मंगलवार, 27 जुलाई 2021

OBC आरक्षणः बनारस में मोदी सरकार के खिलाफ पिछड़ों का विरोध-प्रदर्शन, NEET में AIQ की सीटों पर मांगा 27 प्रतिशत आरक्षण

राष्ट्रीय सामाजिक न्याय दिवस (26 जुलाई) के मौके पिछड़े छात्रों और समाजसेवियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र में फूंका सामाजिक न्याय आंदोलन का बिगुल। राष्ट्रपति को संबोधित ज्ञापन में की NEET के AIQ के तहत राज्यों की समर्पित सीटों में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देने, आरक्षण के प्रावधानों के उल्लंघन को संज्ञेय अपराध बनाने, जनगणना-2021 में सभी वर्गों की जातिवार जनगणना कराने, आबादी के अनुपात में ओबीसी आरक्षण लागू करने और सामान्य वर्ग की जातिवार सामाजिक एवं आर्थिक जनगणना कराने की मांग।

वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो

वाराणसी। राष्ट्रीय सामाजिक न्याय दिवस के मौके पर पिछड़े छात्रों और समाजसेवियों ने सोमवार को काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU)के सिंह द्वार के सामने भाजपा की अगुआई वाली केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ 'सामाजिक न्याय आंदोलन' के बैनर तले विरोध-प्रदर्शन किया और संत रविदास गेट तक विरोध मार्च भी निकाला। इस दौरान उन्होंने भाजपा और आरएसएस की अगुआई वाली केंद्र और राज्य सरकारों पर अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC)के संवैधानिक आरक्षण पर हमला करने का आरोप लगाया। साथ ही उन्होंने  NEET के AIQ में राज्यों की समर्पित सीटों में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देने, आरक्षण के प्रावधानों के उल्लंघन को संज्ञेय अपराध बनाने, जनगणना-2021 में सभी वर्गों की जातिवार जनगणना कराने, आबादी के अनुपात में ओबीसी आरक्षण लागू करने, सामान्य वर्ग की जातिवार सामाजिक एवं आर्थिक जनगणना कराने की मांग की। 

राष्ट्रपति को संबोधित ज्ञापन में प्रदर्शनकारियों ने भाजपा की केंद्र एवं राज्य सरकारों पर अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) समेत अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति वर्गों के संवैधानिक आरक्षण के प्रावधानों के उल्लंघन का आरोप लगाया। उन्होंने ज्ञापन में लिखा है कि भारतीय संविधान में उल्लेखित प्रावधानों के तहत देश की सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को 27 प्रतिशत आरक्षण लागू है। जब से यह आरक्षण लागू हुआ है, तभी से केंद्र और राज्य की सत्ता में काबिज विभिन्न राजनीतिक पार्टियों, खासकर भाजपा और कांग्रेस की सरकारें भारतीय संविधान के तहत पिछड़ा वर्ग को मिले 27 प्रतिशत आरक्षण को ईमानदारी से लागू नहीं कर रही है। सरकार में शामिल मंत्री और सरकारी तंत्र में शामिल पदाधिकारी ओबीसी आरक्षण की मनमानी व्याख्या कर पिछड़ा वर्ग के अधिकारों का लगातार हनन कर रहे हैं। 

उन्होंने यह भी लिखा है कि केंद्र की वर्तमान राजग सरकार मेडिकल की पढ़ाई के लिए जरूरी NEET के ऑल इंडिया कोटा(AIQ) के तहत राज्यों द्वारा समर्पित सीटों में OBC का 27 प्रतिशत कोटा लागू नहीं कर रही है जबकि तमिलनाडु उच्च न्यायालय इसे लागू करने का आदेश दे चुका है। इससे पिछले 8 सालों में लगभग 20,000 से अधिक पिछड़ा वर्ग के योग्य छात्र डॉक्टर नहीं बन पाए। पिछले तीन सालों में ही पिछड़ा वर्ग की 11000 से ज्यादा ओबीसी की सीटें ऊंची जातियों के लोगों ओर धन्नासेठों को दे दी गईं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में केंद्र की भाजपा सरकार सुप्रीम कोर्ट का हवाला देकर ओबीसी वर्ग को गुमराह कर रही है। वहीं उसने सवर्णों के गैर-संवैधानिक ईडब्ल्यूएस ( Economically Weaker Sections) आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट में मामला लंबित होने के बाद भी सभी शिक्षण संस्थानों समेत सरकारी नौकरियों में लागू कर दिया है। 

उन्होंने उच्चतम न्यायालय की गतिविधियों पर सवाल उठाते हुए आगे लिखा है कि सुप्रीम कोर्ट में बहुतायत संख्या में बैठे एक जाति विशेष के न्यायमूर्ति एससी, एसटी और ओबीसी आरक्षण के मामलों में इन वर्गों के हितों के खिलाफ फैसला दे रहे हैं जबकि अपनी जाति विशेष को फायदा पहुंचाने के लिए उनके पक्ष में। ईडब्ल्यूएस का मामला भी ऐसा ही है। गैर-संवैधानिक कानून पर रोक लगाए बिना ही न्यायमूर्ति लोगों ने मामले को संविधान पीठ के पास भेज दिया। इस दोहरे चरित्र से ओबीसी वर्ग के प्रति सरकार और तंत्र का घटिया मंसूबा स्पष्ट हो जाता है। महोदय, इतना ही नहीं एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग का हक मारने के लिए कांग्रेस सरकार के समय शुरू हुई लैटरल एंट्री के जरिए वर्तमान की भाजपा सरकार तानाशाह की तरह 'ए ग्रेड' की सरकारी नौकरियों में आरक्षित वर्गों की सीटों को सवर्णों को दे रही है। 

सभा को संबोधित करते समाजवादी जन परिषद के महासतिव अफलातून देसाई

ज्ञापन में प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति से केंद्र और राज्य सरकार द्वारा आरक्षण पर किये जा रहे हमले को रोकने के लिए जरूरी और सकारात्मक कदम उठाने का अनुरोध किया है, जिससे लोकतांत्रिक व्यवस्था में सामाजिक न्याय की संवैधानिक अवधारणा बनी रहे। 

बता दें कि महान समाज सुधारक और कोल्हापुर रियासत के राजा छत्रपति शाहू जी महाराज ने 26 जुलाई 1902 को अपनी रियासत की सरकारी नौकरियों में गैर-ब्राह्मणों को 50 प्रतिशत आरक्षण दिया था। एससी, एसटी और ओबीसी के आरक्षण समर्थक इस दिन को राष्ट्रीय सामाजिक न्याय दिवस के रूप में मनाते हैं। 

उनका आरोप है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का राजनीतिक धड़ा भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) जब से केंद्र और राज्यों की सत्ता में आयी है, तभी से वह ओबीसी के संवैधानिक अधिकारों पर लगातार हमला कर रही है। अब तो वह एससी, एसटी और ओबीसी के संवैधानिक आरक्षण को ही खत्म करने में लगी है। इसके लिए उनके नेता भारतीय संविधान को ही बदलने की बात कर रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी की सरकारों द्वारा ओबीसी आरक्षण समेत एससी और एसटी के संवैधानिक आरक्षण पर लगातार हो रहे हमलों के खिलाफ पिछड़े वर्गों के विभिन्न सामाजिक संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सोमवार को 'सामाजिक न्याय आंदोलन' के तहत देश व्यापी विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया था। 

राष्ट्रीय सामाजिक न्याय दिवस पर मार्च निकालते पिछड़े वर्ग के लोग

इसी क्रम में प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में भी सोमवार को विरोध-प्रदर्शन किया गया। इस दौरान एक सभा का आयोजन भी किया गया जिसमें समाजवादी जनपरिषद के महासचिव अफलातून देसाई, वरिष्ठ राजनीतिज्ञ और समाजवादी विचारक चौधरी राजेंद्र, पीएस4 प्रमुख छेदी लाल निराला, कम्युनिस्ट फ्रंट के मनीष शर्मा आदि ने अपने विचार रखे। इसके बाद प्रदर्शनकारियों ने संत रविदास गेट तक विरोध मार्च निकाला। उन्होंने राष्ट्रपति को संबोधित ज्ञापन जिलाधिकारी के प्रतिनिधि को सौंपा। साथ ही उन्होंने पंजीकृत डाक के माध्यम से राष्ट्रपति को अपनी पांच सूत्री मांगें भेजीं। 

सभा को संबोधित करते कम्यूनिस्ट फ्रंट के नेता मनीष शर्मा

प्रदर्शन के दौरान प्रमुख रूप से शोधार्थी भुवाल यादव, प्रजापित शोषित समाज संघर्ष समिति (पीएस4) के राजेश प्रजापति, भगत सिंह छात्र मोर्चा (बीसीएम) के सुमित यादव, सुमित सेठ, समाजवादी छात्र सभा के विवेक यादव एवं शुभम यादव, रत्नेश सिंह, भूमि, अजय कुमार, चिंतामणि सेठ, जय प्रकाश, उमेश कुमार, योगेश कुमार, शुभम यादव, ईश्वर सिंह, सीपी सिंह, धीरज कुमार, सरोज कुमार राम, राजेश कुमार राम, सुजीत यादव, श्रीप्रकाश पाल, सीपी यादव, अंकुर, शाज़ी, बेबी पटेल, शिवा, सतीश कुमार आदि मौजूद रहे।  

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