बुधवार, 3 मार्च 2021

BHU: धरने पर बैठी दलित शिक्षिका की प्रशासन ने की अनदेखी, आज निकालेंगी विरोध मार्च

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU) के पत्रकारिता एवं जन संप्रेषण विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. शोभना नेरलीकर दूसरे दिन अपनी सात सूत्री मांगों के साथ धरने पर बैठीं। विश्वविद्यालय प्रशासन पर जाति आधार पर भेदभाव करने का लगाया आरोप। विश्वविद्यालय प्रशासन ने की अनदेखी। 

वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो

वाराणसी। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU) में जाति आधार पर दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों के उत्पीड़न और उनके अधिकारों के हनन का मामला थमने का नाम नहीं ले रहा है। विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं जन संप्रेषण विभाग में कार्यरत दलित एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. शोभना नेरलीकर मंगलवार को भी केंद्रीय कार्यालय के मुख्य द्वार के सामने सात सूत्री मांगों के साथ धरने पर बैठीं लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन का कोई भी प्रसासनिक अधिकारी उनसे मिलने नहीं पहुंचा। उन्होंने देर शाम विश्वविद्यालय प्रशासन पर जाति आधार पर दलित महिला के उत्पीड़न की आवाज की अनदेखी का आरोप लगाते हुए बुधवार को विरोध मार्च निकालने की घोषणा कीं। उनके मुताबिक, इस विरोध मार्च को छात्रों के संगठन बहुजन छात्र संघ बीएचयू, ऑल इंडिया स्टुडेंट्स एसोसिएशन, एससी/एटी/ओबीसी/मॉइनॉरिटी संघर्ष समिति बीएचयू, भारतीय जनजागरण समिति वाराणसी, एसएआरसी महिला संगठन वाराणसी और भारतीय जनजागरण समिति वाराणसी का समर्थन मिला है।

डॉ. शोभना नेरलीकर मंगलवार को विश्वविद्यालय प्रशासन के खिलाफ दूसरे दिन धरने पर बैठी थीं। सोमवार को भी वह कुलसचिव कार्यालय के प्रसासन-शिक्षण अुभाग में कार्यरत अनुभाग अधिकारी (अवकाश) सुरेंद्र मिश्रा पर जाति आधार पर भेदभाव और उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए धरने पर बैठी थीं। देर शाम वह आवास पर चली गई थीं। मंगलवार की दोपहर में वापस वह धरने पर बैठीं लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन का कोई भी जिम्मेदार अधिकारी उनसे मिलने नहीं पहुंचा। इस दौरान उनके साथ आइसा के नेता आशुतोष कुमार, बहुजन छात्र संघ के संदीप कुमार गौतम, राजेंद्र कुमार श्रीवास्तव, मनोज श्रीवास्तव, अरविंद कुमार मौर्य, दिलीप सिंह, उमेश चंद्र जैन, रुपेश चौधरी, संदीप मौर्य, श्याम पांडेय आदि मौजूद रहे।

BHU केंद्रीय कार्यालय के मुख्य द्वार के सामने दूसरे दिन धरने पर बैठी डॉ. शोभना नेरलीकर

वनांचल एक्सप्रेस को मिली जानकारी के मुताबिक, पत्रकारिता एवं जन संप्रेषण विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. शोभना नेरलीकर सोमवार को अपने सर्विस बुक में दर्ज 13 दिनों (31-01-2013 से 12-02-2013 तक) के लीव-विदाउट-पे के मामले को लेकर कुल-सचिव कार्यालय स्थित शिक्षण एवं प्रशासन अनुभाग के अनुभाग अधिकारी (अवकाश) सुरेंद्र मिश्रा के पास पहुंचीं थीं। दोनों के बीच कुछ विवाद हुआ। फिर डॉ. शोभना नेरलीकर सुरेंद्र मिश्रा पर जाति आधार पर भेदभाव और उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए फर्श पर धरने पर बैठ गईं। 

वहीं, सुरेंद्र मिश्रा अपना पटल छोड़कर कहीं चले गए। मामले की जानकारी होने पर प्राक्टोरियल बोर्ड के अधिकारी और कर्मचारी मौके पर पहुंचे और शिक्षिका से धरना खत्म करने की गुहार लगाने लगे लेकिन उन्होंने धरना खत्म करने से साफ मना कर दिया है। उन्होंने साफ कहा कि जब तक आरोपी सुरेंद्र मिश्रा उनसे माफी नहीं मांगेंगे और उनके सर्विस बुक में दर्ज विवादित 13 दिनों के लीव-विदाउट-पे को रेगुलर सर्विस के रूप में परिवर्तित नहीं करेंगे, तब तक वह धरना खत्म नहीं करेंगे क्योंकि इस अवधि के दौरान उन्होंने विभाग में अपनी नियमित सेवाएं दी हैं।

BHU की दलित शिक्षिका से अनुभाग अधिकारी ने की बदसलूकी, धरने पर बैठीं शिक्षिका 

प्रॉक्टोरियल बोर्ड के सदस्य करीब दो घंटे तक आरोपी सुरेंद्र मिश्रा को खोजते रहे लेकिन वह नहीं मिले। करीब दो घंटे बाद सुरेंद्र मिश्रा आए और उन्होंने हाथ जोड़कर डॉ. शोभना नेरलीकर से माफी मांगी लेकिन वह विवादित 13 दिनों के लीव-विदाउट-पे को रेगुलर सर्विस के रूप में परिवर्तित किए जाने तक धरना पर बैठे रहने की बात पर अड़ी रहीं।

क्या है विवाद:- 

डॉ. शोभना नेरलीकर ने वनांचल एक्सप्रेस से बातचीत में बताया कि उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं जन संप्रेषण विभाग में 19 अगस्त 2002 को बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर ज्वाइन किया था। उस समय वह पीएडी उपाधिधारक थीं। दो दिनों बाद डॉ. अनुराग दवे ने स्नातकोत्तर उपाधि और नेट के आधार पर  विभाग में बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर ज्वाइन किया। उस समय प्रो. बलदेव राज गुप्ता विभागाध्यक्ष थे। उसी साल ब्राह्मण समुदाय के शिशिर बासु विभाग में प्रोफेसर पद पर ज्वाइन किए और 2003 में वह विभागाध्यक्ष बने। 

डॉ. शोभना नेरलीकर ने वनांचल एक्सप्रेस से बातचीत में आरोप लगाया कि विभागाध्यक्ष बनने के बाद प्रो. शिशिर बासु ने जातिगत आधार पर उनका मानसिक उत्पीड़न करना करना शुरू किया। वह 2003-2009 तक लगातार दो बार विभागाध्यक्ष रहे लेकिन उन्होंने शोध कराने के लिए उन्हें एक भी शोधार्थी आबंटित नहीं किए। 

उन्होंने आगे कहा कि विभागाध्यक्ष प्रो. शिशिर बासु के निर्देशन में अनुराग दवे पीएचडी करने लगे। वह 2009 में मातृत्व अवकाश पर चली गईं। वह एसोसिएट प्रोफेसर के योग्य भी हो गईं लेकिन उन्हें जातिगत भेदभाव के आधार पर प्रोन्नति नहीं दी गई और ना ही शोधार्थी आबंटित किए गए। वह विभाग में वरिष्ठ फैकल्टी भी हो गईं थीं लेकिन प्रो. बासु का कार्यकाल खत्म होने के बाद भी उन्हें विभागाध्यक्ष नहीं बनाया गया। उन्होंने बताया कि 2009 से 2011 तक विभागाध्यक्ष का प्रभार संकायाध्यक्ष के पास रहा। 2011 से 2013 तक फिर प्रो. शिशिर बासु विभागाध्यक्ष रहे लेकिन उन्होंने उन्हें एक भी शोधार्थी आबंटित नहीं किया, बल्कि उन्होंने उनके साथ जातिगत आधार पर भेदभाव किया और मानसिक प्रताड़ना दी। इस मामले में प्रो. शिशिर बासु के खिलाफ एक एफआईआर भी दर्ज है। 

उन्होंने यह भी बताया कि इस दौरान डॉ. अनुराग दवे को पीएचडी की उपाधि मिल गई। 2013 से 2017 तक फिर विभागाध्यक्ष का प्रभार संकायाध्यक्ष के पास चला गया। इस दौरान डॉ. अनुराग दवे को एसोसिएट प्रोफेसर बना दिया गया लेकिन उनकी प्रोन्नति एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर नहीं की गई। 

उन्होंने आरोप लगाया कि वर्ष 2013 में लिए गए उनके मातृत्व अवकाश की आड़ में विश्वविद्यालय प्रशासन ने उनकी सर्विस में हेरफेर करके उनकी वरिष्ठता को घटा दिया और वह जब भी प्रोन्नति के लिए दावेदारी करती तो विश्वविद्यालय प्रशासन उन्हें कोई न कोई आपत्ति लगाकर उनकी वरिष्ठता को प्रभावित करता रहता ताकि वह कभी विभागाध्यक्ष या प्रोफेसर न बन सकें। 

उन्होंने इस बारे में कुलसचिव कार्यालय की ओर से 04-5 सिंतबर 2017 को जारी पत्र संख्या-AB/5-L-721/24811 और 27 अप्रैल 2019 को जारी पत्र संख्या-एबी/5-एल-721(एल)/5009 का हवाला भी दिया।

इसके आधार पर वह कहती हैं, "इससे साफ समझा जा सकता है कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने विभिन्न आपत्तियों पर उनके जवाब के आधार पर आपत्तियां खत्म की हैं। मेरी उपस्थिति के बाद मुझे अनुपस्थित दिखाया गया था। लीव-विदाउट-पे वाला अभी का मामला भी ऐसा ही है लेकिन मेरी वरिष्ठता को प्रभावित करने के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन इसे हल नहीं कर रहा है।"

उन्होंने आरोप लगाया, "विश्वविद्यालय प्रशासन उनके वरिष्ठता क्रम को दर किनार करते हुए उनके दो दिन जूनियर ब्राह्मण जाति के डॉ. अनुराग दवे को 2017 में विभागाध्यक्ष बना दिया और प्रोफेसर पद पर प्रोन्नति दे दी लेकिन आज तक विभिन्न आपत्तियां लगाकर उन्हें प्रोफेसर पद प्रोन्नति नहीं दी और ना ही विभागाध्यक्ष बनाया।" 

वह आगे कहती हैं कि डॉ. अनुराग दवे का कार्यकाल खत्म होने के बाद वह विभागाध्यक्ष की दावेदार हैं लेकिन दलित होने की वजह से उन्हें विभागाध्यक्ष नहीं बनाया गया, बल्कि विभागाध्यक्ष का प्रभार एक बार संकायाध्यक्ष को दे दिया गया है। अवकाश को लेकर विश्वविद्यालय प्रशासन के अनुभाग अधिकारी की बार-बार आपत्तियों का जवाब और सुबूत देने के बाद भी उनके अवकाश और सर्विस का विवाद अभी तक नहीं सुलझा है। 

 उन्होंने विश्वविद्यालय प्रशासन के सामने सात सूत्री निम्नलिखित मांगें रखीं हैं- 

(1) डॉ. शोभना नेरलीकर के सर्विस रिकॉर्ड में 31-1-2013 से 12-2-2013 तक के लीव-विदाउट-पे को रेगुलर सर्विस के रूप में जोड़ा जाए क्योंकि वह इस दौरान विभाग में उपस्थित रही हैं और अपनी सेवा दी हैं। 

(2) पत्रकारिता एवं जन संप्रेषण विभाग में कार्यरत डॉ. अनुराग दवे की गैर-कानूनी प्रोन्नति की जांच उच्च न्यायालय के कार्यरत न्यायमूर्तियों की निगरानी में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से कराई जाए क्योंकि इसमें कुल-सचिव डॉ. नीरज त्रिपाठी समेत कई प्रशासनिक अधिकारी, शिक्षक और कर्मचारी शामिल हैं। 

(3) डॉ. अनुराग दवे के प्रोमोशन को तुरंत निरस्त किया जाए।

(4) मामले की जांच होने तक प्रो. शिशिर बासु और डॉ. अनुराग दवे को विभाग के किसी भी प्रशासनिक कमेटी न रखा जाए। 

(5) विश्वविद्यालय प्रशासन की आंतरिक जांच कमेटी में एससी, एसटी, ओबीसी और महिला प्रतिनिधि को शामिल किया जाए। 

(6) विभाग की वरिष्ठ फैकल्टी होने की वजह से सभी विभागीय कमेटियों में उन्हें शामिल किया जाए। 

(7) उनके कोटे में रिक्त पदों पर शोधार्थियों को आबंटित किया जाए। 

डॉ. शोभना नेरलीकर के आरोपों के बाबत वनांचल एक्सप्रेस को काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं जन संप्रेषण विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष और प्रोफेसर शिशिर बासु और प्रो. अनुराग दवे समेत विश्वविद्यालय प्रशासन की प्रतिक्रिया अभी तक नहीं मिल पाई है। उनकी प्रतिक्रिया मिलते ही, उन्हें खबर में जोड़ दिया जाएगा या अलग से खबर के रूप में प्रकाशित किया जाएगा।  

1 टिप्पणी:

  1. राजनीति अब शिक्षा में भी होने लग गयी है ये गलत है आखिर सरकार क्या चाहती है गरीब अब मर जाये आखिर कहा जाए कौन हमारी सुनेगा अब यही रास्ता बचा है जिस हाथ से कलम उठाई जाती है उस हाथ से तलवार भी उठाई जा सकती है

    जय हिंद जय भारत

    जो लोग सत्ता में है उनके लिये एक संदेश है
    मेरे तरफ से ये मेरी नही जन मानस की आवाज है

    यू अनादर होता रहा अगर जनभावनाओं का
    तो ये मौसम भी पलट देगी रुख इन हवाओं का
    जलाशय की मछलिया जान रही है हो रहा है क्या,
    आखिर छुपा कर कौन रखा है पानी इन घटाओ का|

    मुकेश कुमार प्रजापति
    मास्टर मुकेश 8896441596

    जवाब देंहटाएं

Thank you for comment