रविवार, 21 फ़रवरी 2021

गोंडी से हुआ है तमिल और द्रविण भाषाओं का विकासः बृजभान मरावी

अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के मौके पर जनजातीय शोध एवं विकास संस्थान ने आयोजित किया चौपाल

वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो

वाराणसी। अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के मौके पर जनजातीय शोध एवं विकास संस्थान ने रविवार को आराजीलाइन विकास खंड के गहरपुर गांव में आदिवासी चौपाल का आयोजन किया। इसमें " उत्तर प्रदेश की विलुप्त गोंडी, धनगर, कोरवा और थारू आदिवासी जनजाति भाषा बोलीः व्युत्पत्ति एवं उत्पत्ति और संरक्षण के संदर्भ" विषय पर चर्चा हुई। 

इस मौके पर उत्तर प्रदेश वन विभाग कैंपा के सदस्य एवं आदिवासी विशेषज्ञ तिरु बृजभान मरावी जी ने कहा कि उत्तर प्रदेश राज्य के 20 आदिवासी बाहुल्य जनपदों में 15 लाख से अधिक जनसंख्या जनजाति अति प्राचीन काल से निवासरत हैं। प्रदेश की जनजातियों, जिनमें गोंड सबसे बड़ी जनजाति के रूप में  अपनी भाषा बोली, चित्रकला,संस्कृति मे समृद्ध जाति है, के साथ ही अगरिया उरांव,घसिया, कोरवा, भील, चेरो, सहरिया, पनिका, थारू आदि आदीवासी जनजातियां भी संस्कृति से सम्पन्न है। इन आदिवासी समुदायों में गोंडी, धांगर, कोरवा तथा तराई क्षेत्र की थारू की चौधराना बोलियां महत्त्वपूर्ण हैं। वे इनके माध्यम से अपने जीवन परंपरा का निर्वाह करते हैं। विश्व की अति प्राचीन कोया अर्थात गोंडी भाषा का उद्भव मोहनजोदड़ो और सैन्धव कालीन गोंडवाना लैंड की समृद्ध संस्कृति से हुआ है। गोंडी भाषा से ही तमिल और द्रविण की कई भाषाओं का विकास हुआ है। इस भाषा पर विदेशी सर्वेक्षणकर्ताओं एवं अनुसंधानकर्ताओं ने गोंडी लिपि के व्याकरण की शुरुआत की। गोंडी भाषा ही नहीं, संस्कृति का जीवंत प्रमाण है। इस भाषा का विस्तार उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, महाराष्ट्र, कर्नाटक, उड़ीसा, तमिलनाडु, आदि राज्यों सहित लगभग दो करोड़ लोग भाषा का उपयोग करते हैं। 

उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश के सोनभद्र, वाराणसी, मिर्जापुर, चंदौली, बलिया, गाजीपुर, आदि जिलों में गोंडी संस्कृति चित्रकला आदि आज भी संघर्ष के साथ अपने अस्तित्व को जीवंत रखे हुए है। जनजातीय शोध एवं विकास संस्थान वाराणसी उत्तर प्रदेश विगत 8 वर्षों से आदिवासी जनजाति साहित्य संस्कृति भाषा बोली आदि के लिए कार्यरत है। सोनभद्र की सलखान  पहाड़ी इलाकों में  तथा चंदौली में आज भी रेखा चित्र के साथ आदिवासी भाषा बोलियों के जीवंत प्रमाण उपलब्ध हैं। भारत की सांस्कृतिक विरासत को बचाने हेतु जनजातीय भाषाओं के विकास एवं संरक्षण के माध्यम से ही प्रकृति के साथ-साथ  आदीवासी टोटम को जीवन में उतारना होगा। गोंडी भाषा अंतरराष्ट्रीय भाषा मानक के सभी मानकों को पूरा करता है। इस भाषा को भारत के विश्वविद्यालयों के में पाठ्यक्रम के रूप में शामिल किया जाए। आदिवासी भाषा में निहित मानव जीवन को बचाने वाले ज्ञान विज्ञान से मानव कल्याण संभव है। आज तकनीकी आधुनिक जीवन में आदिवासी भाषा बोलियों को बचाना और इनका विकास संरक्षण हेतु सरकार को आदिवासी जनजाति समाज को जिम्मेदारी दे कर उन्हे बिना छेड़छाड़ के वास्तविक रूप में विलुप्त होने से बचाया जा सके। चौपाल में तिरु विनोद शाह, मनोज मरकाम, राहुल गोंड, मनोज कुमार, पूजा देवी, उदय भान, गोंविंद प्रसाद, संतोष मरकाम, लालजी गोंड, माला देवी आदि लोग उपस्थित रहे। 

(प्रेस विज्ञप्ति) 


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