शनिवार, 24 दिसंबर 2016

इंडियन ऑयल के क्षेत्रीय अधिकारी की मिलीभगत से चल रहा विंध्य इंडेन गैस सर्विस का गोरखधंधा

-इंडेन गैस उपभोक्ताओं ने लगाया आरोप, ̒अवैध वसूली और एलपीजी गैस की कालाबाजारी में मिर्जापुर परिक्षेत्र के विपणन अधिकारी प्रभात सिंह आरोपी डिस्ट्रीब्यूटर की कर रहे मदद̕ ।
-विपणन अधिकारी ने शिकायतकर्ता उपभोक्ताओं से बात किये बिना ही भेज दी उनकी संतुष्टि की रपट।

वनांचल न्यूज़ नेटवर्क
सोनभद्र। घोरावल विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र के सपा विधायक रमेश चंद्र दुबे के संरक्षण में संचालित विंध्य इंडेन गैस सर्विस की अवैध वसूली और कालाबाजारी के गोरखधंधे में इंडियन ऑयल के क्षेत्रीय विपणन अधिकारी की मिलीभगत का मामला सामने आया है। इंडेन गैस उपभोक्ताओं की बार-बार शिकायतों के बाद भी विपणन अधिकारी ने उनसे संपर्क नहीं किया और इंडियन ऑयल के उच्चाधिकारियों को उनके संतुष्ट होने की रपट भेज डिस्ट्रीब्यूटर के अवैध वसूली के गोरखधंधे को सही ठहराया। क्षेत्रीय विपणन अधिकारी की मिलीभगत का मामला कंपनी द्वारा गठित दो अधिकारियों की संयुक्त जांच रपट के अंशों से उजागर हुआ । जांच रपट से साफ है कि विंध्य इंडेन गैस सर्विस ने इंडेन एलपीजी डिस्ट्रीब्यूटरशिप के नियमों में अनियमितता बरती है जिसमें शिकायतकर्ता उपभोक्ताओं के आरोप भी शामिल हैं।

मंगलवार, 20 दिसंबर 2016

सपा विधायक के संरक्षण में संचालित गैस एजेंसी में मिली गड़बड़ी, नोटिस जारी

 -उपभोक्ताओं की शिकायत पर इंडियन ऑयल ने रॉबर्ट्सगंज स्थित विंध्य इंडेन गैस सर्विस की कराई थी जांच।
-जबरदस्ती एलपीजी गैस चुल्हा और ट्रॉली देने, ओवरचार्ज करने, कैशमेमो रसीद नहीं देने, एलपीजी युक्त सिलेंडर नहीं तौलने आदि का आरोप।
वनांचल न्यूज़ नेटवर्क
रॉबर्ट्सगंज (सोनभद्र)। सत्ताधारी समाजवादी पार्टी के घोरावल विधायक रमेश चंद्र दुबे के संरक्षण में संचालित विंध्य इंडेन गैस सर्विस के डिस्ट्रीब्यूटरशिप में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी मिली है। मामले को गंभीरता से लेते हुए इंडियन ऑयल के मुख्य क्षेत्रीय प्रबंधक ने एजेंसी मालिक को कारण बताओ नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। जवाब मिलने पर कंपनी एजेंसी के खिलाफ कार्रवाई करेगी।

शुक्रवार, 4 नवंबर 2016

RSS का सिर्फ राष्ट्र तोड़ने में रहा योगदानः तीस्ता सीतलवाड़

'शैक्षणिक संस्थानों के मूलभूत ढाँचे पर आरएसएस का हमला ' विषयक जनसभा में वक्ताओं ने BHU के कुलपति पर बोला हमला। 
वनांचल न्यूज़ नेटवर्क

वाराणसी। सामाजिक संस्था 'ज्वाइंट एक्शन कमेटी' ने शुक्रवार को लंका स्थित बीएचयू द्वार के पास 'शैक्षणिक संस्थानों के मूलभूत ढाँचे पर आरएसएस का हमला ' विषयक जनसभा का आयोजन किया जिसमें वक्ताओं ने बीएचयू कुलपति और आरएसएस पर जमकर हमला बोला। 

पठानकोट हमले की रिपोर्टिंग के लिए NDTV INDIA पर सरकार ने लगाया प्रतिबंध

सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने अंतर-मंत्रालयी समिति के संस्तुतियों के आधार पर जारी किया आदेश। 9 नवंबर, 2016 को 1 बजे प्रभावी होगा आदेश। 
वनांचल न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। भाजपा की अगुआई वाली केंद्र सरकार ने एनडीटीवी इंडिया को एक दिन अपने कार्यक्रमों का प्रसारण बंद रखने का आदेश दिया है। चैनल पर यह प्रतिबंध जनवरी में पठानकोट एयरबेस हमले की रिपोर्टिंग और उसके प्रसारण के लिए लगाया गया है। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने अपने आदेश में चैनल की रिपोर्टिंग को 'सामरिक रूप से संवेदनशील' कहा है। सरकार का यह आदेश सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की अंतर-मंत्रालयी समिति की सिफारिशों के आधार पर जारी किया गया है।

गुरुवार, 3 नवंबर 2016

फाइबर, पन्नी और थर्माकोल के सामानों पर रोक के लिए कुम्हारों ने भरी हुंकार

रेल सहित सभी सरकारी विभागों में मिट्टी के बर्तन की खरीद का कोटा तय करने की मांग की। 
वनांचल न्यूज़ नेटवर्क
वाराणसी। फाइबर, पन्नी और थर्माकोल के सामानों से पैदा हो रही बेरोजगारी और वातावरण में फैल रहे प्रदूषण से नाराज पूर्वांचल के सैकड़ों कुम्हारों और दोना पत्तल के कर्मकारों ने बृहस्पतिवार को शास्त्री घाट पर प्रदर्शन किया और सरकार से इन्हें पूरी तरह प्रतिबंधित करने की मांग की।

बुधवार, 2 नवंबर 2016

पुलिस की पिटाई से रिहाई मंच के महासचिव का सिर फटा, हालत गंभीर

भोपाल में कथित पुलिस मुठभेड़ में आठ कैदियों की सामुहिक हत्या में सरकार और पुलिस की भूमिका को लेकर लखनऊ में प्रदर्शन कर रहे थे कार्यकर्ता। 
वनांचल न्यूज़ नेटवर्क
लखनऊ। भोपाल में कथित पुलिस मुठभेड़ में जेल से फरार आठ कैदियों की सामुहिक हत्या के खिलाफ स्थानीय जीपीओ के सामने प्रदर्शन कर रहे रिहाई मंच के कार्यकर्ताओं पर पुलिस ने बुधवार को जमकर लाठियां भांजी जिसमें संगठन के महासचिव राजीव यादव समेत दो लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। बताया जा रहा है कि पुलिस ने मंच के महासचिव राजीव यादव को इस कदर पीटा कि उनका सिर फट गया। उन्हें ट्रामा सेंटर में भर्ती कराया गया है। वहीं मंच के कार्यकर्ता शकील कुरैशी भी घायल हुए हैं।

बुधवार, 12 अक्तूबर 2016

भाजपा सांसद ने जनगणना-2011 के एसटी आंकड़ों को बताया फर्जी

कहा- उत्तर प्रदेश में राज्य सरकार ने साजिश के तहत अनुसूचित जनजाति वर्ग के लोगों की संख्या को कम दर्शाया।
वनांचल न्यूज नेटवर्क
सोनभद्र। रॉबर्ट्सगंज (एससी) लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से सांसद और भारतीय जनता पार्टी के अनुसूचित जनजाति प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष छोटे लाल खरवार ने भारत के महा-रजिस्ट्रार और जनगणना आयुक्त कार्यालय द्वारा जारी जनगणना-2011 के अनुसूचित जनजातियों के आंकड़ों को फर्जी बताया है। उन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार पर भी आरोप लगाया है कि उसने साजिश के तहत जनगणना-2011 के आंकड़ों में अनुसूचित जनजाति वर्ग के आंकड़े को कम करके दिखाया। साथ ही उन्होंने कहा कि भाजपा की अगुआई वाली केंद्र सरकार संसदीय और विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति प्रतिनिधित्व का पुनःसमायोजन अध्यादेश-2013 या उससे संबंधित कोई विधेयक संसद में पेश नहीं करेगी।

सोमवार, 26 सितंबर 2016

युवा कथाकार मनीष ‘आवारा’ ने ‘वापसी’ से शुरू किया साहित्यकार का सफर

रीडिंग रूम्स पब्लिकेशन, नई दिल्ली और वनांचल लेखक एवं पत्रकार मंच के संयुक्त तत्वावधान में मैदागिन स्थित काशी पत्रकार संघ के पराड़कर स्मृति भवन सभागार में आयोजित कार्यक्रम में कहानी-संग्रह वापसी का हुआ विमोचन।

वनांचल न्यूज़ नेटवर्क

वाराणसी। मैदागिन स्थित पराड़कर स्मृति सभागार में 'वनांचल लेखक एवं पत्रकार मंच' तथा 'रीडिंग रूम्स पब्लिकेशन, नई दिल्ली' के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित एक कार्यक्रम में युवा कथाकार मनीष 'आवारा' के पहले कहानी संग्रह 'वापसी' का विमोचन किया गया। सोनभद्र के जिला पंचायत अध्यक्ष अनिल यादव के मुख्य अतिथित्व में आयोजित हुए इस समारोह में मनीष 'आवारा' ने अतिथियों और स्रोताओं की किताब की विषय वस्तु और कहानी लेखन की प्रेरणा से संबंधित जानकारियां दी।

आरएसएस का निछद्दम राज है और विपक्ष गायब है- प्रो. चौथी राम यादव


'वनांचल लेखक एवं पत्रकार मंच' तथा 'रीडिंग रूम्स पब्लिकेशन, नई दिल्ली' के संयुक्त तत्वावधान में 'साहित्य और मीडिया में सत्ता की घुसपैठ' विषयक गोष्ठी का हुआ आयोजन

वनांचल न्यूज़ नेटवर्क 

वाराणसीलोकसभा चुनाव-2014 के बाद परिस्थितियां तेजी से बदली हैं और यह पहली बार है कि लेखकों के लिखने और बोलने एवं उनकी अभिव्यक्ति की आजादी पर पाबंदियां लगाई जा रही हैं और लेखकों की हत्याएं हो रही हैं। यह शुद्ध रूप से उग्र हिंदुत्ववादी आरएसएस की सरकार है जो कि अपनी पूर्ववर्ती एनडीए सरकार से भी भिन्न है। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के समय भी लेखकों और मीडिया पर इस तरीके के हमले नहीं हुए। आरएसएस का निछद्दम राज है और विपक्ष गायब है।

मंगलवार, 16 अगस्त 2016

मोदी साहब को एक अदद गोधरा चाहिए?

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
प्रधानमंत्री का लाल किला का पूरा भाषण बता रहा था कि वह हताशा में हैं। दो सालों के बाद अब भक्त भी सवाल खड़े करने लगे हैं। हवाई गुब्बारे की भी सीमा होती है। जुमलों की भी मियाद होती है। ऐसे में अब किसी बड़े राग की जरूरत थी। गुजरात के विकास का गुब्बारा फूटने के बाद कुछ बचा नहीं था। गाय और गोबर ने ऊपर से मिट्टी पलीद कर दी। मजबूरी बश एक बयान क्या दिया अपने ही मधुमक्खी की तरफ घेर लिए। ऐसे में मोदी साहब को एक अदद गोधरा चाहिए... 

महेंद्र मिश्रा

न्हें न विकास से लेना-देना है और न मेडल से। इन्हें युद्ध चाहिए। इसीलिए जो आज तक किसी प्रधानमंत्री ने लाल किले से नहीं किया। उसको इन्होंने कर दिखाया। वो है बलूचिस्तान के अलवगाववादियों का खुला समर्थन। पीएम साहब ने इस मौके पर न ओलंपिक का जिक्र किया और न ही मेडल का। एक अरब 30 करोड़ आबादी और एक भी मेडल नहीं। यह बात पीएम साहब को परेशान नहीं करती। चलिए देश के दूसरे हिस्सों में दूसरी नकारी सरकारें थीं। लेकिन गुजरात में तो 20 सालों से आप हैं। कम से कम एक खिलाड़ी पैदा कर दिए होते। एक मेडल वहां से आ जाता। इस पर आप क्या बोलेंगे? अब पूरा गुजरात बोल रहा है। विकास का बुलबुला फूट गया। न वहां दलितों को सम्मान मिला। न ही पटेलों को रोजी-रोटी।

शुक्रवार, 29 जुलाई 2016

एसडीएम ने होमगार्ड से पखरवाया पांव और साफ कराई चप्पल

रॉबर्ट्सगंज तहसील क्षेत्र के एसडीएम कैलाश सिंह होमगार्ड से
चप्पल साफ कराते हुए।
फोटो साभारः विकास द्विवेदी।
छापेमारी के दौरान एसडीएम कैलाश सिंह के चप्पल में लग गई थी मिट्टी। फेसबुक पर वायरल हो रही तस्वीर।

वनांचल न्यूज़ नेटवर्क

सोनभद्र। रॉबर्ट्सगंज तहसील के एसडीएम ने गत रविवार को एक होमगार्ड से पांव पखरवाया और चप्पल साफ कराई। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म फेसबुकपर वायरल हो रही इसकी तस्वीर को 100 से ज्यादा लोगों ने शेयर किया है और इस कृत्य को सामंती मानसिकता वाला कृत्य करार दिया है।

गुरुवार, 28 जुलाई 2016

जातिवादी दिशा में भटकी सामाजिक न्याय की लड़ाई- अनिल चमड़िया


सामाजिक न्याय की चुनावी राजनीति और सांप्रदायिक गठजोड़' विषयक गोष्ठी में बोले वक्ता, बेटियों के अपमान पर ही टिकी है सांप्रदायिक-जातिवादी राजनीति।

वनांचल न्यूज़ नेटवर्क

लखनऊ। जो जातिवादी होगा, वह सांप्रदायिक होगा और जो सांप्रदायिक होगा, वह जातिवादी होगा। इनका गहरा संबन्ध है। सामाजिक न्याय की लड़ाई जातिवादी दिशा में भटक गई है। यह इसलिए हुआ क्योंकि चुनावी राजनीति के लिए ऐसा करना कुछ राजनीतिक पार्टियों के लिए लाभकारी हो सकता है। सामाजिक न्याय की लड़ाई का मूल्यांकन इस तरह से करना चाहिए, क्या कारण है कि इस दौर में सांप्रदायिकता का विस्तार तेजी से हुआ है? दलित उत्पीड़न घटना नहीं, विचारधारा है। दलित उत्पीड़न के उन तमाम औजारों का इस्तेमाल देश के अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ भी किया जाता रहा है। गाय के बहाने यदि अल्पसंख्यकों पर हमले होते हैं तो उन हमलों से दलितों को भी नहीं बचाया जा सकता। इस तरह दलित उत्पीड़न और सांपद्रायिक उत्पीड़न एक ही है। जो दलित विचारधारा की राजनीति करने का दावा करते हैं, वह वास्तविक विचारधारा की लड़ाई नहीं लड़ते हैं, बल्कि दलित जातियों का वोट बैंक सत्ता पाने के अवसरों के रूप में करते हैं। चुनाव की राजनीति महज वोटों के गठजोड़ से नहीं होती, बल्कि उसका जोर सामाजिक न्याय और लोकतांत्रिक मुद्दों पर एकताबद्ध वोटों में विभाजन की बनावटी दीवार खड़ी करने की भी होती है। दलित चेतना के उत्पीड़न के लिए सामाजिक न्याय की चुनावी पार्टियां भी राज्य मशीनरी का उतना ही दुरुपयोग करती हैं, जितना कि सांप्रदायिक विचारधारा की पार्टियां सांप्रदायिक हमले के लिए करती हैं। जो मुसलमान धार्मिक हैं, वह सांप्रदायिक नहीं है और जो हिंदू सांप्रदायिक है, वह धार्मिक नहीं हैं।

शनिवार, 2 जुलाई 2016

खेत-खनन मजदूरों ने कुछ यूं मांगा अपना हक



वनांचल न्यूज नेटवर्क

सोनभद्र। भारतीय खेत मजदूर यूनियन के आह्वान पर उत्तर प्रदेश खेत मजदूर यूनियन, सोनभद्र के बैनरतले खेत और खनन मजदूरों ने शुक्रवार को जिले के विभिन्न क्षेत्रों में प्रदर्शन किया और मार्च निकाला।

शुक्रवार, 1 जुलाई 2016

पत्रकारिता के प्ररितों के लिए प्रेरक रवीश कुमार का पत्र


हिन्दी पत्रकारिता का हाल देख लीजिए। इसका जनाधार है मगर कोई आधार नहीं है। दायरा सीमित है और स्तर विवादित। अपवाद की बात मत कीजिये। दूसरा किसी में हिम्मत नहीं है विश्व स्तरीय पत्रकारिता करने की। संसाधन बहाना है। अचानक कहाँ से पैसा आ गया प्रधानमंत्री का यात्रा कवर करने के लिए। पहले तो ये इतनी संख्या में रिपोर्टर भी नहीं भेजते थे। हिन्दी पत्रकारिता अपने जनाधार को असरदार नहीं बनाती बल्कि किसी राजनीतिक प्रभाव के विस्तार में आसानी से सहायक बन जाती है...

मेरे प्यारे प्रेरितों,

प सभी जब ककड़ी की तरह खिच्चा खिच्चा उम्र में मुझसे टकरा जाते हैं तो मैं थोड़ा अवसाद से भर जाता हूँ। ऐसा नहीं कि आप योग्य नहीं हैं या आप आगे जाकर कुछ नहीं करेंगे। आप में से कुछ क़ाबिल भी होते हैं और कई झोल भी। कई बार झोल अच्छा कर जाते हैं और क़ाबिल झोल हो जाते हैं। मैं आम तौर पर कइयों से मिल नहीं पाता और सच बात ये हैं कि मिलना भी नहीं चाहता क्योंकि मेरी फ़ितरत ही ऐसी है।

‘मिल्ली गजट’ का लाइसेंस रद्द करने का प्रयास लोकतंत्र पर हमला है- रिहाई मंच

आलोचनात्मक समूहों को परेशान करने के लिए छेड़े गए केंद्र सरकार के अभियान ने मीडिया के समक्ष विश्वसनीयता का गम्भीर संकट पैदा कर दिया है...

वनांचल न्यूज नेटवर्क

लखनऊ। अंग्रेजी पाक्षिक मिल्ली गजेट का लाइसेंस रद्द करने का प्रयास मोदी सरकार का निष्पक्ष पत्रकारिता पर लगाम लगाने की एक और कोशिश है। मोदी सरकार द्वारा अपने सामने नतमस्तक मीडिया समूहों के मालिकान को राज्य सभा भेजना और आलोचनात्मक समूहों को परेशान करने के अभियान ने मीडिया के समक्ष विश्वसनीयता का गम्भीर संकट पैदा कर दिया है। यह भारतीय लोकतंत्र के लिए दीर्घकालिक नुकसान साबित होगा जिसकी भरपाई मोदी के जाने के बाद भी लम्बे समय तक नहीं हो पाएगी।

मंगलवार, 28 जून 2016

मोदी खुद इन्हीं परिस्थितियों की पैदाइश हैं?

आपातकाल के दौरान संविधान में तकरीबन 25 संशोधन किए गए थे। हालांकि जनता पार्टी के शासन में आने के बाद उन सबको एक साथ रद्द कर दिया गया था। तब इन संशोधनों को मिनी संविधान करार दिया गया था। यहां तो पूरे संविधान को ही बदलने की बात की जा रही है...

महेंद्र मिश्रा
वैसे तो आपातकाल 26 जून को लगा था। वह दिन बीत गया है। कुछ लिखने की इच्छा के बावजूद दूसरी व्यवस्तताएं भारी पड़ीं। लेकिन चूंकि इसकी प्रासंगिकता बनी हुई है इसलिए लिखना जरूरी हो गया था। इस सिलसिले में आए लेखों में दो चीज देखने को मिली। कुछ ने इंदिरा गांधी के आपातकाल को कोसने तक अपने को सीमित रखा। तो कुछ ने इसे मौजूदा संदर्भ से जोड़ने की भी कोशिश की। पहली जमात में ऐसे लोग हैं जिनकी कुछ राजनीतिक प्रतिबद्धताएं हैं। या फिर न तो वो लोकतंत्र के मर्म को समझते हैं और न ही उन्हें आपातकाल के खतरे का अहसास है। दूसरी श्रेणी के लोग भी अगर मौजूदा समय को सिर्फ आपातकाल के ही एक दूसरे चेहरे के तौर पर देख रहे हैं। तो वो भी असल तस्वीर से अभी दूर हैं।

रविवार, 15 मई 2016

पत्रकारों की हत्या और गिरफ्तारी पर मुखर हुए जनसंगठन


पत्रकार पुष्प शर्मा की गिरफ्तारी केंद्र की मोदी सरकार के दमन का प्रतीक- रिहाई मंच

वनांचल न्यूज नेटवर्क

लखनऊ। देश के विभिन्न इलाकों में हो रही पत्रकारों की हत्या को लेकर जन-पक्षधर संगठनों के साथ-साथ विभिन्न पत्रकार संगठनों ने सत्ताधारी पार्टियों को निशाने पर लिया है। मुसलमानों को योगा ट्रेनिंग के चयनित लोगों में मुसलमानों को शामिल नहीं करने से संबंधित खबर को ब्रेक करने वाले पत्रकार पुष्प शर्मा की गिरफ्तारी के मामले को रिहाई मंच ने केंद्र की मोदी सरकार में बढ़ रहे दमन का ताज़ा नज़ीर करार दिया है। साथ ही उसने बिहार और झारखंड में हाल ही में हुए दो पत्रकारों की हत्या को लोकतंत्र के लिए शर्मनाक बताया और इसमें शामिल हत्यारों की तुरंत गिरफ्तारी की मांग की है।

रिहाई मंच द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में मंच के महासचिव राजीव यादव ने भारत सरकार द्वारा योगा ट्रेनिंग में नीतिगत आधार पर मुसलमानों की नियुक्ति न करने का आरटीआई से खुलासा करने वाले पत्रकार पुष्प शर्मा की गिरफ्तारी और उक्त खबर को छापने वाले अखबार मिल्ली गजट के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने को मोदी सरकार की एक और ओछी हरकत बताया। उन्होंने कहा है कि इस मसले पर आयुश मंत्रालय द्वारा बिना अखबार से खबर के संदर्भ में कोई पूछताछ किए मुकदमा दर्ज करना साबित करता है कि आरटीआई में उजागर तथ्य बिल्कुल सही हैं और सरकार ने बदले की भावना के तहत पत्रकार को उत्पीड़ित करने के लिए जेल भेजा है। उन्होंने कहा कि इस मसले पर प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा पत्रकार के पक्ष में खड़े होने के बजाए खुलकर सरकार का पक्ष लेना साबित करता है कि पीसीआई जैसी संस्था का भी भगवाकरण हो गया है।

वहीं उन्होंने बिहार के सिवान में पत्रकार राजदेव रंजन और झारखंड चतरा में अखिलेश प्रताप सिंह की हत्या की निंदा करते हुए कहा है कि ये घटनाएं साबित करती हैं इन राज्यों में अपराधियों के हौसले कितने बुलंद हैं। उन्हांने दोनों मामलों में दोषियों की तत्काल गिरफ्तारी की मांग की है।

उधर, ऑल इंडिया जर्नलिस्ट एसोसिएशन, डेलही यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट, उपजा, भारतीय पत्रकार संगठन समेत देश के विभिन्न पत्रकार संगठनों ने बिहार और झारखंड में हुए दो पत्रकारों की हत्या की लिए सत्ताधारी पार्टियों को जिम्मेदार ठहराया। साथ ही उन्होंने मांग की कि हत्या में शामिल सभी लोगों को तत्काल गिरफ्तार किया जाए और पत्रकारों के परिजनों को मुआवजा मुहैया कराया जाए। 

शुक्रवार, 13 मई 2016

बिहार में पत्रकार की हत्या

पत्रकार राजदेव रंजन

वनांचल न्यूज नेटवर्क

पटना। बिहार के सिवान में टाउन थाना क्षेत्र  के स्टेशन रोड स्थित फल मंडी के पास आज बदमाशों ने गोली मारकर एक पत्रकार की हत्या कर दी। वहीं विभिन्न पत्रकार संगठनों से इसकी निंदा की है।
सूचना के मुताबिक हिन्दी दैनिक हिन्दुस्तान के सिवान जिला प्रभारी राजदेव रंजन कार्यालय से घर जा रहे थे। स्टेशन रोड स्थित फल मंडी के पास बदमाशों ने उन्हें गोली मार दी जिससे वह लहूलुहान होकर गिर पड़े और बदमाश भाग निकले। गंभीर रूप से घायल राजदेश रंजन को अस्पताल ले जाया गया लेकिन उन्होंने रास्ते में ही दम तोड़ दिया। फिलहाल अभी हत्या के कारणों का पता नहीं चल पाया है।

उधर, नेशनल यूनियन ऑफ़ जर्नलिस्ट्स (इंडिया) और एन यू जे आई, बिहार ने घटना की तीखी निंदा की है। साथ ही उन्होंने राज्य सरकार से मांग की है कि हत्यारों को अविलंब गिरफ्तार कर हत्या के कारणों का खुलासा किया जाय।

आतंकवाद के आरोपों से बरी मुस्लिम युवकों के खिलाफ अपील में जाना सपा सरकार की मुस्लिम विरोधी मानसिकता- रिहाई मंच

वनांचल न्यूज नेटवर्क

लखनऊ । निचली अदालत द्वारा आतंकवाद के आरोपों से बरी किए गए मुस्लिम युवकों के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील करना उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार की मुस्लिम विरोधी मानसिकता को दर्शाता है। सपा सरकार ने यह कदम उठाकर मुसलमानों के जख्मों पर नमक छिड़कने का काम किया है।

रिहाई मंच के प्रवक्ता शहनवाज आलम की ओर से जारी विज्ञप्ति में ये बाते कही गई हैं। साथ ही मंच ने एनआईए द्वारा मालेगांव बम धमाकों की आरोपी साध्वी प्रज्ञा पर से मकोका हटाने की कार्रवाई को न्यायिक व्यवस्था पर संघी हमला करार दिया है।

मंच के अध्यक्ष एडवोकेट मोहम्मद शुऐब ने कहा है कि सपा ने आतंकवाद के नाम पर फंसाए गए बेगुनाहों को छोड़ने का वादा तो पूरा नहीं किया, जो लोग अदालतों से बरी हुए हैं अब उनके खिलाफ भी सरकार उच्च न्यायालय में अपील करके मुसलमानों के जख्मों पर नमक छिड़क रही है। उन्होंने कहा कि 2 अक्टूबर 2015 को जलालुद्दीन, नौशाद, अजीजुर रहमान, शेख मुख्तार, मोहम्मद अली अकबर हुसैन और नूर इस्लाम मंडल को लखनऊ की विशेष न्यायाधीश (एससीएसटी) अपर जिला एंव सत्र न्यायालय ने बरी कर दिया था। इन अभियुक्तों पर लखनऊ में विस्फोट करने की रणनीति बनाने के आरोप के साथ ही उनसे भारी मात्रा में विस्फोटक बरामद करने का एसटीएफ ने दावा किया था। अदालत ने अपने फैसले में लिखा था मामले की परिस्थतियों व साक्ष्य की भिन्नताएं व विसंगतियां इस बरामदगी को संदेहास्पद बनाती हैं और मामले की परिस्थतियों से यह इंगित हो रहा है कि अभियुक्तगण को पुलिस कस्टडी रिमांड में लेकर उनके खिलाफ फर्जी बयानों के आधार पर यह बरामदगी भी प्लांट की गई है।

इन अभियुक्तों के वकील रहे रिहाई मंच अध्यक्ष ने कहा है कि अपनी जिंदगी के आठ साल जेलां में बिना किसी कुसूर के बिता चुके इन मुस्लिम नौजवानों के बरी होने से सपा सरकार इस कदर दुखी है कि उसने 29 फरवरी 2016 को उच्च न्यायालय में फैसले के खिलाफ अपील दायर कर दी है। जिसकी सुनवाई 10 मई को पड़ी थी। लेकिन सरकारी वकील ने उसे मुल्तवी करा लिया और अब अगस्त में सुनवाइ होगी। उन्हांने कहा कि सरकार के इस रवैये से एक बार फिर साबित हो गया है कि प्रदेश सरकार ने इन मामलों में खुद ही अदालतों को पत्र लिख कर आरोपियों को छोड़ने की जो अपील की थी वह सिवाए नाटक के कुछ नहीं था। मोहम्मद शुऐब ने आगे कहा है कि इन मामलां से बरी हुए बेगुनाह मुस्लिमां में से अधिकतर पश्चिम बंगाल के हैं जिन्हें यहां जमानतदार तक नहीं मिले और किसी तरह उन्होंने खुद अपनी पत्नी, सालों और दूसरे करीबियों को जमानतदार बना कर इन्हें छुड़वाया था। ऐसे में उनकी रिहाई के खिलाफ सरकार का अपील करना सपा सरकार का विशुद्ध साम्प्रदायिक और मुस्लिम विरोधी कार्रवाई है।
हीं विज्ञप्ति में रिहाई मंच के महासचिव राजीव यादव ने कहा कि एक तरफ तो सपा ने मुजफ्फरनगर साम्प्रदायिक हिंसा के मास्टरमाइंड संगीत सिंह सोम और सुरेश राणा और मुसलमानों के हाथ काटने की धमकी देने वाले भाजपा नेता वरूण गांधी के खिलाफ तो सुबूत होने के बावजूद उनके खिलाफ कानूनी कार्रवई में नहीं गई और उन्हें बरी होने में पूरा सहयोग किया। तो वहीं दूसरी ओर बेगुनाह मुस्लिमों का बरी होना उन्हें बर्दाश्त नहीं हो रहा है। मुलायम सिंह को संघ परिवार का पुराना स्वयंसेवक बताते हुए राजीव यादव ने कहा कि इससे पहले भी मुलायम सिंह बाबरी मस्जिद विध्वंस के मास्टरमाइंड लालकृष्ण आडवाणी के खिलाफ बाबरी ध्वंस के आरोपों को वापस ले चुके हैं और आज उनके बेटे भी खुल कर उनके पदचिन्हों पर चलते हुए पहले कानपुर के बजरंगदल के कार्यकर्ताओं जिनकी मौत बम बनाते समय हो गई थी और जिनके पास से कई किलो विस्फोटक बरामद हुआ था के मामले में भी सत्ता में आते ही फाइनल रिपोर्ट लगवा दिया और कानपुर दंगे के षडयंत्रकर्ता एके शर्मा को डीजीपी बना दिया।

उन्होंने कहा कि सपा के इसी मुस्लिम विरोधी नीति के कारण आज भी जहां कई बेगुनाह नौजवान आतंकवाद के आरोप में जेलों में बंद हैं तो वहीं इन आरोपों से बरी हुए वासिफ हैदर जैसे मुस्लिम युवक दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं क्योंकि अखिलेश सरकार ने उन्हें मुआवजा और पुर्नवास का वादा भी पूरा नहीं किया।

राजीव यादव ने कहा कि एनआईए द्वारा मालेगांव आतंकी विस्फोट की आरोपी साध्वी प्रज्ञा पर से मकोका हटाना और सपा सरकार का एनआईए व दिल्ली स्पेशल सेल को प्रदेश में घुस कर बेगुनाह मुस्लिम युवकों को पकड़ने की खुली छूट देना और बरी मुसलमानों के खिलाफ अपील में जाना यह सब आपस में जुड़ी हुई कड़ियां हैं। जो साबित करता है यूपी समेत पूरे देश में बेगुनाह मुस्लिमों को फंसाने का खेल बड़े पैमाने पर शुरू होने वाला है।


बुधवार, 4 मई 2016

अखिलेश सरकार के बाद NGT ने JP GROUP को दिया झटका, 2500 एकड़ वनभूमि वापस लेने का दिया आदेश


अधिकरण ने खारिज की उत्तर प्रदेश सरकार की अधिसूचना। मामले में दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने का भी दिया आदेश।

reported by Shiv Das

नई दिल्ली। सोनभद्र में वन भूमि हस्तांतरण मामले में उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार के बाद राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने भी जेपी समूह को झटका दिया है। उत्तर प्रदेश की पूर्ववर्ती बसपा सरकार द्वारा सोनभद्र में जेपी समूह की सहयोगी कंपनी जयप्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड (जेएएल) के पक्ष में 1083.231 हेक्टेयर (करीब 2500 एकड़) वनभूमि हस्तांतरित करने के लिए जारी अधिसूचना को एनजीटी ने आज खारिज कर दिया। साथ ही उसने राज्य सरकार को आदेश दिया कि वह जल्द से जल्द अधिसूचना जारी कर जेएएल के पक्ष में हस्तांतरित वन भूमि उत्तर प्रदेश वन विभाग को सौंप दे और गैर-कानूनी ढंग से इस वन भूमि हस्तांतरण प्रक्रिया में शामिल अधिकारियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करे। हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार ने कैबिनेट बाई-सर्कुलेशन के जरिये जयप्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड से गलत ढंग से हस्तांतरित करीब 2500 एकड़ वनभूमि वापस लेकर वनविभाग को सौंपने की अधिसूचना जारी करने का दावा किया था। 
गौरतलब है कि करीब आठ साल पहले जेपी समूह की सहयोगी कंपनी जेएएल ने उत्तर प्रदेश राज्य सीमेंट निगम को करीब 459 करोड़ रुपये में खरीदा था। उसी की आड़ में उसने वनभूमि पर आबंटित खनन पट्टों को स्थानीय अधिकारियों से मिलकर अपने नाम करा लिया। जांच रिपोर्टों के मुताबिक ओबरा वन प्रभाग के तत्कालीन वन बंदोबस्त अधिकारी वीके श्रीवास्तव ने जय प्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड की ओर से भारतीय वन अधिनियम की धारा-9 और 11 के तहत दाखिल सात मामलों में भारतीय वन अधिनियम की धारा-4 के तहत अधिसूचित 1083.231 हेक्टेयर वनभूमि कंपनी के पक्ष में निकाल दी। इसमें 253.176 हेक्टेयर भूमि में कैमूर वन्यजीव विहार की शामिल थी। वीके श्रीवास्तव ने 1987 में भारतीय वन अधिनियम की धारा-20 के तहत अधिसूचित 399.51 हेक्टेयर संरक्षित वन क्षेत्र में से इस 230.844 हेक्टेयर वन भूमि को भी जय प्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड के पक्ष में गैरकानूनी ढंग से निकाल दिया जिसकी पुष्टि उच्चतम न्यायालय के आदेश के तहत अतिरिक्त जिला न्यायाधीश ने भी नहीं की थी। 
केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की जांच रिपोर्ट के अंशों पर गौर करें तो वीके श्रीवास्तव उपरोक्त मामलों की सुनवाई नहीं कर सकते थे। वे केवल उन 12 गांवों के मामले की सुनवाई कर सकते थे, जिसके लिए राज्य सरकार ने 21 जुलाई, 1995 को जारी आदेश में सहायक अभिलेख अधिकारी शिव बक्श लाल को विशेष वन बंदोबस्त अधिकारी, सोनभद्र नियुक्त किया था। हालांकि इसके लिए भी शासन की ओर से उनकी नियुक्ति होनी चाहिए थी।
वीके श्रीवास्तव के फैसले के खिलाफ उत्तर प्रदेश वन विभाग के प्रमुख वन संरक्षक ने राज्य सरकार को पत्र लिखकर उच्च न्यायालय, इलाहाबाद में अपील करने की राय मांगी लेकिन तत्कालीन बसपा सरकार ने ऐसा करने से साफ मना कर दिया। उत्तर प्रदेश सरकार के तत्कालीन सचिव पवन कुमार ने 12 सितंबर, 2008 को वन विभाग के प्रमुख वन संरक्षक को पत्र संख्या-3792/14-2-2008 के माध्यम से राज्य सरकार के निर्णय से अवगत भी कराया और सोनभद्र में भारतीय वन अधिनियम की धारा-20 के तहत विज्ञप्ति जारी किए जाने हेतु दो दिनों के अंदर आवश्यक प्रस्ताव शासन को भेजने का निर्देश दिया। उत्तर प्रदेश सरकार के सचिव (वन) ने 25 नवंबर, 2008 को अधिसूचना जारी कर सोनभद्र में भारतीय वन अधिनियम की धारा-20 के तहत शासकीय दस्तावेजों में वन क्षेत्र को कम कर दिया। इसमें जय प्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड के पक्ष में निकाली गई वन भूमि भी शामिल थी। 
इतना ही नहीं अपनी कारगुजारियों को कानूनी जामा पहनाने के लिए उत्तर प्रदेश की तत्कालीन बसपा सरकार ने उच्चतम न्यायालय में लंबित जनहित याचिका (सिविल)-202/1995 में अपील दाखिल कर जय प्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड के पक्ष में विवादित खनन लीज का नवीनीकरण करने के लिए अनुमति मांगी। साथ ही उसने उप्र सरकार द्वारा 25 नवंबर, 2008 को भारतीय वन अधिनियम की धारा-20 के तहत जारी अधिसूचना की पुष्टि करने का अनुरोध किया। उच्चतम न्यायालय ने मामले में उच्च प्राधिकार समिति (सीईसी) से रिपोर्ट तलब की। जवाब में सीईसी के तत्कालीन सदस्य सचिव एमके जीवराजका ने 10 अगस्त, 2009 को उच्चतम न्यायालय के रजिस्ट्रार के पास अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। बाद में यह मामला राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) को स्थानांतरित हो गया। 

केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय और सीईसी ने भूमि हस्तांतरण की पूरी प्रक्रिया को गलत बताया था। दोनों ने अदालत में कहा कि ये जमीन जंगल की है। इसको किसी और काम के लिए नहीं दिया जा सकता। वर्ष 2012 में राज्य सरकार बदल गई। उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में बसपा सरकार के फैसले का विरोध किया। उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त महाधिवक्ता शमशाद और अभिषेक चौधरी ने एनजीटी में यूपी सरकार का पक्ष रखा और कहा, 'ये जंगल की जमीन है और किसी और काम के लिए नहीं दी जा सकती। जमीन की लीज जेपी को दिए जाने का पूर्व सरकार का फैसला बिल्कुल गलत है।'

इस मामले की जांच करने वाले केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के क्षेत्रीय कार्यालय (मध्य क्षेत्र), लखनऊ के तत्कालीन वन संरक्षक वाईके सिंह चौहान, अब अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक (विकास) वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, झारखंड सरकार, से बात की गई तो उन्होंने कहा, ‘आज यह खबर सुनकर बड़ी राहत मिली है। पूरी सर्विस के दौरान मैंने यह सबसे महत्वपूर्ण कार्य किया है। उद्योगपतियों ने साजिश रचकर वनभूमि को हड़प लिया है जो गरीबों और आदिवासियों के काम आता। इस मामले में स्थानीय जनता का भरपूर सहयोग मिला। जांच के दौरान उन्होंने एक-एक गाटे की सूचना और कागजात मुहैया कराये। इस मामले में राज्य सरकार के कुछ अधिकारियों ने जेपी समूह के एजेंट के रूप में कार्य किया है। उन्हें एनजीटी के आदेश और विंध्याचल मंडलायुक्त की जांच आख्या की संस्तुति के आधार पर दंड जरूर मिलना चाहिए। साथ ही इस मामले में लापरवाही बरतने वाले प्रशासनिक अधिकारियों के साथ-साथ वन-विभाग और राजस्व विभाग के अधिकारियों की भूमिका की भी जांच होनी चाहिए और उन्हें दण्डित किया जाना चाहिए। साथ ही जेपी समूह से जल्द से जल्द वनभूमि वापस लेकर उससे राजस्व क्षति की वसूली की जानी चाहिए।’

जनहित याचिका के माध्यम से इसे उच्चतम न्यायालय में उठाने वाले चंदौली जनपद के शमशेरपुर गांव निवासी बलराम सिंह उर्फ गोविंद सिंह का कहना है कि उद्योगपतियों और उत्तर प्रदेश की सरकार की मिलीभगत से वनभूमि को लूटने के मामले में एनजीटी ने न्याय किया है। इसका आदिवासियों और गरीबों के साथ पर्यावरण को भी लाभ मिलेगा। 

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जेपी समूह को 409 करोड़ माफ (भाग-6) 

एनजीटी के आदेश को पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें-

मंगलवार, 3 मई 2016

CCC के समकक्ष मानी जाएगी कम्प्यूटर साइंस की शिक्षा

कार्मिक अनुभाग के प्रमुख सचिव ने सी.सी.सी प्रमाण-पत्र की समकक्षता के संबंध में जारी किया निर्देश। केंद्र और राज्य सरकार द्वारा मान्य हाईस्कूल स्तर पर कम्यूटर साइंस की शिक्षा हासिल करने वाले अभ्यर्थी भी हैं पात्र।

वनांचल न्यूज नेटवर्क


लखनऊ। उत्तर प्रदेश सरकार ने सरकारी विभागों में कनिष्ठ सहायक और आशुलिपिक पदों पर चयन के लिए आवश्यक डी.ओ.ई.ए.सी.सी (अब एऩ.आई.ई.एल.आई.टी.) सोसाइटी के सी.सी.सी प्रमाण-पत्र की समकक्षता के संबंध में स्पष्ट निर्देश जारी कर दिया है। कार्मिक अनुभाग-2 के प्रमुख सचिव ने समस्त प्रमुख सचिवों/सचिवों को निर्देश जारी कर कहा है कि कम्प्यूटर साइंस में डिप्लोमा अथवा डिग्री प्राप्त अभ्यर्थी भी कनिष्ठ सहायक अथवा आशुलिपिक के पद पर होने वाली भर्तियों के लिए पात्र होंगे।

इतना ही नहीं, माध्यमिक शिक्षा परिषद उत्तर प्रदेश के साथ-साथ केंद्र अथवा किसी राज्य सरकार द्वारा स्थापित किसी संस्था (बोर्ड अथवा परिषद) की ओर से ली जाने वाले हाई स्कूल और इंटरमीडिएट परीक्षा में एक विषय के रूप में कंप्यूटर साइंस का प्रमाण-पत्र प्राप्त करने वाला व्यक्ति भी कनिष्ठ सहायक अथवा आशुलिपिक के पदों पर होने वाली भर्ती के लिए अब पात्र होगा। उत्तर प्रदेश सरकार ने कंप्यूटर साइंस में ऐसे प्रमाण-पत्रों, डिप्लोमा और डिग्री को डी.ओ.ई.ए.सी.सी. सोसाइटी के सी.सी.सी. प्रमाण-पत्र के समकक्ष माना है। 

कार्मिक अनुभाग के प्रमुख सचिव किशन सिंह अटोरिया ने राज्य सरकार के अधीन समस्त विभागों के प्रमुख सचिवों और सचिवों को आज पत्र जारी कर इस संबंध में कार्रवाई सुनिश्चित कराने का निर्देश दिया है। साथ ही उन्होंने ऐसे आठ संस्थाओं की सूची जारी की है जो माध्यमिक शिक्षा परिषद उत्तर प्रदेश की ओर से मान्य नहीं हैं। ऐसी संस्थाओं में हिन्दी साहित्य सम्मेलन, इलाहाबाद द्वारा संचालित प्रथमा/मध्यमा(विशारद) परीक्षा का नाम भी शामिल है। 


माध्यमिक शिक्षा परिषद उत्तर प्रदेश से गैर-मान्यता प्राप्त संस्थाओं की सूची


(1) हिन्दी साहित्य सम्मेलन, इलाहाबाद द्वारा संचालित प्रथमा/मध्यमा(विशारद) परीक्षा।
(2) बोर्ड ऑफ हायर सेकेंडरी एजुकेशन, दिल्ली की हायर सेकेण्डरी परीक्षा।
(3)गुरुकुल विश्वविद्यालय वृंदावन मथुरा की अधिकारी परीक्षा।
(4) बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन, मध्य बारत, ग्वालियर द्वारा संचालित हाईस्कूल तथा इंटरमीडिएट परीक्षा।
(5) भारतीय माध्यमिक शिक्षा परिषद, भारत।
(6) भारतीय शिक्षा परिषद, उत्तर प्रदेश।
(7) बोर्ड ऑफ हायर सेकेण्डरी एजुकेशन की हायर सेकेण्डरी प्राविधिक परीक्षा।
(8) माध्यमिक शिक्षा परिषद, दिल्ली की हाईस्कूल परीक्षा।

नोटः शासनादेश पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करेंः-

डी.ओ.ई.ए.सी.सी. सोसाइटी के सी.सी.सी. प्रमाण-पत्र की समक्षता निर्धारित करने के लिए जारी शासनादेश।

रविवार, 1 मई 2016

मजदूर दिवस विशेषः ‘श्रम सुधार‘ नहीं, श्रमिक अधिकार के लिए लड़ना होगा


by दिनकर कपूर

सोनभद्र जनपद हमारे प्रदेश का प्रमुख औद्योगिक केन्द्र है। यहां अनपरा, ओबरा, लैन्को, आदित्य बिड़ला ग्रुप की रेनूसागर, एनटीपीसी की बीजपुर और शक्तिनगर की तापीय परियोजनाओं, आदित्य बिरला ग्रुप के हिण्डाल्को एल्यूमीनियम कारखाना, हाईटेक कार्बन, कैमिकल प्लांट समेत कोयला की बीना, ककरी, खड़िया खदानों और जेपी समूह के चुर्क व डाला सीमेन्ट कारखानों में हजारों ठेका श्रमिक कार्यरत है। पहले इनमें से अधिकतर उद्योगों में मजदूर कैजुअल की श्रेणी में रखे जाते थे, जिन्हें बाद में नियमित कर दिया जाता था और प्रबंधतंत्र के नियंत्रण में उनका कामकाज होता था। 1990 के बाद उदारीकरण के पच्चीस साल की कथित विकास यात्रा ने खेती, लघु उद्योग को तबाह कर दिया और बड़े पैमाने पर रोजगार के संकट को पैदा किया है। रोजगार संकट के इस दौर में लोगों की मजबूरी का फायदा उठाते हुए ठेकेदारी प्रथा चलायी गयी। इन्हीं नीतियों के बाद से इस क्षेत्र में भी ठेकेदारी प्रथा शुरू कर दी गयी जबकि इन उद्योगों में ठेकेदारी प्रथा की कतई जरूरत नहीं थी।
आज भी खासतौर पर अनपरा, रेनूसागर और ओबरा में काम कर रहे ठेका मजदूरों की निगरानी और उनसे काम कराने का कार्य प्रबंधतंत्र ही करता है। ठेकेदार तो महज उद्योग में मजदूरों की सप्लाई करते हैं और इस काम की मोटी रकम वसूलते है। इससे उद्योग के साथ मजदूर का भी नुकसान होता है। बिना जरूरत के चलाई जा रही ठेकेदारी प्रथा का कारण साफ है ठेकेदारी प्रथा द्वारा संस्थाबद्ध भ्रष्टाचार का लाभ उठाना और सस्ते लेबर से काम कराकर अकूत मुनाफा कमाना। वस्तुगत सच्चाई यह है कि यहां ठेका श्रमिक लम्बे समय से एक ही जगह काम कर रहे है। 20 साल से एक ही पद पर काम करने वाला मजदूर ठेका मजदूर रह ही नहीं सकता है। ठेका श्रम (विनियमन एवं उन्मूलन) अधिनियम की धारा 10 की विधिक स्थिति यह है कि कार्य की स्थायी प्रकृति के निर्धारण का अंतिम अधिकार राज्य सरकार के पास है। बाबजूद इसके प्रदेश में बनी विभिन्न दलों की सरकारों ने अपने इस विधिक अधिकार का उपयोग करके ठेका मजदूरों को नियमित नहीं किया। हालत इतनी बुरी है कि अनपरा और ओबरा तापीय परियोजना के ठेका मजदूरों के नियमितीकरण के लिए आइपीएफ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की जिसमें उ0 प्र0 सरकार को हाईकोर्ट ने इसे लागू करने का आदेश दिया पर मायावती और अखिलश दोनों सरकारों ने हाईकोर्ट के आदेश का अनुपालन नहीं किया परिणामतः हमें अवमानना याचिका दायर करना पड़ी, जिसमें हाईकोर्ट ने उ0 प्र0 सरकार से जबाब तलब किया है।
 इस औद्योगिक क्षेत्र में कानून का शासन नहीं है। श्रम कानूनों द्वारा प्रदत्त न्यूनतम मजदूरी, रोजगार कार्ड, हाजरी कार्ड, बोनस और वेतन पर्ची समेत तमाम अधिकार अभी भी मजदूरों को कई उद्योगों में नहीं मिलते है। हालत इतनी बुरी है कि महिला संविदा श्रमिकों को तो मनरेगा मजदूरी से भी कम में मात्र 120-150 रूपए में मजदूरी करनी पड़ रही है। मजदूरों की भविष्य निधि की बड़े पैमाने पर लूट हुई है। यहां तक कि रेनूकूट के अलावा अन्य औद्योगिक क्षेत्रों में ईएसआई (कर्मचारी राज्य बीमा) के अस्पताल तक नहीं है और परियोजनाओं के अस्पतालों में ठेका मजदूरों को स्थायी कर्मचारी की तरह इलाज की सुविधा नहीं मिलती है। इस क्षेत्र में जहां लाखों औद्योगिक श्रमिक रहते है वहां उनके इलाज की हालत को एक घटना से समझा जा सकता है। विगत दिनों हमारे एक ठेका मजदूर साथी की पत्नी की तबीयत खराब हुई तो उन्हें रात में अनपरा तापीय परियोजना के अस्पताल में भर्ती किया गया। उस अस्पताल की स्थिति यह थी कि वहां न्यूनतम सुविधाएं भी नहीं थी। बीपी की मशीन से लेकर अल्ट्रा साउंड तक कि मशीने खराब पड़ी हुई थी। साथी की पत्नी की हालत खराब होने पर उन्हें लेकर नेहरू अस्पताल जयंत गए जहां भी सिटीस्कैन तक की व्यवस्था नहीं थी और इस पूरे जिले में एक भी न्यूरों का डाक्टर नहीं है। परिणामस्वरूप उन्हें रात में ही बीएचयू ले जाना पड़ा। बनारस ले जाते समय एम्बुलेंस के ड्राइवर ने बताया कि महान में बिरला के तापीय विद्युत उत्पादन परियोजना और सासन में अम्बानी के तापीय विद्युत उत्पादन परियोजना में कोई अस्पताल ही नहीं है। वहां मात्र एक ऐम्बुलेंस रखी गयी है जो मरीजों को जयंत नेहरू अस्पताल लाती है। 
सोनभद्र में खनन वह दूसरा क्षेत्र है जहां बड़े पैमाने पर मजदूर कार्यरत है। यह खनन क्षेत्र मौत की धाटी में तब्दील हो चुका है। यह अवैध खनन का कारोबार माननीय सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालय के आदेशों और कानूनों की धज्जियां उड़ाते हुए हो रहा है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने स्पेशल लीव पेटिशन सीनम्बर 19628-19629 में उत्तर प्रदेश सरकार को आदेश दिया है कि ‘5 हेक्टेयर से कम रक्बे में बिना पर्यावरणीय अनुमति के कोई खनन नहीं किया जायेगा।बाबजूद इसके पर्यावरणीय अनुमति लिए बिना जनपद में खनन जारी है। इसी प्रकार गोवा फाउंडेशन के केस में सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा आदेश दिया गया है कि जिन सेचुंरी एरिया का नोटिफीकेशन हुआ है वहां 1 किलोमीटर और जहां नोटिफीकेशन नहीं हुआ है वहां 10 किलोमीटर एरिया में खनन न हो। गौरतलब हो कि कैमूर सेंचुरी एरिया का नोटिफीकेशन नहीं हुआ है फिर भी इसकी 10 किलोमीटर की परिधि में खनन जारी है। हाल ही में सोनभद्र निवासी ओम प्रकाश की जनहित याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पुनः आदेश दिया है कि कैमूर सेचुंरी एरिया से एक किलोमीटर की परिधि में खनन न होने दिया जाए। पर यहां हालत इतनी बुरी है कि कैमूर सेचुंरी एरिया के अंदर पटवध गांव में मुरया पहाड़ी पर राकेश गुप्ता खुलेआम खनन करा रहे है और खनन में ब्लास्टिंग हो रही है। सलखन गांव में सेचुंरी एरिया में ही आर0 बी0 स्टोन क्रशर के नाम से उनका क्रशर चल रहा है। खान विनियम 1961 के अनुसार सड़क, रेलवे टैª, रिहाइशी इलाकों की 300 मीटर की परिधि के अंदर विस्फोटकों का प्रयोग नहीं हो सकता परन्तु बारी डाला में वाराणसी-शक्तिनगर मुख्य मार्ग से महज 100 मीटर की दूरी पर रिहाइशी क्षेत्र में खनन में बड़े पैमाने पर विस्फोट हो रहा है। जिससे मकानों में दरार पड़ गयी है। केन्द्रीय वन और पर्यावरण मंत्रालय ने तो अपनी रिपोर्ट में बिल्ली मारकुंड़ी के पूरे क्षेत्र में हो रहे खनन को अवैध माना था और यहां तक कहा कि यह क्षेत्र खनन के लिहाज से खतरनाक क्षेत्र में तब्दील हो चुका है। इस क्षेत्र में इतना गहरा खनन कर दिया गया जिसमें जमीन से पानी निकल आया है। कहीं भी खनन के बाद बैक फीलिंग, बेंच आदि काम नहीं हुआ है। जनपद में नदियों तक को बंधक बना लिया गया है उनकी धार को रोक कर पुल बना दिए गए है। जनपद में खनन में न्यूनतम खान सुरक्षा नियमों का भी पालन नहीं हो रहा है। खनन में बड़े पैमाने पर विस्फोटकों का प्रयोग होता है उसका कोई रिकार्ड नहीं रखा जाता है और खनन मालिक विधिवत योग्यता प्राप्त ब्लास्टर भी नहीं रखते है। खान सुरक्षा निदेशालय के निर्देशों के बाबजूद मजदूरों को सुरक्षा उपकरण नहीं दिए जाते, उनका कोई रिकार्ड नहीं रखा जाता, खनन कार्य में लगे मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी, बीमा, ईपीएफ, हाजरी कार्ड, बोनस भी नहीं दिया जाता और भवन व संनिर्माण मजदूर कानून के तहत खनन मजदूरों के आने के बाद भी उनका पंजीकरण नहीं हुआ है। इसी प्रकार के अवैध खनन के कारोबार के कारण यहां कार्यरत मजदूरों और आम नागरिकों की जिदंगी खतरे में रहती है आएं दिन मजदूरों की खनन क्षेत्र में मौतें होती रहती है और पिछले 6 माह में खनन क्षेत्र में 22 मजदूरों की मौतें हो चुकी है। मजदूरों की मौतों पर हर बार प्रतिवाद दर्ज कराने के बाद भी प्रशासन ने कोई कार्यवाही नहीं की। ऐसी स्थिति में आने वाले समय में खनन में और भी मजदूरों की मौतें होंगी।  
खनन का दूसरा बड़ा क्षेत्र है एनसीएल की कोयला खदानें जिसमें में काम करने वाले संविदा श्रमिक ज्यादातर आउटसोर्सिगं के काम में नियोजित है। कोयला कामगारों से हुए समझौतें में भारत सरकार ने माना था कि आउटसोर्सिगं में काम करने वाले श्रमिकों को उस पद पर नियोजित स्थायी श्रमिक के वेतन और राज्य सरकार द्वारा तय उस श्रेणी की न्यूनतम मजदूरी के योग के मध्यमान के बराबर मजदूरी का भुगतान किया जायेगा पर कहीं भी इस समझौतें का अनुपालन नहीं हो रहा है। इन मजदूरों को भी बोनस समेत तमाम अधिकार नहीं मिलते।
जहां इस क्षेत्र में कई यूनियनों/मजदूर नेताओं या तो आत्म समर्पण कर दिया है अथवा समझौता कर लिया है वहीं आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट (आइपीएफ) से जुड़ी यूनियनों ने पूंजी की संगठित ताकत के खिलाफ लगातार संघर्ष किया। मजदूर तबके पर जारी चैतरफा हमलों के खिलाफ अपने संघर्ष के बल पर ही मजदूरों का मनोबल बनाये रखने में सफल हुई और मजदूर वर्ग में नयी जागृति को पैदा किया। आज जिस तरह से संकटग्रस्त पूंजी अपनी रक्षा के लिए श्रम सुधारके नाम पर मजदूरों के अधिकारों पर हमले कर रही है। मजदूर वर्ग को मजबूती से अपने अधिकारों की रक्षा के लिए खड़ा होना है, इन हालातों को बदलना होगा और अपने सभी अधिकारों को हासिल करना होगा। इस बार मई दिवस का यही संदेश है।
(लेखक आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट (आइपीएफ)  के प्रदेश संगठन महासचिव हैं।)