शनिवार, 25 जुलाई 2020

केंद्रीय विश्वविद्यालयों में OBC प्रोफेसरों के 97 फीसदी पद खाली, SC के 83 और ST के 94 फीसदी पदों पर भी नहीं हुई नियुक्ति

सूचना का अधिकार अधिनियम-2005 में तहत डॉ. लक्ष्मण यादव के आवेदन पर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने दी सूचना।


वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो

देश के 40 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के प्रोफेसरों के लिए चिन्हित 269 पदों में करीब 97 फीसदी पद खाली हैं। अनुसूचित जाति (एससी) के 83, अनुसूचित जनजाति (एसटी) के 94 और दिव्यांग के 86 फीसदी पदों पर भी प्रोफेसरों की नियुक्ति नहीं हो पाई है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने सूचना का अधिकार अधिनियम-2005 के तहत डॉ. लक्ष्मण यादव को यह जानकारी मुहैया कराई है।

दिल्ली विश्वविद्यालय के जाकिर हुसैन कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर लक्ष्मण यादव ने गत 12 मार्च को सूचना का अधिकार अधिनियम-2005 के तहत आवेदन कर यूजीसी से देश के केंद्रीय विश्वविद्यालयों में प्रोफेसरों के पदों से संबंधित सूचना मांगी थी। यूजीसी ने गत 8 जुलाई को उन्हें सूचना उपलब्ध कराई।


डॉ. लक्ष्मण यादव ने यूजीसी से मिली सूचना के आधार पर 40 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में प्रोफेसरों के पदों का विवरण एक चार्ट के रूप में तैयार किया है। उन्होंने इसे फेसबुक पर भी जारी किया है।

डॉ. लक्ष्मण यादव द्वारा तैयार चार्ट के मुताबिक देश के 40 केंद्रीय विश्वविद्यालों में ओबीसी के कुल 269 पद स्वीकृत हैं। इनमें से केवल 9 पदों पर ही भाजपा और कांग्रेस की केंद्र सरकारों ने ओबीसी प्रोफेसरों की नियुक्ति है। शेष 260 पद खाली हैं। इस तरह से केंद्रीय विश्वविद्यालयों में ओबीसी प्रोफेसरों के कुल 96.65 प्रतिशत खाली हैं। इनमें से अधिकतर पदों पर सवर्णों ने कब्जा कर रखा है।


अगर भारतीय समाज में व्याप्त वर्णवादी व्यवस्था के सबसे नीचले पायदान पर जीवन व्यतीत करने वाले आदिवासी समुदाय (अनुसूचित जनजाति वर्ग) की बात करें तो देश के 40 केंद्रीय विश्वविद्यालयों के 133 पदों पर एसटी समुदाय के प्रोफेसरों की नियुक्ति के लिए स्वीकृति मिली है लेकिन केवल 8 पदों पर ही इस वर्ग के प्रोफेसर तैनात हैं। शेष 125 पद अभी भी खाली हैं जो स्वीकृत पदों का 93.98 प्रतिशत है।

केंद्रीय विश्वविद्यालयों में अनुसूचित जाति वर्ग के प्रोफेसरों की हालत भी ठीक नहीं हैं। 40 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में कुल 297 पद अनुसूचित जाति के प्रोफेसरों के लिए स्वीकृत है लेकिन अभी तक केवल 51 पदों पर ही नियुक्ति हो पाई है। शेष 246 पद अभी भी खाली हैं जो स्वीकृत पदों का 82.82 प्रतिशत है।

आरएसएस नीत भाजपा सरकार के राजनीति एजेंडे की धुरी बने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दिव्यांगों की हालत भी ठीक नहीं है। केंद्रीय विश्वविद्यालयों में दिव्यांग श्रेणी के 70 प्रोफेसरों के लिए पद सृजित हैं लेकिन केवल 10 पदों पर ही अब तक नियुक्ति हो पाई है। शेष 60 पद अभी भी खाली हैं जो स्वीकृत पदों का 85.71 प्रतिशत है।

डॉ. लक्ष्मण यादव
डॉ. लक्ष्मण यादव आरटीआई से प्राप्त सूचना और दस्तावेजों को साझा करते हुए लिखते हैं, " एकदम लेटेस्ट आंकड़े साझा कर रहा हूँ। ये आंकड़े लगातार बढ़ते जा रहे हैं। कम पदों वाले विश्वविद्यालयों में कम सीटें खाली हैं। वहीं बड़े कैम्पसों की लगभग तीन चौथाई सीटें खाली हैं। इन पदों के लिए पात्र हजारों युवा आज भी बेरोजगार बैठे हैं लेकिन इन पदों पर नियुक्ति नहीं की जा रही। विश्वगुरू के देश में गुरु ही नहीं हैं।"

वे आगे लिखते हैं, " इसमें सबसे दिलचस्प सूचना पर आपका ध्यान खींचना चाहता हूँ। सभी खाली पदों के आँकड़ों का कैटेगरीवार विश्लेषण कीजिए। खाली पड़े पदों में कमोबेश तीन-चौथाई पद आरक्षित कोटे के हैं। मसलन, दलित, पिछड़े आदिवासियों के खाली पदों का प्रतिशत सबसे ज़्यादा है।" वे इसे मनुस्मृति वाली सामंती पितृसत्तात्मक मानसिकता बताते हैं।

गौरतलब है कि यूजीसी और केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा पूर्व में जारी आंकड़ों के मुताबिक अब तक किसी भी केंद्रीय विश्वविद्यालय में ओबीसी वर्ग के पदों पर एक भी प्रोफ़ेसर नहीं था। डॉ. लक्ष्मण यादव को मिले दस्तावेजों के मुताबिक छत्तीसगढ़ स्थित गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय में ओबीसी वर्ग में 5 प्रोफ़ेसर, महात्मा गांधी सेंट्रल यूनिवर्सिटी में 3 और सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ केरल में 1 प्रोफ़ेसर ओबीसी वर्ग के लिए आरक्षित पद पर तैनात हैं।



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