शुक्रवार, 11 सितंबर 2020

BHU ने एसोसिएट प्रोफेसर पद पर चेहेतों की भर्ती के लिए UGC के रेगुलेशन को किया दरकिनार, आरक्षित वर्गों के शिक्षकों ने किया विरोध

विश्वविद्यालय ने अकादमिक योग्यताओं में हाईस्कूल और इण्टरमीडिएट में न्यूनतम 55 प्रतिशत अंकों को बनाया अनिवार्य

वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो

नारस स्थित काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU) ने शैक्षिक पदों पर चहेतों की नियुक्ति के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के रेगुलेशन-2018 की एक बार फिर धज्जियां उड़ाई हैं। विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर पद पर भर्ती के लिए उसने अकादमिक योग्यताओं में हाई स्कूल और इंटर मीडिएट में न्यूनतम 55 प्रतिशत अंकों को अनिवार्य बना दिया है। वहीं, विश्वविद्यालय में कार्यरत आरक्षित वर्गों के शिक्षकों ने इसका विरोध शुरू कर दिया है। उन्होंने कुलपति और एससी-एसटी-ओबीसी स्टैंटिग कमेटी के चेयरमैन को पत्र लिखकर यूजीसी रेगुलेशन-2018 के खिलाफ विश्वविद्यालय प्रशासन के इस निर्णय के खिलाफ विरोध दर्ज कराया है। 

आरक्षित वर्गों के शिक्षकों का आरोप है कि  बीएचयू में यूजीसी रेगुलेशन-2018 को दरकिनार करते हुए अपनी मर्जी से हाईस्कूल और इण्टर की परीक्षा के अंकों को आधार बनाकर बड़े पैमाने पर आरक्षित और वंचित वर्गों के अभ्यर्थियों की छंटनी की जा रही है। उन्होंने गत 7 सितंबर को कुलपति प्रो. राकेश भटनागर को लिखे पत्र में कहा है कि यूजीसी ने शिक्षकों की नियुक्ति के संबंध में जो नियम 2018 में बनाया है, उसमें स्नातक और स्नातकोत्तर डिग्री में क्रमशः 50 प्रतिशत एवं 55 प्रतिशत अंकों के साथ पीएचडी और अन्य उच्च अकादमिक योग्यताओं के आधार पर शैक्षिक पदों पर चयन का प्रावधान किया गया है। इसमें कहीं भी हाई स्कूल और इण्टर मीडिएट के अंकों के आधार पर चयन की बात नहीं कही गई है। इसके बावजूद विश्वविद्यालय प्रशासन यूजीसी नियमावली को ताख पर रखते हुए बीएचयू में एसोसिएट प्रोफेसर के पदों पर हाईस्कूल और इण्टर मीडिएट के पदों के लिए न्यूनतम 55 प्रतिशत अंकों की अनिवार्यता का मनमाना प्रावधान कर दिया है। यह खुले तौर पर यूजीसी के नियमों की अवहेलना है। यह गैर-कानूनी भी है। उन्होंने बीएचयू के इस प्रावधान को हास्यास्पद बताया है। उन्होंने कहा है कि बीएचयू में कोई भी व्यक्ति स्नातक, स्नातकोत्तर और पीएचडी की उपाधि के आधार पर असिस्टेंट प्रोफेसर और सीधे प्रोफेसर बन सकता है लेकिन एसोसिएट प्रोफेसर के लिए उसे हाई स्कूल, इंटर मीडिएट में भी मेरिटधारी होना पड़ेगा। 

गत 7 सितंबर को प्रो. महेश प्रसाद अहिरवार और प्रो. जेबी कोमरैया की अगुआई में आरक्षित वर्गों के शिक्षकों का एक प्रतिनिधिमंडल विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राकेश भटनागर से भी मिला था जिसमें प्रो. बृजेश कुमार अस्थवाल , डॉ. प्रभात कुमार शाह, डॉ. आरएस मीणा, डॉ. राम अवतार मीणा, डॉ. कृष्णकांत यादव भी शामिल थे। शिक्षकों ने  उनसे हाई स्कूल और इण्टर मीडिएट में न्यूनतम 55 प्रतिशत अंकों की अनिवार्यता को पुरी तरह से खत्म करने की मांग की थी। शिक्षकों का कहना है कि कुलपति ने प्रकरण को गंभीरता से लिया था और संबंधित कमेटी के चेयरमैन और अपने अधीनस्थों को उक्त नियमावली में तत्काल सुधार करने का निर्देश भी दिया था। इसके बावजूद संबंधित कमेटी ने गैर-कानूनी प्रावधान को खत्म नहीं किया। शिक्षकों का कहना है कि संबंधित कमेटी ने अपनी बैठक में केवल अनुसूचित जाति वर्ग और अन्य पिछड़े वर्ग के अभ्यर्थियों के लिए अधिकतम 5 प्रतिशत अंकों की छूट का प्रस्ताव पास किया है। 

फाइल फोटोः यूजीसी नेट प्रमाण-पत्र में दर्ज कैटेगरी के आधार पर छंटनी के विरोध में प्रदर्शन करते छात्र

बता दें कि प्रो. राकेश भटनागर दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में आरक्षण विरोधी संगठन 'Youth For Equality' के संस्थापकों में शुमार किया जाते हैं। बीएचयू के कुलपति रूप में वह आरक्षित वर्गों के अभ्यर्थियों को उनके अधिकारों के वंचित करने के लिए पहले भी कई गैर-कानूनी फैसले ले चुके हैं। उन्होंने विश्विवद्यालय में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग को प्रवेश शुल्क में मिलने वाली छूट को खत्म कर उनसे प्रवेश के समय पूरी फीस जमा करने का प्रावधान किया। फिर उन्होंने विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर भर्ती के लिए यूजीसी के प्रावधानों को दरकिनार कर यूजीसी नेट प्रमाण-पत्र में दर्ज कैटेगरी के आधार पर अभ्यर्थियों की छंटनी कर दी और उन्होंने अनारक्षित में साक्षात्कार नहीं देने दिया। यहां तक कि उन्होंने विश्वविद्यालय में गैर-कानूनी ढंग से कैटेगरी आधारित साक्षात्कार का प्रावधान भी लागू किया। 






Add caption


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Thank you for comment