रविवार, 15 मई 2016

पत्रकारों की हत्या और गिरफ्तारी पर मुखर हुए जनसंगठन


पत्रकार पुष्प शर्मा की गिरफ्तारी केंद्र की मोदी सरकार के दमन का प्रतीक- रिहाई मंच

वनांचल न्यूज नेटवर्क

लखनऊ। देश के विभिन्न इलाकों में हो रही पत्रकारों की हत्या को लेकर जन-पक्षधर संगठनों के साथ-साथ विभिन्न पत्रकार संगठनों ने सत्ताधारी पार्टियों को निशाने पर लिया है। मुसलमानों को योगा ट्रेनिंग के चयनित लोगों में मुसलमानों को शामिल नहीं करने से संबंधित खबर को ब्रेक करने वाले पत्रकार पुष्प शर्मा की गिरफ्तारी के मामले को रिहाई मंच ने केंद्र की मोदी सरकार में बढ़ रहे दमन का ताज़ा नज़ीर करार दिया है। साथ ही उसने बिहार और झारखंड में हाल ही में हुए दो पत्रकारों की हत्या को लोकतंत्र के लिए शर्मनाक बताया और इसमें शामिल हत्यारों की तुरंत गिरफ्तारी की मांग की है।

रिहाई मंच द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में मंच के महासचिव राजीव यादव ने भारत सरकार द्वारा योगा ट्रेनिंग में नीतिगत आधार पर मुसलमानों की नियुक्ति न करने का आरटीआई से खुलासा करने वाले पत्रकार पुष्प शर्मा की गिरफ्तारी और उक्त खबर को छापने वाले अखबार मिल्ली गजट के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने को मोदी सरकार की एक और ओछी हरकत बताया। उन्होंने कहा है कि इस मसले पर आयुश मंत्रालय द्वारा बिना अखबार से खबर के संदर्भ में कोई पूछताछ किए मुकदमा दर्ज करना साबित करता है कि आरटीआई में उजागर तथ्य बिल्कुल सही हैं और सरकार ने बदले की भावना के तहत पत्रकार को उत्पीड़ित करने के लिए जेल भेजा है। उन्होंने कहा कि इस मसले पर प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा पत्रकार के पक्ष में खड़े होने के बजाए खुलकर सरकार का पक्ष लेना साबित करता है कि पीसीआई जैसी संस्था का भी भगवाकरण हो गया है।

वहीं उन्होंने बिहार के सिवान में पत्रकार राजदेव रंजन और झारखंड चतरा में अखिलेश प्रताप सिंह की हत्या की निंदा करते हुए कहा है कि ये घटनाएं साबित करती हैं इन राज्यों में अपराधियों के हौसले कितने बुलंद हैं। उन्हांने दोनों मामलों में दोषियों की तत्काल गिरफ्तारी की मांग की है।

उधर, ऑल इंडिया जर्नलिस्ट एसोसिएशन, डेलही यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट, उपजा, भारतीय पत्रकार संगठन समेत देश के विभिन्न पत्रकार संगठनों ने बिहार और झारखंड में हुए दो पत्रकारों की हत्या की लिए सत्ताधारी पार्टियों को जिम्मेदार ठहराया। साथ ही उन्होंने मांग की कि हत्या में शामिल सभी लोगों को तत्काल गिरफ्तार किया जाए और पत्रकारों के परिजनों को मुआवजा मुहैया कराया जाए। 

शुक्रवार, 13 मई 2016

बिहार में पत्रकार की हत्या

पत्रकार राजदेव रंजन

वनांचल न्यूज नेटवर्क

पटना। बिहार के सिवान में टाउन थाना क्षेत्र  के स्टेशन रोड स्थित फल मंडी के पास आज बदमाशों ने गोली मारकर एक पत्रकार की हत्या कर दी। वहीं विभिन्न पत्रकार संगठनों से इसकी निंदा की है।
सूचना के मुताबिक हिन्दी दैनिक हिन्दुस्तान के सिवान जिला प्रभारी राजदेव रंजन कार्यालय से घर जा रहे थे। स्टेशन रोड स्थित फल मंडी के पास बदमाशों ने उन्हें गोली मार दी जिससे वह लहूलुहान होकर गिर पड़े और बदमाश भाग निकले। गंभीर रूप से घायल राजदेश रंजन को अस्पताल ले जाया गया लेकिन उन्होंने रास्ते में ही दम तोड़ दिया। फिलहाल अभी हत्या के कारणों का पता नहीं चल पाया है।

उधर, नेशनल यूनियन ऑफ़ जर्नलिस्ट्स (इंडिया) और एन यू जे आई, बिहार ने घटना की तीखी निंदा की है। साथ ही उन्होंने राज्य सरकार से मांग की है कि हत्यारों को अविलंब गिरफ्तार कर हत्या के कारणों का खुलासा किया जाय।

आतंकवाद के आरोपों से बरी मुस्लिम युवकों के खिलाफ अपील में जाना सपा सरकार की मुस्लिम विरोधी मानसिकता- रिहाई मंच

वनांचल न्यूज नेटवर्क

लखनऊ । निचली अदालत द्वारा आतंकवाद के आरोपों से बरी किए गए मुस्लिम युवकों के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील करना उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार की मुस्लिम विरोधी मानसिकता को दर्शाता है। सपा सरकार ने यह कदम उठाकर मुसलमानों के जख्मों पर नमक छिड़कने का काम किया है।

रिहाई मंच के प्रवक्ता शहनवाज आलम की ओर से जारी विज्ञप्ति में ये बाते कही गई हैं। साथ ही मंच ने एनआईए द्वारा मालेगांव बम धमाकों की आरोपी साध्वी प्रज्ञा पर से मकोका हटाने की कार्रवाई को न्यायिक व्यवस्था पर संघी हमला करार दिया है।

मंच के अध्यक्ष एडवोकेट मोहम्मद शुऐब ने कहा है कि सपा ने आतंकवाद के नाम पर फंसाए गए बेगुनाहों को छोड़ने का वादा तो पूरा नहीं किया, जो लोग अदालतों से बरी हुए हैं अब उनके खिलाफ भी सरकार उच्च न्यायालय में अपील करके मुसलमानों के जख्मों पर नमक छिड़क रही है। उन्होंने कहा कि 2 अक्टूबर 2015 को जलालुद्दीन, नौशाद, अजीजुर रहमान, शेख मुख्तार, मोहम्मद अली अकबर हुसैन और नूर इस्लाम मंडल को लखनऊ की विशेष न्यायाधीश (एससीएसटी) अपर जिला एंव सत्र न्यायालय ने बरी कर दिया था। इन अभियुक्तों पर लखनऊ में विस्फोट करने की रणनीति बनाने के आरोप के साथ ही उनसे भारी मात्रा में विस्फोटक बरामद करने का एसटीएफ ने दावा किया था। अदालत ने अपने फैसले में लिखा था मामले की परिस्थतियों व साक्ष्य की भिन्नताएं व विसंगतियां इस बरामदगी को संदेहास्पद बनाती हैं और मामले की परिस्थतियों से यह इंगित हो रहा है कि अभियुक्तगण को पुलिस कस्टडी रिमांड में लेकर उनके खिलाफ फर्जी बयानों के आधार पर यह बरामदगी भी प्लांट की गई है।

इन अभियुक्तों के वकील रहे रिहाई मंच अध्यक्ष ने कहा है कि अपनी जिंदगी के आठ साल जेलां में बिना किसी कुसूर के बिता चुके इन मुस्लिम नौजवानों के बरी होने से सपा सरकार इस कदर दुखी है कि उसने 29 फरवरी 2016 को उच्च न्यायालय में फैसले के खिलाफ अपील दायर कर दी है। जिसकी सुनवाई 10 मई को पड़ी थी। लेकिन सरकारी वकील ने उसे मुल्तवी करा लिया और अब अगस्त में सुनवाइ होगी। उन्हांने कहा कि सरकार के इस रवैये से एक बार फिर साबित हो गया है कि प्रदेश सरकार ने इन मामलों में खुद ही अदालतों को पत्र लिख कर आरोपियों को छोड़ने की जो अपील की थी वह सिवाए नाटक के कुछ नहीं था। मोहम्मद शुऐब ने आगे कहा है कि इन मामलां से बरी हुए बेगुनाह मुस्लिमां में से अधिकतर पश्चिम बंगाल के हैं जिन्हें यहां जमानतदार तक नहीं मिले और किसी तरह उन्होंने खुद अपनी पत्नी, सालों और दूसरे करीबियों को जमानतदार बना कर इन्हें छुड़वाया था। ऐसे में उनकी रिहाई के खिलाफ सरकार का अपील करना सपा सरकार का विशुद्ध साम्प्रदायिक और मुस्लिम विरोधी कार्रवाई है।
हीं विज्ञप्ति में रिहाई मंच के महासचिव राजीव यादव ने कहा कि एक तरफ तो सपा ने मुजफ्फरनगर साम्प्रदायिक हिंसा के मास्टरमाइंड संगीत सिंह सोम और सुरेश राणा और मुसलमानों के हाथ काटने की धमकी देने वाले भाजपा नेता वरूण गांधी के खिलाफ तो सुबूत होने के बावजूद उनके खिलाफ कानूनी कार्रवई में नहीं गई और उन्हें बरी होने में पूरा सहयोग किया। तो वहीं दूसरी ओर बेगुनाह मुस्लिमों का बरी होना उन्हें बर्दाश्त नहीं हो रहा है। मुलायम सिंह को संघ परिवार का पुराना स्वयंसेवक बताते हुए राजीव यादव ने कहा कि इससे पहले भी मुलायम सिंह बाबरी मस्जिद विध्वंस के मास्टरमाइंड लालकृष्ण आडवाणी के खिलाफ बाबरी ध्वंस के आरोपों को वापस ले चुके हैं और आज उनके बेटे भी खुल कर उनके पदचिन्हों पर चलते हुए पहले कानपुर के बजरंगदल के कार्यकर्ताओं जिनकी मौत बम बनाते समय हो गई थी और जिनके पास से कई किलो विस्फोटक बरामद हुआ था के मामले में भी सत्ता में आते ही फाइनल रिपोर्ट लगवा दिया और कानपुर दंगे के षडयंत्रकर्ता एके शर्मा को डीजीपी बना दिया।

उन्होंने कहा कि सपा के इसी मुस्लिम विरोधी नीति के कारण आज भी जहां कई बेगुनाह नौजवान आतंकवाद के आरोप में जेलों में बंद हैं तो वहीं इन आरोपों से बरी हुए वासिफ हैदर जैसे मुस्लिम युवक दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं क्योंकि अखिलेश सरकार ने उन्हें मुआवजा और पुर्नवास का वादा भी पूरा नहीं किया।

राजीव यादव ने कहा कि एनआईए द्वारा मालेगांव आतंकी विस्फोट की आरोपी साध्वी प्रज्ञा पर से मकोका हटाना और सपा सरकार का एनआईए व दिल्ली स्पेशल सेल को प्रदेश में घुस कर बेगुनाह मुस्लिम युवकों को पकड़ने की खुली छूट देना और बरी मुसलमानों के खिलाफ अपील में जाना यह सब आपस में जुड़ी हुई कड़ियां हैं। जो साबित करता है यूपी समेत पूरे देश में बेगुनाह मुस्लिमों को फंसाने का खेल बड़े पैमाने पर शुरू होने वाला है।


बुधवार, 4 मई 2016

अखिलेश सरकार के बाद NGT ने JP GROUP को दिया झटका, 2500 एकड़ वनभूमि वापस लेने का दिया आदेश


अधिकरण ने खारिज की उत्तर प्रदेश सरकार की अधिसूचना। मामले में दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने का भी दिया आदेश।

reported by Shiv Das

नई दिल्ली। सोनभद्र में वन भूमि हस्तांतरण मामले में उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार के बाद राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने भी जेपी समूह को झटका दिया है। उत्तर प्रदेश की पूर्ववर्ती बसपा सरकार द्वारा सोनभद्र में जेपी समूह की सहयोगी कंपनी जयप्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड (जेएएल) के पक्ष में 1083.231 हेक्टेयर (करीब 2500 एकड़) वनभूमि हस्तांतरित करने के लिए जारी अधिसूचना को एनजीटी ने आज खारिज कर दिया। साथ ही उसने राज्य सरकार को आदेश दिया कि वह जल्द से जल्द अधिसूचना जारी कर जेएएल के पक्ष में हस्तांतरित वन भूमि उत्तर प्रदेश वन विभाग को सौंप दे और गैर-कानूनी ढंग से इस वन भूमि हस्तांतरण प्रक्रिया में शामिल अधिकारियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करे। हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार ने कैबिनेट बाई-सर्कुलेशन के जरिये जयप्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड से गलत ढंग से हस्तांतरित करीब 2500 एकड़ वनभूमि वापस लेकर वनविभाग को सौंपने की अधिसूचना जारी करने का दावा किया था। 
गौरतलब है कि करीब आठ साल पहले जेपी समूह की सहयोगी कंपनी जेएएल ने उत्तर प्रदेश राज्य सीमेंट निगम को करीब 459 करोड़ रुपये में खरीदा था। उसी की आड़ में उसने वनभूमि पर आबंटित खनन पट्टों को स्थानीय अधिकारियों से मिलकर अपने नाम करा लिया। जांच रिपोर्टों के मुताबिक ओबरा वन प्रभाग के तत्कालीन वन बंदोबस्त अधिकारी वीके श्रीवास्तव ने जय प्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड की ओर से भारतीय वन अधिनियम की धारा-9 और 11 के तहत दाखिल सात मामलों में भारतीय वन अधिनियम की धारा-4 के तहत अधिसूचित 1083.231 हेक्टेयर वनभूमि कंपनी के पक्ष में निकाल दी। इसमें 253.176 हेक्टेयर भूमि में कैमूर वन्यजीव विहार की शामिल थी। वीके श्रीवास्तव ने 1987 में भारतीय वन अधिनियम की धारा-20 के तहत अधिसूचित 399.51 हेक्टेयर संरक्षित वन क्षेत्र में से इस 230.844 हेक्टेयर वन भूमि को भी जय प्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड के पक्ष में गैरकानूनी ढंग से निकाल दिया जिसकी पुष्टि उच्चतम न्यायालय के आदेश के तहत अतिरिक्त जिला न्यायाधीश ने भी नहीं की थी। 
केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की जांच रिपोर्ट के अंशों पर गौर करें तो वीके श्रीवास्तव उपरोक्त मामलों की सुनवाई नहीं कर सकते थे। वे केवल उन 12 गांवों के मामले की सुनवाई कर सकते थे, जिसके लिए राज्य सरकार ने 21 जुलाई, 1995 को जारी आदेश में सहायक अभिलेख अधिकारी शिव बक्श लाल को विशेष वन बंदोबस्त अधिकारी, सोनभद्र नियुक्त किया था। हालांकि इसके लिए भी शासन की ओर से उनकी नियुक्ति होनी चाहिए थी।
वीके श्रीवास्तव के फैसले के खिलाफ उत्तर प्रदेश वन विभाग के प्रमुख वन संरक्षक ने राज्य सरकार को पत्र लिखकर उच्च न्यायालय, इलाहाबाद में अपील करने की राय मांगी लेकिन तत्कालीन बसपा सरकार ने ऐसा करने से साफ मना कर दिया। उत्तर प्रदेश सरकार के तत्कालीन सचिव पवन कुमार ने 12 सितंबर, 2008 को वन विभाग के प्रमुख वन संरक्षक को पत्र संख्या-3792/14-2-2008 के माध्यम से राज्य सरकार के निर्णय से अवगत भी कराया और सोनभद्र में भारतीय वन अधिनियम की धारा-20 के तहत विज्ञप्ति जारी किए जाने हेतु दो दिनों के अंदर आवश्यक प्रस्ताव शासन को भेजने का निर्देश दिया। उत्तर प्रदेश सरकार के सचिव (वन) ने 25 नवंबर, 2008 को अधिसूचना जारी कर सोनभद्र में भारतीय वन अधिनियम की धारा-20 के तहत शासकीय दस्तावेजों में वन क्षेत्र को कम कर दिया। इसमें जय प्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड के पक्ष में निकाली गई वन भूमि भी शामिल थी। 
इतना ही नहीं अपनी कारगुजारियों को कानूनी जामा पहनाने के लिए उत्तर प्रदेश की तत्कालीन बसपा सरकार ने उच्चतम न्यायालय में लंबित जनहित याचिका (सिविल)-202/1995 में अपील दाखिल कर जय प्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड के पक्ष में विवादित खनन लीज का नवीनीकरण करने के लिए अनुमति मांगी। साथ ही उसने उप्र सरकार द्वारा 25 नवंबर, 2008 को भारतीय वन अधिनियम की धारा-20 के तहत जारी अधिसूचना की पुष्टि करने का अनुरोध किया। उच्चतम न्यायालय ने मामले में उच्च प्राधिकार समिति (सीईसी) से रिपोर्ट तलब की। जवाब में सीईसी के तत्कालीन सदस्य सचिव एमके जीवराजका ने 10 अगस्त, 2009 को उच्चतम न्यायालय के रजिस्ट्रार के पास अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। बाद में यह मामला राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) को स्थानांतरित हो गया। 

केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय और सीईसी ने भूमि हस्तांतरण की पूरी प्रक्रिया को गलत बताया था। दोनों ने अदालत में कहा कि ये जमीन जंगल की है। इसको किसी और काम के लिए नहीं दिया जा सकता। वर्ष 2012 में राज्य सरकार बदल गई। उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में बसपा सरकार के फैसले का विरोध किया। उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त महाधिवक्ता शमशाद और अभिषेक चौधरी ने एनजीटी में यूपी सरकार का पक्ष रखा और कहा, 'ये जंगल की जमीन है और किसी और काम के लिए नहीं दी जा सकती। जमीन की लीज जेपी को दिए जाने का पूर्व सरकार का फैसला बिल्कुल गलत है।'

इस मामले की जांच करने वाले केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के क्षेत्रीय कार्यालय (मध्य क्षेत्र), लखनऊ के तत्कालीन वन संरक्षक वाईके सिंह चौहान, अब अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक (विकास) वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, झारखंड सरकार, से बात की गई तो उन्होंने कहा, ‘आज यह खबर सुनकर बड़ी राहत मिली है। पूरी सर्विस के दौरान मैंने यह सबसे महत्वपूर्ण कार्य किया है। उद्योगपतियों ने साजिश रचकर वनभूमि को हड़प लिया है जो गरीबों और आदिवासियों के काम आता। इस मामले में स्थानीय जनता का भरपूर सहयोग मिला। जांच के दौरान उन्होंने एक-एक गाटे की सूचना और कागजात मुहैया कराये। इस मामले में राज्य सरकार के कुछ अधिकारियों ने जेपी समूह के एजेंट के रूप में कार्य किया है। उन्हें एनजीटी के आदेश और विंध्याचल मंडलायुक्त की जांच आख्या की संस्तुति के आधार पर दंड जरूर मिलना चाहिए। साथ ही इस मामले में लापरवाही बरतने वाले प्रशासनिक अधिकारियों के साथ-साथ वन-विभाग और राजस्व विभाग के अधिकारियों की भूमिका की भी जांच होनी चाहिए और उन्हें दण्डित किया जाना चाहिए। साथ ही जेपी समूह से जल्द से जल्द वनभूमि वापस लेकर उससे राजस्व क्षति की वसूली की जानी चाहिए।’

जनहित याचिका के माध्यम से इसे उच्चतम न्यायालय में उठाने वाले चंदौली जनपद के शमशेरपुर गांव निवासी बलराम सिंह उर्फ गोविंद सिंह का कहना है कि उद्योगपतियों और उत्तर प्रदेश की सरकार की मिलीभगत से वनभूमि को लूटने के मामले में एनजीटी ने न्याय किया है। इसका आदिवासियों और गरीबों के साथ पर्यावरण को भी लाभ मिलेगा। 

ये भी पढ़ें-


जेपी समूह को 409 करोड़ माफ (भाग-6) 

एनजीटी के आदेश को पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें-

मंगलवार, 3 मई 2016

CCC के समकक्ष मानी जाएगी कम्प्यूटर साइंस की शिक्षा

कार्मिक अनुभाग के प्रमुख सचिव ने सी.सी.सी प्रमाण-पत्र की समकक्षता के संबंध में जारी किया निर्देश। केंद्र और राज्य सरकार द्वारा मान्य हाईस्कूल स्तर पर कम्यूटर साइंस की शिक्षा हासिल करने वाले अभ्यर्थी भी हैं पात्र।

वनांचल न्यूज नेटवर्क


लखनऊ। उत्तर प्रदेश सरकार ने सरकारी विभागों में कनिष्ठ सहायक और आशुलिपिक पदों पर चयन के लिए आवश्यक डी.ओ.ई.ए.सी.सी (अब एऩ.आई.ई.एल.आई.टी.) सोसाइटी के सी.सी.सी प्रमाण-पत्र की समकक्षता के संबंध में स्पष्ट निर्देश जारी कर दिया है। कार्मिक अनुभाग-2 के प्रमुख सचिव ने समस्त प्रमुख सचिवों/सचिवों को निर्देश जारी कर कहा है कि कम्प्यूटर साइंस में डिप्लोमा अथवा डिग्री प्राप्त अभ्यर्थी भी कनिष्ठ सहायक अथवा आशुलिपिक के पद पर होने वाली भर्तियों के लिए पात्र होंगे।

इतना ही नहीं, माध्यमिक शिक्षा परिषद उत्तर प्रदेश के साथ-साथ केंद्र अथवा किसी राज्य सरकार द्वारा स्थापित किसी संस्था (बोर्ड अथवा परिषद) की ओर से ली जाने वाले हाई स्कूल और इंटरमीडिएट परीक्षा में एक विषय के रूप में कंप्यूटर साइंस का प्रमाण-पत्र प्राप्त करने वाला व्यक्ति भी कनिष्ठ सहायक अथवा आशुलिपिक के पदों पर होने वाली भर्ती के लिए अब पात्र होगा। उत्तर प्रदेश सरकार ने कंप्यूटर साइंस में ऐसे प्रमाण-पत्रों, डिप्लोमा और डिग्री को डी.ओ.ई.ए.सी.सी. सोसाइटी के सी.सी.सी. प्रमाण-पत्र के समकक्ष माना है। 

कार्मिक अनुभाग के प्रमुख सचिव किशन सिंह अटोरिया ने राज्य सरकार के अधीन समस्त विभागों के प्रमुख सचिवों और सचिवों को आज पत्र जारी कर इस संबंध में कार्रवाई सुनिश्चित कराने का निर्देश दिया है। साथ ही उन्होंने ऐसे आठ संस्थाओं की सूची जारी की है जो माध्यमिक शिक्षा परिषद उत्तर प्रदेश की ओर से मान्य नहीं हैं। ऐसी संस्थाओं में हिन्दी साहित्य सम्मेलन, इलाहाबाद द्वारा संचालित प्रथमा/मध्यमा(विशारद) परीक्षा का नाम भी शामिल है। 


माध्यमिक शिक्षा परिषद उत्तर प्रदेश से गैर-मान्यता प्राप्त संस्थाओं की सूची


(1) हिन्दी साहित्य सम्मेलन, इलाहाबाद द्वारा संचालित प्रथमा/मध्यमा(विशारद) परीक्षा।
(2) बोर्ड ऑफ हायर सेकेंडरी एजुकेशन, दिल्ली की हायर सेकेण्डरी परीक्षा।
(3)गुरुकुल विश्वविद्यालय वृंदावन मथुरा की अधिकारी परीक्षा।
(4) बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन, मध्य बारत, ग्वालियर द्वारा संचालित हाईस्कूल तथा इंटरमीडिएट परीक्षा।
(5) भारतीय माध्यमिक शिक्षा परिषद, भारत।
(6) भारतीय शिक्षा परिषद, उत्तर प्रदेश।
(7) बोर्ड ऑफ हायर सेकेण्डरी एजुकेशन की हायर सेकेण्डरी प्राविधिक परीक्षा।
(8) माध्यमिक शिक्षा परिषद, दिल्ली की हाईस्कूल परीक्षा।

नोटः शासनादेश पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करेंः-

डी.ओ.ई.ए.सी.सी. सोसाइटी के सी.सी.सी. प्रमाण-पत्र की समक्षता निर्धारित करने के लिए जारी शासनादेश।

रविवार, 1 मई 2016

मजदूर दिवस विशेषः ‘श्रम सुधार‘ नहीं, श्रमिक अधिकार के लिए लड़ना होगा


by दिनकर कपूर

सोनभद्र जनपद हमारे प्रदेश का प्रमुख औद्योगिक केन्द्र है। यहां अनपरा, ओबरा, लैन्को, आदित्य बिड़ला ग्रुप की रेनूसागर, एनटीपीसी की बीजपुर और शक्तिनगर की तापीय परियोजनाओं, आदित्य बिरला ग्रुप के हिण्डाल्को एल्यूमीनियम कारखाना, हाईटेक कार्बन, कैमिकल प्लांट समेत कोयला की बीना, ककरी, खड़िया खदानों और जेपी समूह के चुर्क व डाला सीमेन्ट कारखानों में हजारों ठेका श्रमिक कार्यरत है। पहले इनमें से अधिकतर उद्योगों में मजदूर कैजुअल की श्रेणी में रखे जाते थे, जिन्हें बाद में नियमित कर दिया जाता था और प्रबंधतंत्र के नियंत्रण में उनका कामकाज होता था। 1990 के बाद उदारीकरण के पच्चीस साल की कथित विकास यात्रा ने खेती, लघु उद्योग को तबाह कर दिया और बड़े पैमाने पर रोजगार के संकट को पैदा किया है। रोजगार संकट के इस दौर में लोगों की मजबूरी का फायदा उठाते हुए ठेकेदारी प्रथा चलायी गयी। इन्हीं नीतियों के बाद से इस क्षेत्र में भी ठेकेदारी प्रथा शुरू कर दी गयी जबकि इन उद्योगों में ठेकेदारी प्रथा की कतई जरूरत नहीं थी।
आज भी खासतौर पर अनपरा, रेनूसागर और ओबरा में काम कर रहे ठेका मजदूरों की निगरानी और उनसे काम कराने का कार्य प्रबंधतंत्र ही करता है। ठेकेदार तो महज उद्योग में मजदूरों की सप्लाई करते हैं और इस काम की मोटी रकम वसूलते है। इससे उद्योग के साथ मजदूर का भी नुकसान होता है। बिना जरूरत के चलाई जा रही ठेकेदारी प्रथा का कारण साफ है ठेकेदारी प्रथा द्वारा संस्थाबद्ध भ्रष्टाचार का लाभ उठाना और सस्ते लेबर से काम कराकर अकूत मुनाफा कमाना। वस्तुगत सच्चाई यह है कि यहां ठेका श्रमिक लम्बे समय से एक ही जगह काम कर रहे है। 20 साल से एक ही पद पर काम करने वाला मजदूर ठेका मजदूर रह ही नहीं सकता है। ठेका श्रम (विनियमन एवं उन्मूलन) अधिनियम की धारा 10 की विधिक स्थिति यह है कि कार्य की स्थायी प्रकृति के निर्धारण का अंतिम अधिकार राज्य सरकार के पास है। बाबजूद इसके प्रदेश में बनी विभिन्न दलों की सरकारों ने अपने इस विधिक अधिकार का उपयोग करके ठेका मजदूरों को नियमित नहीं किया। हालत इतनी बुरी है कि अनपरा और ओबरा तापीय परियोजना के ठेका मजदूरों के नियमितीकरण के लिए आइपीएफ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की जिसमें उ0 प्र0 सरकार को हाईकोर्ट ने इसे लागू करने का आदेश दिया पर मायावती और अखिलश दोनों सरकारों ने हाईकोर्ट के आदेश का अनुपालन नहीं किया परिणामतः हमें अवमानना याचिका दायर करना पड़ी, जिसमें हाईकोर्ट ने उ0 प्र0 सरकार से जबाब तलब किया है।
 इस औद्योगिक क्षेत्र में कानून का शासन नहीं है। श्रम कानूनों द्वारा प्रदत्त न्यूनतम मजदूरी, रोजगार कार्ड, हाजरी कार्ड, बोनस और वेतन पर्ची समेत तमाम अधिकार अभी भी मजदूरों को कई उद्योगों में नहीं मिलते है। हालत इतनी बुरी है कि महिला संविदा श्रमिकों को तो मनरेगा मजदूरी से भी कम में मात्र 120-150 रूपए में मजदूरी करनी पड़ रही है। मजदूरों की भविष्य निधि की बड़े पैमाने पर लूट हुई है। यहां तक कि रेनूकूट के अलावा अन्य औद्योगिक क्षेत्रों में ईएसआई (कर्मचारी राज्य बीमा) के अस्पताल तक नहीं है और परियोजनाओं के अस्पतालों में ठेका मजदूरों को स्थायी कर्मचारी की तरह इलाज की सुविधा नहीं मिलती है। इस क्षेत्र में जहां लाखों औद्योगिक श्रमिक रहते है वहां उनके इलाज की हालत को एक घटना से समझा जा सकता है। विगत दिनों हमारे एक ठेका मजदूर साथी की पत्नी की तबीयत खराब हुई तो उन्हें रात में अनपरा तापीय परियोजना के अस्पताल में भर्ती किया गया। उस अस्पताल की स्थिति यह थी कि वहां न्यूनतम सुविधाएं भी नहीं थी। बीपी की मशीन से लेकर अल्ट्रा साउंड तक कि मशीने खराब पड़ी हुई थी। साथी की पत्नी की हालत खराब होने पर उन्हें लेकर नेहरू अस्पताल जयंत गए जहां भी सिटीस्कैन तक की व्यवस्था नहीं थी और इस पूरे जिले में एक भी न्यूरों का डाक्टर नहीं है। परिणामस्वरूप उन्हें रात में ही बीएचयू ले जाना पड़ा। बनारस ले जाते समय एम्बुलेंस के ड्राइवर ने बताया कि महान में बिरला के तापीय विद्युत उत्पादन परियोजना और सासन में अम्बानी के तापीय विद्युत उत्पादन परियोजना में कोई अस्पताल ही नहीं है। वहां मात्र एक ऐम्बुलेंस रखी गयी है जो मरीजों को जयंत नेहरू अस्पताल लाती है। 
सोनभद्र में खनन वह दूसरा क्षेत्र है जहां बड़े पैमाने पर मजदूर कार्यरत है। यह खनन क्षेत्र मौत की धाटी में तब्दील हो चुका है। यह अवैध खनन का कारोबार माननीय सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालय के आदेशों और कानूनों की धज्जियां उड़ाते हुए हो रहा है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने स्पेशल लीव पेटिशन सीनम्बर 19628-19629 में उत्तर प्रदेश सरकार को आदेश दिया है कि ‘5 हेक्टेयर से कम रक्बे में बिना पर्यावरणीय अनुमति के कोई खनन नहीं किया जायेगा।बाबजूद इसके पर्यावरणीय अनुमति लिए बिना जनपद में खनन जारी है। इसी प्रकार गोवा फाउंडेशन के केस में सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा आदेश दिया गया है कि जिन सेचुंरी एरिया का नोटिफीकेशन हुआ है वहां 1 किलोमीटर और जहां नोटिफीकेशन नहीं हुआ है वहां 10 किलोमीटर एरिया में खनन न हो। गौरतलब हो कि कैमूर सेंचुरी एरिया का नोटिफीकेशन नहीं हुआ है फिर भी इसकी 10 किलोमीटर की परिधि में खनन जारी है। हाल ही में सोनभद्र निवासी ओम प्रकाश की जनहित याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पुनः आदेश दिया है कि कैमूर सेचुंरी एरिया से एक किलोमीटर की परिधि में खनन न होने दिया जाए। पर यहां हालत इतनी बुरी है कि कैमूर सेचुंरी एरिया के अंदर पटवध गांव में मुरया पहाड़ी पर राकेश गुप्ता खुलेआम खनन करा रहे है और खनन में ब्लास्टिंग हो रही है। सलखन गांव में सेचुंरी एरिया में ही आर0 बी0 स्टोन क्रशर के नाम से उनका क्रशर चल रहा है। खान विनियम 1961 के अनुसार सड़क, रेलवे टैª, रिहाइशी इलाकों की 300 मीटर की परिधि के अंदर विस्फोटकों का प्रयोग नहीं हो सकता परन्तु बारी डाला में वाराणसी-शक्तिनगर मुख्य मार्ग से महज 100 मीटर की दूरी पर रिहाइशी क्षेत्र में खनन में बड़े पैमाने पर विस्फोट हो रहा है। जिससे मकानों में दरार पड़ गयी है। केन्द्रीय वन और पर्यावरण मंत्रालय ने तो अपनी रिपोर्ट में बिल्ली मारकुंड़ी के पूरे क्षेत्र में हो रहे खनन को अवैध माना था और यहां तक कहा कि यह क्षेत्र खनन के लिहाज से खतरनाक क्षेत्र में तब्दील हो चुका है। इस क्षेत्र में इतना गहरा खनन कर दिया गया जिसमें जमीन से पानी निकल आया है। कहीं भी खनन के बाद बैक फीलिंग, बेंच आदि काम नहीं हुआ है। जनपद में नदियों तक को बंधक बना लिया गया है उनकी धार को रोक कर पुल बना दिए गए है। जनपद में खनन में न्यूनतम खान सुरक्षा नियमों का भी पालन नहीं हो रहा है। खनन में बड़े पैमाने पर विस्फोटकों का प्रयोग होता है उसका कोई रिकार्ड नहीं रखा जाता है और खनन मालिक विधिवत योग्यता प्राप्त ब्लास्टर भी नहीं रखते है। खान सुरक्षा निदेशालय के निर्देशों के बाबजूद मजदूरों को सुरक्षा उपकरण नहीं दिए जाते, उनका कोई रिकार्ड नहीं रखा जाता, खनन कार्य में लगे मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी, बीमा, ईपीएफ, हाजरी कार्ड, बोनस भी नहीं दिया जाता और भवन व संनिर्माण मजदूर कानून के तहत खनन मजदूरों के आने के बाद भी उनका पंजीकरण नहीं हुआ है। इसी प्रकार के अवैध खनन के कारोबार के कारण यहां कार्यरत मजदूरों और आम नागरिकों की जिदंगी खतरे में रहती है आएं दिन मजदूरों की खनन क्षेत्र में मौतें होती रहती है और पिछले 6 माह में खनन क्षेत्र में 22 मजदूरों की मौतें हो चुकी है। मजदूरों की मौतों पर हर बार प्रतिवाद दर्ज कराने के बाद भी प्रशासन ने कोई कार्यवाही नहीं की। ऐसी स्थिति में आने वाले समय में खनन में और भी मजदूरों की मौतें होंगी।  
खनन का दूसरा बड़ा क्षेत्र है एनसीएल की कोयला खदानें जिसमें में काम करने वाले संविदा श्रमिक ज्यादातर आउटसोर्सिगं के काम में नियोजित है। कोयला कामगारों से हुए समझौतें में भारत सरकार ने माना था कि आउटसोर्सिगं में काम करने वाले श्रमिकों को उस पद पर नियोजित स्थायी श्रमिक के वेतन और राज्य सरकार द्वारा तय उस श्रेणी की न्यूनतम मजदूरी के योग के मध्यमान के बराबर मजदूरी का भुगतान किया जायेगा पर कहीं भी इस समझौतें का अनुपालन नहीं हो रहा है। इन मजदूरों को भी बोनस समेत तमाम अधिकार नहीं मिलते।
जहां इस क्षेत्र में कई यूनियनों/मजदूर नेताओं या तो आत्म समर्पण कर दिया है अथवा समझौता कर लिया है वहीं आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट (आइपीएफ) से जुड़ी यूनियनों ने पूंजी की संगठित ताकत के खिलाफ लगातार संघर्ष किया। मजदूर तबके पर जारी चैतरफा हमलों के खिलाफ अपने संघर्ष के बल पर ही मजदूरों का मनोबल बनाये रखने में सफल हुई और मजदूर वर्ग में नयी जागृति को पैदा किया। आज जिस तरह से संकटग्रस्त पूंजी अपनी रक्षा के लिए श्रम सुधारके नाम पर मजदूरों के अधिकारों पर हमले कर रही है। मजदूर वर्ग को मजबूती से अपने अधिकारों की रक्षा के लिए खड़ा होना है, इन हालातों को बदलना होगा और अपने सभी अधिकारों को हासिल करना होगा। इस बार मई दिवस का यही संदेश है।
(लेखक आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट (आइपीएफ)  के प्रदेश संगठन महासचिव हैं।)
 




शनिवार, 30 अप्रैल 2016

अवैध खनन और शराबबंदी जैसे जनमुद्दों के साथ विधानसभा चुनाव में उतरेगी सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया)


वनांचल एक्सप्रेस नेटवर्क

वाराणसी। अवैध खनन पर रोक, शराबबंदी, पेप्सी और कोकाकोला प्लांटों की बंदी, सरकारी विद्यालयों में जनप्रतिनिधियों और नौकरशाहों के बच्चों की अनिवार्य रूप से कराने जैसे जनमुद्दों के साथ सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया) विधानसभा चुनाव-2017 में उतरेगी। साथ ही वह विधानसभा चुनाव में आधे से ज्यादा सीटों पर महिलाओं को उम्मीदवार बनाएगी। सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया) के उपाध्यक्ष संदीप पांडे ने पत्रकारवार्ता के दौरान ये बाते कहीं। 

मैदागीन स्थित पड़ारकर भवन के सभागार में आयोजित प्रेस वार्ता में उन्होंने कहा कि सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया) आगामी उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव शराबबंदी के मुद्दे पर लड़ेगी। यदि उसकी सरकार बनती है तो पूरे प्रदेश में तत्काल प्रभाव से शराब पर रोक लगाई जाएगी। शराबबंदी के खिलाफ तमाम तर्क होते हुए भी चूंकि यह मुद्दा महिलाओं की प्राथमिकता है इसलिए पार्टी ने उसे लिया है। सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया) की ओर से चुनाव में आधी से ज्यादा उम्मीदवार महिलाएं होंगी और सरकार बना पाने की स्थिति में मुख्य मंत्री महिला होगी और आधे से ज्यादा विभागों की जिम्मेदारी भी महिलाओं के पास होगी।

इसके अलावा सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया) इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 18 अगस्त, 2015 के आदेश कि सभी सरकारी वेतन पाने वालों व जन प्रतिनिधियों के बच्चों का सरकारी विद्यालयों में पढ़ना अनिवार्य किया जाए को भी लागू करेगी। उ.प्र. सरकार को इस आदेश को छह माह में लागू करना था किंतु उसने अभी तक कोई कार्यवाही नहीं की है। मुख्य मंत्री शिक्षा मित्रों से तो पूछते हैं कि उनके बच्चे में सरकारी विद्यालयों में पढ़ते हैं अथवा नहीं किंतु आई.ए.एस. अफसरों से नहीं पूछते। सभी को सरकारी नौकरी चाहिए, सरकारी घर चाहिए, सरकारी गाड़ी चाहिए व अन्य सरकारी सुविधाएं चाहिएं लेकिन सरकारी विद्यालय और सरकारी अस्पताल नहीं चाहिए। ऐसा क्यों है?

वाराणसी में खासतौर पर वर्तमान में गहराते पानी के संकट को देखते हुए राजा तालाब क्षेत्र में स्थित कोका कोला संयंत्र को बंद कराया जाएगा। जून 2014 में उ.प्र. प्रदूषण नियंत्रण बार्ड के आदेश से यह संयंत्र बंद हो गया था किंतु मोदी सरकार के आन ेके बाद पर्यावरण संबंधी मानकों में शिथिलता बरतने के परिणामस्वरूप प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अपना आदेश वापस ले लिया। केन्द्रीय भूगर्भ जल संरक्षण आयोग ने अब अराजी लाइन विकास खण्ड जहां यह संयंत्र स्थित है को अति दोहित श्रेणी में घोषित कर दिया है। अतः यह आवश्यक हो गया है कि कोका कोला, मेहदीगंज संयंत्र बंद हो। सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया) की यदि सरकार बनती है तो सभी पेप्सी व कोका कोला के संयंत्र बंद कराए जाएंगे। मिर्जापुर जिले के अहरौरा क्षेत्र में जो अवैध पत्थरों का खनन व पहाड़ों में विस्फोट चल रहा है उसे बंद कराने को मुद्दा भी सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया) उठा रही है। पार्टी की ओर से पिछले वर्ष अप्रैल में वाराणसी से राबर्ट्सगंज की चार दिवसीय पदयात्रा की गई थी। जब तक वरुणा व असि नदियों तथा वाराणसी के आधे से ज्यादा तालाबों, जिन पर भू माफियाओं का कब्जा हो गया है, को पुनर्जीवित नहीं किया जाएगा तब तक गंगा की सफाई एक सपना ही रहेगी चाहे इसपर हम जितना भी पैसा क्यों न खर्च कर लें। सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया) इन छोटी नदियों व तालाबों को पुनर्जीवित कराएगी।


वाराणसी में पथ विक्रेताओं के लिए पिछली केन्द्र सरकार द्वारा बनाए गए अधिनियम के तहत अभी तक न तो लाइसेंस मिले हैं और न ही जगह आवंटित हुई है। परिणामस्वरूप जब भी प्रधान मंत्री का आगमन शहर में होता है से पथ विक्रेता हटा दिए जाते हैं। इनकी आजीविका संकट न पड़े इसके लिए सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया) अपूर्ण कार्य को पूरा कराएगी। सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया) की ओेर से सेवापुरी विधान सभा क्षेत्र से उर्मिला पटेल, रोहनिया से धर्मा देवी, शिवपुर से कमर जहां और चुनार से उर्मिला विश्वकर्मा उम्मीदवार होंगी। पत्रकार वार्ता को डा संदीप पाण्डेय ने संबोधित किया, इस अवसर पर चिंतामणि सेठ, विनय सिंह, प्रदीप सिंह, वैभव पाण्डेय, डा आनंद प्रकाश तिवारी, उर्मिला , प्रेम कुमार सोनकर आदि उपस्थित रहे.

दलितों की झोपड़ियां फूंकने के मामले में विधायक नारद राय की भूमिका की जांच के लिए चला हस्ताक्षर अभियान

भाकपा(माले), आईपीएस और रिहाई मंच के हस्ताक्षर अभियान के तीसरे दिन 500 से ज्यादा लोगों ने किया समर्थन।

वनांचल न्यूज नेटवर्क

बलिया। जिले के शिवपुर दीयर गांव में आगजनी और हिंसा के शिकार दलितों और आदिवासियों को न्याय दिलाने रिहाई मंच और भाकपा मामले समेत कई जनसंगठनों ने अभियान छेड़ दिया है। इन संगठनों के कार्यकर्ताओं ने आगजनी और हिंसा के लिए जिम्मेदार लोगों को दण्ड दिलाने के लिए इलाके में हस्ताक्षर अभियान शुरू कर दिया है जो 2 मई को जिले के दौरे पर आ रहे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को सौंपा जाएगा। हस्ताक्षर अभियान के तीसरे दिन स्थानीय रेलवे स्टेशन के पास करीब 500 लोगों ने हस्ताक्षर कर उनकी मांगों का समर्थन किया। संगठन के कार्यकर्ताओं का आरोप है कि सदर विधायक नारद राय और उनके समर्थकों ने दलितों की झोपड़ियों में आग लगाया और हिंसा की जिसमें दर्जनों लोग बुरी तरह से घायल हो गए और लाखों की सम्पत्ति का नुकसान हुआ।


रेलवे स्टेशन पर चलाए गए हस्ताक्षर अभियान में आज लगभग 500 लोगों ने अभियान के मांग पत्र से सहमति जताते हुए हस्ताक्षर किए। इस दौरान हुई सभा को सम्बोधित करते हुए इंडियन पिपुल्स सर्विसेज के अरविंद गोंड, भाकपा माले के लक्ष्मण यादव और रिहाई मंच के मंजूर आलम और डॉ अहमद कमाल ने स्टेशन पर एकत्रित लोगों से इस हस्ताक्षरा अभियान में बढ़-चढ़ कर शामिल होने का आह्वान किया। नेताओं ने कहा कि 2 मई को जिले के दौरे पर आ रहे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को शिवपुर दीयर के दलितों, आदिवासियों के घर जलाने वालों को पुलिस कप्तान मनोज कुमार झा और नारद राय द्वारा बचाने के आपराधिक कृत्य को उजागर करने वाला जांच रिपोर्ट भी सौंपा जाएगा। 

नेताओं ने कहा कि आगजनी और जानलेवा हमले से पहले ही 11 मार्च 2016 को पीडि़तों ने एसपी और डीएम को लिखित में सूचना दी थी कि दबंग उनको जिंदा जला देने की धमकी दे रहे हैं लेकिन पुलिस प्रशासन ने नारद राय के दबाव में काम करने के कारण फरियादियों की कोई मदद नहीं की। यहां तक कि घटना के बाद घटना स्थल पर पहुंचे एसपी ने खुद वहां से कारतूस के दो खोखे बरामद किए लेकिन एफआईआर में इस तथ्य को जानबूझ कर गायब कर दिया गया ताकि केस कमजोर हो जाए। नेताओं ने कहा कि समाजवाद के नाम पर वोट पाकर जीते सदर विधायक का अब तक अपराध स्थल तक नहीं जाना, पीडि़तों को मुआवजा नहीं मिलना साबित करता है कि सपा सरकार सवर्ण और सामंतों की हितों की रक्षा में अपने संवैधानिक कर्तव्य तक भूल गई है। 

उन्होंने कहा कि अपनी सभाओं में दिनेश लाल यादव निरहुआ जैसे अश्लील भोजपूरी गायकों के जरिए भीड़ इकठ्ठा करने वाले युवा मुख्यमंत्री को अपने विधायक के जुल्म से पीडि़त गोंड़, खरवार, पासी और पासवानों के घर भी जाना चाहिए जो खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर हैं। इस दौरान गोपाल जी खरवार, रोशन अली, सुरेश शाह, मनोज शाह, रंजीत कुमार गोंड़, सुशील गोंड़, भरत गोंड़, मिथिलेश पासवान, मुन्ना पासी, शिवशंकर खरवार, रामसेवक खरवार, चंद्रमा गोंड़, मनोज गोंड़ आदि प्रमुख रूप से मौजूद रहे।

शुक्रवार, 29 अप्रैल 2016

जेपी-बिड़ला की कारोबारी बिसात पर अखिलेश का सियासी दांव

जेएएल पिछले करीब आठ सालों से 2500 एकड़ से ज्यादा संरक्षित वन भूमि पर अवैध खनन और गैर-वानिकी गतिविधियां संचालित कर रही है और इसकी पुष्टि विंध्याचल मंडलायुक्त और केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की जांच रिपोर्टों में भी हो चुकी है। इसके बावजूद सूबे की सत्ता में पिछले चार सालों से काबिज अखिलेश सरकार ने इस मामले में कोई तत्परता नहीं दिखाई और ना ही उसने उन जांच रिपोर्टों पर कार्रवाई की। जब जेपी समूह ने डाला सीमेंट फैक्ट्री, जिसके अधीन विवादित करीब 2500 एकड़ वनभूमि वाले खनन-पट्टे आते हैं, को आदित्य बिड़ला समूह की अल्ट्रोटेक सीमेंट कंपनी को बेच दिया तो राज्य सरकार इस वनभूमि को वापस लेने के लिए तत्परता दिखा रही है...


जेपी पर मेहरबानी, बिड़ला की परेशानी

by शिव दास

त्तर प्रदेश में उद्योगपतियों का सियासी गठजोड़ नया रंग लेने लगा है। हाल ही में सत्ताधारी समाजवादी पार्टी सरकार के मुखिया अखिलेश यादव ने जेपी समूह को उत्तर प्रदेश राज्य सीमेंट निगम की जायजात के नाम पर दी गई 2500 एकड़ वनभूमि को उससे वापस लेने की घोषणा की। इस संबंध में उन्होंने उसे नोटिस जारी करने का दावा भी किया। पंचम तल में तैनात अधिकारियों के हवाले से मीडिया में आई खबरों पर यकीन करें तो राज्य सरकार इस मामले की जांच के लिए चार विभागों के प्रमुख सचिवों की जांच कमेटी बना रही है जो जेपी समूह को गलत ढंग से 2500 एकड़ वनभूमि देने के मामले की जांच करेगी और इसके लिए दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की संस्तुती भी करेगी। आगामी कुछ दिनों में इसकी अधिसूचना जारी होने की संभावना है। सोनभद्र में जेपी समूह की सहयोगी कंपनी जयप्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड (जेएएल) को गलत ढंग से करीब 2500 एकड़ वनभूमि आबंटित करने के मामले में राज्य की अखिलेश सरकार की यह तत्परता अनायास नहीं है। सर्वविदित है कि ऐसे मामलों में उद्योगपतियों का सियासी गठजोड़ काम करता है। इस मामले में भी कुछ ऐसा दिखाई दे रहा है। इसे समझने के लिए जेपी समूह की सहयोगी कंपनी जयप्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड और आदित्य बिड़ला समूह की सहयोगी कंपनी अल्ट्राटेक सीमेंट लिमिटेड के बीच हुए हालिया करारों पर गौर करने की जरूरत है।

जेपी समूह की गैर-कानूनी गतिविधियों के खिलाफ जुलूस निकालते डाला दलित बस्ती के लोग। (फाइल फोटो)

भारत की सबसे बड़ी सीमेंट कंपनी का दावा करने वाली अल्ट्राटेक सीमेंट लिमिटेड के कंपनी सचिव एसके चटर्जी ने 28 फरवरी 2016 को बीएसई लिमिटेड को पत्र लिखकर सूचना दी है कि कंपनी ने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में 22.4 एमटीपीए (मिलियन टन प्रति वर्ष) क्षमता वाली जयप्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड (जेपी सीमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड और जेपी पॉवर वेंचर्स लिमिटेड समेत) की कुल 12 सीमेंट इकाइयों के अधिग्रहण के समझौते (एमओयू) पर हस्ताक्षर किया है। इसमें सोनभद्र के डाला स्थित जयप्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड की 2.1 एमटीपीए क्लिंकर और 0.5 एमटीपीए सीमेंट उत्पादन क्षमता वाली एकीकृत डाला यूनिट के साथ कोटा स्थित 2.3 एमटीपीए क्लिंकर उत्पादन क्षमता वाली जेपी सुपर यूनिट (उत्पादनहीन) भी शामिल है। जेपी ग्रुप की महाप्रबंधक (कॉर्पोरेट कम्यूनिकेशन) मधु पिल्लई ने भी उक्त तिथि को जारी अपनी प्रेस रिलीज में इस बात की पुष्टि की है। सुश्री पिल्लई ने लिखा है कि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में कंपनी की 18.40 एमटीपीए क्षमता वाली उत्पादनरत इकाइयों के लिए अल्ट्राटेक सीमेंट लिमिटेड से कुल 16,500 करोड़ रुपये में करार हुआ है। इसके अलावा वह उत्तर प्रदेश में कार्यान्वयन की प्रक्रिया में फंसी एक ग्राइंडिंग यूनिट की मामला हल होने पर 470 करोड़ रुपये अलग से कंपनी को देगी। इस यूनिट का मामला खनिजों के खनन पट्टों के हस्तांतरण के नियमों की पेचिदगी की वजह से लटका पड़ा है जिसमें केंद्र सरकार संशोधन करने की तैयारी में है। 

उपरोक्त समझौते में ही सूबे की अखिलेश सरकार की तत्परता का राज छिपा है। हालांकि वह उच्चतम न्यायालय और राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) के दबाव और जेपी समूह द्वारा अवैध खनन करने का हवाला देकर इस सियासी राज को दबाये रखना चाहती है। मामले की जांच की आड़ में वह एक तरफ जेपी समूह को अधिग्रहण पूरा होने तक फायदा पहुंचाना चाहती है तो दूसरी ओर बिड़ला ग्रुप से उत्तर प्रदेश में अपना सियासी गठजोड़ साधना चाहती है। दरअसल अखिलेश सरकार जिस 2500 एकड़ वनभूमि को जेएएल से वापस लेने की घोषणा की है, वह अल्ट्राटेक सीमेंट लिमिटेड द्वारा अधिग्रहित की जाने वाली एकीकृत डाला सीमेंट फैक्ट्री और कोटा स्थित जेपी सुपर यूनिट से जुड़ी हुई है। इन इकाइयों के संचालन के लिए जरूरी लाइम स्टोन के खनन पट्टे अखिलेश सरकार द्वारा वापस ली जाने वाली वनभूमि पर ही स्थित हैं।  

अगर राज्य सरकार अपने दावे के अनुसार जेएएल से खनन पट्टों वाली कुल 2500 एकड़ वनभूमि वापस ले लेती है तो उसकी यह कार्रवाई बिड़ला ग्रुप की अल्ट्राटेक सीमेंट लिमिटेड के लिए परेशानी बन सकती है। अल्ट्राटेक को लाइम स्टोन के लिए अन्य प्रदेशों का रुख करना पड़ सकता है या फिर उसे इन खनन पट्टों को राज्य सरकार से नई शर्तों के साथ हासिल करना पड़ेगा जो आसान नहीं होगा। इन्हें हासिल करने के लिए उसे उच्चतम न्यायालय के साथ-साथ एनजीटी और केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय से अऩुमति लेनी होगी। साथ ही उसे एनपीवी के रूप में राज्य सरकार को अरबों रुपये देने होंगे।

दरअसल यह पूरा मामला उत्तर प्रदेश राज्य सीमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड (यूपीएससीसीएल) के अधीन चुर्क, डाला और चुनार सीमेंट फैक्ट्रियों की बिक्री और उसकी संपत्तियों के अधिग्रहण से जुड़ा हुआ है जो मिर्जापुर-सोनभद्र के जंगली और पहाड़ी इलाकों में स्थित हैं। नब्बे के दशक में कंपनी को करोड़ों रुपये का घाटा हुआ था। मामला उच्च न्यायालय पहुंचा। इसके आदेश पर 8 दिसंबर, 1999 को तीनों फैक्ट्रियों को बंद कर दिया गया और उनकी बिक्री के लिए ऑफिसियल लिक्विडेटर की तैनाती कर दी गई। वर्ष-2006 में यूपीएससीसीएल की संपत्तियों की वैश्विक निविदा में जय प्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड ने 459 करोड़ रुपये की सबसे बड़ी बोली लगाकर उसकी संपत्तियों को खरीद लिया। उच्च न्यायालय के आदेश की आड़ में उसने सूबे की सत्ता में काबिज नुमाइंदों और जिला प्रशासन की मिलीभगत से वनभूमि पर उत्तर प्रदेश राज्य सीमेंट निगम के नाम से आबंटित खनन पट्टों को गलत ढंग से अपने नाम करा लिया और उसपर कब्जा कर खनन करने लगा।

उद्योगपतियों और राजनीतिज्ञों के इस सियासी पैतरे को और बेहतर ढंग से समझने के लिए पूर्ववर्ती सपा सरकार के दौरान जेएएल को गलत ढंग से आबंटित की गई 1083.231 हेक्टेयर (करीब 2500 एकड़) वन भूमि की पूर्व जांच रिपोर्टों पर गौर करने की जरूरत है। विंध्याचल मंडल के तत्कालीन मंडलायुक्त सत्यजीत ठाकुर की ओर से गठित जांच कमेटी और केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के क्षेत्रीय कार्यालय (मध्य क्षेत्र), लखनऊ के तत्कालीन वन संरक्षक वाईके सिंह चौहान की जांच रिपोर्टें भी उक्त आरोपों की पुष्टि करती हैं।

उत्तर प्रदेश सरकार के राजस्व विभाग के प्रमुख सचिव के निर्देश पर विंध्याचल मंडल के तत्कालीन आयुक्त सत्यजीत ठाकुर ने वर्ष 2007 में इस मामले की जांच के लिए विंध्याचल मंडल के तत्कालीन अतिरिक्त आयुक्त (प्रशासन) डॉ. डीआर त्रिपाठी, वन संरक्षक आरएन पांडे और संयुक्त विकास आयुक्त एसएस मिश्रा की संयुक्त जांच टीम गठित की थी। टीम ने 16 जून 2008 को अपनी जांच रिपोर्ट मंडलायुक्त को सौंप दी। इसमें साफ लिखा है कि सोनभद्र में ओबरा वन प्रभाग के तत्कालीन वन बंदोबस्त अधिकारी वीके श्रीवास्तव द्वारा मकरीबारी, कोटा, पड़रछ और पनारी गांवों के सात मामलों में भारतीय वन अधिनियम की धारा-4 के तहत अधिसूचित 1083.231 हेक्टेयर वनभूमि को जेएएल के पक्ष में हस्तांतरित करने का आदेश गैरकानूनी और अमान्य है। इसके लिए वे पूर्णतया दोषी हैं। टीम ने जांच रिपोर्ट में उनके खिलाफ दण्डनात्मक एवं आपराधिक कार्रवाई करने की सिफारिश की है। इस संबंध में विंध्याचल मंडल के तत्कालीन अतिरिक्त आयुक्त जीडी आर्य ने विंध्याचल मंडल के प्रमुख वनसंरक्षक को पत्र लिखकर वीके श्रीवास्तव के खिलाफ आरोप-पत्र प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था लेकिन दोषी अधिकारी के खिलाफ आज तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।

केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के तत्कालीन वन संरक्षक (मध्य क्षेत्र) वाई.के. सिंह चौहान ने भी इस मामले में तत्कालीन मंडलायुक्त की जांच रिपोर्ट को सही ठहराया है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) के तत्कालीन सदस्य सचिव एमके जीवराजका को प्रेषित पत्र में लिखा है कि तत्कालीन वन बंदोबस्त अधिकारी वीके श्रीवास्तव ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के खिलाफ राजस्व अभिलेख में भारतीय वन अधिनियम-1927 की धारा-4 के तहत अधिसूचित वन भूमि के कानूनी स्वरूप को ही बदल दिया। इसके लिए उन्होंने एन गोडावर्मन थिरुमुल्कपाद बनाम भारत सरकार के मामले में उच्चतम न्यायालय के आदेश का हवाला दिया है। इसमें उच्चतम न्यायालय के तत्कालीन न्यायमूर्ति जेएस वर्मा और बीएन कृपाल की पीठ ने 12 दिसंबर, 1996 के फैसले में साफ कहा हैः

वन संरक्षण अधिनियम-1980 भविष्य में वनों की कटाई, जो पारिस्थितिकीय असंतुलन पैदा करता है, को रोकने की दृष्टि से लागू किया गया था। इसलिए वन संरक्षण और इससे जुड़े मामलों के लिए इस कानून के तहत बनाए गए प्रावधानों को स्वामित्व की प्रकृति या उसके वर्गीकरण की परवाह किए बिना लागू किया जाना चाहिए। वन शब्द को शब्दकोष में उल्लेखित उसके अर्थ के अनुसार ही समझा जाना चाहिए। यह व्याख्या कानूनी रूप से मान्य सभी वनों पर लागू होती है चाहे वे संरक्षित और सुरक्षित हों या फिर वन संरक्षण अधिनियम के खंड-2(1) के तहत हों। खंड-2 में उल्लेखित वन भूमि में शब्दकोष में उल्लेखित वन ही शामिल नहीं होगा, बल्कि इसमें स्वामित्व की परवाह किए बिना सरकारी दस्तावेजों में वन के रूप में दर्ज कोई भी क्षेत्र शामिल होगा।

वाईके सिंह चौहान ने अपनी जांच रिपोर्ट में लिखा है कि इस तरह गैर-वन भूमि में बदले जाने के बाद भी संरक्षित वन भूमि का कानूनी स्वरूप नहीं बदलेगा, लेकिन वीके श्रीवास्तव ने राजस्व अभिलेख में कोटा, पड़रछ और मकरीबारी गांवों में स्थित संरक्षित वन क्षेत्र की भूमि के कानूनी स्वरूप को परिवर्तित कर दिया है। राजस्व अभिलेख में वन भूमि के कानूनी स्वरूप का परिवर्तन केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के उस आदेश का भी उल्लंघन है जो उसने 17 फरवरी, 2005 को जारी किया था। इसमें साफ लिखा हैः

'केंद्र सरकार के पूर्व अनुमोदन के बिना राजस्व अभिलेखों में जंगल, झाड़ के रूप में दर्ज भूमि के कानूनी स्वरूप में परिवर्तन गैर-कानूनी और वन संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन है। संबंधित विभाग को निर्देशित किया जाता है कि वे तुरंत जंगल,झा़ड़, वन भूमि के कानूनी स्वरूप को बहाल करें।'

इतना ही नहीं, जेएएल सूबे की सत्ता में काबिज राजनीतिक पार्टियों के नुमाइंदों और जिला प्रशासन के आलाहुक्मरानों की मिलीभगत से संरक्षित वन क्षेत्र के साथ-साथ कैमूर वन्यजीव विहार के इलाकों में अपनी गैर-कानूनी गतिविधियों को अंजाम देता रहा। नेशनल बोर्ड ऑफ वाइल्डलाइफ ने भी इसकी पुष्टि की है। केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के नेशनल बोर्ड ऑफ वाइल्डलाइफ की स्थाई समिति ने सोनभद्र में जेएएल की कैप्टीव थर्मल पॉवर प्लांट की चारों ईकाइयों को अनापत्ति प्रमाण-पत्र देने के योग्य नहीं पाया। समिति की तत्कालीन सदस्य सचिव प्रेरणा बिंद्रा ने जेएएल के पॉवर प्लांट के प्रस्ताव को वन संरक्षण अधिनियम और पर्यावरण संरक्षण अधिनियम और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन बताया है। पॉवर प्लांट की ईकाइयों के निर्माण और संचालन के लिए केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने अभी तक अनापत्ति प्रमाण-पत्र भी जारी नहीं किया है। इसके बावजूद जय प्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड निर्माण कार्यों को जारी रखे हुए है और जिला प्रशासन मूक दर्शक की भूमिका निभा रहा है। 

जेएएल पिछले करीब आठ सालों से 2500 एकड़ से ज्यादा संरक्षित वन भूमि पर अवैध खनन और गैर-वानिकी गतिविधियां संचालित कर रही है और इसकी पुष्टि विभिन्न जांच रिपोर्टों में भी हो चुकी है। इसके बावजूद पिछले चार साल से सूबे की सत्ता में काबिज अखिलेश सरकार ने इस मामले में कोई तत्परता नहीं दिखाई और ना ही उसने विंध्याचल मंडलायुक्त और केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की रिपोर्टों पर कार्रवाई की। जब जेपी समूह ने डाला सीमेंट फैक्ट्री, जिसके अधीन विवादित करीब 2500 एकड़ वनभूमि वाले खनन-पट्टे आते हैं, को आदित्य बिड़ला समूह की अल्ट्रोटेक सीमेंट कंपनी को बेच दिया तो राज्य सरकार इस वनभूमि को वापस लेने के लिए तत्परता दिखा रही है। हालांकि उसकी यह तत्परता ईमानदारी से अपना मुकाम हासिल कर लेगी, कहना मुश्किल है।  

इसके बारे में जब वाईके सिंह चौहान, अब अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक (विकास) वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, झारखंड सरकार, से बात की गई तो उन्होंने कहा, आज यह खबर सुनकर बड़ी राहत मिली है। पूरी सर्विस के दौरान मैंने यह सबसे महत्वपूर्ण कार्य किया है। उद्योगपतियों ने साजिश रचकर वनभूमि को हड़प लिया है जो गरीबों और आदिवासियों के काम आता। इस मामले में स्थानीय जनता का भरपूर सहयोग मिला। जांच के दौरान उन्होंने एक-एक गाटे की सूचना और कागजात मुहैया कराये। इस मामले में राज्य सरकार के कुछ अधिकारियों ने जेपी समूह के एजेंट के रूप में कार्य किया है। उन्हें विंध्याचल मंडलायुक्त की जांच आख्या की संस्तुति के आधार पर दंड जरूर मिलना चाहिए। साथ ही इस मामले में लापरवाही बरतने वाले प्रशासनिक अधिकारियों के साथ-साथ वन-विभाग और राजस्व विभाग के अधिकारियों की भूमिका की भी जांच होनी चाहिए और उन्हें दण्डित किया जाना चाहिए। साथ ही जेपी समूह से जल्द से जल्द वनभूमि वापस लेकर उससे राजस्व क्षति की वसूली की जानी चाहिए।

वहीं अखिलेश सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट (आईपीएफ) के संयोजक अखिलेंद्र प्रताप सिंह कहते हैं कि जेपी समूह और समाजवादी पार्टी की नजदिकियां जगजाहिर हैं। इस फैसले में राज्य सरकार की ईमानदारी प्रतीत नहीं हो रही है। फिर भी सरकार जेपी समूह से जमीन वापस लेना चाहती है तो उसे जल्द से जल्द वापस ले लेना चाहिए और दोषियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करनी चाहिए लेकिन जिस प्रकार से जांच कमेटी गठित किये जाने की खबरें सामने आई हैं, वह यही दर्शाता है कि इस मामले में राज्य सरकार की मंशा साफ नहीं है। 


जेएएल की गैर-कानूनी गतिविधियों के खिलाफ लगातार करीब 128 दिन तक अनशन करने वाले भारतीय सामाजिक न्याय मोर्चा के अध्यक्ष चौधरी यशवंत सिंह ने कहा कि राज्य सरकार यह कदम एनजीटी और सीईसी के दबाव में उठा रही है। मुख्य सचिव के पास इसका कोई जवाब नहीं है। उन्होंने उच्चतम न्यायालय से माफी मांगी है। इसमें राज्य की सपा और बसपा सरकार के मुखिया के साथ-साथ कई प्रमुख सचिव स्तर के अधिकारी दोषी हैं। उनके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। अब इस मामले में जांच का कोई औचित्य नहीं है। मंडलायुक्त और सीईसी की जांच रिपोर्ट पर्याप्त है। उसके अनुसार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए।