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बुधवार, 4 मई 2016

अखिलेश सरकार के बाद NGT ने JP GROUP को दिया झटका, 2500 एकड़ वनभूमि वापस लेने का दिया आदेश


अधिकरण ने खारिज की उत्तर प्रदेश सरकार की अधिसूचना। मामले में दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने का भी दिया आदेश।

reported by Shiv Das

नई दिल्ली। सोनभद्र में वन भूमि हस्तांतरण मामले में उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार के बाद राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने भी जेपी समूह को झटका दिया है। उत्तर प्रदेश की पूर्ववर्ती बसपा सरकार द्वारा सोनभद्र में जेपी समूह की सहयोगी कंपनी जयप्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड (जेएएल) के पक्ष में 1083.231 हेक्टेयर (करीब 2500 एकड़) वनभूमि हस्तांतरित करने के लिए जारी अधिसूचना को एनजीटी ने आज खारिज कर दिया। साथ ही उसने राज्य सरकार को आदेश दिया कि वह जल्द से जल्द अधिसूचना जारी कर जेएएल के पक्ष में हस्तांतरित वन भूमि उत्तर प्रदेश वन विभाग को सौंप दे और गैर-कानूनी ढंग से इस वन भूमि हस्तांतरण प्रक्रिया में शामिल अधिकारियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करे। हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार ने कैबिनेट बाई-सर्कुलेशन के जरिये जयप्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड से गलत ढंग से हस्तांतरित करीब 2500 एकड़ वनभूमि वापस लेकर वनविभाग को सौंपने की अधिसूचना जारी करने का दावा किया था। 
गौरतलब है कि करीब आठ साल पहले जेपी समूह की सहयोगी कंपनी जेएएल ने उत्तर प्रदेश राज्य सीमेंट निगम को करीब 459 करोड़ रुपये में खरीदा था। उसी की आड़ में उसने वनभूमि पर आबंटित खनन पट्टों को स्थानीय अधिकारियों से मिलकर अपने नाम करा लिया। जांच रिपोर्टों के मुताबिक ओबरा वन प्रभाग के तत्कालीन वन बंदोबस्त अधिकारी वीके श्रीवास्तव ने जय प्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड की ओर से भारतीय वन अधिनियम की धारा-9 और 11 के तहत दाखिल सात मामलों में भारतीय वन अधिनियम की धारा-4 के तहत अधिसूचित 1083.231 हेक्टेयर वनभूमि कंपनी के पक्ष में निकाल दी। इसमें 253.176 हेक्टेयर भूमि में कैमूर वन्यजीव विहार की शामिल थी। वीके श्रीवास्तव ने 1987 में भारतीय वन अधिनियम की धारा-20 के तहत अधिसूचित 399.51 हेक्टेयर संरक्षित वन क्षेत्र में से इस 230.844 हेक्टेयर वन भूमि को भी जय प्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड के पक्ष में गैरकानूनी ढंग से निकाल दिया जिसकी पुष्टि उच्चतम न्यायालय के आदेश के तहत अतिरिक्त जिला न्यायाधीश ने भी नहीं की थी। 
केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की जांच रिपोर्ट के अंशों पर गौर करें तो वीके श्रीवास्तव उपरोक्त मामलों की सुनवाई नहीं कर सकते थे। वे केवल उन 12 गांवों के मामले की सुनवाई कर सकते थे, जिसके लिए राज्य सरकार ने 21 जुलाई, 1995 को जारी आदेश में सहायक अभिलेख अधिकारी शिव बक्श लाल को विशेष वन बंदोबस्त अधिकारी, सोनभद्र नियुक्त किया था। हालांकि इसके लिए भी शासन की ओर से उनकी नियुक्ति होनी चाहिए थी।
वीके श्रीवास्तव के फैसले के खिलाफ उत्तर प्रदेश वन विभाग के प्रमुख वन संरक्षक ने राज्य सरकार को पत्र लिखकर उच्च न्यायालय, इलाहाबाद में अपील करने की राय मांगी लेकिन तत्कालीन बसपा सरकार ने ऐसा करने से साफ मना कर दिया। उत्तर प्रदेश सरकार के तत्कालीन सचिव पवन कुमार ने 12 सितंबर, 2008 को वन विभाग के प्रमुख वन संरक्षक को पत्र संख्या-3792/14-2-2008 के माध्यम से राज्य सरकार के निर्णय से अवगत भी कराया और सोनभद्र में भारतीय वन अधिनियम की धारा-20 के तहत विज्ञप्ति जारी किए जाने हेतु दो दिनों के अंदर आवश्यक प्रस्ताव शासन को भेजने का निर्देश दिया। उत्तर प्रदेश सरकार के सचिव (वन) ने 25 नवंबर, 2008 को अधिसूचना जारी कर सोनभद्र में भारतीय वन अधिनियम की धारा-20 के तहत शासकीय दस्तावेजों में वन क्षेत्र को कम कर दिया। इसमें जय प्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड के पक्ष में निकाली गई वन भूमि भी शामिल थी। 
इतना ही नहीं अपनी कारगुजारियों को कानूनी जामा पहनाने के लिए उत्तर प्रदेश की तत्कालीन बसपा सरकार ने उच्चतम न्यायालय में लंबित जनहित याचिका (सिविल)-202/1995 में अपील दाखिल कर जय प्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड के पक्ष में विवादित खनन लीज का नवीनीकरण करने के लिए अनुमति मांगी। साथ ही उसने उप्र सरकार द्वारा 25 नवंबर, 2008 को भारतीय वन अधिनियम की धारा-20 के तहत जारी अधिसूचना की पुष्टि करने का अनुरोध किया। उच्चतम न्यायालय ने मामले में उच्च प्राधिकार समिति (सीईसी) से रिपोर्ट तलब की। जवाब में सीईसी के तत्कालीन सदस्य सचिव एमके जीवराजका ने 10 अगस्त, 2009 को उच्चतम न्यायालय के रजिस्ट्रार के पास अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। बाद में यह मामला राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) को स्थानांतरित हो गया। 

केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय और सीईसी ने भूमि हस्तांतरण की पूरी प्रक्रिया को गलत बताया था। दोनों ने अदालत में कहा कि ये जमीन जंगल की है। इसको किसी और काम के लिए नहीं दिया जा सकता। वर्ष 2012 में राज्य सरकार बदल गई। उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में बसपा सरकार के फैसले का विरोध किया। उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त महाधिवक्ता शमशाद और अभिषेक चौधरी ने एनजीटी में यूपी सरकार का पक्ष रखा और कहा, 'ये जंगल की जमीन है और किसी और काम के लिए नहीं दी जा सकती। जमीन की लीज जेपी को दिए जाने का पूर्व सरकार का फैसला बिल्कुल गलत है।'

इस मामले की जांच करने वाले केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के क्षेत्रीय कार्यालय (मध्य क्षेत्र), लखनऊ के तत्कालीन वन संरक्षक वाईके सिंह चौहान, अब अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक (विकास) वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, झारखंड सरकार, से बात की गई तो उन्होंने कहा, ‘आज यह खबर सुनकर बड़ी राहत मिली है। पूरी सर्विस के दौरान मैंने यह सबसे महत्वपूर्ण कार्य किया है। उद्योगपतियों ने साजिश रचकर वनभूमि को हड़प लिया है जो गरीबों और आदिवासियों के काम आता। इस मामले में स्थानीय जनता का भरपूर सहयोग मिला। जांच के दौरान उन्होंने एक-एक गाटे की सूचना और कागजात मुहैया कराये। इस मामले में राज्य सरकार के कुछ अधिकारियों ने जेपी समूह के एजेंट के रूप में कार्य किया है। उन्हें एनजीटी के आदेश और विंध्याचल मंडलायुक्त की जांच आख्या की संस्तुति के आधार पर दंड जरूर मिलना चाहिए। साथ ही इस मामले में लापरवाही बरतने वाले प्रशासनिक अधिकारियों के साथ-साथ वन-विभाग और राजस्व विभाग के अधिकारियों की भूमिका की भी जांच होनी चाहिए और उन्हें दण्डित किया जाना चाहिए। साथ ही जेपी समूह से जल्द से जल्द वनभूमि वापस लेकर उससे राजस्व क्षति की वसूली की जानी चाहिए।’

जनहित याचिका के माध्यम से इसे उच्चतम न्यायालय में उठाने वाले चंदौली जनपद के शमशेरपुर गांव निवासी बलराम सिंह उर्फ गोविंद सिंह का कहना है कि उद्योगपतियों और उत्तर प्रदेश की सरकार की मिलीभगत से वनभूमि को लूटने के मामले में एनजीटी ने न्याय किया है। इसका आदिवासियों और गरीबों के साथ पर्यावरण को भी लाभ मिलेगा। 

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जेपी समूह को 409 करोड़ माफ (भाग-6) 

एनजीटी के आदेश को पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें-

शनिवार, 5 मार्च 2016

खादी और खाकी लिबास में छिपे सफेदपोशों ने बेखौफ किया अवैध खनन


खननमाफियाओं के गठजोड़ के आगे कमजोर पड़ी जाति-धर्म और क्षेत्रीयता की दीवार
[नोटः यह रिपोर्ट 'वनांचल एक्सप्रेस' के वर्ष-2, अंक-16 (1-14 फरवरी, 2015) में प्रकाशित हो चुकी है।]

उत्तर प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में वर्षों से अवैध खनन हो रहा है लेकिन इसकी राजनीति का तापमान अब काफी बढ़ गया है। यह सफेदपोश खनन माफियाओं समेत सूबे के राजनीतिज्ञों का अखाड़ा बन गया है। आदिवासी बहुल सोनभद्र में तो यह एक नया इतिहास लिख रहा है। यहां अवैध खनन के इस गोरखधंधे में सभी राजनीतिक पार्टियों के नेताओं समेत समाजसेवा का दंभ भरने वाले सफेदपोश एक ही नक्शे कदम पर चल रहे हैं। यहां जाति-धर्म और क्षेत्रीयता का बंधन सूबे की राजधानी में विराजमान सत्ताधारी राजनीतिक नुमाइंदों के साथ लुटियन जोन के चुनिंदा नीति-निर्माताओं को भी पीछे छोड़ रहा है। अवैध खनन को बढ़ावा देने के साथ भ्रष्टाचार के मामले में आरोपी राज्य के खनन मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति के खिलाफ लोकायुक्त एन.के. मेहरोत्रा जांच कर रहे हैं तो सोनभद्र जिला प्रशासन की जांच रिपोर्ट में रसड़ा (बलिया) बसपा विधायक उमा शंकर सिंह नियम-कानूनों की धज्जियां उड़ाते हुए अवैध खनन कर रहे हैं। हालांकि संवैधानिक पद का दुरुपयोग करने के मामले में उनकी विधानसभा सदस्यता राज्यपाल ने समाप्त कर दी है। घोरावल  (सोनभद्र) विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से सपा विधायक रमेश चंद्र दुबे पर अवैध खनन समेत कई मामलों को लेकर स्मारक घोटाले में पहले ही जांच चल रही है। अवैध खनन से जुड़े ऐसे ही कुछ राजनीतिक चेहरों के साथ कुछ सफेदपोशों की छानबीन की गई जिसमें एक से बढ़कर एक चौंकाने वाले तथ्य उजागर हुए। ऐसे ही तथ्यों पर आधारित है यह रिपोर्टः   

-सफेदपोश नेताओं समेत आईएएस और आईपीएस अधिकारी के रिश्तेदार करा रहे अवैध खनन। -एनजीओ से लेकर कंपनियां तक कर रही अवैध खनन।
-पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के क्रिटिकल जोन में शामिल सोनभद्र के बिल्ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र में खनन माफिया जमकर उड़ा रहे हैं उच्चतम न्यायालय के दिशा-निर्देशों की धज्जियां। 
-मीडिया पब्लिसिटी तक सिमटी जिला प्रशासन की कार्रवाई।

शिव दास

मजदूरों की कब्रगाह के रूप में चर्चित सोनभद्र का बिल्ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र सफेदपोश खनन माफियाओं का चारागाह बन गया है। पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण के लिहाज से क्रिटिकल जोन में शामिल इस क्षेत्र में उच्चतम न्यायालय समेत विभिन्न भारतीय कानूनों की जमकर धज्जियां उड़ाई जा रही हैं और बड़े पैमाने पर अवैध खनन किया जा रहा है। वहीं मीडिया पब्लिसिटी में मशगूल जिलाधिकारी केवल जिला सूचना और जनसंपर्क विभाग की विज्ञप्तियों में कार्रवाई करते नजर आ रहे हैं। इससे खनन माफियाओं का हौसला इस कदर बुलंद है कि वे राज्य सरकार और उसके नुमाइंदों की ओर से जारी किसी भी चेतावनी और दिशा-निर्देश का पालन सुनिश्चित नहीं करते। इसकी गवाही तहसील प्रशासन की ओर से जिलाधिकारी को समय-समय पर सौंपी गई रिपोर्टें देती हैं। अगर इन रिपोर्टों के शब्दों पर गौर करें तो सामाजिक न्याय और समानता के अधिकार के मामले में अवैध खनन का गोरखधंधा केंद्र और राज्य सरकार के नीति-निर्माताओं को पीछे छोड़ रहा है। खनन माफिया जाति-धर्म, ऊंच-नीच और क्षेत्रीयता के बंधन को तोड़ते हुए संयुक्त रूप से अवैध खनन के गोरखधंधे को अंजाम दे रहे हैं। कोई समाजसेवा के नाम पर गैर-सरकारी संगठन खड़ा कर अवैध खनन कर रहा है तो कोई कंपनी बनाकर लोगों को बेवकूफ बना रहा है। खद्दरधारी और वर्दीवाले भी पीछे नहीं हैं। सूबे की सत्ता में काबिज समाजवादी पार्टी समेत भाजपा, बसपा, कांग्रेस सरीखी राजनीतिक पार्टियों के नेता अवैध खनन के इस धंधे में शामिल हैं। आईएएस-आईपीएस स्तर के अधिकारी भी अपने रिश्तेदारों के बल पर सोनभद्र में अवैध खनन का इतिहास लिख रहे हैं। 
इन पंक्तियों के लेखक के हाथों लगे दस्तावेजों की मानें तो जिलाधिकारी के निर्देश पर रॉबर्ट्सगंज तहसील प्रशासन ने बिल्ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र में स्वीकृत खनन पट्टों और उनके संचालकों द्वारा किए जाने वाले खनन की जांच क्षेत्रीय लेखपाल से कराई थी। क्षेत्रीय लेखपाल ने गत 15 सितंबर को अपनी रिपोर्ट उच्चाधिकारियों दी। इसे रॉबर्ट्सगंज (सदर) तहसील के उप-जिलाधिकारी ने तहसीलदार, नायब तहसीलदार और अगोरी परगना के राजस्व निरीक्षक की संस्तुतियों के साथ जिला प्रशासन को सौंप दी। इस रिपोर्ट में उल्लेखित खनन पट्टाधारकों, जो अवैध खनन कर रहे हैं, के नामों की सूची पर गौर करें तो इनमें सपा, बसपा, भाजपा और कांग्रेस के नेताओं समेत कई आईएएस और आईपीएस अधिकारियों के रिश्तेदार तक शामिल हैं।

सपा नेता रमेश चंद्र वैश्य  

उक्त रिपोर्ट में ओबरा (बारी-डाला) निवासी वरिष्ठ सपा नेता रमेश चंद्र वैश्य और उनके रिश्तेदारों का नाम भी शामिल है। रमेश चंद्र वैश्य की स्वामित्व वाली फर्म मेसर्स रबिशा स्टोन प्रोडक्ट के नाम बिल्ली-मारकुंडी गांव के आराजी संख्या-4920, 4921, 4922 और 4924 की 1.75 एकड़  भूमि पर खनन पट्टा आबंटित है जो 3 जनवरी 2017 तक के लिए स्वीकृत है। क्षेत्रीय लेखपाल ने अपनी रिपोर्ट में साफ लिखा है कि पट्टाधारक के स्वीकृत क्षेत्र के उत्तर दिशा में अवैध खनन किया जा रहा है और सीमा स्तंभ भी हटा लिया गया है। क्षेत्रीय लेखपाल के इन शब्दों से साफ है कि रमेश चंद्र वैश्य अपने स्वीकृत खनन क्षेत्र से बाहर जाकर अवैध खनन कर रहे हैं क्योंकि सीमा स्तंभ समेत आस-पास के क्षेत्र में होने वाले अवैध खनन की जिम्मेदारी पट्टाधारक की होती है। 
अगर रबिशा स्टोन प्रोडक्ट के नाम से आबंटित पत्थर की खदान में शासन द्वारा निर्धारित सुरक्षा मानकों का भौतिक सत्यापन किया जाए तो यह बहुत अधिक घातक स्थिति में है। उन्होंने अपने स्वीकृत खनन क्षेत्र में ही शासन से निर्धारित सीमा से अधिक खनन किया है। कुछ ऐसे ही हालात उनकी पत्नी विन्दो देवी की स्वामित्व वाली फर्म मेसर्स शिवम स्टोन प्रोडक्ट के नाम से आबंटित खनन पट्टे की है। बिल्ली-मारकुंडी गांव की आराजी संख्या-4949ख के करीब दो एकड़ में आबंटित इस खनन पट्टे की मियाद 12 दिसम्बर 2020 तक है। क्षेत्रीय लेखपाल ने अपनी रिपोर्ट में साफ लिखा है कि मेसर्स शिवम स्टोन प्रोडक्ट के नाम से स्वीकृत खनन क्षेत्र के उत्तर और पूरब अवैध खनन किया जा रहा है और सीमा स्तंभ भी हटा लिया गया है। 
सपा नेता के छोटे भाई अजय कुमार के स्वामित्व वाली फर्म मेसर्स अजय स्टोन प्रोडक्ट के नाम से आबंटित खनन पट्टे के हालात भी कुछ ऐसा ही बयां कर रहे हैं। इस फर्म के नाम से बिल्ली-मारकुंडी गांव के आराजी संख्या-7411 के कुल एक एकड़ रकबे में खनन पट्टा आबंटित है। इसकी मियाद 25 फरवरी 2017 तक है। अजय कुमार के बारे में क्षेत्रीय लेखपाल ने साफ लिखा है कि पट्टाधारक द्वारा अपने स्वीकृत क्षेत्र से दक्षिण और पश्चिम में अवैध खनन किया गया है और सीमा स्तंभ भी मौके पर नहीं पाया गया। रमेश चंद्र वैश्य के बड़े भाई सुभाष चंद्र गुप्ता और उनके भतीजे विजय वैश्य की संयुक्त स्वामित्व वाली फर्म मेसर्स विजय स्टोन प्रोडक्ट के नाम से आबंटित खनन पट्टे के बारे में भी क्षेत्रीय लेखपाल की ऐसी ही रिपोर्ट है। इस फर्म के नाम से बिल्ली-मारकुंडी गांव के आराजी संख्या-7412ख और 7414ख/1 के कुल 0.55 एकड़ में खनन पट्टा आबंटित है जिसकी मियाद 29 अगस्त 2017 तक है। इसके बारे में क्षेत्रीय लेखपाल ने साफ लिखा है कि पट्टाधारक के स्वीकृत क्षेत्र से दक्षिण में अवैध खनन हुआ है और मौके पर सीमा स्तंभ भी नहीं पाया गया। 
क्षेत्रीय लेखपाल के रिपोर्ट पर उच्चाधिकारियों की मिली सहमति से यह साफ है कि सपा नेता रमेश चंद्र वैश्य और उनके रिश्तेदार उच्चतम न्यायालय के दिशा-निर्देशों समेत शासन के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन कर बड़े पैमाने पर अवैध खनन कर रहे हैं। जिला प्रशासन द्वारा रमेश चंद्र वैश्य और उसके परिवार के अन्य सदस्यों के नाम से खनन पट्टा आबंटित किया जाना भी सवालों के घेरे में हैं क्योंकि वह रॉबर्ट्सगंज तहसील के सबसे बड़े बकायादारों की सूची में शामिल हैं। दो साल पहले तक रमेश चंद्र वैश्य की स्वामित्व वाली फर्म रबिशा स्टोन प्रोडक्ट पर शक्तिनगर विशेष क्षेत्र प्राधिकरण (साडा) का 18,19,320 रुपये बकाया था और 99,000 रुपये उनसे वसूल की गई थी। अभी भी उनपर साडा के लाखों रुपये बकाया हैं। हालांकि उनसे वसूल की गई धनराशि अब 15,35000 रुपये हो चुकी है। इन हालात में सपा नेता और उनके रिश्तेदारों का अवैध खनन के गोरखंधंधे में संलिप्त पाया जाना जिला प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल खड़ा करता है। 

सपा नेता और चोपन नगर पंचायत अध्यक्ष इम्तियाज अहमद

गत वर्ष सितंबर महीने में रॉबर्ट्सगंज तहसील प्रशासन की ओर से जिलाधिकारी को सौंपी गई रिपोर्ट में चोपन नगर पंचायत अध्यक्ष और सपा नेता इम्तियाज अहमद और उनके साझीदारों का नाम भी शामिल हैं। चोपन निवासी इम्तियाज अहमद और सुरेश कुमार समेत बिल्ली-मारकुंडी गांव निवासी राम आसरे और मीरजापुर जिले की चुनार तहसील अंतर्गत चौकिया गांव निवासी अवधेश सिंह के नाम से बिल्ली-मारकुंडी गांव की आराजी संख्या- 7364ख, 7365 और 7366 के तीन एकड़ क्षेत्रफल में खनन पट्टा आबंटित है। इसकी मियाद 12 दिसंबर 2020 तक है। क्षेत्रीय लेखपाल समेत तहसील प्रशासन की रिपोर्ट में साफ लिखा है कि पट्टेदारों द्वारा अपने स्वीकृत क्षेत्र से सटे पूरब अवैध खनन किया जा रहा है और सीमा स्तंभ भी हटा लिए गए हैं। 
ऐसा नहीं है कि सपा नेता और उनके साझीदार पहली बार अवैध खनन के मामले में संलिप्त पाये गए हैं। इससे पहले 2013 में 22 अगस्त और 23 सितंबर को भी तहसील प्रशासन की ओर से जिला प्रशासन को भेजी गई की रिपोर्ट में ये लोग अवैध खनन करते पाए गए थे। इस रिपोर्ट में भी लिखा था कि इन लोगों के द्वारा अपने स्वीकृत क्षेत्र से सटे पूरब अवैध खनन किया जा रहा है और सीमा स्तंभ भी हटा लिये गए हैं लेकिन जिला प्रशासन ने इन सफेदपोश खननकर्ताओं के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। इससे उनका मनोबल और अधिक बढ़ गया और वे अवैध खनन करते रहे। गौर करने वाली बात यह है कि अवैध खनन के इस गोरखधंधे में जाति-धर्म और क्षेत्रीयता की सभी सीमाएं पीछे छूट गईं। उक्त खनन पट्टे के अलावा भी सपा नेता इम्तियाज अहमद और उनके रिश्तेदारों के नाम से वर्दिया खनन क्षेत्र में खनन पट्टा आबंटित हैं। 
अगर इन खनन पट्टों का भौतिक सत्यापन किया जाए तो यहां भी बड़े पैमाने पर अवैध खनन हुआ है और हो रहा है। वर्दिया गांव की अराजी संख्या-902, 903 और 941क के 1.58 एकड़ क्षेत्रफल में चोपन निवासी सपा नेता इम्तियाज अहमद, मीरजापुर जिले के चौकिया गांव निवासी अवधेश सिंह और वाराणसी जिले के पांडेयपुर की नई बस्ती निवसी केशमणी देवी के नाम से खनन पट्टा आबंटित है। इसकी मियाद 12 दिसम्बर 2020 तक है। यहां भी बड़े पैमाने पर अवैध खनन की बात कही जा रही है। वहीं सपा नेता के भाई उष्मान अली और चोपन निवासी सुरेश कुमार के नाम से वर्दिया गांव की आराजी संख्या-878क के 1.30 एकड़ क्षेत्रफल पर खनन पट्टा आबंटित है। इसकी मियाद भी 12 दिसंबर 2020 तक है। यहां भी स्वीकृत क्षेत्र से बाहर जाकर अवैध खनन करने की बात कही जा रही है।

पूर्व में भी सपा नेता और चोपन नगर पंचायत अध्यक्ष इम्तियाज अहमद, उनकी पत्नी फरीदा और उनके भाई सरफराज के नाम से बिल्ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र में डोलो स्टोन के खनन पट्टे आबंटित किए गए थे। लोगों की मानें तो इन सभी के नाम से आबंटित खनन पट्टों में मानक विपरीत जाकर खनन किया गया था और उसके प्रमाण आज भी वहां मौजूद हैं। ऐसे खनन पट्टों में वर्ष 2001-11 तक कमलेश्वर और सरफराज के नाम से स्वीकृत खनन पट्टा भी शामिल है। इसी अवधि के दौरान राजेश कुमार पुत्र स्व. कलीराम और फरीदा पत्नी इम्तियाज के नाम से आबंटित खनन पट्टे की भूमि पर हुआ खनन भी इनकी कारस्तानियों की देन है। वर्ष 2002-12 तक की अवधि के दौरान इम्तियाज पुत्र मजनू, उमेश कुमार राय पुत्र वंशीधर राय और चंद्रगुप्त पुत्र राम बाबू के नाम से आबंटित खनन पट्टे में हुए अवैध खनन के लिए भी इनकी कारगुजारियां सवालों के घेरे में हैं।

सपा नेता इश्तियाक खान

बिल्ली-मारकुंडी गांव निवासी इश्तियाक खान की पत्नी मेसर्स पूर्वांचल सेवा समिति की सचिव हैं और उनका नाम भी तहसील प्रशासन की रिपोर्ट में अवैध खननकर्ताओं की सूची में शामिल है। समिति के नाम से बिल्ली-मारकुंडी गांव की आराजी संख्या-7618 (कुल रकबा 2.25 एकड़) में खनन पट्टा औबंटित है। इसकी मियाद 10 जनवरी 2017 तक है। रॉबर्ट्सगंज तहसील प्रशासन की रिपोर्ट (सितंबर 2014) में समिति की सचिव के बारे में साफ लिखा है कि उनके द्वारा अपने स्वीकृत क्षेत्र के उत्तर और दक्षिण में अवैध खनन किया गया है तथा सीमा स्तंभ भी हटा लिया गया है। सूत्रों की मानें तो इश्तियाक खान खुद को सपा के वरिष्ठ नेता शिवपाल सिंह यादव का करीबी बताता है। इससे जिला प्रशासन समेत अन्य लोग उसके खिलाफ कार्रवाई करने में हिचकिचाते हैं। इससे पहले 3 अप्रैल 2013 को भी इश्तियाक खान की पत्नी के नाम आबंटित खनन पट्टे में अवैध खनन करने की बात तहसील प्रशासन की रिपोर्ट में कही गई थी।

भाजपा नेता वृषभान अग्रवाल

ओबरा के राममंदिर कॉलोनी स्थित 14/364 निवासी भाजपा नेता वृषभान अग्रवाल के प्रबंध निदेशकत्व वाली कंपनी/ फर्म मेसर्स बी. अग्रवाल स्टोन प्रोडक्ट लिमिटेड का नाम भी तहसील प्रशासन की रिपोर्ट में है। इसके नाम से बिल्ली-मारकुंडी गांव के आराजी संख्या--4601, 4602, 4603, 4606, 4608 और 4609 के कुल 2.84 एकड़ रकबे में खनन पट्टा आबंटित है। इसकी मियाद 1 अप्रैल 2018 तक है। तहसील प्रशासन की रिपोर्ट में साफ लिखा है कि भाजपा नेता वृषभान अग्रवाल के नाम से स्वीकृत खनन क्षेत्र के दक्षिण अवैध खनन किया गया है और सीमा स्तंभ भी हटा लिया गया है। वृषभान ओबरा विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से पिछला चुनाव भी लड़ चुके हैं। भाजपा नेता के चचेरे भाई संजीव कुमार अग्रवाल के स्वामित्व वाली फर्म मेसर्स मक्खन वर्क्स भी अवैध खनन के गोरखधंधे में संलिप्त पाई गई है। इसके नाम से बिल्ली-मारकुंडी गांव के आराजी संख्या-4478छ के कुल 1.88 एकड़ रकबे में खनन पट्टा आबंटित है जिसकी मियाद 12 मार्च 2020 तक है। तहसील प्रशासन की रिपोर्ट में साफ लिखा है कि इनके स्वीकृत क्षेत्र के पूरब अवैध खनन किया जा रहा है तथा सीमा स्तंभ भी हटा लिए गये हैं।

बसपा नेता और विधायक (रसड़ा) उमा शंकर सिंह

लिया जिले के रसड़ा विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से विधायक और बसपा नेता उमाशंकर सिंह के खिलाफ बिल्ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र में अवैध खनन करने के मामले को लेकर जिला प्रशासन  पिछले साल मुकदमा दर्ज कराया। उमाशंकर सिंह की कंपनी सी.एस. इंफ्राकंस्ट्रक्शन लिमिटेड (छात्र शक्ति इंफ्राकंस्ट्रक्शन लिमिटेड) बिल्ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र की अराजी संख्या-6229ख की 1.50 एकड़ भूमि पर 13 मार्च, 2010 से डोलो स्टोन का खनन कर रही है। इसकी मियाद 12 मार्च, 2020 तक है। इसके अलावा बिल्ली-मारकुंडी गांव की अन्य अराजी संख्या-4478छ की 2.50 एकड़ भूमि पर भी विधायक उमाशंकर सिंह के नाम से डोलो स्टोन का खनन पट्टा आबंटित है। इस खनन पट्टे की अवधि भी उक्त खनन पट्टे की अवधि के बराबर है। गौर करने वाली बात यह है कि बसपा विधायक उमाशंकर सिंह की कंपनी छात्र शक्ति इंफ्राकंस्ट्रक्शन लिमिटेड कंपनी ने बहुजन समाज पार्टी की पिछली सरकार में सोनभद्र में लोक निर्माण विभाग से होने वाले अधिकतर सड़क निर्माण के कार्य को अंजाम दिया है लेकिन वे सभी सड़क मार्ग बनने के दौरान ही उखड़ने लगे थे। ये बातें जिला प्रशासन की जांच रिपोर्ट में भी सामने आ चुकी हैं। फिलहाल भ्रष्टाचार में लिप्त होने के मामले में उमा शंकर सिंह की विधायकी चली गई है। पिछले दिनों राज्यपाल ने लोकायुक्त की संस्तुति और  राज्य सरकार की ओर से भेजी गई रिपोर्ट के आधार पर उन्हें बर्खास्त कर दिया है।

रविन्द्र जायसवाल और राकेश जायसवाल

वाराणसी जिले के पांडेयपुर स्थित सी-9/471सी निवासी रविन्द्र जायसवाल और उनके साझीदार राकेश जायसवाल का नाम भी तहसील प्रशासन की रिपोर्ट में अवैध खननकर्ताओं की सूची में शामिल है। इन दोनों के नाम से बिल्ली-मारकुंडी गांव की आराजी संख्या-7536घ के 3.10 एकड़ क्षेत्रफल में खनन पट्टा आबंटित है जिसकी मियाद 28 जुलाई 2017 तक है। तहसील प्रशासन ने गत सिम्बर की अपनी रिपोर्ट में साफ लिखा है कि पट्टाधारकों के स्वीकृत क्षेत्र के दक्षिण अवैध खनन किया जा रहा है और सीमा स्तंभ भी हटा लिया गया है। वहीं दक्षिण की तरफ खड़ी पहाड़ी है जो खतरनाक स्थिति में है। इससे साफ है कि पट्टाधारकों द्वारा एक सोची-समझी साजिश के तहत सीमा स्तंभ को हटाकर अवैध खनन को अंजाम दिया जा रहा है क्योंकि स्वीकृत खनन पट्टे की सीमांकन की जिम्मेदारी पट्टाधारकों की होती है और उनकी सीमा से सटे क्षेत्र में होने वाले अवैध खनन के लिए वे ही जिम्मेदार होते हैं। विश्वसनीय सूत्रों की मानें तो रविन्द्र जायसवाल के साझीदार राकेश जायसवाल उत्तर प्रदेश की पूर्व बसपा सरकार में खनन मंत्री रहे बाबू सिंह कुशवाहा के करीबी पूर्व विधायक आरपी जायसवाल के करीबी हैं। 

फिलहाल इसकी पुष्टि नहीं हो पाई है। राकेश जायसवाल की पत्नी आरती जायसवाल और ओबरा निवासी श्याम बिहारी की स्वामित्व वाली फर्म मेसर्स सुशील ग्रीट कॉर्पोरेशन भी अवैध खनन के गोरखधंधे में संलिप्त पाई गई है। इस फर्म के नाम से बिल्ली-मारकुंडी की आराजी संख्या-7410क के 0.93 एकड़ क्षेत्रफल में खनन पट्टा आबंटित है जिसकी मियाद 4 फरवरी 2017 तक है। तहसील प्रशासन ने अपनी रिपोर्ट में साफ लिखा है कि पट्टाधारकों द्वारा अपने स्वीकृत क्षेत्र से उत्तर और पश्चिम अवैध खनन किया जा रहा है और सीमा स्तंभ भी हटा लिया गया है। तहसील प्रशासन ने 4 अगस्त 2013 को उच्चाधिकारियों को भेजी अपनी रिपोर्ट में भी लिखा था कि श्याम बिहारी और आरती जायसवाल द्वारा अपने स्वीकृत क्षेत्र से पश्चिम-दक्षिण अवैध खनन किया जा रहा है लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। इतना ही नहीं राकेश जायसवाल की पत्नी आरती जायसवाल अपनी एक अन्य फर्म मेसर्स ओबरा स्टोन प्रोडक्ट के साझीदार बिल्ली-मारकुंडी गांव निवासी विनीत कुमार त्रिपाठी के साथ मिलकर अवैध खनन करने में शामिल हैं। इस फर्म के नाम से बिल्ली-मारकुंडी गांव की आराजी संख्या-4629 के 1.50 एकड़ क्षेत्रफल में खनन पट्टा आबंटित है। इसकी खनन अवधि 5 फरवरी 2011 से 4 फरवरी 2021 तक है। 

रॉबर्ट्सगंज तहसील प्रशासन की ओर से जिलाधिकारी को 8 जुलाई 2013 को भेजी गई रिपोर्ट में साफ लिखा है कि खान अधिनियम-1952 की धारा-22(2)22ए(2) के अंतर्गत निषेधाज्ञा लगे होने के बावजूद पट्टाधारकों द्वारा विद्युत टॉवर के नीचे खनन किया जा रहा है। पत्थर के ऊपर जमी हुई मिट्टी को हटाया जा रहा है जिससे दुर्घटना होने की संभावना बनी हुई है। यद्यपि मौके पर पोकलैंड मशीन नहीं थी लेकिन वहां मौजूद मिट्टी के निशानों से स्पष्ट है कि रात में पोकलैंड मशीनों का उपयोग किया जा रहा है। इनके द्वारा चलाये जा रहे वाहन पहाड़ों के ठीक नीचे परिवहन कर रहे हैं, जिससे दुर्घटना से इंकार नहीं किया जा सकता। इनके द्वारा भी खनन के कारणों को समाप्त नहीं किया जा रहा है, बल्कि उनके द्वारा खनन क्षेत्र में परिवहन किया जा रहा है। इसके बावजूद पट्टाधारकों के खिलाफ जिला प्रशासन की ओर से कोई कठोर कार्रवाई नहीं की गई है। इससे इलाके में अवैध खनन का दौर बदस्तूर जारी है। 

चौंकाने वाली बात है कि सोनभद्र के बिल्ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र में आबंटित डोलो स्टोन के खनन पट्टों में सबसे अधिक खनन पटटे राकेश जायसवाल, उनकी पत्नी आरती जायसवाल के नाम से हैं। कुछ सीधे इनके नाम से हैं तो कुछ में ये साझेदार हैं। इससे इनके राजनीतिक पकड़ का अंदाजा भी आसानी से लगाया जा सकता है। तहसील प्रशासन की रिपोर्ट में राकेश जायसवाल और आरती जायसवा  के नाम से आबंटित खनन पट्टों में बार-बार अवैध खनन किया गया लेकिन जिला प्रशासन ने उनके खिलाफ कोई कठोर कार्रवाई नहीं की।

रूपा सिंह

श्रीमती रूपा सिंह पुत्र स्व. अजय सिंह और बिल्ली-मारकुंडी गांव निवासी अब्दुल सत्तार पुत्र स्व. कुर्बान अली के नाम से बिल्ली-मारकुंडी गांव की आराजी संख्या-4476 के 1.00 एकड़ रकबे में खनन पट्टा आबंटित है। इसकी मियाद 3 फरवरी 2017 तक है। गत वर्ष 15 सितंबर की तहसील प्रशासन की रिपोर्ट में साफ लिखा है कि इनके स्वीकृत क्षेत्र के पूरब अवैध खनन किया जा रहा है। सूत्रों की मानें तो श्रीमती रूपा सिंह आईपीएस अधिकारी (डीआईजी) अमर नाथ सिंह की बहू हैं और इनके दामाद आईएएस अधिकारी राजेश्वर प्रसाद सिंह उर्फ आरपी सिंह करीब आठ साल पहले सोनभद्र के जिलाधिकारी रह चुके हैं। फिलहाल जिला प्रशासन ने पिछले दिनों उक्त खदान में अवैध खनन पाया था और खान अधिकारी को इस खदान के पट्टाधारकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने का निर्देश दिया था।

श्रीमती मीरा राय

गाजीपुर जिले के रेवतीपुर डाकखाना क्षेत्र अंतर्गत तिलवा गांव निवासी श्रीमती मीरा राय पत्नी अमरनाथ राय के स्वामित्व वाली फर्म मेसर्स सत्यम स्टोन वर्क्स के नाम से बिल्ली-मारकुंडी गांव के आराजी संख्या-4959, 4961 से 4967 और 4972 से 4974 के 1.41 एकड़ रकबे में खनन पट्टा आबंटित है। इसकी मियाद 3 जनवरी 2017 तक है। तहसील प्रशासन ने अपनी रिपोर्ट में साफ लिखा है कि इनके स्वीकृत खनन क्षेत्र के दक्षिण और पश्चिम अवैध खनन किया जा रहा है तथा सीमा स्तंभ भी हटा लिया गया है। सूत्रों की मानें तो श्रीमती मीरा राय बागपत के एसपी और आईएएस अधिकारी अवधेश कुमार राय की रिश्तेदार हैं। इसलिए इनके खिलाफ जिला प्रशासन की ओर से कठोर कार्रवाई नहीं की जाती है।

उक्त के अलावा भी ऐसे कई खनन पट्टाधारक हैं जिन्होंने अपने स्वीकृत क्षेत्र से बाहर जाकर अवैध खनन किया और अब भी कर रहे हैं। 15 सितंबर 2014 समेत अन्य कई तिथियों की जांच में क्षेत्रीय लेखपाल समेत तहसील प्रशासन ने इन्हें अवैध खनन करते हुए पाया और अपनी रिपोर्ट कार्रवाई के लिए जिला प्रशासन को सौंपी। ऐसे अवैध खनन पट्टाधारकों में निम्नलिखित शामिल हैं-

(1) बिल्ली-मारकुंडी गांव के आराजी संख्या-7402क, 7403 और 7404 (कुल रकबा 2.45 एकड़) में खनन पट्टा राम नरेश पुत्र स्व. हरिराम अग्रहरी निवासी ओबरा के नाम दिनांक 24 अगस्त 2017 के लिए स्वीकृत है। इनके द्वारा अपने स्वीकृत खनन क्षेत्र से सटे पश्चिम में अवैध खनन किया जा रहा है  और पट्टाधारक द्वारा सीमा स्तंभ भी हटा लिये गये हैं।

(2) बिल्ली-मारकुंडी गांव के आराजी संख्या-7405 (कुल रकबा-3.15 एकड़) पर खनन पट्टा बिल्ली-मारकुंडी गांव निवासी संजय कुमार सिंह पुत्र अलगू सिंह और संजीव कुमार सिंह पुत्र राम लखन के नाम दिनांक 27 नवम्बर 2016 तक के लिए स्वीकृत है। उनके द्वारा अपने स्वीकृत खनन क्षेत्र से दक्षिण में अवैध खनन किया जा रहा है तथा मौके पर सीमा स्तंभ भी नहीं पाया गया। 

(3) बिल्ली-मारकुंडी गांव के आराजी संख्या-7536घ (रकबा 1.50 एकड़) में ओबरा नगर पंचायत के सामने वीआईपी रोड स्थित मकान संख्या-ए2 निवासी अशोक कुमार सिंह पुत्र श्री अवध नारायण सिंह के नाम दिनांक 29 मार्च 2017 तक खनन पट्टा स्वीकृत है। उनके द्वारा स्वीकृत खनन क्षेत्र से पूरब में अवैध खनन किया जा रहा है तथा सीमा स्तंभ भी हटा लिया गया है।

(4) बिल्ली-मारकुंडी गांव के आराजी संख्या-3567, हाल नंबर 7536ग (कुल रकबा 1.87 एकड़) में चोपन निवासी गणेश प्रताप सिंह पुत्र राम नाथ सिंह के नाम से 14 अप्रैल 2016 तक के लिए खनन पट्टा स्वीकृत है। पट्टाधारक द्वारा अपने स्वीकृत क्षेत्र से उत्तर अवैध खनन किया गया है तथा सीमा स्तंभ भी हटा लिया गया है। दक्षिण तरफ खड़ी पहाड़ी है जो खतरनाक स्थिति में है। 

(5) बिल्ली-मारकुंडी गांव के आराजी संख्या-7536ग (कुल रकबा 1.85 एकड़) में खनन पट्टा बिल्ली मारकुंडी गांव निवासी कादिर अली पुत्र तुफेन अहमद, केशव प्रसाद विश्वकर्मा पुत्र देवराज विश्वकर्मा और रंगनाथ पुत्र भोलानाथ के नाम दिनांक 15 अप्रैल 2016 तक के लिए स्वीकृत है। इनके स्वीकृत क्षेत्र के दक्षिण अवैध खनन किया जा रहा है तथा सीमा स्तंभ हटा लिए गए हैं। दक्षिण की तरफ खड़ी पहाड़ी है जो खतरनाक स्थिति में है।

(6) बिल्ली-मारकुंडी गांव के आराजी संख्या-7569क (रकबा 2.25 एकड़) में खनन पट्टा बिल्ली-मारकुंडी गांव निवासी पवन कुमार सिंह  आदि के स्वामित्व वाली फर्म मेसर्स पावग स्टोन क्रेसिंग कंपनी के नाम दिनांक 27 नवंबर, 2016 तक के लिए स्वीकृत है। उनके स्वीकृत क्षेत्र के पश्चिम और उत्तर अवैध खनन किया जा रहा है तथा सीमा स्तंभ भी हटा लिये गए हैं।

(7) बिल्ली-मारकुंडी गांव के आराजी संख्या-7564क, 7566, 7566ख और 7568 (कुल रकबा 1.55 एकड़) में खनन पट्टा ओबरा के गजराजनगर निवासी पंकज सिंह पुत्र चंद्रशेखर सिंह के नाम 22 मार्च 2016 तक के लिए स्वीकृत है। इनके स्वीकृत क्षेत्र के उत्तर अवैध खनन प्रतीत होता है तथा सीमा स्तंभ भी हटा लिया गया है।

(8) बिल्ली-मारकुंडी गांव स्थित आराजी संख्या-7617ख (रकबा 1.5 एकड़) में खनन पट्टा मेसर्स उमा सेवा समिति के नाम दिनांक 20 फरवरी 2017 तक के लिए स्वीकृत है। समिति की सचिव श्रीमती किरन राय पत्नी प्रदीप नारायण और सदस्य सत्येन्द्र कुमार सिंह पुत्र परमात्मा सिंह, निवासीगण- बिल्ली-मारकुंडी, द्वारा स्वीकृत क्षेत्र से सटे उत्तर-पूरब की तरफ अवैध खनन करने का प्रयास किया गया है तथा सीमा स्तंभ भी हटा लिए गए हैं।

(9) बिल्ली-मारकुंडी गांव के आराजी संख्या-5390ख, 5391, 5394, 5395 और 5396 (कुल रकबा 2.51 एकड़) में खनन पट्टा मेसर्स दीपाली सेवा समिति के सचिव विनोद कुमार के नाम 29 अप्रैल 2014 तक के लिए स्वीकृत है। इनके स्वीकृत क्षेत्र के पूरब अवैध खनन किया जा रहा है तथा सीमा स्तंभ भी हटा लिया गया है।

(10) बिल्ली-मारकुंडी गांव के आराजी संख्या-4478छ (कुल रकबा 1.22 एकड़) में खनन पट्टा बिल्ली-मारकुंडी स्थित मेसर्स सार्थक सेवा समिति के सचिव के रूप में रॉबर्ट्सगंज निवासी विप्लव जालान पुत्र रवि जालान के नाम 22 दिसंबर, 2016 तक के लिए स्वीकृत है। इनके स्वीकृत क्षेत्र के दक्षिण अवैध खनन किया गया है और सीमा स्तंभ भी हटा लिया गाय है।

(11)बिल्ली-मारकुंडी गांव के आराजी संख्या-6229ख (कुल रकबा 1.00 एकड़) में खनन पट्टा ओबरा स्थित मेसर्स सत्यसेवा समिति के अध्यक्ष एसपी सिंह पुत्र राम सूरत सिंह, सचिव श्रीमती रश्मि सिंह पत्नी आशीष सिंह और सदस्य इसहाक पुत्र इदरीश के नाम दिनांक 19 फरवरी 2017 तक के लिए स्वीकृत है। इनके स्वीकृत क्षेत्र के उत्तर अवैध खनन किया जा रहा है तथा सीमा स्तंभ भी हटा लिया गया है। (एसपी सिंह, अमर उजाला के पत्रकार)

(12) बिल्ली-मारकुंडी के आराजी संख्या-6229ख (कुल रकबा 5.00 एकड़) में खनन पट्टा मनोज कुमार सूद पुत्र सुरेन्द्र कुमार सूद आदि के नाम दिनांक 23 मई, 2024 तक के लिए स्वीकृत है। इनके स्वीकृत क्षेत्र के उत्तर अवैध खनन किया जा रहा है तथा सीमा स्तंभ भी हटा लिया गया है।

(13) श्रीमती निर्मला अग्रवाल और श्रीमती चंचला केशरी की संयुक्त स्वामित्व वाली फर्म मेसर्स अग्रवाल ब्रदर्स के नाम से बिल्ली-मारकुंडी गांव के आराजी संख्या-4478  के कुल 0.62 एकड़ में खनन पट्टा आबंटित है जिसकी मियाद 28 नवंबर 2016 तक है। तहसील प्रशासन की रिपोर्ट में अवैध खनन में इसके शामिल होने की बात कही गई है। रिपोर्ट में लिखा है कि इनके स्वीकृत क्षेत्र के उत्तर अवैध खनन किया जा रहा है तथा सीमा स्तंभ भी हटा लिये गए हैं।

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तीन मजदूरों की मौत के बाद भी नहीं रुका खदान में अवैध खनन

शिव दास

डोलो स्टोन पत्थर की खतरनाक खदान में तीन मजदूरों की मौत के बाद भी अवैध खनन का गोरखधंधा चलता रहा लेकिन जिला प्रशासन के नुमाइंदे अवैध खनन रोकने में नाकाम रहे। यह खुद जिला प्रशासन के निर्देश पर रॉबर्ट्सगंज तहसील प्रशासन की जांच रिपोर्ट में उजागर हुआ है। वर्ष 2013 से सितंबर, 2014 तक उसकी सभी रिपोर्टों में चोपन निवासी धर्मेंद्र कुमार सिंह पुत्र प्रेम नारायण सिंह के नाम से आबंटित खनन पट्टों की भूमि पर अवैध खनन पाया गया है।

तहसील प्रशासन की हालिया रिपोर्ट ( सितंबर 2014) में साफ लिखा है कि बिल्ली-मारकुंडी गांव की आराजी संख्या-7613 के 1.25 एकड़ क्षेत्रफल में चोपन निवासी धर्मेन्द्र कुमार सिंह के नाम से 28 जून 2019 तक के लिए खनन पट्टा स्वीकृत है। उनके द्वारा अपने स्वीकृत क्षेत्र से पश्चिम में अवैध खनन किया जा रहा है और सीमा स्तंभ भी हटा लिए गए हैं। धर्मेंद्र की अन्य खदान में तहसील प्रशासन ने अवैध खनन पाया है। उसने अपनी इसी रिपोर्ट में लिखा है कि बिल्ली-मारकुंडी गांव की आराजी संख्या-7618 और 7614ग (के 4.54 एकड़ रकबे में चोपन निवासी धर्मेंद्र कुमार सिंह पुत्र स्व. प्रेम नारायण सिंह के नाम खनन पट्टा दिनांक 28 जून 2019 तक के लिए स्वीकृत है। इनके द्वारा अपने खनन क्षेत्र से हटकर पूरब और दक्षिण अवैध खनन किया जा रहा है तथा सीमा स्तंभ भी हटा लिये गए हैं। गौर करने वाली बात है कि धर्मेंद्र सिंह बार-बार अवैध खनन कर रहा है लेकिन जिला प्रशासन उसके खिलाफ कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा।

8 जुलाई, 2013 को क्षेत्रीय लेखपाल, राजस्व निरीक्षक, अगोरी, नायब तहसीलदार, रॉबर्ट्सगंज, तहसीलदार रॉबर्ट्सगंज, क्षेत्राधिकारी, ओबरा और उप-जिलाधिकारी, रॉबर्ट्सगंज ने जिलाधिकारी को अपनी रिपोर्ट पत्रांक संख्या-75/टंकक-जांच(आख्या)/2013 के माध्यम से दी। उन्होंने जिलाधिकारी को संबोधित पत्र में लिखा है कि आपके मौखिक निर्देश के अनुपालन में मेरे द्वारा खान अधिनियम-1952 की धारा-22(2)22ए(2) के अंतर्गत निषेधाज्ञा लगे खनन पट्टों के संबंध में जांच की गई। रिपोर्ट में लिखा है कि चोपन निवासी धर्मेन्द्र कुमार सिंह पुत्र स्व. प्रेम नारायण सिंह के स्वामित्व वाली मेसर्स सौरभ क्रेशर्स के नाम से आबंटित खनन पट्टे के आराजी संख्या-5593क ( हाल नंबर 7613, कुल रकबा 1.25 एकड़) का निरीक्षण किया गया। इस खनन पट्टे की अवध 4 जनवरी 2007 से 3 जनवरी 2017 तक है। उक्त पट्टाधारक द्वारा यहां पर खतरनाक ढंग से पत्थर खनन किया जा रहा है जहां पर दुर्घटना की संभावना बनी हुई है। खदान में दो वाहन बिल्कुल एक झुकी हुई पहाड़ी के नीचे खड़े हैं तथा बहुत ऊंचाई से खनन करने के लिए उन्हें नीचे आना पड़ता है। इससे कभी भी वाहनों के पीछे चलने के कारण दुर्घटना हो सकती है। ऐसा कई बार हो चुका है। ऐसा होने पर तीन व्यक्तियों की मृत्यु भी हो चुकी है जिसकी प्राथमिकी भी दर्ज कराई गई थी। इनके द्वारा भी खतरे के कारणों को समाप्त न करके खदान के अंदर परिवहन किया जा रहा है। इसके बावजूद जिला प्रशासन इस खदान में अवैध खनन के गोरखधंधे को रोक नहीं सका। इसकी पुष्टि खुद तहसील प्रशासन की जांच रिपोर्टें करती हैं।

4 अगस्त 2013 को क्षेत्रीय लेखपाल ने बिल्ली-मारकुंडी गांव स्थित खनन क्षेत्र का निरीक्षण किया। इसमें उसने पाया कि धर्मेंद्र कुमार सिंह के नाम से बिल्ली-मारकुंडी गांव के आराजी संख्या-7613 (कुल रकबा 1.25 एकड़) में आबंटित खनन पट्टे से दक्षिण-पूरब आराजी संख्या-7613 के आंशिक भाग और 7610 में अवैध खनन किया जा रहा है। 22 अगस्त 2013 और 23 सितम्बर 2013 की जांच रिपोर्टों में भी ऐसा ही पाया गया।

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मीडिया बयानबाजी तक सिमटी अवैध खनन के खिलाफ राजनेताओं की कार्रवाई

सोनभद्र में जिला प्रशासन, सफेदपोश नेताओं और खनन माफियाओं के गठजोड़ के बल पर हो रहे अवैध खनन के खिलाफ विभिन्न राजनीतिक पार्टियों की मुखालफत मीडिया बयानबाजी तक सिमट कर रह गई है। किसी भी राजनीतिक पार्टी और गैर-सरकारी संगठन ईमानदारी से जिले में अवैध खनन रोकने के लिए आगे नहीं आ रहे हैं। राजनेताओं और जनप्रतिनिधियों की बार-बार बयानबाजी से कुछ ऐसा ही प्रतीत हो रहा है। दूसरी ओर, पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) के प्रदेश संगठन सचिव विकास शाक्य ने जिला प्रशासन की रिपोर्ट को आधार बनाते हुए विभिन्न संवैधानिक संस्थाओं के प्रमुखों समेत मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर तथ्यात्मक बिन्दुओं पर श्वेत-पत्र जारी करने और दोषियों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई करने की मांग की है। साथ ही उन्होंने चिन्हित अवैध खननकर्ताओं पर मुकदमा दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार करने की मांग भी की है। अवैध खननकर्ताओं के नाम से आबंटित खनन पट्टों को निरस्त करने की बात भी उनके पत्र में कही गई है।

वहीं, जिले में अवैध खनन के मामले में संलिप्त समाजवादी पार्टी के नेताओं के खिलाफ कार्रवाई करने के मामले में पार्टी के जिलाध्यक्ष और विधायक अविनाश कुशवाहा का कहना है कि बसपा सरकार के दौरान जिले में जमकर अवैध खनन हुआ था। इस वजह से 27 फरवरी 2012 को बिल्ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र में विभत्स हादसा हुआ और 10 मजदूरों की मौत हुई। सपा सरकार अवैध खनन को रोकने के लिए प्रतिबद्ध है और खनन माफियाओं के खिलाफ कड़ाई से कार्रवाई कर रही है। कई लोगों के खिलाफ जिला प्रशासन ने एफआईआर दर्ज कराया है और अभी छापेमारी हो रही है। कई लोग जेल भेजे जा चुके हैं। हालांकि बिल्ली-मारकुंडी खनन हादसे की जांच रिपोर्ट नहीं आने के सवाल पर वे कोई सीधा जवाब नहीं दे पाए। फिलहाल उन्हें आशा है कि मुख्य विकास अधिकारी जल्द ही अपनी जांच रिपोर्ट प्रशासन को सौंप देंगे।

वहीं भाजपा की सोनभद्र इकाई के पूर्व जिलाध्यक्ष ओंकार केशरी ने कहा कि अवैध खनन वायुमंडल के लिए खतरा है। सोनभद्र में अवैध खनन जिला प्रशासन और खनन माफियाओं के गठजोड़ की वजह से हो रहा है। यहां के अवैध खनन को देखकर लगता है कि प्रशासन सपा के कार्यकर्ता के रूप में काम कर रहा है। जिलाधिकारियों की नियुक्ति अवैध खनन समेत अन्य अवैध धंधों को चलाने की योग्यता के आधार पर होता है। सोनभद्र में अवैध खनन की जांच सीबीआई से कराई जानी चाहिए।
वहीं जिला खनन प्रभारी और अपर-जिलाधिकारी मनीलाल यादव ने दावा किया कि अवैध खनन के जितने भी मामले आ रहे हैं, उन सभी मामलों में कार्रवाई की जा रही है। हालांकि उनके तीन साल के कार्यकाल में कैसे हुआ अवैध खनन के सवाल पर वह कोई स्पष्ट जवाब नहीं दे पाए।

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शुक्रवार, 22 अगस्त 2014

सोनभद्र खनिज विभाग ने एक साल में बढ़ा ली 100 गुनी कमाई

गोलमालः विभाग की कमाई वित्तीय वर्ष 2010-11 में पिछले साल की कमाई 217 करोड़ रुपये से बढ़कर 27 हजार करोड़ रुपये से अधिक हुई।

reported by Shiv Das Prajapati

सोनभद्र। जनपद में मजदूरों और राहगीरों की मौत का इतिहास लिखने वाले खनन के धंधे से राज्य सरकार को हर साल 27 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की आमदनी होती है। यह दावा जिला खनन विभाग का है।  

उसने सूचना का अधिकार अधिनियम-2005 के तहत मांगी गई सूचना में यह दावा किया है। चौंकाने वाली बात यह है कि उन्होंने जिला खनिज विभाग की कमाई में वित्तीय वर्ष 2009-10 की तुलना में वित्तीय वर्ष 2010-11 में अचानक 100 गुने का इजाफा कर दिया है। यूं कहें कि जिला खनिज विभाग की आमदनी 217 करोड़ रुपये से बढ़कर अगले साल कुल 26,271 करोड़ रुपये हो गई। हालांकि इस कमाई का असर धरातल पर कहीं भी दिखाई नहीं दिया। खनन क्षेत्र में अवैध खनन से होने वाले खनन हादसों में ना ही कोई कमी आई और ना ही पत्थर की घातक खदानों में काम करने वाले मजदूरों की सुरक्षा ही सुनिश्चित हो पाई।

27 फरवरी, 2012 को बिल्ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र में शारदा मंदिर के पीछे स्थित पत्थर की एक खदान के धंसने से हुई 10 मजदूरों की मौत का मामला जिला खनिज विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों की लापरवाही के नतीजे के रूप में जिला प्रशासन और सरकार को मुंह चिढ़ा रहा है। वर्तमान में जनपद में चल रहे अवैध खनन के मामले में भी जिला खनिज विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों की कार्यशाली सवालों के घेरे में है।
  
सोनभद्र के तत्कालीन जिला खान अधिकारी एसके सिंह द्वारा सूचना का अधिकार अधिनियम-2005 के तहत वनांचल एक्सप्रेसको उपलब्ध कराई गई जानकारी के मुताबिक जिला खनिज विभाग ने वित्तीय वर्ष 2010-11 में राज्य सरकार को 26,271 करोड़ रुपये का राजस्व दिया था जबकि वित्तीय वर्ष 2009-10 में यह आंकड़ा 216 करोड़ 92 लाख 49 हजार रुपये था। इस तरह विभाग की कमाई में एक साल में 100 गुने से ज्यादा की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई। 
8 अक्टूबर, 2012 को एसके सिंह की ओर से पत्रकार शिव दास प्रजापति को मुहैया कराई गई जानकारी के मुताबिक जिला खनिज विभाग ने वित्तीय वर्ष 2011-12 में राज्य सरकार को 27,198 करोड़ रुपये का राजस्व दिया था। वहीं वित्तीय वर्ष 2012-13 के सितंबर तक विभाग ने राज्य सरकार के कोष में 8,669 करोड़ रुपये जमा किया था।

पूर्व में सोनभद्र के तत्कालीन अपर जिलाधिकारी (वित्त/राजस्व) द्वारा सूचना का अधिकार अधिनियम-2005 के तहत शिव दास प्रजापति को ही उपलब्ध कराई गई जानकारी के मुताबिक जिला खनिज विभाग से राज्य सरकार को वित्तीय वर्ष 2009-10 में कुल 216 करोड़ 92 लाख 49 हजार रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ था। वित्तीय वर्ष 2008-09 में यह आंकड़ा 120 करोड़ 94 लाख 64 हजार रुपये था। वित्तीय वर्ष 2007-08 में जिला खनिज विभाग ने राज्य सरकार के कोष में 170 करोड़ 90 लाख 25 हजार रुपये जमा किया था। वित्तीय वर्ष 2006-07 में यह आंकड़ा 147 करोड़ 52 लाख 6 हजार रुपये था। 

अगर सोनभद्र से राज्य सरकार को हर साल मिलने वाले औसत राजस्व की बात करें तो उसे वहां के 16 विभागों से कुल 8 अरब रुपये का राजस्व प्राप्त होता है जबकि इसमें केंद्र सरकार से प्राप्त होने वाला राजस्व शामिल नहीं है। सोनभद्र प्रशासन से सूचना का अधिकार अधिनियम-2005 के तहत जनपद गठन के बाद प्राप्त राजस्व एवं खर्च धन की जानकारी मांगी गई थी। जवाब में जिला प्रशासन की ओर से अपर जिलाधिकारी (वित्त/राजस्व) ने 16 विभागों से प्राप्त होने वाले राजस्व का विवरण उपलब्ध कराया। 

प्राप्त आंकड़ों के अनुसार राज्य सरकार को सोनभद्र से सबसे अधिक राजस्व वाणिज्यकर विभाग और खनिज विभाग से मिलता है। वित्तीय वर्ष 2009-10 में राज्य सरकार को यहां से कुल 774 करोड़ 44 लाख 95 हजार रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ था। इसमें 372 करोड़ 5 लाख 69 हजार रुपये वाणिज्यकर विभाग और 216 करोड़ 92 लाख 49 हजार रुपये खनिज विभाग से मिले थे।

इनके अलावा विद्युत विभाग से 98 करोड़ 10 लाख 35 हजार रुपये, आबकारी विभाग से 30 करोड़ 4 लाख 94 हजार रुपये, परिवहन विभाग से 19 करोड़ 91 लाख 17 हजार रुपये, स्वास्थ्य विभाग से 15 करोड़ 91 लाख 59 हजार रुपये और वन विभाग से 14 करोड़ 68 लाख, 19 हजार रुपये का राजस्व उत्तर प्रदेश सरकार को प्राप्त हुआ था। राज्य सरकार को राजस्व देने वाले अन्य विभागों में भू-राजस्व, मनोरंजन, नजूल, शिक्षा, चिकित्सा, सिंचाई, लोक निर्माण, मंडी और जिला उद्योग विभाग शामिल हैं। 

जिला प्रशासन के उपरोक्त आंकड़ों में केंद्र सरकार से प्राप्त होने वाला राजस्व शामिल नहीं है। अगर इसमें उसे शामिल कर लिया जाए तो उपरोक्त आंकड़ा 10 अरब से ज्यादा पहुंच जाएगा। इससे पूर्व के वित्तीय वर्षों के राजस्व पर ध्यान दें तो वर्ष 2008-09 में 2007-08 और 2006-07 में राज्य सरकार को सोनभद्र से क्रमशः 539.1246 करोड़ रुपये, 739.1063 करोड़ रुपये और 584.2617 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ था।

                                                          ( यह रिपोर्ट वनांचल एक्सप्रेस के प्रवेशांक में प्रकाशित हो चुकी है।)