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शुक्रवार, 22 मई 2020

आरक्षण प्रणाली में बदलाव से उच्च शिक्षण संस्थानों में फिर घूंटेगी 'पायल' और मरेगा 'रोहित'

जातिगत भेदभावों, उत्पीड़नों के इस विकसित गतिविज्ञान का एक अहम पहलू यह है कि मुल्क में जबसे हिन्दुत्व वर्चस्ववादी विचारों/ जमातों का प्रभुत्व बढ़ा है, हम ऐसी घटनाओं में भी एक उछाल देखते हैं। यह कोई संयोग की बात नहीं है कि केन्द्र में तथा कई सूबों में भाजपा के उभार के साथ हम यही पा रहे हैं कि किस तरह वे सुनियोजित तरीकों से दलितों के मामलों में सकारात्मक कार्रवाइयों /एफर्मेटिव एक्शन और उन्हें कानूनी सुरक्षा प्रदान करने के अस्तित्वमान प्रावधानों को कमजोर करने में मुब्तिला हैं

written by सुभाष गाताडे

तेरह साल का एक वक्फ़ा गुजर गया जब थोरात कमेटी रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी। याद रहे, सितम्बर 2006 में उसका गठन किया गया था, इस बात की पड़ताल करने के लिए कि एम्स अर्थात आल इंडिया इन्स्टिटयूट आफ मेडिकल साईंसेज़ में अनुसूचित जाति व जनजाति के छात्रों के साथ कथित जातिगत भेदभाव के आरोपों की पड़ताल की जाए। उन दिनों के अग्रणी अख़बारों में यह मामला सुर्खियों में था (देखें, द टेलीग्राफ 5 जुलाई 2006)

शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2016

रोहित वेमुला और जेएनयू के समर्थन में सड़क पर उतरे विद्यापीठ के शिक्षक और छात्र




प्रतिवाद मार्च निकालकर कथित राष्ट्रवादियों को दिया जवाब।

वनांचल न्यूज नेटवर्क

वाराणसी। रोहित वेमुला को न्याय दिलाने, दोषी मंत्रियों को जेल भेजने, कन्हैया सहित जेएनयू के छात्रों पर देशद्रोह का फर्जी मुकदमा वापस लेकर उन्हें रिहा करने समेत विभिन्न मांगों को लेकर महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के अध्यापकों और छात्रों ने शुक्रवार को विश्वविद्यालय के गेट संख्या-दो से प्रतिवाद मार्च निकाला और सभा की। उन्होंने संघ और भाजपा पोषित छद्म राष्ट्रवाद के खिलाफ युवाओं को शहीद भगत सिंह और डॉ. भीम राव अबेंडर के रास्तों पर चलने का आह्वान किया। 



प्रतिवाद मार्च में निरंजन सहाय, रेशम लाल, अनुराग कुमार, वीके सिंह आदि शिक्षक प्रमुख रूप से शामिल रहे। इनके अलावा सैकड़ों की संख्या में विद्यापीठ के छात्र एवं छात्राओं ने मार्च में हिस्सा लिया। 


बुधवार, 24 फ़रवरी 2016

भाजपा-सपा गठजोड़ को 'जन विकल्प मार्च' के जरिये बेनकाब करेगा रिहाई मंच

-संघ और भाजपा नेताओं द्वारा  छात्र संगठन एसआईओ के कार्यकर्ताओं पर जानलेवा हमला मुसलमानों पर हो रहे सरकार संरक्षित हमले की ताजा मिसालः रिहाई मंच।
-मंच 16 मार्च को निकालेगा 'जन विकल्प मार्च'

वनांचल न्यूज नेटवर्क

लखनऊ। देश के विभिन्न इलाकों में बेगुनाहों की रिहाई के लिए सशक्त अभियान चलाने वाला 'रिहाई मंच' आगामी 16 मार्च को 'जन विकल्प मार्च' निकालकर भाजपा और समाजवादी पार्टी के गठजोड़ को बेनकाब करेगा। साथ ही उसने राज्य की सपा सरकार पर मुसलमानों से वादाखिलाफी करने, सूबे को सांप्रदायिक हिंसा में ढकेलने समेत दलितों और महिलाओं का उत्पीड़न करने का आरोप लगाया। मंच ने स्पष्ट कहा कि चुनाव जीतने के लिए कभी मुजफ्फरनगर तो कभी लव जेहाद जैसे एजेंडे को आगे किया जाता है। कभी एखलाक की हत्या की जाती है तो कभी हरियाणा में दलितों की हत्या का नंगा नाच किया जाता है। खुफिया एजेंसियों द्वारा अलकायदा के नाम पर कभी संभल तो कभी आईएस के नाम पर लखनऊ और कुशीनगर को निशाना बनाया जाता है। पूरे देश में वे जिस तरह से मुस्लिम युवाओं को फंसा रही हैं,  'जन विकल्प मार्च' उसके खिलाफ एक संगठित आवाज होगा जो जन आंदोलन के माध्यम से नए राजनीतिक विकल्प का निर्माण करेगा। साथ ही यह कॉर्पोरेट और मीडिया परस्त राजनीति को शिकस्त देगा।

रिहाई मंच ने दलित छात्र रोहित वेमुला और जेएनयू के छात्रों के समर्थन में गांधी प्रतिमा हजरतगंज लखनऊ में हस्ताक्षर अभियान चला रहे छात्र संगठन एसआईओ के छात्रों पर संघ और भाजपा नेताओं द्वारा जानलेवा हमले को सपा सरकार में पूरे सूबे के मुसलमानों पर हो रहे सरकार संरक्षित हमले की ताजा मिसाल बताया है। मंच ने कहा है कि विधानसभा से सौ मीटर की दूरी पर सैकड़ों पुलिस वालों की मौजूदगी में किया गया हमला बिना प्रशासनिक मिलीभगत के संभव नहीं है। मंच ने संघ के साम्प्रदायिक आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए हजरतगंज कोतवाली के पूरे पुलिस अमले को तत्काल बर्खास्त करने की मांग की है। मंच ने आरोप लगाया है कि इसी साम्प्रदायिक पुलिस अमले ने कुछ दिनों पहले एसएफआई कार्यालय पर भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा हमला करवाया था। मंच ने यह भी कहा है कि यह अकारण नहीं है कि सपा मुखिया मुलायम सिंह के यह कहते ही ऐसे हमले बढ़ गए हैं कि उन्हें बाबरी मस्जिद तोड़ने आए भाजपाईयों पर गोली चलाने का आदेश देने पर दुख है।

रिहाई मंच द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में मंच के अध्यक्ष एडवोकेट मुहम्मद शुऐब ने कहा है कि सपा ने 2012 में मुसलमानों से 16 सूत्री वादा किया था जिसमें से चार साल पूरे होने के बावजूद एक भी वादा पूरा नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि सपा ने अपने चुनावी घोषणापत्र के पृष्ठ संख्या 12 से 15 पर यह वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाह मुस्लिम युवकों को छोड़ दिया जाएगा, इन आरोपों से बरी हुए लोगों का पुर्नवास किया जाएगा, मुसलमानों को 18 प्रतिशत आरक्षण दिया जाएगा, सच्चर कमेटी और रंगनाथ मिश्र आयोग की सिफारिशों पर अमल किया जाएगा, पुलिस में मुसलमानों की भर्ती के लिए विशेष प्राविधान किया जाएगा, मुस्लिम बहुल जिलों में नए सरकारी शैक्षिक संस्थानों की स्थापना की जाएगी, मुस्लिम बहुल इलाकों में उर्दू माध्यम के स्कूलों की स्थापना की जाएगी, मदरसों में तकनीकी शिक्षा के लिए विशेष बजट आवंटित किया जाएगा। लेकिन ये सारे वादे झूठे साबित हुए हैं। 

उन्होंने कहा कि इसी तरह बुनकरों से वादा किया गया था कि किसानों की तरह उन्हें भी बिजली मुफ्त दी जाएगी। लेकिन यह वादा भी झूठा साबित हुआ। इसीतरह वादा किया गया था कि कब्रिस्तानों की सुरक्षा की गारंटी करने के लिए विशेष बजट का प्रावधान किया जाएगा। लेकिन सच्चाई यह कि इन चार सालों में कब्रिस्तानों का अतिक्रमण और बढ़ा है जिसमें कई जगह तो सीधे सपा नेताओं की भूमिका उजागर हुई है। उन्होंने कहा कि सपा सरकार न सिर्फ चुनावी वादों से मुकर गई है बल्कि खुल कर संघ और भाजपा के मुस्लिम विरोधी एजेंडे को बढ़ा रही है। इसीलिए दादरी में हुई एखलाक की हत्या की सीबीआई जांच का उसने आदेश नहीं दिया तो वहीं मुजफ्फरनगर जनसंहार के दोषीयों को बचाने के लिए उसने जस्टिस सहाय कमीशन की रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया।

मंच के अध्यक्ष ने कहा कि सपा ने चुनावी वादा किया था कि वह आतंकवाद के नाम कैद बेगुनाहों को रिहा करेगी पर उसने वादा पूरा नहीं किया और जब आरडी निमेष कमीशन की रिपोर्ट ने मौलाना खालिद और तारिक कासमी की गिरफ्तारी को संदिग्ध कहते हुए दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की तो उसने पुलिस और खुफिया एजेंसियों को बचाने के लिए मौलाना खालिद की हत्या करवा दी। उन्होंने कहा कि रिहाई की इस मुहिम के तहत लगातार बेगुनाह आदालती प्रक्रिया से छूट रहे हैं पर सपा जिस तरह से वादा करने के बाद भी पुर्नवास नहीं कर रही है वो साबित करता है कि अखिलेश यादव संघी मानसिकता से अदालतों से बाइज्जत बरी मुस्लिम नौजवानों को आतंकी समझते हैं।

मंच के अध्यक्ष ने कहा कि जेएनयू के छात्र जिस तरह से संघर्ष कर रहे हैं वह देश में इंसाफ की लड़ाई को नई दिशा देगा। आज जिस तरह से उमर खालिद, कन्हैया समेत तमाम छात्रों को भाजपा और सुरक्षा-खुफिया एजेंसियों का गठजोड़ देशद्रोही कह कर हमले कर रहा है वह बताता है कि यह हमला उन तमाम प्रगतिशील मूल्यों पर है जो वंचित समाज के हक में हैं। उन्होंने कहा कि जिस तरह से उमर खालिद को इस घटना के बाद मुस्लिम होने का एहसास हुआ और उनके पिता वेलफेयर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष कासिम रसूल इलियास व उनके बच्चों को धमकियां दी गई वह साबित करता है कि देश में मुसलमानों की स्थिति दोयम दर्जे की हो गई है।


मुहम्मद शुऐब ने कहा है कि मुसलमानों की तरह ही प्रदेश के दलितों और महिलाओं को  भी चार साल तक धोखा दिया गया। जहां दलितों और महिलाओं पर सामंती हमला बढ़ा है वहीं मुख्यमंत्री के आवास के पीछे से भी लड़कियों के शव मिलने लगे हैं। ऐसे में जरूरी हो जाता है कि जनता सपा सरकार के झूठे दावों की पोल खोले और नए समाज निर्माण की राजनीतिक जिम्मेदारी को उठाने का संकल्प ले। उन्होंने कहा कि 16 मार्च को रिफाह-ए-आम से विधान सभा तक जन विकल्प मार्चनिकाल कर रिहाई मंच सपा सरकार के झूठ और लूट को उजागर करेगा।   

शनिवार, 20 फ़रवरी 2016

झंडा का फंडाः कथित राष्ट्रवाद की दुकानदारी में हर साल खर्च होंगे 150 करोड़

दिल्ली स्थित गुमनाम वेंडर 'फास्ट ट्रैक इंजीनियरिंग' को टेंडर मिलने की संभावना। इसके मालिक की बीजेपी नेताओं से नजदीकियां होने की बात आ रही सामने।

वनांचल न्यूज नेटवर्क

वाराणसी। कथित 'राष्ट्रवाद' की दुकानदारी में झंडे का फंडा भी खूब चल रहा है। सोशल प्लेटफॉर्म 'फेसबुक' पर मित्रों से मिली जानकारी की मानें तो केंद्रीय मानव संसाधन एवं विकास मंत्री स्मृति ईरानी के केंद्रीय विश्वविद्यालयों में राष्ट्र ध्वज 'तिरंगा' लगवाने के निर्णय पर हर साल करीब 150 करोड़ रुपये का खर्च आएगा। जबकि उनकी सरकार 'नान-नेट फेलोशिप' के तहत शोध करने वाले छात्रों पर हर साल आने वाले करीब 99.16 करोड़ रुपये के खर्च की योजना को चालू करने के लिए तैयार नहीं है।

जितेंद्र नारायण
भारतीय जीवन बीमा निगम में विकास अधिकारी के पद पर कार्यरत और बिहार के समस्तीपुर निवासी जितेंद्र नारायण ने फेसबुक पर स्टैटस अपडेट किया है कि मोदी सरकार देश के 40 केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में तिरंगा फहराने में हर साल कुल 147.15 करोड़ रुपये खर्च करेगी। इन विश्वविद्यालयों में राष्ट्रध्वज फहराने के लिए आवश्यक झंडे और डंडे पर हर साल कुल 86 करोड़ रुपये खर्च आएगा जबकि उन्हें प्रकाशमान करने में हर साल कुल 61.15 करोड़ रुपये के खर्च का अनुमान है। यहां यह बता दें कि इस समय देश में कुल 46 केंद्रीय विश्वविद्यालय हैं। इस लिहाज से सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों में तिरंगा फहराने का खर्च जितेंद्र नारायण के अनुमान से कहीं ज्यादा है। उन्होंने अपने स्टैटस में लिखा है कि केंद्र की मोदी सरकार 'नान-नेट फेलोशिप' के तहत शोध करने वाले छात्रों पर हर साल आने वाले करीब 99.16 करोड़ रुपये खर्च की योजना को चालू करने के लिए तैयार नहीं है।  

जितेंद्र नारायण के अनुमान और कथित राष्ट्रवादी फंडे (तिरंगा लगाने का धंधा) को और स्पष्ट करते हुए जेएनयू के पूर्व छात्र मयंक कुमार जायसवाल लिखते हैं कि आजकल 70 फीट से 207 फीट तक की ऊंचाई के तिरंगे फैशन में हैं। क़ीमत पचास लाख से लेकर डेढ़ करोड़ रुपये तक। इतनी ऊंचाई पर कपड़े का झंडा नहीं रुक सकता। सो, ढाई से पांच लाख रुपये का पैराशूट मैटेरियल का झंडा। इतने पर भी एक झंडे की उम्र तीन से लेकर पंद्रह दिन। अब चूंकि फ्लैग कोड कहता है कि ख़राब झंडा फहराना जुर्म है सो झंडे को औसतन पंद्रह दिन में बदला जाना ज़रूरी। यहां तक सब ठीक है। मगर मुद्दा ये है कि इतने सारे झंडे किसने लगाए और इनको मेंटेन कौन कर रहा है?

मयंक कुमार जायसवाल
मयंक इसकी विस्तृत पड़ताल करते हैं। उनकी यह पड़ताल उनके ही शब्दों में नीचे दी जा रही है-
दिल्ली का एक गुमनाम सा वैंडर है 'फास्ट ट्रैक इंजीनियरिंग'। एक जैन साहब इसके सर्वेसर्वा हैं। देश भर में ये फर्म क़रीब डेढ़ सौ झंडे लगा चुकी है। पहला झंडा कनॉट प्लेस में नवीन जिंदल की फ्लैग फाउंडेशन ने लगवाया। इसके बाद देश के तमान नगर निगम, राज्य सरकारें और निजी व्यवसायी इसे लगवा चुके हैं। ताज़ा फरमान विश्वविद्यालयों में लगवाने के लिए केंद्रीय शिक्षा मंत्री का है। इस से पहले बीजेपी सांसदों को बुलाकर फरमान सुनाया गया था कि वो सांसद निधि से ये झंडे लगवाएं सो एक मेरे संसदीय क्षेत्र अमरोहा में भी तन गया। कई प्राईवेट कॉलेजों पर भी ये झंडा लगवाने का दबाव है।

सरकारी धन से लग रहे झंडों पर तो लोग कुछ नहीं कहते मगर प्राईवेट वालों के लिए परेशानी है। इस तो सबको एक ही वैंडर से लगवाना है जो केंद्र सरकार का ख़ास है... उसके लिए मुंह मांगी क़ीमत भी दो और सालाना मेटिनेंस का क़रार भी करो। अगर हर पंद्रह दिन में झंडा ख़राब हो रहा है तो साल भर में सिर्फ झंडा बदलवाई ही साठ लाख रुपये है ऊपर से दो आदमियों की तनख़्वाह अलग। लगवाते वक्त एकमुश्त भुगतान तो वाजिब है ही।


नगर निगमों के पास अपने कर्मियों को तनख्वाह देने के पैसे नहीं हैं मगर सालाना का एक करोड़ का ख़र्च सरकार ने फिक्स करा दिया है। अब ये मत पूछना कि इस में कितना राष्ट्रवाद है और कितना व्यापार। बस पता कीजिए सज्जन जिंदल का सरकार से क्या रिश्ता है और उनकी पाईप बनाने की फैक्ट्री का इन झंडों से क्या लेना देना है? बाक़ी सांसद निधि, नगर निकायों के धन से आपका हो न हो छद्म राष्ट्रीयता और पूंजीवाद का विकास तो हो ही रहा है। सरकारें ऐसे ही चलती हैं। बाक़ी मेक्यावेली चचा काफी कुछ समझा गए हैं। तो ज़ोर से मेरे साथ नारा लगाइए...जय हिंद...जय राष्ट्रवाद...वंदे मातरम्...वंदे पूंजीवादी पितरमम्...।

शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2016

JNU: विश्वविद्यालयों से पहले संघ मुख्यालयों में तिरंगा लगवाए केंद्र सरकारः रिहाई मंच

'उमर खालिद को बतौर आतंकवादी प्रचारित करने की साजिश में संलिप्त हैं खुफिया एजेंसियां'

वनांचल न्यूज नेटवर्क

लखनऊ। बेगुनाहों की रिहाई और जनमुद्दों पर बेबाक आवाज बुलंद करने वाले संगठन 'रिहाई मंच' ने कहा है कि भाजपा की अगुआई वाली केंद्र की राजग सरकार देश के विश्वविद्यालयों में तिरंगा लगाने से पहले संघ मुख्यलायों में तिरंगा लगवाये। साथ ही वह संघ परिवार के दफ्तर से सावरकर और गोलवरकर जैसे देशद्रोहियों की तस्वीर हटवाए जिन्होंने न केवल अंग्रेजों से माफी मांगी थी बल्कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या का षडयंत्र भी रचा था। मंच ने आरोप लगाया गया है कि गोडसे ने गांधी जी की हत्या के प्रयासों में जिस तरह नकली दाढ़ी, टोपी और पठानी सूट पहनी थी, ठीक उसी तरह जेएनयू में एबीवीपी के कार्यकर्ताओं ने 'पाकिस्तान जिंदाबाद' का नारा लगाया। इसके सुबूत वीडियो के रूप में सोशल साइटों पर वायरल हो चुके हैं। इसके बावजूद पुलिस उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं कर रही। मंच ने यह भी मांग किया कि जेएनयू प्रकरण पर वामपंथियों की आलोचना करने वाले मंत्री किरन रिजुजू पहले 'पाकिस्तान जिंदाबाद' का नारा लगाने वाले सावरकर के शिशुओं पर कार्रवाई करें। जेएनयू प्रकरण में मीडिया के एक हिस्से द्वारा शोधार्थी उमर खालिद को आतंकवाद से जोड़ने पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए मंच ने कहा कि खालिद के मुस्लिम होने के चलते उसके नाम पर अफवाहों को फैलाया जा रहा है। इसमें केन्द्र की खुफिया और सुरक्षा एजेंसियां संलिप्त हैं।

रिहाई मंच की ओर से जारी बयान में प्रवक्ता शाहनवाज आलम ने कहा, पहले कहा गया कि जेएनयू के छात्र पाकिस्तान समर्थक और देशद्रोही हैं। अब कहा जा रहा है कि नक्सल समर्थक छात्र संगठन डीएसयू के नेताओं ने नारे लगाए। यह मोदी और संघ परिवार के खिलाफ उभरते राष्ट्रव्यापी छात्र आंदोलन को भ्रम और अफवाह के जरिए साम्प्रदायिक रंग देकर तोड़ने की कोशिश है। जिस तरह से डीएसयू को इसके लिए जिम्मेदार बताया जा रहा है वह संघी साजिश और मीडिया के वैचारिक दिवालिएपन का सुबूत है। वामपंथी संगठन अन्तर्राष्ट्रीयतावाद में विश्वास करते हैं। उनके लिए किसी देश का जिंदाबाद या मुर्दाबाद के नारे लगाना कोई एजेंडा नहीं होता। उन्होंने मांग की कि इस मुद्दे में जिन जेएनयू के छात्रों को फरार बताया जा रहा है उनकी सुरक्षा की गारंटी की जाए। इसके लिए देश का सर्वोच्च न्यायालय संज्ञान में लेकर उन छात्रों को इंसाफ देने की अपील करे जिससे देश निर्माण के प्रति संकल्पित वो छात्र जो संघी आतंकवाद के खौफ के चलते अपने परिवारों से दूर हो गए हैं वह वापस आ सके। मंच ने कहा है कि लोकतंत्र में आस्था रखने वाला पूरा समाज इन छात्रों के परिवार के साथ खड़ा है।

शाहनवाज आलम ने कहा कि जिस तरह से उमर खालिद के पिता वरिष्ठ पत्रकार व सामाजिक-राजनीतिक कासिम रसूल इलियास का बयान आया कि सिर्फ मुस्लिम होने के नाते या फिर उनके पूर्व में सिमी से जुड़े होने के चलते उनके बेटे को इस घटना के लिए दोषी बताया जा रहा है वह इस लोकतांत्रिक देश में बहुत दुखद है। इस लोकतंत्र में एक व्यक्ति को जब यह कहना पड़ जाए के उसके मुस्लिम होने के चलते उसके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जा रहा है तो इससे बद्तर कुछ नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि पोलिटिकल प्रिजनर्स कमेटी से जुड़े प्रो0 एसएआर गिलानी को जिस तरह से मीडिया देशद्रोही बता रहा है वह साबित करता है कि ऐसा खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों के इशारे पर किया जा रहा है। क्योंकि उनका संगठन नक्सलवाद और आतंकवाद के नाम पर इन एजेंसियों द्वारा फंसाए जाने वाले बेगुनाहों को छुड़ा कर उनके मुंह पर तमाचा मारता रहता है। रिहाई मंच नेता ने कहा कि ऐसे ही संगठनों के प्रयासों से न्याय व्यवस्था की कुछ गरिमा बची हुई है। 

रिहाई मंच नेता राजीव यादव ने कहा कि जेएनयू प्रकरण पर यूपी के युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का यह कहना कि देश में न जाने किस-किस मुद्दे पर बहस चल रही है, संस्थान चर्चा में व्यस्त हैं और वो उत्तर प्रदेश के विकास पर केन्द्रित हैं यह गैर जिम्मेदाराना और बचकाना बयान है। ठीक यही भाषा मोदी की भी है जब गुजरात दंगों का सवाल उठता है तो वो विकास का भोंपू बजाने लगते हैं। उन्होंने कहा कि बाबरी मस्जिद को तोड़ने आए संघीयों पर गोली चलवाने के लिए माफी मांगने वाले मुलायम सिंह को इस मसले पर अपनी राय रखनी चाहिए कि वे अफजल गुरू की फांसी को सही मानते हैं या गलत। 

उन्होंने कहा कि गृह राजमंत्री किरन रिजुजू जो कि जेएनयू प्रकरण के लिए वामपंथियों को दोषी ठहरा रहे हैं उन्हें अपने छात्र संगठन एबीवीपी के उन कार्यकर्ताओं जिन्होंने अपने ही संगठन की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए एबीवीपी से इस्तीफा दे दिया है, पर अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि सपा सरकार ने अपने प्रयास से जिस तरह वयोवृद्ध खालिस्तानी नेता 70 वर्षीय बारियाम सिंह को रिहा किया वह स्वागतयोग्य है लेकिन सवाल उठता है कि आखिर आतंकवाद के नाम पर फंसाए गए मुस्लिम नौजवानों को सरकार क्यों जेलों में सड़ाने पर तुली है। जबकि उनको छोडने का वादा सपा ने अपने घोषणापत्र में किया था।

राजीव यादव ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर बस्सी जो पहले कन्हैया द्वारा देशद्रोही नारे लगाने के सबूतों के होने की बात कह रहे थे और अब किसी सुबूत के होने से ही इंनकार कर चुके हैं पर टिप्पणी करते हुए कहा कि झूठे बयान देकर समाज में अराजकता फैलाने के आरोप में उनके खिलाफ कानूनी कार्रवई की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि बस्सी ने जिस तरह खुल कर संघ और भाजपा के गंुडों को बचाया है, वांछित आरोपी वकीलों को गिरफ्तार करने के बजाए उन्हें साम्प्रदायिक वकीलाकें के गिरोहों द्वारा सम्मानित किए जाने के खुला छोड़ दिया उससे पूरी पुलिस व्यवस्था ही अपमानित हुई है। 

रिहाई मंच कार्यकारिणी सदस्य अनिल यादव और लक्ष्मण प्रसाद ने कहा कि कोर्ट परिसर में जिस तरह से हमले हुए हैं वह दिल्ली पुलिस की सोची समझी साजिश का नतीजा है जिससे कि मुकदमों न लड़ा जा सके। उन्होंने बताया कि ठीक इसी तरह 2008 में आतंकवाद का मुकदमा लड़ने वाले रिहाई मंच अध्यक्ष एडवोकेट मुहम्मद शुएब व उनके मुवक्किलों पर लखनऊ कोर्ट परिसर में हमला किया गया और मुहम्मद शुऐब के कपड़े फाड़ अर्धनग्न अवस्था में चूना-कालिख पोत घुमाया गया और उल्टे उनके ऊपर ही पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाने का आरोप लगाया गया था। यह हमले लगातार हुए और शाहिद आजमी की भी इन्हीं खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों ने ऐसे मुकदमें लड़ने की वजह से हत्या करवा दी। उन्होंने कहा कि यह मुल्क के आईन को बचाने की लड़ाई हैं जिसे शहादत देकर भी लड़ा जाएगा।

(प्रेस विज्ञप्ति)

गुरुवार, 21 जनवरी 2016

ROHIT VEMULA: शोधार्थियों का निलंबन वापस, बंडारू और वीसी की गिरफ्तारी को लेकर प्रदर्शन जारी


रोहित वेमुला की खुदकुशी के विरोध में विश्वविद्यालय के 15 में से 13 दलित फैकल्टी ने सभी प्रशासनिक पदों से दिया इस्तीफा

वनांचल न्यूज नेटवर्क

नई दिल्ली/हैदराबाद। हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के शोधार्थी रोहित वेमुला की खुदकुशी को लेकर देश के विभिन्न हिस्सों में हो रहे विरोध-प्रदर्शन और राजनीतिक प्रतिक्रिया से सकते में आई विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद ने चार दलित शोधार्थियों का निलंबन वापस ले लिया है। हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद ने गुरुवार को रोहित वेमुला के साथ निलंबित अन्य चार छात्रों का निलंबन रद्द कर दिया। परिषद ने यह फैसला विश्वविद्यालय में हो रहे विरोध प्रदर्शनों की बीच किया। विश्वविद्यालय की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि विश्वविद्यालय में बने असाधारण हालात को देखने और मुद्दे पर विस्तार से चर्चा करने के बाद शोधार्थियों पर लगाए गए दंड को तत्काल प्रभाव से समाप्त कने का फैसला लिया गया है।

गौरतलब है कि पिछले साल अगस्त में रोहित सहित पांच दलित छात्रों को एबीवीपी के कार्यकर्ताओं से झड़प के बाद निलंबित कर दिया गया था। यह सब दिल्ली विश्वविद्यालय में 'मुजफ्फरनगर बाकी है' वृत्तचित्र की स्क्रीनिंग पर एबीवीपी के हमले के बाद शुरू हुआ था। दलित छात्रों ने एबीवीपी के इस कदम की निंदा करते हुए इसके विरोध में कैम्पस में प्रदर्शन किया था। इसके बाद इन छात्रों को हॉस्टल से दिसंबर में निकाल दिया गया। गत रविवार को इनमें से एक रोहित वेमुला ने खुदकुशी कर ली थी। इसे लेकर देश के विभिन्न हिस्सों में छात्र संगठनों समेत अन्य लोगों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। 

विश्वविद्यालय के एक दर्जन से ज्यादा दलित फैकल्टी ने आज केंद्रीय मानव संसाधन एवं विकास मंत्री स्मृति ईरानी के बयान को लेकर सभी प्रशासनिक पदों से इस्तीफा दे दिया। इनमें मुख्य चिकित्साधिकारी कैप्टन रविंद्र कुमर, परीक्षा नियंत्रक प्रो. वी. कृष्णा, मुख्य वार्डन डॉ. जी. नागाराजू और एक दर्जन अन्य फैकल्टी सदस्य शामिल हैं। इससे विश्वविद्यालय और दबाव में आ गया और उसने जल्द ही कार्यकारी परिषद की बैठक बुलाई। इसमें खुदकुशी करने वाले शोधार्थी रोहित वेमुला के चार साथियों का निलंबन वापस लेने का निर्णय लिया गया।  


वोटबैंक की राजनीति से उपजे रोहित वेमुला की खुदकुशी के हालात

दक्षिण के तरीकबन सभी प्रदेशों में सवर्णों को विस्थापित कर पिछड़ा तबका शासक वर्ग बन गया है। इस या उस पार्टी के साथ सत्ता में रहता है। ऐसे में सत्ता का ख्वाब देखने वाली किसी भी दक्षिणपंथी पार्टी के लिए पिछड़ा तबका उसका स्वाभाविक आधार होगा। बीजेपी की भी इसी हिस्से पर नजर है लेकिन यह काम इतना आसान नहीं है...

महेंद्र मिश्रा

बहुत दिनों से यह खिचड़ी पक रही थी। पूरा परिवार इसको पकाने में जुटा था। तिल को ताड़ एक खास मकसद से बनाया गया । दो छात्रों के बीच की एक मामूली लड़ाई अनायास ही नहीं दिल्ली पहुंच गई। देखते ही देखते दो-दो केंद्रीय मंत्री शामिल हो गए। एचआरडी मंत्रालय से तीन महीने के भीतर चार-चार रिमाइंडर भेज दिए गए। स्थानीय बीजेपी विधायक इसकी अगुवाई करने लगा। परिसर कब सड़क और बाहर की राजनीति से जुड़ गया पता ही नहीं चला। दरअसल इस बीरबली खिचड़ी पर बड़ा दांव लगा था। उत्तर भारत में संघ-बीजेपी की पकड़ मजबूत हो गयी है। लेकिन दक्षिण भारत अभी भी उसकी पहुंच से दूर है। हालांकि कर्नाटक में बीजेपी का आधार जरूर है। लेकिन आंध्रा, तेलंगाना, तमिलनाडु और केरल में पैर रखने के लिए उसे जमीन की तलाश है। ऐसे में दक्षिण की इस भूख को पूरा करने में यह खिचड़ी बेहद मददगार साबित होती।

सूबे के बंटवारे के बाद तेलंगाना में टीआरएस और आंध्रा में टीडीपी का शासन है। तेलंगाना से हटकर टीडीपी का केंद्रीकरण अब आंध्र प्रदेश में हो गया है। ऐसे में उसका पुराना आधार और सूबे के गठन के संक्रमण से पैदा हालात बीजेपी के लिए नये मौके मुहैया कराते हैं। जिसमें वह अपने लिए एक नई जमीन तैयार कर सकती है। आम तौर पर बीजेपी का अपना विश्वसनीय आधार सवर्ण तबका होता है। लेकिन दक्षिण में पिछड़ों के सशक्तीकरण ने इस तबके को राजनीतिक तौर पर अप्रासंगिक बना दिया है। या फिर इसकी इतनी संख्या नहीं है कि उस पर पारी खेली जा सके। दक्षिण के तरीकबन सभी प्रदेशों में सवर्णों को विस्थापित कर पिछड़ा तबका शासक वर्ग बन गया है। इस या उस पार्टी के साथ सत्ता में रहता है। ऐसे में सत्ता का ख्वाब देखने वाली किसी भी दक्षिणपंथी पार्टी के लिए पिछड़ा तबका उसका स्वाभाविक आधार होगा। बीजेपी की भी इसी हिस्से पर नजर है लेकिन यह काम इतना आसान नहीं है। 

हैदराबाद समेत कुछ शहरों में मुस्लिम तबके के खिलाफ सांप्रदायिक गोलबंदी से भले ही कुछ माहौल बन जाए लेकिन ठोस आधार बन पाना मुश्किल है। गांवों और सुदूर इलाकों के लिहाज से यह हथियार कारगर नहीं है। यह प्रकरण उसी की तलाश है। दरअसल वंचित जातियों के सशक्तीकरण के बावजूद दक्षिण में अभी भी पिछड़ों और दलितों के बीच एक गहरा अंतरविरोध है। बीजेपी इसका ही इस्तेमाल कर पिछड़ों में अपनी पैठ बनाना चाहती है। अनायास ही नहीं उसने किसी और की जगह बंडारू दत्तात्रेय का चेहरा आगे किया। जो एक पिछड़ी जाति से आते हैं। और घटना के बाद पार्टी उसे बढ़-चढ़ कर प्रचारित करने में लगी है। नहीं तो एचआरडी मंत्री स्मृति ईरानी को अपने पहले ही संवाददाता सम्मेलन में दत्तात्रेय की जाति बताने की क्या जरूरत पड़ गई? इतना ही नहीं उन्होंने शुरुआत भी सुशील कुमार की जाति बताने के साथ ही किया ।

इस देश में जातीय उत्पीड़न की घटनाएं अक्सर होती हैं। लेकिन यह पहली ऐसी घटना है जिसमें सीधे तौर पर सत्ता और उसकी सवारी करने वाले लोग शामिल हैं। रोहित ने आत्महत्या नहीं की बल्कि सत्ता के इन बहेलियों ने उसे घेर कर मारा है। इस वाकये ने उच्चशिक्षण संस्थानों, सत्ता प्रतिष्ठानों और पूरी व्यवस्था के ब्राह्मणवादी चेहरे को नंगा कर दिया है। इस घटना ने यह साबित कर दिया कि यह उत्पीड़न गांव की दलित बस्तियों तक सीमित नहीं है। उच्च शैक्षणिक संस्थाएं भी इन्हीं का विस्तार हैं। संघ अपने इन सामंती किलों को और मजबूत करने में जुट गया है। हैदराबाद विश्वविद्यालय से लेकर बीएचयू और इलाहाबाद से लेकर दिल्ली विश्वविद्यालय और जेएनयू से लेकर अलीगढ़ और जामिया में आये दिन सरकार की दखलंदाजी इसी के प्रमाण हैं। 

घटना के बाद विपक्षी दलों पर राजनीति करने का आरोप लगाया जा रहा है। लेकिन अभी तक बीजेपी-संघ-परिषद ने जो किया उसे किस श्रेणी में रखा जाएगा? और अगर इस देश में कानून नाम की कोई चिड़िया है और वह काम भी करती है तो रोहित की आत्महत्या के मामले में अब तक सक्रिय क्यों नहीं हुई? खुदकुशी के लिए मजबूर करने वाले जेल क्यों नहीं भेजे गए? इस मामले में केंद्रीय मंत्री बंडारू दत्तात्रेय के खिलाफ थाने में एफआईआर दर्ज है। और कानून व्यवस्था का मामला भी राज्य का होता है। ऐसे में सूबे की पुलिस की क्या यह जिम्मेदारी नहीं बनती कि वह बंडारू समेत सभी आरोपियों की गिरफ्तारी की पहल करे?

बीजेपी और उसके समर्थक याकूब मेमन मामले से जोड़कर इसे सांप्रदायिक रंग देना चाहते हैं। लेकिन उन्हें इस बात को जरूर समझना चाहिए कि इस देश में किसी भी नागरिक को किसी भी मसले पर अपनी राय रखने की पूरी छूट है। इस देश में एक बड़ी संख्या है जो फांसी की सजा की विरोधी है। हर किसी फांसी के मौके पर उसका प्रतिरोध सामने आता है। यह केवल याकूब की बात नहीं है बल्कि धनंजय चटर्जी के मसले पर भी पूरे देश में इसी तरह से बहस खड़ी हुई थी। और याकूब के मामले पर सरकार का खुद पक्ष बहुत कमजोर था ऐसे में देश और समाज में उस पर दो राय बननी स्वाभाविक थी। 

अगर ऐसा नहीं होता तो तीन बजे रात में सुप्रीम कोर्ट की पीठ को नहीं बैठना पड़ता। ऐसे में उस पर बहस को सीधे कैसे देशद्रोह करार दिया जा सकता है। क्या ऐसे लोग जो फांसी के विरोधी हैं सब को देशद्रोही मान लिया जाए? या फिर उन्होंने जीने का अधिकार खो दिया है। और कहीं भी कभी भी उनकी हत्या की जा सकती है? हम किसी आधुनिक लोकतांत्रिक समाज में रह रहे हैं या फिर मध्ययुग के बर्बर सामंती दौर में पहुंच गए हैं। यह कार्रवाई बिल्कुल ही छात्रों के बीच विवाद के मसले पर हुई थी। उसको वहीं तक सीमित रखा जाए। बाकी उसे सांप्रदायिक रंग देने की साजिश सवर्णों के एक हिस्से द्वारा की जा रही है जो घोर दलित और मुस्लिम विरोधी होने के साथ बीजेपी समर्थक हैं।

(लेखक टीवी पत्रकार हैं)

ROHIT VEMULA: SC/ST फैकल्टी ने किया आंदोलन का समर्थन, 10 ने दिया इस्तीफा


प्रेस विज्ञप्ति में की स्मृति ईरानी के हालिया बयान की निंदा। प्रदर्शनकारियों के समर्थन में उतरे फैकल्टी के सदस्य।    

वनांचल न्यूज नेटवर्क

नई दिल्ली/हैदराबाद। हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के छब्बीस वर्षीय शोधार्थी रोहित वेमुला चक्रवर्ती की खुदकुशी के विरोध में हो रहे प्रदर्शनों के समर्थन में विश्वविद्यालय के एससी/एसटी वर्ग के शिक्षक भी कूद पड़े हैं। विभिन्न पदों पर कार्यरत करीब एक दर्जन प्रोफेसरों ने विश्वविद्यालय के सभी प्रशासनिक पदों से इस्तीफा दे दिया है। साथ ही उन्होंने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर केंद्रीय मानव संसाधन एवं विकास मंत्री स्मृति ईरानी पर देश को गुमराह करने का आरोप लगाया है। उन्होंने विज्ञप्ति में ईरानी के उस वक्तव्य की कड़े शब्दों में निंदा की है जिसमें कहा गया है कि विश्वविद्यालय की दलित फैकल्टी उस जांच कमेटी का हिस्सा थी, जिसके आधार पर रोहित वेमुला और उसके अऩ्य चार साथियों के खिलाफ कार्रवाई की गई है। 


पत्रकारों से बाचतीत में विश्वविद्यालय के विद्यार्थी कल्याण के डीन और एससी/एसटी टीचर्स एवं ऑफिसर्स फोरम के सदस्य प्रकाश बाबू ने कहा, ''मंत्री राष्ट्र को गुमराह कर रही हैं। हम उस प्रशासन के अंतर्गत कार्य नहीं करेंगे जिसके कार्यकारी परिषद में विश्वविद्यालय की स्थापना से दलितों का प्रतिनिधित्व नहीं है।"

डॉ. रविन्द्र कुमार और एस. सुधाकर बाबू के हस्ताक्षर वाली प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि हम दलित फैकल्टी पूरी तरह से केंद्रीय मानव संसाधन एवं विकास मंत्री स्मृति ईरानी के उस बयान की निंदा करते हैं। हम उनके उस बयान पर आपत्ति हैं जो उन्होंने नई दिल्ली में गत 20 जनवरी को दोपहर करीब तीन बजे पत्रकार वार्ता के दौरान दिया था। प्रेस विज्ञप्ति में लिखा है, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि केंद्रीय मंत्री ने मामले में तथ्यों को गलत ढंग से पेश किया और कहा कि विश्वविद्यालय के सबसे वरिष्ठ प्रोफेसर छात्रों के निलंबन का निर्णय लेने वाली कार्यकारी परिषद की उप-समिति के मुखिया थे। उस समिति के मुखिया उच्च वर्ग के प्रोफेसर विपिन श्रीवास्तव थे और कार्यकारी परिषद की उप-समिति में दलित वर्ग का कोई सदस्य नहीं था। यह एक संयोग है कि छात्र कल्याण के डीन दलित वर्ग से हैं और समिति के एक्स ऑफिसियों सदस्य के रूप में उन्हें शामिल किया गया। 

दलित प्रोफेसर्स एसोसिएशन ने कहा है कि 50 से 60 फैकल्टी सदस्य प्रशानिक पदों से इस्तीफा देंगे। रिलीज में कहा गया है कि इस मामले को गलत तरफ मोड़कर ईरानी खुद को और बंडारू दत्तात्रेय को रोहित वेमुला की मौत की जिम्मेदारी लेने से बचाने की कोशिश कर रही हैं। उन्होंने कहा था कि रोहित वेमुला के सुसाइड नोट में किसी अधिकारी या सांसद का नाम नहीं था। फैकल्टी ने रिलीज में कहा कि ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि माननीय मंत्री जी ये कहते हुए देश को गुमराह कर रही हैं कि होस्टल वॉर्डन के पास छात्रों को निकालने का अधिकार है। प्रेस रिलीज में कहा गया कि, 'माननीय मंत्री जी के मनगढ़ंत बयानों के जवाब में हम दलित फैकल्टी और अधिकारी अपने पदों से इस्तीफा देंगे।' प्रेस रिलीज में कहा गया है कि दलित फैकल्टी प्रदर्शन कर रहे छात्रों के साथ है। उसमें लिखा है, 'हम रोहित वेमुला की मौत के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे छात्रों के साथ हैं और अपने छात्रों के निलंबन और उनके खिलाफ पुलिस में दर्ज सभी मामलों को वापस लेने की मांग करते हैं।

पिछले साल अगस्त में रोहित सहित पांच दलित छात्रों को एबीवीपी के कार्यकर्ताओं से झड़प के बाद निलंबित कर दिया गया था। यह सब दिल्ली विश्वविद्यालय में 'मुजफ्फरनगर बाकी है' वृत्तचित्र की स्क्रीनिंग पर एबीवीपी के हमले के बाद शुरू हुआ। दलित छात्रों ने एबीवीपी के इस कदम की निंदा करते हुए इसके विरोध में कैम्पस में प्रदर्शन किया था। इसके बाद इन छात्रों को हॉस्टल से दिसंबर में निकाल दिया गया था। गत रविवार को रोहित वेमुला ने खुदकुशी कर ली। 

बुधवार, 20 जनवरी 2016

ROHIT VEMULA: तीसरे दिन भी प्रदर्शन जारी, हैदराबाद पहुंचे येचुरी

हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय में हो रहा प्रदर्शन। फोटो साभारः फेसबुक
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जाएंगे हैदराबाद

वनांचल न्यूज नेटवर्क

नई दिल्ली। हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के शोध छात्र रोहित वेमुला की खुदकुशी को लेकर उठा सियासी बवंडर थमने का नाम नहीं ले रहा है। हैदराबाद में तीसरे दिन भी प्रदर्शन जारी रहा। सीपीआईएम के नेता सीताराम येचुरी और वाईएसआर कांग्रेस के नेता वाई एस जगनमोहन रेड्डी आज प्रदर्शनकारियों के मिलने हैदराबाद पहुंचे। वहीं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी हैदराबाद जाने की तैयारी में हैं। हालांकि वह कब जाएंगे, यह अभी स्पष्ट नहीं हो पाया है।

बता दें कि एबीवीपी (एचसीयू) के अध्यक्ष नंदानम सुशील कुमार की कथित पिटाई को लेकर केंद्रीय श्रम राज्य मंत्री बंडारू दत्तात्रेय ने पिछले साल मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी को पत्र लिखा था। इसके बाद उन्होंने हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति को पत्र लिखकर रोहित वेमुला और उसके साथियों के खिलाफ कार्रवाई करने की बात कही थी। इसके बाद रोहित और उसके चार साथियों को हास्टल से निकाल दिया गया था और वे विश्वविद्यालय के बाहर टेंट लगाकर अपना विरोध जता रहे थे। रविवार को रोहित वेमुला ने खुदकुशी कर ली थी।  

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वनांचल न्यूज नेटवर्क

नई दिल्लीः हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के शोध छात्र रोहित वेमुला की खुदकुशी का मामला भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को मुश्किल में डाल सकता है। पूर्व मंत्री और पार्टी के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य संजय पासवान ने खुद की पार्टी को कटघरे में खड़ा कर दिया है। संजय पासवान ने ट्वीट किया, “सत्ता की राजनीति के भागीदारों को रोहित वेमुला प्रकरण को गंभीरता से लेना चाहिए या फिर विरोध, बदला, विद्रोह और प्रतिक्रियाओं के लिए तैयार रहना चाहिए।


उन्होंने स्पष्ट रूप से पार्टी का नाम नहीं लिया है लेकिन उनके ट्वीट से साफ जाहिर है कि वे केंद्र की भाजपा को लेकर सहज नहीं है। पासवान ने लोकसभा चुनाव-2014 में पार्टी के अनुसूचित जाति मोर्चे की कमान संभाली थी।