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सोमवार, 14 जून 2021

जातिगत उत्पीड़न को लेकर भाजपा पर फूटा बुद्धिजीवियों का गुस्सा, विपक्ष को भी ठहराया जिम्मेदार

परिचर्चा को संबोधित करते प्रो. जीएस मौर्य
बुद्धिजीवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने देश में जाति के आधार पर एससी, एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यों के उत्पीड़न के लिए आरएसएस और भाजपा को बताया जिम्मेदार। विपक्ष की वर्तमान राजनीति के लिए जताई चिंता।

वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो

वाराणसी। उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर सूबे में सरगर्मी तेज हो गई है। सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी सत्ता विरोधी लहर को शांत करने के लिए अपने सहयोगियों समेत छोटे-छोटे दलों को साधने में जुटी है तो उसकी नीतियों से नाराज बुद्धिजीवी, सामाजिक कार्यकर्ता और राजनेता लोगों को गोलबंद करने में जुट गए हैं। इसे लेकर लोगों के बीच मंथन भी हो रहा है। ऐसा ही मंथन रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के अखरी चौराहा इलाके स्थित एक निजी भवन में हुआ जिसमें वाराणसी में सक्रिय बुद्धिजीवी और सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हुए। एससी, एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यक बौद्धिक मंच और प्रजापति शोषित समाज संघर्ष समिति (पीएस4) की ओर से आयोजित 'जातिगत उत्पीड़न और विपक्ष की राजनीति' विषयक परिचर्चा में वक्ताओँ ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और भाजपा की हिन्दुत्व संस्कृति, वर्णव्यवस्था और नीतियों पर जमकर हमला बोला। साथ ही उन्होंने भाजपा सरकार की मनुवादी नीतियों के लिए विपक्षी राजनीतिक पार्टियों के नेताओं को जिम्मेदार ठहराया।

शुक्रवार, 14 अगस्त 2020

MGAHV: Ph.D हिन्दी साहित्य की 23 सीटों में SC को नहीं मिली एक भी सीट, दिव्यांगों के हाथ भी खाली

हिन्दी साहित्य की 23 सीटों में 10 सीट अनारक्षित हैं। ओबीसी को कुल नौ सीटें दी गई हैं...

वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो

केंद्र और राज्यों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) नीत भाजपा सरकार के आने के बाद अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति(एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) आरक्षण पर उच्च जातियों का हमला जारी है। विभिन्न विभागों की भर्तियों में आरक्षण नियमों की अनदेखी के बाद अब शिक्षण संस्थाओं में इन समुदायों के आरक्षण को खत्म किया जा रहा है। ऐसा ही एक मामला महाराष्ट्र के वर्धा स्थित महात्मा गांधी अंतराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय में सामने आया है। विश्वविद्यालय की ओर से शिक्षा सत्र-2020-21 में पीएचडी पाठ्यक्रम में प्रवेश के लिए उपलब्ध सीटों के ब्योरे में बड़े पैमाने पर आरक्षित वर्ग के सीटों सवर्णों के ईडब्ल्यूएस कोटा समेत अनारक्षित वर्ग में प्रकाशित कर दिया गया है। इसका नतीजा यह हुआ है कि हिन्दी साहित्य में शोध के लिए रिक्त 23 सीटों में अनुसूचित जाति वर्ग को एक भी सीट आरक्षित नहीं हुई है।

शुक्रवार, 24 जुलाई 2020

DU के बाद MU में EWS को SC/ST की छूट, OBC भरेगा सामान्य शुल्क

मिजोरम विश्वविद्यालय  (MU) प्रशासन ने प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और असिस्टेंट प्रोफेसर पद की भर्ती के आवेदन शुल्क में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को नहीं दी कोई छूट।

वनांचल  एक्सप्रेस ब्यूरो

दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) के बाद मिजोरम विश्वविद्यालय प्रशासन ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के सवर्णों को आवेदन शुल्क में एससी/एसटी को मिलने वाली छूट दी है। वहीं, ईडब्ल्यूएस के बराबर आय वाले अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को आवेदन शुल्क में कोई रियायत नहीं दी है। उन्हें अनारक्षित वर्ग के बराबर शुल्क चुकानी होगी।

शनिवार, 21 अप्रैल 2018

‘संविधान बचाओ आंदोलन’ से डरी सरकार, वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल समेत कई गिरफ्तार, चार घंटे बाद रिहा

देश की लोकतांत्रिक संस्थाओं और शिक्षण संस्थानों में प्रतिनिधित्व (आरक्षण) के अधिकार को खत्म करने समेत विभिन्न मुद्दों को लेकर केंद्र सरकार के खिलाफ दे रहे थे धरना।
वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो
नई दिल्ली। देशव्यापी संविधान बचाओ आंदोलन से डरी केंद्र सरकार के इशारे पर दिल्ली पुलिस ने वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल और उनके साथियों को शुक्रवार की शाम हिरासत में ले लिया और उन्हें संसद मार्ग थाना में करीब चार घंटे तक बंधक बनाये रखा। इस दौरान उनसे और उनके साथियों के साथ पुलिसवालों ने बदतमिजी भी की। उनके साथी वकीलों के हस्तक्षेप के बाद पुलिस ने उन्हें देर रात रिहा किया। 

शुक्रवार, 4 अगस्त 2017

BHU में SC, ST और OBC के प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने की मांग को लेकर बहुजन छात्रों ने किया प्रदर्शन

नुक्कड़ नाटक कर मांगा लोगों का समर्थन। बीएचयू प्रशासन के खिलाफ चलाया हस्ताक्षर अभियान।
वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो
वाराणसी। बीएचयू समेत देश के विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों के प्रतिनिधित्व के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए एससी, एसटी और ओबीसी छात्र संघर्ष समिति के बैनर तले छात्रों ने शुक्रवार को लंका स्थित बीएचयू गेट के सामने नुक्कड़ नाटक कर समर्थन मांगा। इस दौरान उन्होंने हस्ताक्षर अभियान भी चलाया। समिति द्वारा शिक्षण संस्थाओं में प्रतिनिधित्व के अधिकार के लिए चलाये जा रहे अभियान का यह चौथा दिन था।

शनिवार, 20 फ़रवरी 2016

JNU पर इसलिए हो रहा हमला


जेएनयू के 44 वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार 2013 -2014 में इसकी कुल विद्यार्थियों की संख्या 7677 में से 3648 विद्यार्थी वंचित समुदाय से थे। इनमें 1058 अनुसूचित जाति, 632 अनुसूचित जनजाति और 1948 ओबीसी से थे। कुल मिलाकर लगभग आधे विद्यार्थी ऊंची जातियों से बाहर के थे। यह संख्या और बेहतर होती जा रही है...
संजीव चंदन
बात 2006 की गर्मी के दिनों की हैजब कांग्रेसी दिग्गज अर्जुन सिंह ने मानव संसाधन विकास मंत्री के रूप में उच्च शिक्षा में ओ बी सी के लिए आरक्षण लागू कर दिया था. देश भर में इस निर्णय के खिलाफ आंदोलन हो रहे थेअगुआई कर रहा था छात्र संगठनों के बीच तेजी से उभरा यूथ फॉर इक्वालिटी.जे एन यू में भी उसका असर दिखा. वहां भी भी समर्थन और विरोध की मुहीम तेज थी. तब मैं महाराष्ट्र के केन्द्रीय विश्वविद्यालय का छात्र था और उन दिनों जे एन यू में प्रवासी था. हम कई लोग अर्जुन सिंह के निर्णय के पक्ष में वहां सक्रिय थे. पंपलेटपोस्टर और बैठकें कर रहे थे,. उस समय सबसे विचित्र था यूथ फॉर इक्वालिटी के आन्दोलनों में ऊंची जाति की पृष्ठभूमि से आने वाले उन छात्र छात्राओं के देखन जो पारंपरिक तौर पर वाम छात्र संगठनों के सदस्य या समर्थक थे. तब एबीवीपी भी हाशिये पर थीउनका समर्थक वर्ग यूथ फॉर इक्वालिटी की और शिफ्ट कर गया था. और हुआ भी यह कि बाद के छात्र संघ चुनावों में इस नये उभरे छात्र संगठन ने उम्मीद से ज्यादा मत हासिल किये.

आरक्षण और फेलोशीप ने बदली तस्वीर

लेकिन तब से लगातार जे एन यू बदला है क्योंकि तब दूसरे विश्वविद्यालयों की तरह यहाँ भी दलित आदिवासी पिछड़े-पश्मान्दा विद्यार्थियों के हक में इतिहास ने करवट ले लिया था, जो और मजबूत और हस्तक्षेपकारी होती गई. इन्हीं दिनों एक और महत्वपूर्ण घटना घटी, उच्च शिक्षा के नियामक संस्थान, ‘विश्वविद्यालय अनुदान आयोग’, के अध्यक्ष के रूप में दलित अर्थशास्त्री सुखदेव थोराट की नियुक्ति. उन्होंने दलित विद्यार्थियों के लिए राजीव गांधी फेलोशिपकी शुरुआत की . इस पहल का आगे विस्तार मुस्लिम विद्यार्थियों के लिए मौलाना आज़ाद फेलोशिप’, लडकियों के लिए फेलोशिप, ओ बी सी विद्यार्थियों के लिए फेलोशिपतथा केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में शोधरत सभी विद्यार्थियों के लिए फेलोशिप के रूप में होता गया. राजीव गांधी फेलोशिप सहित सारे शोध- छात्रवृत्तियों ने उच्च शिक्षा में ड्राप आउट’ ( बीच में पढाई छोड़ने ) की समस्या का स्थाई समाधान दे दिया. कैम्पस में सामाजिक रूप से वंचित उपेक्षित विद्यार्थियों के स्थाई होने और उनके सकारात्मक दवाब की शुरुआत की कहानी यहीं से शुरू होती है- विश्वविद्यालय कैम्पस बदल गये, बदलने लगे, जे एन यू कैम्पस भी. छात्र राजनीति में मुद्दों की केन्द्रीयता का स्वरूप बदला, शिक्षक राजनीति की दिशा बदली.

विद्यार्थियों की समाजिकी

जे एन यू के 44 वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार 2013 -2014 में इसकी कुल विद्यार्थियों की संख्या 7677 में से 3648 विद्यार्थी वंचित समुदाय से थे. (1058 अनुसूचित जाति, 632 अनुसूचित जनजाति और 1948 ओ बी सी). कुल मिलाकर लगभग आधे विद्यार्थी ऊंची जातियों से बाहर के थे. यह संख्या और बेहतर होती जा रही है.

विद्यार्थियों की बदली सामाजिक पृष्ठभूमि का ही असर है कि वहां छात्र राजनीति भी बदल रही है. यूथ फॉर इक्वालिटी जैसे संगठनों का वजूद हाशिये पर है . जे एन यू छात्र संघ के अध्यक्ष और अन्य पदों पर वंचित समुदायों से आये छात्र काबिज हो रहे हैं.

फॉरवर्ड प्रेस के सलाहकार संपादक और जे एन यू में बहुजन साहित्य इतिहास पर पी एच. डी. कर रहे प्रमोद रंजन के अनुसार इस कारण से ही समता आधारित बहुजन विचारों का प्रभाव कैम्पसों में दिख रहा है फुले आम्बेडकर-सावित्री बिरसाजिंदावाद के नारों ने मार्क्स- लेनिन जिंदावाद के नारों का स्पेस कम किया है. और ऐसा वामपंथी छात्र संगठनों की अगुआई में भी हो रहा है. ’’

डा. आम्बेडकर से खौफ

इसका असर मुद्दों के बदलने में भी दिख रहा है. पिछले 6 -7 सालों से जे एन यू बीफ पोर्क फेस्टिवल मनाने या दुर्गा पूजा के विरोध और महिसासुर शहादत दिवस मनाने की घटनाओं के कारण सुर्खियों में रहा है. यही कारण है कि संघ परिवार इसे लेकर काफी आक्रामक रहा है.
जे एन यू के पूर्व छात्र कुमार सुंदरम के अनुसार जे एन यू में आम्बेडकर और मार्क्स को मानने वाले विद्यार्थी एक साथ आये हैं. संघियों की बेचैनी का कारण यही है. सरकार इसी कारण से घबराई हुई है.’ 

यह सच है कि हिंदुत्व की सीधी आलोचना के कारण और सत्ता में बैठी हिन्दुत्ववादी ताकतें डा. आम्बेडकर से ज्यादा घबराती हैं, और पोस्टरों से पटे जे एन यू की दिवालों पर पिछले कुछ वर्षों से फुले ( जोतिबा और सावित्रीबाई फुले) आम्बेडकर-बिरसा की तस्वीरों और विचारों से भरे पड़े हैं.

खुफिया रिपोर्ट

जे एन यू पर हुई पुलिसिया कार्रवाई और सरकारी संरक्षण में दक्षिणपंथी हमले का आख़िरी हस्र चाहे जो भी हो , लेकिन इसके साथ ही पुलिस के खुफिया विभाग द्वारा जारी रिपोर्ट से यह तो स्पष्ट ही है कि हिन्दुत्ववादी ताकतों का आख़िरी एजेंडा क्या है? रिपोर्ट में जे एन यू में मनाये जाने वाले ' महिषासुर दिवस' को माओवादी संगठनों की कार्रवाई के रूप में चिह्नित किया गया है. यह कोई पुलिसिया चूक नहीं है कि भूलवश इसे मूलतः मनाने वाले संगठन आल इंडिया बैकवर्ड स्टूडेंट्स फोरम की जगह डी एस यू से जोड़ा जा रहा है . बल्कि सत्ता में बैठी हिन्दुत्ववादी ताकतें देश भर में दलित -बहुजनों के अपने सांस्कृतिक संघर्ष के दमन का आधार बना रही हैं, जे एन यू इस संघर्ष का केंद्र है , क्योंकि यहाँ फुले आम्बेडकर बिरसा की विचारधारा प्रभावी और ऐत्तिहासिक पहलें ले रही है .


साभारः दैनिक जन उदय