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रविवार, 31 जनवरी 2021

किसान आंदोलन को कवर कर रहे दो पत्रकारों को दिल्ली पुलिस ने उठाया, CPJ ने जारी किया अलर्ट

कारवां और जनपथ के लिए बतौर स्वतंत्र पत्रकार काम कर रहे मंदीप पुनिया पर पुलिस के साथ बदसलूकी करने और सरकारी काम में बाधा पहुंचाने की एफआईआर दर्ज लेकिन उनकी लोकेशन का पता नहीं। ऑनलाइन न्यूज इंडिया के पत्रकार धर्मेंद्र सिंह को भी दिल्ली पुलिस ने लिया हिरासत में। 

वनांचल एक्सप्रसे ब्यूरो

नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की अगुआई वाली केंद्र सरकार के नये तीन कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन को लगातार कवर कर रहे दो पत्रकारों को दिल्ली पुलिस ने शनिवार की शाम को उठा लिया। खबर लिखे जाने तक उनकी लोकेशन का पता नहीं चल पाया था। पत्रकारों को उठाए जाने के बाबत अंतरराष्‍ट्रीय एजेंसी 'कमेटी टु प्रोटेक्‍ट जर्नलिस्‍ट्स (सीपीजे)' ने शनिवार की देर रात अलर्ट जारी किया। वहीं, वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल, ओम थानवी समेत संयुक्त किसान मोर्चा ने जल्द से जल्द पत्रकार मंदीप पुनिया को रिहा करने की मांग दिल्ली पुलिस से की है। 

शुक्रवार, 22 जून 2018

वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल का यह सवाल आपको परेशान करेगा

विपक्षी नेता क्या इसलिए खामोश रहेंगे कि मुसलमानों के लिए न्याय की बात करने से कोई काल्पनिक हिंदू ध्रुवीकरण हो जाएगा?

महोदया/महोदय,
मुझे मालूम है कि आप सब आने वाले विधानसभा चुनावों और फिर 2019 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों में व्यस्त होंगे. आप राज्यस्तरीय, जिलास्तरीय और चुनाव क्षेत्र स्तरीय सभाएं कर रहे होंगे.

शनिवार, 16 जनवरी 2016

डॉ. अंबेडकर प्रतिष्ठान की स्टाल से नहीं बेची जा रही 'अनाइलेशन ऑफ कास्ट'

प्रगति मैदान में विश्व पुस्तक मेला-2016 में लगी डॉ. अंबेडकर प्रतिष्ठान की बुक स्टाल।           

अंबेडकर वांग्मय के अब तल छपे 21 अंकों में से केवल 11 अंक उपलब्ध।

Shiv Das

नई दिल्ली। डॉ. भीमराव अंबेडकर की 125वीं जयंती के मौके पर सांसदों को अंबेडकर के विचारों के प्रचार-प्रसार का पाठ पढ़ाने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली सरकार के मंत्री और नौकरशाह खुलेआम उनके विचारों की हत्या कर रहे हैं। प्रगति मैदान में चल रहे विश्व पुस्तक मेला-2016 में केंद्र सरकार के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के अधीन डॉ. अंबेडकर प्रतिष्ठान के बुक स्टाल पर अंबेडकर वांग्मय के करीब एक दर्जन अंक गायब हैं। इनमें जातिप्रथा का उन्मूलन, हिन्दू धर्म की पहेलियां, अस्पृश्य होने का अर्थ, अछूतों की जनसंख्या, जाति और संविधान, आदि पुस्तकें शामिल हैं। इसके अलावा अंबेडकर वांग्मय के 22 से 40 अंकों के किताबों को पिछले 15 वर्षों से छपने का इंतजार है। इससे अंबेडकर के विचारों को जानने के इच्छुक पाठकों में मायूसी देखी जा रही है और वे इसके लिए केंद्र की मोदी सरकार और आरएसएस को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।

मेला में डॉ. अम्बेडकर प्रतिष्ठान के बुक स्टाल पर अंबेडकर वांग्मय के अब तल छपे 21 अंकों में से केवल 11 अंक ही मौजूद है। वह भी काफी कम मात्रा में। शेष 10 अंकों की प्रतियां उपलब्ध क्यों नहीं होने के सवाल पर वहां कार्यरत कर्मचारी आलाधिकारियों से बात करने की बात कहकर जानकारी देने से कतरा रहे हैं। प्रतिष्ठान द्वारा प्रकाशित की जाने वाली मासिक पत्रिका 'सामाजिक न्याय सन्देश' का अक्टूबर, 2015 के बाद कोई भी अंक बाजार में नहीं आया है। इसके अलावा अंबेडकर वांग्मय के 22 से 40 अंक के किताबों को प्रकाशित करने का काम 15 साल पहले ही पूरा हो चुका है लेकिन उन्हें अभी तक छपने का इंतजार है। प्रतिष्ठान में कार्यरत विश्वसनीय सूत्रों की मानें तो संस्थान के पास हर साल पर्याप्त फंड होता है लेकिन अंबेडकर वांग्मय के प्रकाशक और संपादक दिल्ली के दबाव में इसमें रुचि नहीं ले रहे। हर साल प्रतिष्ठान को आबंटित होने वाले फंड में महज दस फीसदी ही खर्च हो पाता है। शेष धनराशि लैप्स हो जाती है। इसके बावजूद स्टाल पर कार्यरत कर्मचारी अम्बेडकर से जुड़ी पुस्तकों को सस्ती और विश्वसनीय रूप में पाठकों तक पहुचाने के कार्य का दावा कर रहे हैं।  

टीवी पत्रकार महेंद्र मिश्र
विश्व पुस्तक मेला में डॉ. अंबेडकर प्रतिष्ठान के बुक स्टाल पर अंबेडकर वांग्मय का संकलन लेने पहुंचे टीवी पत्रकार महेंद्र मिश्रा किताब का पूरा संकलन नहीं मिलने से निराश दिखे। उन्होंने बातचीत में बताया कि मैं अंबेडकर के विचारों को समझना चाहता हूं। इसके लिए मैं उनके विचारों का संग्रह लेने आया था लेकिन वह एक किताब के रूप में नहीं है। मैं अंबेडकर वांग्मय के अबतक मौजूद सभी अंकों को खरीदना चाहता हूं लेकिन केवल 11 अंक ही मौजूद हैं। इनमें जाति के उन्मूलन पर लिखी गई डॉ. अंबडकर की सबसे महत्वपूर्ण किताब नहीं है। फिलहाल यहां उपलब्ध सभी 11 अंक मैंने खरीद लिए हैं लेकिन पूरे अंक मिल जाते तो अच्छा होता।


वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल
वहीं वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल भी बुक स्टाल पर अंबेडकर वांग्मय की सीरिज लेने पहुंचे लेकिन डॉ. अंबेडकर की चुनिंदा किताबों को स्टाल पर उपलब्ध नहीं होने पर हतप्रभ हो गए। उन्होंने आगंतुक रजिस्टर में अपनी टिप्पणी लिख मारी। बातचीत के दौरान उन्होंने कहा, भारत सरकार इस साल बाबा साहेब की किताबों का पूरा सेट नहीं बेच रही है, यह कहने से पूरी तस्वीर साफ नहीं होती। वह 21 में से 10 चुनींदा किताबें नहीं बेच रही है। सिर्फ़ 11 किताबें बेची जा रही हैं। अंदाज़ा लगाइए कि क्या नहीं बेचा जा रहा है। इस स्टाल पर बाबा साहेब की रचनाओं का जो सेट मिल रहा है, उनमें वे सारी किताबें गायब हैं जिनमें उन्होंने जाति व्यवस्था, हिंदू पोंगापंथ, ब्राह्मणवाद की समीक्षा की है। एनिहिलेशन ऑफ कास्ट से लेकर रिडल्स इन हिंदुइज्म सब गायब। बुद्ध एंड हिज धम्मा तो हिंदी में इन्होंने छापी ही नहीं। यह बात ज्यादा चिंताजनक इसलिए है कि बाबा साहेब रचना समग्र को हिंदी में छापने का अधिकार इनके पास है।

युवा पत्रकार अरविंद शेष
इसी दौरान पत्रकार अरविंद शेष भी स्टाल पर पहुंचे। उन्होंने बताया कि पटना पुस्तक मेला में इस बार आंबेडकर फाउंडेशन के पास आंबेडकर वांग्मय का सेट नहीं मिला। शायद इस बार आंबेडकर फाउंडेशन के पास यह है ही नहीं। यह कृपा महाराष्ट्र की भाजपा सरकार की है और केंद्र में भी भाजपा की सरकार है। दरअसल, आंबेडकर फाउंडेशन के स्टॉल पर बताया गया कि इस बार आंबेडकर के संपूर्ण वांग्मय को छापने के लिए महाराष्ट्र सरकार ने एनओसी यानी अनापत्ति प्रमाण-पत्र नहीं दिया (शायद किताब छापना महाराष्ट्र सरकार से जुड़ा मामला होगा)। 

बॉक्सः

अन्य प्रकाशन उठा रहे मौके का फायदा

नई दिल्ली। अम्बेडकर प्रतिष्ठान पर पुस्तकों के न मिलने का फायदा अन्य प्रकाशन उठा रहे हैं। अम्बेडकर की जीवनी पर आधारित 'अम्बेडकर संचयन' 1200 रुपये में मिल रही है जबकि अम्बेडकर वांग्मय की पूरी सिरीज मात्र 500-600 रुपये में मिल जाती है। 
                                                                                      (सूचना संकलन और रिपोर्टिंग सहयोग: बिपिन दुबे)