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शनिवार, 21 मार्च 2015

हाशिमपुरा नरसंहार के आरोपियों का बरी होना लोकतंत्र के लिए काला दिनः रिहाई मंच

उत्तर प्रदेश की सपा सरकार की लचर पैरवी का परिणाम है तीस हजारी कोर्ट का फैसला। 

वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो 

लखनऊ। रिहाई मंच ने दिल्ली स्थित तीस हजारी कोर्ट द्वारा 1987 के हाशिमपुरा नरसंहार में 42 बेगुनाह मुसलमानों की हत्या के आरोपियों को बरी किए जाने की घोर निंदा की। मंच ने गत 21 मार्च को लोकतंत्र के लिए एक काला दिन बताया। मंच ने कहा है कि इस फैसले ने एक बार फिर से यह साफ कर दिया है कि सामाजिक न्याय के नाम पर मुसलमानों का वोट लेकर समाजवादी पार्टी की सरकार जब भी सत्ता में आई, उसने सुबूत इकट्ठा करने के नाम पर पीडि़तों से न केवल लफ्फाजी की, बल्कि आरोपियों का ही हित संरक्षण करते हए इंसाफ का गला घोंटा। हाशिमपुरा के आरोपियों के बरी होने के इस फैसले ने सपा सरकार के अल्पसंख्यक विरोधी चरित्र को एक बार फिर से बेनकाब कर दिया है।

रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब ने कहा है कि तीस हजारी कोर्ट द्वारा जब अभियुक्तों को रिहा कर दिया गया है तब यह सवाल पैदा होता है कि आखिर उन 42 मुसलमानों की हत्या किसने की थी? उन्होंने कहा कि समाजवादी पार्टी सरकार ने अपने राजनैतिक फायदे के लिए आरोपियों के खिलाफ सबूत इकट्ठा करने में कोताही बरतते हुए अदालत में लचर पैरवी की ताकि उस पर हिन्दुत्व के विरोधी होने का आरोप न लगे सके और उसका गैर मुस्लिम वोट बैंक सुरक्षित रहे।

रिहाई मंच के नेता राजीव यादव ने कहा है कि हाशिमपुरा के आरोपियों के बरी हो जाने के बाद यह साफ हो गया है कि इस मुल्क की पुलिस मशीनरी तथा न्यायिक तंत्र दलितों-आदिवासियों तथा मुसलमानों के खिलाफ खड़ा है। चाहे वह बथानीटोला का जनसंहार हो या फिर बिहार के शंकरबिगहा में दलितों की सामूहिक हत्या, इस मुल्क के लोकतंत्र में अब दलितों-आदिवासियों और मुसलमानों के लिए अदालत से इंसाफ पाने की आशा करना ही बेमानी है। उन्होंने कहा कि अगर इस मुल्क का यही लोकतंत्र है तो फिर ऐसे लोकतंत्र पर हमें शर्म आती है।

हाशिमपुरा नरसंहार के आरोपी पीएसी जवानों को कोर्ट ने किया बरी

उत्तर प्रदेश के मेरठ स्थित हाशिमपुरा में 22 मई 1987 को 42 लोगों की हुई थी हत्या। 

वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो

नई दिल्ली। स्थानीय तीस हजारी कोर्ट ने पिछले दिनों उत्तर प्रदेश में मेरठ के हाशिमपुरा में 22 मई 1987 को हुए नरसंहार में सभी आरोपियों को अदालत ने सबूतों के अभाव में बरी कर दिया है। इस मामले में 28 साल बाद फ़ैसला आया है। साल 1987 में मेरठ में हुए इस नरसंहार में एक समुदाय के 42 लोगों की हत्या कर दी गई थी। ये सभी लोग मेरठ के हाशिमपुरा मोहल्ले के रहने वाले थे। हत्या का आरोप यूपी पुलिस की प्रांतीय सशस्त्र पैदल सेना (पीएसी) की 41वीं कंपनी के जवानों पर लगा था। इस मामले की चार्जशीट 1996 में ग़ाज़ियाबाद में दाखिल की गई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सितंबर 2002 में इस केस को दिल्ली ट्रांसफ़र कर दिया गया था। इस मामले में कुल 19 आरोपी थे, जिनमें से तीन की मौत हो चुकी है।

ये हत्याएं कथित तौर पर मेरठ में दंगे के दौरान हुईं, जिसमें पीएसी की 41वीं बटालियन द्वारा तलाशी अभियान के दौरान पीड़ितों को हाशिमपुरा मोहल्ले से उठाया गया था। मामले में आरोप पत्र साल 1996 में गाजियाबाद के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के समक्ष दाखिल किया गया था। जनसंहार के पीड़ितों की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने मामले को सितंबर 2002 में दिल्ली स्थानांतरित कर दिया। यहां की एक सत्र अदालत ने जुलाई 2006 में आरोपियों के खिलाफ हत्या, हत्या के प्रयास, सबूतों से छेड़छाड़ तथा साजिश का आरोप तय किया था।