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बुधवार, 3 सितंबर 2014

सोनभद्र की सदर तहसील में हर दिन 300 से ज्यादा खतौनियों का गोलमाल!

सदर तहसील स्थित कंप्यूटराइज्ड उद्धरण खतौनी काउंटर पर
खतौनी के लिए लगी किसानों की भीड़। 
सूचना का अधिकार कानून के तहत मांगी गई सूचना में रजिस्ट्रार कानूनगो ने हर दिन औसतन 150 खतौनियों की बिक्री का किया दावा। रजिस्ट्रार कानूनगो के आंकड़ों से मेल नहीं खाते तहसील प्रशासन के आंकड़े। दिसंबर, 2013 में 11,433 खतौनियों के बेचने का दावा कर रहा तहसील प्रशासन...

वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो

सोनभद्र। किसानों और भू-स्वामियों की खतौनियों के कंप्यूटराइज्ड उद्धरण के नाम पर प्रति खतौनी पांच रुपये अतिरिक्त वसूलने वाला सदर तहसील प्रशासन हर दिन तीन सौ से ज्यादा खतौनियों का विवरण गायब कर दे रहा है जिससे राज्य सरकार को हर महीने एक लाख रुपये से ज्यादा की हानि हो रही है! इस गोलमाल की पोल खुद तहसील प्रशासन के आंकड़े खोल रहे हैं। सूचना का अधिकार कानून के तहत मांगी गई जानकारी में तहसील प्रशासन ने कुछ ऐसी ही जानकारी मुहैया कराई है।

वनांचल एक्सप्रेसने गत 19 दिसंबर को सदर तहसील के उप-जिलाधिकारी कार्यालय के जन सूचना अधिकारी योगेंद्र सिंह से 6 बिन्दुओं पर सूचना चाही थी। इसके जवाब उन्होंने इस साल 28 जनवरी को सूचना उपलब्ध कराई। इसमें उन्होंने जानकारी दी कि गत वर्ष दिसम्बर में कंप्यूटराइज्ड उद्धरण खतौनी से कुल 11,433 खतौनियों की बिक्री की गई जिससे कुल 1,71,495 रुपये की धनराशि जमा हुई। इस धनराशि में से कुल 35,735 खर्च हुए। हालांकि उनकी यह सूचना उन्हीं द्वारा भेजे गए पत्र से संदिग्ध साबित हुई। 

सोनभद्र स्थित सदर तहसील भवन
रजिस्ट्रार कानूनगो अनिल कुमार श्रीवास्तव की ओर से तहसीलदार को लिखे पत्र में दिसंबर, 2013 में हर दिन औसतन 150 खतौनी किसानों और भू-स्वामियों को बेचे जाने की बात लिखी गई है जबकि जन सूचना अधिकारी द्वारा प्रेषित पत्र में दिसंबर, 2013 में हर दिन औसतन 457 खतौनियों की बिक्री का दावा किया गया है। अगर इसमें से  इससे यह साबित होता है कि तहसील प्रशासन खतौनियों की बिक्री के मामले में वनांचल एक्सप्रेससमेत आम जनता को गुमराह करने की कोशिश कर रहा है।

सूत्रों की मानें तो सदर तहसील स्थित कंप्यूटराइज्ड उद्धरण खतौनी से हर दिन 500 से ज्यादा खतौनियों की बिक्री होती है लेकिन इसकी प्रक्रिया ऑनलाइन न होने से वहां कार्यरत लेखपाल कंप्यूटर साफ्टवेयर विशेषज्ञों की मदद से बिकी हुई खतौनियों के आंकड़े में छेड़छाड़ कर लेते हैं। इससे सरकार को हजारों रुपये की हानि होती है। खतौनी बिक्री की रसीद किसानों को न दिए जाने से उनकी गड़बड़ी प्रशासन की पकड़ में भी नहीं आती है। अगर प्रशासन खतौनी बिक्री की रसीद अनिवार्य कर दे तो किसानों से अवैध वसूली और उसके नाम पर होने वाले गबन पर अंकुश लग सकता है।


(नोटः हिन्दी साप्ताहिक समाचार-पत्र "वनांचल एक्सप्रेस" के 22+23वें (13 से 26 जुलाई, 2014, संयुक्तांक) के अंक में प्रकाशित।)