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सोमवार, 30 जनवरी 2023

महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर विशेषः शिक्षा में गांधी दर्शन की प्रासंगिकता

महात्मा गांधी एक शिक्षाविद और समाजशास्त्री थे जिन्होंने भारत को आजादी दिलाने के लिए दुनिया भर में अहिंसा, नागरिक अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए प्रेरित आंदोलनों का नेतृत्व किया। उनका दर्शन सत्य, अहिंसा और नैतिकता पर आधारित था।  वह भारतीयों की समस्याओं से पूरी तरह वाकिफ थे और उन्होंने इस बात को ध्यान में रखा, जब उन्होंने नौकरी-उन्मुखता, चरित्र निर्माण, सामाजिक विकास और यौन-शिक्षा और बुनियादी शिक्षा देने पर ध्यान केंद्रित करने के बारे में पता लगाया।  जब हम शिक्षा के इन उद्देश्यों को समाज की मौजूदा स्थिति से जोड़ते हैं तो हमें लगता है कि स्कूल और कॉलेजों में शिक्षा नौकरी उन्मुखीकरण के लक्ष्य को पूरा नहीं कर रही है और बच्चा अब हिंसा और अन्य सामाजिक विरोधी गतिविधियों में अधिक शामिल है।  दुनिया भर में हर देश में किशोरों द्वारा किए गए अपराध की संख्या बढ़ रही है।  स्थिति की मांग है कि गांधी के दर्शन का गंभीरता से पालन किया जाए और तभी हम मानवता को बचा सकते हैं और बच्चे का सर्वांगीण विकास कर सकते हैं...

written by अच्छे लाल प्रजापति

हात्मा गांधी एक महान दार्शनिक, शिक्षाविद् और समाजशास्त्री थे, जिन्होंने भारत को स्वतंत्रता दिलाई और दुनिया भर में अहिंसा, नागरिक अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए आंदोलनों को प्रेरित किया।  उन्होंने इंग्लैंड और दक्षिण अफ्रीका में एक लंबा समय बिताया था, इसलिए उनकी सोच प्रक्रिया पश्चिमी संस्कृति से भी प्रभावित थी।  उन्हें गीता, कुरान और बाइबिल का गहरा ज्ञान था।  गांधी जी के शैक्षिक विचारों का महत्वपूर्ण बिंदु यह था कि वे भारतीयों की समस्याओं से पूरी तरह परिचित थे और उन्होंने शैक्षिक विचार प्रदान करते समय इस बात को ध्यान में रखा।  एक तरफ उन्होंने पुरानी भारतीय शिक्षा प्रणाली के उद्देश्यों का समर्थन किया और दूसरी तरफ उन्होंने उन्हें आधुनिक काल के अनुसार संशोधित किया। उनका दर्शन प्रकृतिवाद, व्यावहारिकता और आदर्शवाद के बीच समन्वय राष्ट्र का एक उत्कृष्ट कृति है। गांधीवादी विचार ऐसे दर्शन और परंपरा पर आधारित है, जो मूल रूप से धर्मनिरपेक्ष है और सभी सवालों के जवाब देता है, जो पारिस्थितिक चेतना से भरे हुए हैं।  गांधी का दर्शन तीन मूलभूत सिद्धांतों - सत्य, अहिंसा और नैतिकता पर आधारित है, जो न केवल वैचारिक ढांचे हैं बल्कि आभासी अनुप्रयोग भी हैं।  गांधी दर्शन का केन्द्र बिन्दु शैक्षिक विचार था। उनके अनुसार शिक्षा का उद्देश्य होना चाहिए

बुधवार, 4 जनवरी 2023

अंतरराष्ट्रीय धावक मुनीता प्रजापति को मिला पहला SANTRAM B.A. PIUS FELLOWSHIP

प्रजापति अंतर विश्वविद्यालय समाज  (PIUS) ने कुम्हार समुदाय के विद्यार्थियों को उच्च शिक्षा और प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए जात-पात तोड़क मंडल के संस्थापक मंत्री और महान समाज सुधारक महात्मा संतराम बी.ए. के नाम से शुरू किया यह फेलोशिप। इस फेलोशिप के तहत 2500 रुपये प्रतिमाह की दर से मुनीता प्रजापति को मिलेगी आर्थिक सहायता। चार महीने की पहली किश्त 10000 रुपये मुनीता के बैंक खाते में हुआ स्थानांतरित।

मंगलवार, 15 दिसंबर 2020

ग्राम प्रधान ने नहीं सुनी फरियाद तो ग्रामीणों ने खुद बना लिया खड़ंजे का रास्ता

हर परिवार पर 100 रुपये के चंदे से इकट्ठा किए खड़ंजे की लागत, श्रमदान कर ग्रामीणों ने लिखा इतिहास। गांव की जातिगत राजनीति में फंसा था बदहाल करीब 100 मीटर रास्ते का निर्माण।  

reported by अच्छेलाल प्रजापति

मऊ। पूर्व केंद्रीय मंत्री और सांसद कल्पनाथ राय के कार्यों से पहचाने जाने वाले मऊ जनपद में देवखरी गांव के ग्राम प्रधान की उपेक्षा से परेशान ग्रामीणों ने पिछले दिनों आपसी चंदे और श्रमदान से करीब 100 मीटर लंबे रास्ते पर खड़ंजा बिछाकर खुद ही अपनी मुश्किलें हल करने की पहल की। त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों के मद्देनजर उनके इस कार्यों की चर्चा आस-पास के गांवों में बड़े पैमाने पर हो रही है। लोग ग्राम प्रधान की दावेदारी करने वाले उम्मीदवारों पर उसका हवाला देकर सवाल खड़ा कर रहे हैं।    

शनिवार, 10 अक्तूबर 2020

जाति और धर्म की मूसलाधार जहरीली जड़ों में लिखी जा रही 'दुष्कर्म' की परिभाषा

मीडिया और सम्पूर्ण भारतीय समाज ने बिना जातीय प्रभाव के तीनों घटनाओं (दिल्ली, हैदराबाद और पालघर) की कड़ी आलोचना की लेकिन हाथरस की घटना में स्थितियां उलट गईं। अब यहां आरोपी सवर्ण और पीड़ित दलित है। अब उसी समाज के लोग, जो उपर्युक्त घटनाओं में तत्काल गोली मारने और फांसी देने की मांग सड़क से लेकर सोशल मीडिया पर कर रहे थे, इस घटना में न्यायिक जांच कराकर दोषियों को सजा की मांग कर रहे हैं। निश्चय ही जांच होकर ही दोषियों को सजा होनी चाहिए लेकिन क्या यहां इसलिए जांच होनी चाहिए कि आरोपी सवर्ण हैं और पीड़ित दलित? 

written by अच्छे लाल प्रजापति

त्तर प्रदेश के हाथरस जिले में बूलगढ़ी गांव निवासी दलित परिवार की लड़की गुड़िया (बदला हुआ नाम) के साथ कथित दुष्कर्म की घटना सुर्खियों में है। गत 14 सितम्बर को घटना घटित हुई। इसके बाद उसे थाने ले जाना, अलीगढ़ अस्पताल में भर्ती कराना, उपचार में विलम्ब होना, आठ दिन बाद लड़की का बयान दर्ज कराना, हालत बिगड़ने पर दिल्ली रेफर करना और दो दिन बाद 29 सितंबर को उसकी संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो जाना, परिवार के सदस्यों की अनुमति के बिना आधी रात को ही शव का अंतिम संस्कार कर देना कई सवाल खड़े करता है। फिर पुलिसकर्मियों द्वारा मीडियाकर्मियों, राजनीतिक पार्टियों और सामाजिक संगठनों के लोगों को बूलगढ़ी जाकर पीड़ित परिवार के सदस्यों से मिलने से रोकना भी जिला प्रशासन की मंशा को संदेह के घेरे में लाता है। आरोप-प्रत्यारोप के बारे में आपसे बहुत कुछ बताने की आवश्यकता नहीं है। हमारी चिन्ता इस बात को लेकर है कि जिस प्रकार से एक दलित महिला के साथ दुष्कर्म के मामले में जातीय सक्रियता उफान पर है, यह बहुत ही भयावह तस्वीर प्रस्तुत कर रही है।

रविवार, 20 सितंबर 2020

अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस पर विशेषः COVID-19 से उपजी वैश्विक महामारी में दम तोड़ती संयुक्त राष्ट्र संघ की 'थीम'

दुनिया में धुव्रीकरण अशांति का निमंत्रण है। जब-जब शक्ति का ध्रुवीकरण हुआ है, दुनिया में संघर्ष और अशांति बढ़ी है। चाहे प्रथम विश्व युद्ध रहा हो या किसी दो पड़ोसी देशों का युद्ध या भारत जैसे देश में जातीय संरचना में किसी जाति के अंदर सामाजिक शक्ति का ध्रुवीकरण। सभी ने युद्ध, अशांति, शोषण, आदि को बढ़ावा दिया है। आज भी ध्रुवीकरण जारी है। स्थापित महाशक्ति को नवोदित महाशक्ति चुनौती दे रही है। क्या संयुक्त राष्ट्र संघ की “Shaping Peace Together” वाली अवधारणा अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में सफल हो पाएगी?

written by अच्छे लाल प्रजापति

ज 21 सितंबर है। दुनिया भर में आज 'अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस' मनाया जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने 'चौबीस घंटे अहिंसा और संघर्ष विराम के माध्यम से शांति के आदर्शों की प्राप्ति हेतु' इसे घोषित किया है। आज से करीब 40 साल पहले 1981 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने इसे मनाने का निर्णय लिया था और 2001 तक 'विश्व शांति दिवस' के लिए सितंबर महीने का तीसरा मंगलवार तय किया जाता रहा। लेकिन, 2002 में इसके लिए 21 सितम्बर का दिन निर्धारित किया गया। आज विश्व कोरोना वायरस COVID-19 से उपजी वैश्विक महामारी के संकट से जूझ रहा है। इसने यह स्पष्ट कर दिया है कि केवल मानव ही मानव का दुश्मन नहीं है। हम आपस में जिसके लिए लड़ रहे हैं, उसे एक छोटा सा वायरस कभी भी हमसे छीन सकता है। हमारा स्वास्थ्य, हमारी सुरक्षा, हमारा जीवन सभी खतरे में है।

रविवार, 6 सितंबर 2020

जाति वर्चस्व पर 'शिक्षक दिवस' की कहानी में गुम सामाजिक बदलाव के असली गुरु

(भारत के दूसरे राष्ट्रपति और भारत रत्न डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन को शिक्षक दिवस (5 सितंबर) के रूप में मनाये जाने को लेकर अब सवाल उठने लगे हैं। भारतीय समाज के एक हिस्से में स्त्रियों और वंचित समाज में शिक्षा की अलख जगाने वाली सावित्रीबाई फुले के जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने की आवाज उठने लगी है। वहीं कुछ लोग डॉ. राधाकृष्णन पर अपने शिष्य जदुनाथ सिन्हा की थीसिस को किताब के रूप में प्रकाशित करवाकर खुद उसका लेखक बनने का आरोप लगाते हैं और उनकी योग्यता पर सवाल खड़ा करते हैं। बहुत से लोग हैं जो डॉ. राधाकृष्णन के जन्मदिन के नाम पर मनाए जाने वाले शिक्षक दिवस को जाति वर्चस्व और उसकी मान्यता के चश्मे से देखते हैं। वर्तमान में केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से दिए जाने वाले उत्कृष्ठ शिक्षक पुरस्कारों और उसके लिए चयनित शिक्षकों पर भी सवाल उठने लगे हैं। ऐसे में शिक्षक दिवस और उसकी प्रासंगिकता पर केंद्रित यह लेख उस बहस को आगे बढ़ा सकता है।-संपादक)

written by अच्छेलाल प्रजापति

शिक्षक दिवस (5 सितंबर) पर बधाइयां लेते और देते वक्त गुरु के प्रति जो श्रद्धा भाव उभर कर आता है, वह एक बार मंथन करने को विवश करता है। वह कौन था, जिसने उन लोगों के लिए शिक्षा की जरूरत को महसूस किया और अपना सारा जीवन उसी के लिए समर्पित कर दिया,  जिन्हे भारतीय समाज ने शास्त्र सम्मत शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार नहीं दिया था। मेरी समझ से वही व्यक्ति सम्पूर्ण समाज का शिक्षक है। यह दिन उसी को समर्पित होना चाहिए। अगर ऐसे नामों में पर गौर करें तो मेरे जेहन में एक दंपति का नाम आता है। वे हैं ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले।