शनिवार, 30 अप्रैल 2016

अवैध खनन और शराबबंदी जैसे जनमुद्दों के साथ विधानसभा चुनाव में उतरेगी सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया)


वनांचल एक्सप्रेस नेटवर्क

वाराणसी। अवैध खनन पर रोक, शराबबंदी, पेप्सी और कोकाकोला प्लांटों की बंदी, सरकारी विद्यालयों में जनप्रतिनिधियों और नौकरशाहों के बच्चों की अनिवार्य रूप से कराने जैसे जनमुद्दों के साथ सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया) विधानसभा चुनाव-2017 में उतरेगी। साथ ही वह विधानसभा चुनाव में आधे से ज्यादा सीटों पर महिलाओं को उम्मीदवार बनाएगी। सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया) के उपाध्यक्ष संदीप पांडे ने पत्रकारवार्ता के दौरान ये बाते कहीं। 

मैदागीन स्थित पड़ारकर भवन के सभागार में आयोजित प्रेस वार्ता में उन्होंने कहा कि सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया) आगामी उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव शराबबंदी के मुद्दे पर लड़ेगी। यदि उसकी सरकार बनती है तो पूरे प्रदेश में तत्काल प्रभाव से शराब पर रोक लगाई जाएगी। शराबबंदी के खिलाफ तमाम तर्क होते हुए भी चूंकि यह मुद्दा महिलाओं की प्राथमिकता है इसलिए पार्टी ने उसे लिया है। सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया) की ओर से चुनाव में आधी से ज्यादा उम्मीदवार महिलाएं होंगी और सरकार बना पाने की स्थिति में मुख्य मंत्री महिला होगी और आधे से ज्यादा विभागों की जिम्मेदारी भी महिलाओं के पास होगी।

इसके अलावा सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया) इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 18 अगस्त, 2015 के आदेश कि सभी सरकारी वेतन पाने वालों व जन प्रतिनिधियों के बच्चों का सरकारी विद्यालयों में पढ़ना अनिवार्य किया जाए को भी लागू करेगी। उ.प्र. सरकार को इस आदेश को छह माह में लागू करना था किंतु उसने अभी तक कोई कार्यवाही नहीं की है। मुख्य मंत्री शिक्षा मित्रों से तो पूछते हैं कि उनके बच्चे में सरकारी विद्यालयों में पढ़ते हैं अथवा नहीं किंतु आई.ए.एस. अफसरों से नहीं पूछते। सभी को सरकारी नौकरी चाहिए, सरकारी घर चाहिए, सरकारी गाड़ी चाहिए व अन्य सरकारी सुविधाएं चाहिएं लेकिन सरकारी विद्यालय और सरकारी अस्पताल नहीं चाहिए। ऐसा क्यों है?

वाराणसी में खासतौर पर वर्तमान में गहराते पानी के संकट को देखते हुए राजा तालाब क्षेत्र में स्थित कोका कोला संयंत्र को बंद कराया जाएगा। जून 2014 में उ.प्र. प्रदूषण नियंत्रण बार्ड के आदेश से यह संयंत्र बंद हो गया था किंतु मोदी सरकार के आन ेके बाद पर्यावरण संबंधी मानकों में शिथिलता बरतने के परिणामस्वरूप प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अपना आदेश वापस ले लिया। केन्द्रीय भूगर्भ जल संरक्षण आयोग ने अब अराजी लाइन विकास खण्ड जहां यह संयंत्र स्थित है को अति दोहित श्रेणी में घोषित कर दिया है। अतः यह आवश्यक हो गया है कि कोका कोला, मेहदीगंज संयंत्र बंद हो। सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया) की यदि सरकार बनती है तो सभी पेप्सी व कोका कोला के संयंत्र बंद कराए जाएंगे। मिर्जापुर जिले के अहरौरा क्षेत्र में जो अवैध पत्थरों का खनन व पहाड़ों में विस्फोट चल रहा है उसे बंद कराने को मुद्दा भी सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया) उठा रही है। पार्टी की ओर से पिछले वर्ष अप्रैल में वाराणसी से राबर्ट्सगंज की चार दिवसीय पदयात्रा की गई थी। जब तक वरुणा व असि नदियों तथा वाराणसी के आधे से ज्यादा तालाबों, जिन पर भू माफियाओं का कब्जा हो गया है, को पुनर्जीवित नहीं किया जाएगा तब तक गंगा की सफाई एक सपना ही रहेगी चाहे इसपर हम जितना भी पैसा क्यों न खर्च कर लें। सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया) इन छोटी नदियों व तालाबों को पुनर्जीवित कराएगी।


वाराणसी में पथ विक्रेताओं के लिए पिछली केन्द्र सरकार द्वारा बनाए गए अधिनियम के तहत अभी तक न तो लाइसेंस मिले हैं और न ही जगह आवंटित हुई है। परिणामस्वरूप जब भी प्रधान मंत्री का आगमन शहर में होता है से पथ विक्रेता हटा दिए जाते हैं। इनकी आजीविका संकट न पड़े इसके लिए सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया) अपूर्ण कार्य को पूरा कराएगी। सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया) की ओेर से सेवापुरी विधान सभा क्षेत्र से उर्मिला पटेल, रोहनिया से धर्मा देवी, शिवपुर से कमर जहां और चुनार से उर्मिला विश्वकर्मा उम्मीदवार होंगी। पत्रकार वार्ता को डा संदीप पाण्डेय ने संबोधित किया, इस अवसर पर चिंतामणि सेठ, विनय सिंह, प्रदीप सिंह, वैभव पाण्डेय, डा आनंद प्रकाश तिवारी, उर्मिला , प्रेम कुमार सोनकर आदि उपस्थित रहे.

दलितों की झोपड़ियां फूंकने के मामले में विधायक नारद राय की भूमिका की जांच के लिए चला हस्ताक्षर अभियान

भाकपा(माले), आईपीएस और रिहाई मंच के हस्ताक्षर अभियान के तीसरे दिन 500 से ज्यादा लोगों ने किया समर्थन।

वनांचल न्यूज नेटवर्क

बलिया। जिले के शिवपुर दीयर गांव में आगजनी और हिंसा के शिकार दलितों और आदिवासियों को न्याय दिलाने रिहाई मंच और भाकपा मामले समेत कई जनसंगठनों ने अभियान छेड़ दिया है। इन संगठनों के कार्यकर्ताओं ने आगजनी और हिंसा के लिए जिम्मेदार लोगों को दण्ड दिलाने के लिए इलाके में हस्ताक्षर अभियान शुरू कर दिया है जो 2 मई को जिले के दौरे पर आ रहे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को सौंपा जाएगा। हस्ताक्षर अभियान के तीसरे दिन स्थानीय रेलवे स्टेशन के पास करीब 500 लोगों ने हस्ताक्षर कर उनकी मांगों का समर्थन किया। संगठन के कार्यकर्ताओं का आरोप है कि सदर विधायक नारद राय और उनके समर्थकों ने दलितों की झोपड़ियों में आग लगाया और हिंसा की जिसमें दर्जनों लोग बुरी तरह से घायल हो गए और लाखों की सम्पत्ति का नुकसान हुआ।


रेलवे स्टेशन पर चलाए गए हस्ताक्षर अभियान में आज लगभग 500 लोगों ने अभियान के मांग पत्र से सहमति जताते हुए हस्ताक्षर किए। इस दौरान हुई सभा को सम्बोधित करते हुए इंडियन पिपुल्स सर्विसेज के अरविंद गोंड, भाकपा माले के लक्ष्मण यादव और रिहाई मंच के मंजूर आलम और डॉ अहमद कमाल ने स्टेशन पर एकत्रित लोगों से इस हस्ताक्षरा अभियान में बढ़-चढ़ कर शामिल होने का आह्वान किया। नेताओं ने कहा कि 2 मई को जिले के दौरे पर आ रहे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को शिवपुर दीयर के दलितों, आदिवासियों के घर जलाने वालों को पुलिस कप्तान मनोज कुमार झा और नारद राय द्वारा बचाने के आपराधिक कृत्य को उजागर करने वाला जांच रिपोर्ट भी सौंपा जाएगा। 

नेताओं ने कहा कि आगजनी और जानलेवा हमले से पहले ही 11 मार्च 2016 को पीडि़तों ने एसपी और डीएम को लिखित में सूचना दी थी कि दबंग उनको जिंदा जला देने की धमकी दे रहे हैं लेकिन पुलिस प्रशासन ने नारद राय के दबाव में काम करने के कारण फरियादियों की कोई मदद नहीं की। यहां तक कि घटना के बाद घटना स्थल पर पहुंचे एसपी ने खुद वहां से कारतूस के दो खोखे बरामद किए लेकिन एफआईआर में इस तथ्य को जानबूझ कर गायब कर दिया गया ताकि केस कमजोर हो जाए। नेताओं ने कहा कि समाजवाद के नाम पर वोट पाकर जीते सदर विधायक का अब तक अपराध स्थल तक नहीं जाना, पीडि़तों को मुआवजा नहीं मिलना साबित करता है कि सपा सरकार सवर्ण और सामंतों की हितों की रक्षा में अपने संवैधानिक कर्तव्य तक भूल गई है। 

उन्होंने कहा कि अपनी सभाओं में दिनेश लाल यादव निरहुआ जैसे अश्लील भोजपूरी गायकों के जरिए भीड़ इकठ्ठा करने वाले युवा मुख्यमंत्री को अपने विधायक के जुल्म से पीडि़त गोंड़, खरवार, पासी और पासवानों के घर भी जाना चाहिए जो खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर हैं। इस दौरान गोपाल जी खरवार, रोशन अली, सुरेश शाह, मनोज शाह, रंजीत कुमार गोंड़, सुशील गोंड़, भरत गोंड़, मिथिलेश पासवान, मुन्ना पासी, शिवशंकर खरवार, रामसेवक खरवार, चंद्रमा गोंड़, मनोज गोंड़ आदि प्रमुख रूप से मौजूद रहे।

शुक्रवार, 29 अप्रैल 2016

जेपी-बिड़ला की कारोबारी बिसात पर अखिलेश का सियासी दांव

जेएएल पिछले करीब आठ सालों से 2500 एकड़ से ज्यादा संरक्षित वन भूमि पर अवैध खनन और गैर-वानिकी गतिविधियां संचालित कर रही है और इसकी पुष्टि विंध्याचल मंडलायुक्त और केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की जांच रिपोर्टों में भी हो चुकी है। इसके बावजूद सूबे की सत्ता में पिछले चार सालों से काबिज अखिलेश सरकार ने इस मामले में कोई तत्परता नहीं दिखाई और ना ही उसने उन जांच रिपोर्टों पर कार्रवाई की। जब जेपी समूह ने डाला सीमेंट फैक्ट्री, जिसके अधीन विवादित करीब 2500 एकड़ वनभूमि वाले खनन-पट्टे आते हैं, को आदित्य बिड़ला समूह की अल्ट्रोटेक सीमेंट कंपनी को बेच दिया तो राज्य सरकार इस वनभूमि को वापस लेने के लिए तत्परता दिखा रही है...


जेपी पर मेहरबानी, बिड़ला की परेशानी

by शिव दास

त्तर प्रदेश में उद्योगपतियों का सियासी गठजोड़ नया रंग लेने लगा है। हाल ही में सत्ताधारी समाजवादी पार्टी सरकार के मुखिया अखिलेश यादव ने जेपी समूह को उत्तर प्रदेश राज्य सीमेंट निगम की जायजात के नाम पर दी गई 2500 एकड़ वनभूमि को उससे वापस लेने की घोषणा की। इस संबंध में उन्होंने उसे नोटिस जारी करने का दावा भी किया। पंचम तल में तैनात अधिकारियों के हवाले से मीडिया में आई खबरों पर यकीन करें तो राज्य सरकार इस मामले की जांच के लिए चार विभागों के प्रमुख सचिवों की जांच कमेटी बना रही है जो जेपी समूह को गलत ढंग से 2500 एकड़ वनभूमि देने के मामले की जांच करेगी और इसके लिए दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की संस्तुती भी करेगी। आगामी कुछ दिनों में इसकी अधिसूचना जारी होने की संभावना है। सोनभद्र में जेपी समूह की सहयोगी कंपनी जयप्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड (जेएएल) को गलत ढंग से करीब 2500 एकड़ वनभूमि आबंटित करने के मामले में राज्य की अखिलेश सरकार की यह तत्परता अनायास नहीं है। सर्वविदित है कि ऐसे मामलों में उद्योगपतियों का सियासी गठजोड़ काम करता है। इस मामले में भी कुछ ऐसा दिखाई दे रहा है। इसे समझने के लिए जेपी समूह की सहयोगी कंपनी जयप्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड और आदित्य बिड़ला समूह की सहयोगी कंपनी अल्ट्राटेक सीमेंट लिमिटेड के बीच हुए हालिया करारों पर गौर करने की जरूरत है।

जेपी समूह की गैर-कानूनी गतिविधियों के खिलाफ जुलूस निकालते डाला दलित बस्ती के लोग। (फाइल फोटो)

भारत की सबसे बड़ी सीमेंट कंपनी का दावा करने वाली अल्ट्राटेक सीमेंट लिमिटेड के कंपनी सचिव एसके चटर्जी ने 28 फरवरी 2016 को बीएसई लिमिटेड को पत्र लिखकर सूचना दी है कि कंपनी ने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में 22.4 एमटीपीए (मिलियन टन प्रति वर्ष) क्षमता वाली जयप्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड (जेपी सीमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड और जेपी पॉवर वेंचर्स लिमिटेड समेत) की कुल 12 सीमेंट इकाइयों के अधिग्रहण के समझौते (एमओयू) पर हस्ताक्षर किया है। इसमें सोनभद्र के डाला स्थित जयप्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड की 2.1 एमटीपीए क्लिंकर और 0.5 एमटीपीए सीमेंट उत्पादन क्षमता वाली एकीकृत डाला यूनिट के साथ कोटा स्थित 2.3 एमटीपीए क्लिंकर उत्पादन क्षमता वाली जेपी सुपर यूनिट (उत्पादनहीन) भी शामिल है। जेपी ग्रुप की महाप्रबंधक (कॉर्पोरेट कम्यूनिकेशन) मधु पिल्लई ने भी उक्त तिथि को जारी अपनी प्रेस रिलीज में इस बात की पुष्टि की है। सुश्री पिल्लई ने लिखा है कि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में कंपनी की 18.40 एमटीपीए क्षमता वाली उत्पादनरत इकाइयों के लिए अल्ट्राटेक सीमेंट लिमिटेड से कुल 16,500 करोड़ रुपये में करार हुआ है। इसके अलावा वह उत्तर प्रदेश में कार्यान्वयन की प्रक्रिया में फंसी एक ग्राइंडिंग यूनिट की मामला हल होने पर 470 करोड़ रुपये अलग से कंपनी को देगी। इस यूनिट का मामला खनिजों के खनन पट्टों के हस्तांतरण के नियमों की पेचिदगी की वजह से लटका पड़ा है जिसमें केंद्र सरकार संशोधन करने की तैयारी में है। 

उपरोक्त समझौते में ही सूबे की अखिलेश सरकार की तत्परता का राज छिपा है। हालांकि वह उच्चतम न्यायालय और राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) के दबाव और जेपी समूह द्वारा अवैध खनन करने का हवाला देकर इस सियासी राज को दबाये रखना चाहती है। मामले की जांच की आड़ में वह एक तरफ जेपी समूह को अधिग्रहण पूरा होने तक फायदा पहुंचाना चाहती है तो दूसरी ओर बिड़ला ग्रुप से उत्तर प्रदेश में अपना सियासी गठजोड़ साधना चाहती है। दरअसल अखिलेश सरकार जिस 2500 एकड़ वनभूमि को जेएएल से वापस लेने की घोषणा की है, वह अल्ट्राटेक सीमेंट लिमिटेड द्वारा अधिग्रहित की जाने वाली एकीकृत डाला सीमेंट फैक्ट्री और कोटा स्थित जेपी सुपर यूनिट से जुड़ी हुई है। इन इकाइयों के संचालन के लिए जरूरी लाइम स्टोन के खनन पट्टे अखिलेश सरकार द्वारा वापस ली जाने वाली वनभूमि पर ही स्थित हैं।  

अगर राज्य सरकार अपने दावे के अनुसार जेएएल से खनन पट्टों वाली कुल 2500 एकड़ वनभूमि वापस ले लेती है तो उसकी यह कार्रवाई बिड़ला ग्रुप की अल्ट्राटेक सीमेंट लिमिटेड के लिए परेशानी बन सकती है। अल्ट्राटेक को लाइम स्टोन के लिए अन्य प्रदेशों का रुख करना पड़ सकता है या फिर उसे इन खनन पट्टों को राज्य सरकार से नई शर्तों के साथ हासिल करना पड़ेगा जो आसान नहीं होगा। इन्हें हासिल करने के लिए उसे उच्चतम न्यायालय के साथ-साथ एनजीटी और केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय से अऩुमति लेनी होगी। साथ ही उसे एनपीवी के रूप में राज्य सरकार को अरबों रुपये देने होंगे।

दरअसल यह पूरा मामला उत्तर प्रदेश राज्य सीमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड (यूपीएससीसीएल) के अधीन चुर्क, डाला और चुनार सीमेंट फैक्ट्रियों की बिक्री और उसकी संपत्तियों के अधिग्रहण से जुड़ा हुआ है जो मिर्जापुर-सोनभद्र के जंगली और पहाड़ी इलाकों में स्थित हैं। नब्बे के दशक में कंपनी को करोड़ों रुपये का घाटा हुआ था। मामला उच्च न्यायालय पहुंचा। इसके आदेश पर 8 दिसंबर, 1999 को तीनों फैक्ट्रियों को बंद कर दिया गया और उनकी बिक्री के लिए ऑफिसियल लिक्विडेटर की तैनाती कर दी गई। वर्ष-2006 में यूपीएससीसीएल की संपत्तियों की वैश्विक निविदा में जय प्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड ने 459 करोड़ रुपये की सबसे बड़ी बोली लगाकर उसकी संपत्तियों को खरीद लिया। उच्च न्यायालय के आदेश की आड़ में उसने सूबे की सत्ता में काबिज नुमाइंदों और जिला प्रशासन की मिलीभगत से वनभूमि पर उत्तर प्रदेश राज्य सीमेंट निगम के नाम से आबंटित खनन पट्टों को गलत ढंग से अपने नाम करा लिया और उसपर कब्जा कर खनन करने लगा।

उद्योगपतियों और राजनीतिज्ञों के इस सियासी पैतरे को और बेहतर ढंग से समझने के लिए पूर्ववर्ती सपा सरकार के दौरान जेएएल को गलत ढंग से आबंटित की गई 1083.231 हेक्टेयर (करीब 2500 एकड़) वन भूमि की पूर्व जांच रिपोर्टों पर गौर करने की जरूरत है। विंध्याचल मंडल के तत्कालीन मंडलायुक्त सत्यजीत ठाकुर की ओर से गठित जांच कमेटी और केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के क्षेत्रीय कार्यालय (मध्य क्षेत्र), लखनऊ के तत्कालीन वन संरक्षक वाईके सिंह चौहान की जांच रिपोर्टें भी उक्त आरोपों की पुष्टि करती हैं।

उत्तर प्रदेश सरकार के राजस्व विभाग के प्रमुख सचिव के निर्देश पर विंध्याचल मंडल के तत्कालीन आयुक्त सत्यजीत ठाकुर ने वर्ष 2007 में इस मामले की जांच के लिए विंध्याचल मंडल के तत्कालीन अतिरिक्त आयुक्त (प्रशासन) डॉ. डीआर त्रिपाठी, वन संरक्षक आरएन पांडे और संयुक्त विकास आयुक्त एसएस मिश्रा की संयुक्त जांच टीम गठित की थी। टीम ने 16 जून 2008 को अपनी जांच रिपोर्ट मंडलायुक्त को सौंप दी। इसमें साफ लिखा है कि सोनभद्र में ओबरा वन प्रभाग के तत्कालीन वन बंदोबस्त अधिकारी वीके श्रीवास्तव द्वारा मकरीबारी, कोटा, पड़रछ और पनारी गांवों के सात मामलों में भारतीय वन अधिनियम की धारा-4 के तहत अधिसूचित 1083.231 हेक्टेयर वनभूमि को जेएएल के पक्ष में हस्तांतरित करने का आदेश गैरकानूनी और अमान्य है। इसके लिए वे पूर्णतया दोषी हैं। टीम ने जांच रिपोर्ट में उनके खिलाफ दण्डनात्मक एवं आपराधिक कार्रवाई करने की सिफारिश की है। इस संबंध में विंध्याचल मंडल के तत्कालीन अतिरिक्त आयुक्त जीडी आर्य ने विंध्याचल मंडल के प्रमुख वनसंरक्षक को पत्र लिखकर वीके श्रीवास्तव के खिलाफ आरोप-पत्र प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था लेकिन दोषी अधिकारी के खिलाफ आज तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।

केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के तत्कालीन वन संरक्षक (मध्य क्षेत्र) वाई.के. सिंह चौहान ने भी इस मामले में तत्कालीन मंडलायुक्त की जांच रिपोर्ट को सही ठहराया है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) के तत्कालीन सदस्य सचिव एमके जीवराजका को प्रेषित पत्र में लिखा है कि तत्कालीन वन बंदोबस्त अधिकारी वीके श्रीवास्तव ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के खिलाफ राजस्व अभिलेख में भारतीय वन अधिनियम-1927 की धारा-4 के तहत अधिसूचित वन भूमि के कानूनी स्वरूप को ही बदल दिया। इसके लिए उन्होंने एन गोडावर्मन थिरुमुल्कपाद बनाम भारत सरकार के मामले में उच्चतम न्यायालय के आदेश का हवाला दिया है। इसमें उच्चतम न्यायालय के तत्कालीन न्यायमूर्ति जेएस वर्मा और बीएन कृपाल की पीठ ने 12 दिसंबर, 1996 के फैसले में साफ कहा हैः

वन संरक्षण अधिनियम-1980 भविष्य में वनों की कटाई, जो पारिस्थितिकीय असंतुलन पैदा करता है, को रोकने की दृष्टि से लागू किया गया था। इसलिए वन संरक्षण और इससे जुड़े मामलों के लिए इस कानून के तहत बनाए गए प्रावधानों को स्वामित्व की प्रकृति या उसके वर्गीकरण की परवाह किए बिना लागू किया जाना चाहिए। वन शब्द को शब्दकोष में उल्लेखित उसके अर्थ के अनुसार ही समझा जाना चाहिए। यह व्याख्या कानूनी रूप से मान्य सभी वनों पर लागू होती है चाहे वे संरक्षित और सुरक्षित हों या फिर वन संरक्षण अधिनियम के खंड-2(1) के तहत हों। खंड-2 में उल्लेखित वन भूमि में शब्दकोष में उल्लेखित वन ही शामिल नहीं होगा, बल्कि इसमें स्वामित्व की परवाह किए बिना सरकारी दस्तावेजों में वन के रूप में दर्ज कोई भी क्षेत्र शामिल होगा।

वाईके सिंह चौहान ने अपनी जांच रिपोर्ट में लिखा है कि इस तरह गैर-वन भूमि में बदले जाने के बाद भी संरक्षित वन भूमि का कानूनी स्वरूप नहीं बदलेगा, लेकिन वीके श्रीवास्तव ने राजस्व अभिलेख में कोटा, पड़रछ और मकरीबारी गांवों में स्थित संरक्षित वन क्षेत्र की भूमि के कानूनी स्वरूप को परिवर्तित कर दिया है। राजस्व अभिलेख में वन भूमि के कानूनी स्वरूप का परिवर्तन केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के उस आदेश का भी उल्लंघन है जो उसने 17 फरवरी, 2005 को जारी किया था। इसमें साफ लिखा हैः

'केंद्र सरकार के पूर्व अनुमोदन के बिना राजस्व अभिलेखों में जंगल, झाड़ के रूप में दर्ज भूमि के कानूनी स्वरूप में परिवर्तन गैर-कानूनी और वन संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन है। संबंधित विभाग को निर्देशित किया जाता है कि वे तुरंत जंगल,झा़ड़, वन भूमि के कानूनी स्वरूप को बहाल करें।'

इतना ही नहीं, जेएएल सूबे की सत्ता में काबिज राजनीतिक पार्टियों के नुमाइंदों और जिला प्रशासन के आलाहुक्मरानों की मिलीभगत से संरक्षित वन क्षेत्र के साथ-साथ कैमूर वन्यजीव विहार के इलाकों में अपनी गैर-कानूनी गतिविधियों को अंजाम देता रहा। नेशनल बोर्ड ऑफ वाइल्डलाइफ ने भी इसकी पुष्टि की है। केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के नेशनल बोर्ड ऑफ वाइल्डलाइफ की स्थाई समिति ने सोनभद्र में जेएएल की कैप्टीव थर्मल पॉवर प्लांट की चारों ईकाइयों को अनापत्ति प्रमाण-पत्र देने के योग्य नहीं पाया। समिति की तत्कालीन सदस्य सचिव प्रेरणा बिंद्रा ने जेएएल के पॉवर प्लांट के प्रस्ताव को वन संरक्षण अधिनियम और पर्यावरण संरक्षण अधिनियम और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन बताया है। पॉवर प्लांट की ईकाइयों के निर्माण और संचालन के लिए केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने अभी तक अनापत्ति प्रमाण-पत्र भी जारी नहीं किया है। इसके बावजूद जय प्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड निर्माण कार्यों को जारी रखे हुए है और जिला प्रशासन मूक दर्शक की भूमिका निभा रहा है। 

जेएएल पिछले करीब आठ सालों से 2500 एकड़ से ज्यादा संरक्षित वन भूमि पर अवैध खनन और गैर-वानिकी गतिविधियां संचालित कर रही है और इसकी पुष्टि विभिन्न जांच रिपोर्टों में भी हो चुकी है। इसके बावजूद पिछले चार साल से सूबे की सत्ता में काबिज अखिलेश सरकार ने इस मामले में कोई तत्परता नहीं दिखाई और ना ही उसने विंध्याचल मंडलायुक्त और केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की रिपोर्टों पर कार्रवाई की। जब जेपी समूह ने डाला सीमेंट फैक्ट्री, जिसके अधीन विवादित करीब 2500 एकड़ वनभूमि वाले खनन-पट्टे आते हैं, को आदित्य बिड़ला समूह की अल्ट्रोटेक सीमेंट कंपनी को बेच दिया तो राज्य सरकार इस वनभूमि को वापस लेने के लिए तत्परता दिखा रही है। हालांकि उसकी यह तत्परता ईमानदारी से अपना मुकाम हासिल कर लेगी, कहना मुश्किल है।  

इसके बारे में जब वाईके सिंह चौहान, अब अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक (विकास) वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, झारखंड सरकार, से बात की गई तो उन्होंने कहा, आज यह खबर सुनकर बड़ी राहत मिली है। पूरी सर्विस के दौरान मैंने यह सबसे महत्वपूर्ण कार्य किया है। उद्योगपतियों ने साजिश रचकर वनभूमि को हड़प लिया है जो गरीबों और आदिवासियों के काम आता। इस मामले में स्थानीय जनता का भरपूर सहयोग मिला। जांच के दौरान उन्होंने एक-एक गाटे की सूचना और कागजात मुहैया कराये। इस मामले में राज्य सरकार के कुछ अधिकारियों ने जेपी समूह के एजेंट के रूप में कार्य किया है। उन्हें विंध्याचल मंडलायुक्त की जांच आख्या की संस्तुति के आधार पर दंड जरूर मिलना चाहिए। साथ ही इस मामले में लापरवाही बरतने वाले प्रशासनिक अधिकारियों के साथ-साथ वन-विभाग और राजस्व विभाग के अधिकारियों की भूमिका की भी जांच होनी चाहिए और उन्हें दण्डित किया जाना चाहिए। साथ ही जेपी समूह से जल्द से जल्द वनभूमि वापस लेकर उससे राजस्व क्षति की वसूली की जानी चाहिए।

वहीं अखिलेश सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट (आईपीएफ) के संयोजक अखिलेंद्र प्रताप सिंह कहते हैं कि जेपी समूह और समाजवादी पार्टी की नजदिकियां जगजाहिर हैं। इस फैसले में राज्य सरकार की ईमानदारी प्रतीत नहीं हो रही है। फिर भी सरकार जेपी समूह से जमीन वापस लेना चाहती है तो उसे जल्द से जल्द वापस ले लेना चाहिए और दोषियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करनी चाहिए लेकिन जिस प्रकार से जांच कमेटी गठित किये जाने की खबरें सामने आई हैं, वह यही दर्शाता है कि इस मामले में राज्य सरकार की मंशा साफ नहीं है। 


जेएएल की गैर-कानूनी गतिविधियों के खिलाफ लगातार करीब 128 दिन तक अनशन करने वाले भारतीय सामाजिक न्याय मोर्चा के अध्यक्ष चौधरी यशवंत सिंह ने कहा कि राज्य सरकार यह कदम एनजीटी और सीईसी के दबाव में उठा रही है। मुख्य सचिव के पास इसका कोई जवाब नहीं है। उन्होंने उच्चतम न्यायालय से माफी मांगी है। इसमें राज्य की सपा और बसपा सरकार के मुखिया के साथ-साथ कई प्रमुख सचिव स्तर के अधिकारी दोषी हैं। उनके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। अब इस मामले में जांच का कोई औचित्य नहीं है। मंडलायुक्त और सीईसी की जांच रिपोर्ट पर्याप्त है। उसके अनुसार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए। 

शुक्रवार, 22 अप्रैल 2016

उत्तर प्रदेश सरकार वापस लेगी जेपी समूह को आबंटित 4283 बीघा वन भूमि

कैबिनेट बाइ-सर्कुलेशन के जरिये भूमि वापस लेकर सरकार ने उसे वन विभाग को सौंपा।

वनांचल न्यूज़ नेटवर्क

लखनऊ। सोनभद्र में जेपी समूह की सहयोगी कंपनी जयप्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड (जेएएल) द्वारा ग्रामसभा और वन भूमि को लूटने की साजिश के खिलाफ वनांचल एक्सप्रेस की मुहिम रंग लाने लगी है। उत्तर प्रदेश सरकार ने सोनभद्र में जेएएल को गैर-कानूनी ढंग से आबंटित करीब 2500 एकड़ या 1083 हेक्टेयर (करीब 4283 बीघा) वन भूमि वापस लेने का फैसला किया है। इसके लिए राज्य सरकार ने उसे नोटिस जारी किया है। जेएएल को यह भूमि सोनभद्र प्रशासन की सांठगांठ से सूबे की सत्ता में काबिज राजनीतिक पार्टियों (पूर्व और वर्तमान) के नुमाइंदों ने उत्तर प्रदेश राज्य सीमेंट निगम की भूमि के नाम पर आबंटित की थी। इसकी आड़ में जेएएल जिला प्रशासन के भ्रष्ट नुमाइंदों के साथ सांठगांठ कर वनभूमि समेत ग्रामसभा की जमीनों पर अवैध निर्माण और खनन करा रहा था। सरकार ने कैबिनेट बाईसर्कुलेशन के जरिये यह जमीन वापस लेकर फिर से वन विभाग को सौंपने का फैसला किया है। 




गुरुवार, 14 अप्रैल 2016

अंबेडकर जयंती पर भाकपा (माले) ने किया मनु स्मृति के प्रतीक का दहन

वाराणसी में मनु स्मृति के प्रतीक को जलाते हुए भाकपा (माले) और आइसा के कार्यकर्ता।
वनांचल न्यूज नेटवर्क


वाराणसी। बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर की 125वीं जयंती की पूर्व संध्या के मौके पर भाकपा (माले) और उसके छात्र संगठन आइसा का कार्यकर्ताओं ने ब्राह्मणवादी व्यवस्था की कुरीतियों को मजबूती प्रदान करने वाली बहुचर्चित किताब मनुस्मृति की प्रतीक प्रति का दहन किया। इस दौरान वक्ताओं ने कहा कि केंद्र की मोदी सरकार संविधान को दरकिनार कर छात्रों का दमन कर रही है। साथ ही वह ऐसी नीतियों को लागू कर रही है जो आम जनता के हित में नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार बाबा भीमराव अंबेडकर की अगुआई में लिखित एवं लागू किये गए भारतीय संविधान को दरकिनार कर ब्राह्मणवाद की पोषक किताब मनुस्मृति में उल्लेखित कुरीतियों को लागू करना चाहती है जिसे मंजूर नहीं किया जाएगा। इस दौरान भाकपा (माले) के मनीष शर्मा, सरिता पटेल समेत दर्जनों कार्यकर्ता मौजूद रहे। 

बुधवार, 13 अप्रैल 2016

सीवर में हो रही मौतों को रोकने के लिए प्रधानमंत्री को अल्टीमेटम


भीम यात्रा ने पूरा किया ऐतिहासिक सफर। बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की 125वीं जयंती के एक दिन पूर्व देश की राजधानी में गूंजा देश देशभर के सीवर में हो रही मौतों का मुद्दा। मैला प्रथा के खात्मे को लेकर जंतर-मंतर पर हुआ प्रदर्शन।

By मुकुल सरल

नई दिल्ली। देश के विभिन्न सीवरों में हर दिन हो रही मौतों को तुरंत रोकने और देश भर से मैला प्रथा के खात्मे के लिए प्रधानमंत्री को एक महीने का अल्टीमेटम देकर सफाई कर्मचारी आंदोलन (एसकेए) की भीम यात्रा ने आज एक ऐतिहासिक चरण पूरा किया। बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की 125वीं जयंती के उपलक्ष्य में 125 दिन की राष्ट्रीय बस यात्रा के जरिये एसकेए ने सीधे-सीधे सीवर-सेप्टिक टैंक में हो रही मौतों को राजनीतिक हत्याएं कहा और तीखा सवाल पूछा-हमारा हत्यारा कौन है? देश के कोने-कोने से आए सफाई कर्मचारी आंदोलन के हजारों कार्यकर्ताओं ने इस मुद्दे को आगामी राष्ट्रीय राजनीति के एक निर्णायक मुद्दे के तौर पर पेश किया और ऐलान किया कि इस समस्या का हल किए बिना सभी सरकारें सिर्फ बाबा साहेब के नाम पर ढोंग कर रही हैं। बाबा साहेब की 125वी जयंती के उपलक्ष्य में एसकेए ने देश भर से 125 उन परिवारों के दुख को देश से साझा किया, जिनकी मौतें सीवर-सेपिटक टैंक में हुई थीं।

आज जंतर-मंतर पर हुए इस कार्यक्रम की शुरुआत ही उन महिलाओं और पुरुषों की वेदना से हुई, जिनके परिजनों ने सीवर-सेपिटक में जान गंवाई थी। चाहे वह बिहार के सहरसा इलाके की सुनी देवी का दुख हो या कर्नाटक की लक्ष्मी अमावस्य या चंढीगढ़ की संतोष या लखनऊ की सुनैना या बनारस की पिंकी और इनके साथ आई 125 महिलाएं और पुरुष सब अपने परिजनों को गटर में खोने का दुख सुनाने और इस दुख को इन हत्याओं को रोकने की शक्ति में बदलने के इरादे से आज आए थे।

बड़ी संख्या में सिविल सोसाएटी, प्रबुद्ध नागरिक, छात्र, न्यायविद्, अकादमिक आज भीम यात्रा के समर्थन में आए थे। दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व जज एपी शाह ने भी आकर अपना समर्थन जताया और कहा कि जब तक इस प्रथा का खात्मा नहीं होता, लोकतंत्र और बराबरी की लड़ाई अधूरी है। इस अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार पी.साईनाथ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार पर कटाक्ष करते हुए कहा कि माल्या जैसे लोगों को गरीब जनता के लाखों-करोड़ रुपये लेकर भाग जाने देते हैं लेकिन सफाई कर्मचारियों के जीवन को सुधारने, मैला प्रथा को खत्म करने और सीवर-सेप्टिक की सफाई को आधुनिक करने के लिए कुछ भी करने को तैयार नहीं है।

एसकेए के राष्ट्रीय संयोजक बेजवाड़ा विल्सन ने ऐलान किया कि ये मौतें राजनीतिक हत्याएं हैं और इन्हें अब समाज बर्दाश्त नहीं करेगा। बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर की सच्ची विरासत यही है कि इस बर्बर प्रथा के खात्मे के लिए काम किया जाए। आज केंद्र सरकार बाबा साहेब को उनकी असली विचारधारा से काटकर उन पर कब्जा करने की कोशिश कर रही है, जो बेहद खतरनाक है।
वरिष्ठ दलित लेखक आनंद तेलतुंडे ने भीम यात्रा को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि यह नई किस्म की राजनीति गढ़ रही है, जो सीधे ब्राह्मणवादी व्यवस्था को चुनौती दे रही है। भाकपा के सांसद डी.राजा ने बताया कि किस तरह से सफाई कर्मचारी आंदोलन ने सफलतापूर्वक मैला प्रथा की समाप्ति और सीवर-सेप्टिक टैंक में मौतों को राष्ट्रीय एजेंडा बनाया।

दिल्ली सरकार में परिवहन मंत्री गोपाल राय ने भी यह आश्वासन दिया कि वह दिल्ली को मैला प्रथा मुक्त करने और सीवर मौतों को रोकने के लिए काम करेंगे। एमकेएसएस की अरुणा राय ने कहा कि समाज को बदलने का काम भीम यात्रा शुरू कर चुकी है और इसे आगे बढ़ाना हम सबकी जिम्मेदारी है।


इस मौके पर बड़ी संख्या में सिविल सोसोएटी के लोग आए और उन्होंने इस मुद्दे के साथ मिलकर आगे लड़ने की घोषणा की। इनमें एमनेस्टी इंटरनेशनल के आकार पटेल, एशिया दलित राइट्स के पॉल दिवाकर, विमल थोरात, कमला भसीन, वृंदा ग्रोवर, हर्ष मंदर, उषा रमानाथन, इंदु प्रकाश, अपराजिता राजा, नीलाभ मिश्रा, पत्रकार भाषा सिंह, संजीव चंदन, पंकज बिष्ट, मैत्रेयी पुष्पा, अनुराधा, अजय सिंह, राजकुमार, वेद प्रकाश, नौरती बाई आदि ने संबोधित किया।

आपकी बेरुख़ी तोड़ देगी पत्रकारों का दिल

लोकतंत्र में जागरूक नागरिक बनना एक मुश्किल काम है। आई आई टी के लिए तैयारी करने से भी ज़्यादा अध्ययन की ज़रूरत पड़ती है। जलेबी का रस और समोसे का तेल सोखने के काम आने वाले अख़बारो को पढ़ने से कोई फायदा नहीं। आपको देखना चाहिए कि उन अख़बारों में ऐसी पत्रकारिता के लिए कोई जगह भी है या कभी आपने इस तरह की खोजी पत्रकारिता देखी भी है, जिसमें दुनिया भर कई सैंकड़ों पत्रकार दिन रात लगे हों। मुल्क की सीमाएँ और संगठन की दीवारें ध्वस्त हो गईं हों...


क्या आप बिल्कुल ही पनामा पेपर्स से उजागर हो रहे कारनामों को समझ नहीं पा रहे हैं? अंग्रेजी दैनिक अख़बार 'इंडियन एक्सप्रेस' ने पिछले दिनों एक ही विषय पर लंबी लंबी कई रपटें प्रकाशित कीं। यह भी हो सकता है कि वक्त की कमी के कारण आप पनामा पेपर्स को समय नहीं दे पा रहे हों। दुनिया के कई देशों के अख़बारों में उनके यहां के कारनामों के बारे में इसी तरह रिपोर्ट छप रही है। पनामा पेपर्स को अब तक सबसे बड़ा (लीक्स) खुलासा बताया गया है। हालांकि ख़ुलासा सही शब्द नहीं है क्योंकि खुलासा का मतलब होता है ज़रा सा बताना लेकिन हिन्दी मीडिया के चलन में ख़ुलासा ठीक उल्टा मतलब के लिए इस्तमाल होने लगा है यानी सब कुछ बता देना।

कई बार ऐसे जटिल आर्थिक विषयों के प्रति उदासी समझ आती है। मैं ख़ुद अपनी अयोग्यता और अकुशलता के कारण ऐसे तमाम विषयों में हाथ डालने से बचता हूं लेकिन इस बार थोड़ा-थोड़ा करने समझने का प्रयास किया कि मामला क्या है। एक आम पाठक को क्यों इसमें दिलचस्पी लेनी चाहिए और इसके बारे में बात करनी चाहिए। हमारे उद्योगपति निवेश के नाम पर पैसे का किस तरह इस्तमाल करते हैं, कहां से पैसा लाते हैं और किस किस को मदद करते हैं, इन सबकी हमें मामूली जानकारी भी नहीं होती। सबकुछ कानून और रसूख की बंद दीवारों के भीतर होता है । भावावेश में आकर हम कई बार उन्हें या तो चोर कह देते हैं या कई बार कुछ कह पाने की स्थिति में ही नहीं होते। दोनों ही मामले में ख़ुद को जागरूक नागरिक समझने का भ्रम पालने वालों के लिए ये उदासी ख़तरनाक साबित हो सकती है।

अमरीका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने पनामा पेपर्स के खुलासे के दो दिन बाद कहा है कि टैक्स चोरी से बचने के ये तरीके दुनिया भर के लिए समस्या हैं। इनमें से बहुत से खाते और कंपनियां कानूनी हैं मगर समस्या तो यही है। ऐसा नहीं है कि इन लोगों ने कानून तोड़े हैं बल्कि समस्या ये है कि ऐसे कानून ही क्यों हैं। भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर ने कहा है कि कुछ खाते वैध भी हो सकते हैं लेकिन हम जांच करेंगे। भारत सरकार ने भी इसकी जांच के लिए कई एजेंसियों को जिम्मा सौंपा है। पाकिस्तान में भी इसकी न्यायिक जांच की घोषणा हो गई है। नार्वे से लेकर आस्ट्रेलिया तक में जांच होने लगी है।

मेरे ख़्याल से राष्ट्रपति ओबामा का बयान वैध अवैध की सीमा से आगे जाकर यह कह रहा है कि ऐसे नियम ही क्यों बने हैं। जहां लोग कानूनी तरीके से कागज़ी कंपनियां बनाते हैं, उनमें निदेशक बनते हैं, कई बार आम लोगों से भी शेयर के ज़रिये पैसा बटोरते हैं, कई बार दलाली से लेकर हथियार सौदे का पैसा लगाकर काले धन को कानूनी कर देते हैं। पनामा पेपर्स में जिन दो लाख से अधिक कंपनियों के नाम आए हैं। वो कंपनियां कानूनी तरीके से बनाई गईं होंगी मगर क्या उनमें लगे पैसे भी कानूनी रूप से ही कमाये गए होंगे। इसके लिए कंपनी बनाने और निवेश के नियमों की समझ ज़रूरी है मगर यह जानकारी न भी हो तो एक एंगल से मामले को आसानी से समझा जा सकता है।

पनामा पेपर्स के एक करोड़ से भी अधिक दस्तावेज़ कंपनी के चालीस साल के कारनामों के हिसाब हैं। यह दस्तावेज़ हैं मोज़ाक फोंसेका कंपनी के। यह कंपनी दुनिया भर के तमाम राष्ट्र प्रमुखों, नेताओं, कारोबारियों और मशहूर हस्तियों के पैसे का बंदोबस्त करने के लिए काग़ज़ी कंपनियां खुलवाती है और उनमें निवेश करवाती है। फोंसेका का दावा है कि वो यह काम कानूनी तरीके से करती है। फोंसेका अपने ग्राहकों के बारे में नहीं जानती क्योंकि ये ग्राहक उस तक मशहूर बैंकों के ज़रिये पहुंचते हैं। ऐसा भी पता चला है कि बड़े बैंक और फोंसेका मिलकर इधर-उधर का गेम खेलते हैं। ग्राहक अपना पैसा लेकर बैंक के पास पहुंचता है और बैंक उस पैसे को ठिकाने लगाने के लिए फोंसेका की मदद से कंपनी खुलवा देते हैं। बकायदा इसके प्रमाण हैं। पनामा पेपर्स से पहले ही ये पहलू साबित हो चुका है। अब हम प्रयास करेंगे कि मोज़ाक फोंसेका नाम की कंपनी के ज़रिये इस मामले के नैतिक और कानूनी पहलू को समझा जाए।

एक बार जब आप फोंसेका के ग्राहकों की वेरायटी जान लेंगे तब आपको पता चलेगा कि आतंक से लड़ने के नाम पर और बिजनेस बढ़ाने के नाम पर आपको कैसे उल्लू बनाया जा रहा है। यह सही हो सकता है कि फोंसका ने कई उद्योगपतियों के लिए कानूनी तरीके से कंपनियां खुलवाने में मदद की जहां वे निवेश कर सके या अपना पैसा रख सके। हम और आप भी टैक्स बचाते हैं लेकिन हम छिपा कर नहीं बचाते हैं। हम उसके लिए जीवन बीमा खरीदते हैं या मकान ख़रीदते हैं। क्या इन उद्योपतियों को कानून ने इजाज़त दी है कि वे अपना टैक्स बचाने के लिए पनामा में कंपनी खोल सकते हैं? कंपनी खोली भी तो क्या सबने अपने अपने देश में उनकी जानकारी दी? वेबसाइट पर बताया? अपने शेयरधारकों को बताया?

पनामा पेपर्स से पता चलता है कि मोज़ाक फोंसेका नाम की कानूनी सहायता प्रदान करने वाली कंपनी ने ऐसी कंपनी आतंकवादी संगठनों की मदद करने वाले, ड्रग माफिया से लेकर बैंक लुटेरों और यहां तक कि दाऊद इब्राहीम के पैसे को ठिकाने लगाने में मदद की। फोंसेका एक ऐसी दुकान है जहां एक कानून का पालन करने वाला अमीर उद्योगपति भी जाने का दावा करता है, जहां कोई आतंकवादी संगठन से जुड़ा हुआ अपना पैसा लेकर चला जाता है, ड्रग माफिया भी चला जाता है। फिर भी आप इतनी आसानी से मान ले रहे हैं कि इस खुलासे में तो कुछ भी नहीं हुआ। दुनिया भर के 370 पत्रकार बेकार में ही साल भर तक इन लाखों पन्नों को पलटते रहे और अपने अपने मुल्कों में छानबीन करते रहे।

सीरीया में युद्ध चल रहा है। इस युद्ध में कई देश शामिल हैं और सबने सीरीया पर प्रतिबंध लगाये हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि राष्ट्रपति असद ने अपने नागरिकों की हत्या करवाई है। अब जब प्रतिबंध लग गया है तो फिर फोंसेका सीरीया को तेल और गैस सप्लाई करने के लिए बेनामी कंपनी खुलवाने में कैसे मदद कर सकती है। इस सीरीया संकट से खतरनाक आतंकी संगठन आई एस आई एस का उभार हुआ है जिससे दुनिया तंग है। अब जब ये देश इतनी संजीदगी से आतंक के खिलाफ लड़ने का राष्ट्रीय प्रसारण करते हैं तो उन्हें ये बात कैसे पता नहीं चली कि कुछ लोग हैं जो कंपनी बनाकर सीरीया को तेल और गैस सप्लाई कर रहे हैं। ये तेल और गैस क्या एक आदमी के सपने से सीराया के राष्ट्रपति के सपने में ट्रांसफर हो जाते होंगे। जाते तो किसी रास्ते से ही होंगे न तो क्या वो भी नहीं दिखता है।  रूस के राष्ट्रपति ने भी पिछले साल आरोप लगाया था कि आतंकी संगठन के साथ कई देश कारोबार कर रहे हैं। ये खेल चल रहा है आतंक को लेकर। और इस खेल में आम आदमी कहीं हिन्दू मुस्लिम के एंगल से भिड़ा हुआ है तो कहीं इस्लामी आतंक के एंगल से। सीरीया की मददगार कोई एक कंपनी नहीं है बल्कि कई कंपनियों का नेटवर्क है।

और तो और इनमें से तीन कंपनियां ऐसी हैं जिन पर अमरीकी कानून के तहत प्रतिबंध भी लगा हुआ है। इन्हीं में से एक कंपनी के लिए मोज़ाक फोंसेका ने काम भी किया है। अमरीका के अपने रिकार्ड कहतेहैं कि 334 लोगों और कंपनियों के साथ मोज़ाक फोंसेका ने काम किया है। अमरीकी दस्तावेज़ों के मुताबिक पश्चिम एशिया में सक्रिय आतंकवादियों और युद्ध अपराधियों के संदिग्ध साहूकारों( फाइनेन्सर्स) के लिए काग़ज़ी कंपनी बनाकर मोज़ाक फोंसेका ने पैसे कमाए हैं।

हैं न कमाल का खेल ये। अगर कोई उद्योगपति या वकील सही तरीके से कंपनी खोलकर इंग्लैंड और जर्मनी में निवेश कर सकता है तो क्या आप या हम ये मान लें कि इन देशों में बिजनेस करने का एकमात्र रास्ता यही है कि आप पहले पनामा या ब्रिटिश वर्जीन आइलैंड जाकर काग़ज़ी कंपनी बनाए, इन कंपनियों में ऐसे निदेशक रखें जिनके नाम के आगे दिए गए पते पर पहाड़गंज या मुंबई के चाल में रहने वाले ग़रीब लोग रहते हो। ऐसा कैसे हो सकता है कि फोंसेका एक सही कारोबारी के लिए काम करती है और आतंकवादी के लिए भी। काग़ज़ पर कंपनी खुले और फिर बंद हो जाए, पैसा डाला जाए और निकाल कर कहीं और लगा दिया जाए इसमें कुछ ग़लत ही नहीं है। वाह रे दुनिया।

बुधवार के इंडियन एक्सप्रेस में खबर छपी है कि बाहर की एक कंपनी को भारतीय नोट छापने का ठेका चाहिए। कंपनी ने दिल्ली में रहने वाले किसी व्यक्ति को संपर्क किया कि आपको करोड़ों देंगे। इस व्यक्ति ने ठेके दिलवा दिये और उसे पैसे देने के लिए बाहर वाली कंपनी ने दिल्ली वाले सज्जन के लिए एक कंपनी बनवा दी। कंपनी बनाई फोंसेका ने और सज्जन जी को करोड़ों रुपये मिल गए। फिर भी हंगामा नहीं। एक नागरिक के तौर पर ऐसी उदासीनता इसलिए ठीक नहीं है कि नेता का नाम नहीं आया। क्या आप ठीक ठीक जानते हैं कि इस खेल में शामिल कंपनियां सभी प्रकार के दलों की आर्थिक मदद नहीं करती होंगी. ये उद्योगपति या कारोबारी इन नेताओं के फ्रंट नहीं होंगे।

लोकतंत्र में जागरूक नागरिक बनना एक मुश्किल काम है। आई आई टी के लिए तैयारी करने से भी ज़्यादा अध्ययन की ज़रूरत पड़ती है। जलेबी का रस और समोसे का तेल सोखने के काम आने वाले अख़बारो को पढ़ने से कोई फायदा नहीं। आपको देखना चाहिए कि उन अख़बारों में ऐसी पत्रकारिता के लिए कोई जगह भी है या कभी आपने इस तरह की खोजी पत्रकारिता देखी भी है, जिसमें दुनिया भर कई सैंकड़ों पत्रकार दिन रात लगे हों। मुल्क की सीमाएँ और संगठन की दीवारें ध्वस्त हो गईं हों।

यह सवाल पाठक के तौर पर आपको खुद से करना है कि ट्रैक्टर ट्राली के टक्कर की ख़बरें पढ़ने के लिए आप महीने का तीन सौ चार सौ रुपया क्यों देते हैं? ये अख़बार ट्रैक्टर ट्राली के टक्कर की ख़बरों में मारे गए लोगों से इंसाफ भी नहीं करते। बस किसी कोने में छाप देते हैं जिन्हें हम अपनी ज़ुबान में ख़बर लगाना कहते हैं। खासकर हिन्दी के अख़बारों में आपने ख़बरों के प्रकाशन की परंपरा देखी है ? न्यूज़ चैनलों में ऐसी परंपरा देखी है? नहीं देखी है तो उनसे पूछा क्यों नहीं है। इसीलिए पनामा पेपर्स से जो उजागर हो रहा है उसके साथ साथ एक पाठक के तौर पर भी आप भी उजागर हो रहे हैं। जिसे अंग्रेज़ी में एक्सपोज़ होना कहते हैं।  कहीं आप एक आलसी और लापरवाह पाठक तो नहीं हैं। अपनी बेरूख़ी से ये ज़ाहिर न करें कि मेहनत से की गई पत्रकारिता के कद्रदान आप नहीं हैं। पाठक कद्र नहीं करेंगे तो पत्रकारों का दिल टूट जाएगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार  हैं। इन दिनों वह एनडीटीवी इंडिया में  सीनियर एक्ज़ेक्यूटिव एडिटर पद पर कार्यरत हैं। यह लेख उनके ब्लॉग 'कस्बा' से लेकर प्रकाशित किया जा रहा है ताकि आप भी उनकी नज़रों से अंग्रेजी दैनिक 'इंडियन एक्सप्रेस' के 'पनामा पेपर लीक्स' के महत्व को समझ सकें।- संपादक)

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