शनिवार, 21 अप्रैल 2018

‘संविधान बचाओ आंदोलन’ से डरी सरकार, वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल समेत कई गिरफ्तार, चार घंटे बाद रिहा

देश की लोकतांत्रिक संस्थाओं और शिक्षण संस्थानों में प्रतिनिधित्व (आरक्षण) के अधिकार को खत्म करने समेत विभिन्न मुद्दों को लेकर केंद्र सरकार के खिलाफ दे रहे थे धरना।
वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो
नई दिल्ली। देशव्यापी संविधान बचाओ आंदोलन से डरी केंद्र सरकार के इशारे पर दिल्ली पुलिस ने वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल और उनके साथियों को शुक्रवार की शाम हिरासत में ले लिया और उन्हें संसद मार्ग थाना में करीब चार घंटे तक बंधक बनाये रखा। इस दौरान उनसे और उनके साथियों के साथ पुलिसवालों ने बदतमिजी भी की। उनके साथी वकीलों के हस्तक्षेप के बाद पुलिस ने उन्हें देर रात रिहा किया। 
बता दें कि भाजपा की अगुआई वाली केंद्र सरकार देश की लोकतांत्रिक संस्थाओं और शिक्षण संस्थानों में प्रतिनिधित्व (आरक्षण) के अधिकार को खत्म करने की कोशिश कर रही है। वरिष्ठ पत्रकार और बहुजन चिंतक दिलीप मंडल ने सोशल वेबसाइट फेसबुक पर शुक्रवार को देशव्यापी संविधान बचाओ आंदोलन का आह्वान किया था। इसके लिए उन्होंने पांच मुद्दे निर्धारित किये थे। इनमें विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों की नियुक्तियों में एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग के आरक्षण को फिर से लागू करने और ऐसा होने तक इन संस्थानों में नियुक्तियों को रोके जाने समेत एससी-एसटी एक्ट पर अदालत और तारीख का खेल बंद करके तत्काल अध्यादेश लाने, उच्च न्यायपालिका में एससी, एसटी और ओबीसी आरक्षण का विधेयक संसद में पेश करने, 5 मई 2016 को जारी यूजीसी की अधिसूचना को वापस लेने और अगला लोकसभा चुना बैलेट पेपर पर कराने की मांग प्रमुख रूप से शामिल हैं।

संसद मार्ग थाना में धरना देते वरिष्ठ पत्रकार दिलीप सी. मंडल

इन मांगों को लेकर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों ने शुक्रवार को दिल्ली समेत देश के विभिन्न इलाकों में प्रदर्शन किया। दिल्ली में दो जगहों पर संविधान बचाओ आंदोलन हुआ। पहला आंदोलन भारत सरकार के सत्ता केंद्र शास्त्री भवन, सेंट्रल सेक्रेटारिएट मेट्रो स्टेशन, गेट नंबर -2 पर और दूसरा दिल्ली यूनिवर्सिटी, आर्ट्स फेकल्टी में। शास्त्री भवन के सामने हो रहे प्रदर्शन के दौरान वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल और उच्चतम न्यायालय के अधिवक्ता नितिन मेश्राम के साथ पुलिसकर्मियों ने बदतमीजी की। केंद्र की सरकार के इशारे पर दिल्ली पुलिस ने वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल और उनके करीब दस साथियों को हिरासत में ले लिया जिनमें दिलीप यादव, नितिन मेश्राम, धर्मवीर यादव गगन, मुख्त्यार सिंह, गुरिंदर आज़ाद, भारत सिंह, प्रो. लाल रत्नाकर, प्रदीप नरवाल, धर्मराज कुमार और अजय कुमार शामिल थे। पुलिस ने संसद मार्ग थाना ले गई जहां उन्हें करीब चार घंटे तक उन्हें बंधक बनाए रखा। अधिवक्ता सत्य प्रकाश गौतम और उनके साथियों के हस्तक्षेप के बाद पुलिस ने उन्हें देर रात रिहा किया।

उधर, वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल की गिरफ्तारी की खबर लगते ही फेसबुक पर दिल्ली पुलिस और सरकार के इस कारनामे की निंदा होने लगी। लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार अंबरीश कुमार ने लिखा, "संविधान बचाने के लिए आंदोलन कर रहे पत्रकार साथी दिलीप मंडल की गिरफ्तारी निंदनीय है। उन्हें फ़ौरन रिहा किया जाना चाहिए।"

वहीं सूर्यांश मूलनिवासी ने लिखा, "प्रख्यात सामाजिक चिंतक Dilip C Mandal सर को संविधान बचाने और ओबीसी एससी एसटी को सरकारी नौकरियों में भागीदारी दिलाने के जुर्म में पंडित मोहन भागवत की पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया।"

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर चौथीराम यादव ने लिखा, "अभी खबर मिली है कि संविधान बचाओ आंदोलन में दिलीप सी मण्डल को दिल्ली पुलिस ने अरेस्ट कर लिया है। मण्डल के साथ धर्मवीर यादव गगन सहित 10 और साथी उसी जेल में हैं जिसमें कभी साम्राज्यवादी सरकार ने भगत सिंह को कैद किया था। ऐसी सूचना गगन ने अपनी पोस्ट में दी है। यह हरकत निंदनीय है।" 

बहुजन समुदाय के बुद्धिजीवी दिल्ली पुलिस और केंद्र सरकार की इस कार्रवाई का पुरजोर विरोध कर रहे हैं। वाराणसी के राजेश भारती ने फेसबुक की अपनी टाइम लाइन पर पोस्ट किया है, "कल जिस तरह से पुलिस द्वारा कानून की धज्जियां उड़ाते हुए वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल जी, सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील नितिन मेश्राम जी के साथ कुछेक प्रोफेसर और अन्य छात्रों की संसद मार्ग से गिरफ्तारी हुई, वह सरकार की तानाशाही रवैये का प्रत्यक्ष सबूत रहा l यहाँ तक की सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील नितिन मेश्राम जी के साथ पुलिस द्वारा बदसलूकी (हाथापाई) तक की गई l जबकी वो बार बार पूछते नजर आएं कि हमें किस कानून के तहत उठाया या गिरफ्तार किया जा रहा है l हमेशा से बहुजन समाज के हक की मजबूती से आवाज उठाने (वैचारिक योगदान देने) वाले दिलीप मंडल जी अपने कुछ साथियों के साथ कल संसद मार्ग पर 'संविधान बचाओ' आंदोलन के संदर्भ में शांतिपूर्ण तरीके से मार्च कर रहे थे l 
कभी कभी समझने में बड़ी कठिनाई होती है की ये चंद साथी किस मरे हुए समाज की लड़ाई लड़ रहे हैं ? क्या इनका इस लड़ाई से कोई निजी हित सधने वाला है ! 85 प्रतिशत जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करने वाला sc/st/obc समाज को अपने जिन संवैधानिक अधिकारों को छीनने की काबिलियत रखनी चाहिए, वो उसके लिए भीख मांग रहा है l कारण... आपसी मतभेद, जातिभेद एवं आस्था के मुद्दों को को लेकर बिखरा पड़ा है समाज l मनुवादियों की तो जैसे बिन मांगे मुराद पूरी करने में लगे हैं हम l sc/st/obc के ज्यादातर पढ़े लिखे साथियों का इन मांगो के प्रति समर्थन करने में प्रायः यह प्रतीत होता है कि ऐसा करके वो अपने सवर्ण साथियों के नजर में जातिवादी करार दे दिये जायेंगे l काश कि जितना ख़याल आप उनका रखते हैं, उतना ही ख़याल वो आपका भी रखते तो आपके आंदोलन का वो भी हिस्सा होतें l और यह सदैव याद रखिए की जाति बनाने में आपका तनिक भी योगदान नहीं रहा है, क्योंकि ऐसा होता तो वर्ण व्यवस्था में आज आप खुद सबसे ऊपर बैठे होते l आप ऊपर नहीं है इसका मतलब की आपने जातियां नहीं बनाई लेकिन उनकी बनाई व्यवस्था को आप मजबूती जरूर प्रदान रहे हैं, क्योंकि हम प्रत्येक को अपने से नीच जातियां ढूंढने की आदत हो गई है l
हम अपनी ही उलझनों में उलझे रहे और ये मनुवादी सरकार ने विभागवार रोस्टर प्रणाली का अनुसरण करते हुए धड़ल्ले से ज्यादातर विश्वविद्दालयों में खाली पड़े सीटों पर लगभग शून्य रिजर्वेशन पर भर्तियाँ निकालना शुरू कर दिया l sc/st एक्ट को निष्प्रभावी कर दिया गया l न्यायपालिका में सभी वर्गों के प्रतिनिधित्व (आरक्षण) को ये स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं l बैलेट पेपर से भी चुनाव को तैयार नहीं l ऐसे ही कुछ संवैधानिक अधिकारों की बहाली के लिए आपके भी हक की लड़ाई कुछ चंद साथी लड़ रहे हैं और अपनी गिरफ्तारियां दे रहे हैं l इनमें से कुछ ऐसे भी है जो अच्छे पदों पर हैं और अच्छा जीवन जीने की काबलियत भी रखते हैं l लेकिन वो आपके बिखरे अतीत को महसूस करते हैं और दूर तक देखने में समर्थ भी हैं की कहीं आप फिर उसी दलदल में जा न गिरें या साजिशन गिरा न दिए जाएं ! आखिर ऐसे कब तक बिखरे पड़े रहेंगे हम और मनुवादियों के साजिश का शिकार होते रहेंगे l हम जितना अलग थलग पड़े रहेंगे तानाशाही सरकार की चाबुक का निशाना बनते रहेंगे l ये सरकार अपने अब तक के शासन काल में बहुजनों के प्रति दमन और अत्याचार की कहानी ही लिखती आई है l यदि वंचित समाज को ये सरकार अन्य किसी तरह से लाभान्वित नहीं कर सकती तो कम से कम पूर्व में प्राप्त अधिकारों का संरक्षण तो कर ही सकती थी l बहुजन समाज को इसकी नियत में खोट को टटोलना पड़ेगा और सरकार की उन गतिविधियों को कभी नजरअंदाज नहीं करनी होगी जो उसके संवेदनशील मुद्दों से अब तक खेलती नजर आई है l"

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