। यह जरूर है कि इसमें एससी, एसटी अथवा दिव्यांग वर्ग समेत चिकित्सा विज्ञान में सभी वर्गों के एकल योग्य उम्मीदवार को साक्षात्कार के लिए बुलाने की बात कही गई है। 


बीएचयू प्रशासन द्वारा चिकित्सा विज्ञान में सभी वर्गों के एकल उम्मीदवार को साक्षात्कार के लिए बुलाने का नियम खुद ही सवालों के घेरे में है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने विश्वविद्यालयों में असिस्टेंट प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर पदों पर नियुक्ति के लिए आवश्यक योग्यता का निर्धारण कर रखा है। फिर बीएचयू प्रशासन विश्वविद्यालय में नियुक्ति के लिए अलग-अलग वर्गों, विभागों और संकायों के लिए अलग-अलग योग्यता और नियम क्यों निर्धारित कर रहा है? यह प्रावधान भारतीय संविधान के अनुच्छेद-14 यानी समता के अधिकार के खिलाफ भी है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद-16(4) में साफ लिखा है कि सरकारी नौकरियों में अगर पिछड़े वर्गों को प्रतिनिधित्व सुनिश्चित नहीं है तो राज्य उनके लिए विशेष व्यवस्था सुनिश्चित कर उनकी भागीदारी सुनिश्चित कर सकता है। सरकारी आंकड़ें बता चुके हैं कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों में अन्य पिछड़ा वर्ग के प्रोफेसरों और एसोसिएट प्रोफेसरों की संख्या नगण्य है। इसके बावजूद बीएचयू प्रशासन योग्य ओबीसी अभ्यर्थियों को उनके लिए निर्धारित पदों पर नियुक्ति नहीं दे रहा है, बल्कि उनकी नियुक्ति को रोकने के लिए भारतीय संविधान के प्रावधान के खिलाफ नियम बना रहा है।  

अब अगर विश्वविद्यालय प्रशासन के ही तर्क की बात करें तो उसने संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय के धर्मागम विभाग में ओबीसी कैटेगरी में रिक्त असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर साक्षात्कार लिया है। वनांचल एक्सप्रेस ने विश्वविद्यालय की अधिकारिक वेबसाइट पर मौजूद संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय के धर्मागम विभाग में रिक्त पदों पर साक्षात्कार के लिए बुलाए गए उम्मीदवारों से संबंधित सूची का अवलोकन किया तो विश्वविद्यालय के उक्त नियम को दरकिनार कर अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित असिस्टेंट प्रोफेसर (कोड-30510) पद पर गत 20 सितंबर को एकल योग्य उम्मीदवार कृष्णानंद सिंह का साक्षात्कार आयोजित किया गया है। अधिकारिक वेबसाइट पर मौजूद सूची बताती है कि इस पद अन्य पांच व्यक्तियों लाल बहादुर, श्रद्धा, राहुल आर्य, नीतीश कमार और अंकित कुमार ने भी आवदेन किया था लेकिन संबंधित विषय में स्नातकोत्तर उपाधि नहीं होने की वजह से विश्वविद्यालय प्रशासन ने उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया था। 

ऐसे में सवाल उठता है कि एकल योग्य उम्मीदवार के संदर्भ में कौन-सा नियम सही है? क्या विश्वविद्यालय प्रशासन अन्य पिछड़ा वर्ग की रिक्त सीटों पर विवाद खड़ा कर उन पर नियुक्ति करने से बचने की कोशिश कर रहा है? यहां यह सवाल इसलिए भी जरूरी है क्योंकि विश्वविद्यालय प्रशासन पर अन्य पिछड़ा वर्ग की 203 सीटों को गायब करने का आरोप भी लगा है। इस मामले में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने विश्वविद्यालय प्रशासन से जवाब भी मांगा है। इसके अलावा विश्वविद्यालय प्रशासन अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए विज्ञापित रिक्त पदों पर आवेदन करने वाले योग्य उम्मीदवारों को एनएफएस (Not Fit For Selection) दिखाकर खाली छोड़ देता है। 

उक्त विवाद के बाबत काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर महेश प्रसाद अहिरवार का कहना है कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने ऐसा कोई नियम नहीं बनाया है। विश्वविद्यालय प्रशासन एससी, एसटी और ओबीसी के साथ हमेशा भेदभाव करता है। अगर विश्वविद्यालय प्रशासन एकल योग्य उम्मीदवार को साक्षात्कार के लिए बुला लेता है तो उसकी नियुक्ति होना तय हो जाती है। विश्वविद्यालय प्रशासन में बैठे जातिवादी लोग अपने चहेतों की नियुक्ति के लिए अलग नियम बनाकर उन्हें नियुक्त दे देते हैं। वहीं दूसरे योग्य अभ्यर्थी को उसी नियम के तहत बाहर कर देते हैं। डॉ. मुकेश कुमार मालवीय समेत अन्य लोगों का मामला ऐसा ही है।

अब डॉ. मुकेश कुमार मालवीय की योग्यता पर भी गौर कर लीजिए। वह एलएलबी और एलएलएम में गोल्ड मेडलिस्ट हैं। एमफिल (विधि) में मेरिट स्कॉलर हैं। यूजीसी नेट क्वालिफाइड हैं। पीएचडी उपाधि धारक हैं और एलएलडी कर रहे हैं। इनकी 35 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। 569 शोध-पत्र प्रकाशित हो चुके हैं। 12 साल का शैक्षिक अनुभव भी है। इन्हें 35 अकादमिक अवार्ड भी मिल चुके हैं। सेमिनार और कॉन्फरेंस में 300 से ज्यादा शोध पत्र पेश कर चुके हैं। विधि संकाय में ही असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर कार्यरत भी हैं। फिर भी वे प्रोफेसर नहीं बन सकते हैं। उन्होंने विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राकेश भटनागर और यूजीसी के चेयरमैन प्रो. डीपी सिंह को पत्र लिखकर न्याय की भी गुहार लगाई है लेकिन अभी तक उन्हें कोई राहत नहीं मिली है। विश्वविद्यालय के ऑर्डिनेंस- 11.A(1)(V)(f) में विशेष व्यवस्था भी की गई है कि अगर कोई व्यक्ति उच्च अकादमिक क्षमता रखता है तो चयन कमेटी उसके आवेदन के बिना भी प्रोफेसर पद पर नियुक्ति के लिए एक्जेक्यूटिव काउंसिल को संस्तुति कर सकती है। ऐसा प्रावधान होने के बाद भी एक योग्य व्यक्ति को विवादित एकल योग्य उम्मीदवार का तर्क देकर नियुक्ति से वंचित किया जाना विश्वविद्यालय प्रशासन की मंशा पर सवाल खड़ा करता है।  

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की वर्ण व्यवस्था के गढ़ के रूप में चर्चित बीएचयू के जातिवादी शिक्षाविदों के भेदभाव से परेशान और निराश डॉ. मुकेश कुमार मालवीय फेसबुक पर लिखते हैं, "हे महामना, हे महामानव, तेरी इस बगिया में, जहां का मैं ऋणी हूं, अन्याय होता रहा है। मैं सहता रहा हूं। आज तो मेरी अंतरात्मा को झकझोर दिया गया, जैसे ज्ञान की चोटी शिखर को नष्ट कर दिया गया है। क्या बिगाड़ा था मैंने किसी का? सिर्फ इसलिये की मैं वो नहीं ......"

आखिरकार डॉ. मुकेश कुमार मालवीय 'वो' शब्द से क्या कहने की कोशिश कर रहे हैं? कहीं उनका 'वो' वह जातिवाद तो नहीं जिसकी वजह से काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में ओबीसी की 203 सीटें गायब हो गई हैं। आखिर इन पर कौन काबिज है? इसका जवाब काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की अधिकारिक वेबसाइट खुद ही देती है जो कहती है कि यहां ओबीसी के पदों पर सवर्णों का कब्जा है!

प्रकरण के मामले में वनांचल एक्सप्रेस ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राकेश भटनागर, कुल-सचिव नीरज त्रिपाठी और पीआरओ राजेश सिंह से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन खबर लिखे जाने तक उनसे संपर्क नहीं हो पाया। इस वजह से यहां उनकी प्रतिक्रिया नहीं दी जा रही है। प्रतिक्रिया मिलते ही उसे खबर में जोड़ दिया जाएगा। 

बता दें कि कुछ दिनों पूर्व भी ऐसा ही एक मामला विश्वविद्यालय के दर्शन एवं धर्म विभाग में प्रोफेसर पद पर दावेदारी करने वाले और विभाग के ही असिस्टेंट प्रोफेसर बालेश्वर प्रसाद यादव का सामने आया था। विश्वविद्यालय प्रशासन ने "BHU Ordinance-11.A.(1)" के तहत एकल योग्य अभ्यर्थी का हवाला देकर साक्षात्कार लेने से इंकार कर दिया था। उस समय विश्वविद्यालय प्रशासन के लोग मौखिक तौर पर कह रहे थे कि उनका इकलौता आवेदन था, इसलिए उस पर साक्षात्कार नहीं कराया जा सकता है। नीचे लिंक पर क्लिक कर पूरी खबर पढ़ सकते हैं। 

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