मंगलवार, 3 अप्रैल 2018

काशी की सडकों पर फूंटा बहुजनों का गुस्सा, भारत बंद के समर्थन में भाकपा-माले ने भी निकाला मार्च

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में लगे "नरेन्द्र मोदी...मुर्दाबाद-मुर्दाबाद" के नारे। पुलिस बनी रही मूकदर्शक।
वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो
वाराणसी। सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनुसूचित जाति एवं अनुुुसूूूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम को निष्प्रभावी बनाने में केंद्र सरकार  की भूमिका और बहुजन समुदाय विरोधी उसकी नीतियोंं, खासकर आरक्षण विरोधी, के खिलाफ बहुजनों ने सोमवार को वाराणसी की सड़कों पर प्रतिरोध मार्च निकाला और व्वसायिक प्रतिष्ठानों को बंद कराया। इसे लेकर पुलिस प्रशासन और भारत बंद समर्थकों में नोक-झोंक भी हुई। इस दौरान "नरेन्द्र मोदी...मुर्दाबाद-मुर्दाबाद" और पुलिस प्रशासन मुर्दाबाद आदि के नारे भी लगे। आखिर में प्रदर्शनकारी प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में भारत बंद कराने सफल रहे। उधर जिला मुख्यालय पर भाकपा माले के सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने जिला संयोजक मनीष शर्मा के नेतृत्व में मार्च निकालकर बहुजनों के भारत बंद को समर्थन दिया।
सोमवार की सुबह करीब दस बजे भारत बन्द के समर्थन में बीएचयू के छात्र-छात्राओं, कर्मचारी, अधिकारियों एवं शिक्षकों ने लंका स्थित सिंहद्वार पर सैकड़ों की संख्या में जोरदार प्रदर्शन किया और जुलूस की शक्ल में संत रविदास गेट तक प्रतिरोध मार्च निकाला और दुकानें बंद करवाईं। इस दौरान प्रदर्शकारी बहुजन छात्रों और पुलिसकर्मियों के बीच नोकझोंक भी हुई। *अनुसूचित जाति, जनजाति एवं पिछड़ा वर्ग संघर्ष समिति* के तत्वावधान में आयोजित बंद के समर्थन में बीएचयू के विभिन्न विभागों के छात्र-छात्रायें, कर्मचारी, अधिकारी और अध्यपकोंं सहित शहर के विभिन्न शासकीय स्कूलों के शिक्षक-शिक्षिकाओं के साथ अनेक कर्मचारी, अधिकारी भी भारी संख्या में शामिल हुये और केंद्र सरकार तथा सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के खिलाफ जमकर नारेबाजी की और व्यापारियों से अपनी दुकानें बन्द कर बंद का सहयोग करने का आह्वान किया। विरोध मार्च और बंद के समर्थन में प्रदर्शनकारियों ने सिंहद्वार से रविदास गेट तक 3 घंटे तक प्रदर्शन किया। प्रदर्शकारियों में भारतीय समता परिवार, भगत सिंह छात्र मोर्चा, बीएचयू शोध छात्र मोर्चा आदि संगठनों के कार्यकर्ताओं समेत प्रो. एमपी अहिरवार, डा. प्रमोद बांगड़े, डा. अमरनाथ पासवान, डा. मंजू गौतम और दर्जनों की संख्या में कर्मचारी शामिल थे। सिंह द्वार पर हुई सभा में वक्ताओंं ने कहा कि जब से भाजपा सरकार सत्ता में आई है, तब से देश के विभिन्न मोर्चों पर वह लगातार साजिश हो रही है।

पहले यूजीसी के अवैधानिक फरमान से व विश्वविद्यालयो को स्वायत्त बनाकर बहुजनों(एससी एसटी ओबीसी) प्रतिनिधित्वकारी हक छिनने की प्रक्रिया और अब एससी एसटी एक्ट को कमजोर बनाकर विंचितों को न्याय प्रक्रिया से ही बाहर करने की साज़िश ! लोकतंत्र और संवैधानिक प्रावधानों को कुचलने की प्रक्रिया में जिस तरीके से हरियाणा का भगाना कांड, हैदराबाद में रोहित वेमुला की शहादत, गुजरात का ऊना कांड, इलाहाबाद में दिलीप सरोज की हत्या जैसी अनेक विभत्स घटनाएं शासन-सत्ता की हनक या समर्थन से की जा रही हैं। अब मनुवादियों ने संवैधानिक निकायों के जरिए ही वंचितों मजलूमों बहुजनों के अधिकारों पर हमला बोलना शुरू कर दिया है।

इसी प्रक्रिया में सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम को पंगु बनाए जाने का फैसला दिया जिसे वर्तमान की मनुवादी सरकार ने बिना किसी तर्क वितर्क के मौन स्वीकृति दे रखी है, सुप्रीम कोर्ट ने फरमान दिया है कि यदि किसी अधिकारी के खिलाफ एससी एसटी एक्ट के तहत प्राथमिकी दर्ज कराई जाती है तो उस मामले में प्राथमिकी दर्ज करने से पहले एसपी डीएसपी लेवल के अधिकारी जी अनुमति लेनी होगी, यह विदित तथ्य है कि समाज के वंचितों के लिए अपनी दासता  की बेड़ियां तोड़कर थाने तक पहुंचना बेहद मुश्किल होता है, थाने पर पहुंचने पर कई बार वहीं से डांट कर भगा दिया जाता है, बेहद कम मामलों में अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम आरोपियों पर लगाया जाता है। कई बार वंचित समाज के लोग मनुवादियों द्वारा भी उत्पीड़ित किए जाते हैं तथा शिकायत लेकर जाने पर पुलिस अधिकारियों द्वारा भी।  ऐसी स्थितियों में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी किया गया फरमान पूरे अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम को ही कमजोर बनाने का काम करेगा क्योंकि अधिकारी वर्ग के खिलाफ लागू नहीं हो पाएगा । मनुवादी सरकार की मौन स्वीकृति को इस रूप में समझा जाना चाहिए की इससे इसे भारत की आदिवासी जनजातियां लोकतांत्रिक तरीके से अपनी लड़ाई नहीं लड़ पाएंगी। मनुवादी सत्ता व पूंजीवादियों का गठजोड़ जनजातियो को उनके  जंगल, जमीन, जीवन से बेदखल कर खुल कर प्राकृतिक संसाधनो के दोहन का  धंधा कर पाएंगे। 
भारत बंद के इस आयोजन में रविंद्र भारतीय, कृष्ण कुमार यादव, विजेंद्र मीना, हाशिम अंसारी , मदनलाल ,रामायण पटेल, रणवीर सिंह , चंद्रभान, सुनील कुमार, संदीप कुमार , प्रतिभा, नेहा, अल्पना, अर्चना, अजय कुमार, शिवम कुमार, सुशील कु यादव, नितीश यादव, मनीष कुमार, मनीष सक्सेना, राजीव मौर्य, शिवेंद्र मौर्य, नरेश राम समेत करीब तीन सौ लोग शामिल रहे।
इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति को संबोधित एक ज्ञापन लंका थाना प्रभारी को सौंपा। अनुसूचित जाति, जनजाति अत्याचार निवारण कानून को निष्प्रभावी बनाये जाने के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के विरुद्ध देश व्यापी विरोध और सामूहिक अवकाश के समर्थन में बीएचयू के शिक्षकों, कर्मचारियों ने भी अवकाश लिया था।

उधर, बहुजनों के भारत बंद के समर्थन में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) यानी भाकपा-माले के सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने जिला सचिव मनीष शर्मा के नेतृत्व में जिला मुख्यालय स्थित सर्किट हाउस से मार्च निकाला। मार्च को लेकर पुलिसकर्मियों और प्रदर्शनकारियों में नोंकझोंक भी हुई।

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