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रविवार, 8 अगस्त 2021

राष्ट्रीय ओबीसी दिवसः जाति जनगणना और भागीदारी की मांग को लेकर यूपी और बिहार में विरोध-प्रदर्शन, सपा और राजद ने भी खोला मोर्चा

उत्तर प्रदेश के बनारस, आजमगढ़, बिहार के भागलपुर, बिहपुर, सुल्तानपुर, मुंगेर में सामाजिक न्याय आंदोलन से जुड़े सामाजिक संगठनों ने निकाला विरोध मार्च। 

वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो

लखनऊ/पटना। जनगणना-2021 में सभी वर्गों की जातिवार गणना कराने, मीडिया, न्यायपालिका, निजी क्षेत्रों समेत सभी सरकारी तंत्रों में आबादी के अनुपात में ओबीसी को आरक्षण देने, एससी, एसटी और ओबीसी के आरक्षण के प्रावधानों को संज्ञेय अपराध बनाने, सच्चर कमेटी की सिफारिशों को पूरी तरह से लागू करने, मंडल आयोग की सभी संस्तुतियों को लागू करने, सामान्य वर्ग की जातिवार सामाजिक और आर्थिक जनगणना कराने सरीखे मुद्दों को लेकर पिछड़ों, अल्पसंख्यों और दलितों ने शनिवार को उत्तर प्रदेश और बिहार के विभिन्न जिलों में जोरदार विरोध प्रदर्शन किया। साथ ही उन्होंने 7 अगस्त को राष्ट्रीय ओबीसी दिवस के रूप में मनाया। वहीं, उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ ने मंडल आयोग की सभी संस्तुतियों को लागू करने और जाति-जनगणना कराने की मांग को लेकर सूबे के सभी जिलों में विरोध प्रदर्शन किया और राष्ट्रपति को संबोधित ज्ञापन जिला प्रशासन को सौंपा। बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने जनगणना-2021 में सभी वर्गों की जातिवार जनगणना की मांग को लेकर विरोध-प्रदर्शन किया और ज्ञापन सौंपा।

बुधवार, 30 जून 2021

शिक्षक भर्ती में हुए आरक्षण घोटाले के खिलाफ नौजवानों ने उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या के आवास पर किया प्रदर्शन, लाठीचार्ज, कई घायल, गिरफ्तार

उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा विभाग में 69000 प्राथमिक शिक्षकों की भर्ती का मामला।

वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो

लखनऊ: उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा विभाग में 69000 शिक्षकों की भर्ती में आरक्षण नियमों की अनदेखी (आरक्षण घोटाला) के खिलाफ छात्रों और नौजवानों ने आज उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के आवास पर विरोध-प्रदर्शन किया। इस दौरान पुलिस ने प्रदर्शनकारी छात्रों और नौजवानों पर लाठीचार्ज किया जिसमें दर्जनों लोग घायल हो गए। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार कर अन्य किसी स्थान पर ले गई। 

मंगलवार, 8 दिसंबर 2020

BHU-VC और छात्रों के बीच फिर ठनी, छात्रों के अनिश्चितकालीन धरने के तीसरे दिन हॉस्टल खाली कराने की कोशिश नाकाम

BHU-VC आवास के सामने धरना देते छात्र
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के दर्जनों छात्र कुलपति आवास के सामने पिछले चार दिनों से अनिश्चितकालीन दे रहे धरना। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के निर्देशानुसार विश्वविद्यालय, पुस्तकालय और हॉस्टल खोलने की कर रहे मांग। छात्रों का आरोप- पुलिस प्रशासन और अराजक तत्वों के बल पर विश्वविद्यालय प्रशासन धरना खत्म कराने की कर रहा कोशिश।    

वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो

वाराणसी। कोरोना वायरस (COVID-19) से उपजे हालात और लॉक-डाउन से प्रभावित शैक्षिक प्रक्रिया से चिंतित काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के छात्रों और कुलपति के बीच फिर ठन गई है। पुस्तकालयों और छात्रावासों समेत विश्वविद्यालय को खोलने की मांग को लेकर दर्जनों छात्र पिछले चार दिनों से कुलपति आवास के सामने धरना दे रहे हैं लेकिन कुलपति ने उनसे मिलने या वार्ता करने की जहमत तक नहीं उठाई। इसके उलट विश्वविद्यालय प्रशासन ने सोमवार को बिड़ला 'ए' छात्रावास में रह रहे करीब 50 छात्रों से कमरा खाली कराने की नाकाम कोशिश की। विश्वविद्यालय प्रशासन के इस रवैये से नाराज छात्रों ने मार्च निकाला और विश्वविद्यालय प्रशासन के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। छात्रों का साफ कहना था कि अगर विश्वविद्यालय प्रशासन ने छात्रावासों में रह रहे छात्रों को उनके कमरों से बाहर निकालने की कोशिश की तो वे चुप नहीं बैठेंगे। साथ ही उन्होंने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के दिशा-निर्देशों के तहत पुस्तकालयों और छात्रावासों समेत विश्वविद्यालय को तुरंत खोले जाने की मांग की।

बुधवार, 19 अगस्त 2020

सोनभद्र में एक साल से जारी नहीं हुआ अधिवक्ता कूपन, अधिवक्ताओं ने किया प्रदर्शन

रॉबर्ट्सगंज तहसील परिसर में विरोध करते अधिवक्ता
जिला सत्र न्यायालय के अधिवक्ताओं ने वरिष्ठ अधिवक्ता अतुल कुमार पटेल के नेतृत्व में राज्यपाल को संबोधित ज्ञापन तहसीलदार को सौंपा।

वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो

सोनभद्र में करीब एक साल से अधिवक्ता कूपन नहीं जारी किए जाने की वजह से नाराज जिला एवं सत्र न्यायालय के अधिवक्ताओं ने बुधवार को वरिष्ठ अधिवक्ता अतुल कुमार पटेल की अगुआई में विरोध-प्रदर्शन किया। इसके बाद उन्होंने राज्यपाल को संबोधित ज्ञापन रॉबर्ट्सगंज के तहसीलदार को सौंपा। 

शुक्रवार, 22 मई 2020

BBAU में सवर्णों का EWS कोटा लागू होने पर OBC छात्रों ने भी मांगा आरक्षण, नेता खामोश

अनुसूचित जाति वर्ग के बुद्धिजीवियों ने इसे बताया पिछड़े और अनुसूचित वर्गों के बीच खाई पैदा करने वाली आरएसएस और भाजपा की साज़िश 

वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो

लखनऊः बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय में प्रवेश की सीटों पर सवर्णोंका ईडब्ल्यूएस (आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग) कोटा लागू होने पर अन्य पिछड़ा वर्ग के छात्रों और शिक्षकों ने विश्वविद्यालय में केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित 27 फीसदी कोटा को लागू करने के लिए अभियान छेड़ दिया है। वहीं अनुसूचित जाति वर्ग के बुद्धिजीवियों ने इसे पिछड़े और अनुसूचित वर्गों के बीच खाई पैदा करने के लिए भाजपा और आरएसएस की साज़िश बताया है।

रविवार, 29 अप्रैल 2018

BHU के छात्रों ने ‘ZEE NEWS’ के खिलाफ किया प्रदर्शन, फूंका लोगो

छात्र समुदाय को बदनाम करने के लिए प्रोपगंडा रचने का लगाया आरोप। 
वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो
वाराणसी। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के छात्रों ने शनिवार की शाम लंका स्थित सिंह द्वार के सामने ‘ज़ी न्यूज़’ टीवी चैनल के खिलाफ प्रदर्शन किया और उसका लोगो जलाया। साथ ही उन्होंने उसपर छात्र समुदाय को बदनाम करने के लिए प्रोपगैंडा रचने का आरोप लगाया।

बुधवार, 25 अप्रैल 2018

UGC की नयी अधिसूचना के खिलाफ प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में आरक्षण समर्थकों का हल्लाबोल, आबादी के अनुपात मेंं मांगा आरक्षण

विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों की नियुक्तियों में कार्मिक मंत्रालय के 200 प्वाइंट रोस्टर को लागू करने और गत 5 मार्च को जारी यूजीसी की अधिसूचना को निरस्त करने की उठी मांग। सामाजिक अन्याय प्रतिकार मोर्चा के बैनर तले आरक्षण समर्थक छात्रों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने निकाली आरक्षण बचाओ पदयात्रा।
वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो
वाराणसी। विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों की नियुक्तियों में भागीदारी के सवाल को लेकर आरक्षण समर्थकों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) समेत केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। उच्च शिक्षण संस्थानों में विश्वविद्यालय और महाविद्यालय को ईकाई मानकर कार्मिक मंत्रालय के 200 प्वाइंट रोस्टर के तहत शिक्षकों की नियुक्ति करने की मांग को लेकर आरक्षण समर्थकों ने आज प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र मेंं हल्ला बोला और अपनी आवाज बुलंद की। सामाजिक अन्याय प्रतिकार मोर्चा के बैनर तले करीब पांच सौ आरक्षण समर्थकों ने वाराणसी के नरिया से प्रधानमंत्री के संसदीय कार्यालय तक आरक्षण बचाओ पदयात्रा निकाला और भारतीय संविधान में उल्लेखित प्रतिनिधित्व के अधिकार की मांग की।

शनिवार, 17 मार्च 2018

आरक्षण के सवाल पर काशी में आज बजेगा बहुजनों का बिगुल

नाटी इमली में बुद्धिजीवी खोलेंगे सामाजिक न्याय विरोधी सरकारों की पोल तो लंका में बीएचयू गेट से मिनी पीएमओ तक बहुजन छात्र निकालेंगे प्रतिरोध मार्च।
वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो
वाराणसी । देश की लोकतांत्रिक प्रणाली में हिस्सेदारी के सवाल पर बहुजन छात्र और बुद्धिजीवी आज काशी में आंदोलन का बिगुल फूकेंगे। एक तरफ नाटी इमली स्थित वैश्व समाज सभागार में सामाजिक न्यायः भूत, वर्तमान और भविष्य विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आगाज होगा तो दूसरी तरफ बहुजन छात्र लंका स्थित सिंह द्वार से रविंद्रपुरी स्थित प्रधानमंत्री जन संपर्क कार्यालय तक विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के सामाजिक न्याय विरोधी फरमान के खिलाफ प्रतिरोध मार्च निकालेंगे।

मंगलवार, 23 जनवरी 2018

भाषायी भेदभाव के खिलाफ काशी में प्रधानमंत्री कार्यालय पर प्रतियोगी छात्रों ने किया प्रदर्शन

उत्तर प्रदेश सिविल जज (जूनियर डिविजन) की मुख्य परीक्षा में भाषा के प्रश्न-पत्र में अंग्रेजी के साथ हिन्दी भाषा के सवालों को शामिल करने की मांग...
वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो
वाराणसी। उत्तर प्रदेश न्यायिक सेवा परीक्षा में भाषा के आधार पर हो रहे भेदभाव और अवसर की बाध्यता को लेकर ‘काशी न्यायिक सेवा समानता मंच’ के बैनर तले सैकड़ों प्रतियोगी छात्रों ने आज रविन्द्रपुरी स्थित प्रधानमंत्री कार्यालय पर प्रदर्शन किया और लंका स्थित सिंह द्वार से प्रधानमंत्री कार्यालय तक विरोध मार्च निकाला। 

रविवार, 27 अगस्त 2017

BHU में हुई मौतों की सीबीआई जांच की मांग को लेकर 'आप' ने फूंका बिगुल

मृतकों के परिजनों को 25-25 लाख रुपये के मुआवजे की मांग भी की।
वाराणसी। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के सर सुंदरलाल चिकित्सालय में जून में हुई कथित 20 से ज्यादा मरीजों की मौतों की सीबीआई जांच की मांग को लेकर आम आदमी पार्टी (आप) के कार्यकर्ताओं ने शनिवार को संत रविदास गेट से लंका स्थित बीएचयू गेट तक मार्च निकाला और प्रदर्शन किया। साथ ही उन्होंने मृतकों के परिजनों को 25-25 लाख रुपये के मुआवजे की मांग की।

सोमवार, 22 फ़रवरी 2016

JNU प्रकरण: ZEE न्यूज़ पर ‘पाकिस्तान ज़िंदाबाद’ के नारों वाली ख़बर बनाने वाले टीवी पत्रकार का इस्तीफा


कहा- ऐसा नहीं किया तो खुद को कभी माफ़ नहीं कर पाउंगा...



हम पत्रकार अक्सर दूसरों पर सवाल उठाते हैं लेकिन कभी खुद पर नहीं. हम दूसरों की जिम्मेदारी तय करते हैं लेकिन अपनी नहीं. हमें लोकतंत्र का चौथा खंभा कहा जाता है लेकिन क्या हम, हमारी संंस्थाएं, हमारी सोच और हमारी कार्यप्रणाली लोकतांत्रिक है ? ये सवाल सिर्फ मेरे नहीं है. हम सबके हैं.
JNUSU अध्यक्ष कन्हैया कुमार को राष्ट्रवादके नाम पर जिस तरह से फ्रेम किया गया और मीडिया ट्रायल करके देशद्रोहीसाबित किया गया, वो बेहद खतरनाक प्रवृत्ति है. हम पत्रकारों की जिम्मेदारी सत्ता से सवाल करना है ना की सत्ता के साथ संतुलन बनाकर काम करना. पत्रकारिता के इतिहास में हमने जो कुछ भी बेहतर और सुंदर हासिल किया है, वो इन्ही सवालों का परिणाम है.
सवाल करना या न करना हर किसी का निजी मामला है लेकिन मेरा मानना है कि जो पर्सनल है वो पॉलिटिकल भी है. एक ऐसा वक्त आता है जब आपको अपनी पेशेवर जिम्मेदारियों और अपनी राजनीतिक-समाजिक पक्षधरता में से किसी एक पाले में खड़ा होना होता है. मैंने दूसरे को चुना है और अपने संस्थान ZEE NEWS से इन्ही मतभेदों के चलते 19 फरवरी को इस्तीफा दे दिया है.
मेरा इस्तीफा इस देश के लाखों-करोड़ों कन्हैयाओं और जेएनयू के उन दोस्तों को समर्पित है जो अपनी आंखों में सुंदर सपने लिए संघर्ष करते रहे हैं, कुर्बानियां देते रहे हैं. (ज़ी न्यूज़ के नाम मेरा पत्र जो मेरे इस्तीफ़े में संलग्न है)

प्रिय ज़ी न्यूज़,

एक साल 4 महीने और 4 दिन बाद अब वक्त आ गया है कि मैं अब आपसे अलग हो जाऊं. हालांकि ऐसा पहले करना चाहिए था लेकिन अब भी नहीं किया तो खुद को कभी माफ़ नहीं कर सकूंगा.
आगे जो मैं कहने जा रहा हूं वो किसी भावावेश, गुस्से या खीझ का नतीज़ा नहीं है, बल्कि एक सुचिंतित बयान है. मैं पत्रकार होने से साथ-साथ उसी देश का एक नागरिक भी हूं जिसके नाम अंध राष्ट्रवादका ज़हर फैलाया जा रहा है और इस देश को गृहयुद्ध की तरफ धकेला जा रहा है. मेरा नागरिक दायित्व और पेशेवर जिम्मेदारी कहती है कि मैं इस ज़हर को फैलने से रोकूं. मैं जानता हूं कि मेरी कोशिश नाव के सहारे समुद्र पार करने जैसी है लेकिन फिर भी मैं शुरुआत करना चहता हूं. इसी सोच के तहत JNUSU अध्यक्ष कन्हैया कुमार के बहाने शुरू किए गए अंध राष्ट्रवादी अभियान और उसे बढ़ाने में हमारी भूमिका के विरोध में मैं अपने पद से इस्तीफा देता हूं. मैं चाहता हूं इसे बिना किसी वैयक्तिक द्वेष के स्वीकार किया जाए.

असल में बात व्यक्तिगत है भी नहीं. बात पेशेवर जिम्मेदारी की है. सामाजिक दायित्वबोध की है और आखिर में देशप्रेम की भी है. मुझे अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि इन तीनों पैमानों पर एक संस्थान के तौर पर तुम तुमसे जुड़े होने के नाते एक पत्रकार के तौर पर मैं पिछले एक साल में कई बार फेल हुए.
मई 2014 के बाद से जब से श्री नरेन्द्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने हैं, तब से कमोबेश देश के हर न्यूज़ रूम का सांप्रदायीकरण (Communalization) हुआ है लेकिन हमारे यहां स्थितियां और भी भयावह हैं. माफी चाहता हूं इस भारी भरकम शब्द के इस्तेमाल के लिए लेकिन इसके अलावा कोई और दूसरा शब्द नहीं है. आखिर ऐसा क्यों होता है कि ख़बरों को मोदी एंगल से जोड़कर लिखवाया जाता है ? ये सोचकर खबरें लिखवाई जाती हैं कि इससे मोदी सरकार के एजेंडे को कितना गति मिलेगी ?

हमें गहराई से संदेह होने लगा है कि हम पत्रकार हैं. ऐसा लगता है जैसे हम सरकार के प्रवक्ता हैं या सुपारी किलर हैं? मोदी हमारे देश के प्रधानमंत्री हैं, मेरे भी है; लेकिन एक पत्रकार के तौर इतनी मोदी भक्ति अब हजम नहीं हो रही है ? मेरा ज़मीर मेरे खिलाफ बग़ावत करने लगा है. ऐसा लगता है जैसे मैं बीमार पड़ गया हूं.

हर खबर के पीछे एजेंडा, हर न्यूज़ शो के पीछे मोदी सरकार को महान बताने की कोशिश, हर बहस के पीछे मोदी विरोधियों को शूट करने की का प्रयास ? अटैक, युद्ध से कमतर कोई शब्द हमें मंजूर नहीं. क्या है ये सब ? कभी ठहरकर सोचता हूं तो लगता है कि पागल हो गया हूं.

आखिर हमें इतना दीन हीन, अनैतिक और गिरा हुआ क्यों बना दिया गया ?देश के सर्वोच्च मीडिया संस्थान से पढ़ाई करने और आजतक से लेकर बीबीसी और डॉयचे वेले, जर्मनी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में काम करने के बाद मेरी पत्रकारीय जमापूंजी यही है कि लोग मुझे छी न्यूज़ पत्रकारकहने लगे हैं. हमारे ईमान (Integrity) की धज्जियां उड़ चुकी हैं. इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा ?
कितनी बातें कहूं. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के खिलाफ लगातार मुहिम चलाई गई और आज भी चलाई जा रही है . आखिर क्यों ? बिजली-पानी, शिक्षा और ऑड-इवेन जैसी जनता को राहत देने वाली बुनियादी नीतियों पर भी सवाल उठाए गए. केजरीवाल से असहमति का और उनकी आलोचना का पूरा हक है लेकिन केजरीवाल की सुपारी किलिंग का हक एक पत्रकार के तौर पर नहीं है. केजरीवाल के खिलाफ की गई निगेटिव स्टोरी की अगर लिस्ट बनाने लगूंगा तो कई पन्ने भर जाएंगे. मैं जानना चाहता हूं कि पत्रकारिता के बुनियादी सिद्धांत तटस्थताका और दर्शकों के प्रति ईमानदारी का कुछ तो मूल्य है, कि नहीं ?

दलित स्कॉलर रोहित वेमुला की आत्महत्या के मुद्दे पर ऐसा ही हुआ. पहले हमने उसे दलित स्कॉलर लिखा फिर दलित छात्र लिखने लगे. चलो ठीक है लेकिन कम से कम खबर तो ढंग से लिखते.रोहित वेमुला को आत्महत्या तक धकेलने के पीछे ABVP नेता और बीजेपी के बंडारू दत्तात्रेय की भूमिका गंभीरतम सवालों के घेरे में है (सब कुछ स्पष्ट है) लेकिन एक मीडिया हाउस के तौर हमारा काम मुद्दे को कमजोर (dilute) करने और उन्हें बचाने वाले की भूमिका का निर्वहन करना था.

मुझे याद है जब असहिष्णुता के मुद्दे पर उदय प्रकाश समेत देश के सभी भाषाओं के नामचीन लेखकों ने अकादमी पुरस्कार लौटाने शुरू किए तो हमने उन्हीं पर सवाल करने शुरू कर दिए. अगर सिर्फ उदय प्रकाश की ही बात करें तो लाखों लोग उन्हें पढ़ते हैं. हम जिस भाषा को बोलते हैं, जिसमें रोजगार करते हैं उसकी शान हैं वो. उनकी रचनाओं में हमारा जीवन, हमारे स्वप्न, संघर्ष झलकते हैं लेकिन हम ये सिद्ध करने में लगे रहे कि ये सब प्रायोजित था. तकलीफ हुई थी तब भी, लेकिन बर्दाश्त कर गया था.

लेकिन कब तक करूं और क्यों ?

मुझे ठीक से नींद नहीं आ रही है. बेचैन हूं मैं. शायद ये अपराध बोध का नतीजा है. किसी शख्स की जिंदगी में जो सबसे बड़ा कलंक लग सकता है वो है देशद्रोह. लेकिन सवाल ये है कि एक पत्रकार के तौर पर हमें क्या हक है कि किसी को देशद्रोही की डिग्री बांटने का ? ये काम तो न्यायालय का है न ?

कन्हैया समेत जेएनयू के कई छात्रों को हमने ने लोगों की नजर में देशद्रोहीबना दिया. अगर कल को इनमें से किसी की हत्या हो जाती है तो इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा ? हमने सिर्फ किसी की हत्या और कुछ परिवारों को बरबाद करने की स्थिति पैदा नहीं की है बल्कि दंगा फैलाने और गृहयुद्ध की नौबत तैयार कर दी है. कौन सा देशप्रेम है ये ? आखिर कौन सी पत्रकारिता है ये ?

क्या हम बीजेपी या आरएसएस के मुखपत्र हैं कि वो जो बोलेंगे वहीं कहेंगे ? जिस वीडियो में पाकिस्तान जिंदाबादका नारा था ही नहीं उसे हमने बार-बार हमने उन्माद फैलाने के लिए चलाया. अंधेरे में आ रही कुछ आवाज़ों को हमने कैसे मान लिया की ये कन्हैया या उसके साथियों की ही है? ‘भारतीय कोर्ट ज़िंदाबादको पूर्वाग्रहों के चलते पाकिस्तान जिंदाबादसुन लिया और सरकार की लाइन पर काम करते हुए कुछ लोगों का करियर, उनकी उम्मीदें और परिवार को तबाही की कगार तक पहुंचा दिया. अच्छा होता कि हम एजेंसीज को जांच करने देते और उनके नतीजों का इंतज़ार करते.

लोग उमर खालिद की बहन को रेप करने और उस पर एसिड अटैक की धमकी दे रहे हैं. उसे गद्दार की बहन कह रहे हैं. सोचिए ज़रा अगर ऐसा हुआ तो क्या इसकी जिम्मेदारी हमारी नहीं होगी ? कन्हैया ने एक बार नहीं हज़ार बार कहा कि वो देश विरोधी नारों का समर्थन नहीं करता लेकिन उसकी एक नहीं सुनी गई, क्योंकि हमने जो उम्माद फैलाया था वो NDA सरकार की लाइन पर था. क्या हमने कन्हैया के घर को ध्यान से देखा है ? कन्हैया का घर, ‘घरनहीं इस देश के किसानों और आम आदमी की विवशता का दर्दनाक प्रतीक है. उन उम्मीदों का कब्रिस्तान है जो इस देश में हर पल दफ्न हो रही हैं. लेकिन हम अंधे हो चुके हैं !

मुझे तकलीफ हो रही है इस बारे में बात करते हुए लेकिन मैं बताना चाहता हूं कि मेरे इलाके में भी बहुत से घर ऐसे हैं. भारत का ग्रामीण जीवन इतना ही बदरंग है.उन टूटी हुई दीवारों और पहले से ही कमजोर हो चुकी जिंदगियों में हमने राष्ट्रवादी ज़हर का इंजेक्शन लगाया है, बिना ये सोचे हुए कि इसका अंजाम क्या हो सकता है! अगर कन्हैया के लकवाग्रस्त पिता की मौत सदमें से हो जाए तो क्या हम जिम्मेदार नहीं होंगे ? ‘The Indian Express’ ने अगर स्टोरी नहीं की होती तो इस देश को पता नहीं चलता कि वंचितों के हक में कन्हैया को बोलने की प्रेरणा कहां से मिलती है !

रामा नागा और दूसरों का हाल भी ऐसा ही है. बहुत मामूली पृष्ठभूमि और गरीबी से संघर्ष करते हुए ये लड़के जेएनयू में मिल रही सब्सिडी की वजह से पढ़ लिख पाते हैं. आगे बढ़ने का हौसला देख पाते हैं. लेकिन टीआरपी की बाज़ारू अभीप्सा और हमारे बिके हुए विवेक ने इनके करियर को लगभग तबाह ही कर दिया है.

हो सकता है कि हम इनकी राजनीति से असहमत हों या इनके विचार उग्र हों लेकिन ये देशद्रोही कैसे हो गए ? कोर्ट का काम हम कैसे कर सकते हैं ? क्या ये महज इत्तफाक है कि दिल्ली पुलिस ने अपनी FIR में ज़ी न्यूज का संदर्भ दिया है ? ऐसा कहा जाता है कि दिल्ली पुलिस से हमारी सांठगांठ है ? बताइए कि हम क्या जवाब दे लोगों को ?

आखिर जेएनयू से या जेएनयू के छात्रों से क्या दुश्मनी है हमारी ? मेरा मानना है कि आधुनिक जीवन मूल्यों, लोकतंत्र, विविधता और विरोधी विचारों के सह अस्तित्व का अगर कोई सबसे खूबसूरत बगीचा है देश में तो वो जेएनयू है लेकिन इसे गैरकानूनी और देशद्रोह का अड्डा बताया जा रहा है.

मैं ये जानना चाहता हूं कि जेएनयू गैर कानूनी है या बीजेपी का वो विधायक जो कोर्ट में घुसकर लेफ्ट कार्यकर्ता को पीट रहा था ? विधायक और उसके समर्थक सड़क पर गिरे हुए CPI के कार्यकर्ता अमीक जमेई को बूटों तले रौंद रहे थे लेकिन पास में खड़ी पुलिस तमाशा देख रही थी. स्क्रीन पर पिटाई की तस्वीरें चल रही थीं और हम लिख रहे थे ओपी शर्मा पर पिटाई का आरोप. मैंने पूछा कि आरोप क्यों ? कहा गया ऊपरसे कहा गया है ? हमारा ऊपरइतना नीचे कैसे हो सकता है ? मोदी तक तो फिर भी समझ में आता है लेकिन अब ओपी शर्मा जैसे बीजेपी के नेताओं और ABVP के कार्यकर्ताओं को भी स्टोरी लिखते समय अब हम बचाने लगे हैं.

घिन आने लगी है मुझे अपने अस्तित्व से. अपनी पत्रकरिता से और अपनी विवशता से. क्या मैंने इसलिए दूसरे सब कामों को छोड़कर पत्रकार बनने का फैसला बनने का फैसला किया था. शायद नहीं.

अब मेरे सामने दो ही रास्ते हैं या तो मैं पत्रकारिता छोड़ूं या फिर इन परिस्थितियों से खुद को अलग करूं. मैं दूसरा रास्ता चुन रहा हूं. मैंने कोई फैसला नहीं सुनाया है बस कुछ सवाल किए हैं जो मेरे पेशे से और मेरी पहचान से जुड़े हैं. छोटी ही सही लेकिन मेरी भी जवाबदेही है. दूसरों के लिए कम, खुद के लिए ज्यादा. मुझे पक्के तौर पर अहसास है कि अब दूसरी जगहों में भी नौकरी नहीं मिलेगी. मैं ये भी समझता हूं कि अगर मैं लगा रहूंगा तो दो साल के अंदर लाख के दायरे में पहुंच जाऊंगा. मेरी सैलरी अच्छी है लेकिन ये सुविधा बहुत सी दूसरी कुर्बानियां ले रही है, जो मैं नहीं देना चाहता. साधारण मध्यवर्गीय परिवार से आने की वजह से ये जानता हूं कि बिना तनख्वाह के दिक्कतें भी बहुत होंगी लेकिन फिर भी मैं अपनी आत्मा की आवाज (consciousness) को दबाना नहीं चाहता.

मैं एक बार फिर से कह रहा हूं कि मुझे किसी से कोई व्यक्तिगत शिकायत नहीं है. ये सांस्थानिक और संपादकीय नीति से जुडे हुए मामलों की बात है. उम्मीद है इसे इसी तरह समझा जाएगा.
यह कहना भी जरूरी समझता हूं कि अगर एक मीडिया हाउस को अपने दक्षिणपंथी रुझान और रुचि को जाहिर करने का, बखान करने का हक है तो एक व्यक्ति के तौर पर हम जैसे लोगों को भी अपनी पॉलिटिकल लाइन के बारे में बात करने का पूरा अधिकार है. पत्रकार के तौर पर तटस्थता का पालन करना मेरी पेशेवर जिम्मेदारी है लेकिन एक व्यक्ति के तौर पर और एक जागरूक नागरिक के तौर पर मेरा रास्ता उस लेफ्ट का है जो पार्टी द्फ्तर से ज्यादा हमारी ज़िंदगी में पाया जाता है. यही मेरी पहचान है.

और अंत में एक साल तक चलने वाली खींचतान के लिए शुक्रिया. इस खींचतान की वजह से ज़ी न्यूज़ मेरे कुछ अच्छे दोस्त बन सके.
सादर-सप्रेम,
विश्वदीपक

शनिवार, 23 जनवरी 2016

ROHIT VEMULA: विरोध के स्वर को मिला देशव्यापी समर्थन, प्रदर्शन जारी


बंडारू दत्तात्रेय, पी. अप्पा राव, स्मृति इरानी को उनके पदों से बर्खास्त करने की मांग हुई तेज।

वनांचल न्यूज नेटवर्क

नई दिल्ली/इलाहाबाद। हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के शोधार्थी रोहित वेमुला की खुदकुशी को लेकर केंद्र की मोदी सरकार के दो मंत्रियों और विश्वविद्यालय प्रशासन के खिलाफ आज भी देश के विभिन्न शहरों में विरोध प्रदर्शन हुआ। लोगों ने विश्वविद्यालय के कुलपति, केंद्रीय श्रम राज्य मंत्री बंडारू दत्तात्रेय, केंद्रीय मानव संसाधन एवं विकास मंत्री स्मृति इरानी को उनके पदों से बर्खास्त करने की मांग की। साथ ही रोहित की खुदकुशी के मामले में आरोपी लोगों को तत्काल गिरफ्तार किया जाए। उधर केंद्रीय मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय ने रोहित के परिजनों को आठ लाख रुपये का मुआवजा देने और पूरे मामले की न्यायिक जांच कराने का निर्देश दिया है। हैदराबाद, दिल्ली, लखनऊ, दिल्ली, पूणे, मुंबई, इलाहाबाद, वाराणसी, आदि शहरों में शनिवार को भी जबरदस्त प्रदर्शन हुए।

हैदराबाद में रोहित वेमुला के साथ निकाले गए छात्रों समेत करीब सैकड़ों लोगों ने विश्वविद्यालय परिसर में विरोध प्रदर्शन किया। कई छात्र अभी भी अनशन पर बैठे हुए हैं। दिल्ली में विरोध प्रदर्शन किये गए। शुक्रवार को जेएनयू में भी प्रदर्शन हुए थे। वहीं इलाहाबाद में आज छात्र युवा, बुद्धिजीवी, पत्रकार, मजदूर, किसान सब एक साथ सड़क पर निकले। इस दौरान एक प्रतिरोध मार्च निकाला गया जो पीडी टंडन पार्क से सुभाष बोस चौराहे पर जाकर एक सभा में तब्दील हो गया। इनमें जिया उल हक़, रवि किरण जैन, लेखक दूध नाथ सिंह, प्रलेस अध्यक्ष प्रो. संतोष भदौरिया, प्रो. अली अहमद फातमी, डा. उर्मिला जैन, प्रो. अनिता गोपेश, के.के. पांडे, जसम के राष्ट्रीय महासचिव प्रो. प्रणय कृष्ण, सुरेन्द्र राही, खुर्शीद नकवी, डा. अशफाक हुसैन, डा. फखरुल करीम, इलाहाबाद विवि छात्र संघ अध्यक्ष ऋचा सिंह, असरार गाँधी, रणविजय सिंह सत्यकेतु, डा. अनिल पुष्कर, डा. शमेनाज़, डा. अंशुमान , रोजी रोटी बचाओ संघर्ष मोर्चा से अनु सिंह गीता, बृजेश ,आरती, सीमा आज़ाद ,रश्मि मालवीय, अविनाश मिश्र, शहनाज़, उत्पला, ऋतेश, छात्रसंघ की पूर्व उपाध्यक्ष शालू यादव, केके त्रिपाठी, मीना राय, नीलम शंकर , अमृता सिंह  आदि मौजूद रहे।  

गौरतलब है कि पिछले साल अगस्त में रोहित सहित पांच दलित छात्रों को एबीवीपी के कार्यकर्ताओं से झड़प के बाद निलंबित कर दिया गया था। यह सब दिल्ली विश्वविद्यालय में 'मुजफ्फरनगर बाकी है' वृत्तचित्र की स्क्रीनिंग पर एबीवीपी के हमले के बाद शुरू हुआ था। दलित छात्रों ने एबीवीपी के इस कदम की निंदा करते हुए इसके विरोध में कैम्पस में प्रदर्शन किया था। इसके बाद इन छात्रों को हॉस्टल से दिसंबर में निकाल दिया गया। गत रविवार को इनमें से एक रोहित वेमुला ने खुदकुशी कर ली थी। इसे लेकर देश के विभिन्न हिस्सों में छात्र संगठनों समेत अन्य लोगों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया।

विश्वविद्यालय के एक दर्जन से ज्यादा दलित फैकल्टी ने आज केंद्रीय मानव संसाधन एवं विकास मंत्री स्मृति ईरानी के बयान को लेकर सभी प्रशासनिक पदों से इस्तीफा दे दिया। इनमें मुख्य चिकित्साधिकारी कैप्टन रविंद्र कुमर, परीक्षा नियंत्रक प्रो. वी. कृष्णा, मुख्य वार्डन डॉ. जी. नागाराजू और एक दर्जन अन्य फैकल्टी सदस्य शामिल हैं। इससे विश्वविद्यालय और दबाव में आ गया और उसने जल्द ही कार्यकारी परिषद की बैठक बुलाई। इसमें खुदकुशी करने वाले शोधार्थी रोहित वेमुला के चार साथियों का निलंबन वापस लेने का निर्णय लिया गया।  

बुधवार, 13 जनवरी 2016

Protest at MHRD against scrapping of non-NET fellowships today

Appeal to all democratic, progressive organizations and individuals to participate in the protest.

Vananchal News Network

New Delhi: A group of students and scholars will organize a protest before the Ministry of Human Resource and Development, Delhi against scrapping on non-NET fellowships at 2:00 pm today. The group, as named Occupy UGC , asserts that the MHRD minister should meet with the protesters and publicly announce the status of non-NET fellowships to everyone as soon as possible. Occupy UGC, appeal to all democratic, progressive organizations and individuals to participate in the protest and express solidarity with our struggle and take forward the fight against privatization of higher education. 

The group said in its release, it will be now 85 days since we began our agitation against UGC after it scrapped the Non NET Fellowships for the M.phil/Phd students. Soon the matter was transferred to the MHRD and since then even after several demonstrations at MHRD and our continued occupation at the UGC premises, there has been no response from the ministry and no effort to involve students in the further decision making process has been undertaken.

During our struggle we have raised questions against fund cuts, privatization, commercialization of education and the attempts of State to maintain Brahmanical hegemony over the educational institutions. The state has responded with violence and lathi charged on us many a times, threw water cannons and tear gas on us and tried to silent us with all the force that it could deploy. But ‪#OccupyUGC continues.
The ministry was supposed to give a final decision regarding the Non-Net Fellowships by mid December. However, even when it is mid - January we have no word from UGC or MHRD regarding what is the final status of non net fellowships... The MHRD minister Smriti Irani has denied us appointment and no decision has been communicated to us.

Responding to this inaction/negligence/indecision by the MHRD we will again resume our agitation at the MHRD gates on the 13th of January at 2:00pm asking the minister to provide answers to our questions! We are determined to continue our protest till our demands are met and in no way are we interested in playing hide and seek with the ministry. There are following demands of  Occupy UGC:
-Restore, Increase, Expand Non – Net Fellowships – No Merit /Income criteria- based exclusion. Research Students in state universities to be included under the non - NET fellowship.
-Increase the amount of Fellowship from 5,000 to 8,000 for M.Phil students and 8,000 to 12,000 for Phd students.
-Halt the process of fund cut in Education- spend 10% of the budget in education.