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रविवार, 2 जुलाई 2017

खबर का असरः हटाये गए प्रभुराम चौहान, राज शेखर सिंह बने सोनभद्र के जिला विद्यालय निरीक्षक

प्रभु राम चौहान
फर्जी दस्तावेजों के आधार पर हाईस्कूल की मान्यता हासिल करने वाले विद्यालयों की जांच में हीलाहवाली पर केंद्रित वनांचल एक्सप्रेस की रिपोर्टों पर शासन ने गिराई गाज। जिला विद्यालय निरीक्षक प्रभुराम चौहान प्रतिक्षारत।  
वनांचल न्यूज़ नेटवर्क
इलाहाबाद। सोनभद्र के जिला विद्यालय निरीक्षक कार्यालय में फैले भ्रष्टाचार और अनियमितता पर केंद्रित वनांचल एक्सप्रेस की रिपोर्टों पर शासन ने कड़ा रुख अपनाया है। शासन ने प्रभुराम चौहान को सोनभद्र के जिला विद्यालय निरीक्षक पद से हटाकर प्रतिक्षारत कर दिया है और उनकी जगह राज शेखर सिंह को सोनभद्र के जिला विद्यालय निरीक्षक पद पर नई तैनाती दी है। राज शेखर सिंह अभी इलाहाबाद स्थित शिक्षा निदेशालय में सहायक शिक्षा निदेशक पद पर तैनात हैं।

शुक्रवार, 29 अप्रैल 2016

जेपी-बिड़ला की कारोबारी बिसात पर अखिलेश का सियासी दांव

जेएएल पिछले करीब आठ सालों से 2500 एकड़ से ज्यादा संरक्षित वन भूमि पर अवैध खनन और गैर-वानिकी गतिविधियां संचालित कर रही है और इसकी पुष्टि विंध्याचल मंडलायुक्त और केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की जांच रिपोर्टों में भी हो चुकी है। इसके बावजूद सूबे की सत्ता में पिछले चार सालों से काबिज अखिलेश सरकार ने इस मामले में कोई तत्परता नहीं दिखाई और ना ही उसने उन जांच रिपोर्टों पर कार्रवाई की। जब जेपी समूह ने डाला सीमेंट फैक्ट्री, जिसके अधीन विवादित करीब 2500 एकड़ वनभूमि वाले खनन-पट्टे आते हैं, को आदित्य बिड़ला समूह की अल्ट्रोटेक सीमेंट कंपनी को बेच दिया तो राज्य सरकार इस वनभूमि को वापस लेने के लिए तत्परता दिखा रही है...


जेपी पर मेहरबानी, बिड़ला की परेशानी

by शिव दास

त्तर प्रदेश में उद्योगपतियों का सियासी गठजोड़ नया रंग लेने लगा है। हाल ही में सत्ताधारी समाजवादी पार्टी सरकार के मुखिया अखिलेश यादव ने जेपी समूह को उत्तर प्रदेश राज्य सीमेंट निगम की जायजात के नाम पर दी गई 2500 एकड़ वनभूमि को उससे वापस लेने की घोषणा की। इस संबंध में उन्होंने उसे नोटिस जारी करने का दावा भी किया। पंचम तल में तैनात अधिकारियों के हवाले से मीडिया में आई खबरों पर यकीन करें तो राज्य सरकार इस मामले की जांच के लिए चार विभागों के प्रमुख सचिवों की जांच कमेटी बना रही है जो जेपी समूह को गलत ढंग से 2500 एकड़ वनभूमि देने के मामले की जांच करेगी और इसके लिए दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की संस्तुती भी करेगी। आगामी कुछ दिनों में इसकी अधिसूचना जारी होने की संभावना है। सोनभद्र में जेपी समूह की सहयोगी कंपनी जयप्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड (जेएएल) को गलत ढंग से करीब 2500 एकड़ वनभूमि आबंटित करने के मामले में राज्य की अखिलेश सरकार की यह तत्परता अनायास नहीं है। सर्वविदित है कि ऐसे मामलों में उद्योगपतियों का सियासी गठजोड़ काम करता है। इस मामले में भी कुछ ऐसा दिखाई दे रहा है। इसे समझने के लिए जेपी समूह की सहयोगी कंपनी जयप्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड और आदित्य बिड़ला समूह की सहयोगी कंपनी अल्ट्राटेक सीमेंट लिमिटेड के बीच हुए हालिया करारों पर गौर करने की जरूरत है।

जेपी समूह की गैर-कानूनी गतिविधियों के खिलाफ जुलूस निकालते डाला दलित बस्ती के लोग। (फाइल फोटो)

भारत की सबसे बड़ी सीमेंट कंपनी का दावा करने वाली अल्ट्राटेक सीमेंट लिमिटेड के कंपनी सचिव एसके चटर्जी ने 28 फरवरी 2016 को बीएसई लिमिटेड को पत्र लिखकर सूचना दी है कि कंपनी ने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में 22.4 एमटीपीए (मिलियन टन प्रति वर्ष) क्षमता वाली जयप्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड (जेपी सीमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड और जेपी पॉवर वेंचर्स लिमिटेड समेत) की कुल 12 सीमेंट इकाइयों के अधिग्रहण के समझौते (एमओयू) पर हस्ताक्षर किया है। इसमें सोनभद्र के डाला स्थित जयप्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड की 2.1 एमटीपीए क्लिंकर और 0.5 एमटीपीए सीमेंट उत्पादन क्षमता वाली एकीकृत डाला यूनिट के साथ कोटा स्थित 2.3 एमटीपीए क्लिंकर उत्पादन क्षमता वाली जेपी सुपर यूनिट (उत्पादनहीन) भी शामिल है। जेपी ग्रुप की महाप्रबंधक (कॉर्पोरेट कम्यूनिकेशन) मधु पिल्लई ने भी उक्त तिथि को जारी अपनी प्रेस रिलीज में इस बात की पुष्टि की है। सुश्री पिल्लई ने लिखा है कि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में कंपनी की 18.40 एमटीपीए क्षमता वाली उत्पादनरत इकाइयों के लिए अल्ट्राटेक सीमेंट लिमिटेड से कुल 16,500 करोड़ रुपये में करार हुआ है। इसके अलावा वह उत्तर प्रदेश में कार्यान्वयन की प्रक्रिया में फंसी एक ग्राइंडिंग यूनिट की मामला हल होने पर 470 करोड़ रुपये अलग से कंपनी को देगी। इस यूनिट का मामला खनिजों के खनन पट्टों के हस्तांतरण के नियमों की पेचिदगी की वजह से लटका पड़ा है जिसमें केंद्र सरकार संशोधन करने की तैयारी में है। 

उपरोक्त समझौते में ही सूबे की अखिलेश सरकार की तत्परता का राज छिपा है। हालांकि वह उच्चतम न्यायालय और राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) के दबाव और जेपी समूह द्वारा अवैध खनन करने का हवाला देकर इस सियासी राज को दबाये रखना चाहती है। मामले की जांच की आड़ में वह एक तरफ जेपी समूह को अधिग्रहण पूरा होने तक फायदा पहुंचाना चाहती है तो दूसरी ओर बिड़ला ग्रुप से उत्तर प्रदेश में अपना सियासी गठजोड़ साधना चाहती है। दरअसल अखिलेश सरकार जिस 2500 एकड़ वनभूमि को जेएएल से वापस लेने की घोषणा की है, वह अल्ट्राटेक सीमेंट लिमिटेड द्वारा अधिग्रहित की जाने वाली एकीकृत डाला सीमेंट फैक्ट्री और कोटा स्थित जेपी सुपर यूनिट से जुड़ी हुई है। इन इकाइयों के संचालन के लिए जरूरी लाइम स्टोन के खनन पट्टे अखिलेश सरकार द्वारा वापस ली जाने वाली वनभूमि पर ही स्थित हैं।  

अगर राज्य सरकार अपने दावे के अनुसार जेएएल से खनन पट्टों वाली कुल 2500 एकड़ वनभूमि वापस ले लेती है तो उसकी यह कार्रवाई बिड़ला ग्रुप की अल्ट्राटेक सीमेंट लिमिटेड के लिए परेशानी बन सकती है। अल्ट्राटेक को लाइम स्टोन के लिए अन्य प्रदेशों का रुख करना पड़ सकता है या फिर उसे इन खनन पट्टों को राज्य सरकार से नई शर्तों के साथ हासिल करना पड़ेगा जो आसान नहीं होगा। इन्हें हासिल करने के लिए उसे उच्चतम न्यायालय के साथ-साथ एनजीटी और केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय से अऩुमति लेनी होगी। साथ ही उसे एनपीवी के रूप में राज्य सरकार को अरबों रुपये देने होंगे।

दरअसल यह पूरा मामला उत्तर प्रदेश राज्य सीमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड (यूपीएससीसीएल) के अधीन चुर्क, डाला और चुनार सीमेंट फैक्ट्रियों की बिक्री और उसकी संपत्तियों के अधिग्रहण से जुड़ा हुआ है जो मिर्जापुर-सोनभद्र के जंगली और पहाड़ी इलाकों में स्थित हैं। नब्बे के दशक में कंपनी को करोड़ों रुपये का घाटा हुआ था। मामला उच्च न्यायालय पहुंचा। इसके आदेश पर 8 दिसंबर, 1999 को तीनों फैक्ट्रियों को बंद कर दिया गया और उनकी बिक्री के लिए ऑफिसियल लिक्विडेटर की तैनाती कर दी गई। वर्ष-2006 में यूपीएससीसीएल की संपत्तियों की वैश्विक निविदा में जय प्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड ने 459 करोड़ रुपये की सबसे बड़ी बोली लगाकर उसकी संपत्तियों को खरीद लिया। उच्च न्यायालय के आदेश की आड़ में उसने सूबे की सत्ता में काबिज नुमाइंदों और जिला प्रशासन की मिलीभगत से वनभूमि पर उत्तर प्रदेश राज्य सीमेंट निगम के नाम से आबंटित खनन पट्टों को गलत ढंग से अपने नाम करा लिया और उसपर कब्जा कर खनन करने लगा।

उद्योगपतियों और राजनीतिज्ञों के इस सियासी पैतरे को और बेहतर ढंग से समझने के लिए पूर्ववर्ती सपा सरकार के दौरान जेएएल को गलत ढंग से आबंटित की गई 1083.231 हेक्टेयर (करीब 2500 एकड़) वन भूमि की पूर्व जांच रिपोर्टों पर गौर करने की जरूरत है। विंध्याचल मंडल के तत्कालीन मंडलायुक्त सत्यजीत ठाकुर की ओर से गठित जांच कमेटी और केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के क्षेत्रीय कार्यालय (मध्य क्षेत्र), लखनऊ के तत्कालीन वन संरक्षक वाईके सिंह चौहान की जांच रिपोर्टें भी उक्त आरोपों की पुष्टि करती हैं।

उत्तर प्रदेश सरकार के राजस्व विभाग के प्रमुख सचिव के निर्देश पर विंध्याचल मंडल के तत्कालीन आयुक्त सत्यजीत ठाकुर ने वर्ष 2007 में इस मामले की जांच के लिए विंध्याचल मंडल के तत्कालीन अतिरिक्त आयुक्त (प्रशासन) डॉ. डीआर त्रिपाठी, वन संरक्षक आरएन पांडे और संयुक्त विकास आयुक्त एसएस मिश्रा की संयुक्त जांच टीम गठित की थी। टीम ने 16 जून 2008 को अपनी जांच रिपोर्ट मंडलायुक्त को सौंप दी। इसमें साफ लिखा है कि सोनभद्र में ओबरा वन प्रभाग के तत्कालीन वन बंदोबस्त अधिकारी वीके श्रीवास्तव द्वारा मकरीबारी, कोटा, पड़रछ और पनारी गांवों के सात मामलों में भारतीय वन अधिनियम की धारा-4 के तहत अधिसूचित 1083.231 हेक्टेयर वनभूमि को जेएएल के पक्ष में हस्तांतरित करने का आदेश गैरकानूनी और अमान्य है। इसके लिए वे पूर्णतया दोषी हैं। टीम ने जांच रिपोर्ट में उनके खिलाफ दण्डनात्मक एवं आपराधिक कार्रवाई करने की सिफारिश की है। इस संबंध में विंध्याचल मंडल के तत्कालीन अतिरिक्त आयुक्त जीडी आर्य ने विंध्याचल मंडल के प्रमुख वनसंरक्षक को पत्र लिखकर वीके श्रीवास्तव के खिलाफ आरोप-पत्र प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था लेकिन दोषी अधिकारी के खिलाफ आज तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।

केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के तत्कालीन वन संरक्षक (मध्य क्षेत्र) वाई.के. सिंह चौहान ने भी इस मामले में तत्कालीन मंडलायुक्त की जांच रिपोर्ट को सही ठहराया है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) के तत्कालीन सदस्य सचिव एमके जीवराजका को प्रेषित पत्र में लिखा है कि तत्कालीन वन बंदोबस्त अधिकारी वीके श्रीवास्तव ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के खिलाफ राजस्व अभिलेख में भारतीय वन अधिनियम-1927 की धारा-4 के तहत अधिसूचित वन भूमि के कानूनी स्वरूप को ही बदल दिया। इसके लिए उन्होंने एन गोडावर्मन थिरुमुल्कपाद बनाम भारत सरकार के मामले में उच्चतम न्यायालय के आदेश का हवाला दिया है। इसमें उच्चतम न्यायालय के तत्कालीन न्यायमूर्ति जेएस वर्मा और बीएन कृपाल की पीठ ने 12 दिसंबर, 1996 के फैसले में साफ कहा हैः

वन संरक्षण अधिनियम-1980 भविष्य में वनों की कटाई, जो पारिस्थितिकीय असंतुलन पैदा करता है, को रोकने की दृष्टि से लागू किया गया था। इसलिए वन संरक्षण और इससे जुड़े मामलों के लिए इस कानून के तहत बनाए गए प्रावधानों को स्वामित्व की प्रकृति या उसके वर्गीकरण की परवाह किए बिना लागू किया जाना चाहिए। वन शब्द को शब्दकोष में उल्लेखित उसके अर्थ के अनुसार ही समझा जाना चाहिए। यह व्याख्या कानूनी रूप से मान्य सभी वनों पर लागू होती है चाहे वे संरक्षित और सुरक्षित हों या फिर वन संरक्षण अधिनियम के खंड-2(1) के तहत हों। खंड-2 में उल्लेखित वन भूमि में शब्दकोष में उल्लेखित वन ही शामिल नहीं होगा, बल्कि इसमें स्वामित्व की परवाह किए बिना सरकारी दस्तावेजों में वन के रूप में दर्ज कोई भी क्षेत्र शामिल होगा।

वाईके सिंह चौहान ने अपनी जांच रिपोर्ट में लिखा है कि इस तरह गैर-वन भूमि में बदले जाने के बाद भी संरक्षित वन भूमि का कानूनी स्वरूप नहीं बदलेगा, लेकिन वीके श्रीवास्तव ने राजस्व अभिलेख में कोटा, पड़रछ और मकरीबारी गांवों में स्थित संरक्षित वन क्षेत्र की भूमि के कानूनी स्वरूप को परिवर्तित कर दिया है। राजस्व अभिलेख में वन भूमि के कानूनी स्वरूप का परिवर्तन केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के उस आदेश का भी उल्लंघन है जो उसने 17 फरवरी, 2005 को जारी किया था। इसमें साफ लिखा हैः

'केंद्र सरकार के पूर्व अनुमोदन के बिना राजस्व अभिलेखों में जंगल, झाड़ के रूप में दर्ज भूमि के कानूनी स्वरूप में परिवर्तन गैर-कानूनी और वन संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन है। संबंधित विभाग को निर्देशित किया जाता है कि वे तुरंत जंगल,झा़ड़, वन भूमि के कानूनी स्वरूप को बहाल करें।'

इतना ही नहीं, जेएएल सूबे की सत्ता में काबिज राजनीतिक पार्टियों के नुमाइंदों और जिला प्रशासन के आलाहुक्मरानों की मिलीभगत से संरक्षित वन क्षेत्र के साथ-साथ कैमूर वन्यजीव विहार के इलाकों में अपनी गैर-कानूनी गतिविधियों को अंजाम देता रहा। नेशनल बोर्ड ऑफ वाइल्डलाइफ ने भी इसकी पुष्टि की है। केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के नेशनल बोर्ड ऑफ वाइल्डलाइफ की स्थाई समिति ने सोनभद्र में जेएएल की कैप्टीव थर्मल पॉवर प्लांट की चारों ईकाइयों को अनापत्ति प्रमाण-पत्र देने के योग्य नहीं पाया। समिति की तत्कालीन सदस्य सचिव प्रेरणा बिंद्रा ने जेएएल के पॉवर प्लांट के प्रस्ताव को वन संरक्षण अधिनियम और पर्यावरण संरक्षण अधिनियम और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन बताया है। पॉवर प्लांट की ईकाइयों के निर्माण और संचालन के लिए केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने अभी तक अनापत्ति प्रमाण-पत्र भी जारी नहीं किया है। इसके बावजूद जय प्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड निर्माण कार्यों को जारी रखे हुए है और जिला प्रशासन मूक दर्शक की भूमिका निभा रहा है। 

जेएएल पिछले करीब आठ सालों से 2500 एकड़ से ज्यादा संरक्षित वन भूमि पर अवैध खनन और गैर-वानिकी गतिविधियां संचालित कर रही है और इसकी पुष्टि विभिन्न जांच रिपोर्टों में भी हो चुकी है। इसके बावजूद पिछले चार साल से सूबे की सत्ता में काबिज अखिलेश सरकार ने इस मामले में कोई तत्परता नहीं दिखाई और ना ही उसने विंध्याचल मंडलायुक्त और केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की रिपोर्टों पर कार्रवाई की। जब जेपी समूह ने डाला सीमेंट फैक्ट्री, जिसके अधीन विवादित करीब 2500 एकड़ वनभूमि वाले खनन-पट्टे आते हैं, को आदित्य बिड़ला समूह की अल्ट्रोटेक सीमेंट कंपनी को बेच दिया तो राज्य सरकार इस वनभूमि को वापस लेने के लिए तत्परता दिखा रही है। हालांकि उसकी यह तत्परता ईमानदारी से अपना मुकाम हासिल कर लेगी, कहना मुश्किल है।  

इसके बारे में जब वाईके सिंह चौहान, अब अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक (विकास) वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, झारखंड सरकार, से बात की गई तो उन्होंने कहा, आज यह खबर सुनकर बड़ी राहत मिली है। पूरी सर्विस के दौरान मैंने यह सबसे महत्वपूर्ण कार्य किया है। उद्योगपतियों ने साजिश रचकर वनभूमि को हड़प लिया है जो गरीबों और आदिवासियों के काम आता। इस मामले में स्थानीय जनता का भरपूर सहयोग मिला। जांच के दौरान उन्होंने एक-एक गाटे की सूचना और कागजात मुहैया कराये। इस मामले में राज्य सरकार के कुछ अधिकारियों ने जेपी समूह के एजेंट के रूप में कार्य किया है। उन्हें विंध्याचल मंडलायुक्त की जांच आख्या की संस्तुति के आधार पर दंड जरूर मिलना चाहिए। साथ ही इस मामले में लापरवाही बरतने वाले प्रशासनिक अधिकारियों के साथ-साथ वन-विभाग और राजस्व विभाग के अधिकारियों की भूमिका की भी जांच होनी चाहिए और उन्हें दण्डित किया जाना चाहिए। साथ ही जेपी समूह से जल्द से जल्द वनभूमि वापस लेकर उससे राजस्व क्षति की वसूली की जानी चाहिए।

वहीं अखिलेश सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट (आईपीएफ) के संयोजक अखिलेंद्र प्रताप सिंह कहते हैं कि जेपी समूह और समाजवादी पार्टी की नजदिकियां जगजाहिर हैं। इस फैसले में राज्य सरकार की ईमानदारी प्रतीत नहीं हो रही है। फिर भी सरकार जेपी समूह से जमीन वापस लेना चाहती है तो उसे जल्द से जल्द वापस ले लेना चाहिए और दोषियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करनी चाहिए लेकिन जिस प्रकार से जांच कमेटी गठित किये जाने की खबरें सामने आई हैं, वह यही दर्शाता है कि इस मामले में राज्य सरकार की मंशा साफ नहीं है। 


जेएएल की गैर-कानूनी गतिविधियों के खिलाफ लगातार करीब 128 दिन तक अनशन करने वाले भारतीय सामाजिक न्याय मोर्चा के अध्यक्ष चौधरी यशवंत सिंह ने कहा कि राज्य सरकार यह कदम एनजीटी और सीईसी के दबाव में उठा रही है। मुख्य सचिव के पास इसका कोई जवाब नहीं है। उन्होंने उच्चतम न्यायालय से माफी मांगी है। इसमें राज्य की सपा और बसपा सरकार के मुखिया के साथ-साथ कई प्रमुख सचिव स्तर के अधिकारी दोषी हैं। उनके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। अब इस मामले में जांच का कोई औचित्य नहीं है। मंडलायुक्त और सीईसी की जांच रिपोर्ट पर्याप्त है। उसके अनुसार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए। 

शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2016

सोनभद्र के बिल्ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र में विस्फोट, तीन की मौत

बिल्ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र में शुक्रवार को हुए विस्फोट के बाद घटना स्थल पर लगी भीड़। फोटोः संजय यादव
हादसे में करीब एक दर्जन लोगों के घायल होने की खबर।

वनांचल न्यूज नेटवर्क

सोनभद्र। वर्ष-2012 के बहुचर्चित खनन हादसे की चौथी बरसी की पूर्व संध्या पर ओबरा थाना क्षेत्र के बिल्ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र स्थित पत्थर की एक खदान में आकाशीय बिजली की वजह से विस्फोट हुआ। इसमें तीन मजदूरों की मौत हो गई जबकि करीब दर्जन लोगों के घायल होने की बात कही जा रही है। स्थानीय लोगों के दावों पर गौर करें तो हादसे में पांच लोगों की मौत हुई है जबकि जिला प्रशासन की ओर से तीन लोगों के मरने की पुष्टि की गई है। 


बताया जा रहा है कि बिल्ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र में देव प्रकाश मौर्या की खदान है। शुक्रवार को खदान में करीब 17 मजदूर कार्य कर रहे थे। जिसमें कुछ मजदूर विस्फोट के लिए होल में बारूद भर रहे थे। उसी दौरान बिजली चली गई और बारिश होने लगी। तभी आकाशीय बिजली चमकी और वहां विस्फोट हो गया। इसमें जुगैल थाना के चाड़म गांव निवासी देवनाथ (35) पुत्र अमरशाह, हंसलाल (50) पुत्र रामबरन और संतलाल (40) पुत्र रामबरन की मौत हो गई। करीब एक दर्जन लोग घायल हो गए। घायलों में पांच की हालत गंभीर बताई जा रही है। स्थानीय लोगों की मानें तो वहां मौजूद छह मजदूरों का पता नहीं चल पा रहा है। 
ʻवीआईपीʼ वसूली में दबा मजदूरों की हत्या का राज!
यहां बिकता है 13 करोड़ महीने की वीआईपी में संगठित हत्या का लाइसेंस

घायलों में मोहर लाल (40), राम दयाल (25), अमरावती (18), हरिदास (30) की हालत गंभीर है। इन्हें लोढ़ी स्थित जिला संयुक्त चिकित्सालय में भर्ती कराया गया। वहां मोहरलाल की हालत बिगड़ने की वजह से चिकित्सकों ने उसे वाराणसी रेफर कर दिया है। इनके अलावा चाड़ंग गांव निवासी कौशिल्या (3), राम दुलारे (35), समरजीत (22), दसमतिया (40) और विरजिया (35) को चोपन सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कराया गया है जहां उनका इलाज किया जा रहा है। 
ग्रामीणों की आवाज को दबाने के लिए सोनभद्र प्रशासन ने फोड़ा 'रिपोर्ट बम'
मौत का कुआं बन चुकी पत्थर की अवैध खदानों में दम तोड़ रहे आदिवासी

उधर, पुलिस ने घायल समरजीत की तहरीर पर खदान मालिक देव प्रकाश मौर्य समेत अन्य कई अज्ञात लोगों के खिलाफ आईपीसी की धारा-286, 304ए एवं विस्फोटक अधिनियम की धारा-4/5 के तहत प्राथमिकी दर्ज कर लिया है और मामले की जांच कर रही है। 
अवैध खनन का खूनी खेलः जिम्मेदार कौन?

खदान में हुए विस्फोट की सूचना मिलते ही पुलिस अधीक्षक रामलाल वर्मा, एसडीएम सदर कैलाश सिंह समेत अन्य अधिकारी मौके पर पहुंच गए हैं। वर्मा ने मुख्यमंत्री राहत कोष से मृतकों के परिजनों को दो-दो लाख तथा घायलों को 50-50 हजार रुपये देने की घोषणा की है। साथ ही उन्होंने घटना की जांच कराने का आश्वासन दिया है। उधर, लखनऊ में कैबिनेट खनन मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति ने बताया कि विभाग के पांच सदस्यों की टीम मौके पर भेज दी गई है जो विभाग को अपनी रिपोर्ट देगी। 

गौरतलब है कि वर्ष 2012 में 27 फरवरी की शाम बिल्ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र स्थित शारदा मंदिर के पीछे एक पत्थर की खदानकी पहाड़ी धंस गई थी जिसमें 10 मजदूरों की मौत हो गई थी और कई लोग घायल हो गए थे। उस हादसे के मृतकों के परिजनों को सरकार की तरफ से आज तक कोई मुआवजा नहीं मिला है और ना ही उस घटना के लिए जिम्मेदार लोगों को सजा दी गई है। उनके परिजन आज भी न्याय के लिए गुहार लगा रहे हैं।

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