मंगलवार, 6 अक्तूबर 2020

बिहार विधानसभा चुनावः भाजपा के भंवरजाल में फंसे नीतीश कुमार

कुछ ऐसी दशाएं भी आ सकती हैं कि आरजेडी और जेडीयू मिलकर सरकार बना लें। वहीं बिहार में अपना जनाधार खो चुकी आरजेडी को पिछले विधान सभा चुनाव में 80 सीटें प्राप्त करना संजीवनी के समान रहा। यदि जनता ने जेडीयू की विफलताओं का सेहरा भाजपा पर बांधकर मतदान किया तो इसमें कोई संदेह नहीं की कि आरजेडी बिहार में सरकार बनाएगी। नीतीश कुमार विपक्ष में भी बैठने लायक भी नहीं रहेंगे। आज भाजपा के जाल में फंसे नीतीश कुमार ऐसे मोड़ पर खड़े हैं, जहां से बाहर निकलने के आसार कम ही दिखाई देते हैं...

written by अच्छे लाल प्रजापति

बिहार में चुनाव नजदीक है। सभी पार्टियां गणित बैठाने में लगी हैं। आरजेडी महागठबंधन के तहत चुनाव लड़ेगी तो भाजपा और जेडीयू मिलकर उसे मात देने की कोशिश करेंगे। भाजपा और जेडीयू में सीटों का बंटवारा भी हो चुका है। भाजपा 121 सीटों पर और जेडीयू 122 सीटों पर चुनाव लड़ रही हैं। इसी एनडीए गठबंधन का हिस्सा रही लोजपा भाजपा के साथ चुनाव लड़ने के लिए तैयार थी लेकिन जेडीयू के साथ नहीं। अब लोजपा प्रमुख राम बिलास पासवान के बेटे चिराग पासवान ने घोषणा की है कि वह अब स्वतंत्र चुनाव लड़ेंगे। 

पिछले विधान सभा चुनाव में महागठबंधन ने सर्वाधिक सीटें जीत कर जेडीयू प्रमुख नीतीश कुमार को मुख्यमन्त्री और आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी यादव को उप-मुख्यमंत्री बनाया था। हालांकि महागठबंधन में आरजेडी ने सर्वाधिक सीटों पर चुनाव जीता था। इसके बावजूद दूसरे स्थान पर रहने वाली जेडीयू के प्रमुख नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री का पद सौंपा गया। यह लालू प्रसाद यादव की दूरदर्शिता कहा जाए या मजबूरियां? लालू प्रसाद यादव ने बहुत ही दिलेरी का परिचय दिया था। जुलाई 2017 में नीतीश कुमार ने महागठबंधन से अलग होकर भाजपा से मिलकर 6वीं बार बिहार के मुख्यमन्त्री पद की शपथ लेकर सबको चौंका दिया।

उस समय मैं बीएचयू में शोध छात्र था। हम छात्रों के बीच भी बिहार के राजनीतिक उठापटक की खूब चर्चा थी। सभी अपने-अपने तर्कों से उसकी व्याख्या कर रहे थे। मैंने उसी दौरान कहा था कि जिस प्रकार एक बड़ी मछली छोटी मछलियों को निगल जाती है, भाजपा जेडीयू को निगल जाएगी। नीतीश कुमार को आरजेडी का साथ नहीं छोड़ना चहिए था। भाजपा दोनों को अलग कर अपने मकसद की ओर एक कदम मजबूती से बढ़ा दिया है। भाजपा नीतीश कुमार को समूल नष्ट कर देगी। बहुत से साथियों ने इससे असहमति जताई थी। 

अब वर्तमान घटना क्रम पर ध्यान दीजिए। लोजपा प्रमुख रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान के वक्तव्य पर गौर कीजिए। उन्होंने कहा है, "मोदी जी से बैर नहीं, नीतीश कुमार की खैर नहीं।" साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि लोजपा इस बार स्वतंत्र चुनाव लड़ेगी। मतलब साफ है कि जितनी सीटों पर भाजपा अपने प्रत्याशी खड़ा करेगी, लोजपा वहां अपने प्रत्याशी नहीं उतारेगी। जहां पर जेडीयू अपने प्रत्याशी खड़ा करेगी, वहां लोजपा भी प्रत्याशी खड़े कर सकती है। यह रणनीति बिना भाजपा की सहमति के नहीं बनी है। भाजपा की सोच है कि नीतीश कुमार को जितना कम सीटें मिलेंगी, भाजपा को उतना ही फायदा होगा। यदि चिराग पासवान नीतीश कुमार की सीटों से कुछ भी सीटें जीतने में सफल हुए तो गेंद भाजपा के पाले में होगी। तब मुख्यमन्त्री का चुनाव करते समय भाजपा का निर्णय सर्वमान्य होगा। नीतीश कुमार चाहकर भी विरोध नहीं कर सकेंगे। भाजपा की शर्तों के साथ ही उन्हें उसके साथ रहना पड़ेगा क्योंकि आरजेडी के साथ जुड़ने के सारे रास्तों को भाजपा की कूटनीति और सुशासन बाबू के स्वार्थ ने बन्द कर दिया है। हालांकि राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं होता। 

कुछ ऐसी दशाएं भी आ सकती हैं कि आरजेडी और जेडीयू मिलकर सरकार बना लें। वहीं बिहार में अपना जनाधार खो चुकी आरजेडी को पिछले विधान सभा चुनाव में 80 सीटें प्राप्त करना संजीवनी के समान रहा। यदि जनता ने जेडीयू की विफलताओं का सेहरा भाजपा पर बांधकर मतदान किया तो इसमें कोई संदेह नहीं की कि आरजेडी बिहार मे सरकार बनाएगी। नीतीश कुमार विपक्ष में भी बैठने लायक भी नहीं रहेंगे। आज भाजपा की जाल में फंसे नीतीश कुमार ऐसे मोड़ पर खड़े हैं, जहां से बाहर निकलने के आसार कम ही दिखाई देते हैं।

केंद्र की भाजपा समर्थित जेडीयू का शासन बिहार में होने के बावजूद किसी मुद्दे पर भाजपा नीतीश का सहयोग करते नहीं दिखी। इसके उलट वह नीतीश कुमार को बदनाम करने और जनता में उनकी छवि खराब करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। आज बिहार में नीतीश कुमार का जनाधार जाता हुआ प्रतीत हो रहा है तो उसके लिए खुद नीतीश कुमार की अदूरदर्शिता ज़िम्मेदार है। भाजपा अपनी दूरदर्शिता से अपने मकसद में कामयाब होती प्रतीत हो हो रही है। भाजपा अपनी चालों से जेडीयू प्रमुख नीतीश कुमार के लिए आरजेडी के साथ मिलने का दरवाजा बन्द कर दिया है। अब देखने की बात यह है कि सुशासन बाबू अपने सुशासन का प्रभाव जनता पर कितना छोड़ पाते हैं? वह कितनी सीटें जीत कर लाते हैं? इन सवालों का जवाब ही उनके राजनीतिक सफर की दिशा तय करेगा।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। वह झारखंड में शिक्षा विभाग में प्रवक्ता पद पर कार्यरत हैं।) 

9 टिप्‍पणियां:

  1. बिहार के चुनावी माहौल में यह लेख प्रकाशित करने के लिए बहुत बहुत शुकामनाएं.....सम्प्रति बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारियों ,चुनाव प्रचार एवं विभिन्न राजनीतिक दलों के रुझान एंव गठजोड़ की राजनीति से पर्दा उठाता तथा साथ ही दलों के राजनीतिक एवं नैतिक विचारधाराओं को दिशा देने में सहयोगी यह लेख जाहिराना तौर पर बिहार की राजनीति पर यथोचित विमर्श प्रस्तुत करता है। युवाओं के राजनीतिक विमर्शों से विमुखता के दौर में बिहार की राजनीति पर व्यक्तिगत विचारों के माध्यम से प्रकाश डालने के लिए पुनः एक बार बधाई एवम् शुभकामनाएं..

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  2. Achha bichar h......mujhe v lagta h isme sirf aur sirf jdu ka nuksan h

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  3. बहुत ही सटीक और मौलिक विचार को प्रस्तुत किया।धन्यवाद महोदय

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  4. बहुत ही बेहतरीन विश्लेषण।
    और मैं समझता हूं कि यह एक भविष्यवाणी जैसा कथन साबित हो सकता है।

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  5. विश्लेषण से यह लगा है कि बीजेपी के चक्कर मे सुशासन बाबू का मटियापलीद होने वाला है। कोरोना के प्रभाव को नकारा नही जा सकता है।

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  6. तार्किक एवं परिस्थितिजन्य वस्तु स्थिति से अवगत कराने वाला लेख है।......धन्यवाद सर। श्याम नारायण पटेल

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