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शुक्रवार, 29 मई 2020

सपा किसी भी बड़े राजनीतिक दल से गठबंधन नहीं करेगीः अखिलेश यादव

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने 'एबीपी न्यूज़' को दिए साक्षात्कार में कहा कि सपा छोटे राजनीतिक दलों से गठबंधन करने के साथ उन्हें एडजस्ट भी करेगी। उन्होंने कहा कि भाजपा और कांग्रेस की नीतियों में कोई अंतर नहीं है।

वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो

लखनऊ। भाजपा और कांग्रेस की नीतियों में कोई अंतर नहीं है। दोनों एक जैसी पार्टी हैं। समाजवादी पार्टी किसी भी बड़े राजनीतिक दल से गठबंधन नहीं करेगी। वह छोटे राजनीतिक दलों से गठबंधन कर चुनाव लड़ेगी और उन्हें समाजवादी पार्टी में एडजस्ट करेगी। 

रविवार, 22 जनवरी 2017

मुलायम की गैर-मौजूदगी में अखिलेश ने जारी किया घोषणा-पत्र, महिलाओं को बंटेगा प्रेशर कुकर

कानपुर ,आगरा, मेरठ और वाराणसी में दौड़ेगी मेट्रो। 
वनांचल न्यूज़ नेटवर्क
लखनऊ। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने आज विधानसभा चुनाव-2017 के लिए पार्टी का घोषणा-पत्र जारी किया। इसमें उन्होंने लोकलुभावन वादों के साथ सरकार बनने पर गरीब महिलाओं को निःशुल्क प्रेशर कुकर मुहैया कराने का वादा किया है।

शुक्रवार, 20 जनवरी 2017

भाजपा को झटका, पूर्व मंत्री विजय सिंह गोंड ने थामा सपा का दामन

आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले विजय सिंह गोंड  सोनभद्र की दुद्धी विधानसभा सीट से 27 सालों तक विधायक और पूर्ववर्ती मुलायम सरकार में राज्य मंत्री  भी रहे हैं। 
वनांचल न्यूज़ नेटवर्क 
लखनऊ। भारतीय जनता पार्टी को झटका देते हुए पूर्व विधायक एवं राज्य मंत्री विजय सिंह गोंड ने घर वापसी कर ली है। उन्होंने शुक्रवार को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की मौजूदगी में फिर से समाजवादी पार्टी की सदस्यता ली।

बुधवार, 4 मई 2016

अखिलेश सरकार के बाद NGT ने JP GROUP को दिया झटका, 2500 एकड़ वनभूमि वापस लेने का दिया आदेश


अधिकरण ने खारिज की उत्तर प्रदेश सरकार की अधिसूचना। मामले में दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने का भी दिया आदेश।

reported by Shiv Das

नई दिल्ली। सोनभद्र में वन भूमि हस्तांतरण मामले में उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार के बाद राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने भी जेपी समूह को झटका दिया है। उत्तर प्रदेश की पूर्ववर्ती बसपा सरकार द्वारा सोनभद्र में जेपी समूह की सहयोगी कंपनी जयप्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड (जेएएल) के पक्ष में 1083.231 हेक्टेयर (करीब 2500 एकड़) वनभूमि हस्तांतरित करने के लिए जारी अधिसूचना को एनजीटी ने आज खारिज कर दिया। साथ ही उसने राज्य सरकार को आदेश दिया कि वह जल्द से जल्द अधिसूचना जारी कर जेएएल के पक्ष में हस्तांतरित वन भूमि उत्तर प्रदेश वन विभाग को सौंप दे और गैर-कानूनी ढंग से इस वन भूमि हस्तांतरण प्रक्रिया में शामिल अधिकारियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करे। हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार ने कैबिनेट बाई-सर्कुलेशन के जरिये जयप्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड से गलत ढंग से हस्तांतरित करीब 2500 एकड़ वनभूमि वापस लेकर वनविभाग को सौंपने की अधिसूचना जारी करने का दावा किया था। 
गौरतलब है कि करीब आठ साल पहले जेपी समूह की सहयोगी कंपनी जेएएल ने उत्तर प्रदेश राज्य सीमेंट निगम को करीब 459 करोड़ रुपये में खरीदा था। उसी की आड़ में उसने वनभूमि पर आबंटित खनन पट्टों को स्थानीय अधिकारियों से मिलकर अपने नाम करा लिया। जांच रिपोर्टों के मुताबिक ओबरा वन प्रभाग के तत्कालीन वन बंदोबस्त अधिकारी वीके श्रीवास्तव ने जय प्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड की ओर से भारतीय वन अधिनियम की धारा-9 और 11 के तहत दाखिल सात मामलों में भारतीय वन अधिनियम की धारा-4 के तहत अधिसूचित 1083.231 हेक्टेयर वनभूमि कंपनी के पक्ष में निकाल दी। इसमें 253.176 हेक्टेयर भूमि में कैमूर वन्यजीव विहार की शामिल थी। वीके श्रीवास्तव ने 1987 में भारतीय वन अधिनियम की धारा-20 के तहत अधिसूचित 399.51 हेक्टेयर संरक्षित वन क्षेत्र में से इस 230.844 हेक्टेयर वन भूमि को भी जय प्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड के पक्ष में गैरकानूनी ढंग से निकाल दिया जिसकी पुष्टि उच्चतम न्यायालय के आदेश के तहत अतिरिक्त जिला न्यायाधीश ने भी नहीं की थी। 
केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की जांच रिपोर्ट के अंशों पर गौर करें तो वीके श्रीवास्तव उपरोक्त मामलों की सुनवाई नहीं कर सकते थे। वे केवल उन 12 गांवों के मामले की सुनवाई कर सकते थे, जिसके लिए राज्य सरकार ने 21 जुलाई, 1995 को जारी आदेश में सहायक अभिलेख अधिकारी शिव बक्श लाल को विशेष वन बंदोबस्त अधिकारी, सोनभद्र नियुक्त किया था। हालांकि इसके लिए भी शासन की ओर से उनकी नियुक्ति होनी चाहिए थी।
वीके श्रीवास्तव के फैसले के खिलाफ उत्तर प्रदेश वन विभाग के प्रमुख वन संरक्षक ने राज्य सरकार को पत्र लिखकर उच्च न्यायालय, इलाहाबाद में अपील करने की राय मांगी लेकिन तत्कालीन बसपा सरकार ने ऐसा करने से साफ मना कर दिया। उत्तर प्रदेश सरकार के तत्कालीन सचिव पवन कुमार ने 12 सितंबर, 2008 को वन विभाग के प्रमुख वन संरक्षक को पत्र संख्या-3792/14-2-2008 के माध्यम से राज्य सरकार के निर्णय से अवगत भी कराया और सोनभद्र में भारतीय वन अधिनियम की धारा-20 के तहत विज्ञप्ति जारी किए जाने हेतु दो दिनों के अंदर आवश्यक प्रस्ताव शासन को भेजने का निर्देश दिया। उत्तर प्रदेश सरकार के सचिव (वन) ने 25 नवंबर, 2008 को अधिसूचना जारी कर सोनभद्र में भारतीय वन अधिनियम की धारा-20 के तहत शासकीय दस्तावेजों में वन क्षेत्र को कम कर दिया। इसमें जय प्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड के पक्ष में निकाली गई वन भूमि भी शामिल थी। 
इतना ही नहीं अपनी कारगुजारियों को कानूनी जामा पहनाने के लिए उत्तर प्रदेश की तत्कालीन बसपा सरकार ने उच्चतम न्यायालय में लंबित जनहित याचिका (सिविल)-202/1995 में अपील दाखिल कर जय प्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड के पक्ष में विवादित खनन लीज का नवीनीकरण करने के लिए अनुमति मांगी। साथ ही उसने उप्र सरकार द्वारा 25 नवंबर, 2008 को भारतीय वन अधिनियम की धारा-20 के तहत जारी अधिसूचना की पुष्टि करने का अनुरोध किया। उच्चतम न्यायालय ने मामले में उच्च प्राधिकार समिति (सीईसी) से रिपोर्ट तलब की। जवाब में सीईसी के तत्कालीन सदस्य सचिव एमके जीवराजका ने 10 अगस्त, 2009 को उच्चतम न्यायालय के रजिस्ट्रार के पास अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। बाद में यह मामला राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) को स्थानांतरित हो गया। 

केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय और सीईसी ने भूमि हस्तांतरण की पूरी प्रक्रिया को गलत बताया था। दोनों ने अदालत में कहा कि ये जमीन जंगल की है। इसको किसी और काम के लिए नहीं दिया जा सकता। वर्ष 2012 में राज्य सरकार बदल गई। उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में बसपा सरकार के फैसले का विरोध किया। उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त महाधिवक्ता शमशाद और अभिषेक चौधरी ने एनजीटी में यूपी सरकार का पक्ष रखा और कहा, 'ये जंगल की जमीन है और किसी और काम के लिए नहीं दी जा सकती। जमीन की लीज जेपी को दिए जाने का पूर्व सरकार का फैसला बिल्कुल गलत है।'

इस मामले की जांच करने वाले केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के क्षेत्रीय कार्यालय (मध्य क्षेत्र), लखनऊ के तत्कालीन वन संरक्षक वाईके सिंह चौहान, अब अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक (विकास) वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, झारखंड सरकार, से बात की गई तो उन्होंने कहा, ‘आज यह खबर सुनकर बड़ी राहत मिली है। पूरी सर्विस के दौरान मैंने यह सबसे महत्वपूर्ण कार्य किया है। उद्योगपतियों ने साजिश रचकर वनभूमि को हड़प लिया है जो गरीबों और आदिवासियों के काम आता। इस मामले में स्थानीय जनता का भरपूर सहयोग मिला। जांच के दौरान उन्होंने एक-एक गाटे की सूचना और कागजात मुहैया कराये। इस मामले में राज्य सरकार के कुछ अधिकारियों ने जेपी समूह के एजेंट के रूप में कार्य किया है। उन्हें एनजीटी के आदेश और विंध्याचल मंडलायुक्त की जांच आख्या की संस्तुति के आधार पर दंड जरूर मिलना चाहिए। साथ ही इस मामले में लापरवाही बरतने वाले प्रशासनिक अधिकारियों के साथ-साथ वन-विभाग और राजस्व विभाग के अधिकारियों की भूमिका की भी जांच होनी चाहिए और उन्हें दण्डित किया जाना चाहिए। साथ ही जेपी समूह से जल्द से जल्द वनभूमि वापस लेकर उससे राजस्व क्षति की वसूली की जानी चाहिए।’

जनहित याचिका के माध्यम से इसे उच्चतम न्यायालय में उठाने वाले चंदौली जनपद के शमशेरपुर गांव निवासी बलराम सिंह उर्फ गोविंद सिंह का कहना है कि उद्योगपतियों और उत्तर प्रदेश की सरकार की मिलीभगत से वनभूमि को लूटने के मामले में एनजीटी ने न्याय किया है। इसका आदिवासियों और गरीबों के साथ पर्यावरण को भी लाभ मिलेगा। 

ये भी पढ़ें-


जेपी समूह को 409 करोड़ माफ (भाग-6) 

एनजीटी के आदेश को पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें-

शुक्रवार, 29 अप्रैल 2016

जेपी-बिड़ला की कारोबारी बिसात पर अखिलेश का सियासी दांव

जेएएल पिछले करीब आठ सालों से 2500 एकड़ से ज्यादा संरक्षित वन भूमि पर अवैध खनन और गैर-वानिकी गतिविधियां संचालित कर रही है और इसकी पुष्टि विंध्याचल मंडलायुक्त और केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की जांच रिपोर्टों में भी हो चुकी है। इसके बावजूद सूबे की सत्ता में पिछले चार सालों से काबिज अखिलेश सरकार ने इस मामले में कोई तत्परता नहीं दिखाई और ना ही उसने उन जांच रिपोर्टों पर कार्रवाई की। जब जेपी समूह ने डाला सीमेंट फैक्ट्री, जिसके अधीन विवादित करीब 2500 एकड़ वनभूमि वाले खनन-पट्टे आते हैं, को आदित्य बिड़ला समूह की अल्ट्रोटेक सीमेंट कंपनी को बेच दिया तो राज्य सरकार इस वनभूमि को वापस लेने के लिए तत्परता दिखा रही है...


जेपी पर मेहरबानी, बिड़ला की परेशानी

by शिव दास

त्तर प्रदेश में उद्योगपतियों का सियासी गठजोड़ नया रंग लेने लगा है। हाल ही में सत्ताधारी समाजवादी पार्टी सरकार के मुखिया अखिलेश यादव ने जेपी समूह को उत्तर प्रदेश राज्य सीमेंट निगम की जायजात के नाम पर दी गई 2500 एकड़ वनभूमि को उससे वापस लेने की घोषणा की। इस संबंध में उन्होंने उसे नोटिस जारी करने का दावा भी किया। पंचम तल में तैनात अधिकारियों के हवाले से मीडिया में आई खबरों पर यकीन करें तो राज्य सरकार इस मामले की जांच के लिए चार विभागों के प्रमुख सचिवों की जांच कमेटी बना रही है जो जेपी समूह को गलत ढंग से 2500 एकड़ वनभूमि देने के मामले की जांच करेगी और इसके लिए दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की संस्तुती भी करेगी। आगामी कुछ दिनों में इसकी अधिसूचना जारी होने की संभावना है। सोनभद्र में जेपी समूह की सहयोगी कंपनी जयप्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड (जेएएल) को गलत ढंग से करीब 2500 एकड़ वनभूमि आबंटित करने के मामले में राज्य की अखिलेश सरकार की यह तत्परता अनायास नहीं है। सर्वविदित है कि ऐसे मामलों में उद्योगपतियों का सियासी गठजोड़ काम करता है। इस मामले में भी कुछ ऐसा दिखाई दे रहा है। इसे समझने के लिए जेपी समूह की सहयोगी कंपनी जयप्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड और आदित्य बिड़ला समूह की सहयोगी कंपनी अल्ट्राटेक सीमेंट लिमिटेड के बीच हुए हालिया करारों पर गौर करने की जरूरत है।

जेपी समूह की गैर-कानूनी गतिविधियों के खिलाफ जुलूस निकालते डाला दलित बस्ती के लोग। (फाइल फोटो)

भारत की सबसे बड़ी सीमेंट कंपनी का दावा करने वाली अल्ट्राटेक सीमेंट लिमिटेड के कंपनी सचिव एसके चटर्जी ने 28 फरवरी 2016 को बीएसई लिमिटेड को पत्र लिखकर सूचना दी है कि कंपनी ने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में 22.4 एमटीपीए (मिलियन टन प्रति वर्ष) क्षमता वाली जयप्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड (जेपी सीमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड और जेपी पॉवर वेंचर्स लिमिटेड समेत) की कुल 12 सीमेंट इकाइयों के अधिग्रहण के समझौते (एमओयू) पर हस्ताक्षर किया है। इसमें सोनभद्र के डाला स्थित जयप्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड की 2.1 एमटीपीए क्लिंकर और 0.5 एमटीपीए सीमेंट उत्पादन क्षमता वाली एकीकृत डाला यूनिट के साथ कोटा स्थित 2.3 एमटीपीए क्लिंकर उत्पादन क्षमता वाली जेपी सुपर यूनिट (उत्पादनहीन) भी शामिल है। जेपी ग्रुप की महाप्रबंधक (कॉर्पोरेट कम्यूनिकेशन) मधु पिल्लई ने भी उक्त तिथि को जारी अपनी प्रेस रिलीज में इस बात की पुष्टि की है। सुश्री पिल्लई ने लिखा है कि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में कंपनी की 18.40 एमटीपीए क्षमता वाली उत्पादनरत इकाइयों के लिए अल्ट्राटेक सीमेंट लिमिटेड से कुल 16,500 करोड़ रुपये में करार हुआ है। इसके अलावा वह उत्तर प्रदेश में कार्यान्वयन की प्रक्रिया में फंसी एक ग्राइंडिंग यूनिट की मामला हल होने पर 470 करोड़ रुपये अलग से कंपनी को देगी। इस यूनिट का मामला खनिजों के खनन पट्टों के हस्तांतरण के नियमों की पेचिदगी की वजह से लटका पड़ा है जिसमें केंद्र सरकार संशोधन करने की तैयारी में है। 

उपरोक्त समझौते में ही सूबे की अखिलेश सरकार की तत्परता का राज छिपा है। हालांकि वह उच्चतम न्यायालय और राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) के दबाव और जेपी समूह द्वारा अवैध खनन करने का हवाला देकर इस सियासी राज को दबाये रखना चाहती है। मामले की जांच की आड़ में वह एक तरफ जेपी समूह को अधिग्रहण पूरा होने तक फायदा पहुंचाना चाहती है तो दूसरी ओर बिड़ला ग्रुप से उत्तर प्रदेश में अपना सियासी गठजोड़ साधना चाहती है। दरअसल अखिलेश सरकार जिस 2500 एकड़ वनभूमि को जेएएल से वापस लेने की घोषणा की है, वह अल्ट्राटेक सीमेंट लिमिटेड द्वारा अधिग्रहित की जाने वाली एकीकृत डाला सीमेंट फैक्ट्री और कोटा स्थित जेपी सुपर यूनिट से जुड़ी हुई है। इन इकाइयों के संचालन के लिए जरूरी लाइम स्टोन के खनन पट्टे अखिलेश सरकार द्वारा वापस ली जाने वाली वनभूमि पर ही स्थित हैं।  

अगर राज्य सरकार अपने दावे के अनुसार जेएएल से खनन पट्टों वाली कुल 2500 एकड़ वनभूमि वापस ले लेती है तो उसकी यह कार्रवाई बिड़ला ग्रुप की अल्ट्राटेक सीमेंट लिमिटेड के लिए परेशानी बन सकती है। अल्ट्राटेक को लाइम स्टोन के लिए अन्य प्रदेशों का रुख करना पड़ सकता है या फिर उसे इन खनन पट्टों को राज्य सरकार से नई शर्तों के साथ हासिल करना पड़ेगा जो आसान नहीं होगा। इन्हें हासिल करने के लिए उसे उच्चतम न्यायालय के साथ-साथ एनजीटी और केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय से अऩुमति लेनी होगी। साथ ही उसे एनपीवी के रूप में राज्य सरकार को अरबों रुपये देने होंगे।

दरअसल यह पूरा मामला उत्तर प्रदेश राज्य सीमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड (यूपीएससीसीएल) के अधीन चुर्क, डाला और चुनार सीमेंट फैक्ट्रियों की बिक्री और उसकी संपत्तियों के अधिग्रहण से जुड़ा हुआ है जो मिर्जापुर-सोनभद्र के जंगली और पहाड़ी इलाकों में स्थित हैं। नब्बे के दशक में कंपनी को करोड़ों रुपये का घाटा हुआ था। मामला उच्च न्यायालय पहुंचा। इसके आदेश पर 8 दिसंबर, 1999 को तीनों फैक्ट्रियों को बंद कर दिया गया और उनकी बिक्री के लिए ऑफिसियल लिक्विडेटर की तैनाती कर दी गई। वर्ष-2006 में यूपीएससीसीएल की संपत्तियों की वैश्विक निविदा में जय प्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड ने 459 करोड़ रुपये की सबसे बड़ी बोली लगाकर उसकी संपत्तियों को खरीद लिया। उच्च न्यायालय के आदेश की आड़ में उसने सूबे की सत्ता में काबिज नुमाइंदों और जिला प्रशासन की मिलीभगत से वनभूमि पर उत्तर प्रदेश राज्य सीमेंट निगम के नाम से आबंटित खनन पट्टों को गलत ढंग से अपने नाम करा लिया और उसपर कब्जा कर खनन करने लगा।

उद्योगपतियों और राजनीतिज्ञों के इस सियासी पैतरे को और बेहतर ढंग से समझने के लिए पूर्ववर्ती सपा सरकार के दौरान जेएएल को गलत ढंग से आबंटित की गई 1083.231 हेक्टेयर (करीब 2500 एकड़) वन भूमि की पूर्व जांच रिपोर्टों पर गौर करने की जरूरत है। विंध्याचल मंडल के तत्कालीन मंडलायुक्त सत्यजीत ठाकुर की ओर से गठित जांच कमेटी और केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के क्षेत्रीय कार्यालय (मध्य क्षेत्र), लखनऊ के तत्कालीन वन संरक्षक वाईके सिंह चौहान की जांच रिपोर्टें भी उक्त आरोपों की पुष्टि करती हैं।

उत्तर प्रदेश सरकार के राजस्व विभाग के प्रमुख सचिव के निर्देश पर विंध्याचल मंडल के तत्कालीन आयुक्त सत्यजीत ठाकुर ने वर्ष 2007 में इस मामले की जांच के लिए विंध्याचल मंडल के तत्कालीन अतिरिक्त आयुक्त (प्रशासन) डॉ. डीआर त्रिपाठी, वन संरक्षक आरएन पांडे और संयुक्त विकास आयुक्त एसएस मिश्रा की संयुक्त जांच टीम गठित की थी। टीम ने 16 जून 2008 को अपनी जांच रिपोर्ट मंडलायुक्त को सौंप दी। इसमें साफ लिखा है कि सोनभद्र में ओबरा वन प्रभाग के तत्कालीन वन बंदोबस्त अधिकारी वीके श्रीवास्तव द्वारा मकरीबारी, कोटा, पड़रछ और पनारी गांवों के सात मामलों में भारतीय वन अधिनियम की धारा-4 के तहत अधिसूचित 1083.231 हेक्टेयर वनभूमि को जेएएल के पक्ष में हस्तांतरित करने का आदेश गैरकानूनी और अमान्य है। इसके लिए वे पूर्णतया दोषी हैं। टीम ने जांच रिपोर्ट में उनके खिलाफ दण्डनात्मक एवं आपराधिक कार्रवाई करने की सिफारिश की है। इस संबंध में विंध्याचल मंडल के तत्कालीन अतिरिक्त आयुक्त जीडी आर्य ने विंध्याचल मंडल के प्रमुख वनसंरक्षक को पत्र लिखकर वीके श्रीवास्तव के खिलाफ आरोप-पत्र प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था लेकिन दोषी अधिकारी के खिलाफ आज तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।

केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के तत्कालीन वन संरक्षक (मध्य क्षेत्र) वाई.के. सिंह चौहान ने भी इस मामले में तत्कालीन मंडलायुक्त की जांच रिपोर्ट को सही ठहराया है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) के तत्कालीन सदस्य सचिव एमके जीवराजका को प्रेषित पत्र में लिखा है कि तत्कालीन वन बंदोबस्त अधिकारी वीके श्रीवास्तव ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के खिलाफ राजस्व अभिलेख में भारतीय वन अधिनियम-1927 की धारा-4 के तहत अधिसूचित वन भूमि के कानूनी स्वरूप को ही बदल दिया। इसके लिए उन्होंने एन गोडावर्मन थिरुमुल्कपाद बनाम भारत सरकार के मामले में उच्चतम न्यायालय के आदेश का हवाला दिया है। इसमें उच्चतम न्यायालय के तत्कालीन न्यायमूर्ति जेएस वर्मा और बीएन कृपाल की पीठ ने 12 दिसंबर, 1996 के फैसले में साफ कहा हैः

वन संरक्षण अधिनियम-1980 भविष्य में वनों की कटाई, जो पारिस्थितिकीय असंतुलन पैदा करता है, को रोकने की दृष्टि से लागू किया गया था। इसलिए वन संरक्षण और इससे जुड़े मामलों के लिए इस कानून के तहत बनाए गए प्रावधानों को स्वामित्व की प्रकृति या उसके वर्गीकरण की परवाह किए बिना लागू किया जाना चाहिए। वन शब्द को शब्दकोष में उल्लेखित उसके अर्थ के अनुसार ही समझा जाना चाहिए। यह व्याख्या कानूनी रूप से मान्य सभी वनों पर लागू होती है चाहे वे संरक्षित और सुरक्षित हों या फिर वन संरक्षण अधिनियम के खंड-2(1) के तहत हों। खंड-2 में उल्लेखित वन भूमि में शब्दकोष में उल्लेखित वन ही शामिल नहीं होगा, बल्कि इसमें स्वामित्व की परवाह किए बिना सरकारी दस्तावेजों में वन के रूप में दर्ज कोई भी क्षेत्र शामिल होगा।

वाईके सिंह चौहान ने अपनी जांच रिपोर्ट में लिखा है कि इस तरह गैर-वन भूमि में बदले जाने के बाद भी संरक्षित वन भूमि का कानूनी स्वरूप नहीं बदलेगा, लेकिन वीके श्रीवास्तव ने राजस्व अभिलेख में कोटा, पड़रछ और मकरीबारी गांवों में स्थित संरक्षित वन क्षेत्र की भूमि के कानूनी स्वरूप को परिवर्तित कर दिया है। राजस्व अभिलेख में वन भूमि के कानूनी स्वरूप का परिवर्तन केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के उस आदेश का भी उल्लंघन है जो उसने 17 फरवरी, 2005 को जारी किया था। इसमें साफ लिखा हैः

'केंद्र सरकार के पूर्व अनुमोदन के बिना राजस्व अभिलेखों में जंगल, झाड़ के रूप में दर्ज भूमि के कानूनी स्वरूप में परिवर्तन गैर-कानूनी और वन संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन है। संबंधित विभाग को निर्देशित किया जाता है कि वे तुरंत जंगल,झा़ड़, वन भूमि के कानूनी स्वरूप को बहाल करें।'

इतना ही नहीं, जेएएल सूबे की सत्ता में काबिज राजनीतिक पार्टियों के नुमाइंदों और जिला प्रशासन के आलाहुक्मरानों की मिलीभगत से संरक्षित वन क्षेत्र के साथ-साथ कैमूर वन्यजीव विहार के इलाकों में अपनी गैर-कानूनी गतिविधियों को अंजाम देता रहा। नेशनल बोर्ड ऑफ वाइल्डलाइफ ने भी इसकी पुष्टि की है। केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के नेशनल बोर्ड ऑफ वाइल्डलाइफ की स्थाई समिति ने सोनभद्र में जेएएल की कैप्टीव थर्मल पॉवर प्लांट की चारों ईकाइयों को अनापत्ति प्रमाण-पत्र देने के योग्य नहीं पाया। समिति की तत्कालीन सदस्य सचिव प्रेरणा बिंद्रा ने जेएएल के पॉवर प्लांट के प्रस्ताव को वन संरक्षण अधिनियम और पर्यावरण संरक्षण अधिनियम और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन बताया है। पॉवर प्लांट की ईकाइयों के निर्माण और संचालन के लिए केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने अभी तक अनापत्ति प्रमाण-पत्र भी जारी नहीं किया है। इसके बावजूद जय प्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड निर्माण कार्यों को जारी रखे हुए है और जिला प्रशासन मूक दर्शक की भूमिका निभा रहा है। 

जेएएल पिछले करीब आठ सालों से 2500 एकड़ से ज्यादा संरक्षित वन भूमि पर अवैध खनन और गैर-वानिकी गतिविधियां संचालित कर रही है और इसकी पुष्टि विभिन्न जांच रिपोर्टों में भी हो चुकी है। इसके बावजूद पिछले चार साल से सूबे की सत्ता में काबिज अखिलेश सरकार ने इस मामले में कोई तत्परता नहीं दिखाई और ना ही उसने विंध्याचल मंडलायुक्त और केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की रिपोर्टों पर कार्रवाई की। जब जेपी समूह ने डाला सीमेंट फैक्ट्री, जिसके अधीन विवादित करीब 2500 एकड़ वनभूमि वाले खनन-पट्टे आते हैं, को आदित्य बिड़ला समूह की अल्ट्रोटेक सीमेंट कंपनी को बेच दिया तो राज्य सरकार इस वनभूमि को वापस लेने के लिए तत्परता दिखा रही है। हालांकि उसकी यह तत्परता ईमानदारी से अपना मुकाम हासिल कर लेगी, कहना मुश्किल है।  

इसके बारे में जब वाईके सिंह चौहान, अब अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक (विकास) वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, झारखंड सरकार, से बात की गई तो उन्होंने कहा, आज यह खबर सुनकर बड़ी राहत मिली है। पूरी सर्विस के दौरान मैंने यह सबसे महत्वपूर्ण कार्य किया है। उद्योगपतियों ने साजिश रचकर वनभूमि को हड़प लिया है जो गरीबों और आदिवासियों के काम आता। इस मामले में स्थानीय जनता का भरपूर सहयोग मिला। जांच के दौरान उन्होंने एक-एक गाटे की सूचना और कागजात मुहैया कराये। इस मामले में राज्य सरकार के कुछ अधिकारियों ने जेपी समूह के एजेंट के रूप में कार्य किया है। उन्हें विंध्याचल मंडलायुक्त की जांच आख्या की संस्तुति के आधार पर दंड जरूर मिलना चाहिए। साथ ही इस मामले में लापरवाही बरतने वाले प्रशासनिक अधिकारियों के साथ-साथ वन-विभाग और राजस्व विभाग के अधिकारियों की भूमिका की भी जांच होनी चाहिए और उन्हें दण्डित किया जाना चाहिए। साथ ही जेपी समूह से जल्द से जल्द वनभूमि वापस लेकर उससे राजस्व क्षति की वसूली की जानी चाहिए।

वहीं अखिलेश सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट (आईपीएफ) के संयोजक अखिलेंद्र प्रताप सिंह कहते हैं कि जेपी समूह और समाजवादी पार्टी की नजदिकियां जगजाहिर हैं। इस फैसले में राज्य सरकार की ईमानदारी प्रतीत नहीं हो रही है। फिर भी सरकार जेपी समूह से जमीन वापस लेना चाहती है तो उसे जल्द से जल्द वापस ले लेना चाहिए और दोषियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करनी चाहिए लेकिन जिस प्रकार से जांच कमेटी गठित किये जाने की खबरें सामने आई हैं, वह यही दर्शाता है कि इस मामले में राज्य सरकार की मंशा साफ नहीं है। 


जेएएल की गैर-कानूनी गतिविधियों के खिलाफ लगातार करीब 128 दिन तक अनशन करने वाले भारतीय सामाजिक न्याय मोर्चा के अध्यक्ष चौधरी यशवंत सिंह ने कहा कि राज्य सरकार यह कदम एनजीटी और सीईसी के दबाव में उठा रही है। मुख्य सचिव के पास इसका कोई जवाब नहीं है। उन्होंने उच्चतम न्यायालय से माफी मांगी है। इसमें राज्य की सपा और बसपा सरकार के मुखिया के साथ-साथ कई प्रमुख सचिव स्तर के अधिकारी दोषी हैं। उनके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। अब इस मामले में जांच का कोई औचित्य नहीं है। मंडलायुक्त और सीईसी की जांच रिपोर्ट पर्याप्त है। उसके अनुसार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए। 

बुधवार, 16 मार्च 2016

रिहाई मंच के ‘जन विकल्प मार्च’ पर लाठी चार्ज, महिलाओं समेत दर्जनों घायल, सैकड़ों गिरफ्तार


कार्यकर्ताओं पर लाठी चार्ज और महिला कार्यकर्ताओं से बदसलुकी ।
मनुवाद और सांप्रदायिकता के खिलाफ नया राजनीतिक विकल्प खड़ा कर रहा मंच।

वनांचल न्यूज नेटवर्क

लखनऊ। आतंकवाद के नाम पर देश की विभिन्न जेलों में बंद बेगुनाहों की रिहाई के लिए अभियान चला रहे रिहाई मंच ने आज सैकड़ों कार्यकर्ताओं के साथ जन विकल्प मार्चनिकाला। विधानसभा की ओर जा रहे मार्च को पुलिस ने बीच में ही रोक दिया जिससे मंच के नेताओं और पुलिस के बीच नोकझोंक भी हुई। विधानसभा तक मार्च करने की जिद पर अड़े रिहाई मंच के सैकड़ों कार्यकर्ताओं और नेताओं पर पुलिस ने आखिरकार लाठीचार्ज कर दिया जिससे भगदड़ की स्थिति पैदा हो गई। पुलिस के लाठीचार्ज में महिलाओं समेत दर्जनों लोग घायल हो गए। पुलिस ने मार्च में शामिल नेताओं और कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया और उन्हें पुलिस लाइन ले गई। जिन्हें बाद में निजी मुचलके पर छोड़ दिया गया। मंच का दावा है कि पुलिस ने इस दौरान रिहाई मंच के कार्यकर्ताओं के साथ महिला नेताओं के साथ अभद्रता की और उन पर भी लाठीचार्ज किया।


मंच ने कहा कि प्रदेश में सत्तारुढ़ अखिलेश सरकार द्वारा सरकार के चार बरस पूरे होने पर जन विकल्प मार्च निकाल रहे लोगों को रोककर तानाशाही का सबूत दिया है। मंच ने अखिलेश सरकार पर आरोप लगाया कि जहां प्रदेश भर में एक तरफ संघ परिवार को पथसंचलन से लेकर भड़काऊ भाषण देने की आजादी है लेकिन सूबे भर से जुटे इंसाफ पसंद अवाम जो विधानसभा पहुंचकर सरकार को उसके वादों को याद दिलाना चाहती थी को यह अधिकार नहीं है कि वह सरकार को उसके वादे याद दिला सके। मुलायम और अखिलेश मुसलमानों का वोट लेकर विधानसभा तो पहुंचना चाहते हंै लेकिन उन्हें अपने हक-हुकूक की बात विधानसभा के समक्ष रखने का हक उन्हें नहीं देते। अखिलेश सरकार पर लोकतांत्रिक अधिकारों को कुचलने का आरोप लगाते हुए मंच ने कहा कि इस नाइंसाफी के खिलाफ सूबे भर की इंसाफ पसंद अवाम यूपी में नया राजनीतिक विकल्प खड़ा करेगी।


रिहाई मंच के अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि जिस तरीके से इंसाफ की आवाज को दबाने की कोशिश और मार्च निकाल रहे लोगों पर हमला किया गया उससे यह साफ हो गया है कि यह सरकार बेगुनाहों की लड़ाई लड़ने वाले लोगों के दमन पर उतारु है। उसकी वजहें साफ है कि यह सरकार बेगुनाहों के सवाल पर सफेद झूठ बोलकर आगामी 2017 के चुनाव में झूठ के बल पर उनके वोटों की लूट पर आमादा है। सांप्रदायिक व जातीय हिंसा, बिगड़ती कानून व्यवस्था, अल्पसंख्यक, दलित, आदिवासी, महिला, किसान और युवा विरोधी नीतीयों के खिलाफ पूर्वांचल, अवध, बुंदेलखंड, पश्चिमी उत्तर प्रदेश समेत पूरे सूबे से आई इंसाफ पसंद अवाम की राजधानी में जमावड़े ने साफ कर दिया कि सूबे की अवाम सपा की जन विरोधी और सांप्रदायिक नीतियों से पूरी तरह त्रस्त है। उन्होंने कहा कि सपा ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में वादा किया था कि आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाहों को रिहा करेगी, उनका पुर्नवास करेगी और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करेगी। पर उसने किसी बेगुनाह को नहीं छोड़ा उल्टे निमेष कमीशन की रिपोर्ट पर कार्रवाई न करते हुए मौलाना खालिद मुजाहिद की पुलिस व आईबी के षडयंत्र से हत्या करवा दी। कहां तो सरकार का वादा था कि वह सांप्रदायिक हिंसा के दोषियों को सजा देगी लेकिन सपा के राज में यूपी के इतिहास में सबसे अधिक सांप्रदायिक हिंसा सपा-भाजपा गठजोड़ की सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति द्वारा करवाई गई। भाजपा विधायक संगीत सोम, सुरेश राणा को बचाने का काम किया गया। उन्होंने कहा कि सपा सैफई महोत्सव से लेकर अपने कुनबे की शाही विवाहों में प्रदेश के जनता की गाढ़ी कमाई को लुटाने में मस्त है। दूसरी तरफ पूरे सूबे में भारी बरसात और ओला वृष्टि के चलते फसलें बरबाद हो गई हैं और बुंदेलखंड सहित पूरे प्रदेश का बुनकर, किसान-मजदूर अपनी बेटियों का विवाह न कर पाने के कारण आत्महत्या करने पर मजबूर है।

रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि दलित छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या और जेएनयू में कन्हैया कुमार, उमर खालिद, अनिर्बान को देशद्रोही घोषित करने की संघी मंशा के खिलाफ पूरे देश में मनुवाद और सांप्रदायिकता के खिलाफ खड़े हो रहे प्रतिरोध को यह जन विकल्प मार्च प्रदेश में एक राजनीतिक दिशा देगा। उन्होंने कहा कि बेगुनाहों, मजलूमों के इंसाफ का सवाल उठाने से रोकने के लिए जिस सांप्रदायिक जेहनियत से जन विकल्प मार्चको रोका गया अखिलेश की पुलिस द्वारा जन विकल्प मार्चपर हमला बोलना वही जेहनियत है जो जातिवाद-सांप्रदायिकता से आजादी के नाम पर जेएनयू जैसे संस्थान पर देश द्रोही का ठप्पा लगाती है। उन्होंने कहा कि सपा केे चुनावी घोषणा पत्र में दलितों के लिए कोई एजेण्डा तक नहीं है और खुद को दलितों का स्वयं भू हितैषी बताने वाली बसपा के हाथी पर मनुवादी ताकतें सवार हो गई हैं। प्रदेश में सांप्रदायिक व जातीय ध्रुवीकरण करने वाली राजनीति के खिलाफ    रिहाई मंच व इंसाफ अभियान का यह जन विकल्प मार्च देश और समाज निर्माण को नई राजनीतिक दिशा देगा।

इंसाफ अभियान के प्रदेश प्रभारी राघवेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा कि सपा सरकार के चार बरस पूरे होने पर यह जन विकल्प मार्च झूठ और लूट को बेनकाब करने का ऐतिहासिक कदम था। सरकार के बर्बर, तानाशाहपूर्ण मानसिकता के चलते इसको रोका गया क्योंकि यह सरकार चैतरफा अपने ही कारनामों से घिर चुकी है और उसके विदाई का आखिरी दौर आ गया है। अब और ज्यादा समय तक सूबे की इंसाफ पसंद आवाम ऐसी जनविरोधी सरकार को बर्दाश्त नहीं करेगी।

सिद्धार्थनगर से आए रिहाई मंच नेता डॉ. मजहरूल हक ने कहा कि मुसलमानों के वोट से बनी सरकार में मुसलमानों पर सबसे ज्यादा हिंसा हो रही है। हर विभाग में उनसे सिर्फ मुसलमान होने के कारण अवैध वसूली की जाती है। उन्हें निरंतर डराए रखने की रणनीति पर सरकार चल रही है। लेकिन रिहाई मंच ने मुस्लिम समाज में साहस का जो संचार किया है वह सपा के राजनीतिक खात्में की बुनियाद बनने जा रही है। वहीं गोंडा से आए जुबैर खान ने कहा कि इंसाफ से वंचित करने वाली सरकारें इतिहास के कूड़ेदान में चली जाती हैं। सपा ने जिस स्तर पर जनता पर जुल्म ढाए हैं, मुलायाम सिंह के कुनबे ने जिस तरह सरकारी धन की लूट की है उससे सपा का अंत नजदीक आ गया है। इसलिए वह सवाल उठाने वालों पर लाठियां बरसा कर उन्हें चुप कराना चाहती है।

मुरादाबाद से आए मोहम्मद अनस ने कहा कि आज देश का मुसलमान आजाद भारत के इतिहास में सबसे ज्यादा डरा और सहमा है। कोई भी उसकी आवाज नहीं उठाना चाहता। ऐसे में रिहाई मंच ने आतंकवाद के नाम पर मुसलमानों के फंसाए जाने को राजनीतिक मुद्दा बना दिया है वह भविष्य की राजनीति का एजेंडा तय करेगा। बम्बई से आए मोहम्मद इस्माईल ने कहा कि सपा की अपनी करनी के कारण आज पूरे सूबे में जो माहौल बना है वह उससे झंुझलाई सरकार अब उससे सवाल पूछने वालों पर हमलावर हो गई है। रिहाई मंच इस जनआक्रोश को जिस तरह राजनीतिक दिशा देने में लगा है वह प्रदेश की सूरत बदल देगा।


प्रदर्शन को मैगसेसे अवार्ड से सम्मानित संदीप पांडे, फैजाबाद से आए अतहर शम्सी, जौनपुर से आए औसाफ अहमद, प्यारे राही, बलिया से आए डाॅ अहमद कमाल, रोशन अली, मंजूर अहमद, गाजीपुर से आए साकिब, आमिर नवाज, गोंडा से आए हादी खान, रफीउद्दीन खान, इलाहाबाद से आए आनंद यादव, दिनेश चैधरी, बांदा से आए धनन्जय चैधरी, फरूखाबाद से आए योगेंद्र यादव, आजमगढ़ से आए विनोद यादव, शाहआलम शेरवानी, तेजस यादव, मसीहुद््दीन संजरी, सालिम दाउदी, गुलाम अम्बिया, सरफराज कमर, मोहम्मद आमिर, अवधेश यादव, राजेश यादव, उन्नाव से आए जमीर खान, बनारस से आए जहीर हाश्मी, अमित मिश्रा, सीतापुर से आए मोहम्मद निसार, रविशेखर, एकता सिंह, दिल्ली से आए अजय प्रकाश, प्रतापगढ़ से आए शम्स तबरेज, मोहम्मद कलीम, सुल्तानपुर से आए जुनैद अहमद,कानपुर से आए मोहम्मद अहमद, अब्दुल अजीज, रजनीश रत्नाकर, डाॅ निसार, बरेली से आए मुश्फिक अहमद, शकील कुरैशी, सोनू आदि ने भी सम्बोधित किया। संचालन अनिल यादव ने किया।
(प्रेस विज्ञप्ति)

शनिवार, 5 मार्च 2016

खादी और खाकी लिबास में छिपे सफेदपोशों ने बेखौफ किया अवैध खनन


खननमाफियाओं के गठजोड़ के आगे कमजोर पड़ी जाति-धर्म और क्षेत्रीयता की दीवार
[नोटः यह रिपोर्ट 'वनांचल एक्सप्रेस' के वर्ष-2, अंक-16 (1-14 फरवरी, 2015) में प्रकाशित हो चुकी है।]

उत्तर प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में वर्षों से अवैध खनन हो रहा है लेकिन इसकी राजनीति का तापमान अब काफी बढ़ गया है। यह सफेदपोश खनन माफियाओं समेत सूबे के राजनीतिज्ञों का अखाड़ा बन गया है। आदिवासी बहुल सोनभद्र में तो यह एक नया इतिहास लिख रहा है। यहां अवैध खनन के इस गोरखधंधे में सभी राजनीतिक पार्टियों के नेताओं समेत समाजसेवा का दंभ भरने वाले सफेदपोश एक ही नक्शे कदम पर चल रहे हैं। यहां जाति-धर्म और क्षेत्रीयता का बंधन सूबे की राजधानी में विराजमान सत्ताधारी राजनीतिक नुमाइंदों के साथ लुटियन जोन के चुनिंदा नीति-निर्माताओं को भी पीछे छोड़ रहा है। अवैध खनन को बढ़ावा देने के साथ भ्रष्टाचार के मामले में आरोपी राज्य के खनन मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति के खिलाफ लोकायुक्त एन.के. मेहरोत्रा जांच कर रहे हैं तो सोनभद्र जिला प्रशासन की जांच रिपोर्ट में रसड़ा (बलिया) बसपा विधायक उमा शंकर सिंह नियम-कानूनों की धज्जियां उड़ाते हुए अवैध खनन कर रहे हैं। हालांकि संवैधानिक पद का दुरुपयोग करने के मामले में उनकी विधानसभा सदस्यता राज्यपाल ने समाप्त कर दी है। घोरावल  (सोनभद्र) विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से सपा विधायक रमेश चंद्र दुबे पर अवैध खनन समेत कई मामलों को लेकर स्मारक घोटाले में पहले ही जांच चल रही है। अवैध खनन से जुड़े ऐसे ही कुछ राजनीतिक चेहरों के साथ कुछ सफेदपोशों की छानबीन की गई जिसमें एक से बढ़कर एक चौंकाने वाले तथ्य उजागर हुए। ऐसे ही तथ्यों पर आधारित है यह रिपोर्टः   

-सफेदपोश नेताओं समेत आईएएस और आईपीएस अधिकारी के रिश्तेदार करा रहे अवैध खनन। -एनजीओ से लेकर कंपनियां तक कर रही अवैध खनन।
-पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के क्रिटिकल जोन में शामिल सोनभद्र के बिल्ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र में खनन माफिया जमकर उड़ा रहे हैं उच्चतम न्यायालय के दिशा-निर्देशों की धज्जियां। 
-मीडिया पब्लिसिटी तक सिमटी जिला प्रशासन की कार्रवाई।

शिव दास

मजदूरों की कब्रगाह के रूप में चर्चित सोनभद्र का बिल्ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र सफेदपोश खनन माफियाओं का चारागाह बन गया है। पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण के लिहाज से क्रिटिकल जोन में शामिल इस क्षेत्र में उच्चतम न्यायालय समेत विभिन्न भारतीय कानूनों की जमकर धज्जियां उड़ाई जा रही हैं और बड़े पैमाने पर अवैध खनन किया जा रहा है। वहीं मीडिया पब्लिसिटी में मशगूल जिलाधिकारी केवल जिला सूचना और जनसंपर्क विभाग की विज्ञप्तियों में कार्रवाई करते नजर आ रहे हैं। इससे खनन माफियाओं का हौसला इस कदर बुलंद है कि वे राज्य सरकार और उसके नुमाइंदों की ओर से जारी किसी भी चेतावनी और दिशा-निर्देश का पालन सुनिश्चित नहीं करते। इसकी गवाही तहसील प्रशासन की ओर से जिलाधिकारी को समय-समय पर सौंपी गई रिपोर्टें देती हैं। अगर इन रिपोर्टों के शब्दों पर गौर करें तो सामाजिक न्याय और समानता के अधिकार के मामले में अवैध खनन का गोरखधंधा केंद्र और राज्य सरकार के नीति-निर्माताओं को पीछे छोड़ रहा है। खनन माफिया जाति-धर्म, ऊंच-नीच और क्षेत्रीयता के बंधन को तोड़ते हुए संयुक्त रूप से अवैध खनन के गोरखधंधे को अंजाम दे रहे हैं। कोई समाजसेवा के नाम पर गैर-सरकारी संगठन खड़ा कर अवैध खनन कर रहा है तो कोई कंपनी बनाकर लोगों को बेवकूफ बना रहा है। खद्दरधारी और वर्दीवाले भी पीछे नहीं हैं। सूबे की सत्ता में काबिज समाजवादी पार्टी समेत भाजपा, बसपा, कांग्रेस सरीखी राजनीतिक पार्टियों के नेता अवैध खनन के इस धंधे में शामिल हैं। आईएएस-आईपीएस स्तर के अधिकारी भी अपने रिश्तेदारों के बल पर सोनभद्र में अवैध खनन का इतिहास लिख रहे हैं। 
इन पंक्तियों के लेखक के हाथों लगे दस्तावेजों की मानें तो जिलाधिकारी के निर्देश पर रॉबर्ट्सगंज तहसील प्रशासन ने बिल्ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र में स्वीकृत खनन पट्टों और उनके संचालकों द्वारा किए जाने वाले खनन की जांच क्षेत्रीय लेखपाल से कराई थी। क्षेत्रीय लेखपाल ने गत 15 सितंबर को अपनी रिपोर्ट उच्चाधिकारियों दी। इसे रॉबर्ट्सगंज (सदर) तहसील के उप-जिलाधिकारी ने तहसीलदार, नायब तहसीलदार और अगोरी परगना के राजस्व निरीक्षक की संस्तुतियों के साथ जिला प्रशासन को सौंप दी। इस रिपोर्ट में उल्लेखित खनन पट्टाधारकों, जो अवैध खनन कर रहे हैं, के नामों की सूची पर गौर करें तो इनमें सपा, बसपा, भाजपा और कांग्रेस के नेताओं समेत कई आईएएस और आईपीएस अधिकारियों के रिश्तेदार तक शामिल हैं।

सपा नेता रमेश चंद्र वैश्य  

उक्त रिपोर्ट में ओबरा (बारी-डाला) निवासी वरिष्ठ सपा नेता रमेश चंद्र वैश्य और उनके रिश्तेदारों का नाम भी शामिल है। रमेश चंद्र वैश्य की स्वामित्व वाली फर्म मेसर्स रबिशा स्टोन प्रोडक्ट के नाम बिल्ली-मारकुंडी गांव के आराजी संख्या-4920, 4921, 4922 और 4924 की 1.75 एकड़  भूमि पर खनन पट्टा आबंटित है जो 3 जनवरी 2017 तक के लिए स्वीकृत है। क्षेत्रीय लेखपाल ने अपनी रिपोर्ट में साफ लिखा है कि पट्टाधारक के स्वीकृत क्षेत्र के उत्तर दिशा में अवैध खनन किया जा रहा है और सीमा स्तंभ भी हटा लिया गया है। क्षेत्रीय लेखपाल के इन शब्दों से साफ है कि रमेश चंद्र वैश्य अपने स्वीकृत खनन क्षेत्र से बाहर जाकर अवैध खनन कर रहे हैं क्योंकि सीमा स्तंभ समेत आस-पास के क्षेत्र में होने वाले अवैध खनन की जिम्मेदारी पट्टाधारक की होती है। 
अगर रबिशा स्टोन प्रोडक्ट के नाम से आबंटित पत्थर की खदान में शासन द्वारा निर्धारित सुरक्षा मानकों का भौतिक सत्यापन किया जाए तो यह बहुत अधिक घातक स्थिति में है। उन्होंने अपने स्वीकृत खनन क्षेत्र में ही शासन से निर्धारित सीमा से अधिक खनन किया है। कुछ ऐसे ही हालात उनकी पत्नी विन्दो देवी की स्वामित्व वाली फर्म मेसर्स शिवम स्टोन प्रोडक्ट के नाम से आबंटित खनन पट्टे की है। बिल्ली-मारकुंडी गांव की आराजी संख्या-4949ख के करीब दो एकड़ में आबंटित इस खनन पट्टे की मियाद 12 दिसम्बर 2020 तक है। क्षेत्रीय लेखपाल ने अपनी रिपोर्ट में साफ लिखा है कि मेसर्स शिवम स्टोन प्रोडक्ट के नाम से स्वीकृत खनन क्षेत्र के उत्तर और पूरब अवैध खनन किया जा रहा है और सीमा स्तंभ भी हटा लिया गया है। 
सपा नेता के छोटे भाई अजय कुमार के स्वामित्व वाली फर्म मेसर्स अजय स्टोन प्रोडक्ट के नाम से आबंटित खनन पट्टे के हालात भी कुछ ऐसा ही बयां कर रहे हैं। इस फर्म के नाम से बिल्ली-मारकुंडी गांव के आराजी संख्या-7411 के कुल एक एकड़ रकबे में खनन पट्टा आबंटित है। इसकी मियाद 25 फरवरी 2017 तक है। अजय कुमार के बारे में क्षेत्रीय लेखपाल ने साफ लिखा है कि पट्टाधारक द्वारा अपने स्वीकृत क्षेत्र से दक्षिण और पश्चिम में अवैध खनन किया गया है और सीमा स्तंभ भी मौके पर नहीं पाया गया। रमेश चंद्र वैश्य के बड़े भाई सुभाष चंद्र गुप्ता और उनके भतीजे विजय वैश्य की संयुक्त स्वामित्व वाली फर्म मेसर्स विजय स्टोन प्रोडक्ट के नाम से आबंटित खनन पट्टे के बारे में भी क्षेत्रीय लेखपाल की ऐसी ही रिपोर्ट है। इस फर्म के नाम से बिल्ली-मारकुंडी गांव के आराजी संख्या-7412ख और 7414ख/1 के कुल 0.55 एकड़ में खनन पट्टा आबंटित है जिसकी मियाद 29 अगस्त 2017 तक है। इसके बारे में क्षेत्रीय लेखपाल ने साफ लिखा है कि पट्टाधारक के स्वीकृत क्षेत्र से दक्षिण में अवैध खनन हुआ है और मौके पर सीमा स्तंभ भी नहीं पाया गया। 
क्षेत्रीय लेखपाल के रिपोर्ट पर उच्चाधिकारियों की मिली सहमति से यह साफ है कि सपा नेता रमेश चंद्र वैश्य और उनके रिश्तेदार उच्चतम न्यायालय के दिशा-निर्देशों समेत शासन के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन कर बड़े पैमाने पर अवैध खनन कर रहे हैं। जिला प्रशासन द्वारा रमेश चंद्र वैश्य और उसके परिवार के अन्य सदस्यों के नाम से खनन पट्टा आबंटित किया जाना भी सवालों के घेरे में हैं क्योंकि वह रॉबर्ट्सगंज तहसील के सबसे बड़े बकायादारों की सूची में शामिल हैं। दो साल पहले तक रमेश चंद्र वैश्य की स्वामित्व वाली फर्म रबिशा स्टोन प्रोडक्ट पर शक्तिनगर विशेष क्षेत्र प्राधिकरण (साडा) का 18,19,320 रुपये बकाया था और 99,000 रुपये उनसे वसूल की गई थी। अभी भी उनपर साडा के लाखों रुपये बकाया हैं। हालांकि उनसे वसूल की गई धनराशि अब 15,35000 रुपये हो चुकी है। इन हालात में सपा नेता और उनके रिश्तेदारों का अवैध खनन के गोरखंधंधे में संलिप्त पाया जाना जिला प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल खड़ा करता है। 

सपा नेता और चोपन नगर पंचायत अध्यक्ष इम्तियाज अहमद

गत वर्ष सितंबर महीने में रॉबर्ट्सगंज तहसील प्रशासन की ओर से जिलाधिकारी को सौंपी गई रिपोर्ट में चोपन नगर पंचायत अध्यक्ष और सपा नेता इम्तियाज अहमद और उनके साझीदारों का नाम भी शामिल हैं। चोपन निवासी इम्तियाज अहमद और सुरेश कुमार समेत बिल्ली-मारकुंडी गांव निवासी राम आसरे और मीरजापुर जिले की चुनार तहसील अंतर्गत चौकिया गांव निवासी अवधेश सिंह के नाम से बिल्ली-मारकुंडी गांव की आराजी संख्या- 7364ख, 7365 और 7366 के तीन एकड़ क्षेत्रफल में खनन पट्टा आबंटित है। इसकी मियाद 12 दिसंबर 2020 तक है। क्षेत्रीय लेखपाल समेत तहसील प्रशासन की रिपोर्ट में साफ लिखा है कि पट्टेदारों द्वारा अपने स्वीकृत क्षेत्र से सटे पूरब अवैध खनन किया जा रहा है और सीमा स्तंभ भी हटा लिए गए हैं। 
ऐसा नहीं है कि सपा नेता और उनके साझीदार पहली बार अवैध खनन के मामले में संलिप्त पाये गए हैं। इससे पहले 2013 में 22 अगस्त और 23 सितंबर को भी तहसील प्रशासन की ओर से जिला प्रशासन को भेजी गई की रिपोर्ट में ये लोग अवैध खनन करते पाए गए थे। इस रिपोर्ट में भी लिखा था कि इन लोगों के द्वारा अपने स्वीकृत क्षेत्र से सटे पूरब अवैध खनन किया जा रहा है और सीमा स्तंभ भी हटा लिये गए हैं लेकिन जिला प्रशासन ने इन सफेदपोश खननकर्ताओं के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। इससे उनका मनोबल और अधिक बढ़ गया और वे अवैध खनन करते रहे। गौर करने वाली बात यह है कि अवैध खनन के इस गोरखधंधे में जाति-धर्म और क्षेत्रीयता की सभी सीमाएं पीछे छूट गईं। उक्त खनन पट्टे के अलावा भी सपा नेता इम्तियाज अहमद और उनके रिश्तेदारों के नाम से वर्दिया खनन क्षेत्र में खनन पट्टा आबंटित हैं। 
अगर इन खनन पट्टों का भौतिक सत्यापन किया जाए तो यहां भी बड़े पैमाने पर अवैध खनन हुआ है और हो रहा है। वर्दिया गांव की अराजी संख्या-902, 903 और 941क के 1.58 एकड़ क्षेत्रफल में चोपन निवासी सपा नेता इम्तियाज अहमद, मीरजापुर जिले के चौकिया गांव निवासी अवधेश सिंह और वाराणसी जिले के पांडेयपुर की नई बस्ती निवसी केशमणी देवी के नाम से खनन पट्टा आबंटित है। इसकी मियाद 12 दिसम्बर 2020 तक है। यहां भी बड़े पैमाने पर अवैध खनन की बात कही जा रही है। वहीं सपा नेता के भाई उष्मान अली और चोपन निवासी सुरेश कुमार के नाम से वर्दिया गांव की आराजी संख्या-878क के 1.30 एकड़ क्षेत्रफल पर खनन पट्टा आबंटित है। इसकी मियाद भी 12 दिसंबर 2020 तक है। यहां भी स्वीकृत क्षेत्र से बाहर जाकर अवैध खनन करने की बात कही जा रही है।

पूर्व में भी सपा नेता और चोपन नगर पंचायत अध्यक्ष इम्तियाज अहमद, उनकी पत्नी फरीदा और उनके भाई सरफराज के नाम से बिल्ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र में डोलो स्टोन के खनन पट्टे आबंटित किए गए थे। लोगों की मानें तो इन सभी के नाम से आबंटित खनन पट्टों में मानक विपरीत जाकर खनन किया गया था और उसके प्रमाण आज भी वहां मौजूद हैं। ऐसे खनन पट्टों में वर्ष 2001-11 तक कमलेश्वर और सरफराज के नाम से स्वीकृत खनन पट्टा भी शामिल है। इसी अवधि के दौरान राजेश कुमार पुत्र स्व. कलीराम और फरीदा पत्नी इम्तियाज के नाम से आबंटित खनन पट्टे की भूमि पर हुआ खनन भी इनकी कारस्तानियों की देन है। वर्ष 2002-12 तक की अवधि के दौरान इम्तियाज पुत्र मजनू, उमेश कुमार राय पुत्र वंशीधर राय और चंद्रगुप्त पुत्र राम बाबू के नाम से आबंटित खनन पट्टे में हुए अवैध खनन के लिए भी इनकी कारगुजारियां सवालों के घेरे में हैं।

सपा नेता इश्तियाक खान

बिल्ली-मारकुंडी गांव निवासी इश्तियाक खान की पत्नी मेसर्स पूर्वांचल सेवा समिति की सचिव हैं और उनका नाम भी तहसील प्रशासन की रिपोर्ट में अवैध खननकर्ताओं की सूची में शामिल है। समिति के नाम से बिल्ली-मारकुंडी गांव की आराजी संख्या-7618 (कुल रकबा 2.25 एकड़) में खनन पट्टा औबंटित है। इसकी मियाद 10 जनवरी 2017 तक है। रॉबर्ट्सगंज तहसील प्रशासन की रिपोर्ट (सितंबर 2014) में समिति की सचिव के बारे में साफ लिखा है कि उनके द्वारा अपने स्वीकृत क्षेत्र के उत्तर और दक्षिण में अवैध खनन किया गया है तथा सीमा स्तंभ भी हटा लिया गया है। सूत्रों की मानें तो इश्तियाक खान खुद को सपा के वरिष्ठ नेता शिवपाल सिंह यादव का करीबी बताता है। इससे जिला प्रशासन समेत अन्य लोग उसके खिलाफ कार्रवाई करने में हिचकिचाते हैं। इससे पहले 3 अप्रैल 2013 को भी इश्तियाक खान की पत्नी के नाम आबंटित खनन पट्टे में अवैध खनन करने की बात तहसील प्रशासन की रिपोर्ट में कही गई थी।

भाजपा नेता वृषभान अग्रवाल

ओबरा के राममंदिर कॉलोनी स्थित 14/364 निवासी भाजपा नेता वृषभान अग्रवाल के प्रबंध निदेशकत्व वाली कंपनी/ फर्म मेसर्स बी. अग्रवाल स्टोन प्रोडक्ट लिमिटेड का नाम भी तहसील प्रशासन की रिपोर्ट में है। इसके नाम से बिल्ली-मारकुंडी गांव के आराजी संख्या--4601, 4602, 4603, 4606, 4608 और 4609 के कुल 2.84 एकड़ रकबे में खनन पट्टा आबंटित है। इसकी मियाद 1 अप्रैल 2018 तक है। तहसील प्रशासन की रिपोर्ट में साफ लिखा है कि भाजपा नेता वृषभान अग्रवाल के नाम से स्वीकृत खनन क्षेत्र के दक्षिण अवैध खनन किया गया है और सीमा स्तंभ भी हटा लिया गया है। वृषभान ओबरा विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से पिछला चुनाव भी लड़ चुके हैं। भाजपा नेता के चचेरे भाई संजीव कुमार अग्रवाल के स्वामित्व वाली फर्म मेसर्स मक्खन वर्क्स भी अवैध खनन के गोरखधंधे में संलिप्त पाई गई है। इसके नाम से बिल्ली-मारकुंडी गांव के आराजी संख्या-4478छ के कुल 1.88 एकड़ रकबे में खनन पट्टा आबंटित है जिसकी मियाद 12 मार्च 2020 तक है। तहसील प्रशासन की रिपोर्ट में साफ लिखा है कि इनके स्वीकृत क्षेत्र के पूरब अवैध खनन किया जा रहा है तथा सीमा स्तंभ भी हटा लिए गये हैं।

बसपा नेता और विधायक (रसड़ा) उमा शंकर सिंह

लिया जिले के रसड़ा विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से विधायक और बसपा नेता उमाशंकर सिंह के खिलाफ बिल्ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र में अवैध खनन करने के मामले को लेकर जिला प्रशासन  पिछले साल मुकदमा दर्ज कराया। उमाशंकर सिंह की कंपनी सी.एस. इंफ्राकंस्ट्रक्शन लिमिटेड (छात्र शक्ति इंफ्राकंस्ट्रक्शन लिमिटेड) बिल्ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र की अराजी संख्या-6229ख की 1.50 एकड़ भूमि पर 13 मार्च, 2010 से डोलो स्टोन का खनन कर रही है। इसकी मियाद 12 मार्च, 2020 तक है। इसके अलावा बिल्ली-मारकुंडी गांव की अन्य अराजी संख्या-4478छ की 2.50 एकड़ भूमि पर भी विधायक उमाशंकर सिंह के नाम से डोलो स्टोन का खनन पट्टा आबंटित है। इस खनन पट्टे की अवधि भी उक्त खनन पट्टे की अवधि के बराबर है। गौर करने वाली बात यह है कि बसपा विधायक उमाशंकर सिंह की कंपनी छात्र शक्ति इंफ्राकंस्ट्रक्शन लिमिटेड कंपनी ने बहुजन समाज पार्टी की पिछली सरकार में सोनभद्र में लोक निर्माण विभाग से होने वाले अधिकतर सड़क निर्माण के कार्य को अंजाम दिया है लेकिन वे सभी सड़क मार्ग बनने के दौरान ही उखड़ने लगे थे। ये बातें जिला प्रशासन की जांच रिपोर्ट में भी सामने आ चुकी हैं। फिलहाल भ्रष्टाचार में लिप्त होने के मामले में उमा शंकर सिंह की विधायकी चली गई है। पिछले दिनों राज्यपाल ने लोकायुक्त की संस्तुति और  राज्य सरकार की ओर से भेजी गई रिपोर्ट के आधार पर उन्हें बर्खास्त कर दिया है।

रविन्द्र जायसवाल और राकेश जायसवाल

वाराणसी जिले के पांडेयपुर स्थित सी-9/471सी निवासी रविन्द्र जायसवाल और उनके साझीदार राकेश जायसवाल का नाम भी तहसील प्रशासन की रिपोर्ट में अवैध खननकर्ताओं की सूची में शामिल है। इन दोनों के नाम से बिल्ली-मारकुंडी गांव की आराजी संख्या-7536घ के 3.10 एकड़ क्षेत्रफल में खनन पट्टा आबंटित है जिसकी मियाद 28 जुलाई 2017 तक है। तहसील प्रशासन ने गत सिम्बर की अपनी रिपोर्ट में साफ लिखा है कि पट्टाधारकों के स्वीकृत क्षेत्र के दक्षिण अवैध खनन किया जा रहा है और सीमा स्तंभ भी हटा लिया गया है। वहीं दक्षिण की तरफ खड़ी पहाड़ी है जो खतरनाक स्थिति में है। इससे साफ है कि पट्टाधारकों द्वारा एक सोची-समझी साजिश के तहत सीमा स्तंभ को हटाकर अवैध खनन को अंजाम दिया जा रहा है क्योंकि स्वीकृत खनन पट्टे की सीमांकन की जिम्मेदारी पट्टाधारकों की होती है और उनकी सीमा से सटे क्षेत्र में होने वाले अवैध खनन के लिए वे ही जिम्मेदार होते हैं। विश्वसनीय सूत्रों की मानें तो रविन्द्र जायसवाल के साझीदार राकेश जायसवाल उत्तर प्रदेश की पूर्व बसपा सरकार में खनन मंत्री रहे बाबू सिंह कुशवाहा के करीबी पूर्व विधायक आरपी जायसवाल के करीबी हैं। 

फिलहाल इसकी पुष्टि नहीं हो पाई है। राकेश जायसवाल की पत्नी आरती जायसवाल और ओबरा निवासी श्याम बिहारी की स्वामित्व वाली फर्म मेसर्स सुशील ग्रीट कॉर्पोरेशन भी अवैध खनन के गोरखधंधे में संलिप्त पाई गई है। इस फर्म के नाम से बिल्ली-मारकुंडी की आराजी संख्या-7410क के 0.93 एकड़ क्षेत्रफल में खनन पट्टा आबंटित है जिसकी मियाद 4 फरवरी 2017 तक है। तहसील प्रशासन ने अपनी रिपोर्ट में साफ लिखा है कि पट्टाधारकों द्वारा अपने स्वीकृत क्षेत्र से उत्तर और पश्चिम अवैध खनन किया जा रहा है और सीमा स्तंभ भी हटा लिया गया है। तहसील प्रशासन ने 4 अगस्त 2013 को उच्चाधिकारियों को भेजी अपनी रिपोर्ट में भी लिखा था कि श्याम बिहारी और आरती जायसवाल द्वारा अपने स्वीकृत क्षेत्र से पश्चिम-दक्षिण अवैध खनन किया जा रहा है लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। इतना ही नहीं राकेश जायसवाल की पत्नी आरती जायसवाल अपनी एक अन्य फर्म मेसर्स ओबरा स्टोन प्रोडक्ट के साझीदार बिल्ली-मारकुंडी गांव निवासी विनीत कुमार त्रिपाठी के साथ मिलकर अवैध खनन करने में शामिल हैं। इस फर्म के नाम से बिल्ली-मारकुंडी गांव की आराजी संख्या-4629 के 1.50 एकड़ क्षेत्रफल में खनन पट्टा आबंटित है। इसकी खनन अवधि 5 फरवरी 2011 से 4 फरवरी 2021 तक है। 

रॉबर्ट्सगंज तहसील प्रशासन की ओर से जिलाधिकारी को 8 जुलाई 2013 को भेजी गई रिपोर्ट में साफ लिखा है कि खान अधिनियम-1952 की धारा-22(2)22ए(2) के अंतर्गत निषेधाज्ञा लगे होने के बावजूद पट्टाधारकों द्वारा विद्युत टॉवर के नीचे खनन किया जा रहा है। पत्थर के ऊपर जमी हुई मिट्टी को हटाया जा रहा है जिससे दुर्घटना होने की संभावना बनी हुई है। यद्यपि मौके पर पोकलैंड मशीन नहीं थी लेकिन वहां मौजूद मिट्टी के निशानों से स्पष्ट है कि रात में पोकलैंड मशीनों का उपयोग किया जा रहा है। इनके द्वारा चलाये जा रहे वाहन पहाड़ों के ठीक नीचे परिवहन कर रहे हैं, जिससे दुर्घटना से इंकार नहीं किया जा सकता। इनके द्वारा भी खनन के कारणों को समाप्त नहीं किया जा रहा है, बल्कि उनके द्वारा खनन क्षेत्र में परिवहन किया जा रहा है। इसके बावजूद पट्टाधारकों के खिलाफ जिला प्रशासन की ओर से कोई कठोर कार्रवाई नहीं की गई है। इससे इलाके में अवैध खनन का दौर बदस्तूर जारी है। 

चौंकाने वाली बात है कि सोनभद्र के बिल्ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र में आबंटित डोलो स्टोन के खनन पट्टों में सबसे अधिक खनन पटटे राकेश जायसवाल, उनकी पत्नी आरती जायसवाल के नाम से हैं। कुछ सीधे इनके नाम से हैं तो कुछ में ये साझेदार हैं। इससे इनके राजनीतिक पकड़ का अंदाजा भी आसानी से लगाया जा सकता है। तहसील प्रशासन की रिपोर्ट में राकेश जायसवाल और आरती जायसवा  के नाम से आबंटित खनन पट्टों में बार-बार अवैध खनन किया गया लेकिन जिला प्रशासन ने उनके खिलाफ कोई कठोर कार्रवाई नहीं की।

रूपा सिंह

श्रीमती रूपा सिंह पुत्र स्व. अजय सिंह और बिल्ली-मारकुंडी गांव निवासी अब्दुल सत्तार पुत्र स्व. कुर्बान अली के नाम से बिल्ली-मारकुंडी गांव की आराजी संख्या-4476 के 1.00 एकड़ रकबे में खनन पट्टा आबंटित है। इसकी मियाद 3 फरवरी 2017 तक है। गत वर्ष 15 सितंबर की तहसील प्रशासन की रिपोर्ट में साफ लिखा है कि इनके स्वीकृत क्षेत्र के पूरब अवैध खनन किया जा रहा है। सूत्रों की मानें तो श्रीमती रूपा सिंह आईपीएस अधिकारी (डीआईजी) अमर नाथ सिंह की बहू हैं और इनके दामाद आईएएस अधिकारी राजेश्वर प्रसाद सिंह उर्फ आरपी सिंह करीब आठ साल पहले सोनभद्र के जिलाधिकारी रह चुके हैं। फिलहाल जिला प्रशासन ने पिछले दिनों उक्त खदान में अवैध खनन पाया था और खान अधिकारी को इस खदान के पट्टाधारकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने का निर्देश दिया था।

श्रीमती मीरा राय

गाजीपुर जिले के रेवतीपुर डाकखाना क्षेत्र अंतर्गत तिलवा गांव निवासी श्रीमती मीरा राय पत्नी अमरनाथ राय के स्वामित्व वाली फर्म मेसर्स सत्यम स्टोन वर्क्स के नाम से बिल्ली-मारकुंडी गांव के आराजी संख्या-4959, 4961 से 4967 और 4972 से 4974 के 1.41 एकड़ रकबे में खनन पट्टा आबंटित है। इसकी मियाद 3 जनवरी 2017 तक है। तहसील प्रशासन ने अपनी रिपोर्ट में साफ लिखा है कि इनके स्वीकृत खनन क्षेत्र के दक्षिण और पश्चिम अवैध खनन किया जा रहा है तथा सीमा स्तंभ भी हटा लिया गया है। सूत्रों की मानें तो श्रीमती मीरा राय बागपत के एसपी और आईएएस अधिकारी अवधेश कुमार राय की रिश्तेदार हैं। इसलिए इनके खिलाफ जिला प्रशासन की ओर से कठोर कार्रवाई नहीं की जाती है।

उक्त के अलावा भी ऐसे कई खनन पट्टाधारक हैं जिन्होंने अपने स्वीकृत क्षेत्र से बाहर जाकर अवैध खनन किया और अब भी कर रहे हैं। 15 सितंबर 2014 समेत अन्य कई तिथियों की जांच में क्षेत्रीय लेखपाल समेत तहसील प्रशासन ने इन्हें अवैध खनन करते हुए पाया और अपनी रिपोर्ट कार्रवाई के लिए जिला प्रशासन को सौंपी। ऐसे अवैध खनन पट्टाधारकों में निम्नलिखित शामिल हैं-

(1) बिल्ली-मारकुंडी गांव के आराजी संख्या-7402क, 7403 और 7404 (कुल रकबा 2.45 एकड़) में खनन पट्टा राम नरेश पुत्र स्व. हरिराम अग्रहरी निवासी ओबरा के नाम दिनांक 24 अगस्त 2017 के लिए स्वीकृत है। इनके द्वारा अपने स्वीकृत खनन क्षेत्र से सटे पश्चिम में अवैध खनन किया जा रहा है  और पट्टाधारक द्वारा सीमा स्तंभ भी हटा लिये गये हैं।

(2) बिल्ली-मारकुंडी गांव के आराजी संख्या-7405 (कुल रकबा-3.15 एकड़) पर खनन पट्टा बिल्ली-मारकुंडी गांव निवासी संजय कुमार सिंह पुत्र अलगू सिंह और संजीव कुमार सिंह पुत्र राम लखन के नाम दिनांक 27 नवम्बर 2016 तक के लिए स्वीकृत है। उनके द्वारा अपने स्वीकृत खनन क्षेत्र से दक्षिण में अवैध खनन किया जा रहा है तथा मौके पर सीमा स्तंभ भी नहीं पाया गया। 

(3) बिल्ली-मारकुंडी गांव के आराजी संख्या-7536घ (रकबा 1.50 एकड़) में ओबरा नगर पंचायत के सामने वीआईपी रोड स्थित मकान संख्या-ए2 निवासी अशोक कुमार सिंह पुत्र श्री अवध नारायण सिंह के नाम दिनांक 29 मार्च 2017 तक खनन पट्टा स्वीकृत है। उनके द्वारा स्वीकृत खनन क्षेत्र से पूरब में अवैध खनन किया जा रहा है तथा सीमा स्तंभ भी हटा लिया गया है।

(4) बिल्ली-मारकुंडी गांव के आराजी संख्या-3567, हाल नंबर 7536ग (कुल रकबा 1.87 एकड़) में चोपन निवासी गणेश प्रताप सिंह पुत्र राम नाथ सिंह के नाम से 14 अप्रैल 2016 तक के लिए खनन पट्टा स्वीकृत है। पट्टाधारक द्वारा अपने स्वीकृत क्षेत्र से उत्तर अवैध खनन किया गया है तथा सीमा स्तंभ भी हटा लिया गया है। दक्षिण तरफ खड़ी पहाड़ी है जो खतरनाक स्थिति में है। 

(5) बिल्ली-मारकुंडी गांव के आराजी संख्या-7536ग (कुल रकबा 1.85 एकड़) में खनन पट्टा बिल्ली मारकुंडी गांव निवासी कादिर अली पुत्र तुफेन अहमद, केशव प्रसाद विश्वकर्मा पुत्र देवराज विश्वकर्मा और रंगनाथ पुत्र भोलानाथ के नाम दिनांक 15 अप्रैल 2016 तक के लिए स्वीकृत है। इनके स्वीकृत क्षेत्र के दक्षिण अवैध खनन किया जा रहा है तथा सीमा स्तंभ हटा लिए गए हैं। दक्षिण की तरफ खड़ी पहाड़ी है जो खतरनाक स्थिति में है।

(6) बिल्ली-मारकुंडी गांव के आराजी संख्या-7569क (रकबा 2.25 एकड़) में खनन पट्टा बिल्ली-मारकुंडी गांव निवासी पवन कुमार सिंह  आदि के स्वामित्व वाली फर्म मेसर्स पावग स्टोन क्रेसिंग कंपनी के नाम दिनांक 27 नवंबर, 2016 तक के लिए स्वीकृत है। उनके स्वीकृत क्षेत्र के पश्चिम और उत्तर अवैध खनन किया जा रहा है तथा सीमा स्तंभ भी हटा लिये गए हैं।

(7) बिल्ली-मारकुंडी गांव के आराजी संख्या-7564क, 7566, 7566ख और 7568 (कुल रकबा 1.55 एकड़) में खनन पट्टा ओबरा के गजराजनगर निवासी पंकज सिंह पुत्र चंद्रशेखर सिंह के नाम 22 मार्च 2016 तक के लिए स्वीकृत है। इनके स्वीकृत क्षेत्र के उत्तर अवैध खनन प्रतीत होता है तथा सीमा स्तंभ भी हटा लिया गया है।

(8) बिल्ली-मारकुंडी गांव स्थित आराजी संख्या-7617ख (रकबा 1.5 एकड़) में खनन पट्टा मेसर्स उमा सेवा समिति के नाम दिनांक 20 फरवरी 2017 तक के लिए स्वीकृत है। समिति की सचिव श्रीमती किरन राय पत्नी प्रदीप नारायण और सदस्य सत्येन्द्र कुमार सिंह पुत्र परमात्मा सिंह, निवासीगण- बिल्ली-मारकुंडी, द्वारा स्वीकृत क्षेत्र से सटे उत्तर-पूरब की तरफ अवैध खनन करने का प्रयास किया गया है तथा सीमा स्तंभ भी हटा लिए गए हैं।

(9) बिल्ली-मारकुंडी गांव के आराजी संख्या-5390ख, 5391, 5394, 5395 और 5396 (कुल रकबा 2.51 एकड़) में खनन पट्टा मेसर्स दीपाली सेवा समिति के सचिव विनोद कुमार के नाम 29 अप्रैल 2014 तक के लिए स्वीकृत है। इनके स्वीकृत क्षेत्र के पूरब अवैध खनन किया जा रहा है तथा सीमा स्तंभ भी हटा लिया गया है।

(10) बिल्ली-मारकुंडी गांव के आराजी संख्या-4478छ (कुल रकबा 1.22 एकड़) में खनन पट्टा बिल्ली-मारकुंडी स्थित मेसर्स सार्थक सेवा समिति के सचिव के रूप में रॉबर्ट्सगंज निवासी विप्लव जालान पुत्र रवि जालान के नाम 22 दिसंबर, 2016 तक के लिए स्वीकृत है। इनके स्वीकृत क्षेत्र के दक्षिण अवैध खनन किया गया है और सीमा स्तंभ भी हटा लिया गाय है।

(11)बिल्ली-मारकुंडी गांव के आराजी संख्या-6229ख (कुल रकबा 1.00 एकड़) में खनन पट्टा ओबरा स्थित मेसर्स सत्यसेवा समिति के अध्यक्ष एसपी सिंह पुत्र राम सूरत सिंह, सचिव श्रीमती रश्मि सिंह पत्नी आशीष सिंह और सदस्य इसहाक पुत्र इदरीश के नाम दिनांक 19 फरवरी 2017 तक के लिए स्वीकृत है। इनके स्वीकृत क्षेत्र के उत्तर अवैध खनन किया जा रहा है तथा सीमा स्तंभ भी हटा लिया गया है। (एसपी सिंह, अमर उजाला के पत्रकार)

(12) बिल्ली-मारकुंडी के आराजी संख्या-6229ख (कुल रकबा 5.00 एकड़) में खनन पट्टा मनोज कुमार सूद पुत्र सुरेन्द्र कुमार सूद आदि के नाम दिनांक 23 मई, 2024 तक के लिए स्वीकृत है। इनके स्वीकृत क्षेत्र के उत्तर अवैध खनन किया जा रहा है तथा सीमा स्तंभ भी हटा लिया गया है।

(13) श्रीमती निर्मला अग्रवाल और श्रीमती चंचला केशरी की संयुक्त स्वामित्व वाली फर्म मेसर्स अग्रवाल ब्रदर्स के नाम से बिल्ली-मारकुंडी गांव के आराजी संख्या-4478  के कुल 0.62 एकड़ में खनन पट्टा आबंटित है जिसकी मियाद 28 नवंबर 2016 तक है। तहसील प्रशासन की रिपोर्ट में अवैध खनन में इसके शामिल होने की बात कही गई है। रिपोर्ट में लिखा है कि इनके स्वीकृत क्षेत्र के उत्तर अवैध खनन किया जा रहा है तथा सीमा स्तंभ भी हटा लिये गए हैं।

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तीन मजदूरों की मौत के बाद भी नहीं रुका खदान में अवैध खनन

शिव दास

डोलो स्टोन पत्थर की खतरनाक खदान में तीन मजदूरों की मौत के बाद भी अवैध खनन का गोरखधंधा चलता रहा लेकिन जिला प्रशासन के नुमाइंदे अवैध खनन रोकने में नाकाम रहे। यह खुद जिला प्रशासन के निर्देश पर रॉबर्ट्सगंज तहसील प्रशासन की जांच रिपोर्ट में उजागर हुआ है। वर्ष 2013 से सितंबर, 2014 तक उसकी सभी रिपोर्टों में चोपन निवासी धर्मेंद्र कुमार सिंह पुत्र प्रेम नारायण सिंह के नाम से आबंटित खनन पट्टों की भूमि पर अवैध खनन पाया गया है।

तहसील प्रशासन की हालिया रिपोर्ट ( सितंबर 2014) में साफ लिखा है कि बिल्ली-मारकुंडी गांव की आराजी संख्या-7613 के 1.25 एकड़ क्षेत्रफल में चोपन निवासी धर्मेन्द्र कुमार सिंह के नाम से 28 जून 2019 तक के लिए खनन पट्टा स्वीकृत है। उनके द्वारा अपने स्वीकृत क्षेत्र से पश्चिम में अवैध खनन किया जा रहा है और सीमा स्तंभ भी हटा लिए गए हैं। धर्मेंद्र की अन्य खदान में तहसील प्रशासन ने अवैध खनन पाया है। उसने अपनी इसी रिपोर्ट में लिखा है कि बिल्ली-मारकुंडी गांव की आराजी संख्या-7618 और 7614ग (के 4.54 एकड़ रकबे में चोपन निवासी धर्मेंद्र कुमार सिंह पुत्र स्व. प्रेम नारायण सिंह के नाम खनन पट्टा दिनांक 28 जून 2019 तक के लिए स्वीकृत है। इनके द्वारा अपने खनन क्षेत्र से हटकर पूरब और दक्षिण अवैध खनन किया जा रहा है तथा सीमा स्तंभ भी हटा लिये गए हैं। गौर करने वाली बात है कि धर्मेंद्र सिंह बार-बार अवैध खनन कर रहा है लेकिन जिला प्रशासन उसके खिलाफ कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा।

8 जुलाई, 2013 को क्षेत्रीय लेखपाल, राजस्व निरीक्षक, अगोरी, नायब तहसीलदार, रॉबर्ट्सगंज, तहसीलदार रॉबर्ट्सगंज, क्षेत्राधिकारी, ओबरा और उप-जिलाधिकारी, रॉबर्ट्सगंज ने जिलाधिकारी को अपनी रिपोर्ट पत्रांक संख्या-75/टंकक-जांच(आख्या)/2013 के माध्यम से दी। उन्होंने जिलाधिकारी को संबोधित पत्र में लिखा है कि आपके मौखिक निर्देश के अनुपालन में मेरे द्वारा खान अधिनियम-1952 की धारा-22(2)22ए(2) के अंतर्गत निषेधाज्ञा लगे खनन पट्टों के संबंध में जांच की गई। रिपोर्ट में लिखा है कि चोपन निवासी धर्मेन्द्र कुमार सिंह पुत्र स्व. प्रेम नारायण सिंह के स्वामित्व वाली मेसर्स सौरभ क्रेशर्स के नाम से आबंटित खनन पट्टे के आराजी संख्या-5593क ( हाल नंबर 7613, कुल रकबा 1.25 एकड़) का निरीक्षण किया गया। इस खनन पट्टे की अवध 4 जनवरी 2007 से 3 जनवरी 2017 तक है। उक्त पट्टाधारक द्वारा यहां पर खतरनाक ढंग से पत्थर खनन किया जा रहा है जहां पर दुर्घटना की संभावना बनी हुई है। खदान में दो वाहन बिल्कुल एक झुकी हुई पहाड़ी के नीचे खड़े हैं तथा बहुत ऊंचाई से खनन करने के लिए उन्हें नीचे आना पड़ता है। इससे कभी भी वाहनों के पीछे चलने के कारण दुर्घटना हो सकती है। ऐसा कई बार हो चुका है। ऐसा होने पर तीन व्यक्तियों की मृत्यु भी हो चुकी है जिसकी प्राथमिकी भी दर्ज कराई गई थी। इनके द्वारा भी खतरे के कारणों को समाप्त न करके खदान के अंदर परिवहन किया जा रहा है। इसके बावजूद जिला प्रशासन इस खदान में अवैध खनन के गोरखधंधे को रोक नहीं सका। इसकी पुष्टि खुद तहसील प्रशासन की जांच रिपोर्टें करती हैं।

4 अगस्त 2013 को क्षेत्रीय लेखपाल ने बिल्ली-मारकुंडी गांव स्थित खनन क्षेत्र का निरीक्षण किया। इसमें उसने पाया कि धर्मेंद्र कुमार सिंह के नाम से बिल्ली-मारकुंडी गांव के आराजी संख्या-7613 (कुल रकबा 1.25 एकड़) में आबंटित खनन पट्टे से दक्षिण-पूरब आराजी संख्या-7613 के आंशिक भाग और 7610 में अवैध खनन किया जा रहा है। 22 अगस्त 2013 और 23 सितम्बर 2013 की जांच रिपोर्टों में भी ऐसा ही पाया गया।

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मीडिया बयानबाजी तक सिमटी अवैध खनन के खिलाफ राजनेताओं की कार्रवाई

सोनभद्र में जिला प्रशासन, सफेदपोश नेताओं और खनन माफियाओं के गठजोड़ के बल पर हो रहे अवैध खनन के खिलाफ विभिन्न राजनीतिक पार्टियों की मुखालफत मीडिया बयानबाजी तक सिमट कर रह गई है। किसी भी राजनीतिक पार्टी और गैर-सरकारी संगठन ईमानदारी से जिले में अवैध खनन रोकने के लिए आगे नहीं आ रहे हैं। राजनेताओं और जनप्रतिनिधियों की बार-बार बयानबाजी से कुछ ऐसा ही प्रतीत हो रहा है। दूसरी ओर, पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) के प्रदेश संगठन सचिव विकास शाक्य ने जिला प्रशासन की रिपोर्ट को आधार बनाते हुए विभिन्न संवैधानिक संस्थाओं के प्रमुखों समेत मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर तथ्यात्मक बिन्दुओं पर श्वेत-पत्र जारी करने और दोषियों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई करने की मांग की है। साथ ही उन्होंने चिन्हित अवैध खननकर्ताओं पर मुकदमा दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार करने की मांग भी की है। अवैध खननकर्ताओं के नाम से आबंटित खनन पट्टों को निरस्त करने की बात भी उनके पत्र में कही गई है।

वहीं, जिले में अवैध खनन के मामले में संलिप्त समाजवादी पार्टी के नेताओं के खिलाफ कार्रवाई करने के मामले में पार्टी के जिलाध्यक्ष और विधायक अविनाश कुशवाहा का कहना है कि बसपा सरकार के दौरान जिले में जमकर अवैध खनन हुआ था। इस वजह से 27 फरवरी 2012 को बिल्ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र में विभत्स हादसा हुआ और 10 मजदूरों की मौत हुई। सपा सरकार अवैध खनन को रोकने के लिए प्रतिबद्ध है और खनन माफियाओं के खिलाफ कड़ाई से कार्रवाई कर रही है। कई लोगों के खिलाफ जिला प्रशासन ने एफआईआर दर्ज कराया है और अभी छापेमारी हो रही है। कई लोग जेल भेजे जा चुके हैं। हालांकि बिल्ली-मारकुंडी खनन हादसे की जांच रिपोर्ट नहीं आने के सवाल पर वे कोई सीधा जवाब नहीं दे पाए। फिलहाल उन्हें आशा है कि मुख्य विकास अधिकारी जल्द ही अपनी जांच रिपोर्ट प्रशासन को सौंप देंगे।

वहीं भाजपा की सोनभद्र इकाई के पूर्व जिलाध्यक्ष ओंकार केशरी ने कहा कि अवैध खनन वायुमंडल के लिए खतरा है। सोनभद्र में अवैध खनन जिला प्रशासन और खनन माफियाओं के गठजोड़ की वजह से हो रहा है। यहां के अवैध खनन को देखकर लगता है कि प्रशासन सपा के कार्यकर्ता के रूप में काम कर रहा है। जिलाधिकारियों की नियुक्ति अवैध खनन समेत अन्य अवैध धंधों को चलाने की योग्यता के आधार पर होता है। सोनभद्र में अवैध खनन की जांच सीबीआई से कराई जानी चाहिए।
वहीं जिला खनन प्रभारी और अपर-जिलाधिकारी मनीलाल यादव ने दावा किया कि अवैध खनन के जितने भी मामले आ रहे हैं, उन सभी मामलों में कार्रवाई की जा रही है। हालांकि उनके तीन साल के कार्यकाल में कैसे हुआ अवैध खनन के सवाल पर वह कोई स्पष्ट जवाब नहीं दे पाए।

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