शनिवार, 21 फ़रवरी 2015

अवैध खनन की एसआईटी जांच समेत 23 सूत्री मांगों को लेकर रिहाई मंच ने दिया धरना

पुलिस अभिरक्षा में हुई खालिद मुजाहिद पर गठित निमेष आयोग की रिपोर्ट पर एटीआर सार्वजनिक करे राज्य सरकारः रिहाई मंच

वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो

लखनऊ। सूबे की बिगड़ती कानून व्यवस्था, वादा खिलाफी, राजनीतिक भ्रष्टाचार, अवैध खनन और मजदूर-किसान विरोधी नीतियों समेत विभिन्न मुद्दों को लेकर रिहाई मंच ने गत 19 फरवरी को स्थानीय लक्ष्मण मेला मैदान में इंसाफ दोबैनर तले धरना दिया। इस दौरान मंच की ओर से मुख्यमंत्री को संबोधित 23 सूत्रीय ज्ञापन राज्य सरकार के प्रतिनिधि को दिया गया। इसमें सोनभद्र और मिर्जापुर समेत प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में हो रहे धड़ल्ले से हो रहे अवैध खनन में संलिप्त खनन माफियाओं, राजनेताओं, नौकरशाहों और कुछ पत्रकारों के सिंडिकेट की जांच उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति के अधीन गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) से कराने की मांग की गई। साथ ही मंच ने 27 फरवरी 2012 को सोनभद्र के बिल्ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र में हुए हादसे में मरने वाले 10 मजदूरों के परिजनों को तत्काल मुआवजा देने के साथ करीब तीन साल से लंबित मजिस्ट्रेटियल जांच पूरी नहीं होने पर राज्य सरकार को आड़े हाथों लिया। मंच ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार खनन मजदूरों के संगठित कातिलों को बचाने की कोशिश कर रही है।

इलाहाबाद से आए सामाजिक न्याय मंच के नेता राघवेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा कि पिछड़ों की हितैशी बताने वाली सपा सरकार में सामंती ताकतों के हौसले बुलंद हैं। पिछले दिनों जालौन के माधौगढ़ के दलित अमर सिंह दोहरे की सामंतों द्वारा नाक काटे जाने की घटना इसका ताजा उदाहरण है। केन्द्र की मोदी सरकार ने जीवन रक्षक दवाओं का दाम बढ़ाकर आम जनता के बुरे दिनों की शुरुआत कर दी है जिस पर प्रदेश सरकार की चुप्पी स्पष्ट करती है कि वह भी गरीब बीमार जनता के खिलाफ दवा माफिया के साथ खड़ी है। उन्होंने मांग की कि अखिलेश सरकार जिला अस्पतालों पर कैंसर, दिमागी बुखार और अन्य जानलेवा बीमारियों के इलाज के लिए विशेष चिकित्सा इकाई स्थापित करे तथा प्रदेश में चल रहे अवैध अस्पतालों को तत्काल बंद कराए। राघवेन्द्र प्रताप सिंह ने बीटीसी प्रशिक्षुओं के धरने का समर्थन करते हुए उनकी मांगों का समर्थन किया है।

धरनाकर्मियों को संबोधित करते हुए सोनभद्र से प्रकाशित हिन्दी साप्ताहिक समाचार-पत्र 'वनांचल एक्सप्रेस' के संपादक शिवदास प्रजापति ने कहा कि अवैध खनन के कारण सोनभद्र का बिल्ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र खनन मजदूरों का कब्रगाह बन गया है। एक सोची-समझी साजिश के तहत वहां औसतन हर दिन एक मजदूर की हत्या की जा रही है और इसमें भ्रष्ट नौकरशाहों से लेकर खनन माफिया, राजनेता और कुछ पत्रकार तक शामिल हैं। यह बात अब खनन विभाग के सर्वेक्षक ने भी लोकायुक्त के यहां दिए बयान में स्वीकार कर लिया है। वास्तव में सोनभद्र-मिर्जापुर समेत प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में हो रहे अवैध खनन में संलिप्त खनन माफियाओं, नौकरशाहों, राजेनताओं और पत्रकारों के सिंडिकेट की जांच उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति के अधीन विशेष जांच दल (एसआईटी) से कराई जानी चाहिए और अवैध खनन के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों के खिलाफ आपराधिक केस दर्ज कर उन्हें जेल भेज देना चाहिए। बिल्ली-मारकुंडी खनन हादसे को करीब तीन साल पूरे हो चुके हैं लेकिन उसकी मजिस्ट्रेटियल जांच अभी तक पूरी नहीं हुई है। इस वजह से मृतक मजदूरों के परिजनों को मुआवजा तक नहीं मिल सका है। सरकार को जल्द से जल्द उक्त खनन हादसे की जांच पूरी करानी चाहिए ताकि इसके दोषी जेल भेजे जा सकें।  

मंच के सदस्य गुफरान सिद्दीकी और हरे राम मिश्र ने कहा कि आज पूरा सोनभद्र अवैध खनन की मंडी बन चुका है और इस गोरखधंदे में नेता, नौकरशाह, खनन माफिया और पत्रकार तक शामिल हैं। इतना ही नहीं राज्य सरकार के खनन मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति समेत मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पूरे सूबे में हो रहे अवैध खनन के लिए जिम्मेदार हैं। अवैध खनन में शामिल राज्य सरकार के मंत्रियों और उनके सहयोगियों के खिलाफ तत्काल आपराधिक मुकदमा दर्ज कराई जानी चाहिए। साथ ही उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति द्वारा उनकी भूमिका की जांच कराकर उन्हें सलाखों के पीछे भेज देना चाहिए ताकि किसी भी खनन मजदूर की हत्या नहीं हो सके और ना ही किसी मंत्री को दो जाने वाली कथित धनराशि "वीआईपी" की वसूली हो सके।

धरने के दौरान आजमगढ़ से आए रिहाई मंच के नेता तारिक शफीक ने कहा कि आतंकवाद के नाम पर मौलाना खालिद मुजाहिद को फर्जी ढंग से फंसाया गया। फिर उनकी हत्या कर दी गई। इसकी विवेचना कर रहे विवेचक जिस तरह से आरोपी पुलिस एवं आईबी के 42 अधिकारियों को बचाने में लगे हैं, वह न्याय की हत्या है। उन्होंने कहा कि विवेचना में जिस तरह से दूसरी बार भी फाइनल रिपोर्ट लगाई गई, वह साबित करती है कि अखिलेश सरकार खालिद को इंसाफ देने वाली नहीं है। तारिक शफीक ने निमेष आयोग की रिपोर्ट पर एक्शन टेकेन रिपोर्ट (एटीआर) जारी करने की मांग की। साथ ही उन्होंने इस मामले में आरोपी 42 पुलिस अधिकारियों पर मुकदमा दर्ज कर उन्हें जेल भेजने की बात कही। उन्होंने सपा सरकार के दौरान आतंकवाद के आरोप से अदालत से दोषमुक्त हो चुके पांच बेगुनाहों का पुर्नवास राज्य सरकार द्वारा तुरंत कराने की भी मांग की।  उन्होंने कहा कि मोदी सरकार में जिस तरह बेगुनाहों का एनकाउंटर के नाम पर कत्ल करने वाले बंजारा को छोड़ा जा रहा है और मुजफ्रनगर के बेगुनाहों के कातिल संगीत सोम के बाद अब सुरेश राणा को भी जेड प्लस सुरक्षा दी गई है, उससे साफ हो गया है कि सांप्रदायिक आतंकवादियों के अच्छे दिन आ गए हैं।
चित्रकूट से आए रिहाई मंच के नेता लक्ष्मण प्रसाद और हाजी फहीम सिद्दीकी ने कहा कि राजधानी में बलात्कारियों का हौसला बढ़ गया है। पिछले दिनों एक बलात्कार पीडि़ता जब बयान देने आयी थी तो चारबाग से ही उसका अपहरण हो गया। वहीं मानिकपुर इलाके की एक घटना का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि आज नौकरशाही में शामिल लोगों के हौसले इतने बढ़ गए हैं कि नीली बत्ती लगी गाड़ी में युवती को खींचकर सामूहिक दुष्कर्म किया जाता है। इसपर जल्द से जल्द लगाम लगना चाहिए।

ऑल इंडिया वर्कर्स काउंसिल के प्रदेश अध्यक्ष शिवाजी राय ने कहा कि गन्ना तथा धान के खरीद में पूरी तरह से फेल हो चुकी अखिलेश सरकार मोदी सरकार द्वारा रासायनिक उर्वरकों के मूल्य को बाजार के हवाले करने की नीति पर पर प्रदेश सरकार ने चुप्पी साध रखी है। नागरिक परिषद के रामकृष्ण ने कहा कि यमुना एक्सप्रेस वे योजना में 232 परिवारों को उजाड़ा गया लेकिन अभी तक उनका पुर्नवास नहीं किया गया है। अंग्रजों द्वारा बनाए गए भूमि अधिग्रहण कानून को तत्काल रद करने की मांग की। सपा सरकार में राजनैतिक आंदोलनकारियों पर मुकदम दर्ज किए जा रहे हैं। उन्होंने मांग की कि राजनैतिक आंदोलनकारियों पर दर्ज मुकदमें वापस लिए जाएं और संविदा कर्मियों को तत्काल स्थाई करते हुए संविदा प्रथा बंद की जाए। 

धरने का संचालन अनिल यादव ने किया। धरने में प्रमुख रुप से हाजी फहीम सिद्दीकी, कमर सीतापुरी, आदियोग, धर्मेन्द्र कुमार, खालिद कुरैशी, अमित मिश्रा, रामबचन, होमेन्द्र मिश्रा, इनायतउल्ला खां, अजीजुल हसन, अमेन्द्र, कमरुद्दीन कमर, डा. एसआर खान, रवि कुमार चौधरी, अनस हसन, अंशुमान सिंह, सत्येन्द्र कुमार, फशीद खान, जैद अहमद फारूकी, केके शुक्ल, मोहम्मद अफाक, शुएब, मोहम्मद शमी, हाशिम सिद्दीकी, इशहाक नदवी, शाहनवाज आलम, राजीव यादव समेत करीब चार दर्जन लोग शामिल थे।

           रिहाई मंच द्वारा मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश को संबोधित ज्ञापन

                                                                      दिनांक- 19 फरवरी 2015
प्रति,                                                                           
                             मुख्यमंत्री
                        उत्तर प्रदेश शासन, लखनऊ

बिगड़ती कानून व्यवस्था, वादा खिलाफी, राजनीतिक भ्रष्टाचार और मजदूर-किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ लक्ष्मण मेला मैदान लखनऊ में आयोजित इंसाफ दो धरने के माध्यम से हम प्रदेश सरकार से मांग करते हैं कि-
§  मौलाना खालिद की हत्या में दोषी पुलिस व आईबी अधिकारियों को क्लीनचिट देने वाले विवेचनाधिकारी के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया जाए।
§  सपा सरकार के चुनावी घोषणा पत्र में किए वादे और आरडी निमेष कमीशन में दी गई व्यवस्था के तहत आतंकवाद के आरोप से दोषमुक्त लोगों के मुआवजा व पुर्नवास की गारंटी की जाए।
§  आरडी निमेष कमीशन की रिपोर्ट पर अमल करते हुए तत्कालीन डीजीपी विक्रम सिंह, एडीजीपी बृजलाल सहित 42 दोषी पुलिस व आईबी अधिकारियों/कर्मियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करते हुए गिरफ्तार किया जाए।
§  सजा पूरी होने के बाद भी जेलों में बंद, लोगों को तत्काल रिहा किया जाए।
§  प्रदेश में महिलाओं की सुरक्षा की गारंटी की जाए।
§  प्रदेश में बढ़ रही दलित उत्पीड़न की घटनाओं पर तत्काल रोक लगाई जाए।
§  जालौन जिले के माधवगढ़ थाने के सुरपति गांव के अमर सिंह दोहरे की उच्च जाति के लोगों द्वारा नाक काट लेने के मामले की उच्च स्तरीय जांच कराई जाए और दोषियों को सजा दी जाए। क्योंकि एससी/एसटी आयोग ने उक्त गांव समेत पूरे बुंदेलखंड इलाके को दलितों के लिए असुरक्षित बताया है।
§  सांप्रदायिक आतंकवाद फैलाने और भड़काऊ भाषण देने वाले संघ परिवार व भाजपा नेताओं के खिलाफ मुकदमें दर्ज किए जाएं।
§  27 फरवरी 2012 को सोनभद्र में हुए बिल्ली-मारकुंडी खनन हादसे में मारे गए दस मजदूरों की मजिस्ट्रेटी जांच पर सरकार स्थिति स्पष्ट करे। हत्या में शामिल दोषी खनन माफियाओं को फिर से खनन की मंजूरी देने वाले दोषी अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया जाए। पीड़ित परिवारों को मुआवजा दिया जाए।
§  सोनभद्र, मिर्जापुर और चंदौली में हो रहे अवैध खनन में संलिप्त राजनेताओं, खनन माफियाओं, भ्रष्ट अधिकारियों और पत्रकारों के सिंडिकेट की जांच हाई कोर्ट के वर्तमान न्यायमूर्ति के अधीन विशेष जांच टीम (एसआईटी) गठित कर की जाए।
§  पूरे सूबे में अवैध खनन कराने और आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के आरोपी खनन मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति और उनके सहयोगी भ्रष्ट अधिकारियों, कर्मचारियों और सत्ताधारी पार्टी के विभिन्न नेताओं के खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज किया जाए।
§  केन्द्र सरकार द्वारा 108 जीवन रक्षक दवाओं की मूल्य वृद्धि पर राज्य सरकार अपना पक्ष सार्वजनिक करे।
§  कैंसर, दिमागी बुखार समेत विभिन्न जानलेवा बीमारियों के उपचार हेतु जिला अस्पतालों पर तत्काल विशेष चिकित्सा इकाई स्थापित की जाए।
§  अवैध अस्पतालों को बन्द कर उनके संचालकों को जेल भेजा जाए तथा पूरे प्रदेश में चल रहे अवैध अस्पतालों की सूची सरकार द्वारा जारी की जाए।
§  गन्ना किसानों की खरीद का भुगतान तत्काल करते हुए, प्रदेश में धान खरीद पर श्वेत पत्र जारी किया जाए।
§  रासायनिक खादों को बाजार के हवाले करने की केन्द्र सरकार की नीति पर प्रदेश सरकार स्थिति स्पष्ट करे।
§  पूरे प्रदेश में तहसील स्तर पर सब्जी व फल मंडियों की स्थापना सुनिश्चित की जाए।
§  अग्रेजों द्वारा बनाए भूमि अधिनियम को समाप्त करते हुए किसान को भूमि स्वामी घोषित किया जाए।
§  ग्राम सभा के बंजर जमीनों के साथ जीएस की जमीनों का वितरण भूमिहीन किसानों को किया जाए।
§  नहरों की सफाई के नाम पर हो रहे भ्रष्टाचार पर सरकार श्वेत पत्र जारी करे।
§  प्रदेश के सभी सरकारी ग्राम सभा के पोखरों और तालाबों को अवैध कब्जे से मुक्त कराया जाए।
§  संविदा पर की गई नियुक्तियों को स्थाई करते हुए संविदा व्यवस्था तत्काल समाप्त की जाए।
§  राजनैतिक आंदोलनकारियों पर दर्ज मुकदमें तत्काल वापस लिए जाएं।

द्वारा-

राघवेन्द्र प्रताप सिंह, शाहनवाज आलम, राजीव यादव, तारिक शफीक, लक्ष्मण प्रसाद, गुफरान सिद्दिीकी, हरेराम मिश्र, शिवाजी राय, रामकृष्ण, अनिल यादव, हाजी फहीम सिद्दीकी, कमर सीतापुरी, आदियोग, धर्मेन्द्र्र कुमार, खालिद कुरैशी, अमित मिश्रा, रामबचन, होमेन्द्र मिश्रा, इनायतउल्ला खां, अजीजुल हसन, शिवदास प्रजापति, अमेन्द्र, कमरुद्दीन कमर, डा. एसआर खान, रवि कुमार चौधरी, अनस हसन, अंशुमान सिंह, सत्येन्द्र कुमार, फशीद खान, जैद अहमद फारूकी, केके शुक्ल, मो0 आफाक, शुएब, मो0 शमी, हाशिम सिद्दीकी, इशहाक नदवी।

रविवार, 15 फ़रवरी 2015

चंदौली में गिरी निर्माणाधीन इमारत, 13 की मौत, पांच घायल

मरने वालों में एक ही परिवार के नौ सदस्य शामिल। शेष चार मजदूर।


reported by महेंद्र प्रजापति

मुगलसराय (चंदौली)। क्षेत्र के बिसौरी गांव में आज तड़के सुबह निर्माणाधीन दो-मंजिली इमारत धराशायी हो गई। इससे 13 लोगों की मौत हो गई जबकि पांच लोग घायल हो गए। इसमें से दो की हालत गंभीर है। घायलों का स्थानीय अस्पताल में इलाज चल रहा है। बताया जा रहा है कि मरने वालों में चार मजदूर हैं। शेष एक ही परिवार के सदस्य हैं। फिलहाल जिला प्रशासन एनडीआरएफ टीम के साथ राहत कार्यों में जुट गया है।

घटना करीब चार बजे भोर की है। लोग इमारत में सो रहे थे। इसी बीच इमारत की दीवार और छत धराशायी हो गया। आवाज सुनकर स्थानीय लोग जाग गए और बाहर निकलकर देखा तो हैरत में पड़ गए। स्थानीय लोगों ने इसकी सूचना जिला प्रशासन को दी और राहत कार्य में भी जुट गए। जिला प्रशासन के अधिकारी एनडीआरएफ टीम के साथ मौके पर पहुंचे और बचाव कार्य में जुट गए। एनडीआरएफ की टीम ने मलबे में दबे 13 शव को बाहर निकाला। शेष पांच लोग घायलावस्था में बाहर निकाले गए। इनमें से सत्तर वर्षीय आमिया बीबी और तीस वर्षीय असगर अली की हालत गंभीर बताई जा रही है। घायलों को स्थानीय अस्पताल में भर्ती करा दिया गया है। मृतकों में कमरूद्दीन हसन, चंदा बीबी, लैला, हसन, अब्बास, जैना (11साल), तसरीना (10 साल), शाहिदा (9 साल), रमजान अली (11 साल) एक ही परिवार के बताए जा रहे हैं। शेष कैसर, निजाम, कल्लू और मंडला मजदूर हैं।

फिलहाल इमारत के धराशायी होने के कारणों का पता नहीं चल पाया है। हालांकि जिला प्रशासन निर्माण में घटिया सामग्री के इस्तेमाल और लापरवाही को जिम्मेदार ठहरा रहा है। फिलहाल वह इसकी जांच कराएगा। वहीं मौके पर मौजूद लोगों का कहना है कि मकान की दूसरी मंजिल पर लगाए गए स्लैप को समय से पहले ही खोल दिया गया था। इस वजह से यह हादसा हो सकता है।   

शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2015

भारतीय गणतंत्र के पैंसठ बरस

ण-तंत्र और पैंसठ बरस। एक, किसी देश के नागरिकों के लिए एकता-अखंडता और सामाजिक न्याय की धुरी है तो दूसरा, उसकी सफलता का पैमाना। सामाजिक न्याय की कसौटी पर पैंसठ वर्षीय भारतीय गणतंत्र का आकलन आज भी चौंकाने वाला है। छांछठवें गणतंत्र दिवस के जश्न का आगाज हो चुका है। विश्व के सबसे शक्तिशाली देश का मुखिया आज हमारे गणतंत्र दिवस समारोह का प्रमुख मेहमान है। मेहमाननवाजी हमारी संस्कृति है और विनम्रता हमारी ताकत। दोनों के संगम का झलक गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर बखूबी देखने को मिला लेकिन सफल गणतंत्र की प्रमुख कड़ी यानी सामाजिक न्याय उक्त अवधि में भारतीय व्यवस्था की कमजोर कड़ी बनकर सामने आया है।

देश की आजादी के समय सामाजिक और आर्थिक आधार पर पिछड़ा वर्ग आज भी पिछड़ा हुआ है। देश के अस्सी फीसदी संसाधनों पर दस प्रतिशत आबादी वाले पूंजीपतियों और धन्नासेठों का कब्जा है। शेष संसाधनों पर सत्ताधारी राजनीतिक पार्टियों के आकाओं और उनके चहेतों का गुलाम बना आम नागरिक अपने अच्छे दिनों की चाह लिए जिंदा है। भारतीय संविधान में प्रदत्त अधिकारों के तहत उन्हें आज भी सामाजिक न्याय के लिए अपनी जिंदगी के बहुमूल्य समय सलाखों और चहारदीवारी के पीछे काटने पड़ रहे हैं। 

देश की नौकरशाही में विद्यमान नीतिनिर्धारकों और निर्णायकों में उनकी भागीदारी नगण्य है। उनके पारंपरिक धंधों पर भी अब सामाजिक और आर्थिक रूप से मजबूत सामंती और शोषक ताकतों का कब्जा होने लगा है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों और ठेकदारी प्रथा ने उन्हें उनकी कौशल क्षमता का गुलाम बना दिया है। उनकी उन्नति का आधार उनकी कौशल क्षमता पारिवारिक जिम्मेदारियों में फंसकर दम तोड़ती जा रही है। देश की तथाकथित लोकतांत्रिक सरकार के गठन में उनकी भागीदारी केवल मताधिकार तक सिमट गई है। 

जनप्रतिनिधियों से जवाब मांगने का उनका संवैधानिक अधिकार रोजी-रोटी की तलाश बन गया है। कभी-कभी उनका भेजा फिर भी गया तो भ्रष्ट तंत्र उसकी गुलामी का अहसास करा देता है। फिर कभी वह अपने संवैधानिक अधिकार का बात नहीं करता। अगर कर भी लिया तो वह भी उसी धारा में बहने को मजबूर हो जाता है जिस राजनीतिक धारा में देश की वर्तमान व्यवस्था बह रही है। वंचित तबकों के नेताओं के बदलते स्वरूप आज कुछ ऐसे ही संकेत दे रहे हैं।

भारतीय गणतंत्र के पैंसठ बरस बुद्धिजीवियों और समाजशास्त्रियों को आवारा पूंजी और बाजार की गुलामी का अहसास करा रहे हैं जो एक साम्राज्यवादी सत्ता की विशेषता है। वास्तव में भारत की गणतांत्रिक व्यवस्था के रक्षक साम्राज्यवादी सत्ता की गुलामी स्वीकार करने की ओर अग्रसर हो रहे हैं जो एक लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए घातक संकेत है। यह देश में सामाजिक न्याय के सवाल के लिए भी घातक है। 

साम्राज्यवाद और वैश्वीकरण की गूंज में यह कहीं खो सा गया है जो भारतीय गणतंत्र को अंदर ही अंदर खोखला बना रहा है। पूंजी का बदलता स्वरूप कानूननिर्माताओं को स्वार्थपन की ओर अग्रसर कर रहा है। इस वजह से अमीर और गरीब की खाईं दिन प्रति दिन बढ़ती जा रही है। सामाजिक न्याय का फासला और बढ़ रहा है। धन्नासेठों के मुकदमे जल्द खत्म हो रहे हैं तो गरीबों की कई पीढ़ियां एक मुकदमे को लड़ने में कर्जदार बनती जा रही हैं। 

इन हालात में गणतंत्र दिवस का जश्न कई सवाल लेकर एक बार फिर दस्तक दे चुका है। क्या इस जश्न में सामाजिक न्याय के प्रति कानून-निर्माताओं और निर्णायकों का नज़रिया बदलेगा? अगर नहीं तो निश्चित ही यह भारत की गणतांत्रिक व्यवस्था के लिए शुभ संकेत नहीं होगा। किसी ने कहा है जिंदगी आशाओं की डोर है। हम भी इसके हिस्से हैं। इसलिए बदलाव की आशा के साथ गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!


‘गरीबी और मौत’ का खनन

देश के हर हिस्से में खनिजों का दोहन हो रहा है। कहीं बहुराष्ट्रीय कंपनियां दोहन कर रही हैं तो कहीं खनन माफिया। सबसे खतरनाक स्थिति यह है कि जनसेवा और समाजसेवा के नाम की दुहाई देकर संवैधानिक पद हथियाने वाले भी शामिल हो गए हैं। नतीजतन देश के विभिन्न हिस्सों, खासकर जंगल और पहाड़ों, में पर्यावरण संरक्षण और सुरक्षा के प्रावधानों का उल्लंघन बड़े पैमाने पर हो रहा है। संवैधानिक पदों पर बैठे राजनेता और नौकरशाह, दोनों आम आदमी के हितों को नजरअंदाज कर अपने आकाओं और अपनी झोली भरने में लगे हैं। 

इसका नतीजा यह हुआ है कि खनन क्षेत्र में काम करने वाले मजदूरों को ना ही उनका हक मिल पा रहा है और ना ही न्याय। भारतीय संविधान में प्रदत्त अधिकारों की बात करना भी उनके लिए बेमानी है। गरीबी का दंश उन्हें हर दिन मौत का कुआं बन चुकी खदानों में ले जाने को बाध्य कर देता है जबकि वे जानते हैं कि शाम उनकी घर वापसी नहीं भी हो सकती है। उत्तर प्रदेश के आदिवासी बहुल जनपद सोनभद्र के बिल्ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र में ‘गरीबी और मौत’ के खनन का ऐसा उदाहरण हर दिन देखने को मिलता है लेकिन वर्ष 2012 में 27 फरवरी को करीब एक दर्जन मजदूरों की ‘संगठित हत्या’ सबसे व्यथित करने वाली है। 

उस घटना के करीब तीन साल होने को हैं लेकिन जिला प्रशासन की ओर से मुख्य विकास अधिकारी को सौंपी गई मजिस्ट्रेटियल जांच अभी पूरी नहीं हुई है। इससे मृतकों के परिजनों को सरकार की ओर से निर्धारित मुआवजा भी नहीं मिला है। उनके हत्यारे कानून के शिकंजे से बाहर हैं वो अलग। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि हादसे वाली उक्त खदान समेत सभी जानलेवा खदानों में अवैध खनन का गोरखधंधा जिला प्रशासन के सहयोग से जारी है। इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि वर्तमान परिवेश में किसका खनन हो रहा है, खनिज का या फिर गरीबी और मौत का। 

वास्तव में पूंजी और सत्ता केंद्रित सरकारें अप्रत्यक्ष रूप से गरीबी और मौत के खनन की नीतियां तैयार कर रही हैं क्योंकि वे कानूनों के होते हुए भी बार-बार नीतियों का हवाला देकर अवैध खनन और उससे होनी वाली मौत को अमली जामा पहनाते जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा बनाई गई खनिज (परिहार) नियमावली और बार-बार उसमें हुए संशोधनों से यही पता चलता है। अवैध खननकर्ताओं के लिए कोई भी कठोर प्रावधान, खासकर संगीन धाराओं में आपराधिक मुकदमों के तहत कार्रवाई करने का कोई प्रावधान नहीं है। 

इसका नजीता यह हुआ है कि उत्तर प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों से अवैध खनन से मरने वाले मजदूरों की मौत की खबरें हर दिन मीडिया की सुर्खियां बटोर रही हैं लेकिन इसके लिए जिम्मेदार सफेदपोशों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई या सजा की खबर मेरे जेहन में अभी तक जगह नहीं बना पाई है। क्या डॉ. भीमराव अंबेडकर, डॉ. राम मनोहर लोहिया और महात्मा गांधी ने समाज के नीचले पायदान पर जीवन व्यतीत करने वालों के लिए यहीं सपना देखा था? उन्होंने हरगिज ऐसी कल्पना नहीं की होगी लेकिन उनके विचारों का अनुसरण करने की दुहाई देने वाले तथाकथित राजनेता और सफेदपोश इसे हकीकत में तब्दील कर चुके हैं। इन हालात में सामाजिक न्याय और प्रगतिशील सोच वाले लोगों को एकजुट होकर ‘गरीबी और मौत’ के खनन के खिलाफ ईमानदारी से बिगुल फूंकने की जरूरत है ताकि खनन हादसों में मरने वाले हर नागरिक को न्याय मिल सके।


सोमवार, 9 फ़रवरी 2015

सोनभद्र में अवैध खनन के लिए राज्य सरकार दोषीः चौधरी राजेन्द्र

वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो

सोनभद्र। जिले में धड़ल्ले से चल रहे अवैध खनन का मामला उच्चतम न्यायालय से लेकर मानवाधिकार आयोग तक में गूंज चुका है लेकिन सूबे की सत्ता में काबिज नुमाइंदों और उनके सेवकों पर कोई फर्क नहीं पड़ा। सामाजिक कार्यकर्ताओं ने और जनप्रतिनिधियों ने कैमूर क्षेत्र में हो रहे अवैध खनन की जांच सीबीआई से  कराने की मांग की है और इसके लिए राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहराया है।

बीएचयू के पूर्व छात्र नेता और सामाजिक कार्यकर्ता चौधरी राजेंद्र ने सोनभद्र में अवैध खनन के लिए राज्य सरकार को दोषी ठहराया। उन्होंने कहा कि सूबे की सत्ता में काबिज नेता समाजवाद को लाने की बात करते हैं लेकिन वे पूंजीवाद के पोषक हैं। वे पूंजी संचित करने के लिए गरीबों का खून बहा रहे हैं। उनकी हत्या कर रहे हैं। अवैध खनन को बढ़ावा देकर आदिवासियों और वनवासियों के जीने का साधन छीन रहे हैं। यह एक समाजवादी सरकार का कदम नहीं हो सकता। यह निश्चित तौर पर पूंजीवादी और सामंती परंपरा को काबिज रखने वाले नेताओं की कारगुजारियां हैं जिसे जल्द से जल्द रोक देना चाहिए। इसके लिए हम सभी को मिलकर सोनभद्र, मिर्जापुर समेत राज्य के विभिन्न इलाकों में चल रहे अवैध खनन बंद कराने के लिए आगे आना होगा। 

जनता दल (युनाइटेड) के युवा नेता और अधिवक्ता अतुल कुमार पटेल ने सोनभद्र में अवैध खनन और परिवहन की जांच सीबीआई से कराने की मांग की। उन्होंने कहा कि सूबे की सत्ता में काबिज समाजवादी पार्टी के नेताओं और मंत्रियों के इशारे पर जिले में अवैध खनन हो रहा है, इसलिए पूरे प्रकरण की जांच सीबीआई से कराई जानी चाहिए।

ओबरा निवासी पूर्व छात्र नेता और समाजसेवी विजय शंकर यादव ने करीब तीन साल पहले सोनभद्र में अवैध खनन को लेकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से लिखित शिकायत की थी। उस शिकायत में उन्होंने हिंदी साप्ताहिक ‘चौथी दुनिया’ में प्रकाशित रिपोर्ट ‘विंध्य की खदानें बनी मौत का कुआं’ का जिक्र भी किया था। इसके बाद भी सरकार की ओर से पत्थर की इन अवैध खदानों को बंद करने की कोशिश नहीं की गई। उत्तर प्रदेश सरकार और जिला प्रशासन की निरंकुशता का जिक्र करते हुए उन्होंने सोनभद्र में अवैध खनन की जांच उच्च न्यायालय के किसी न्यायमूर्ति की अगुआई में कराने की मांग की है।

सोनभद्र-मिर्जापुर परिक्षेत्र में अवैध खनन को लेकर उच्च न्यायालय, इलाहाबाद में जनहित याचिका दायर कर अवैध खननकर्ताओं समेत जिला प्रशासन के नुमाइंदों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग करने वाले भारतीय सामाजिक न्याय मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष चौधरी यशवंत सिंह ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार आदिवासियों और वनवासियों को खत्म करना चाहती है ताकि वह सोनभद्र के खनिज पदार्थों को खुलेआम दोहन कर सके। इसके लिए उसने जिले में अवैध खनन को अंदरखाने वैध कर दिया है। अवैध खनन के लिए जिम्मेदार पूर्व जिला खनन अधिकारी एके सेन की बार-बार नियुक्ति इस बात का प्रमाण है।

पर्यावरण स्वच्छता प्रमाण-पत्र के बिना उत्खनन अवैध

उत्तर प्रदेश उप-खनिज (परिहार) नियमावली-1963 के तहत उत्खनन करने के लिए निर्धारित नियम एवं शर्तेः
(1) खनन पट्टा धारक को भारत सरकार के पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा 14 सितंबर, 2006 को निर्गत अधिसूचना के प्रावधानों के अंतर्गत ʻपर्यावरण स्वच्छता प्रमाण-पत्रʼ प्राप्त करना अनिवार्य होगा।
(2) खनन कार्य स्वीकृत क्षेत्र के अंतर्गत किया जाएगा।
(3) स्वीकृत क्षेत्र में सीमा चिन्ह मानक के अनुसार बनाया जायेगा तथा सदैव उसका अनुरक्षण किया जाएगा।
(4) बालू या मोरम या बजरी या बोल्डर या इनमें से कोई भी, जो मिली-जुली अवस्था में नदी तल में अन्य रूप से पाया जाता है, के संबंध में खनन संक्रियायें खनन योजना के अनुसार, जिसमें क्षेत्रों के भूमि उद्धार एवं पुनर्वास पहलू सम्मिलित होंगे और भूतत्व एवं खनिकर्म विभाग द्वारा अनुमोदित खनन योजना एवं खान बन्दी के उत्तरोत्तर योजना के अनुमोदन के अनुसार ही किये जाएंगे।
(5) नदी तल में पट्टाधारक 03 मीटर की गहराई अथवा जलस्तर, दोनों में से जो कम से कम हो, से अधिक गहराई में खनन संक्रियायें नहीं करेगा और जिलाधिकारी द्वारा चिन्हित सुरक्षा क्षेत्र में खनन नहीं किया जाएगा।
(6)पट्टाधारक द्वारा अपने स्वीकृत क्षेत्र के अंतर्गत साइन बोर्ड, जिनमें स्वीकृत क्षेत्र का पूर्ण विवरण अंकित हो, लगाया जाएगा।
(7) शासनादेश के अनुसार सक्षम अधिकारी की अनुमति प्राप्त किये बिना खनन कार्य एवं लोडिंग में मशीन का प्रयोग नहीं किया जाएगा।
(8) खनन कार्य से वन, पर्यावरण, नदी की प्राकृतिक धारा एवं किनारों को कोई क्षति नहीं पहुंचाई जाएगी।
(9) स्वीकृत खनन पट्टा क्षेत्र से खनन कर निकासी किये गये खनिज का परिवहन सिर्फ जिला खनन कार्यालय द्वारा जारी प्रपत्र एम.एम.-11 द्वारा ही किया जाएगा। इसके अतिरिक्त किसी अन्य प्रपत्र का उपयोग किये जाने अथवा स्वीकृत क्षेत्र से बाहर खनन कार्य करते हुए पाये जाने एवं दोष सिद्ध होने पर पट्टा निरस्त किया जा सकता है।
(10) खनन कार्य करने के दौरान यदि कोई अन्य खनिज या उप-खनिज पाया जाता है तो उसकी सूचना पट्टाधारक तत्काल जिला खनन कार्यालय तथा भूतत्व एवं खनिकर्म विभाग, उत्तर प्रदेश के क्षेत्रीय कार्यालय एवं निदेशालय को देगा।
(11) खनन पट्टा स्वीकृति के पश्चात् भविष्य में वन विभाग या किसी अन्य विभाग द्वारा शर्तों के विपरीत कार्य करने के कारण आपत्ति किये जाने पर उत्तर प्रदेश उप-खनिज(परिहार) नियमावली-1963 के नियम-60 के अधीन युक्तियुक्त अवसर दिये जाने के पश्चात् खनन पट्टा निरस्त किया जा सकता है।
(12) पट्टाधारक द्वारा खनन क्षेत्र तक पहुंच मार्ग स्वयं के व्यय पर बनाया जाएगा। यदि खनिजों के परिवहन हेतु किसी काश्तकार की भूमि से होकर रास्ते का निर्माण किया जाता है तो संबंधित काश्तकार की लिखित सहमति संबंधी अभिलेख जिला खनन (क्वैरी) कार्यालय में प्रस्तुत करना अनिवार्य होगा। रास्ते के निर्माण में होने वाले व्यय के लिए राज्य सरकार का कोई उत्तरदायित्व नहीं होगा।
(13) खनन स्थल से निकाल गये खनिज पदार्थ का परिवहन वन विभाग की लिखित सहमति के बिना वन मार्ग से नहीं किया जाएगा। इसके लिए नियमानुसार सक्षम अधिकारी की अनुमति प्राप्त करना अनिवार्य है।
(14) स्वीकृत खनन पट्टा क्षेत्र की परिधि के बाहर कोई अवैध खनन पाये जाने पर उत्तर प्रदेश उप-खनिज(परिहार) नियमावली-1963 के नियम-60 के अधीन युक्तियुक्त अवसर दिये जाने के पश्चात् खनन पट्टा निरस्त किया जा सकता है।
(15) पट्टाधारक को सुसंगत नियमों एवं शासनादेशों का पालन करना होगा।
(16) पट्टा आबंटन संबंधी समस्त कार्यवाही शासन/निदेशक, भूतत्व एवं खनिकर्म निदेशालय, उ.प्र. द्वारा जारी आदेशों/निर्देशों के अधीन होगी।
(17)मा. उच्च न्यायालय/सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कोई अन्यथा आदेश पारित किया जाता है तो पट्टाधारक ऐसे आदेशों का पालन करने हेतु बाध्य होगा। ऐसे आदेशों के अनुक्रम में खनन पट्टा प्रतिबंधित अथवा निरस्त किया जा सकता है।
(18) खनन पट्टा आबंटन के लिए आवेदन करना वाला व्यक्ति पूर्व में अवैध खनन की गतिविधियों में संलिप्त न रहा हो और न ही उसे अवैध खनन के अपराध के लिए सक्षम न्यायालय द्वारा दण्डित किया गाय हो।
(19) राजकीय विभागों द्वारा आवेदक के विरुद्ध कोई कार्यवाही की संस्तुति नहीं की गई है।

(20) आवेदक का कोई आपराधिक इतिहास नहीं हो।