मंगलवार, 18 अगस्त 2020

निजीकरण के खिलाफ वाराणसी समेत पूरे देश में फूटा बिजली कर्मचारियों का गुस्सा, मार्च निकालकर किया विरोध-प्रदर्शन

बिजली संशोधन विधेयक-2020 को वापस लेने और सरकारी बिजली वितरण कंपनियों को टाटा-अंबानी जैसे पूंजीपतियों के हवाले नहीं किए जाने की मांग की... 

वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो

केंद्र सरकार द्वार केंद्र शासित राज्यों की सरकारी विद्युत वितरण कंपनियों, पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम वाराणसी और ओडिसा की तीन सरकारी विद्युत वितरण कंपनियों को निजी हाथों में दिए जाने के खिलाफ बिजली कर्मचारियों ने मंगलवार को पूरे देश में प्रदर्शन किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में बिजली कर्मचारियों ने सबसे पहले विरोध प्रदर्शन कर इसकी शुरुआत की और मार्च निकाला। प्रदर्शन के दौरान बिजली कर्मचारियों ने बिजली संशोधन विधेयक-2020 को वापस लेने और सरकारी विद्युत वितरण कंपनियों के निजीकरण नहीं करने की मांग की। 

ऑल इंडिया पॉवर इंजीनियर्स फ़ेडरेशन (एआईपीईएफ़) के अध्यक्ष शैलेंद्र दुबे ने बताया कि देश में मंगलवार को करीब 15 लाख बिजली कर्मचारियों ने प्रदर्शन किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में सबसे पहले इसकी शुरुआत हुई। ओडिशा में सेंट्रल इलेक्ट्रीसिटी सप्लाई अंडरटेकिंग (सीईएसयू) को पहले ही टाटा पॉवर के हवाले किया जा चुका है। इसे वापस लिए जाने की मांग हो रही है। उन्होंने कहा कि बीती तीन जुलाई को बिजली मंत्रियों की बैठक के दौरान 11 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों के बिजली कर्मचारियों ने प्रदर्शन किया था। उस दौरान केंद्रीय बिजली मंत्री आरके सिंह ने वादा किया था कि वे बिजली संशोधन बिल-2020 का नया ड्राफ़्ट पेश करेंगे। 45 दिन होने वाले हैं लेकिन अभी तक मोदी सरकार की ओर से कोई पहल नहीं की गई है। इसके उलट सरकारी बिजली कंपनियों के निजीकरण का फैसला लिया गया। 

उन्होंने दावा किया है कि मोदी सरकार ने पुडुचेरी, चंडीगढ़, जम्मू एंड कश्मीर और लद्दाख की सरकारी वितरण कंपनियों को निजी हाथों में दे दिया है। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने इस निजीकरण को आगे बढ़ाते हुए पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम, वाराणसी को भी निजी हाथों में देने का फैसला किया है जबकि ओडिशा सरकार ने सेंट्रल इलेक्ट्रीसिटी सप्लाई अंडरटेकिंग (सीईएसयू) को पहले ही टाटा पॉवर को दे दिया है। उसने तीन और वितरण कंपनियों (डिसकॉम) नेस्को, वेस्को और साउथको को बेचने का फैसला किया है। 

उन्होंने बताया कि आज हम बिजली कर्मचारी सरकारी विद्युत वितरण कंपनियों को निजी हाथों में देने का विरोध कर रहे हैं और बिजली संशोधन विधेयक-2020 को वापस लेने की मांग कर रहे हैं। दुबे ने कहा कि ओडिशा, नागपुर, औरंगाबाद, जलगांव, गया, भागलपुर, आगरा, ग्रेटर नोएडा, उज्जैन, ग्वालियर, सागर और अन्य जगहों पर बिजली वितरण को निजी कंपनियों के हवाले किए जाने का भयंकर परिणाम दिख चुका है और ये मॉडल फेल हो चुका है, लेकिन सरकार इन्हीं फ़ेल मॉडल को राज्यों को वित्तीय मदद के नाम पर थोप रही है। उन्होंने कहा कि सरकार का ये सीधा सीधा ब्लैकमेल का तरीका है जिसे कर्मचारी बर्दार्श नहीं करेंगे।

उधर, यूपी वर्कर्स फ्रंट के उपाध्यक्ष दुर्गा प्रसाद ने बिजली कर्मचारियों के इस विरोध का समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि “बिजली क्षेत्र का भी निजीकरण इस सरकार का महत्वपूर्ण एजेंडा बना हुआ है। कारपोरेट की चाकरी की हद यह हो गई है। कर्मचारियों और जनता के आक्रोश का सामना न करना पड़े, इसलिए चोर दरवाजे से चुपचाप भारत सरकार के ऊर्जा मंत्री ने जुलाई माह में लखनऊ का दौरा किया। उन्होंने निजीकरण की दिशा में चीजों को बढ़ाने का काम किया। इसे ट्रेड यूनियन के नजरिए से महज नौकरशाही की करतूत मानना भारी भ्रम होगा और कर्मचारियों को इससे सावधान रहना होगा।”

वर्कर्स फ्रंट का यह स्पष्ट मानना है कि वित्तीय पूंजी के सक्रिय सहयोग से आरएसएस और भाजपा की सरकार भारतीय अर्थ नीति का पुनर्संयोजन कर रही है और देशी-विदेशी कारपोरेट घरानों के हितों को पूरा करने के लिए देश की राष्ट्रीय संपत्ति को बेचने में लगी हुई है। इसी दिशा में बिजली, कोयला, रेल, बैंक, बीमा बीएसएनएल, भेल समेत तमाम सार्वजनिक उद्योग जो पिछले 70 सालों में विकसित हुए और जिनके जरिए आम जनमानस को बड़े पैमाने पर राहत पहुंचाई गई उसका निजीकरण किया जा रहा है। यहां तक कि हमारे महत्वपूर्ण खनन स्रोत तेल आदि को भी बेचा जा रहा है। कौन नहीं जानता की पूर्ववर्ती सरकार की ऐसी ही निजीकरण की लूट भरी योजनाओं में हुए भारी भ्रष्टाचार के कारण पैदा जनाक्रोश का लाभ उठाते हुए आरएसएस और भाजपा की सरकार 2014 में सत्ता में आई थी और आज वह इसे और भी जोर शोर से अंजाम दे रही है। बिजली के निजीकरण के सवाल को आरएसएस-भाजपा के कारपोरेट हितों को पूरा करने के संपूर्ण प्रोजेक्ट के बतौर देखना और इसके अनुरूप अपने आंदोलन की रणनीति तय करना वक्त की जरूरत है। सिर्फ फैक्ट्रियों के गेट और कार्यालयों के बाहर सांकेतिक आंदोलन का दौर खत्म हो गया है।

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