सोमवार, 27 जुलाई 2020

ऑल इंडिया कोटे की मेडिकल सीटों पर OBC आरक्षण देने के लिए तीन महीनों में कमेटी गठित करे केंद्र: मद्रास हाईकोर्ट

हाईकोर्ट ने कहा, 
 चिकित्सा शिक्षण संस्थानों में ऑल इंडिया कोटा की सीटों पर ओबीसी आरक्षण देने के लिए कोई कानून बनाने के लिए केंद्र स्वतंत्र। 

वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो

द्रास हाईकोर्ट ने सोमवार को केद्र सरकार को आदेश दिया कि वह तीन महीनों के अंदर केद्र सरकार, तमिलनाडु सरकार और मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI) के प्रतिनिधियों की एक संयुक्त कमेटी गठित करे जो चिकित्सा शिक्षण संस्थानों में ऑल इंडिया कोटा के तहत अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के छात्रों को आरक्षण देने के मुद्दे पर निर्णय करेगा। मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने एमसीआई के वक्तव्य को भी पढ़ा कि ऑल इंडिया कोटा की मेडिकल सीटों में ओबीसी आरक्षण देने में कोई भी कानूनी रोक नहीं है।

मामले की सुनवाई के दौरान मद्रास हाईकोर्ट के मुख्य न्यायमूर्ति एपी साही और न्यायमूर्ति जस्टिस सेंथिलकुमार रामामूर्ति की पीठ ने कहा कि कोर्ट सरकार के नीतिगत मामलों में उस समय तक दखल नहीं दे सकता है जबतक लोगों के मूलाधिकार प्रभावित नहीं होते हों। साथ ही कोर्ट ने कहा कि चिकित्सा शिक्षण संस्थानों में ऑल इंडिया कोटा की सीटों पर ओबीसी आरक्षण देने के लिए केंद्र सरकार कोई भी कानून बनाने के लिए स्वतंत्र है। 

बता दें कि देश के चिकित्सकीय शिक्षण संस्थानों में लागू ऑल इंडिया कोटा के तहत राज्यों ने पिछले आठ सालों में केंद्र को करीब 72500 मेडिकल सीटें समर्पित कीं लेकिन इनमें अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को एक भी सीट नहीं मिली। इन सीटों में स्नातक और स्नातकोत्तर की मेडिकल और डेंटल सीटें शामिल हैं। ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ अदर बैकवर्ड क्लासेस इंप्लाइज वेलफेयर एसोशिएशन्स (एआईओबीसी) के महासचिव जी. करुणानिधि ने विभिन्न चिकित्सा शिक्षण संस्थानों में उपलब्ध सीटों का ब्योरा जारी कर केंद्र सरकार पर ओबीसी के साथ भेदभाव का आरोप लगाया था। साथ ही उन्होंने ओबीसी के लिए संसदीय समिति को पत्र लिखकर AIOBC का पक्ष रखा था।

तमिलनाडु में विभिन्न राजनीतिक पार्टियों ने राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों के चिकित्सा शिक्षण संस्थानों में ऑल इंडिया कोटा की मेडिकल सीटों पर ओबीसी आरक्षण लागू कराने के लिए मद्रास हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की थी। मद्रास हाईकोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए उक्त आदेश दिया।

AIOBC के महासचिव जी. करुणानिधि की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक, शैक्षिक सत्र -2013 से 2020 तक ऑल इंडिया कोटा के तहत राज्यों ने केंद्र को स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर पर मेडिकल और डेंटल पाठ्यक्रमों की कुल 72,491 सीटें समर्पित कीं लेकिन इनमें एक भी सीट ओबीसी वर्ग के लिए आरक्षित नहीं की गईं। इनमें से 65,401 (77.5 प्रतिशत) सीटें अनारक्षित वर्ग को दे दी गईं। शेष सीटों में से 10,786 (15 प्रतिशत) सीटें अनुसूचित जाति वर्ग (एससी) और 5,304 (7.5 प्रतिशत) सीटें अनुसूचित जनजाति वर्ग (एसटी) को आबंटित की गईं। स्नातकोत्तर स्तर पर मेडिकल कोर्स की कुल सीटें 46,408 थीं जबकि 1,704 सीटें डेंटल कोर्स के लिए आबंटित की गई थीं। अगर स्नातक स्तर की बात करें तो मेडिकल कोर्स के लिए कुल 22,471 सीटें निर्धारित की गई थीं। वहीं डेंटल कोर्स के लिए कुल 1,908 सीटें थीं। करुणानिधि ने ये आंकड़े केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की अधिकारिक वेबसाइट www.mcc.nic.in पर दी गई जानकारियों से इकट्ठा किया है।

अगर शैक्षिक सत्र-2020-21 में स्नातकोत्तर स्तर पर मेडिकल और डेंटल कोर्स की सीटों की बात करें तो राज्यों ने केंद्र को ऑल इंडिया कोटा के तहत कुल 7,981 मेडिकल सीटें समर्पित कीं। इनमें से 6,226 सीटें सामान्य वर्ग को दे दी गईं। शेष सीटों में से 1,180 सीटें एससी को और 575 सीटें एसटी को दी गईं। ओबीसी को एक भी सीट आबंटित नहीं की गईं। इसी तरह डेंटल कोर्स में राज्यों द्वारा केंद्र को कुल 274 सीटें समर्पित की गईं। इनमें से 211 सीटें सामान्य वर्ग को आबंटित की गईं। शेष सीटों में 42 सीटें एससी को और 21 सीटें एसटी को दी गईं।

AIOBC का दावा है कि ऑल इंडिया कोटा के तहत राज्यों के कॉलेजों में स्नातकोत्तर स्तर पर संचालित चिकित्सा पाठ्यक्रमों की करीब 50 प्रतिशत सीटें केंद्र सरकार ने ले लीं लेकिन ओबीसी के लिए एक भी सीट आरक्षित नहीं की। चेन्नई स्थित इस संगठन के महासचिव ने बीते 20 मई को राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग और संसद की अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए संसदीय समिति को पत्र लिखकर मामले की शिकायत की थी। राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के सचिव को नोटिस जारी कर मामले पर जवाब तलब किया था। वहीं इस मामले में संसद की अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए संसदीय समिति ने गत 29 जून को केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अधिकारियों को तलब किया था।

AIOBC के महासचिव ने अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए संसदीय समिति के अध्यक्ष और सदस्यों को पत्र लिखकर केंद्र सरकार के दावों पर अपना पक्ष रखा था। पत्र में उन्होंने लिखा था कि स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय (DGHS) ने ऑल इंडिया कोटा के तहत राज्यों द्वारा समर्पित मेडिकल सीटों (MBBS/BDS/MD/MS/MDS) में ओबीसी आरक्षण लागू नहीं किया है। स्वास्थ्य मंत्रालय के अधीन भारतीय चिकित्सा परिषद ने स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों के लिए पोस्टग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन रेगुलेशन (PGMER)-2000 और स्नातक पाठ्यक्रमों के लिए रेगुलेशन फॉर ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन (RGME)-1997 लागू किया है। इन दोनों रेगुलेशन के तहत चिकित्सकीय पाठ्यक्रमों में प्रवेश, चयन, काउंसलिंग, स्थानांतरण और प्रशिक्षण का अधिकार केवल डीजीएचएस के पास है। 21 दिसंबर 2010 को जारी अधिसूचना के अनुसार दोनों रेगुलेशन (PGMER और RGME) में "प्रोसीजर फॉर सेलेक्शन ऑफ कैंडिडेट फॉर पोस्ट ग्रेजुएट कोर्सेस {पैरा-9(IV)} ऐंड ग्रेजुएट कोर्सेस {पैरा-5(5-III)}" शीर्षक से संशोधन किए गए हैं जो कहता है कि 'संबंधित वर्गों के लिए चिकित्सकीय महाविद्यालयों/संस्थानों में सीटों का आरक्षण राज्यों/केंद्र शासित क्षेत्रों के कानूनों के तहत लागू होगा। उपरोक्त अधिसूचना के मुताबिक, आरक्षित वर्गों (एससी, एसटी और ओबीसी) को संबंधित राज्यों, जो ऑल इंडिया कोटा के तहत सीटें समर्पित किए हैं, में लागू आरक्षण के प्रतिशत के अनुपात में सीटें मिलनी चाहिए।' 27 प्रतिशत आरक्षण सुनिश्चित नहीं है जैसा कि अब कहा जा रहा है। इसमें राज्य दर राज्य अंतर आ सकता है, उदाहरण के लिए तमिलनाडु में ओबीसी के लिए 50 प्रतिशत, एससी के लिए 18 प्रतिशत और एसटी के लिए 1 प्रतिशत है। पत्र में यह भी लिखा है कि डीजीएचएस उपरोक्त रेगुलेशन्स के तहत प्रवेश प्रक्रिया और आरक्षण नीति को अपनाने और लागू करने के लिए बाध्य है। लेकिन, वह रेगुलेशन्स का दमन करता है और ओबीसी को आरक्षण लागू नहीं करता है।

करुणानिधि ने पत्र में यह भी लिखा था कि माननीय सांसदों को दिए गए जवाब के साथ उच्चतम न्यायालय और मद्रास उच्च न्यायालय में दिए गए अपने हलफनामे में डीजीएचएस ने इन रेगुलेशन्स और तथ्यों के बारे में कहीं भी जिक्र नहीं किया है। बावजूद इसके वह ऑल इंडिया कोटा के सभी यूजी और पीजी मेडिकल सीटों पर राज्यों के विशेष ओबीसी आरक्षण को इस शर्त के साथ लागू करने का प्रस्ताव पेश करता है कि कुल आरक्षण उपलब्ध सीटों के 50 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होगा। डीजीएचएस का यह प्रस्ताव पूरी तरह से असंगत और स्वास्थ्य मंत्रालय (एमसीआई) के रेगुलेशन का दमन करने वाला है। उन्होंने आरोप लगाया है कि डीजीएचएस इन रेगुलेशन को लागू करने के बजाय मामले को न्यायालय ले जाने के लिए बाध्य कर रहा है ताकि ओबीसी आरक्षण जल्दी लागू ना हो सके। उनका कहना है कि डी़जीएचएस ने अन्य पिछड़ा वर्ग को न्याय और संवैधानिक अधिकार से वंचित किया है।

AIOBC ने पत्र में संसदीय समिति से अनुरोध किया था कि वह डीजीएचएस को पोस्टग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन रेगुलेशन और रेगुलेशन फॉर ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन के तहत एमसीआई द्वारा तैयार रेगुलेशन्स के प्रावधानों के तहत ऑल इंडिया कोटा के तहत राज्यों द्वारा समर्पित सीटों पर एससी, एसटी और ओबीसी की आरक्षण नीति को लागू करने का निर्देश दे।

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