सोमवार, 5 जनवरी 2015

ʻवीआईपीʼ वसूली में दबा मजदूरों की ‘हत्या’ का राज!

बिल्ली-मारकुंडी खनन हादसे की तस्वीर
-ʻवीआईपीʼ के नाम पर खनन विभाग हर महीने करता है 13 करोड़ रुपये से ज्यादा की अवैध वसूली।
- सफेदपोश नेताओं समेत पत्रकारिता के लिबास में छिपे एक बड़े धड़े को भी बंटती है अवैध वसूली की रकम।
-27 फरवरी, 2012 को बिल्ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र में अवैध रूप से संचालित हो रही पत्थर की एक अवैध खदान में पहाड़ी का टीला धंसने से हुई थी 10 मजदूरों की मौत।
-मुख्य विकास अधिकारी पिछले ढाई साल से कर रहे हैं मामले की जांच। जांच कब पुरी होगी, उन्हें पता नहीं। -मृतक मजदूरों के परिजनों को आज तक नहीं मिला मुआवजा। न्याय की आस भी टूटी।  

reported by Shiv das Prajapati

‘मजदूरों की कब्रगाह’! चौंकिये नहीं, उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले का डाला-बिल्ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र अब इसी नाम से पुकारा जाने लगा है। ऐसा वहां के हालात की वजह से हुआ है। कैमूर क्षेत्र में आबाद इन खनन क्षेत्रों में हर दिन औसतन दो मजदूरों की ‘संगठित हत्या’ हो रही है लेकिन आज तक उनके हत्यारे बेनकाब नहीं हुए हैं। इसके पीछे पुलिस प्रशासन समेत जिला प्रशासन की वे कारगुजारियां हैं जिनकी वजह से मजदूरों की ‘संगठित हत्या’ लोगों को ‘मौत’ नजर आती है। ‘खननकर्ता’ का चोला पहने सफेदपोश ‘संगठित हत्यारों’ ने जिला प्रशासन के सहयोग से वहां ऐसा जाल बुना है जो किसी मजदूर की ‘हत्या’ को ‘हादसा’ ज्यादा साबित करता है। साथ ही उनका राजफाश भी नहीं होता। हालांकि इसके लिए उन्हें जिला प्रशासन के विभिन्न नुमाइंदों के साथ-साथ सूबे की राजधानी में बैठे उनके आकाओं को ‘वीआईपी’ के रूप में हर महीने तेरह करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम चुकानी पड़ती है। इन आरोपों में कितनी सचाई है, यह जिला प्रशासन और उनके नुमाइंदे ही जानें लेकिन उनको झुठलाने की वाजिब वजहें भी नहीं हैं। 

सोनभद्र-मिर्जापुर समेत कैमूर वन्य क्षेत्र के विभिन्न इलाकों में ‘मौत का कुआं’ बन चुकी पत्थर की अवैध खदानें इसका उदाहरण हैं। इनके सहारे खनन माफिया मजदूरों की ‘हत्या’ का इतिहास लिख रहे हैं। कभी पत्थर की अवैध खदानों में टीला धंसाकर तो कभी ट्रैक्टर-ट्रॉली पलटा कर। कभी कंप्रेशर चलवाकर तो कभी रहस्यमय परिस्थितियों का बहाना बनाकर। बरसात के दिनों में पत्थर की खदानों में रहस्यमय परिस्थियों में डूबकर मरने वालों की संख्या भी पुलिस प्रशासन की नींद खत्म नहीं कर पाती। सूबे की सत्ता में समय-समय पर काबिज नुमाइंदों की मदद से खनन माफिया सोनभद्र-मिर्जापुर में मजदूरों की ‘संगठित हत्या’ नंगा नाच दिखाते हैं लेकिन सालों गुजर जाने के बाद भी उनकी इस साजिश का पर्दाफाश नहीं हो पा रहा और ना ही उनकी जाल का शिकार हुए मृतक मजदूरों को न्याय नहीं मिल पा रहा है।

पौने तीन साल पहले 27 फरवरी, 2012 को बिल्ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र में शारदा मंदिर के पीछे पत्थर की एक खदान में टीला धंसने से हुई 10 मजदूरों की मौत (जिला प्रशासन के शब्दों में) का मामला ऐसा ही एक उदाहरण है। इसकी मजिस्ट्रेटियल जांच रिपोर्ट अभी तक पूरी नहीं हुई है और ना ही मृतक मजदूरों के परिजनों को सरकारी प्रावधानों के मुताबिक मुआवजा मिला है। सोनभद्र के मुख्य विकास अधिकारी महेन्द्र कुमार सिंह इसकी जांच कर रहे हैं लेकिन वह अपनी जांच रिपोर्ट कब तक जिला प्रशासन समेत उत्तर प्रदेश शासन को सौंपेंगे, यह उन्हें मालूम नहीं। मजे की बात यह है कि उनके इस गैर-जिम्मेदाराना रवैये को लेकर शासन के नुमाइंदों के साथ-साथ विरोधियों की जुबानें भी बंद हैं। इनमें वे सफेदपोश भी शामिल हैं जिन्होंने मजदूरों की रोजी-रोटी की दुहाई देकर अवैध खनन के गोरखधंधे का संचालन शुरू कराने के लिए डाला बाजार में महीनों तक धरना चलाया और उसे शुरू कराकर ही दम लिया। 

इतना ही नहीं सफेद लिबास में छिपे इन खनन माफियाओं ने ईमानदारी से अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करने वाले तत्कालीन जिलाधिकारी सुहास एल. वाई को भी जिले से बेदखल करवा दिया क्योंकि उन्होंने खनन माफियाओं के साथ उनके संरक्षक सफेदपोशों के आगे घुंटने टेंकने से मना कर दिया था। सुहास एल. वाई. के जाने के बाद सोनभद्र में एक बार फिर अवैध खनन का गोरखधंधा धड़ल्ले से शुरू हो गया और इस बार इसकी कमान अपर जिलाधिकारी (वित्त/राजस्व) के रूप में तैनात मनीलाल यादव को मिली। आज भी वे इसके प्रभारी हैं। मनीलाल यादव की पहुंच का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शक्तिनगर विशेष क्षेत्र प्राधिकरण (साडा) के सचिव की कमान भी उनके पास है जबकि यह प्रभार मुख्य विकास अधिकारी के पास होना चाहिए। सूत्रों की मानें तो साडा के तहत कराए गए कार्यों में भी बड़े पैमाने पर अनियमितता बरती गई है। अगर उन कार्यों की उच्च स्तरीय जांच करा दिया जाए तो वहां करोड़ों रुपये का घोटाला उजागर हो सकता है। 

इसके अलावा वे जिला सूचना एवं जन संपर्क विभाग की कमान भी संभाले हुए हैं जबकि लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की सहायता के साथ-साथ शासन की नीतियों को जन-जन तक पहुंचाने वाले इस महत्वपूर्ण विभाग में सूचना एवं प्रसारण क्षेत्र का एक भी सहायक अधिकारी या पूर्णकालिक लिपिक तैनात नहीं हैं। उर्दू अनुवादक और चतुर्थ श्रेणी के दो कर्मचारियों के भरोसे चल रहा यह विभाग इन दिनों लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के प्रतिनिधियों को मैनेज करने की भूमिका निभा रहा है। इसके लिए वह फर्जी दस्तावेजों के बल पर तथाकथित श्रमजीवी पत्रकारों को सरकारी मान्यता प्राप्त पत्रकार का दर्जा दिलाने से भी हिचकिचा नहीं रहा। अगर जिले में मान्यता प्राप्त पत्रकारों की योग्यता और उनकी पत्रावलियों की उच्च स्तरीय जांच करा दी जाए तो कई ऐसे चेहरे धोखाधड़ी में मामले में जेल चले जाएंगे जो पत्रकारिता की आड़ में नौकरशाहों और व्यवसायियों से अपना और अपने परिवार के सदस्यों का हित साधते नजर आते हैं।

बहरहाल, उक्त हादसे की मजिस्ट्रेटियल जांच कर रहे मुख्य विकास अधिकारी महेंद्र कुमार सिंह की भूमिका सवालों के घेरे में है क्योंकि जिला अधिकारी के निर्देश पर गठित एक अन्य जांच टीम ने अपनी रिपोर्ट मार्च, 2012 में ही जिला प्रशासन को सौंप दी थी जिसमें स्पष्ट रूप से हादसा वाली खदान का संचालन अवैध रूप से होने की बात कही गई थी। सूचना का अधिकार अधिनियम-2005 के तहत पूर्व जिला खान अधिकारी एसके सिंह की ओर से उपलब्ध कराई गई सूचना पर विश्वास करें तो उक्त हादसा बिल्ली-मारकुंडी गांव के आराजी संख्या-4452 में हुआ था जो इन्द्रजीत मल्होत्रा और अन्य के नाम से दर्ज है। इसमें दस मजदूरों की मौत हुई थी।

उक्त खनन हादसे के बाद जिलाधिकारी के निर्देश पर 2 मार्च, 2012 को जिला खान विभाग के तत्कालीन सर्वेक्षकगण एसपी मिश्रा, राज नाथ, एके मौर्या, क्षेत्रीय लेखपाल श्रीराम, राजस्व निरीक्षक हीरालाल शास्त्री, सर्वे नायब तलसीलदार प्रह्लाद शुक्ला, सर्वे कानूनगो नन्दलाल, पीपरी के राजस्व निरीक्षक सैयद हिफाजत रजा और दुद्धी तहसील के लेखपाल राम मूरत ने संयुक्त रूप से दुर्घटना स्थल का सीमांकन किया। इसमें पाया गया कि 27 फरवरी को जहां पहाड़ी का धसान हुआ था, वह क्षेत्र बिल्ली-मारकुंडी गांव के गाटा संख्या-4452 में पड़ता है जो संक्रमणीय भूमिधर के रूप में इंद्रजीत मल्होत्रा पुत्र शंभुनाथ मल्होत्रा (0.164 हेक्टेयर) और हंसराज सिंह पुत्र प्रताप सिंह (0.582 हेक्टेयर) के नाम से दर्ज है और इसमें किसी प्रकार का कोई खनन पट्टा आबंटित नहीं है। उक्त टीम की जांच रिपोर्ट के आधार पर दुद्धी तहसील के तत्कालीन उप-जिलाधिकारी त्रिलोकी सिंह, सोनभद्र के उप-जिलाधिकारी राम अरज यादव और जिला खान अधिकारी एके सेन ने 3 मार्च, 2012 को जिलाधिकारी को अपनी संयुक्त जांच आख्या सौंपी। इसमें उन्होंने साफ लिखा है कि सुरक्षित वन भूमि पर अवैध खनन कार्य किया गया है। 

जांच आख्या में लिखा है कि गाटा संख्या-4452 से लगे गाटा संख्या-4471 का कुल क्षेत्रफल 12.519 हेक्टेयर है। इसमें से 1.763 हेक्टेयर विभिन्न काश्तकारों के नाम संक्रमणीय भूमिधर के रूप में दर्ज है जबकि 2.035 हेक्टेयर पहाड़ और 8.701 हेक्टेयर सुरक्षित वन के रूप में राजस्व अभिलेखों में दर्ज है। गाटा संख्या-4471 के लगभग 2.0 हेक्टेयर भूमि को छोड़कर शेष सभी क्षेत्रों में खनन किया गया है। इसके अलावा आराजी संख्या-4449 पर खनन कार्य किया गया है जो राजस्व अभिलेखों में पहाड़ के रूप में दर्ज है और उसका कुल क्षेत्रफल 0.417 है। गाटा संख्या-4450 राजस्व अभिलेखों में श्रेणी-1 के तहत संक्रमणीय भूमिधर के रूप में दर्ज किया गया जिसका कुल क्षेत्रफल 0.594 हेक्टेयर है और इसके 0.270 हेक्टेयर क्षेत्रफल पर खनन कार्य किया जा रहा है। इसके बावजूद मुख्य विकास अधिकारी महेंद्र कुमार सिंह अभी तक अपनी जांच रिपोर्ट जिला प्रशासन समेत उत्तर प्रदेश शासन को सौंप नहीं पाए हैं। हालांकि हादसा वाले खनन क्षेत्र में अवैध खनन का गोरखधंधा पिछले दो सालों से धड़ल्ले से चल रहा है जो जिला प्रशासन की विभिन्न जांच आख्याओं में भी सामने आ चुका है।

बिल्ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र में हो रहे अवैध खनन के मामले में रॉबर्ट्सगंज तहसील प्रशासन ने 15 सितंबर, 2014 को जिला प्रशासन को एक जांच आख्या सौंपी है जिसमें स्वीकृत 27 पत्थर की खदानों में उनके संचालकों द्वारा अवैध खनन करने की बात कही गई है। इन अवैध खननकर्ताओं में सपा नेता रमेश वैश्य तथा चोपन नगर पंचायत अध्यक्ष और सपा नेता इम्तियाज अहमद का नाम भी शामिल है। गत सितंबर में जिला प्रशासन ने पुलिस प्रशासन के सहयोग से बसपा विधायक उमाशंकर सिंह की खदान में छापा मारा और वहां अवैध खनन पाया। प्रशासन ने उमाशंकर सिंह के खिलाफ अवैध खनन का मामला दर्ज कराया। सपा के घोरावल विधायक रमेश चंद्र दुबे के खिलाफ स्मारक घोटाले में पहले से ही जांच चल रही है। 

इनके अलावा भाजपा, कांग्रेस, बसपा आदि राजनीतिक पार्टियों के नेताओं के साथ-साथ राष्ट्रीय और क्षेत्रीय समाचार-पत्रों के कुछ पत्रकारों के नाम से भी इन इलाकों में पत्थर और बालू की खदानें आबंटित हैं जिनमें कई अवैध खनन के मामले में भी शामिल हैं। ऐसी कई वजहों से सोनभद्र के खनन क्षेत्रों में अवैध खनन का गोरखधंधा रुकने का नाम नहीं ले रहा है। अबतक तहसील प्रशासन की विभिन्न जांच रपटों में 103 पत्थर की खदानों में से करीब 40 स्वीकृत पत्थर की खदानों में अवैध खनन साबित हो चुका है। इसमें कई ऐसे पट्टाधारक हैं जिनकी खदानों में पहले भी अवैध खनन के मामले उजागर हो चुके हैं। 

ऐसे अवैध खनन कर्ताओं के खिलाफ तत्कालीन जिलाधिकारी सुहास एल.वाई. ने 31 अगस्त, 2012 को ओबरा वन प्रभाग और कैमूर वन्यजीव वन प्रभाग के प्रभागीय वनाधिकारियों समेत अपर जिलाधिकारी और खान अधिकारी को कार्रवाई करने का निर्देश दिया था लेकिन उन्होंने उनके निर्देश का अनुपालन सुनिश्चित नहीं किया। इस मामले में केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के क्षेत्रीय कार्यालय (मध्य क्षेत्र), लखनऊ के अपर प्रमुख मुख्य वन संरक्षक आजम जैदी ने उत्तर प्रदेश शासन के तत्कालीन सचिव (वन) आरके सिंह को पत्र लिखकर अवैध खदान संचालकों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए पत्र लिखा था। ऐसे खदान संचालकों में महावीर प्रसाद अग्रवाल, राकेश जायसवाल, श्रीमती प्रतिभा सिंह, प्रदुम्न कुमार सिंह, संतोष कुमार सिंह, कादिर अली,  मेसर्स अग्रवाल ब्रदर्स की निर्मला अग्रवाल, मे. स्टोन ग्रीट ग्रामोद्योग संस्थान के ओम प्रकाश गिरि, अशोक कुमार सिंह, रविन्द्र जायसवाल, धर्मेंद्र कुमार सिंह आदि का नाम शामिल है। जिला प्रशासन के नुमाइंदों की शह पर खनन माफिया खनिजों का अवैध खनन और उनका परिवहन धड़ल्ले से कर रहे हैं। 

सूत्रों की मानें तो इस गोरखधंधे के संचालन के पीछे जिला प्रशासन के नुमाइंदों द्वारा हर महीने करीब तेरह करोड़ रुपये की वह ‘वीआईपी’ है जो सूबे की सत्ता में काबिज राजनीतिक पार्टियों के विभिन्न नुमाइंदों के पास जाता है। अवैध रूप से खदानों का संचालन और उससे निकलने वाले खनिज पदार्थों का परिवहन करने वाले खनन माफियाओं की बातों पर विश्वास करें तो जिला प्रशासन के नुमाइंदे ‘वीआईपी’ के नाम पर इन दिनों मोटी रकम की उगाही कर रहे हैं। इस उगाही में जिला राजस्व विभाग के एक शीर्ष अधिकारी समेत जिला भूतत्व एवं खनिकर्म विभाग (जिला खनिज विभाग), परिवहन विभाग, जिला उद्योग केंद्र, जिला वाणिज्यकर विभाग, पुलिस प्रशासन, वन विभाग, क्षेत्रीय कार्यालय, उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के विभिन्न अधिकारी एवं कर्मचारी भी शामिल हैं। इससे राज्य सरकार के खजाने को हर वर्ष अरबों रुपये की चपत लग रही है।


खनन माफियाओं ने जिला प्रशासन को दिखाया ठेंगा, जमकर किया अवैध खनन

जिला प्रशासन की जांच में मिला 1820 घन मीटर अवैध खनन, कार्रवाई के निर्देश।
वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो
सोनभद्र। जिले में धड़ल्ले से हो रहे अवैध खनन के मामले में जिलाधिकारी दिनेश कुमार सिंह ने पिछले दिनों खान अधिकारी को दोषी पट्टाधारकों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया। साथ ही उन्होंने फर्जी तरीके से रजामंदी कागजात पेश करने के मामले में शामिल व्यक्तियों और खनन पट्टाधारक अब्दुल सत्तार तथा श्रीमती रूपा सिंह के प्रतिनिधि आशीष सिंह के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की सुसंगत धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज कराने का निर्देश दिया।
जिला सूचना विभाग की ओर से जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि बिल्ली-मारकुण्डी गांव के आराजी संख्या-1965 मि, हाल संख्या-4476 (रकवा- करीब एक एकड़) के सम्बन्ध में पिछले दिनों जिलाधिकारी को शिकायत मिली थी। जांच में सामने आया है कि खनन पट्टाधारक ने खान सुरक्षा अधिनियम-1952 की धारा-22(3), खान एवं खनिज (विनियमन एवं विकास) अधिनियम-1957 की धारा-4 एवं 21 तथा उ.प्र. उप-खनिज (परिहार) नियमावली-1963 की धारा-3, 57 एवं 70 का उल्लंघन किया है। जांच रिपोर्ट में सामने आया है कि पट्टाधारकों ने स्वीकृत खनन क्षेत्र के बाहर एक हजार 820 घन मीटर अवैध खनन किया है। साथ ही उन्होंने सुन्दर मिश्रा के स्टोन क्रसर प्लांट पर खनिजों का अवैध भण्डारण भी किया। इससे राज्य सरकार को राजस्व हानि हुई है।
जिलाधिकारी ने उक्त खनन पट्टाधारकों की गतिविधियों से राज्य सरकार को हुई राजस्व हानि की क्षतिपूर्ति के लिए उ.प्र. उप खनिज (परिहार) नियमावली-1963 की सुसंगत धाराओं के तहत उनके खिलाफ कार्रवाई करने का आदेश खान अधिकारी को दिया है। साथ ही उन्होंने फर्जी तरीके से रजामन्दी के कागजात पेश करने पर दुरभि संधि में संलिप्त व्यक्तियों और पट्टाधारक अब्दुल सत्तार एवं रूपा सिंह के प्रतिनिधि आशीष सिंह के खिलाफ भारतीय दण्ड संहिता की सुसंगत धाराओं के अन्तर्गत एफआईआर दर्ज कराने का निर्देश खान अधिकारी को दिया है।

वहीं जिलाधिकारी ने मालती देवी के नाम आबंटित खनन पट्टे के सम्बन्ध में प्राप्त हो रही शिकायतों की जांच करने का निर्देश खान अधिकारी को दिया है। सूचना विभाग की मानें तो मालती देवी के नाम स्वीकृत पट्टे की वास्तविक स्थिति, उसके सापेक्ष संबंधित पट्टे में उपलब्ध खनन सामग्री, खनन किये गये क्षेत्र के सापेक्ष जारी रवन्ना की स्थिति समेत विभिन्न पहलुओं की जांच की जाएगी। अगर जांच में शिकायत सही मिलती है तो नियमानुसार पट्टाधारक के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश भी जिलाधिकारी को दिया गया है।

शुक्रवार, 7 नवंबर 2014

सपा की साख पर एसडीएम लगा रहे बट्टा, किसानों से जमकर हो रही अवैध वसूली

 मीडिया पब्लिसिटी में मशगूल जिलाधिकारी को किसानों की बातों से ज्यादा भ्रष्ट कर्मचारियों और अधिकारियों पर है ज्यादा भरोसा, सपा की साख में लगा रहे बट्टा।निरंकुश सत्ता के आगे नतमस्तक हुए किसान,  हर वैध काम के लिए दे रहे लाखों रुपये का अवैध दान। 

वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो

सोनभद्र।  सदर तहसील में किसानों से अवैध वसूली का गोरखधंधा थमने का नाम नहीं ले रहा है। यहां के कंप्यूटराइज्ड उद्धरण खतौनी काउंटर पर तैनात लेखपालों समेत सदर तहसील में तैनात अधिकतर कर्मचारी तहसीलदार और एसडीएम के संरक्षण में किसानों से जमकर अवैध वसूली कर रहे हैं। वहीं, मीडिया पब्लिसिटी में मशगूल जिलाधिकारी किसानों की बातों से ज्यादा सदर तहसील के भ्रष्ट कर्मचारियों और अधिकारियों की हवा-हवाई कार्रवाई पर भरोसा कर सपा सरकार की साख में बट्टा लगा रहे हैं तो सूबे की सत्ता में काबिज समाजवादी पार्टी के तथाकथित जनप्रतिनिधि जनता के हितों की उपेक्षा कर अपनी और अपने रिश्तेदारों की संपत्ति में इजाफा करने में मशगूल हैं। इसका नतीजा है कि सदर तहसील स्थित कंप्यूटराइज्ड उद्धरण खतौनी काउंटर पर तैनात लेखपाल और रजिस्ट्रार कानूनगो हर दिन तीन सौ से ज्यादा खतौनियों के आंकड़े गायब कर राज्य सरकार को हर महीने लाखों रुपये का चूना रहे हैं।

सदर तहसील की कंप्यूटराइज्ड उद्धरण खतौनी काउंटर पर कार्यरत लेखपाल विनोद कुमार दुबे और उसके सहयोगी हर दिन किसानों को लूट रहे हैं। वे शासन की ओर से निर्धारित प्रति खतौनी 15 रुपये की जगह किसानों से 20 रुपये वसूल रहे है। किसानों द्वारा अधिक धनराशि वसूले जाने का विरोध करने पर वे उनसे आवेदन-पत्र पर लेखपाल और कानूनगो की रिपोर्ट लगावा कर लाने की बात कह कर शासन द्वारा निर्धारित दर पर खतौनी देने से मना कर देते हैं जिससे किसान उन्हें मजबूरन प्रति खतौनी बीस रुपये देने को बाध्य हो जाते हैं। प्रति खतौनी 20 रुपये की धनराशि पाते ही वे बिना लेखपाल और कानूनगो की रिपोर्ट के ही किसानों को खतौनी मुहैया करा देते हैं यानी सदर की कंप्यूटराइज्ड उद्धरण खतौनी काउंटर पर हर दिन पांच रुपये में कानून बदलता है।  

सदर तहसील क्षेत्र के बहेरवा निवासी किसान रमेश कुशवाहा गत 17 अक्टूबर को कंप्यूटराइज्ड उद्धरण खतौनी काउंटर पर कार्यरत लेखपाल विनोद कुमार दुबे से तीन खतौनी के लिए आवेदन किया। इसमें उनके नाम की खतौनी भी शामिल थी। विनोद कुमार दुबे ने उन्हें दो खातों की खतौनियों को देते हुए तीस रुपये की जगह कुल चालीस रुपये वसूल लिए। काउंटर छोड़ने के बाद जब वह खतौनियों और पैसे का मिलान करने लगे तो उन्हें इसकी जानकारी हुई। जब वह एक अन्य खाते की खतौनी लेने गए, जबतक विनोद कुमार दुबे काउंटर छोड़कर जा चुके थे। उनकी जगह अन्य दूसरा कर्मचारी खतौनी देने लगा था। 

रमेश कुशवाहा ने काउंटर पर कार्यरत लेखपाल से शेष खतौनी की मांग की तो उसने उनसे बीस रुपये रुपये की मांग की। जब रमेश कुशवाहा ने प्रति खतौनी 15 रुपये की बात कही तो काउंटर पर कार्यरत कर्मचारी पांच रुपये फूटकर की मांग करने लगा। फिर भी विनोद कुमार दुबे द्वारा वसूली गई अवैध रकम रमेश कुशवाहा को वापस नहीं की गई। सूत्रों की मानें तो खतौनी के इस गोरखधंधे में हर दिन औसतन पांच हजार रुपये की अवैध कमाई होती है जो तहसील में कार्यरत कुछ लेखपालों और अधिकारियों के बीच बंटता है। इस वजह से उद्धरण खतौनी काउंटर के चार्ज के लिए लेखपालों के बीच होड़ लगी रहती है। ऐसी ही कुछ होड़ रजिस्ट्रार कानूनगो के बीच भी होती है।

इस संबंध में ‘वनांचल एक्सप्रेस’ ने पिछले दिनों जब सदर तहसीलदार योगेन्द्र कुमार सिंह से बात की तो उन्होंने ऐसी किसी भी प्रकार की अवैध वसूली से साफ इंकार किया। जब उनसे मामले की तत्काल जांच कराने की बात कही गई तो उन्होंने उद्धरण खतौनी काउंटर के प्रभारी रजिस्ट्रार कानूनगो अनिल श्रीवास्तव को मौके पर भेजा। वहां अनिल श्रीवास्तव ने उद्धरण खतौनी काउंटर से खतौनी लेने वाले किसानों से प्रति खतौनी की दर की जानकारी ली, जिसमें सभी किसानों ने प्रति खतौनी 20 रुपये की दर से खतौनी लेने की बात स्वीकार की। 

इसके बावजूद उद्धरण खतौनी पर कार्यरत कर्मचारी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसके बाबत जब तहसीलदार योगेन्द्र कुमार सिंह से बात की गई तो उन्होंने कहा कि कर्मचारी को रंगे हाथ नहीं पकड़ा गया, इसलिए उसके खिलाफ निलंबन अथवा बर्खास्तगी की कार्रवाई नहीं की जा सकती है। फिलहाल उसे कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है। हालांकि नोटिस की प्रति मांगने पर उन्होंने इसे देने से इंकार कर दिया। 

इस बारे में जब उप-जिलाधिकारी राजेंद्र प्रसाद तिवारी से बात की गई तो उन्होंने भी ऐसी किसी भी कार्रवाई से साफ मना कर दिया। हालांकि उन्होंने उद्धरण खतौनी काउंटर से 20 रुपये प्रति खतौनी की दर से किसानों को खतौनी दिए जाने की बात स्वीकार की। उन्होंने इस संबंध में संबंतधित अधिकारियों को फटकार लगाने की बात कही। 

अब सवाल उठता है कि जब संबंधित कर्मचारी किसानों से अवैध वसूली में लिप्त हैं तो फिर एसडीएम उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं कर रहे। इससे यह प्रबल संभावना है कि सदर तहसील के तहसीलदार और उप-जिलाधिकारी के संरक्षण में लेखपाल, कानूनगों और नायब तहसीलदार जमकर किसानों से अवैध वसूली कर रहे हैं।


उ.प्र. के सपनों को मध्य प्रदेश में बेचेगा जेपी समूह

नोएडा से भोपाल शिफ्ट होगा देश का पहला माइक्रो चिप प्लांट। संप्रग सरकार ने फरवरी 2014 में उत्तर प्रदेश में निर्माण की अनुमति प्रदान की थी।

वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो

भोपाल। उत्तर प्रदेश राज्य सीमेंट निर्माण निगम की संपत्तियों के अधिग्रहण के बहाने राज्य सरकार को 409 करोड़ रुपये से ज्यादा का चूना लगाने के बाद जेपी समूह अब मध्य प्रदेश की जनता की संपत्ति को लूटने जा रहा है। उसने उत्तर प्रदेश के सपनों को अब मध्य प्रदेश में बेचने की योजना बनाई है। यूपी की जनता को देश के पहले माइक्रो चिप प्लांट की स्थापना का सपना दिखाने के बाद वह अब उसे भोपाल में स्थापति करने जा रहा है।

देश का पहला माइक्रो चिप बनाने का प्लांट उत्तर प्रदेश (नोएडा के पास) के बजाय अब भोपाल में स्थापित होगा। जयप्रकाश एसोसिएट्स लि. (जेपी समूह) को इस प्रोजेक्ट के लिए यूपीए सरकार ने फरवरी 2014 में उत्तर प्रदेश में निर्माण की अनुमति प्रदान की थी लेकिन अब कंपनी इस प्रोजेक्ट को मध्य प्रदेश में शिफ्ट कर रही है। राज्य सरकार इसके लिए भोपाल एयरपोर्ट के नजदीक 100 एकड़ जमीन आवंटित कर रही है। समूह ने प्रोजेक्ट के लिए जापान से लोन लेने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है।

मंत्रालय सूत्रों ने बताया कि जेपी समूह ने यूएसए की आईबीएम और इजराइल की टॉवर जॉज नामक मल्टीनेशनल कंपनी के साथ मिलकर भोपाल में सेमी कंडक्टर चिप बनाने का प्लांट बनाने का निर्णय लिया है। इस संयुक्त कंपनी में आईबीएम और टॉवर जॉज की भागीदारी 10-10 प्रतिशत की है। जेपी समूह के चेयरमैन जयप्रकाश गौर ने इंवेस्टर्स समिट में 34 हजार करोड़ रुपए मप्र में निवेश करने की घोषणा की थी।

प्लांट की स्थापना के बाद भोपाल देश में इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम डिजाइन और मैन्यूफेक्चरिंग का बड़ा केंद्र बन जाएगा। माइक्रो चिप बनने से प्रदेश को अल्ट्रा हाई-मॉडर्न तकनीक के क्षेत्र में प्रदेश को नई पहचान मिलेगी। एशियाई देशों से इलेक्ट्रॉनिक उपकरण खरीदने की बाध्यता कम होगी। प्रथम चरण में करीब 2 हजार कुशल और अर्धकुशल कामगारों को काम दिया जाएगा। प्लांट में उत्पादन शुरू होने से विदेशी मुद्रा की बचत होगी क्योंकि वर्तमान में सभी इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में लगने वाले माइक्रो चिप आयात करने पड़ते हैं।

जेपी समूह के कार्यकारी अध्यक्ष सन्नी गौर ने इस मामले पर कहा कि राज्य सरकार को भोपाल और आस-पास के इलाके में जमीन आवंटित करने का प्रस्ताव दिया है। इस प्रोजेक्ट के लिए जापान से लोन लेने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। जैसे ही लोन की स्वीकृति मिलेगी, प्लांट निर्माण का कार्य शुरू हो जाएगा।

                                       क्या है माइक्रो चिप?


प्लांट में उपकरण निर्माण की क्षमता प्रति माह 40 हजार माइक्रो चिप बनाने की होगी। प्रथम चरण में यह क्षमता 20 हजार प्रति माह तय की गई है। जबकि दूसरे चरण में कुछ अतिरिक्त टूल निर्माण के साथ प्लांट 40 हजार प्रति माह उत्पादन क्षमता का होगा। 

खास बात यह है कि इस प्लांट में नई टेक्नालॉजी से नेनो मीटर भी बनाए जाएंगे। माइक्रो चिप आईसी लगभग हर इलेक्ट्रॉनिक उपकरण में इस्तेमाल की जाती है। जैसे मोबाइल फोन, टेलीफोन उपकरण, औद्योगिक तथा स्वचलित प्रोसेस कंट्रोल उपकरण, हवाई जहाज के उपकरण, डिफेंस चिकित्सा स्मार्ट कार्ड में चिप का उपयोग होता है। खास बात यह है कि इस प्लांट में वैफर डिस्क की डिजाइन और टेस्टिंग की सुविधा भी उपलब्ध होगी। 

रविवार, 5 अक्तूबर 2014

अछूत समस्या के जकड़न में फंसी भारतीय व्यवस्था

(काकीनाडा में 1923 में कांग्रेस अधिवेशन हुआ। मुहम्मद अली जिन्ना ने अपने अध्यक्षीय भाषण में आजकल की अनुसूचित जातियों, जिन्हें उन दिनों 'अछूत' कहा जाता था, को हिन्दू और मुस्लिम मिशनरी संस्थाओं में बांट देने का सुझाव दिया। हिन्दू और मुस्लिम अमीर लोग इस वर्गभेद को पक्का करने के लिए धन देने को तैयार थे। इस प्रकार अछूतों के यह 'दोस्त' उन्हें धर्म के नाम पर बांटने की कोशिशें करते थे। उसी समय जब इस मसले पर बहस का वातावरण था, भगत सिंह ने 'अछूत का सवाल' नामक लेख लिखा। इस लेख में श्रमिक वर्ग की शक्ति और सीमाओं का अनुमान लगाकर उसकी प्रगति के लिए ठोस सुझाव दिए गए हैं। भगत सिंह का यह लेख जून, 1928 के 'किरती' में विद्रोही नाम से प्रकाशित हुआ था। - संपादक)

written by Bhagat Singh

मारे देश जैसे बुरे हालात किसी दूसरे देश के नहीं हुए। यहां अजब-अजब सवाल उठते रहते हैं। एक अहम सवाल अछूत-समस्या है। समस्या यह है कि 30 करोड़ की जनसंख्या वाले देश में जो छह करोड़ लोग अछूत कहलाते हैं, उनके स्पर्श मात्र से धर्म भ्रष्ट हो जाएगा! उनके मंदिरों में प्रवेश से देवगण नाराज हो उठेंगे! कुएं से उनके द्वारा पानी निकालने से कुआं अपवित्र हो जाएगा! ये सवाल बीसवीं सदी में किए जा रहे हैं, जिन्हें कि सुनते ही शर्म आती है।

हमारा देश बहुत अध्यात्मवादी है लेकिन हम मनुष्य को मनुष्य का दर्जा देते हुए भी झिझकते हैं जबकि पूर्णतया भौतिकवादी कहलाने वाला यूरोप कई सदियों से इंकलाब की आवाज उठा रहा है। उन्होंने अमेरिका और फ्रांस की क्रांतियों के दौरान ही समानता की घोषणा कर दी थी। आज रूस ने भी हर प्रकार का भेदभाव मिटाकर क्रांति के लिए कमर कसी हुई है। हम सदा ही आत्मा-परमात्मा के वजूद को लेकर चिंतित होने तथा इस जोरदार बहस में उलझे हुए हैं कि क्या अछूत को जनेऊ दे दिया जाएगा? वे वेद-शास्त्र पढ़ने के अधिकारी हैं अथवा नहीं? हम उलाहना देते हैं कि हमारे साथ विदेशों में अच्छा सलूक नहीं होता। अंग्रेजी शासन हमें अंग्रेजों के समान नहीं समझता लेकिन क्या हमें यह शिकायत करने का अधिकार है?

सिंध के एक मुस्लिम सज्जन श्री नूर मुहम्मद ने, जो बम्बई कौंसिल के सदस्य हैं, इस विषय पर 1926 में खूब कहा-
"If the Hindu society refuses to allow other beings, fellow creatures so that to attend public school, and if the president of local board representing so many lakhs of people in this house refuses to allow his fellows and brothers the elementary human rights of having water to drink, what right have they have to ask for more rights from the bureaucracy? Before we accuse people coming from other from lands, we should see how we ourselves behave toward our own people. How can ask for greater political rights when we ourself deny elementary rights of human beings."

वे कहते हैं कि जब तुम एक इंसान को पीने के लिए पानी देने से भी इंकार करते हो, जब तुम उन्हें स्कूल में भी पढ़ने नहीं देते तो तुम्हें क्या अधिकार है कि अपने लिए अधिक अधिकारों की मांग करो? जब तुम एक इंसान को समान अधिकार देने से भी इंकार करते हो तो तुम अधिक राजनीतिक अधिकार मांगने के अधिकारी कैसे बन गए?

बात बिल्कुल खरी है लेकिन यह क्योंकि एक मुस्लिम ने कही है, इसलिए हिन्दू कहेंगे कि देखो, वह उन अछूतों को मुसलमान बना कर अपने में शामिल करना चाहते हैं। जब तुम उन्हें इस तरह पशुओं से भी गया-बीता समझोगे तो वह जरूर ही दूसरे धर्मों में शामिल हो जाएंगे, जिनमें उन्हें अधिक अधिकार मिलेंगे, जहां उनसे इंसानों जैसा व्यवहार किया जाएगा। फिर यह कहना कि देखो जी, ईसाई और मुसलमान हिन्दू कौम को नुकसान पहुंचा रहे हैं, व्यर्थ होगा।

कितना स्पष्ट कथन है लेकिन यह सुनकर सभी तिलमिला उठते हैं। ठीक इसी तरह की चिंता हिंदुओं को भी हुई। सनातनी पंडित भी कुछ न कुछ इस मसले पर सोचने लगे। बीच-बीच में बड़े 'युगांतरकारी' कहे जाने वाले भी शामिल हुए। पटना में हिंदू महासभा का सम्मेलन लाला लाजपत राय, जो अछूतों के बहुत पुराने समर्थक चले आ रहे हैं, की अध्यक्षता में हुआ तो जोरदार बहस छिड़ी। अच्छी नोंक-झोंक हुई। समस्या यह थी कि अछूतों को यज्ञोपवीत धारण करने का हक है अथवा नहीं? क्या उन्हें वेद-शास्त्रों का अध्ययन करने का अधिकार है

बड़े-बड़े समाज-सुधारक तमतमा गए लेकिन लालाजी ने सबको सहमत कर दिया तथा यह दो बातें स्वीकृत कर हिन्दू धर्म की लाज रख ली। वरना जरा सोचो, कितनी शर्म की बात होती। कुत्ता हमारी गोद में बैठ सकता है। हमारी रसोई में निःसंग फिरता है लेकिन एक इंसान का हमसे स्पर्श हो जाए तो बस धर्म भ्रष्ट हो जाता है। 

इस समय मालवीय जी जैसे बड़े समाज-सुधारक, अछूतों के बड़े प्रेमी और न जाने क्या-क्या, पहले एक मेहतर के हाथों गले में हार डलवा लेते हैं लेकिन कपड़ों सहित स्नान किए बिना स्वयं को अशुद्ध समझते हैं! क्या खूब यह चाल है! सबको प्यार करने वाले भगवान की पूजा करने के लिए मंदिर बना है लेकिन वहां अछूत जा घुसे तो वह मंदिर अपवित्र हो जाता है! भगवान रुष्ट हो जाता है! घर की जब यह स्थिति हो तो बाहर हम बराबरी के नाम पर झगड़ते अच्छे लगते हैं

तब हमारे इस रवैये में कृतघ्नता की भी हद पाई जाती है। जो निम्नतम काम करके हमारे लिए सुविधाओं को उपलब्ध कराते हैं, उन्हें ही हम दुरदुराते हैं। पशुओं की हम पूजा कर सकते हैं लेकिन इंसान को पास नहीं बैठा सकते!

आज इस सवाल पर बहुत शोर हो रहा है। उन विचारों पर आजकल विशेष ध्यान दिया जा रहा है। देश में मुक्ति कामना जिस तरह बढ़ रही है, उसमें सांप्रदायिक भावना ने और कोई लाभ पहुंचाया हो अथवा नहीं, लेकिन एक लाभ जरूर पहुंचाया है। वह है अधिक अधिकारों की मांग के लिए अपनी-अपनी कौमों की संख्या बढ़ाने की चिंता जो सबको हुई। मुसलमानों ने जरा ज्यादा जोर दिया। 

उन्होंने अछूतों को मुसलमान बनाकर अपने बराबर अधिकार देने शुरू कर दिए। इससे हिन्दुओं के अहम को चोट पहुंची। स्पर्धा बढ़ी। फसाद भी हुए। धीरे-धीरे सिखों ने भी सोचा कि हम पीछे न रह जाएं। उन्होंने भी अमृत छकाना आरम्भ कर दिया। हिंदू-सिखों के बीच अछूतों के जनेऊ उतारने या केश कटवाने के सवालों पर झगड़े हुए। अब तीनों कौमें अछूतों को अपनी-अपनी ओर खींच रही हैं। इसका बहुत शोर-शराबा है। उधर ईसाई चुप-चाप उनका रुतबा बढ़ा रहे हैं। चलो, इस सारी हलचल से ही देश के दुर्भाग्य की लानत दूर हो रही है।

इधर जब अछूतों ने देखा कि उनकी वजह से उनमें फसाद हो रहे हैं तथा उन्हें हर कोई अपनी-अपनी खुराक समझ रहा है तो वे अलग ही क्यों न संगठित हो जाएं? इस विचार के अमल में अंग्रेजी सरकार को कोई हाथ हो अथवा न हो लेकिन इतना अवश्य है कि इस प्रचार में सरकारी मशीनरी का काफी हाथ था। 'आदि धर्म मंडल' जैसे संगठन उस विचार के प्रचार का परिणाम हैं।

अब एक सवाल और उठता है कि इस समस्या का सही निदान क्या हो? इसका जवाब बड़ा अहम है। सबसे पहले यह निर्णय कर लेना चाहिए कि सब इंसान समान हैं और न तो जन्म से कोई भिन्न पैदा हुआ और न कार्य-विभाजन से। एक आदमी गरीब मेहतर के घर हो गया है, इसलिए जीवन भर मैला ही साफ करेगा, दुनिया में किसी तरह के विकास का काम पाने का कोई हक उसे नहीं है, ये बातें फिजूल हैं। 

इस तरह हमारे पूर्वज आर्यों ने इनके साथ ऐसा अन्यायपूर्ण व्यवहार किया और उन्हें नीच कहकर दुत्कार दिया तथा उनसे निम्नकोटि के कार्य करवाने लगे। साथ ही यह भी चिंता हुई कि कहीं ये विद्रोह न कर दें, तब पुनर्जन्म के दर्शन का प्रचार कर दिया कि यह तुम्हारे पूर्व जन्म के पापों का फल है। अब क्या हो सकता है? चुप-चाप दिन गुजारो! इस तरह उन्हें धैर्य का उपदेश देकर वे लोग उन्हें लंबे समय तक के लिए शांत करा गए लेकिन उन्होंने बड़ा पाप किया। 

मानव के भीतर की मानवीयता को समाप्त कर दिया। आत्मविश्वास एवं स्वावलंबन की भावनाओं को समाप्त कर दिया। बहुत दमन और अन्याय किया गया। आज उस सबके प्रायश्चित का वक्त है।

इसके साथ एक दूसरी गड़बड़ी हो गई। लोगों के मनों में आवश्यक कार्यों के प्रति घृणा पैदा हो गई। हमने जुलाहे को भी दुत्कारा। आज कपड़ा बुननेवाले भी अछूत समझे जाते हैं। यू.पी. की तरफ कहार को भी अछूत समझा जाता है। इससे बड़ी गड़बड़ी पैदा हुई। ऐसे में विकास की प्रक्रिया में रुकावटें पैदा हो रही हैं।

इन तबकों को अपने समक्ष रखते हुए हमें चाहिए कि हम न इन्हें अछूत कहें और न समझें। बस, समस्या हल हो जाती है। नौजवान भारत सभा और नौजवान कांग्रेस ने जो ढंग अपनाया है, वह काफी अच्छा है। जिन्हें आज तक अछूत कहा जाता रहा, उनसे अपने इन पापों के लिए क्षमा याचना करनी चाहिए तथा उन्हें अपने जैसा इंसान समझना, बिना अमृत छकाए, बिना कलमा पढ़ाए या शुद्धि किए उन्हें अपने में शामिल करके उनके हाथ से पानी पीना, यही उचित ढंग है। आपस में खींचतान करना और व्यवहार में कोई भी हक न देना, कोई ठीक बात नहीं है। 

जब गांवों में मजदूर-प्रचार शुरू हुआ, उस समय किसानों को सरकारी आदमी यह बात समझा कर भड़काते थे कि देखो, यह भंगी चमारों को सिर पर चढ़ा रहे हैं और तुम्हारा काम बंद करवाएंगे। बस किसान इतने में ही भड़क गए। उन्हें याद रहना चाहिए कि उनकी हालत तबतक नहीं सुधर सकती, जबतक कि वे इन गरीबों को नीच और कमीन कहकर अपनी जूती के नीचे दबाए रखना चाहते हैं। 

अक्सर कहा जाता है कि वह साफ नहीं रहते। इसका उत्तर साफ है- वे गरीब हैं। गरीब का इलाज करो। ऊंचे-ऊंचे कुलों के गरीब लोग भी कोई कम गंदे नहीं रहते। गंदे काम करने का बहाना भी नहीं चल सकता क्योंकि माताएं बच्चों का मैला साफ करने से मेहतर तथा अछूत तो नहीं हो जातीं।

यह काम उतने समय तक नहीं हो सकता जितने समय तक कि अछूत कौमें अपने आपको संगठित न कर लें। हम तो समझते हैं कि उनका स्वयं को अलग संगठनबद्ध करना तथा मुसलमानों के बराबर गिनती में होने के कारण उनके बराबर अधिकारों की मांग करना बहुत आशाजनक संकेत हैं। या तो सांप्रदायिक भेद का झंझट ही खत्म करो या नहीं तो उनके अलग अधिकार उन्हें दे दो। 

कौंसिलों और असेम्बलियों का कर्तव्य है कि वे स्कूल-कॉलेज, कुएं तथा सड़क के उपयोग की पूरी स्वतंत्रता उन्हें दिलाएं। जबानी तौर पर ही नहीं, वरन साथ ले जाकर उन्हें कुओं पर चढ़ाएं। उनके बच्चों को स्कूलों में प्रवेश दिलाएं लेकिन जिस लेजिस्लेटिव में बाल-विवाह के विरुद्ध पेश किए बिल तथा मजहब के बहाने हाय-तौबा मचाई जाती है। वहां वे अछूतों को अपने साथ शामिल करने का साहस कैसे कर सकते हैं?

इसलिए हम मानते हैं कि उनके अपने जन-प्रतिनिधि हों। वे अपने लिए अधिक अधिकार मांगें। हम तो साफ कहते हैं कि उठो, अछूत कहलाने वाले असली जनसेवकों तथा भाइयों! उठो! अपना इतिहास देखो। गुरु गोविन्द सिंह की फौज की असली शक्ति तुम्हीं थे! शिवाजी तुम्हारे भरोसे पर ही सब कुछ कर सके, जिस कारण उनका नाम आज भी जिंदा है। तुम्हारी कुर्बानियां स्वर्णाक्षरों में लिखी हुई हैं। तुम जो नित्यप्रति सेवा करके जनता के सुखों में बढ़ोतरी करके और जिंदगी संभव बनाकर यह बड़ा भारी अहसान कर रहे हो, उसे हम लोग नहीं समझते। 

लैंड-एलियेनेशन एक्ट के अनुसार तुम धन एकत्र कर भी जमीन नहीं खरीद सकते। तुम पर इतना जुल्म हो रहा है कि मिस मेयो मनुष्यों से भी कहती हैं- उठो, अपनी शक्ति पहचानो। संगठनबद्ध हो जाओ। असल में स्वयं कोशिश किए बिना कुछ भी न मिल सकेगा।

स्वतंत्रता के लिए स्वाधीनता चाहनेवालों को यत्न करना चाहिए (Those who would be free must themselves strike the blow.)। इंसान की धीरे-धीरे कुछ ऐसी आदतें हो गई हैं कि वह अपने लिए तो अधिक अधिकार चाहता है लेकिन जो उनके मातहत हैं, उन्हें वह अपनी जूती के नीचे ही दबाए रखना चाहता है। 

कहावत है- 'लातों के भूत बातों से नहीं मानते'। अर्थात् संगठनबद्ध हो तो अपने पैरों पर खड़े होकर पूरे समाज को चुनौती दे दो। तब देखना कोई भी तुम्हें तुम्हारे अधिकार देने से इंकार करने की जुर्रत न कर सकेगा। तुम दूसरों की खुराक मत बनो। दूसरों के मुंह की ओर न ताको लेकिन ध्यान रहे, नौकरशाही के झांसे में मत फंसना। 

यह तुम्हारी कोई सहायता नहीं करना चाहती, बल्कि तुम्हे अपना मोहरा बनाना चाहती है। यही पूंजीवादी नौकरशाही तुम्हारी गुलामी और गरीबी का असली कारण है। इसलिए तुम उसके साथ कभी न मिलना। उसकी चालों से बचना। तब सब कुछ ठीक हो जाएगा।


तुम असली सर्वहारा हो...संगठनबद्ध हो जाओ। तुम्हारी कुछ भी हानि न होगी। बस गुलामी की जंजीरें कट जाएंगी। उठो और वर्तमान व्यवस्था के विरुद्ध बगावत खड़ी कर दो। धीरे-धीरे होने वाले सुधारों से कुछ नहीं बन सकेगा। सामाजिक आंदोलन से क्रांति पैदा कर दो तथा राजनीतिक और आर्थिक क्रांति के लिए कमर कस लो। तुम ही तो देश का मुख्य आधार हो, वास्तविक शक्ति हो। सोए हुए शेरों! उठो और बगावत खड़ी कर दो।

मंगलवार, 9 सितंबर 2014

आदिवासियों को मिले पंचायतों में आरक्षण, आईपीएफ ने मुख्यमंत्री को लिखा पत्र

रॉबर्ट्सगंज तहसील में प्रदर्शन करते आदिवासी
वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो

सोनभद्र। प्रदेश में आदिवासियों की आबादी के अनुपात में त्रिस्तरीय पंचायतों में आरक्षण मुहैया कराये जाने की मांग एक बार फिर जोर पकड़ने लगी है। आल इण्डिया पीपुल्स फ्रंट (आइपीएफ) ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को पत्र लिखकर जिला पंचायत, खंड विकास पंचायत और ग्राम पंचायत स्तर पर आदिवासियों के लिए सीटें आरक्षित करने की मांग की है।

उक्त जानकारी देते हुए आइपीएफ के प्रदेश संगठन प्रभारी दिनकर कपूर ने कहा कि वर्ष 2003 में प्रदेश में अनुसूचित जाति वर्ग में शामिल गोड़, खरवार, पनिका, चेरो, माझी, अगरिया जैसी 17 जातियों को केन्द्र सरकार ने अनुसूचित जनजाति का दर्जा दे दिया था। इसके कारण यह जातियां अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों पर चुनाव लड़ने से वंचित हो गईं क्योंकि उसके बाद अनुसूचित जनजाति की आबादी में त्रिस्तरीय पंचायतों में सीटों का आरक्षण नहीं किया गया था।

उन्होंने कहा कि करीब पन्द्रह लाख की यह आबादी लोकतांत्रिक प्रक्रिया से ही बाहर हो गयी है। सोनभद्र जैसे जनपदों में जहां इन जातियों की बहुलता है, वहां तो कई ग्राम पंचायतों का पद ही रिक्त रह गया। इनके आरक्षण के सम्बंध में तमाम संगठनों ने माननीय उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय में याचिकाएं दाखिल की थी। उनपर न्यायालयों ने इन जातियों के लिए सीटें आरक्षित करने का आदेश दिया है। 

इन आदेशों के अनुपालन में विधानसभा की दुद्धी और ओबरा दो विधानसभा क्षेत्रों को इन जातियों के लिए आरक्षित किया गया है। परन्तु अभी तक पंचायतों में इन जातियों के लिए सीटें आरक्षित नहीं हुई है। मुख्यमंत्री से अनुरोध किया गया कि इस समय प्रदेश में प्रमुख सचिव (पंचायत राज) के आदेश पर पंचायतों के परिसीमन का कार्य चल रहा है। ऐसी स्थिति में आदिवासी समुदायों की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में हिस्सेदारी सुनिश्चित करने के लिए प्रमुख सचिव (पंचायत राज) को आदेश दें कि वह इनके लिए पंचायतों में आरक्षण सुनिश्चित करें।