रविवार, 25 जुलाई 2021

OBC आरक्षण पर हमले के खिलाफ कल होगा विरोध-प्रदर्शन, NEET के AIQ में 27 प्रतिशत आरक्षण लागू करने की मांग

राष्ट्रीय सामाजिक न्याय दिवस (26 जुलाई) पर आरक्षण के प्रावधानों के उल्लंघन को संज्ञेय अपराध बनाने, जनगणना-2021 में सभी वर्गों की जातिवार जनगणना कराने, आबादी के अनुपात में ओबीसी आरक्षण लागू करने और सामान्य वर्ग की जातिवार सामाजिक और आर्थिक जनगणना कराने की उठेगी मांग। महान समाज सुधारक छत्रपति शाहु जी महाराज ने 26 जुलाई 1902 को अपनी रियासत कोल्हापुर की सरकारी नौकरियों में वंचितों को पहली बार दिया था 50 प्रतिशत आरक्षण।

वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो

वाराणसी/पटना/भागलपुर/। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और भारतीय जनता पार्टी (BJP)की अगुआई वाली केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा एससी, एसटी और ओबीसी के आरक्षण पर लगातार हो रहे हमलों के खिलाफ पिछड़े और दलित कल सामाजिक न्याय आंदोलन के बैनर तले विरोध-प्रदर्शन करेंगे। साथ ही वे नेशनल एलिजिबिलिटी कम इंट्रेंस टेस्ट (NEET) के अखिल भारतीय कोटा (AIQ) में राज्यों की समर्पित सीटों पर OBC का 27 प्रतिशत आरक्षण लागू करने, आरक्षण के प्रावधानों के उल्लंघन को संज्ञेय अपराध बनाने, जनगणना-2021 में सभी वर्गों की जातिवार जनगणना कराने, आबादी के अनुपात में ओबीसी आरक्षण लागू करने और सामान्य वर्ग की जातिवार सामाजिक और आर्थिक जनगणना कराने की मांग करेंगे। 'वनांचल एक्सप्रेस' को अभी तक मिली सूचना के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी समेत बिहार के भागलपुर, मुंगेर, बांका, अरवल, खगड़िया, बेगुसराय और पटना में लोग कल सड़कों पर उतरेंगे और केंद्र एवं राज्य सरकारों के खिलाफ अपना विरोध प्रदर्शन दर्ज कराएंगे।

राष्ट्रीय सामाजिक न्याय दिवस पर होने वाले विरोध-प्रदर्शनों के मद्देनजर आयोजकों ने 'सामाजिक न्याय आंदोलन' के तहत एक पर्चा जारी किया है जिसमें एससी, एसटी और ओबीसी के आरक्षण पर लगातार हो रहे हमलों के लिए आरएसएस और भाजपा की अगुआई वाली केंद्र की मोदी सरकार और पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकारों को जिम्मेदार बताया गया है। उन्होंने आरोप लगाया है कि वर्तमान की भाजपा की केंद्र सरकार ने NEET के अखिल भारतीय कोटा के तहत राज्यों की समर्पित 20 हजार से ज्यादा सीटों पर ओबीसी वर्ग के योग्य अभ्यर्थियों को डॉक्टर नहीं बनने दिया। उनका कहना है कि मोदी सरकार ने पिछले तीन सालों के दौरान ही ओबीसी की 11000 से ज्यादा सीटें सवर्णों को दे दीं। इससे अन्य पिछड़ा वर्ग के 11 हजार से ज्यादा योग्य अभ्यर्थी डॉक्टर नहीं बन पाए। बिहार के भागलपुर में होने वाले विरोध-प्रदर्शनों के आयोजकों में शामिल गौतम कुमार ने बताया कि 'बहुजन स्टूडेंट यूनियन' 'सामाजिक न्याय आंदोलन' के देशव्यापी आह्वान पर भागलपुर, मुंगेर, बांका, अरवल, खगड़िया, बेगुसराय आदि जिलों में प्रदर्शन करेगा। वहीं पटना में अति-पिछड़ा वर्ग पर काम करने वाले संगठन विरोध-प्रदर्शनों का आयोजन करेंगे। वहीं फेसबुक पर 'सामाजिक न्याय आंदोलन, बिहार' के नाम से पेज चलाने वाले रिंकु यादव ने बताया कि उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी समेत अन्य जिलों में भी लोग विरोध-प्रदर्शन करेंगे। वाराणसी में होने वाले विरोध प्रदर्शन के मामले में 'वनांचल एक्सप्रेस' को एक पोस्टर भी मिला है जिसमें काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के लंका स्थित गेट पर दोपहर साढ़े तीन बजे विरोध-प्रदर्शन होने की सूचना लिखी है। 

राष्ट्रीय सामाजिक न्याय दिवस के मौके पर 'सामाजिक न्याय आंदोलन' के नाम से होने वाले विरोध-प्रदर्शनों के संबंध में  जारी एक पर्चे को नीचे आप पढ़ सकते हैंः-

महान समाज सुधारक छत्रपति शाहू जी महाराज ने 26 जुलाई 1902 को कोल्हापुर रियासत की 50 प्रतिशत सरकारी नौकरियों को वंचित वर्गों के लिए आरक्षित कर देश में सामाजिक न्याय आंदोलन की पहल की थी। देश की आजादी के बाद बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर की अगुआई में बने भारतीय संविधान में उनकी इस पहल को लोगों ने बरकरार रखा। भारतीय संविधान में अनुसूचित जाति (एससी) एवं अनुसूचित जनजाति (एसटी) वर्ग के लोगों को उनकी आबादी के अनुपात में आरक्षण का प्रावधान किया गया। भारतीय संविधान के अनुच्छेद-340 के तहत सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े लोगों (ओबीसी) के लिए भी आरक्षण की व्यवस्था की गई लेकिन सत्ता में बैठी सवर्ण जातियों (सामान्य वर्ग) ने एससी, एसटी और ओबीसी के हकों पर डाका डाल लिया। बड़ी जद्दोजहद और संघर्ष के बाद 1990 में देश की 52 फीसदी आबादी वाले ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण मिला भी तो उन्होंने इसे लागू नहीं किया। सुप्रीम कोर्ट की मदद से उन्होंने दशकों तक ओबीसी आरक्षण लागू नहीं किया। किसी प्रकार सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में ओबीसी का 27 प्रतिशत आरक्षण लागू भी हुआ तो उन्होंने उसे पूरा दिया ही नहीं। लंबे संघर्ष के बाद लोगों को अभी एससी, एसटी और ओबीसी कोटे के तहत लोगों को आरक्षण मिलना शुरू ही हुआ था कि केंद्र की सत्ता में काबिज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) की अगुआई वाली मोदी सरकार ने पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार की तरह आरक्षण पर हमला बोल दिया। इसमें उसने सबसे ज्यादा हमला ओबीसी वर्ग के आरक्षण पर किया है। 

भाजपा की अगुआई वाली केंद्र और राज्यों की सरकारें भारतीय संविधान के तहत पिछड़ा वर्ग को मिले 27 प्रतिशत आरक्षण को सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में लागू ही नहीं कर रही हैं। मोदी सरकार मेडिकल की पढ़ाई के लिए आयोजित होने वाले नेशनल एलिजिबिलिटी कम इंट्रेंस टेस्ट ( NEET) में ऑल इंडिया कोटा (एआईक्यू) के तहत राज्यों द्वारा समर्पित सीटों में OBC का 27 प्रतिशत कोटा लागू नहीं कर रही है। इससे पिछले आठ सालों में करीब बीस हजार से अधिक ओबीसी के योग्य छात्र डॉक्टर बनने से वंचित रह गए हैं। ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ अदर बैकवर्ड क्लासेस इंप्लाइज वेलफेयर एसोशिएशन्स (एआईओबीसी) के दावों के मुताबिक, पिछले तीन सालों में ही करीब 11 हजार ओबीसी के योग्य छात्र डॉक्टर नहीं बन पाए। 2013 से 2020 तक की अवधि के दौरान राज्यों ने ऑल इंडिया कोटा के तहत केंद्र सरकार को कुल 72,491 सीटें समर्पित की थीं लेकिन उनमें ओबीसी को एक भी सीट नहीं दी गई। केंद्र की मोदी सरकार सुप्रीम कोर्ट का हवाला देकर ओबीसी को गुमराह कर रही है जबकि गैर-संवैधानिक सवर्णों के ईडब्ल्यूएस आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट में केस दाखिल होने के बाद भी सभी शिक्षण संस्थानों समेत सरकारी नौकिरयों में उसने लागू कर दिया है। 

भाजपा की अगुआई वाली उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने 69000 शिक्षकों की भर्ती में आरक्षण का मनमाना व्याख्या कर ओबीसी की करीब 15000 सीटें सवर्णों को दे दीं। इस बात की पुष्टि राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग घोटाला होने की बात कहकर स्वीकार कर चुका है। इसके बावजूद केंद्र और राज्यों की भाजपा सरकारें लगातार ओबीसी के हकों पर डाका डल रही हैं। लोग उच्चतम न्यायालय से लेकर सभी जगह लड़ रहे हैं लेकिन उन्हें कोई राहत नहीं मिल रही है। 

एससी, एसटी और ओबीसी का हक मारने के लिए कांग्रेस सरकार के समय में शुरू लैटरल इंट्री के जरिए वर्तमान के भाजपा सरकार ए ग्रेड की सरकारी नौकरियों में आरक्षित वर्गों की सीटों को सवर्णों को दे रही है। कुछ समय बाद यह सभी राज्यों में भी लागू कर दिया जाएगा। भाजपा की केंद्र और राज्य सरकारें निजीकरण और कॉन्ट्रैक्ट के जरिए एससी, एसटी और ओबीसी को बहुतायत संख्या में मिलने वाली नौकरियों को खत्म कर रही हैं, इसलिए रोजगार के अभाव में इन वर्गों के छात्र भारी संख्या में आत्महत्या कर रहे हैं। निजी क्षेत्र के रोजगार सवर्णों के लिए आरक्षित होते जा रहे हैं। निजीकरण के कारण केंद्र सरकार की सरकारी नौकरियों में एससी, एसटी और ओबीसी की संख्या लगाता घट रही है। 2003 में केंद्र सरकार की नौकिरयों में अनुसूचित जाति वर्ग के 5.40 लाख कर्मचारी थे जो 2012 में 16 प्रतिशत घटकर 4.55 लाख हो गए। 

अगर 52 फीसदी आबादी वाले ओबीसी वर्ग की बात करें तो इस वर्ग के पास आज भी ग्रुप-ए के केवल 13.1 प्रतिशत पद हैं यानी आबादी का सिर्फ एक तिहाई। वहीं सवर्णों के पास यह उनकी आबादी से चार गुना ज्यादा पद हैं । विश्वविद्यालयों के कुलपतियों, प्रोफेसरों और एसोसिएट प्रोफेसरों के पदों में ओबीसी की भागीदारी शून्य है। न्यायपालिका (हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट) में 90 प्रतिशत से अधिक जज सवर्ण हैं। मीडिया पर सवर्णों के कब्जे के तथ्य से सभी परिचित हैं। इस परिदृश्य में सवर्णों को आरक्षण देने के साथ ही ओबीसी को देर से मिले केवल 27 प्रतिशत आरक्षण को भी वर्तमान सरकार लगातार खत्म कर रही है। कुल भू-संपदा का 41 प्रतिशत हिस्सा सवर्णों के पास है। ओबीसी का हिस्सा आज भी 35 प्रतिशत के लगभग है। एससी के पास केवल सात प्रतिशत है। तीनों कृषि कानूनों की मार भी देश के असली किसान आबादी ओबीसी पर ही होगी। पिछले दिनों केंद्र सरकार के एक मंत्री ने लोकसभा में ओबीसी और सामान्य वर्ग की जातिवार जनगणना कराने से साफ मना कर दिया जबकि वंचित वर्गों के विकास के लिए उनकी गिनती किया जाना बहुत ही जरूरी है। आज भी 1931 के आंकड़ों के आधार पर ही सरकारी नीतियां बनाई जा रही हैं।  भाजपा की केंद्र सरकार ने बिना किसी आंकड़ों के सवर्णों को 10 प्रतिशत ईडब्ल्यूएस आरक्षण दे दिया है लेकिन ओबीसी के आंकड़े होने के बाद भी सरकार उन्हें उनकी आबादी के अनुपात में आरक्षण नहीं दे रही है और ना ही उन्हें मिले संवैधानिक आरक्षण को लागू कर रही है। इसलिए सवर्णों और ओबीसी के नवीनतम आंकड़े आने जरूरी हैं। 

केंद्र और राज्य सरकारों के मंत्रीमंडल में ओबीसी, एससी, एसटी और अल्पसंख्यकों के तथाकथित नेताओं का चेहरा दिखाकर भाजपा केवल इन वर्गों का वोट लेना चाहती है लेकिन उन्हें उनका संवैधानिक अधिकार बिल्कुल नहीं देना चाहती है। सभी संवैधानिक संस्थाओं पर उसने एससी, एसटी और ओबीसी के अधिकारों के विरोधियों को बैठा दिया है जिससे इन वर्गों को वहां से कोई राहत नहीं मिल रही है। अब इन वर्गों के पास केवल सड़क पर आने और संघर्ष करने का रास्ता ही बचा है। इसलिए, संघर्ष के साथियों ने आगामी 26 जुलाई 2021 को निम्नलिखित मुद्दों पर देश के विभिन्न इलाकों में सड़क पर उतरने और विरोध-प्रदर्शन करने का निर्णय लिया हैः 

NEET के AIQ में OBC का 27 प्रतिशत आरक्षण लागू करो। 

आरक्षण के प्रावधानों के उल्लंघन को संज्ञेय अपराध बनाओ।

जनगणना-2021 में सभी वर्गों की जातिवार जनगणना कराओ।

आबादी के अनुपात में ओबीसी आरक्षण लागू करो।

सामान्य वर्ग की जातिवार सामाजिक और आर्थिक जनगणना कराओ।

अतः आप सभी से अनुरोध है कि इस बार राष्ट्रीय सामाजिक न्याय दिवस (26 जुलाई) पर विरोध-प्रदर्शनों से एक ऐतिहासिक दिन बनाने के लिए आगे आएं। 

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