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शनिवार, 23 सितंबर 2017

BHU की छात्राओं ने तोड़ी कुलपति की बेड़ियां, रात भर किया प्रदर्शन, कुलपति के आवास को भी घेरा

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में लगातार हो रही छेड़खानी के विरोध में सिंह द्वार पर पिछले 28घंटे से चल रहा है छात्राओं का धरना। छात्राओं के तीखे तेवर देखकर जिला प्रशासन ने बदला प्रधानमंत्री के दुर्गा मंदिर जाने का पूर्व निर्धारित रास्ता। 
वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो
वाराणसी। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) की छात्राओं ने शुुक्रवार की रात संस्कृति के नाम पर संघी कुलपति गिरीश चंंद्र त्रिपाठी द्वारा थोपी गई पाबंदियों को तोड़ दिया और छेड़खानी के विरोध मेें पूरी रात धरना प्रदर्शन किया। रात में ही छात्राओं ने कुलपति के आवास का घेराव किया। उधर विश्वविद्यालय परिसर में लगातार छेड़खानी से परेशान छात्राओं के तीखे तेवर देख जिला प्रशासन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पूर्व निर्धारित रास्ता ही बदल दिया जो बीएचयू के सिंह द्वार से दो बार गुजरना था।

PM मोदी के 56 इंच के सीने पर भारी पड़ा BHU की छात्राओं का पसीना

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में लगातार हो रही छेड़खानी के विरोध में सिंह द्वार पर पिछले 24 घंटे से चल रहा है छात्राओं का धरना। छात्राओं के तीखे तेवर देखकर जिला प्रशासन ने बदला प्रधानमंत्री के दुर्गा मंदिर जाने का पूर्व निर्धारित रास्ता। 
वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो
वाराणसी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 56 इंच के सीने पर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) की छात्राओं का पसीना शुक्रवार को भारी पड़ गया। विश्वविद्यालय परिसर में लगातार छेड़खानी से परेशान छात्राओं के तीखे तेवर देख जिला प्रशासन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पूर्व निर्धारित रास्ता ही बदल दिया जो बीएचयू के सिंह द्वार से दो बार गुजरना था।

सोमवार, 4 सितंबर 2017

अब तो BHU के नाम से दहशत हो गया है...


बेटी के गम में डूंबी शकुंतला और उनकी बेटी पूनम शर्मा
5-7 जून 2017। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का सर सुंदरलाल अस्पताल। कहीं शव पर सिर पटककर रोती महिलाएं तो कहीं कानों के परदे को चिरतीं चीखें। किसी के सपने टूटें तो किसी के रिश्ते। कोई जिम्मेदारियों से मुकरा तो कोई बांधा झूठ का पुलिंदा। इन सबके बीच थे तो कुछ सवाल जो अभी भी जवाब खोज रहे हैं। आखिर कौन है मौत का सौदागर? विश्वविद्यालय प्रशासन, चिकित्सक, ठेकेदार या फिर दवा बनाने वाली कंपनियां। कातिल कोई भी हो लेकिन असल में कुछ घर बर्बाद जरूर हुए। किसी के सिर से पिता का साया छिना तो किसी भाई की कलाई की राखी। किसी की मांग का सिंदूर उजड़ा तो किसी के परिवार का सहारा। और ये हुआ है कुछ गैर-जिम्मेदार लोगों की वजह से जिन्होंने चंद नोटों की लालच में मासूमों की जिंदगी का सौदा कर लिया। अब हालात ऐसे हैं कि लोग बीएचयू के नाम से खौफ खाते हैं। पढ़िये वनांचल एक्सप्रेस-मीडिया विजिल की यह संयुक्त रिपोर्टः   
वाराणसी से शिव दास की रिपोर्ट
ब तो बीएचयू के नाम से दहशत हो गया है, एकदम डर गये हैं भैया। बाहर ऑपरेशन कराते तो 25 हजार रुपये में आवारा-न्यारा हो जाता। क्या बताएं भैया जब मति भ्रष्ट होती है और जब तबाही आती है तो...वही तबाही आयी। अब देखिए जान बचती भी है कि नहीं। कुल मिलाकर 60-65 हजार रुपये भी इनवेस्ट हुआ और स्थिति ये है। हिम्मत नहीं पड़ रही है कि दोबारा वहां जाएं। और वहां गए तो कहीं ऐसी दवा मिल जाए कि वह सोयी की सोयी रह जाएं।

गुरुवार, 31 अगस्त 2017

ESIC: सात महीनों बाद भी पीएम के संसदीय क्षेत्र में लागू नहीं हुई नई ‘मातृत्व लाभ योजना’

कर्मचारी राज्य बीमा निगम की नियमावली को दरकिनार कर निगम के अधिकारी और कर्मचारी बीमित कर्मियों को कर रहे परेशान।
वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो
वाराणसी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नई मातृत्व लाभ योजना उनके संसदीय क्षेत्र में ही दम तोड़ रही है। केंद्र सरकार के श्रम एवं रोजगार मंत्रालय से अधिसूचना जारी होने के सात महीनों बाद भी क्षेत्र की बीमित गर्भवती और प्रसूति महिलाओं को उसका लाभ नहीं मिल पा रहा है। कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ईएसआईसी) के अधिकारी एवं कर्मचारी पहले इन महिलाओं को 12 सप्ताह के अवकाश का भुगतान कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ले रहे हैं जबकि नई मातृत्व लाभ योजना के तहत उन्हें 26 सप्ताह के अवकाश का भुगतान किया जाना है। इससे उन्हें भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।

मंगलवार, 29 अगस्त 2017

BHU EXCLUSIVE: BJP विधायक को इलाहाबादी 'अखाड़े' से सौगात में मिला था गैस का ठेका

विश्वविद्यालय के ठेकों में केंद्र की सत्ता में काबिज राजनीतिक पार्टियों के नेताओं का दखल आया सामने। नवंबर, 2014 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के नवनियुक्त कुलपति और भाजपा के मातृत्व संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रशंसक प्रोफेसर गिरीश चंद्र त्रिपाठी ने कार्यभार संभालने के 20 दिनों के अंदर पैररहट इंडस्ट्रियल इंटरप्राइजेज प्राइवेट लिमिटेड को दिया मेडिकल गैसों की आपूर्ति का ठेका।
reported By Shiv Das
वाराणसी स्थित काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के सर सुन्दरलाल चिकित्सालाय में मेडिकल गैसों की आपूर्ति के ठेकों में सत्ताधारी भाजपा के नेताओं का सीधे दखल सामने आया है। दस्तावेज बताते हैं कि केंद्र में पार्टी की सरकार बनते ही भाजपा विधायक हर्ष वर्धन बाजपेयी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के इलाहाबादी 'अखाड़े' के सियासी गठजोड़ से सर सुंदरलाल चिकित्सालय में ऑक्सीजन, नाइट्रस ऑक्साइड और कार्बन डाई ऑक्साइड की आपूर्ति का ठेका हथिया लिया था। ठेके के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन पर पार्टी का इस कदर दबाव था कि नवनियुक्त कुलपति प्रोफेसर गिरीश चंद्र त्रिपाठी ने कार्यभार संभालने के बीस दिनों के अंदर मेडिकल गैसों की आपूर्ति की ठेका भाजपा विधायक की कंपनी पैररहट इंडस्ट्रियल इंटरप्राइजेज प्राइवेट लिमिटेड को दे दिया जबकि आवश्यक प्रमाण-पत्रों के अभाव में आबंटन की प्रक्रिया निविदा खुलने की तिथि से पांच महीनों तक लंबित रही।

रविवार, 30 जुलाई 2017

पीएम मोदी की ‘मन की बात’ के साथ आज वाराणसी में होगी आरक्षण पर उनकी नीतियों की बात

भाजपा की अगुआई में केंद्र की सत्ता में काबिज राजग सरकार द्वारा पिछड़ों के अधिकारों पर हो रहे हमलों पर भारतीय समता परिवार एवं सामाजिक न्याय मोर्चा संयुक्त रूप से मैदागिन स्थित पराड़कर स्मृति भवन में आयोजित कर रहा है सामाजिक न्याय सम्मेलन’।
वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो

वाराणसी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मन की बात के साथ आज उनके संसदीय क्षेत्र वाराणसी में सामाजिक न्याय और आरक्षण की बात होगी। मैदागिन स्थित पराड़कर स्मृति सभागार में पूर्वान्ह 11 बजे से आयोजित सामाजिक न्याय सम्मेलन में केंद्र की सत्ता में काबिज राजग सरकार की नीतियों पर पिछड़ा समुदाय अपनी बात रखेगा जिसमें सामाजिक एवं आर्थिक न्याय, दलितों एवं पिछड़ों का आरक्षण, बेरोजगारी, दोहरी शिक्षा प्रणाली, शिक्षा का व्यवसायीकरण, राजनीति का अपराधीकरण और भ्रष्टाचार के मुद्दे शामिल होंगे।

बुधवार, 19 जुलाई 2017

EXCLUSIVE: वाराणसी में पुलिस ने दलित शिक्षिका को ‘जूता-चप्पलों की माला पहनाई और नंगा घुमाया’

लंका थाना पुलिस ने पीड़ता की तहरीर में उल्लेखित आरोपों को दरकिनार कर मनमुताबिक धारा में दर्ज किया एफआईआर।
Reported by राजीव कुमार मौर्य, विधि संवाददाता
वाराणसी। अवैध वसूली, उत्पीड़न और मानवाधिकार हनन के गैर-कानूनी कारनामों में बदनाम उत्तर प्रदेश पुलिस का एक नया कारनामा सामने आया है। लंका थाना पुलिस ने अपने यहां दर्ज एफ.आई.आर. में दलित उत्पीड़न की शिकार महिला शिक्षिका को ना केवल जूता-चप्पलों की माला पहनाई, बल्कि उसे नंगा तक घुमा दिया जबकि पीड़िता ने अपनी तहरीर में कहीं भी इन शब्दों का जिक्र नहीं किया है।

मंगलवार, 28 जून 2016

मोदी खुद इन्हीं परिस्थितियों की पैदाइश हैं?

आपातकाल के दौरान संविधान में तकरीबन 25 संशोधन किए गए थे। हालांकि जनता पार्टी के शासन में आने के बाद उन सबको एक साथ रद्द कर दिया गया था। तब इन संशोधनों को मिनी संविधान करार दिया गया था। यहां तो पूरे संविधान को ही बदलने की बात की जा रही है...

महेंद्र मिश्रा
वैसे तो आपातकाल 26 जून को लगा था। वह दिन बीत गया है। कुछ लिखने की इच्छा के बावजूद दूसरी व्यवस्तताएं भारी पड़ीं। लेकिन चूंकि इसकी प्रासंगिकता बनी हुई है इसलिए लिखना जरूरी हो गया था। इस सिलसिले में आए लेखों में दो चीज देखने को मिली। कुछ ने इंदिरा गांधी के आपातकाल को कोसने तक अपने को सीमित रखा। तो कुछ ने इसे मौजूदा संदर्भ से जोड़ने की भी कोशिश की। पहली जमात में ऐसे लोग हैं जिनकी कुछ राजनीतिक प्रतिबद्धताएं हैं। या फिर न तो वो लोकतंत्र के मर्म को समझते हैं और न ही उन्हें आपातकाल के खतरे का अहसास है। दूसरी श्रेणी के लोग भी अगर मौजूदा समय को सिर्फ आपातकाल के ही एक दूसरे चेहरे के तौर पर देख रहे हैं। तो वो भी असल तस्वीर से अभी दूर हैं।

शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2016

रोहित वेमुला और जेएनयू के समर्थन में सड़क पर उतरे विद्यापीठ के शिक्षक और छात्र




प्रतिवाद मार्च निकालकर कथित राष्ट्रवादियों को दिया जवाब।

वनांचल न्यूज नेटवर्क

वाराणसी। रोहित वेमुला को न्याय दिलाने, दोषी मंत्रियों को जेल भेजने, कन्हैया सहित जेएनयू के छात्रों पर देशद्रोह का फर्जी मुकदमा वापस लेकर उन्हें रिहा करने समेत विभिन्न मांगों को लेकर महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के अध्यापकों और छात्रों ने शुक्रवार को विश्वविद्यालय के गेट संख्या-दो से प्रतिवाद मार्च निकाला और सभा की। उन्होंने संघ और भाजपा पोषित छद्म राष्ट्रवाद के खिलाफ युवाओं को शहीद भगत सिंह और डॉ. भीम राव अबेंडर के रास्तों पर चलने का आह्वान किया। 



प्रतिवाद मार्च में निरंजन सहाय, रेशम लाल, अनुराग कुमार, वीके सिंह आदि शिक्षक प्रमुख रूप से शामिल रहे। इनके अलावा सैकड़ों की संख्या में विद्यापीठ के छात्र एवं छात्राओं ने मार्च में हिस्सा लिया। 


शनिवार, 20 फ़रवरी 2016

झंडा का फंडाः कथित राष्ट्रवाद की दुकानदारी में हर साल खर्च होंगे 150 करोड़

दिल्ली स्थित गुमनाम वेंडर 'फास्ट ट्रैक इंजीनियरिंग' को टेंडर मिलने की संभावना। इसके मालिक की बीजेपी नेताओं से नजदीकियां होने की बात आ रही सामने।

वनांचल न्यूज नेटवर्क

वाराणसी। कथित 'राष्ट्रवाद' की दुकानदारी में झंडे का फंडा भी खूब चल रहा है। सोशल प्लेटफॉर्म 'फेसबुक' पर मित्रों से मिली जानकारी की मानें तो केंद्रीय मानव संसाधन एवं विकास मंत्री स्मृति ईरानी के केंद्रीय विश्वविद्यालयों में राष्ट्र ध्वज 'तिरंगा' लगवाने के निर्णय पर हर साल करीब 150 करोड़ रुपये का खर्च आएगा। जबकि उनकी सरकार 'नान-नेट फेलोशिप' के तहत शोध करने वाले छात्रों पर हर साल आने वाले करीब 99.16 करोड़ रुपये के खर्च की योजना को चालू करने के लिए तैयार नहीं है।

जितेंद्र नारायण
भारतीय जीवन बीमा निगम में विकास अधिकारी के पद पर कार्यरत और बिहार के समस्तीपुर निवासी जितेंद्र नारायण ने फेसबुक पर स्टैटस अपडेट किया है कि मोदी सरकार देश के 40 केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में तिरंगा फहराने में हर साल कुल 147.15 करोड़ रुपये खर्च करेगी। इन विश्वविद्यालयों में राष्ट्रध्वज फहराने के लिए आवश्यक झंडे और डंडे पर हर साल कुल 86 करोड़ रुपये खर्च आएगा जबकि उन्हें प्रकाशमान करने में हर साल कुल 61.15 करोड़ रुपये के खर्च का अनुमान है। यहां यह बता दें कि इस समय देश में कुल 46 केंद्रीय विश्वविद्यालय हैं। इस लिहाज से सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों में तिरंगा फहराने का खर्च जितेंद्र नारायण के अनुमान से कहीं ज्यादा है। उन्होंने अपने स्टैटस में लिखा है कि केंद्र की मोदी सरकार 'नान-नेट फेलोशिप' के तहत शोध करने वाले छात्रों पर हर साल आने वाले करीब 99.16 करोड़ रुपये खर्च की योजना को चालू करने के लिए तैयार नहीं है।  

जितेंद्र नारायण के अनुमान और कथित राष्ट्रवादी फंडे (तिरंगा लगाने का धंधा) को और स्पष्ट करते हुए जेएनयू के पूर्व छात्र मयंक कुमार जायसवाल लिखते हैं कि आजकल 70 फीट से 207 फीट तक की ऊंचाई के तिरंगे फैशन में हैं। क़ीमत पचास लाख से लेकर डेढ़ करोड़ रुपये तक। इतनी ऊंचाई पर कपड़े का झंडा नहीं रुक सकता। सो, ढाई से पांच लाख रुपये का पैराशूट मैटेरियल का झंडा। इतने पर भी एक झंडे की उम्र तीन से लेकर पंद्रह दिन। अब चूंकि फ्लैग कोड कहता है कि ख़राब झंडा फहराना जुर्म है सो झंडे को औसतन पंद्रह दिन में बदला जाना ज़रूरी। यहां तक सब ठीक है। मगर मुद्दा ये है कि इतने सारे झंडे किसने लगाए और इनको मेंटेन कौन कर रहा है?

मयंक कुमार जायसवाल
मयंक इसकी विस्तृत पड़ताल करते हैं। उनकी यह पड़ताल उनके ही शब्दों में नीचे दी जा रही है-
दिल्ली का एक गुमनाम सा वैंडर है 'फास्ट ट्रैक इंजीनियरिंग'। एक जैन साहब इसके सर्वेसर्वा हैं। देश भर में ये फर्म क़रीब डेढ़ सौ झंडे लगा चुकी है। पहला झंडा कनॉट प्लेस में नवीन जिंदल की फ्लैग फाउंडेशन ने लगवाया। इसके बाद देश के तमान नगर निगम, राज्य सरकारें और निजी व्यवसायी इसे लगवा चुके हैं। ताज़ा फरमान विश्वविद्यालयों में लगवाने के लिए केंद्रीय शिक्षा मंत्री का है। इस से पहले बीजेपी सांसदों को बुलाकर फरमान सुनाया गया था कि वो सांसद निधि से ये झंडे लगवाएं सो एक मेरे संसदीय क्षेत्र अमरोहा में भी तन गया। कई प्राईवेट कॉलेजों पर भी ये झंडा लगवाने का दबाव है।

सरकारी धन से लग रहे झंडों पर तो लोग कुछ नहीं कहते मगर प्राईवेट वालों के लिए परेशानी है। इस तो सबको एक ही वैंडर से लगवाना है जो केंद्र सरकार का ख़ास है... उसके लिए मुंह मांगी क़ीमत भी दो और सालाना मेटिनेंस का क़रार भी करो। अगर हर पंद्रह दिन में झंडा ख़राब हो रहा है तो साल भर में सिर्फ झंडा बदलवाई ही साठ लाख रुपये है ऊपर से दो आदमियों की तनख़्वाह अलग। लगवाते वक्त एकमुश्त भुगतान तो वाजिब है ही।


नगर निगमों के पास अपने कर्मियों को तनख्वाह देने के पैसे नहीं हैं मगर सालाना का एक करोड़ का ख़र्च सरकार ने फिक्स करा दिया है। अब ये मत पूछना कि इस में कितना राष्ट्रवाद है और कितना व्यापार। बस पता कीजिए सज्जन जिंदल का सरकार से क्या रिश्ता है और उनकी पाईप बनाने की फैक्ट्री का इन झंडों से क्या लेना देना है? बाक़ी सांसद निधि, नगर निकायों के धन से आपका हो न हो छद्म राष्ट्रीयता और पूंजीवाद का विकास तो हो ही रहा है। सरकारें ऐसे ही चलती हैं। बाक़ी मेक्यावेली चचा काफी कुछ समझा गए हैं। तो ज़ोर से मेरे साथ नारा लगाइए...जय हिंद...जय राष्ट्रवाद...वंदे मातरम्...वंदे पूंजीवादी पितरमम्...।

शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2016

JNU: विश्वविद्यालयों से पहले संघ मुख्यालयों में तिरंगा लगवाए केंद्र सरकारः रिहाई मंच

'उमर खालिद को बतौर आतंकवादी प्रचारित करने की साजिश में संलिप्त हैं खुफिया एजेंसियां'

वनांचल न्यूज नेटवर्क

लखनऊ। बेगुनाहों की रिहाई और जनमुद्दों पर बेबाक आवाज बुलंद करने वाले संगठन 'रिहाई मंच' ने कहा है कि भाजपा की अगुआई वाली केंद्र की राजग सरकार देश के विश्वविद्यालयों में तिरंगा लगाने से पहले संघ मुख्यलायों में तिरंगा लगवाये। साथ ही वह संघ परिवार के दफ्तर से सावरकर और गोलवरकर जैसे देशद्रोहियों की तस्वीर हटवाए जिन्होंने न केवल अंग्रेजों से माफी मांगी थी बल्कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या का षडयंत्र भी रचा था। मंच ने आरोप लगाया गया है कि गोडसे ने गांधी जी की हत्या के प्रयासों में जिस तरह नकली दाढ़ी, टोपी और पठानी सूट पहनी थी, ठीक उसी तरह जेएनयू में एबीवीपी के कार्यकर्ताओं ने 'पाकिस्तान जिंदाबाद' का नारा लगाया। इसके सुबूत वीडियो के रूप में सोशल साइटों पर वायरल हो चुके हैं। इसके बावजूद पुलिस उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं कर रही। मंच ने यह भी मांग किया कि जेएनयू प्रकरण पर वामपंथियों की आलोचना करने वाले मंत्री किरन रिजुजू पहले 'पाकिस्तान जिंदाबाद' का नारा लगाने वाले सावरकर के शिशुओं पर कार्रवाई करें। जेएनयू प्रकरण में मीडिया के एक हिस्से द्वारा शोधार्थी उमर खालिद को आतंकवाद से जोड़ने पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए मंच ने कहा कि खालिद के मुस्लिम होने के चलते उसके नाम पर अफवाहों को फैलाया जा रहा है। इसमें केन्द्र की खुफिया और सुरक्षा एजेंसियां संलिप्त हैं।

रिहाई मंच की ओर से जारी बयान में प्रवक्ता शाहनवाज आलम ने कहा, पहले कहा गया कि जेएनयू के छात्र पाकिस्तान समर्थक और देशद्रोही हैं। अब कहा जा रहा है कि नक्सल समर्थक छात्र संगठन डीएसयू के नेताओं ने नारे लगाए। यह मोदी और संघ परिवार के खिलाफ उभरते राष्ट्रव्यापी छात्र आंदोलन को भ्रम और अफवाह के जरिए साम्प्रदायिक रंग देकर तोड़ने की कोशिश है। जिस तरह से डीएसयू को इसके लिए जिम्मेदार बताया जा रहा है वह संघी साजिश और मीडिया के वैचारिक दिवालिएपन का सुबूत है। वामपंथी संगठन अन्तर्राष्ट्रीयतावाद में विश्वास करते हैं। उनके लिए किसी देश का जिंदाबाद या मुर्दाबाद के नारे लगाना कोई एजेंडा नहीं होता। उन्होंने मांग की कि इस मुद्दे में जिन जेएनयू के छात्रों को फरार बताया जा रहा है उनकी सुरक्षा की गारंटी की जाए। इसके लिए देश का सर्वोच्च न्यायालय संज्ञान में लेकर उन छात्रों को इंसाफ देने की अपील करे जिससे देश निर्माण के प्रति संकल्पित वो छात्र जो संघी आतंकवाद के खौफ के चलते अपने परिवारों से दूर हो गए हैं वह वापस आ सके। मंच ने कहा है कि लोकतंत्र में आस्था रखने वाला पूरा समाज इन छात्रों के परिवार के साथ खड़ा है।

शाहनवाज आलम ने कहा कि जिस तरह से उमर खालिद के पिता वरिष्ठ पत्रकार व सामाजिक-राजनीतिक कासिम रसूल इलियास का बयान आया कि सिर्फ मुस्लिम होने के नाते या फिर उनके पूर्व में सिमी से जुड़े होने के चलते उनके बेटे को इस घटना के लिए दोषी बताया जा रहा है वह इस लोकतांत्रिक देश में बहुत दुखद है। इस लोकतंत्र में एक व्यक्ति को जब यह कहना पड़ जाए के उसके मुस्लिम होने के चलते उसके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जा रहा है तो इससे बद्तर कुछ नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि पोलिटिकल प्रिजनर्स कमेटी से जुड़े प्रो0 एसएआर गिलानी को जिस तरह से मीडिया देशद्रोही बता रहा है वह साबित करता है कि ऐसा खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों के इशारे पर किया जा रहा है। क्योंकि उनका संगठन नक्सलवाद और आतंकवाद के नाम पर इन एजेंसियों द्वारा फंसाए जाने वाले बेगुनाहों को छुड़ा कर उनके मुंह पर तमाचा मारता रहता है। रिहाई मंच नेता ने कहा कि ऐसे ही संगठनों के प्रयासों से न्याय व्यवस्था की कुछ गरिमा बची हुई है। 

रिहाई मंच नेता राजीव यादव ने कहा कि जेएनयू प्रकरण पर यूपी के युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का यह कहना कि देश में न जाने किस-किस मुद्दे पर बहस चल रही है, संस्थान चर्चा में व्यस्त हैं और वो उत्तर प्रदेश के विकास पर केन्द्रित हैं यह गैर जिम्मेदाराना और बचकाना बयान है। ठीक यही भाषा मोदी की भी है जब गुजरात दंगों का सवाल उठता है तो वो विकास का भोंपू बजाने लगते हैं। उन्होंने कहा कि बाबरी मस्जिद को तोड़ने आए संघीयों पर गोली चलवाने के लिए माफी मांगने वाले मुलायम सिंह को इस मसले पर अपनी राय रखनी चाहिए कि वे अफजल गुरू की फांसी को सही मानते हैं या गलत। 

उन्होंने कहा कि गृह राजमंत्री किरन रिजुजू जो कि जेएनयू प्रकरण के लिए वामपंथियों को दोषी ठहरा रहे हैं उन्हें अपने छात्र संगठन एबीवीपी के उन कार्यकर्ताओं जिन्होंने अपने ही संगठन की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए एबीवीपी से इस्तीफा दे दिया है, पर अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि सपा सरकार ने अपने प्रयास से जिस तरह वयोवृद्ध खालिस्तानी नेता 70 वर्षीय बारियाम सिंह को रिहा किया वह स्वागतयोग्य है लेकिन सवाल उठता है कि आखिर आतंकवाद के नाम पर फंसाए गए मुस्लिम नौजवानों को सरकार क्यों जेलों में सड़ाने पर तुली है। जबकि उनको छोडने का वादा सपा ने अपने घोषणापत्र में किया था।

राजीव यादव ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर बस्सी जो पहले कन्हैया द्वारा देशद्रोही नारे लगाने के सबूतों के होने की बात कह रहे थे और अब किसी सुबूत के होने से ही इंनकार कर चुके हैं पर टिप्पणी करते हुए कहा कि झूठे बयान देकर समाज में अराजकता फैलाने के आरोप में उनके खिलाफ कानूनी कार्रवई की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि बस्सी ने जिस तरह खुल कर संघ और भाजपा के गंुडों को बचाया है, वांछित आरोपी वकीलों को गिरफ्तार करने के बजाए उन्हें साम्प्रदायिक वकीलाकें के गिरोहों द्वारा सम्मानित किए जाने के खुला छोड़ दिया उससे पूरी पुलिस व्यवस्था ही अपमानित हुई है। 

रिहाई मंच कार्यकारिणी सदस्य अनिल यादव और लक्ष्मण प्रसाद ने कहा कि कोर्ट परिसर में जिस तरह से हमले हुए हैं वह दिल्ली पुलिस की सोची समझी साजिश का नतीजा है जिससे कि मुकदमों न लड़ा जा सके। उन्होंने बताया कि ठीक इसी तरह 2008 में आतंकवाद का मुकदमा लड़ने वाले रिहाई मंच अध्यक्ष एडवोकेट मुहम्मद शुएब व उनके मुवक्किलों पर लखनऊ कोर्ट परिसर में हमला किया गया और मुहम्मद शुऐब के कपड़े फाड़ अर्धनग्न अवस्था में चूना-कालिख पोत घुमाया गया और उल्टे उनके ऊपर ही पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाने का आरोप लगाया गया था। यह हमले लगातार हुए और शाहिद आजमी की भी इन्हीं खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों ने ऐसे मुकदमें लड़ने की वजह से हत्या करवा दी। उन्होंने कहा कि यह मुल्क के आईन को बचाने की लड़ाई हैं जिसे शहादत देकर भी लड़ा जाएगा।

(प्रेस विज्ञप्ति)