रविवार, 7 मार्च 2021

पेड सीट पर आरक्षण नहीं देने के मामले में UGC ने BHU प्रशासन से मांगा जवाब

शोधार्थी राघवेंद्र यादव ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) से की थी शिकायत।
वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो
वाराणसी। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU) में पेड सीटों पर आरक्षण नहीं दिए जाने के मामले को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने गंभीरता से लिया है। आयोग ने विश्वविद्यालय के कुलपति को पत्र लिखकर बिंदुवार इस मामले में तत्काल जवाब मांगा है। आयोग ने यह कार्रवाई एक केंद्रीय विश्वविद्यालय के शोधार्थी राघवेंद्र यादव की शिकायत पर की है।
यूजीजी की अनुसचिव मीना कुमार निर्मल ने गत 5 मार्च को बीएचयू के कुलपति प्रो. राकेश भटनागर के नाम पत्र जारी किया है। इसमें उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय और इससे संबद्ध महाविद्यालयों में भारत सरकार की आरक्षण नीति का अनुपालन नहीं करने की शिकायत के संबंध में तत्काल बिन्दुवार जवाब देने का अनुरोध किया है। उन्होंने पत्र की एक-एक प्रति विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. नीरज त्रिपाठी और शिकायतकर्ता राघवेंद्र यादव को भी भेजा है।
 
बता दें कि शोधार्थी राघवेंद्र यादव ने पिछले साल 29 नवंबर को काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति को बतौर भारतीय नागरिक पत्र लिखकर 'केंद्रीय शिक्षा संस्थान (प्रवेश में आरक्षण) अधिनियम-2006' के तहत विश्वविद्यालय और उससे संबद्ध महाविद्यालयों की प्रवेश की सभी सीटों ( स्व-वित्तपाोषित पाठ्यक्रमों की सीटों समेत नियमित और पेड सीटों) पर अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत, अनुसूचित जाति वर्ग को 15 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति वर्ग को 7.5 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने की मांग की थी। उन्होंने विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा पेड सीटों पर एससी, एसटी और ओबीसी को आरक्षण नहीं दिए जाने को उक्त कानून के प्रावधानों की अवहेलना करार दिया था। उन्होंने अपने शिकायती पत्र में लिखा था कि बीएचयू सरकारी संस्थान है जो भारत सरकार की आरक्षण नीति को मानने के लिए बाध्य है।

उन्होंने बीएचयू प्रशासन से अधिकारिक वेबसाइट या एडमिशन पोर्टल पर अभ्यर्थियों के कट-ऑफ मार्क्स, मेरिट इंडेक्स, रैंक, विद्यार्थी का वर्ग और उसे किस वर्ग में दाखिला मिला है, का विवरण प्रकाशित करने का अनुरोध किया था जिससे प्रवेश में पारदर्शिता बनी रहे। उन्होंने पत्र की एक-एक प्रति ई-मेल के माध्यम से कुलपति के निजी सचिव, उप-कुलसचिव (अकादमिक), ओबीसी/एससी/एटी सेल, डीन ऑफ स्टूडेंट वेल्फेयर और कार्यकारिणी परिषद को भेजी।

राघवेंद्र यादव की शिकायत को विश्वविद्यालय प्रशासन ने गंभीरता से नहीं लिया। फिर उन्होंने पिछले साल 26 दिसंबर को विश्वविद्यालय के कुलपति और कुलसचिव को स्मृति-पत्र लिखा और चेतावनी दी कि उनके पत्र पर तुरंत कार्रवाई नहीं की गई तो वे विश्वविद्यालय प्रशासन के खिलाफ संवैधानिक संस्थाओं के पास जाने के लिए बाध्य होंगे। इसके बाद काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के उप-कुलसचिव (अकादमिक) ने गत 16 जनवरी को राघवेंद्र यादव को पत्र लिखकर जवाब दिया कि विश्वविद्यालय प्रशासन सुपरन्यूमरेरी सीट्स (अतिरिक्त सीटों) पर आरक्षण नहीं देता है क्योंकि ये स्वीकृत सीटों की संख्या के अतिरिक्त होती हैं। सुपरन्यूमरेरी सीटों पर प्रवेश परीक्षा की मेरिट के आधार पर होता है। इसके अनुसार 15 प्रतिशत सीटों, जो सुपरन्यूमरेरी सीटें भी हैं, पर आरक्षण नहीं दिया जाता है। उन्होंने यह भी लिखा कि सुपरन्यूमरेरी सीटों पर दाखिला लेने वाले विद्यार्थियों को शैक्षणिक और गैर-शैक्षणिक स्टाफ को यूजीसी से कोई अतिरिक्त सहायता नहीं मिलती है। विश्वविद्यालय के शैक्षणिक एवं गैर-शैक्षणिक स्टाफ ऐसे विद्यार्थियों के लिए स्वयं अपने समय और ऊर्जा का योगदान देते हैं। विश्वविद्यालय के अन्य पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के अनुभाग अधिकारी खेदनराम ने भी 27 जनवरी को राघवेंद्र यादव को विश्वविद्यालय प्रशासन के उक्त जवाबी पत्र को भेजकर अपनी कार्रवाई के बारे में सूचित किया।

विश्वविद्यालय प्रशासन के उक्त जवाब से असंतुष्ट राघवेंद्र यादव ने गत 25 फरवरी को बीएचयू के कुलपति और कुलसचिव को स्पष्टीकरण देते हुए 15 बिन्दुओं पर जवाब मांगा और बीएचयू प्रशासन की शिकायत विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से की। साथ ही उन्होंने इसकी एक-एक प्रति केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय, राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति वर्ग, अनुसूचित जनजाति वर्ग के सचिवों समेत अन्य पिछड़ा वर्ग कल्याण के लिए संसदीय समिति के अध्यक्ष और उप-सचिव, आदि को भी भेजा।
 
इसमें उन्होंने लिखा कि विश्वविद्यालय प्रशासन के जवाब में कई प्रकार की कानूनी और तथ्यात्मक खामियां हैं। वनांचल एक्सप्रेस से बात करते हुए राघवेंद्र यादव ने कहा कि विश्वविद्यालय प्रशासन का जवाब तर्कसंगत और विश्वसनीय नहीं है। उन्होंने पत्र में बीएचयू प्रशासन से सवाल किया है कि अगर सुपरन्युमरेरी सीट पर क्षैतिज आरक्षण दिया जा रहा है तो उर्ध्व आरक्षण क्यों नहीं? उन्होंने यह भी सवाल किया है कि बीएचयू कर्मचारियों के पुत्र-पुत्रियों और एनआरआई के बच्चों को केंद्रीय विश्वविद्यालय में किस नियम के तहत कोटा फिक्स किया गया है? उन्होंने पारदर्शिता न होने के साथ-साथ यह भी आरोप लगाया है कि बीएचयू अघोषित आरक्षण दे रही है और घोषित आरक्षण नहीं दे रही है जो कि नियम के खिलाफ है। उन्होंने वनांचल एक्सप्रेस से बात करते हुए आरोप लगाया कि बीएचयू ने दाखिले के लिए अमीर-आश्रित और गरीब-विरोधी नीति बनाई है। इससे कम मेरिट वाला अभ्यर्थी ज्यादा फीस देकर बीएचयू में दाखिला पा जाता है। 









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