रविवार, 5 अक्तूबर 2014

अछूत समस्या के जकड़न में फंसी भारतीय व्यवस्था

(काकीनाडा में 1923 में कांग्रेस अधिवेशन हुआ। मुहम्मद अली जिन्ना ने अपने अध्यक्षीय भाषण में आजकल की अनुसूचित जातियों, जिन्हें उन दिनों 'अछूत' कहा जाता था, को हिन्दू और मुस्लिम मिशनरी संस्थाओं में बांट देने का सुझाव दिया। हिन्दू और मुस्लिम अमीर लोग इस वर्गभेद को पक्का करने के लिए धन देने को तैयार थे। इस प्रकार अछूतों के यह 'दोस्त' उन्हें धर्म के नाम पर बांटने की कोशिशें करते थे। उसी समय जब इस मसले पर बहस का वातावरण था, भगत सिंह ने 'अछूत का सवाल' नामक लेख लिखा। इस लेख में श्रमिक वर्ग की शक्ति और सीमाओं का अनुमान लगाकर उसकी प्रगति के लिए ठोस सुझाव दिए गए हैं। भगत सिंह का यह लेख जून, 1928 के 'किरती' में विद्रोही नाम से प्रकाशित हुआ था। - संपादक)

written by Bhagat Singh

मारे देश जैसे बुरे हालात किसी दूसरे देश के नहीं हुए। यहां अजब-अजब सवाल उठते रहते हैं। एक अहम सवाल अछूत-समस्या है। समस्या यह है कि 30 करोड़ की जनसंख्या वाले देश में जो छह करोड़ लोग अछूत कहलाते हैं, उनके स्पर्श मात्र से धर्म भ्रष्ट हो जाएगा! उनके मंदिरों में प्रवेश से देवगण नाराज हो उठेंगे! कुएं से उनके द्वारा पानी निकालने से कुआं अपवित्र हो जाएगा! ये सवाल बीसवीं सदी में किए जा रहे हैं, जिन्हें कि सुनते ही शर्म आती है।

हमारा देश बहुत अध्यात्मवादी है लेकिन हम मनुष्य को मनुष्य का दर्जा देते हुए भी झिझकते हैं जबकि पूर्णतया भौतिकवादी कहलाने वाला यूरोप कई सदियों से इंकलाब की आवाज उठा रहा है। उन्होंने अमेरिका और फ्रांस की क्रांतियों के दौरान ही समानता की घोषणा कर दी थी। आज रूस ने भी हर प्रकार का भेदभाव मिटाकर क्रांति के लिए कमर कसी हुई है। हम सदा ही आत्मा-परमात्मा के वजूद को लेकर चिंतित होने तथा इस जोरदार बहस में उलझे हुए हैं कि क्या अछूत को जनेऊ दे दिया जाएगा? वे वेद-शास्त्र पढ़ने के अधिकारी हैं अथवा नहीं? हम उलाहना देते हैं कि हमारे साथ विदेशों में अच्छा सलूक नहीं होता। अंग्रेजी शासन हमें अंग्रेजों के समान नहीं समझता लेकिन क्या हमें यह शिकायत करने का अधिकार है?

सिंध के एक मुस्लिम सज्जन श्री नूर मुहम्मद ने, जो बम्बई कौंसिल के सदस्य हैं, इस विषय पर 1926 में खूब कहा-
"If the Hindu society refuses to allow other beings, fellow creatures so that to attend public school, and if the president of local board representing so many lakhs of people in this house refuses to allow his fellows and brothers the elementary human rights of having water to drink, what right have they have to ask for more rights from the bureaucracy? Before we accuse people coming from other from lands, we should see how we ourselves behave toward our own people. How can ask for greater political rights when we ourself deny elementary rights of human beings."

वे कहते हैं कि जब तुम एक इंसान को पीने के लिए पानी देने से भी इंकार करते हो, जब तुम उन्हें स्कूल में भी पढ़ने नहीं देते तो तुम्हें क्या अधिकार है कि अपने लिए अधिक अधिकारों की मांग करो? जब तुम एक इंसान को समान अधिकार देने से भी इंकार करते हो तो तुम अधिक राजनीतिक अधिकार मांगने के अधिकारी कैसे बन गए?

बात बिल्कुल खरी है लेकिन यह क्योंकि एक मुस्लिम ने कही है, इसलिए हिन्दू कहेंगे कि देखो, वह उन अछूतों को मुसलमान बना कर अपने में शामिल करना चाहते हैं। जब तुम उन्हें इस तरह पशुओं से भी गया-बीता समझोगे तो वह जरूर ही दूसरे धर्मों में शामिल हो जाएंगे, जिनमें उन्हें अधिक अधिकार मिलेंगे, जहां उनसे इंसानों जैसा व्यवहार किया जाएगा। फिर यह कहना कि देखो जी, ईसाई और मुसलमान हिन्दू कौम को नुकसान पहुंचा रहे हैं, व्यर्थ होगा।

कितना स्पष्ट कथन है लेकिन यह सुनकर सभी तिलमिला उठते हैं। ठीक इसी तरह की चिंता हिंदुओं को भी हुई। सनातनी पंडित भी कुछ न कुछ इस मसले पर सोचने लगे। बीच-बीच में बड़े 'युगांतरकारी' कहे जाने वाले भी शामिल हुए। पटना में हिंदू महासभा का सम्मेलन लाला लाजपत राय, जो अछूतों के बहुत पुराने समर्थक चले आ रहे हैं, की अध्यक्षता में हुआ तो जोरदार बहस छिड़ी। अच्छी नोंक-झोंक हुई। समस्या यह थी कि अछूतों को यज्ञोपवीत धारण करने का हक है अथवा नहीं? क्या उन्हें वेद-शास्त्रों का अध्ययन करने का अधिकार है

बड़े-बड़े समाज-सुधारक तमतमा गए लेकिन लालाजी ने सबको सहमत कर दिया तथा यह दो बातें स्वीकृत कर हिन्दू धर्म की लाज रख ली। वरना जरा सोचो, कितनी शर्म की बात होती। कुत्ता हमारी गोद में बैठ सकता है। हमारी रसोई में निःसंग फिरता है लेकिन एक इंसान का हमसे स्पर्श हो जाए तो बस धर्म भ्रष्ट हो जाता है। 

इस समय मालवीय जी जैसे बड़े समाज-सुधारक, अछूतों के बड़े प्रेमी और न जाने क्या-क्या, पहले एक मेहतर के हाथों गले में हार डलवा लेते हैं लेकिन कपड़ों सहित स्नान किए बिना स्वयं को अशुद्ध समझते हैं! क्या खूब यह चाल है! सबको प्यार करने वाले भगवान की पूजा करने के लिए मंदिर बना है लेकिन वहां अछूत जा घुसे तो वह मंदिर अपवित्र हो जाता है! भगवान रुष्ट हो जाता है! घर की जब यह स्थिति हो तो बाहर हम बराबरी के नाम पर झगड़ते अच्छे लगते हैं

तब हमारे इस रवैये में कृतघ्नता की भी हद पाई जाती है। जो निम्नतम काम करके हमारे लिए सुविधाओं को उपलब्ध कराते हैं, उन्हें ही हम दुरदुराते हैं। पशुओं की हम पूजा कर सकते हैं लेकिन इंसान को पास नहीं बैठा सकते!

आज इस सवाल पर बहुत शोर हो रहा है। उन विचारों पर आजकल विशेष ध्यान दिया जा रहा है। देश में मुक्ति कामना जिस तरह बढ़ रही है, उसमें सांप्रदायिक भावना ने और कोई लाभ पहुंचाया हो अथवा नहीं, लेकिन एक लाभ जरूर पहुंचाया है। वह है अधिक अधिकारों की मांग के लिए अपनी-अपनी कौमों की संख्या बढ़ाने की चिंता जो सबको हुई। मुसलमानों ने जरा ज्यादा जोर दिया। 

उन्होंने अछूतों को मुसलमान बनाकर अपने बराबर अधिकार देने शुरू कर दिए। इससे हिन्दुओं के अहम को चोट पहुंची। स्पर्धा बढ़ी। फसाद भी हुए। धीरे-धीरे सिखों ने भी सोचा कि हम पीछे न रह जाएं। उन्होंने भी अमृत छकाना आरम्भ कर दिया। हिंदू-सिखों के बीच अछूतों के जनेऊ उतारने या केश कटवाने के सवालों पर झगड़े हुए। अब तीनों कौमें अछूतों को अपनी-अपनी ओर खींच रही हैं। इसका बहुत शोर-शराबा है। उधर ईसाई चुप-चाप उनका रुतबा बढ़ा रहे हैं। चलो, इस सारी हलचल से ही देश के दुर्भाग्य की लानत दूर हो रही है।

इधर जब अछूतों ने देखा कि उनकी वजह से उनमें फसाद हो रहे हैं तथा उन्हें हर कोई अपनी-अपनी खुराक समझ रहा है तो वे अलग ही क्यों न संगठित हो जाएं? इस विचार के अमल में अंग्रेजी सरकार को कोई हाथ हो अथवा न हो लेकिन इतना अवश्य है कि इस प्रचार में सरकारी मशीनरी का काफी हाथ था। 'आदि धर्म मंडल' जैसे संगठन उस विचार के प्रचार का परिणाम हैं।

अब एक सवाल और उठता है कि इस समस्या का सही निदान क्या हो? इसका जवाब बड़ा अहम है। सबसे पहले यह निर्णय कर लेना चाहिए कि सब इंसान समान हैं और न तो जन्म से कोई भिन्न पैदा हुआ और न कार्य-विभाजन से। एक आदमी गरीब मेहतर के घर हो गया है, इसलिए जीवन भर मैला ही साफ करेगा, दुनिया में किसी तरह के विकास का काम पाने का कोई हक उसे नहीं है, ये बातें फिजूल हैं। 

इस तरह हमारे पूर्वज आर्यों ने इनके साथ ऐसा अन्यायपूर्ण व्यवहार किया और उन्हें नीच कहकर दुत्कार दिया तथा उनसे निम्नकोटि के कार्य करवाने लगे। साथ ही यह भी चिंता हुई कि कहीं ये विद्रोह न कर दें, तब पुनर्जन्म के दर्शन का प्रचार कर दिया कि यह तुम्हारे पूर्व जन्म के पापों का फल है। अब क्या हो सकता है? चुप-चाप दिन गुजारो! इस तरह उन्हें धैर्य का उपदेश देकर वे लोग उन्हें लंबे समय तक के लिए शांत करा गए लेकिन उन्होंने बड़ा पाप किया। 

मानव के भीतर की मानवीयता को समाप्त कर दिया। आत्मविश्वास एवं स्वावलंबन की भावनाओं को समाप्त कर दिया। बहुत दमन और अन्याय किया गया। आज उस सबके प्रायश्चित का वक्त है।

इसके साथ एक दूसरी गड़बड़ी हो गई। लोगों के मनों में आवश्यक कार्यों के प्रति घृणा पैदा हो गई। हमने जुलाहे को भी दुत्कारा। आज कपड़ा बुननेवाले भी अछूत समझे जाते हैं। यू.पी. की तरफ कहार को भी अछूत समझा जाता है। इससे बड़ी गड़बड़ी पैदा हुई। ऐसे में विकास की प्रक्रिया में रुकावटें पैदा हो रही हैं।

इन तबकों को अपने समक्ष रखते हुए हमें चाहिए कि हम न इन्हें अछूत कहें और न समझें। बस, समस्या हल हो जाती है। नौजवान भारत सभा और नौजवान कांग्रेस ने जो ढंग अपनाया है, वह काफी अच्छा है। जिन्हें आज तक अछूत कहा जाता रहा, उनसे अपने इन पापों के लिए क्षमा याचना करनी चाहिए तथा उन्हें अपने जैसा इंसान समझना, बिना अमृत छकाए, बिना कलमा पढ़ाए या शुद्धि किए उन्हें अपने में शामिल करके उनके हाथ से पानी पीना, यही उचित ढंग है। आपस में खींचतान करना और व्यवहार में कोई भी हक न देना, कोई ठीक बात नहीं है। 

जब गांवों में मजदूर-प्रचार शुरू हुआ, उस समय किसानों को सरकारी आदमी यह बात समझा कर भड़काते थे कि देखो, यह भंगी चमारों को सिर पर चढ़ा रहे हैं और तुम्हारा काम बंद करवाएंगे। बस किसान इतने में ही भड़क गए। उन्हें याद रहना चाहिए कि उनकी हालत तबतक नहीं सुधर सकती, जबतक कि वे इन गरीबों को नीच और कमीन कहकर अपनी जूती के नीचे दबाए रखना चाहते हैं। 

अक्सर कहा जाता है कि वह साफ नहीं रहते। इसका उत्तर साफ है- वे गरीब हैं। गरीब का इलाज करो। ऊंचे-ऊंचे कुलों के गरीब लोग भी कोई कम गंदे नहीं रहते। गंदे काम करने का बहाना भी नहीं चल सकता क्योंकि माताएं बच्चों का मैला साफ करने से मेहतर तथा अछूत तो नहीं हो जातीं।

यह काम उतने समय तक नहीं हो सकता जितने समय तक कि अछूत कौमें अपने आपको संगठित न कर लें। हम तो समझते हैं कि उनका स्वयं को अलग संगठनबद्ध करना तथा मुसलमानों के बराबर गिनती में होने के कारण उनके बराबर अधिकारों की मांग करना बहुत आशाजनक संकेत हैं। या तो सांप्रदायिक भेद का झंझट ही खत्म करो या नहीं तो उनके अलग अधिकार उन्हें दे दो। 

कौंसिलों और असेम्बलियों का कर्तव्य है कि वे स्कूल-कॉलेज, कुएं तथा सड़क के उपयोग की पूरी स्वतंत्रता उन्हें दिलाएं। जबानी तौर पर ही नहीं, वरन साथ ले जाकर उन्हें कुओं पर चढ़ाएं। उनके बच्चों को स्कूलों में प्रवेश दिलाएं लेकिन जिस लेजिस्लेटिव में बाल-विवाह के विरुद्ध पेश किए बिल तथा मजहब के बहाने हाय-तौबा मचाई जाती है। वहां वे अछूतों को अपने साथ शामिल करने का साहस कैसे कर सकते हैं?

इसलिए हम मानते हैं कि उनके अपने जन-प्रतिनिधि हों। वे अपने लिए अधिक अधिकार मांगें। हम तो साफ कहते हैं कि उठो, अछूत कहलाने वाले असली जनसेवकों तथा भाइयों! उठो! अपना इतिहास देखो। गुरु गोविन्द सिंह की फौज की असली शक्ति तुम्हीं थे! शिवाजी तुम्हारे भरोसे पर ही सब कुछ कर सके, जिस कारण उनका नाम आज भी जिंदा है। तुम्हारी कुर्बानियां स्वर्णाक्षरों में लिखी हुई हैं। तुम जो नित्यप्रति सेवा करके जनता के सुखों में बढ़ोतरी करके और जिंदगी संभव बनाकर यह बड़ा भारी अहसान कर रहे हो, उसे हम लोग नहीं समझते। 

लैंड-एलियेनेशन एक्ट के अनुसार तुम धन एकत्र कर भी जमीन नहीं खरीद सकते। तुम पर इतना जुल्म हो रहा है कि मिस मेयो मनुष्यों से भी कहती हैं- उठो, अपनी शक्ति पहचानो। संगठनबद्ध हो जाओ। असल में स्वयं कोशिश किए बिना कुछ भी न मिल सकेगा।

स्वतंत्रता के लिए स्वाधीनता चाहनेवालों को यत्न करना चाहिए (Those who would be free must themselves strike the blow.)। इंसान की धीरे-धीरे कुछ ऐसी आदतें हो गई हैं कि वह अपने लिए तो अधिक अधिकार चाहता है लेकिन जो उनके मातहत हैं, उन्हें वह अपनी जूती के नीचे ही दबाए रखना चाहता है। 

कहावत है- 'लातों के भूत बातों से नहीं मानते'। अर्थात् संगठनबद्ध हो तो अपने पैरों पर खड़े होकर पूरे समाज को चुनौती दे दो। तब देखना कोई भी तुम्हें तुम्हारे अधिकार देने से इंकार करने की जुर्रत न कर सकेगा। तुम दूसरों की खुराक मत बनो। दूसरों के मुंह की ओर न ताको लेकिन ध्यान रहे, नौकरशाही के झांसे में मत फंसना। 

यह तुम्हारी कोई सहायता नहीं करना चाहती, बल्कि तुम्हे अपना मोहरा बनाना चाहती है। यही पूंजीवादी नौकरशाही तुम्हारी गुलामी और गरीबी का असली कारण है। इसलिए तुम उसके साथ कभी न मिलना। उसकी चालों से बचना। तब सब कुछ ठीक हो जाएगा।


तुम असली सर्वहारा हो...संगठनबद्ध हो जाओ। तुम्हारी कुछ भी हानि न होगी। बस गुलामी की जंजीरें कट जाएंगी। उठो और वर्तमान व्यवस्था के विरुद्ध बगावत खड़ी कर दो। धीरे-धीरे होने वाले सुधारों से कुछ नहीं बन सकेगा। सामाजिक आंदोलन से क्रांति पैदा कर दो तथा राजनीतिक और आर्थिक क्रांति के लिए कमर कस लो। तुम ही तो देश का मुख्य आधार हो, वास्तविक शक्ति हो। सोए हुए शेरों! उठो और बगावत खड़ी कर दो।

मंगलवार, 9 सितंबर 2014

आदिवासियों को मिले पंचायतों में आरक्षण, आईपीएफ ने मुख्यमंत्री को लिखा पत्र

रॉबर्ट्सगंज तहसील में प्रदर्शन करते आदिवासी
वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो

सोनभद्र। प्रदेश में आदिवासियों की आबादी के अनुपात में त्रिस्तरीय पंचायतों में आरक्षण मुहैया कराये जाने की मांग एक बार फिर जोर पकड़ने लगी है। आल इण्डिया पीपुल्स फ्रंट (आइपीएफ) ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को पत्र लिखकर जिला पंचायत, खंड विकास पंचायत और ग्राम पंचायत स्तर पर आदिवासियों के लिए सीटें आरक्षित करने की मांग की है।

उक्त जानकारी देते हुए आइपीएफ के प्रदेश संगठन प्रभारी दिनकर कपूर ने कहा कि वर्ष 2003 में प्रदेश में अनुसूचित जाति वर्ग में शामिल गोड़, खरवार, पनिका, चेरो, माझी, अगरिया जैसी 17 जातियों को केन्द्र सरकार ने अनुसूचित जनजाति का दर्जा दे दिया था। इसके कारण यह जातियां अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों पर चुनाव लड़ने से वंचित हो गईं क्योंकि उसके बाद अनुसूचित जनजाति की आबादी में त्रिस्तरीय पंचायतों में सीटों का आरक्षण नहीं किया गया था।

उन्होंने कहा कि करीब पन्द्रह लाख की यह आबादी लोकतांत्रिक प्रक्रिया से ही बाहर हो गयी है। सोनभद्र जैसे जनपदों में जहां इन जातियों की बहुलता है, वहां तो कई ग्राम पंचायतों का पद ही रिक्त रह गया। इनके आरक्षण के सम्बंध में तमाम संगठनों ने माननीय उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय में याचिकाएं दाखिल की थी। उनपर न्यायालयों ने इन जातियों के लिए सीटें आरक्षित करने का आदेश दिया है। 

इन आदेशों के अनुपालन में विधानसभा की दुद्धी और ओबरा दो विधानसभा क्षेत्रों को इन जातियों के लिए आरक्षित किया गया है। परन्तु अभी तक पंचायतों में इन जातियों के लिए सीटें आरक्षित नहीं हुई है। मुख्यमंत्री से अनुरोध किया गया कि इस समय प्रदेश में प्रमुख सचिव (पंचायत राज) के आदेश पर पंचायतों के परिसीमन का कार्य चल रहा है। ऐसी स्थिति में आदिवासी समुदायों की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में हिस्सेदारी सुनिश्चित करने के लिए प्रमुख सचिव (पंचायत राज) को आदेश दें कि वह इनके लिए पंचायतों में आरक्षण सुनिश्चित करें।

                                                                

बुधवार, 3 सितंबर 2014

सोनभद्र की सदर तहसील में हर दिन 300 से ज्यादा खतौनियों का गोलमाल!

सदर तहसील स्थित कंप्यूटराइज्ड उद्धरण खतौनी काउंटर पर
खतौनी के लिए लगी किसानों की भीड़। 
सूचना का अधिकार कानून के तहत मांगी गई सूचना में रजिस्ट्रार कानूनगो ने हर दिन औसतन 150 खतौनियों की बिक्री का किया दावा। रजिस्ट्रार कानूनगो के आंकड़ों से मेल नहीं खाते तहसील प्रशासन के आंकड़े। दिसंबर, 2013 में 11,433 खतौनियों के बेचने का दावा कर रहा तहसील प्रशासन...

वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो

सोनभद्र। किसानों और भू-स्वामियों की खतौनियों के कंप्यूटराइज्ड उद्धरण के नाम पर प्रति खतौनी पांच रुपये अतिरिक्त वसूलने वाला सदर तहसील प्रशासन हर दिन तीन सौ से ज्यादा खतौनियों का विवरण गायब कर दे रहा है जिससे राज्य सरकार को हर महीने एक लाख रुपये से ज्यादा की हानि हो रही है! इस गोलमाल की पोल खुद तहसील प्रशासन के आंकड़े खोल रहे हैं। सूचना का अधिकार कानून के तहत मांगी गई जानकारी में तहसील प्रशासन ने कुछ ऐसी ही जानकारी मुहैया कराई है।

वनांचल एक्सप्रेसने गत 19 दिसंबर को सदर तहसील के उप-जिलाधिकारी कार्यालय के जन सूचना अधिकारी योगेंद्र सिंह से 6 बिन्दुओं पर सूचना चाही थी। इसके जवाब उन्होंने इस साल 28 जनवरी को सूचना उपलब्ध कराई। इसमें उन्होंने जानकारी दी कि गत वर्ष दिसम्बर में कंप्यूटराइज्ड उद्धरण खतौनी से कुल 11,433 खतौनियों की बिक्री की गई जिससे कुल 1,71,495 रुपये की धनराशि जमा हुई। इस धनराशि में से कुल 35,735 खर्च हुए। हालांकि उनकी यह सूचना उन्हीं द्वारा भेजे गए पत्र से संदिग्ध साबित हुई। 

सोनभद्र स्थित सदर तहसील भवन
रजिस्ट्रार कानूनगो अनिल कुमार श्रीवास्तव की ओर से तहसीलदार को लिखे पत्र में दिसंबर, 2013 में हर दिन औसतन 150 खतौनी किसानों और भू-स्वामियों को बेचे जाने की बात लिखी गई है जबकि जन सूचना अधिकारी द्वारा प्रेषित पत्र में दिसंबर, 2013 में हर दिन औसतन 457 खतौनियों की बिक्री का दावा किया गया है। अगर इसमें से  इससे यह साबित होता है कि तहसील प्रशासन खतौनियों की बिक्री के मामले में वनांचल एक्सप्रेससमेत आम जनता को गुमराह करने की कोशिश कर रहा है।

सूत्रों की मानें तो सदर तहसील स्थित कंप्यूटराइज्ड उद्धरण खतौनी से हर दिन 500 से ज्यादा खतौनियों की बिक्री होती है लेकिन इसकी प्रक्रिया ऑनलाइन न होने से वहां कार्यरत लेखपाल कंप्यूटर साफ्टवेयर विशेषज्ञों की मदद से बिकी हुई खतौनियों के आंकड़े में छेड़छाड़ कर लेते हैं। इससे सरकार को हजारों रुपये की हानि होती है। खतौनी बिक्री की रसीद किसानों को न दिए जाने से उनकी गड़बड़ी प्रशासन की पकड़ में भी नहीं आती है। अगर प्रशासन खतौनी बिक्री की रसीद अनिवार्य कर दे तो किसानों से अवैध वसूली और उसके नाम पर होने वाले गबन पर अंकुश लग सकता है।


(नोटः हिन्दी साप्ताहिक समाचार-पत्र "वनांचल एक्सप्रेस" के 22+23वें (13 से 26 जुलाई, 2014, संयुक्तांक) के अंक में प्रकाशित।)

एसडीएम के संरक्षण में किसानों से हो रही अवैध वसूली

कम्प्यूटराइज्ड खतौनी के नाम पर हर महीने किसानों से हो रही 50 हजार रुपये से ज्यादा की अवैध वसूली। 

वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो

सोनभद्र। रॉबर्ट्सगंज(सदर) तहसील में कम्प्यूटराइज्ड उद्धरण खतौनी के नाम पर किसानों से अवैध वसूली का खेल जारी है। परिसर स्थित कम्यूटराइज्ड उद्धरण खतौनी काउंटर पर तैनात लेखपाल एसडीएम समेत तहसील के आलाधिकारियों के संरक्षण में हर महीने किसानों से लाखों रुपये की अवैध वसूली कर रहे हैं जिससे खरीफ के मौसम में उन्हें दोहरी मार झेलनी पड़ रही है। वे अब तहसील प्रशासन के खिलाफ आर-पार की लड़ाई लड़ने के मुड में हैं। 

दरअसल, सदर तहसील की उद्धरण खतौनी काउंटर पर कार्यरत लेखपाल विनोद कुमार दुबे और उसके सहयोगी हर दिन की तरह गत 30 जून को भी किसानों को लूट रहे थे। दरअसल, वे शासन की ओर से निर्धारित प्रति खतौनी 15 रुपये की जगह किसानों से 20 रुपये वसूल रहे थे। किसानों द्वारा अधिक धनराशि वसूले जाने का विरोध करने पर वे उनसे आवेदन-पत्र पर लेखपाल और कानूनगो की रिपोर्ट लगावा कर लाने की बात कह कर शासन द्वारा निर्धारित दर पर खतौनी देने से मना कर दे रहे थे। हालांकि उनके द्वारा मांगी गई प्रति खतौनी 20 रुपये की धनराशि देने पर वह बिना लेखपाल और कानूनगो की रिपोर्ट के ही वे किसानों को खतौनी मुहैया करा रहे थे।

कंप्यूटराइज्ड कक्ष में अपने चहेतों को खतौनी देते
काउंटर पर तैनात लेखपाल विनोद कुमार दुबे।
सदर तहसील के क्षेत्र के हर्रा गांव निवासी केवल प्रसाद गत 30 जून को उद्धरण खतौनी काउंटर पर कार्यरत लेखपाल विनोद कुमार दुबे से 10 खतौनी लिए जिसमें उनके नाम की खतौनी भी शामिल थी। इसके एवज में विनोद कुमार दुबे ने उनसे कुल दो सौ रुपये वसूले जबकि शासन के तहत निर्धारित कुल धनराशि 150 रुपये ही हुई। इसी तहसील क्षेत्र के कोटा गांव निवासी परिसिद्धन और बटेश्वर प्रसाद को अपनी खतौनियों के लिए विनोद कुमार दुबे को प्रति खतौनी 20-20 रुपये अदा करने पड़े। 

काउंटर पर कार्यरत विनोद कुमार दुबे को वनांचल एक्सप्रेसकी टीम की जानकारी हुई तो वह तुरंत किसानों को 15 रुपये प्रति खतौनी की दर से खतौनी मुहैया कराने लगे। हालांकि जब वह आश्वस्त हो गए कि टीम तहसील परिसर से जा चुकी है तो वह फिर किसानों से 20 रुपये प्रति खतौनी की दर से खतौनी किसानों को देने लगे।  वनांचल एक्सप्रेसकी टीम गत 2 जुलाई को भी सदर तहसील स्थित कम्प्यूटराइज्ड खतौनी काउंटर से बिकने वाली खतौनी के दर की पड़ताल की। अपनी पड़ताल में टीम ने पाया कि काउंटर पर कार्यरत विनोद कुमार दुबे और उनके सहयोगी लेखपाल प्रति खतौनी 20 रुपये की दर से किसानों को खतौनी मुहैया करा रहे हैं। 

सदर तहसील क्षेत्र के परसोई गांव निवासी किसान शोभनाथ पुत्र बब्बन (खतौनी क्रमांक संख्या-1100) और विजय कुमार पुत्र हरिप्रसाद (खतौनी क्रमांक संख्या-1065) ने भी प्रति खतौनी 20 रुपये की दर से खतौनी प्राप्त करने की बात स्वीकार की। रॉबर्ट्सगंज नगर स्थित न्यू कॉलोनी निवासी आशीष कुमार और गोविन्द सिंह ने भी 20 रुपये में एक खतौनी दिए जाने की बात कही।
सूत्रों की मानें तो खतौनी के इस गोरखधंधे में हर दिन औसतन पांच हजार रुपये की अवैध कमाई होती है जो तहसील में कार्यरत कुछ लेखपालों और अधिकारियों के बीच बंटता है। इस वजह से उद्धरण खतौनी काउंटर के चार्ज के लिए लेखपालों के बीच होड़ लगी रहती है। ऐसी ही कुछ होड़ रजिस्ट्रार कानूनगो के बीच भी होती है।

इस संबंध में वनांचल एक्सप्रेसने पिछले दिनों जब सदर तहसीलदार योगेन्द्र कुमार सिंह से बात की तो उन्होंने ऐसी किसी भी प्रकार की अवैध वसूली से साफ इंकार किया। जब उनसे मामले की तत्काल जांच कराने की बात कही गई तो उन्होंने उद्धरण खतौनी काउंटर के प्रभारी रजिस्ट्रार कानूनगो अनिल श्रीवास्तव को मौके पर भेजा। वहां अनिल श्रीवास्तव ने उद्धरण खतौनी काउंटर से खतौनी लेने वाले किसानों से प्रति खतौनी की दर की जानकारी ली, जिसमें सभी किसानों ने प्रति खतौनी 20 रुपये की दर से खतौनी लेने की बात स्वीकार की। इसके बावजूद उद्धरण खतौनी पर कार्यरत कर्मचारी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। 

इसके बाबत जब तहसीलदार योगेन्द्र कुमार सिंह से बात की गई तो उन्होंने कहा कि कर्मचारी को रंगे हाथ नहीं पकड़ा गया, इसलिए उसके खिलाफ निलंबन अथवा बर्खास्तगी की कार्रवाई नहीं की जा सकती है। फिलहाल उसे कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है। हालांकि नोटिस की प्रति मांगने पर उन्होंने इसे देने से इंकार कर दिया। 

सूत्रों की मानें तो रजिस्ट्रार कानूनगो की रिपोर्ट पर तहसीलदार योगेंद्र कुमार सिंह ने 18 जनवरी, 2014 को लिखित पत्र के माध्यम से कंप्यूटराइज्ड उद्धरण खतौनी काउंटर पर कार्यरत लेखपालों के स्थान पर लेखपाल चन्दन कुमार शर्मा, सुदीप कुमार श्रीवास्तव और राजीव कुमार कुशवाहा को कार्यभार दिए जाने की संस्तुति उप जिलाधिकारी, सदर राजेंद्र प्रसाद तिवारी से की थी लेकिन अभी तक उस पत्र का संज्ञान नहीं लिया गया है। 

इस बारे में जब उप-जिलाधिकारी से बात की गई तो उन्हें ऐसी किसी भी कार्रवाई से साफ मना कर दिया। हालांकि उन्होंने उद्धरण खतौनी काउंटर से 20 रुपये प्रति खतौनी की दर से किसानों को खतौनी दिए जाने की बात स्वीकार की। उन्होंने इस संबंध में संबंतधित अधिकारियों को फटकार लगाने की बात कही। अब सवाल उठता है कि जब संबंधित कर्मचारी किसानों से अवैध वसूली में लिप्त हैं तो फिर एसडीएम उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं कर रहे।

उधर बसपा नेता रमेश कुशवाहा ने राजस्वकर्मियों द्वारा किसानों से की जा रही अवैध वसूली के लिए सपा सरकार को जिम्मेदार बताया। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार की वजह से कर्मचारियों में कोई भय नहीं है। उन्होंने कंप्यूटर खतौनी काउंटर पर कार्यरत लेखपालों को तत्काल बर्खास्त करने की मांग की। साथ ही उन्होंने लिखित रूप में इस पूरे प्रकरण से जिलाधिकारी समेत राज्यपाल को अवगत कराने की बात कही। 

जनता दल (युनाइटेड) के जिलाध्यक्ष राम भरोसे ने कहा कि एसडीएम और तहसीलदार की मिलीभगत से किसानों से अवैध वसूली रही है। यह धनराशि लेखपाल से लेकर मुख्यमंत्री तक बंटती है। राज्य सरकार पूरी तरह भ्रष्टाचार में डूबी है। फिलहाल संबंधित लेखपालों को जल्द से जल्द बर्खास्त किया जाना चाहिए जिससे किसानों को राहत मिल सके। 

कंप्यूटराइज्ड खतौनी के नाम पर किसानों से अवैध वसूली को भाकपा (माले) नेता ओम प्रकाश सिंह ने जनविरोधी करार दिया। उन्होंने कहा कि जल्द से जल्द किसानों से अवैध वसूली बंद होनी चाहिए और संबंधित लेखपालों को बर्खास्त किया जाना चाहिए। उन्होंने किसानों को मुफ्त खतौनी दिए जाने की मांग की। 

भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष धर्मवीर तिवारी ने खतौनी के नाम पर किसानों से हो रही अवैध वसूली को तत्काल बंद किए जाने की बात कही। उन्होंने संबंधित लेखपालों और इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई करने की मांग की।


(नोटः हिन्दी साप्ताहिक समाचार-पत्र वनांचल एक्सप्रेस के 21वें अंक(06 से 12 जुलाई, 2014) में प्रकाशित।)

ऊपर फरियाद सुनते रहे जिलाधिकारी, नीचे लुटते रहे किसान

वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो

सोनभद्र। जनपद में किसानों के उत्पीड़न और शोषण का दौर थमने का नाम नहीं ले रहा है। यहां के विभिन्न विभागों में कार्यरत कर्मचारी और अधिकारी कभी उन्हें अनाज के परिवहन के नाम पर प्रताड़ित करते हैं तो कभी राजस्व और संपत्तियों से जुड़े दस्तावेजों को मुहैया कराने के नाम पर। किसानों के उत्पीड़न के मामले में जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक की ओर से होने वाली कार्रवाई भी उन्हें उनके गैर-कानूनी मंसूबे को अंजाम देने से नहीं रोक पाती है। गत 8 जनवरी को जनपद की सदर (रॉबर्ट्सगंज) तहसील में ऐसा ही नजारा देखने को मिला।

बुधवार का दिन था। मंगलवार को छुट्टी होने की वजह से बुधवार को तहसील दिवस का आयोजन हुआ था। सदर तहसील के सभागार में जिलाधिकारी चंद्रकांत की अध्यक्षता में तहसील दिवस का दरबार सजा था। इसमें पुलिस अधीक्षक राम बहादुर यादव, मुख्य विकास अधिकारी महेंद्र कुमार, उप-जिलाधिकारी राजेंद्र तिवारी, तहसीलदार योगेंद्र कुमार सिंह समेत दर्जनों आलाधिकारी एवं कर्मचारी मौजूद थे। इनके अलावा न्याय की आस में सदर तहसील के विभिन्न इलाकों से सैकड़ों किसान अपनी-अपनी फरियाद लेकर वहां पहुंचे थे। वे जल्द से जल्द अपनी फरियाद हुजूर यानी जिलाधिकारी के पास पहुंचाना चाहते थे लेकिन तहसीलकर्मियों की तकलीफदेय व्यवस्था की वजह से उन्हें अपने क्रम के इंतजार में घंटों पंक्ति में खड़ा होना पड़ रहा था। 

सदर तहसील की पहली मंजिल पर सजे तहसील दिवस के दरबार में जब यह सब कुछ चल रहा था, उसी समय नीचे तहसील की उद्धरण खतौनी काउंटर पर कार्यरत लेखपाल विनोद कुमार दुबे और उसके सहयोगी हर दिन की तरह उस दिन भी किसानों को लूट रहे थे। दरअसल, वे शासन की ओर से निर्धारित प्रति खतौनी 15 रुपये की जगह किसानों से 20 रुपये वसूल रहे थे। किसानों द्वारा अधिक धनराशि वसूले जाने का विरोध करने पर वे उनसे आवेदन-पत्र पर लेखपाल और कानूनगो की रिपोर्ट लगावा कर लाने की बात कह कर शासन द्वारा निर्धारित दर पर खतौनी देने से मना कर दे रहे थे। हालांकि उनके द्वारा मांगी गई प्रति खतौनी 20 रुपये की धनराशि देने पर वह बिना लेखपाल और कानूनगो की रिपोर्ट के ही वे किसानों को खतौनी मुहैया करा रहे थे।

सदर तहसील के जमगांव गांव निवासी विमलेश कुमार की मानें तो उन्होंने अपनी और अपने रिश्तेदारों की जमीनों की कुल पांच खतौनियों के लिए उद्धरण खतौनी काउंटर पर बैठे कर्मचारी को कुल सौ रुपये अदा किए। शाहगंज इलाके के भुरकुड़ा गांव निवासी विजय देव को भी अपनी जमीन की खतौनी के लिए प्रति खतौनी 20 रुपये अदा करने पड़े। सदर तहसील के अरंगी (पनारी) गांव निवासी अनिल शुक्ला को भी एक खतौनी के लिए उद्धरण काउंटर पर बैठे कर्मचारी को 20 रुपये अदा करने पड़े। अनिल को जमानत देने के लिए खतौनी की जरूरत थी। 

सूत्रों की मानें तो खतौनी के इस गोरखधंधे में हर दिन औसतन चार से पांच हजार रुपये की अवैध कमाई होती है जो तहसील में कार्यरत कुछ लेखपालों और अधिकारियों के बीच बंटता है। इस वजह से उद्धरण खतौनी काउंटर के चार्ज के लिए लेखपालों के बीच होड़ लगी रहती है। ऐसी ही कुछ होड़ रजिस्ट्रार कानूनगो के बीच भी होती है।

इस संबंध में वनांचल एक्सप्रेसने पिछले दिनों जब सदर तहसीलदार योगेन्द्र कुमार सिंह से बात की तो उन्होंने ऐसी किसी भी प्रकार की अवैध वसूली से साफ इंकार किया। जब उनसे मामले की तत्काल जांच कराने की बात कही गई तो उन्होंने उद्धरण खतौनी काउंटर के प्रभारी रजिस्ट्रार कानूनगो अनिल श्रीवास्तव को मौके पर भेजा। वहां अनिल श्रीवास्तव ने उद्धरण खतौनी काउंटर से खतौनी लेने वाले किसानों से प्रति खतौनी की दर की जानकारी ली, जिसमें सभी किसानों ने प्रति खतौनी 20 रुपये की दर से खतौनी लेने की बात स्वीकार की। 

इसके बावजूद उद्धरण खतौनी पर कार्यरत कर्मचारी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसके बाबत जब तहसीलदार योगेन्द्र कुमार सिंह से बात की गई तो उन्होंने कहा कि कर्मचारी को रंगे हाथ नहीं पकड़ा गया, इसलिए उसके खिलाफ निलंबन अथवा बर्खास्तगी की कार्रवाई नहीं की जा सकती है। फिलहाल उसे कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है। हालांकि नोटिस की प्रति मांगने पर उन्होंने इसे देने से इंकार कर दिया।

उधर, मामले के तूल पकड़ने पर उद्धरण खतौनी काउंटर से संबद्ध कुछ तहसीलकर्मी वनांचल एक्सप्रेसकी टीम पर दबाव बनाने में जुट गए हैं। हालांकि जनहित में वनांचल एक्सप्रेसकी ओर से चलाए जा रहे इस अभियान पर उनके इस दबाव का कोई असर नहीं पड़ेगा। फिलहाल वनांचल एक्सप्रेसका अभियान जारी है और भविष्य में भी जारी रहेगा।


(नोटः हिन्दी साप्ताहिक समाचार-पत्र वनांचल एक्सप्रेस के 15वें अंक(19 से 25 जनवरी, 2014 में प्रकाशित।)