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मंगलवार, 27 जून 2017

ये धर्म है, शब्द है या फिर संस्कृति...

ये धर्म है, शब्द है या फिर संस्कृति। जो भी हो, इनसे मेरा वास्ता तकरीबन दस साल का है। अजान के बारे में पहली बार अपै्रल 2008 में तब मालूम चला जब मड़ियाहूं के मरहूम मौलाना खालिद मुजाहिद की आतंकवाद के नाम पर की गई गिरफ्तारी के बाद देर शाम के एक प्रोग्राम के दौरान एकाएक माइक बंद करने को कहा गया। तो मालूम चला की मस्जिद से वक्त-वक्त पर निकलने वाली आवाज अजान के वक्त तेज आवाज नहीं करनी चाहिए। यहीं पहली बार खालिद के चचा जहीर आलम फलाही ने फजर-मगरिब जैसे शब्दों से भी परिचय कराया।
राजीव यादव
19 सितंबर 2008 को जब बाटला हाउस में फर्जी मुठभेड़ हुई, रमजान चल रहा था। उसको लेकर जो इमोशनल सेंटीमेंट संजरपुर, सरायमीर समेत पूरे आजमगढ़ में दिखा। उससे मालूम चला कि यह धार्मिकता के लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण है। कितना महत्वपूर्ण है, इस बात के बारे में 2013 में खालिद मुजाहिद की मौत के बाद के धरने के दौरान रमजान पड़ जाने के दौरान मालूम चला।

बुधवार, 16 मार्च 2016

रिहाई मंच के ‘जन विकल्प मार्च’ पर लाठी चार्ज, महिलाओं समेत दर्जनों घायल, सैकड़ों गिरफ्तार


कार्यकर्ताओं पर लाठी चार्ज और महिला कार्यकर्ताओं से बदसलुकी ।
मनुवाद और सांप्रदायिकता के खिलाफ नया राजनीतिक विकल्प खड़ा कर रहा मंच।

वनांचल न्यूज नेटवर्क

लखनऊ। आतंकवाद के नाम पर देश की विभिन्न जेलों में बंद बेगुनाहों की रिहाई के लिए अभियान चला रहे रिहाई मंच ने आज सैकड़ों कार्यकर्ताओं के साथ जन विकल्प मार्चनिकाला। विधानसभा की ओर जा रहे मार्च को पुलिस ने बीच में ही रोक दिया जिससे मंच के नेताओं और पुलिस के बीच नोकझोंक भी हुई। विधानसभा तक मार्च करने की जिद पर अड़े रिहाई मंच के सैकड़ों कार्यकर्ताओं और नेताओं पर पुलिस ने आखिरकार लाठीचार्ज कर दिया जिससे भगदड़ की स्थिति पैदा हो गई। पुलिस के लाठीचार्ज में महिलाओं समेत दर्जनों लोग घायल हो गए। पुलिस ने मार्च में शामिल नेताओं और कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया और उन्हें पुलिस लाइन ले गई। जिन्हें बाद में निजी मुचलके पर छोड़ दिया गया। मंच का दावा है कि पुलिस ने इस दौरान रिहाई मंच के कार्यकर्ताओं के साथ महिला नेताओं के साथ अभद्रता की और उन पर भी लाठीचार्ज किया।


मंच ने कहा कि प्रदेश में सत्तारुढ़ अखिलेश सरकार द्वारा सरकार के चार बरस पूरे होने पर जन विकल्प मार्च निकाल रहे लोगों को रोककर तानाशाही का सबूत दिया है। मंच ने अखिलेश सरकार पर आरोप लगाया कि जहां प्रदेश भर में एक तरफ संघ परिवार को पथसंचलन से लेकर भड़काऊ भाषण देने की आजादी है लेकिन सूबे भर से जुटे इंसाफ पसंद अवाम जो विधानसभा पहुंचकर सरकार को उसके वादों को याद दिलाना चाहती थी को यह अधिकार नहीं है कि वह सरकार को उसके वादे याद दिला सके। मुलायम और अखिलेश मुसलमानों का वोट लेकर विधानसभा तो पहुंचना चाहते हंै लेकिन उन्हें अपने हक-हुकूक की बात विधानसभा के समक्ष रखने का हक उन्हें नहीं देते। अखिलेश सरकार पर लोकतांत्रिक अधिकारों को कुचलने का आरोप लगाते हुए मंच ने कहा कि इस नाइंसाफी के खिलाफ सूबे भर की इंसाफ पसंद अवाम यूपी में नया राजनीतिक विकल्प खड़ा करेगी।


रिहाई मंच के अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि जिस तरीके से इंसाफ की आवाज को दबाने की कोशिश और मार्च निकाल रहे लोगों पर हमला किया गया उससे यह साफ हो गया है कि यह सरकार बेगुनाहों की लड़ाई लड़ने वाले लोगों के दमन पर उतारु है। उसकी वजहें साफ है कि यह सरकार बेगुनाहों के सवाल पर सफेद झूठ बोलकर आगामी 2017 के चुनाव में झूठ के बल पर उनके वोटों की लूट पर आमादा है। सांप्रदायिक व जातीय हिंसा, बिगड़ती कानून व्यवस्था, अल्पसंख्यक, दलित, आदिवासी, महिला, किसान और युवा विरोधी नीतीयों के खिलाफ पूर्वांचल, अवध, बुंदेलखंड, पश्चिमी उत्तर प्रदेश समेत पूरे सूबे से आई इंसाफ पसंद अवाम की राजधानी में जमावड़े ने साफ कर दिया कि सूबे की अवाम सपा की जन विरोधी और सांप्रदायिक नीतियों से पूरी तरह त्रस्त है। उन्होंने कहा कि सपा ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में वादा किया था कि आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाहों को रिहा करेगी, उनका पुर्नवास करेगी और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करेगी। पर उसने किसी बेगुनाह को नहीं छोड़ा उल्टे निमेष कमीशन की रिपोर्ट पर कार्रवाई न करते हुए मौलाना खालिद मुजाहिद की पुलिस व आईबी के षडयंत्र से हत्या करवा दी। कहां तो सरकार का वादा था कि वह सांप्रदायिक हिंसा के दोषियों को सजा देगी लेकिन सपा के राज में यूपी के इतिहास में सबसे अधिक सांप्रदायिक हिंसा सपा-भाजपा गठजोड़ की सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति द्वारा करवाई गई। भाजपा विधायक संगीत सोम, सुरेश राणा को बचाने का काम किया गया। उन्होंने कहा कि सपा सैफई महोत्सव से लेकर अपने कुनबे की शाही विवाहों में प्रदेश के जनता की गाढ़ी कमाई को लुटाने में मस्त है। दूसरी तरफ पूरे सूबे में भारी बरसात और ओला वृष्टि के चलते फसलें बरबाद हो गई हैं और बुंदेलखंड सहित पूरे प्रदेश का बुनकर, किसान-मजदूर अपनी बेटियों का विवाह न कर पाने के कारण आत्महत्या करने पर मजबूर है।

रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि दलित छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या और जेएनयू में कन्हैया कुमार, उमर खालिद, अनिर्बान को देशद्रोही घोषित करने की संघी मंशा के खिलाफ पूरे देश में मनुवाद और सांप्रदायिकता के खिलाफ खड़े हो रहे प्रतिरोध को यह जन विकल्प मार्च प्रदेश में एक राजनीतिक दिशा देगा। उन्होंने कहा कि बेगुनाहों, मजलूमों के इंसाफ का सवाल उठाने से रोकने के लिए जिस सांप्रदायिक जेहनियत से जन विकल्प मार्चको रोका गया अखिलेश की पुलिस द्वारा जन विकल्प मार्चपर हमला बोलना वही जेहनियत है जो जातिवाद-सांप्रदायिकता से आजादी के नाम पर जेएनयू जैसे संस्थान पर देश द्रोही का ठप्पा लगाती है। उन्होंने कहा कि सपा केे चुनावी घोषणा पत्र में दलितों के लिए कोई एजेण्डा तक नहीं है और खुद को दलितों का स्वयं भू हितैषी बताने वाली बसपा के हाथी पर मनुवादी ताकतें सवार हो गई हैं। प्रदेश में सांप्रदायिक व जातीय ध्रुवीकरण करने वाली राजनीति के खिलाफ    रिहाई मंच व इंसाफ अभियान का यह जन विकल्प मार्च देश और समाज निर्माण को नई राजनीतिक दिशा देगा।

इंसाफ अभियान के प्रदेश प्रभारी राघवेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा कि सपा सरकार के चार बरस पूरे होने पर यह जन विकल्प मार्च झूठ और लूट को बेनकाब करने का ऐतिहासिक कदम था। सरकार के बर्बर, तानाशाहपूर्ण मानसिकता के चलते इसको रोका गया क्योंकि यह सरकार चैतरफा अपने ही कारनामों से घिर चुकी है और उसके विदाई का आखिरी दौर आ गया है। अब और ज्यादा समय तक सूबे की इंसाफ पसंद आवाम ऐसी जनविरोधी सरकार को बर्दाश्त नहीं करेगी।

सिद्धार्थनगर से आए रिहाई मंच नेता डॉ. मजहरूल हक ने कहा कि मुसलमानों के वोट से बनी सरकार में मुसलमानों पर सबसे ज्यादा हिंसा हो रही है। हर विभाग में उनसे सिर्फ मुसलमान होने के कारण अवैध वसूली की जाती है। उन्हें निरंतर डराए रखने की रणनीति पर सरकार चल रही है। लेकिन रिहाई मंच ने मुस्लिम समाज में साहस का जो संचार किया है वह सपा के राजनीतिक खात्में की बुनियाद बनने जा रही है। वहीं गोंडा से आए जुबैर खान ने कहा कि इंसाफ से वंचित करने वाली सरकारें इतिहास के कूड़ेदान में चली जाती हैं। सपा ने जिस स्तर पर जनता पर जुल्म ढाए हैं, मुलायाम सिंह के कुनबे ने जिस तरह सरकारी धन की लूट की है उससे सपा का अंत नजदीक आ गया है। इसलिए वह सवाल उठाने वालों पर लाठियां बरसा कर उन्हें चुप कराना चाहती है।

मुरादाबाद से आए मोहम्मद अनस ने कहा कि आज देश का मुसलमान आजाद भारत के इतिहास में सबसे ज्यादा डरा और सहमा है। कोई भी उसकी आवाज नहीं उठाना चाहता। ऐसे में रिहाई मंच ने आतंकवाद के नाम पर मुसलमानों के फंसाए जाने को राजनीतिक मुद्दा बना दिया है वह भविष्य की राजनीति का एजेंडा तय करेगा। बम्बई से आए मोहम्मद इस्माईल ने कहा कि सपा की अपनी करनी के कारण आज पूरे सूबे में जो माहौल बना है वह उससे झंुझलाई सरकार अब उससे सवाल पूछने वालों पर हमलावर हो गई है। रिहाई मंच इस जनआक्रोश को जिस तरह राजनीतिक दिशा देने में लगा है वह प्रदेश की सूरत बदल देगा।


प्रदर्शन को मैगसेसे अवार्ड से सम्मानित संदीप पांडे, फैजाबाद से आए अतहर शम्सी, जौनपुर से आए औसाफ अहमद, प्यारे राही, बलिया से आए डाॅ अहमद कमाल, रोशन अली, मंजूर अहमद, गाजीपुर से आए साकिब, आमिर नवाज, गोंडा से आए हादी खान, रफीउद्दीन खान, इलाहाबाद से आए आनंद यादव, दिनेश चैधरी, बांदा से आए धनन्जय चैधरी, फरूखाबाद से आए योगेंद्र यादव, आजमगढ़ से आए विनोद यादव, शाहआलम शेरवानी, तेजस यादव, मसीहुद््दीन संजरी, सालिम दाउदी, गुलाम अम्बिया, सरफराज कमर, मोहम्मद आमिर, अवधेश यादव, राजेश यादव, उन्नाव से आए जमीर खान, बनारस से आए जहीर हाश्मी, अमित मिश्रा, सीतापुर से आए मोहम्मद निसार, रविशेखर, एकता सिंह, दिल्ली से आए अजय प्रकाश, प्रतापगढ़ से आए शम्स तबरेज, मोहम्मद कलीम, सुल्तानपुर से आए जुनैद अहमद,कानपुर से आए मोहम्मद अहमद, अब्दुल अजीज, रजनीश रत्नाकर, डाॅ निसार, बरेली से आए मुश्फिक अहमद, शकील कुरैशी, सोनू आदि ने भी सम्बोधित किया। संचालन अनिल यादव ने किया।
(प्रेस विज्ञप्ति)

शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2016

TERRORISM: सत्ता संग पुलिस की साजिश बेनकाब, आठ साल बाद इकबाल बरी

बेगुनाहों की रिहाई पर स्थिति स्पष्ट करें मुख्यमंत्री, गृहमंत्री और आईबी प्रमुखः रिहाई मंच
आईबी और सरकार संरक्षित आतंकी संगठन है दिल्ली स्पेशल सेलः रिहाई मंच

वनांचल न्यूज नेटवर्क

लखनऊ। रिहाई मंच ने आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाह मोहम्मद इकबाल की आठ साल के बाद आज हुई रिहाई को वादा खिलाफ सपा सरकार के मुंह पर तमाचा बताया है। मंच ने कहा कि अगर सपा ने बेगुनाहों को छोड़ने के अपने वादे पर अमल किया होता तो इकबाल समेत दर्जनों युवा पहले ही रिहा हो गए होते।

रिहाई मंच प्रवक्ता शाहनवाज आलम ने जानकारी दी कि लखनऊ स्थित वजीरगंज थाने की पुलिस ने शामली निवासी मोहम्मद असरा के बेटे इकबाल को 2007 में आईपीसी की धारा-307, 121, 121, 122, 124ए और यूएपीए की धारा-16, 18, 20 एवं 23 के तहत मुकदमा दर्ज कर उसे गिरफ्तार कर लिया था। कोर्ट में यह अपराध संख्या-281/2007 के रूप में दर्ज हुआ जिसमें स्पेशल कोर्ट (जेल) लखनऊ ने मंगलवार को उन्हें दोषमुक्त कर दिया।

उन्होंने बताया कि इकाबाल के ऊपर लखनऊ के अलावा दिल्ली में भी आतंकवाद का आरोप था जिसमें वह पहले ही बरी हो चुके हैं। आलम ने जानकारी दी कि इकबाल आज जिस मुकदमें में दोषमुक्त हुए हैं उसमें उन पर आरोप यह था कि वह जलालुद्दीन व नौशाद के साथ जून 2008 में लखनऊ में आतंकी वारदात करने आए थे। 

रिहाई मंच प्रवक्ता ने कहा कि इससे पहले अक्टूबर 2015 में इस मुकदमें में इकबाल के सहअभियुक्त पहले ही जब रिहा हो चुके हैं तो ऐसे में जनू 2008 में लखनऊ में आतंकी घटना का षडयंत्र व पुलिस ने जो मुठभेड़ दिखाई वह फर्जी साबित होती है। ऐसे में तत्कालीन डीजीपी बिक्रम सिंह व एडीजी कानून व्यवस्था बृजलाल समेत पूरी पुलिस की टीम जहां निर्दोषों के खिलाफ षडयंत्र में लिप्त थी तो वहीं आईबी द्वारा इन कथित आतंकियों के बारे में जो इनपुट जारी किया गया था व जिसकी निशानदेही पर पुलिस ने मुठभेड़ दिखाकर इनको पकड़ा उस पर आईबी प्रमुख को अपना पक्ष रखना चाहिए।

मंच के प्रवक्ता ने बताया कि 21 मई 2008 को दिल्ली से इकबाल की गिरफ्तारी में मोहन चन्द्र शर्मा व संजीव यादव जैसे दिल्ली स्पेशल सेल के अधिकारी थे। जिन्होंने उस वक्त कहा था कि आतंकी संगठन हूजी से जुड़ा इकबाल ने राजधानी में जनकपुरी में विस्फोटक व अन्य पदार्थ छिपाए हैं और उसने पाकिस्तान में टेªनिंग ली थी। उन्होंने कहा कि बाटला हाऊस फर्जी मुठभेड़ में अपने ही पुलिस के साथियों द्वारा मारे गए मोहन चन्द्र शर्मा तो नहीं हैं पर संजीव यादव से जरूर पूछताछ करनी चाहिए कि इकबाल के पास से उन्होंने जो 3 किलो आरडीएक्स बरामद दिखाया था वह उनके पास कहां से आया था, उन्हें किसी आतंकी संगठन ने आरडीएक्स दिया था खुफिया विभाग ने। उन्होंने कहा कि इकबाल से पास से जो विस्फोटक बरामदगी दिस्ली स्पेशल सेल ने दिखाई थी, उसके अनुसार जिस व्यक्ति ने इकबाल को वह दिया था उसे दिल्ली की एक कोर्ट ने अपने फैसले में एक काल्पनिक शख्श बताया था। उसी काल्पनिक शख्स के नाम पर तारिक कासमी की भी गिरफ्तारी का पुलिस ने दावा किया था। 

उन्होंने कहा कि आतंकवाद के नाम पर हुई बेगुनाहों की रिहाई के बाद यह साबित हो जाता है कि आईबी मुस्लिमों के खिलाफ एक संगठित आतंकी संस्था के बतौर काम कर रही है। इन रिहाइयों पर आईबी चीफ को स्पष्टीकरण देना चाहिए। शाहनवाज आलम ने कहा है कि अब समय आ गया है कि खुद सुप्रीम कोर्ट दिल्ली स्पेशल सेल के खिलाफ अपनी निगरानी में आतंकवाद के मामलों में उसके द्वारा की गई गिरफ्तारियों की जांच कराए क्योंकि दिल्ली स्पेशल के दावे अनगिनत मामलों अदउलतों द्वारा खारिज किए जा चुके हैं। 

उन्होंने दिल्ली स्पेशल को सरकार और आईबी संरक्षित आतंकी संगठन करार देते हुए कहा कि कश्मीरी लियाकत शाह को फंसाने के मामले में तो एनआईए ने दिल्ली स्पेशल सेल के अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश तक की है। जिसमें उसने पाया था कि लियाकत शाह को फंसाने के लिए दिल्ली स्पेशल सेल ने अपने ही एक मुखबिर साबिर खान पठान से लियाकत के पास से विस्फोटक दिखाने की कहानी गढ़ी थी। यहां यह जानना भी दिलचस्प होगा कि दिल्ली स्पेशल सेल का यह मुखबिर फरारचल रहा है। उन्होंने कहा कि जब दिल्ली स्पेशल सेल से जुड़े तत्व ही आतंकी घटनाओं में शामिल पाए जा रहे हैं और अदालत में उसे पेश करने के बजाए दिल्ली स्पेशल सेल उसे फरार बता रही है तब दिल्ली स्पेशल और उसके अधिकारियों द्वारा आतंकवाद के मामलों में की जा रही गिरफ्तारियों पर अदालतें कैसे भरोसा कर ले रही हैं।  

रिहाई मंच द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में मंच के नेता राजीव यादव ने बताया कि इकाबाल की रिहाई सिर्फ यूपी पुलिस द्वारा संगठित रूप से मुसलमानों को आतंकवाद में फसाने का सुबूत नहीं है बल्कि यह संगठित आतंकी गिरोह दिल्ली स्पेशल सेल की मुसलमानों को फंसाने की पूरी रणनीति का पर्दाफाश करती है। उन्होंने आरोप लगाया कि दिल्ली स्पेशल सेल पूरे देश में राज्यों के सम्प्रुभुता को धता बताते हुए बेगुनाहों को अपने टॅार्चर सेंटर में रखकर जब किसी राजनेता का कद बढ़ना होता है तब किसी मुस्लिम युवा को दिल्ली स्टेशन से गिरफ्तार दिखा देती है। उन्होंने कहा कि इकबाल के दोष मुक्त होने पर तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती व वर्तमान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए। क्योंकि जहां यह मायावती के कार्यकाल में पकड़ा गया था तो वहीं अखिलेश यादव की वादा खिलाफी के चलते सालों जेल में सड़ने के लिए मजबूर था। उन्होंने बताया कि इकबाल ने यह संदेह जाहिर किया है कि उसके शरीर में चिप लगाई गई है। जो एक अलग से जांच का विषय है।


आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाहों का मुकदमा लड़ने वाले रिहाई मंच अध्यक्ष व इसम मामले के अधिवक्ता मुहम्मद शुऐब ने कहा कि आतंकवाद के नाम पर पकड़े जाने पर तो गृहमंत्री से लेकर डीजीपी तक बिना सबूतों के सार्वजनिक रूप से बेगुनाहों पर आतंकी का ठप्पा लगा देते हैं। ऐसे में अगर इन बेगुनाहों को वह देश का नागरिक मानते हैं तो इनकी रिहाई पर भी उन्हें सार्वजनिक रूप से माफी मांगना चाहिए। उन्होंने कहा कि आतंकवाद के नाम पर विदेशों से कई बार खबरें आती हैं कि वहां के प्रमुख बेगुनाहों से माफी मांगते हैं पर हमारे देश में लगातार हो रही बुगुनाहों की रिहाई के बाद भी सरकारें माफी मांगना तो दूर अफसोस भी जाहिर नहीं करतीं। 

उन्होंने कहा कि सरकार ने वादा किया था कि आतंक के आरोपों से बरी हुए लोगों को मुआवजा व पुर्नवास किया जाएगा पर खुद अखिलेश सरकार ने अब तक अपने शासन काल में दोषमुक्त हुए किसी भी व्यक्ति को न मुआवजा दिया न पुर्नवास किया। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को डर है कि अगर आतंक के आरोपों से बरी लोगों को मुआवजा व पुर्नवास करेंगे तो उनका हिन्दुत्वादी वोट बैंक उनके खिलाफ हो जाएगा। पुर्नवास व मुआवजा न देना साबित करता है कि अखिलेश यादव हिन्दुत्वादी चश्मे से बेगुनाहों को आतंकवादी ही समझते हैं। बेगुनाहों की रिहाई के मामले में वादाखिलाफी करने वाले आखिलेश यादव अब अपनी स्थिति स्पष्ट करेंगे या फिर 2012 के चुनावी घोषणा पत्र की तरह फिर बेगुनाहों को रिहा करने का झूठा वादा करेंगे। 
(प्रेस विज्ञप्ति) 

शनिवार, 16 जनवरी 2016

नंगाकर कर पेट्रोल डाला और पेशाब पिलायाः अजीजुर्रहमान

देशद्रोह के आरोप में आठ साल से ज्यादा समय जेल में गुजारने के बाद दोषमुक्त हुये अजीर्जुरहमान, मोहम्मद अली अकबर और शेख मुख्तार हुसैन बयां किया दर्द।

वनांचल न्यूज नेटवर्क

लखनऊ। बिजली का झटका लगाना, उल्टा लटका कर नाक से पानी पिलाना, टांगे दोनों तरफ फैलाकर डंडा से पीटना, नंगा कर पेट्रोल डालना, पेशाब पिलाना जैसे तमाम  हथकंडे पुलिस ने हमपर आजमाया और छह दिन तक हमें एक मिनट के लिए भी सोने नहीं दिया। यह कहना है पश्चिम बंगाल में 24 परगना जिले के बशीर हाट निवासी इक्तीस वर्षीय अजीर्जुरहमान का जिन्हें उत्तर प्रदेश एटीएस ने देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर जेल में ठूंस दिया था। अदालत ने पिछले दिनों अजीर्जुरहमान को करीब आठ साल बाद देशद्रोह के आरोप से दोषमुक्त कर दिया। उनके अलावा अदालत ने मोहम्मद अली अकबर और शेख मुख्तार को भी देशद्रोह के आरोप से मुक्त कर उन्हें रिहा कर दिया है।

शनिवार को लखनऊ स्थित उत्तर प्रदेश क्लब में रिहाई मंच द्वारा आयोजित पत्रकार वार्ता के दौरान अजीर्जुरहमान ने बताया कि उसे 11 जून 2007 को सीआईडी वालों ने चोरी के इल्जाम में उठाया था। 16 जून को कोर्ट में पेश करने के बाद 22 जून को दोबारा कोर्ट में पेश कर 26 तक हिरासत में लिया। जबकि यूपी एसटीएफ ने मेरे ऊपर इल्जाम लगाया था कि मैं 22 जून को लखनऊ अपने साथियों के साथ आया था। आप ही बताएं की यह कैसे हो सकता है कि जब मैं 22 जून को कोलकाता पुलिस की हिरासत में था तो यहां कैसे उसी दिन कोई आतंकी घटना अंजाम देने के लिए आ सकता हूं। 12 दिन की कस्टडी में यूपी एसटीएफ ने रिमांड में 5 लोगों के साथ लिया और बराबर नौशाद और जलालुद्दीन के साथ टार्चर किया जा रहा था जिसे देख हम दहशत में आ गए थे कि हमारी बारी आने पर हमारे साथ भी ऐसा ही किया जाएगा। टार्चर कुछ इस तरह था कि हमारा रिमांड खत्म होने के एक दिन पहले लखनऊ से बाहर जहां ईट भट्टा और एक कोठरी नुमा खाली कमरा पड़ा था, वहां ले जाकर गाड़ी रोका और मीडिया के आने का इंतजार किया। यहां लाने से पहले एसटीएफ वालों ने हमसे कहा था कि मीडिया के सामने कुछ मत बोलना। 

इस बीच धीरेन्द्र नाम के एक पुलिस कर्मी ने सीमेंट की बोरी और फावड़ा लिया और कोठरी के अंदर गया फिर कोठरी के अंदर गड्डा खोदा, बोरी के अंदर से जो भी सामान ले गए थे गड्डे के अंदर टोकरी में रख दिया। फिर जब सारे मीडिया वाले आ चुके तो हमको गाड़ी से निकालकर उस गड्डे के पास से एक चक्कर घुमाया जिसका फोटो मीडिया खींचती रही। एसटीएफ वालों ने मीडिया को बताया कि ये आतंकी हैं जो कि यहां दो किलो आरडीएक्स, दस डिटोनेटर और दस हैंड ग्रेनेड छुपाकर भाग गए थे। इनकी निशानदेही पर यह बरामद किया गया है। मीडिया वाले बात करना चाह रहे थे पर एसटीएफ ने तुरंत हमें ढकेलकर गाड़ी में डाल दिया। हम लोगों को जब यूपी लाया गया उस समय उसमें एक लड़का बांग्लादेशी भी था। पूछताछ के दौरान उसने बताया कि वह हिन्दू है और उसका नाम शिमूल है। उसके बाद दो कांस्टेबलों ने उसके कपड़े उतरवाकर देखा कि उसका खतना हुआ है कि नहीं। जब निश्चिंत हो गए की खतना नहीं हुआ है तो पुलिस वालों ने उससे कहा कि यह बात कोलकाता में क्यों नहीं बताया। उसके बाद दो कांस्टेबल उसे फिर से कोलकाता छोड़ आए। सिर्फ मुसलमान होने के नाते हमें आतंकी बताकर फंसा दिया गया।

मिदनापुर निवासी शेख मुख्तार हुसैन जो कि मटियाबुर्ज में सिलाई का काम करते थे ने बताया कि उसने एक पुराना मोबाइल खरीदा था। उस समय उसकी बहन की शादी थी। उसी दौरान एक फोन आया कि उसकी लाटरी लग गयी है और लाटरी के पैसों के लिए उसे कोलकाता आना होगा। इस पर उसने कहा कि अभी घर में शादी की व्यस्तता है अभी नहीं आ पाउंगा। उसी दौरान उसे साइकिल खरीदने के लिए नंद कुमार मार्केट जाना था तो उसी दौरान फिर से उन लाटरी की बात करने वालों का फोन आया और उन लोगों ने कहा कि वे वहीं आ जाएंगे। फिर वहीं से उसे खुफिया विभाग वालों ने पकड़ लिया। जीवन के साढे़ आठ साल बर्बाद हो गए। उनका परिवार बिखर चुका है। उन्होंने अपने बच्चों के लिए जो सपने बुने थे उसमें देश की सांप्रदायिक सरकारों, आईबी और पुलिस ने आग लगा दी। उनके बच्चे पढ़ाई छोड़कर सिलाई का काम करने को मजबूर हो गए, उनकी बेटी की उम्र शादी की हो गई है। लेकिन साढे आठ साल जेल में रहने के कारण अब वे पूरी तरह बर्बाद हो चुके हैं। अब उनके सामने आगे का रास्ता भी बंद हो गया है। क्योंकि फिर से जिंदगी को पटरी पर लाने के लिए जो पैसा रुपया चहिए वह कहा से आएगा। सरकार पकड़ते समय तो हमें आतंकवादी बताती है पर हमारे बेगुनाह होने के बाद न तो हमें फंसाने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई होती है और न ही मुआवजा मिलता है। पत्रकारों द्वारा सवाल पूछने पर कि मुआवजा की लड़ाई लड़ेगे पर शेख मुख्तार ने कहा कि छोड़ने के वादे से मुकरने वाली सरकार से मुआवजे की कोई उम्मीद नहीं।

24 परगना बनगांव के रहने वाले अली अकबर हुसैन ने कहा कि देश के खिलाफ नारे लगाने के झूठे आरोप ने उसे सबसे ज्यादा झटका दिया। जिस देश में हम रहते हैं उसके खिलाफ हम कैसे नारा लगाने की सोच सकते हैं। आज जब यह आरोप बेबुनियाद साबित हो चुके हैं तो सवाल उठता है कि हम पर देश के खिलाफ नारा लगाने का झूठा आरोप क्यों मढ़ा गया। उन्होंने कहा कि हमारे वकील मु0 शुऐब जो कि हमारा मुकदमा लड़ने (12 अगस्त 2008) कोर्ट में गए थे को मारा पीटा गया और हम सभी पर झूठा मुकदमा दर्ज कर दिया गया कि हम देश के खिलाफ नारे लगा रहे थे।

जेल की पीड़ा और अपने ऊपर लगे आरोपों से अपना मानसिक असंतुलन का शिकार हो चुके अली अकबर के पिता अल्ताफ हुसैन ने कहा कि मेरे बेटे की हालत की जिम्मेदार पुलिस और सरकार है। एयर फोर्स के रिटायर्ड अल्ताफ ने कहा कि जिस तरह से झूठे मुकदमें में उनके लड़के और अन्य बेगुनाहों को फंसाया गया ऐसे में एडवोकेट मुहम्मद शुऐब की मजबूत लड़ाई से ही इनकी रिहाई हो सकी। उन्होंने कहा कि हमारे बेटों के खातिर मार खाकरद भी जिस तरीके से शुऐब साहब ने लड़ा उससे इस लड़ाई को मजबूती मिली। पत्रकार वार्ता में रिहा हो चुके लोगों के परिजन अब्दुल खालिद मंडल, अन्सार शेख भी मौजूद रहे।

पत्रकार वार्ता के दौरान जेल में कैद आतंकवाद के अन्य आरोपियों के बारे में सवाल पूछने पर अजीजजुर्रहमान ने बताया कि उनके साथ ही जेल में बंद नूर इस्लाम की आंख की रौशनी कम होती जा रही है। लेकिन मांग करने के बावजूद जेल प्रशासन उनका इलाज नहीं करा रहा है। शेख मुख्तार से यह पूछने पर कि अब आगे जिंदगी कैसे बढ़ेगी, उन्होंने कहा कि बरी होने के बाद भी हमें जमानत लेनी है और अभी तक हमारे पास जमानतदार भी नहीं है। हम एडवोकेट मोहम्मद शुऐब के उपर ही निर्भर हैं। इस सिलसिले में मोहम्मद शुऐब से पूछने पर कि जमानत कैसे होगी ये कहते हुए वो रो पड़े कि आतंकवाद के आरोपियों के बारे में फैले डर की वजह से मुश्किल होती है और लोग इन बेगुनाहों के जमानतदार के बतौर खड़े हों। इसीलिए मैंने इसकी शुरूआत अपने घर से की मेरी पत्नी और साले जमानतदार के बतौर खड़े हुए हैं। इन भावनाओं से प्रभावित होते हुए पत्रकार वार्ता में मौजूद आदियोग और धर्मेन्द्र कुमार ने जमानतदार के बतौर खड़े होने की बात कही। मु0 शुऐब ने समाज से अपील की कि लोग ऐसे बेगुनाहों के लिए खड़े हों। इस मामले में अभी और जमानतदारों की जरूरत है अगर कोई इनके लिए जमानतदार के बतौर खड़ा होगा तो ये जल्दी अपने घर पहुंचाए जाएंगे।

रिहाई मंच के अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि सपा सरकार ने अगर आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाहों को छोड़ने का अपना चुनावी वादा पूरा किया होता तो यही नहीं इन जैसे दर्जनों बेगुनाह पहले ही छूट गए होते। उन्होंने कहा कि सपा ने चुनाव में मुसलमानों का वोट लेने के लिए उनसे झूठे वादे किए। जिसमें से एक वादा छूटे बेगुनाहों के पुर्नवास और मुआवजे का भी था। लेकिन किसी भी बेगुनाह को सरकार ने उनकी जिन्दगी बर्बाद करने के बाद आज तक कोई मुआवजा या पुर्नवास नहीं किया है। पुर्नवास व मुआवजा न देना साबित करता है कि अखिलेश यादव हिन्दुत्वादी चश्मे से बेगुनाहों को आतंकवादी ही समझते हैं। उन्होंने पूछा कि सरकार को बताना चाहिए कि इन बेगुनाहों के पास से पुसिल ने जो  आरडीएक्स, डिटोनेटर और हैंडग्रेनेड बरामद दिखाया उसे वह कहां से मिला। किसी आतंकी संगठन ने उन्हंे ये विस्फोटक दिया या फिर पुलिस खुद इनका जखीरा अपने पास रखती है ताकि बेगुनाहों कों फंसाया जा सके। उन्होंने कहा कि ऐसी बरामदगी दिखाने वाले पुलिस अधिकारियों का समाज में खुला घूमना देश की सुरक्षा के लिए ठीक नहीं है। उन्होंने कहा कि जिस तरह से कुछ मीडिया संस्थानों ने इनके छूटने पर यह खबर छापी की ये सभी पाकिस्तानी है असल में यह वही जेहनियत है जिसके चलते पुलिस ने देश के खिलाफ नारा लगाने का झूठा एफआईआर करवाया। आज असलियत आपके सामने है कि यह अपनी बात कहते-कहते भूल जा रहे हैं। मानसिक रुप से असुंतलित हो गए हैं। ऐसे में देशद्रोह और आतंकी होने का फर्जी मुकदमा दर्ज कराने वाले असली देशद्रोही हैं उनपर मुकदमा होना चाहिए। उन्होंने सरकार से सवाल किया कि क्या उसमें यह हिम्मत है


रिहाई मंच नेता राजीव यादव ने बताया कि आफताब आलम अंसारी, कलीम अख्तर, अब्दुल मोबीन, नासिर हुसैन, याकूब, नौशाद, मुमताज, अजीजुर्रहमान, अली अकबर, शेख मुख्तार, जावेद, वासिफ हैदर वो नाम हैं जिन पर आतंकवादी का ठप्पा लगाकर उनकी पूरी जिंदगी बर्बाद कर दी गई। जिनके बरी होने के बावजूद सरकारों ने उनके प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं दिखाई। तो वहीं ऐसे कई नौजवान यूपी की जेलों में बंद हैं जो कई मुकदमों में बरी हो चुके है जिनमें तारिक कासमी, गुलजार वानी, मुहम्मद अख्तर वानी, सज्जादुर्रहमान, इकबाल, नूर इस्लाम है। उन्होंने कहा कि सरकार बेगुनाहों की रिहाई से सबक सीखते हुए इन आरोपों में बंद बेगुनाहों को तत्काल रिहा करे और सांप्रदायिक पुलिस कर्मियों के खिलाफ कारवाई करे। उन्होंने कहा कि जब इन बेगुनाहों को फंसाया गया तब बृजलाल एडीजी कानून व्यवस्था और बिक्रम सिंह डीजीपी थे और उन्होनें ही मुसलमानों को फंसाने की पूरी साजिश रची। जिनकी पूरी भूमिका की जांच के लिए सकरार को जांच आयोग गठित करना चाहिए ताकि आतंकवाद के नाम पर फंसाने वाले पुलिस अधिकारियों को सजा दी जा सके। मंच ने यूएपीए को बेगुनाहों को फंसाने का पुलिसिया हथियार बताते हुए इसे खत्म करने की मांग की है।
(प्रेस विज्ञप्ति)