Reader's Voice

‘सबका साथ-सबका विकास’ को चुनौती देती फुटपथिया जिंदगी


लोकसभा चुनाव-2014 में ‘सबका साथ-सबका विकास’ का नारा जोर-शोर से लगाया गया। सही मायने में लोकतंत्र के लिए यह सार्थक नारा था लेकिन यह प्रासंगिक तभी होता जब सरकार की नजर-ए-इनायत हर वर्ग पर हो। इन वर्गों में फुटपाथ पर रहने वाले लोग भी शामिल हैं जो अपने परिवार के साथ दो वक्त की रोटी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। मौसम का बदलाव उनके लिए मुसीबतों का पहाड़ लेकर आता है लेकिन वे लोग हारे नहीं हैं। वे लड़ रहे हैं अपने प्रारब्ध से, अपने सपनों से कि शायद कभी उनके हिम्मत की कीमत अदा होगी।

हिन्दुस्तान अपनी स्वतंत्रता की 67वीं वर्षगांठ मना चुका है लेकिन फुटपाथ के बाशिंदों की तरफ किसी भी सरकार का ध्यान नहीं गया। अगर किसी सरकार ने उनकी तरफ ध्यान दिया होता तो उनसे जुड़े व्यवसाय को हम राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिला सकते थे। वे अपने जीवन निर्वाह में किसी न किसी हस्तकौशल कला को अपनाते हैं। अगर उनकी कौशल कला को आधुनिकता से जोड़ा जाए और उनके यथास्थान (झोपड़ियों) को थोड़ा आधुनिक बना दिया जाए तो फुटपाथ की जिंदगी सीधे बाजार से जुड़ जाएगी। इससे हस्तशिल्प को मजबूत आधार मिलेगा, यह कठिन होगा लेकिन असंभव नहीं क्योंकि जहां चाह होती है, वहां राह होती है। उनकी नागरिकता एक समस्या हो सकती है लेकिन उनके जीवकोपार्जन को आधार देना गलत नहीं होगा क्योंकि यह वर्ग एक लंबे समय से देश के विभिन्न फुटपाथों पर गुजर-बसर कर रहा है। इसलिए इनके बारे में सरकार को गंभीरता से विचार करना चाहिए। इस वर्ग को विकास में शामिल किए बिना ‘सबका साथ-सबका विकास’ की प्रासंगिकता सिर्फ उपहास है। जो देश मंगल पर यान भेजने का दंभ भरता है, उसका एक वर्ग फुटपाथ पर खस्ताहाल जिंदगी व्यतीत करे, यह चांद में धब्बे के समान होगा।

मेरे पास फुटपाथ पर रहने वालों का कोई निश्चित आंकड़ा नहीं है और ना ही मैं देना चाहता हूं क्योंकि आज वक्त उनसे भावनात्मक रूप से जुड़ने का है। समाजवाद से भारतीय लोकतंत्र की परिभाषा को पूर्ण करने का है। मैं यह नहीं कहता कि उनको वातानुकूलित मकान दिया जाए लेकिन उन्हें जीवन व्यतीत करने लायक घर जरूर दिया जाए जहां जाने में उनके उपभोक्ताओं को शर्म महसूस ना हो। थोड़ा-सा प्रशिक्षण और थोड़ा कायाकल्प उनकी जिंदगी समाज से जोड़ सकता है। उनके कार्यों से राष्ट्रीय आय समृद्ध हो सकती है। मैं सरकार से अपील करना चाहता हूं कि फूटपाथ पर जिंदगी बसर करने वालों के लिए एक मॉडल तैयार करे जिसमें पूरे देश में क्षेत्रीय स्तर पर कार्य शुरू करने की योजना हो। सही मायने में यह एक श्रेष्ठ भारत की दिशा में सरकार द्वारा उठाया गया कदम होगा।        - मनीष कुमार सिंह, ग्राम- गौरही, पोस्ट-सुकृत, जिला-सोनभद्र, मोबाईल संख्या-9792587550 



वनांचल एक्सप्रेस में राष्ट्रीय साहित्यिक और सांस्कृतिक पत्रिकाओं जैसी सामग्री

नांचल एक्सप्रेस का अंक-22, 23, 24 और 25 पढ़ा। इस साप्ताहिक समाचार-पत्र में राजनैतिक समाचारों सहित दक्षिणांचल में स्थापित कल कारखानों, विस्थापितों और उनके परिवारों के दुःख दर्द तथा जिला स्तर पर लाल फीताशाही की नाकामियों से लबरेज समाचार अत्यंत पठनीय और संग्रहणीय हैं। विभिन्न शीर्षकों, जैसे रिलायंस पॉवर खरीदेगी जेपी समूह की पनबिजली परियोजनाएं, तहसील दिवस में निस्तारित मामलों की जांच के लिए समिति गठित, राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस में बिखराव, पाठ्यक्रम में शामिल होगा लैंगिक जागरूकता पाठ आदि से लेखन पाठकों की रुचि और सामयिक आवश्यकता से संदर्भित विषय सामग्री अत्यंत काबिल-ए-गौर है। अखबार किसी क्षेत्र विशेष का आईना होता है। स्थानीय जन उसी माध्यम से अपनी जरूरतों, समस्याओं और क्षेत्र की कमियों पर एक राय बनाकर संघर्ष की राह में कदम बढ़ाते हैं। कहा भी गया है, न तेग चलाओ, न तलवार निकालो, जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो।

अखबार में विभिन्न समस्याओं के साथ साहित्यिक समाचार और लेख साहित्यकार समाज की रुचि के भी होते हैं। स्टाल पर बिकने वाली राष्ट्रीय साहित्यिक और सांस्कृतिक पत्रिकाओं में जो वैचारिक आलेख पढ़ने को मिलते हैं, उन जैसी सामग्री हिन्दी साप्ताहिक समाचार-पत्र वनांचल एक्सप्रेस में पढ़ा जा सकता है। अमीर बनने का विचार भ्रष्टाचार का स्रोत’, इंसान और ईमान का नरक कुंड’, कहेले भिखारी नाई, सुन भोजपुरिया भाई शीर्षक से प्रकाशित लेखों के साथ-साथ अनिल चमड़िया और तुलसी राम के आलेख दलित चिंतन के प्रतिनिधि विषय वस्तु हैं।

एक अरसे के बाद वनांचल एक्सप्रेस समाचार-पत्र श्री शिव दास प्रजापति जी के संपादन में प्रकाशित हो रहा है। इससे पूर्व लाईट ऑफ मीरजापुर’, गिरिद्वार’, घाटी का दर्द आदि साप्ताहिक और पाक्षिक हिन्दी समाचार-पत्र प्रकाशित होते रहे हैं जो क्षेत्रीय समस्याओं को प्राथमिकता के आधार पर उठाते रहे हैं। क्षेत्रीय प्रतिनिधि भी उनके समाधान तलाशते थे। इस वनांचल एक्सप्रेस की भी आमजन में कुछ उसी तरह की भावना बनेगी, अगर नहीं तो बननी चाहिए, यह समय की मांग है। अंत में भाई शिव दास प्रजापति को साधुवाद कि वह अखबार निकालने के जोखिम से खुद को नहीं बचा पाए क्योंकि यह लाभकारी व्यवसाय नहीं है।

                  
              - अमर नाथअजेय, वार्ड-9, नई बस्ती, रॉबर्ट्सगंज, सोनभद्र, उ.प्र. (मो. – 8009388018)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Thank you for comment