शुक्रवार, 4 नवंबर 2016

RSS का सिर्फ राष्ट्र तोड़ने में रहा योगदानः तीस्ता सीतलवाड़

'शैक्षणिक संस्थानों के मूलभूत ढाँचे पर आरएसएस का हमला ' विषयक जनसभा में वक्ताओं ने BHU के कुलपति पर बोला हमला। 
वनांचल न्यूज़ नेटवर्क

वाराणसी। सामाजिक संस्था 'ज्वाइंट एक्शन कमेटी' ने शुक्रवार को लंका स्थित बीएचयू द्वार के पास 'शैक्षणिक संस्थानों के मूलभूत ढाँचे पर आरएसएस का हमला ' विषयक जनसभा का आयोजन किया जिसमें वक्ताओं ने बीएचयू कुलपति और आरएसएस पर जमकर हमला बोला। 


पिछले 124 दिन से बीएचयू गेट पर धरनारत दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों को समर्थन देने पंहुची प्रख्यात समाजसेवी और पत्रकार तीस्ता सीतलवाड़ ने देश भर के शिक्षण संस्थानों में तनाव, दमन और आंदोलित चेतना का ज़िक्र करते अपनी बात रखी। उन्होंने हैरत जताते हुए कहा की आपलोग बता रहे है की राजनीती विज्ञानं विभाग में ' आरएसएस के राष्ट्रनिर्माण में भूमिका ' विषय पर अंतरराष्ट्रीय सेमिनार हो रहा है , जबकि आरएसएस का योगदान अपने भारत राष्ट्र को सिर्फ तोड़ने में रहा है। मैं दरख्वास्त करूँगी विवि के लोगो से की मैं भी उस सेमिनार में शिरकत करू और आरएसएस के अपराधी चेहरे को उजागर कर पाऊँ। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की हत्या के पीछे जो राष्ट्रवादी हिंदूवादी सोच काम कर रही थी उसका मुखर नेतृत्व आरएसएस ही कर रही थी और आज भी कर रही है। उन्होंने कहा की मुझे मालूम है की यहाँ धरनारत कर्मचारी पिछले काफी अरसे से अपने नियमितीकरण की लड़ाई लड़ रहे है , ऐसे ही एक वाकये में पिछले सत्र में भी कुछेक कर्मचारियों के साथ प्रो संदीप पांडेय इसी गेट पर आंदोलनरत थे और उस समय ही यंहा के कुलपति जी इस बात से खफा हुए थे ,बाद में यहाँ के ठेले पटरी दुकानदारो के विस्थापन के मुद्दे पर चले आंदोलन में छात्रों- कर्मचारियों-शिक्षको को शामिल करने पर वे सन्दीप से खफा हुए और उनके प्रगतिशील बहसों आदि के कार्यक्रम को देशविरोधी बताकर उन्हें बर्खास्त किया था , उसी प्रकरण में  कुलपति बीएचयू ने स्वयं को आरएसएस का सदस्य होने की मुनादी करते हुए कहा था की विवि कैसे चलेगा ये हमें ठेले-खोमचे वाले न सिखाए ,इस प्रकरण के बहस में मान० उच्च न्यायलय ने कुलपति जी को न केवल यह समझाया है की विवि कैसे चलेगा बल्कि थोड़ा और आगे बढ़ते हुए कुलपति त्रिपाठी जी को यह भी समझाया है की कुलपति को खुद विवि में कैसे चलना चाहिए। कोर्ट ने विवि प्रशासन को याद दिलाते हुए कहा की बीएचयू के संस्थापक मालवीय जी ने कहा था ," यह देश केवल हिन्दुओं का नहीं है, यह देश मुसलमानो ,सिखों, ईसाईयों ,पारसियों आदि का भी है। देश तभी आगे बढ़ेगा जब हम सब जात धर्म को भूलकर भारतीयता को प्रथम परिचय मानकर एक साथ एक परिवार बनकर रहेंगे।"  कोर्ट ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा की साइबर क्राइम और देशविरोधी गतिविधि का आरोप लगाने वाले बीएचयू के पास प्रो० संदीप को दोषी सिद्ध करने हेतु कोई ठोस सबूत ही नहीं है , " शैक्षणिक परिसर में प्रशासनिक पदों पर बैठे हुए लोगो को राजनैतिक विचारधारा / झुकाव से तटस्थ होकर निर्णय लेना चाहिए। जबकि प्रो संदीप की बर्खास्तगी में कुल मामला विचारधारा का अलग -2 होना ही दिखाई दे रहा है।" 

प्रख्यात साहित्यकार प्रो चौथीराम यादव ( पूर्व शिक्षक हिंदी विभाग बीएचयू ) ने राष्ट्रवाद और उसमे वर्गीकृत हिन्दू राष्ट्रवाद पर विस्तार से अपनी बात रखते हुए ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य को उठाते हुए कहा की भारत में 1925 में स्थापित हिंदूवादी राष्ट्रवादी चेतना के संगठन आरएसएस के साथ ही उस पुरे दशक में इटली और जर्मनी में मुसोलिनी और हिटलर - गोएबल्स के फ़ाँसीवादी राष्ट्रवादी नस्लीय चेतना के उभार के अनुक्रम के रूप में देखना चाहिए। मुंजे , मुसोलिनी , गोएबल्स, हिटलर, सावरकर, हेडगेवार की सोच एक थी। सावरकर ने जर्मनी में हिटलर द्वारा यहूदियों के सफाये को सही ठहराया और भारत में मुसलमानों की ”समस्या” के समाधान का भी यही रास्ता सुझाया। लेनिन ने बहुत पहले ही आगाह किया था कि नस्लवादी अंधराष्ट्रवादी पागलपन अक्सर सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का चोला पहनकर आता है। द्विराष्ट्रवाद सिद्धान्त के प्रवर्तक सावरकर और आरएसएस ने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के रस्ते ही पैठ बनाई है। बीएचयू को अपना बेसकैम्प के रूप में बनाने की उनकी इच्छा हो न हो इनके गुरूजी गोलवरकर के जुड़ाव की वजह से भी हो सकती है। गोलवरकर ने बीएचयू से ही मेडिकल की पढ़ाई की थी , अपनी पुस्तक ‘वी, ऑर अवर नेशनहुड डिफाइण्ड’ और बाद में प्रकाशित हुई ‘बंच ऑफ थॉट्स’ में जर्मनी में नात्सियों द्वारा उठाये गये कदमों का अनुमोदन किया था, और भारत में मुसलमानो की मौजूदगी को एक समस्या के रूप में देखते हुए उनके खात्मे को एक मॉडल के रूप में समर्थन किया है। गोलवलकर, आर.एस.एस. के लोगों के लिए सर्वाधिक पूजनीय सरसंघचालक थे। गोलवरकर के ही नेतृत्व में आरएसएस के स्कुलो का नेटवर्क देश भर में स्थापित हुआ और उन्ही की सोच थी की शिक्षा के रस्ते से मनुष्य के मस्तिष्क पर कब्ज़ा किया जाए और उसकी सोच को नस्लीय / जातीय / धार्मिक गर्व के साथ जोड़ा जाए। देश भर के विवि में एबीवीपी और आरएसएस के लोगो से जो लगातार झड़पे हो रही है, उसके पीछे शिक्षा के भगवाकरण और निजीकरण की सरकारी साजिशो की सहमति भी शामिल है। 

प्रो राकेश सिन्हा ( पूर्व शिक्षक आईआईटी बीएचयू ), ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि लोकतान्त्रिक आंदोलनकारी छात्रों पर फौजदारी धाराओं में रिपोर्ट कराया जा रहा है इनका कैरियर बर्बाद किया जा रहा है , ये दुःख और शर्म की बात है । उन्होंने कहा कि हैदराबाद विवि, एफटीआईआई पुणे, जेएनयू, पटना विवि से लेकर बीएचयू तक के आंदोलन बता रहे है कि इस समय भारतीय संसद में विपक्ष में कोई नेता नहीं है और केंद्र की सरकार निरंकुश और तानाशाह हो गयी है ऐसे में देश में जिम्मेदार विपक्ष की जिम्मेदारी छात्रों ने ही ले रखी है , और ये छात्र अपना कैरियर दाँव पर लगा के इस जिम्मेदारी को बखूबी निभा रही है। उन्होंने कहा की आरएसएस की ये नीति रही है की समाज में साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देना है , इसके लिए वो लोकतान्त्रिक संस्थाओं पर आधिपत्य स्थापित करता है। और चूँकि लोकतान्त्रिक संस्थाओं की पहचान सार्वभौमिक और स्वतंत्र रचनात्मकता होती है और आरएसएस की नीतियों से यह बात मेल नहीं खाती है इसलिए वो इन संस्थाओं पर नीतिगत अतिक्रमण करती है, और वही अपने देश में लगातार हो रहा है जिससे की संघर्ष की स्थिति दिखलाई दे रही है।   
गाँधी विद्या शोध संस्थान की कुलसचिव डॉ मुनीजा रफीक खान ने बतौर पूर्व छात्र अपनी बात रखते हुए कहा कि छात्रों द्वारा लाइब्रेरी, कैंटीन आदि को खोलने की साधारण सुविधाओ की माँग को BHU प्रशासन अपने ख़िलाफ़ साज़िश के तौर पर ले रहा है और इससे भी आगे बढ़ते हुए मान० कुलपति जी इन माँगो को केंद्र की सरकार के विरुद्ध साजिश करार दे रहे है। छात्राओं को हॉस्टल से निकलने ,आने जाने पर नजर रखी जा रही है , अंकुश लगाए जा रहे है , छात्राओं के मेष में नॉनवेज खाने को गलत माना जा रहा है , यंहा तक की फोन के इस्तेमाल पर भी रोक लगाई जा रही है, जबकि छात्रों पर ऐसी कोई हिदायत नहीं है ।विवि की नियुक्तियों में आरक्षण के पदों पर साक्षात्कार के बाद NFS ( नॉट फाउन्ड सूटेबल - अयोग्य ) करार देकर सामाजिक असमानता को बढ़ावा दिया जा रहा है। वन्ही दूसरी ओर पिछले 124 दिन से धुप बरसात झेलते हुए अनवरत 24 घण्टे लंका रोड पर बैठे हुए दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों का जीवन विश्वविद्यालय की तानाशाही पूर्ण नीतियों के चलते मृत्यु के कगार पर आ पंहुचा है। स्थाई होने को आंदोलनरत 60 से ज्यादा कर्मचारी केंद्र से राज्य तक की सारी मशीनरी और राष्ट्रपति से लेकर कुलपति तक के तथाकथित जवाबदेह तंत्र तक आवाज़ दे देकर निराश हताश बीएचयू गेट पर बैठे हुए है।छात्रसंघ -अध्यापक संघ-कर्मचारी संघ के अभाव में कैम्पस में सभी शक्तिया कुलपति कार्यालय से लेकर प्रोक्टर ऑफिस के बीच सिमट कर रह गयी है। कार्यक्रम में सभी वक्ताओं ने देश के प्रमुख चैनेल NDTV पर सरकार द्वारा प्रतिबन्ध के प्रयास को मिडिया पर सेंशरशिप के तौर पर बताया और इस निर्णय पर सामूहिक रूप से असहमति दर्ज़ कराई है। कार्यक्रम में युद्धेश बेमिसाल के जनगीतों ने समां बाँधे रखा था। 
                                                                                                                                         (प्रेस विज्ञप्ति)

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