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बुधवार, 24 फ़रवरी 2016

भाजपा-सपा गठजोड़ को 'जन विकल्प मार्च' के जरिये बेनकाब करेगा रिहाई मंच

-संघ और भाजपा नेताओं द्वारा  छात्र संगठन एसआईओ के कार्यकर्ताओं पर जानलेवा हमला मुसलमानों पर हो रहे सरकार संरक्षित हमले की ताजा मिसालः रिहाई मंच।
-मंच 16 मार्च को निकालेगा 'जन विकल्प मार्च'

वनांचल न्यूज नेटवर्क

लखनऊ। देश के विभिन्न इलाकों में बेगुनाहों की रिहाई के लिए सशक्त अभियान चलाने वाला 'रिहाई मंच' आगामी 16 मार्च को 'जन विकल्प मार्च' निकालकर भाजपा और समाजवादी पार्टी के गठजोड़ को बेनकाब करेगा। साथ ही उसने राज्य की सपा सरकार पर मुसलमानों से वादाखिलाफी करने, सूबे को सांप्रदायिक हिंसा में ढकेलने समेत दलितों और महिलाओं का उत्पीड़न करने का आरोप लगाया। मंच ने स्पष्ट कहा कि चुनाव जीतने के लिए कभी मुजफ्फरनगर तो कभी लव जेहाद जैसे एजेंडे को आगे किया जाता है। कभी एखलाक की हत्या की जाती है तो कभी हरियाणा में दलितों की हत्या का नंगा नाच किया जाता है। खुफिया एजेंसियों द्वारा अलकायदा के नाम पर कभी संभल तो कभी आईएस के नाम पर लखनऊ और कुशीनगर को निशाना बनाया जाता है। पूरे देश में वे जिस तरह से मुस्लिम युवाओं को फंसा रही हैं,  'जन विकल्प मार्च' उसके खिलाफ एक संगठित आवाज होगा जो जन आंदोलन के माध्यम से नए राजनीतिक विकल्प का निर्माण करेगा। साथ ही यह कॉर्पोरेट और मीडिया परस्त राजनीति को शिकस्त देगा।

रिहाई मंच ने दलित छात्र रोहित वेमुला और जेएनयू के छात्रों के समर्थन में गांधी प्रतिमा हजरतगंज लखनऊ में हस्ताक्षर अभियान चला रहे छात्र संगठन एसआईओ के छात्रों पर संघ और भाजपा नेताओं द्वारा जानलेवा हमले को सपा सरकार में पूरे सूबे के मुसलमानों पर हो रहे सरकार संरक्षित हमले की ताजा मिसाल बताया है। मंच ने कहा है कि विधानसभा से सौ मीटर की दूरी पर सैकड़ों पुलिस वालों की मौजूदगी में किया गया हमला बिना प्रशासनिक मिलीभगत के संभव नहीं है। मंच ने संघ के साम्प्रदायिक आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए हजरतगंज कोतवाली के पूरे पुलिस अमले को तत्काल बर्खास्त करने की मांग की है। मंच ने आरोप लगाया है कि इसी साम्प्रदायिक पुलिस अमले ने कुछ दिनों पहले एसएफआई कार्यालय पर भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा हमला करवाया था। मंच ने यह भी कहा है कि यह अकारण नहीं है कि सपा मुखिया मुलायम सिंह के यह कहते ही ऐसे हमले बढ़ गए हैं कि उन्हें बाबरी मस्जिद तोड़ने आए भाजपाईयों पर गोली चलाने का आदेश देने पर दुख है।

रिहाई मंच द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में मंच के अध्यक्ष एडवोकेट मुहम्मद शुऐब ने कहा है कि सपा ने 2012 में मुसलमानों से 16 सूत्री वादा किया था जिसमें से चार साल पूरे होने के बावजूद एक भी वादा पूरा नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि सपा ने अपने चुनावी घोषणापत्र के पृष्ठ संख्या 12 से 15 पर यह वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाह मुस्लिम युवकों को छोड़ दिया जाएगा, इन आरोपों से बरी हुए लोगों का पुर्नवास किया जाएगा, मुसलमानों को 18 प्रतिशत आरक्षण दिया जाएगा, सच्चर कमेटी और रंगनाथ मिश्र आयोग की सिफारिशों पर अमल किया जाएगा, पुलिस में मुसलमानों की भर्ती के लिए विशेष प्राविधान किया जाएगा, मुस्लिम बहुल जिलों में नए सरकारी शैक्षिक संस्थानों की स्थापना की जाएगी, मुस्लिम बहुल इलाकों में उर्दू माध्यम के स्कूलों की स्थापना की जाएगी, मदरसों में तकनीकी शिक्षा के लिए विशेष बजट आवंटित किया जाएगा। लेकिन ये सारे वादे झूठे साबित हुए हैं। 

उन्होंने कहा कि इसी तरह बुनकरों से वादा किया गया था कि किसानों की तरह उन्हें भी बिजली मुफ्त दी जाएगी। लेकिन यह वादा भी झूठा साबित हुआ। इसीतरह वादा किया गया था कि कब्रिस्तानों की सुरक्षा की गारंटी करने के लिए विशेष बजट का प्रावधान किया जाएगा। लेकिन सच्चाई यह कि इन चार सालों में कब्रिस्तानों का अतिक्रमण और बढ़ा है जिसमें कई जगह तो सीधे सपा नेताओं की भूमिका उजागर हुई है। उन्होंने कहा कि सपा सरकार न सिर्फ चुनावी वादों से मुकर गई है बल्कि खुल कर संघ और भाजपा के मुस्लिम विरोधी एजेंडे को बढ़ा रही है। इसीलिए दादरी में हुई एखलाक की हत्या की सीबीआई जांच का उसने आदेश नहीं दिया तो वहीं मुजफ्फरनगर जनसंहार के दोषीयों को बचाने के लिए उसने जस्टिस सहाय कमीशन की रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया।

मंच के अध्यक्ष ने कहा कि सपा ने चुनावी वादा किया था कि वह आतंकवाद के नाम कैद बेगुनाहों को रिहा करेगी पर उसने वादा पूरा नहीं किया और जब आरडी निमेष कमीशन की रिपोर्ट ने मौलाना खालिद और तारिक कासमी की गिरफ्तारी को संदिग्ध कहते हुए दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की तो उसने पुलिस और खुफिया एजेंसियों को बचाने के लिए मौलाना खालिद की हत्या करवा दी। उन्होंने कहा कि रिहाई की इस मुहिम के तहत लगातार बेगुनाह आदालती प्रक्रिया से छूट रहे हैं पर सपा जिस तरह से वादा करने के बाद भी पुर्नवास नहीं कर रही है वो साबित करता है कि अखिलेश यादव संघी मानसिकता से अदालतों से बाइज्जत बरी मुस्लिम नौजवानों को आतंकी समझते हैं।

मंच के अध्यक्ष ने कहा कि जेएनयू के छात्र जिस तरह से संघर्ष कर रहे हैं वह देश में इंसाफ की लड़ाई को नई दिशा देगा। आज जिस तरह से उमर खालिद, कन्हैया समेत तमाम छात्रों को भाजपा और सुरक्षा-खुफिया एजेंसियों का गठजोड़ देशद्रोही कह कर हमले कर रहा है वह बताता है कि यह हमला उन तमाम प्रगतिशील मूल्यों पर है जो वंचित समाज के हक में हैं। उन्होंने कहा कि जिस तरह से उमर खालिद को इस घटना के बाद मुस्लिम होने का एहसास हुआ और उनके पिता वेलफेयर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष कासिम रसूल इलियास व उनके बच्चों को धमकियां दी गई वह साबित करता है कि देश में मुसलमानों की स्थिति दोयम दर्जे की हो गई है।


मुहम्मद शुऐब ने कहा है कि मुसलमानों की तरह ही प्रदेश के दलितों और महिलाओं को  भी चार साल तक धोखा दिया गया। जहां दलितों और महिलाओं पर सामंती हमला बढ़ा है वहीं मुख्यमंत्री के आवास के पीछे से भी लड़कियों के शव मिलने लगे हैं। ऐसे में जरूरी हो जाता है कि जनता सपा सरकार के झूठे दावों की पोल खोले और नए समाज निर्माण की राजनीतिक जिम्मेदारी को उठाने का संकल्प ले। उन्होंने कहा कि 16 मार्च को रिफाह-ए-आम से विधान सभा तक जन विकल्प मार्चनिकाल कर रिहाई मंच सपा सरकार के झूठ और लूट को उजागर करेगा।   

शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2016

TERRORISM: सत्ता संग पुलिस की साजिश बेनकाब, आठ साल बाद इकबाल बरी

बेगुनाहों की रिहाई पर स्थिति स्पष्ट करें मुख्यमंत्री, गृहमंत्री और आईबी प्रमुखः रिहाई मंच
आईबी और सरकार संरक्षित आतंकी संगठन है दिल्ली स्पेशल सेलः रिहाई मंच

वनांचल न्यूज नेटवर्क

लखनऊ। रिहाई मंच ने आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाह मोहम्मद इकबाल की आठ साल के बाद आज हुई रिहाई को वादा खिलाफ सपा सरकार के मुंह पर तमाचा बताया है। मंच ने कहा कि अगर सपा ने बेगुनाहों को छोड़ने के अपने वादे पर अमल किया होता तो इकबाल समेत दर्जनों युवा पहले ही रिहा हो गए होते।

रिहाई मंच प्रवक्ता शाहनवाज आलम ने जानकारी दी कि लखनऊ स्थित वजीरगंज थाने की पुलिस ने शामली निवासी मोहम्मद असरा के बेटे इकबाल को 2007 में आईपीसी की धारा-307, 121, 121, 122, 124ए और यूएपीए की धारा-16, 18, 20 एवं 23 के तहत मुकदमा दर्ज कर उसे गिरफ्तार कर लिया था। कोर्ट में यह अपराध संख्या-281/2007 के रूप में दर्ज हुआ जिसमें स्पेशल कोर्ट (जेल) लखनऊ ने मंगलवार को उन्हें दोषमुक्त कर दिया।

उन्होंने बताया कि इकाबाल के ऊपर लखनऊ के अलावा दिल्ली में भी आतंकवाद का आरोप था जिसमें वह पहले ही बरी हो चुके हैं। आलम ने जानकारी दी कि इकबाल आज जिस मुकदमें में दोषमुक्त हुए हैं उसमें उन पर आरोप यह था कि वह जलालुद्दीन व नौशाद के साथ जून 2008 में लखनऊ में आतंकी वारदात करने आए थे। 

रिहाई मंच प्रवक्ता ने कहा कि इससे पहले अक्टूबर 2015 में इस मुकदमें में इकबाल के सहअभियुक्त पहले ही जब रिहा हो चुके हैं तो ऐसे में जनू 2008 में लखनऊ में आतंकी घटना का षडयंत्र व पुलिस ने जो मुठभेड़ दिखाई वह फर्जी साबित होती है। ऐसे में तत्कालीन डीजीपी बिक्रम सिंह व एडीजी कानून व्यवस्था बृजलाल समेत पूरी पुलिस की टीम जहां निर्दोषों के खिलाफ षडयंत्र में लिप्त थी तो वहीं आईबी द्वारा इन कथित आतंकियों के बारे में जो इनपुट जारी किया गया था व जिसकी निशानदेही पर पुलिस ने मुठभेड़ दिखाकर इनको पकड़ा उस पर आईबी प्रमुख को अपना पक्ष रखना चाहिए।

मंच के प्रवक्ता ने बताया कि 21 मई 2008 को दिल्ली से इकबाल की गिरफ्तारी में मोहन चन्द्र शर्मा व संजीव यादव जैसे दिल्ली स्पेशल सेल के अधिकारी थे। जिन्होंने उस वक्त कहा था कि आतंकी संगठन हूजी से जुड़ा इकबाल ने राजधानी में जनकपुरी में विस्फोटक व अन्य पदार्थ छिपाए हैं और उसने पाकिस्तान में टेªनिंग ली थी। उन्होंने कहा कि बाटला हाऊस फर्जी मुठभेड़ में अपने ही पुलिस के साथियों द्वारा मारे गए मोहन चन्द्र शर्मा तो नहीं हैं पर संजीव यादव से जरूर पूछताछ करनी चाहिए कि इकबाल के पास से उन्होंने जो 3 किलो आरडीएक्स बरामद दिखाया था वह उनके पास कहां से आया था, उन्हें किसी आतंकी संगठन ने आरडीएक्स दिया था खुफिया विभाग ने। उन्होंने कहा कि इकबाल से पास से जो विस्फोटक बरामदगी दिस्ली स्पेशल सेल ने दिखाई थी, उसके अनुसार जिस व्यक्ति ने इकबाल को वह दिया था उसे दिल्ली की एक कोर्ट ने अपने फैसले में एक काल्पनिक शख्श बताया था। उसी काल्पनिक शख्स के नाम पर तारिक कासमी की भी गिरफ्तारी का पुलिस ने दावा किया था। 

उन्होंने कहा कि आतंकवाद के नाम पर हुई बेगुनाहों की रिहाई के बाद यह साबित हो जाता है कि आईबी मुस्लिमों के खिलाफ एक संगठित आतंकी संस्था के बतौर काम कर रही है। इन रिहाइयों पर आईबी चीफ को स्पष्टीकरण देना चाहिए। शाहनवाज आलम ने कहा है कि अब समय आ गया है कि खुद सुप्रीम कोर्ट दिल्ली स्पेशल सेल के खिलाफ अपनी निगरानी में आतंकवाद के मामलों में उसके द्वारा की गई गिरफ्तारियों की जांच कराए क्योंकि दिल्ली स्पेशल के दावे अनगिनत मामलों अदउलतों द्वारा खारिज किए जा चुके हैं। 

उन्होंने दिल्ली स्पेशल को सरकार और आईबी संरक्षित आतंकी संगठन करार देते हुए कहा कि कश्मीरी लियाकत शाह को फंसाने के मामले में तो एनआईए ने दिल्ली स्पेशल सेल के अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश तक की है। जिसमें उसने पाया था कि लियाकत शाह को फंसाने के लिए दिल्ली स्पेशल सेल ने अपने ही एक मुखबिर साबिर खान पठान से लियाकत के पास से विस्फोटक दिखाने की कहानी गढ़ी थी। यहां यह जानना भी दिलचस्प होगा कि दिल्ली स्पेशल सेल का यह मुखबिर फरारचल रहा है। उन्होंने कहा कि जब दिल्ली स्पेशल सेल से जुड़े तत्व ही आतंकी घटनाओं में शामिल पाए जा रहे हैं और अदालत में उसे पेश करने के बजाए दिल्ली स्पेशल सेल उसे फरार बता रही है तब दिल्ली स्पेशल और उसके अधिकारियों द्वारा आतंकवाद के मामलों में की जा रही गिरफ्तारियों पर अदालतें कैसे भरोसा कर ले रही हैं।  

रिहाई मंच द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में मंच के नेता राजीव यादव ने बताया कि इकाबाल की रिहाई सिर्फ यूपी पुलिस द्वारा संगठित रूप से मुसलमानों को आतंकवाद में फसाने का सुबूत नहीं है बल्कि यह संगठित आतंकी गिरोह दिल्ली स्पेशल सेल की मुसलमानों को फंसाने की पूरी रणनीति का पर्दाफाश करती है। उन्होंने आरोप लगाया कि दिल्ली स्पेशल सेल पूरे देश में राज्यों के सम्प्रुभुता को धता बताते हुए बेगुनाहों को अपने टॅार्चर सेंटर में रखकर जब किसी राजनेता का कद बढ़ना होता है तब किसी मुस्लिम युवा को दिल्ली स्टेशन से गिरफ्तार दिखा देती है। उन्होंने कहा कि इकबाल के दोष मुक्त होने पर तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती व वर्तमान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए। क्योंकि जहां यह मायावती के कार्यकाल में पकड़ा गया था तो वहीं अखिलेश यादव की वादा खिलाफी के चलते सालों जेल में सड़ने के लिए मजबूर था। उन्होंने बताया कि इकबाल ने यह संदेह जाहिर किया है कि उसके शरीर में चिप लगाई गई है। जो एक अलग से जांच का विषय है।


आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाहों का मुकदमा लड़ने वाले रिहाई मंच अध्यक्ष व इसम मामले के अधिवक्ता मुहम्मद शुऐब ने कहा कि आतंकवाद के नाम पर पकड़े जाने पर तो गृहमंत्री से लेकर डीजीपी तक बिना सबूतों के सार्वजनिक रूप से बेगुनाहों पर आतंकी का ठप्पा लगा देते हैं। ऐसे में अगर इन बेगुनाहों को वह देश का नागरिक मानते हैं तो इनकी रिहाई पर भी उन्हें सार्वजनिक रूप से माफी मांगना चाहिए। उन्होंने कहा कि आतंकवाद के नाम पर विदेशों से कई बार खबरें आती हैं कि वहां के प्रमुख बेगुनाहों से माफी मांगते हैं पर हमारे देश में लगातार हो रही बुगुनाहों की रिहाई के बाद भी सरकारें माफी मांगना तो दूर अफसोस भी जाहिर नहीं करतीं। 

उन्होंने कहा कि सरकार ने वादा किया था कि आतंक के आरोपों से बरी हुए लोगों को मुआवजा व पुर्नवास किया जाएगा पर खुद अखिलेश सरकार ने अब तक अपने शासन काल में दोषमुक्त हुए किसी भी व्यक्ति को न मुआवजा दिया न पुर्नवास किया। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को डर है कि अगर आतंक के आरोपों से बरी लोगों को मुआवजा व पुर्नवास करेंगे तो उनका हिन्दुत्वादी वोट बैंक उनके खिलाफ हो जाएगा। पुर्नवास व मुआवजा न देना साबित करता है कि अखिलेश यादव हिन्दुत्वादी चश्मे से बेगुनाहों को आतंकवादी ही समझते हैं। बेगुनाहों की रिहाई के मामले में वादाखिलाफी करने वाले आखिलेश यादव अब अपनी स्थिति स्पष्ट करेंगे या फिर 2012 के चुनावी घोषणा पत्र की तरह फिर बेगुनाहों को रिहा करने का झूठा वादा करेंगे। 
(प्रेस विज्ञप्ति) 

रविवार, 31 जनवरी 2016

मुज़फ़्फ़रनगर हिंसा पर सहाय कमीशन की रिपोर्ट को सार्वजनिक करे सरकारः रिहाई मंच

मंच ने शोधार्थी अनिल यादव को प्रताड़ित करने वाले संघ कार्यकर्ताओं के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने की मांग की।

वनांचल न्यूज नेटवर्क

लखनऊ। मुजफ़्फ़रनगर हिंसा पर सहाय कमीशन की रिपोर्ट को विधान सभा में सार्वजनिक करने की आवाज़ तेज हो गई है। आतंकवाद के नाम पर गिरफ्तार बेगुनाओं की रिहाई के लिए प्रमुखता से कार्य करने वाले जनसमर्थक संगठन रिहाई मंच ने कहा है कि राज्य सरकार विधान सभा के मौजूदा सत्र में मुजफ्फरनगर हिंसा की जांच के लिए गठित सहाय कमीशन की रिपोर्ट को सार्वजनिक करे। साथ ही मुजफ्फरनगर स्थित संघ कार्यालय में शोधार्थी अनिल यादव को प्रताड़ित करने वाले संघ कार्यकर्ताओं के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार करे। मंच ने राज्य सरकार को चेताया है कि अगर वह ऐसा नहीं करती है तो मंच संघर्षकारी ताकतों के साथ मिलकर पूरे प्रदेश में राज्य सरकार के खिलाफ आंदोलन करेगा।

रिहाई मंच के प्रवक्ता शहनवाज आलम की ओर से जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि मंच कार्यालय पर पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं की बैठक हुई। इसमें रिहाई मंच नेता शकील कुरैशी ने कहा कि सांप्रदायिक जेहनियत वाले संघ के लोगों ने दाढ़ी बढ़ाने और मोबाइल में मुस्लिम युवकों के फोन नंबर रखने पर जिस प्रकार से शोध छात्र अनिल यादव को प्रताडि़त किया, उससे पता चलता है कि 2013 में भाजपा-सपा ने मुजफ्फरनगर में जो आग लगाई थी, वह अभी शांत नहीं हुई है। उन्होंने कहा कि जब सपा के लोग कहते हैं कि मुजफ्फरनगर के लिए भाजपा दोषी है तो आखिर में उन दोषियों को सजा देने के लिए सहाय कमीशन की रिपोर्ट को वह क्यों नहीं सार्वजनिक कर रही है। उन्होंने कहा कि मुसलमान और इंसाफ पसन्द अवाम यह जान रही है कि जो मुलायम बाबरी मस्जिद प्रकरण को लेकर अब अफसोस जता रहे हैं वह मुजफ्फरनगर के दंगाईयों को सिर्फ इसलिए बचा रहे हैं कि उन्हें फिर से अफसोस न करना पड़े।

इंसाफ अभियान के महासचिव दिनेश चौधरी ने कहा कि शोध छात्र अनिल यादव की जगह अगर कोई मुसलमान शोध छात्र होता तो यही पुलिस आरएसएस के गुण्डों के कहने भर से उसे आईएसआईएस या आईएसआई से जोड़कर जेल भेज बड़ा आतंकी करार दे देती। लेकिन घटना के दो दिन बीत जाने के बाद भी संघ के सांप्रदायिक तत्वों नीरज शर्मा, रामवीर सिंह, आशुतोष, अनुभव शर्मा के खिलाफ कोई मुकदमा दर्ज न होना सपा की संघी सांठगांठ को उजागर करता है। उन्होंने मांग की कि जल्द के जल्द दोषियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर गिरफ्तारी नहीं की गई तो इंसाफ पसन्द अवाम को सड़कों पर उतरने के लिए सरकार मजबूर करेगी।

रिहाई मंच नेता शबरोज मोहम्मदी ने कहा कि सपा सरकार ने चुनावी वादा किया था कि आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाहों की रिहाई और पुर्नवास व मुआवजा देगी। सरकार अपने कार्यकाल के चैथे साल का अंतिम सत्र चला रही है पर जिस तरीके से वह मौन है ठीक उसी तरीके से उसके प्रति मुस्लिम समाज भी मौन है, ऐसी गलतफहमी अखिलेश यादव ने अगर पाली है तो 2017 में मुसलमान इसका जवाब देगा। उन्होंने मांग की कि सरकार मरहूम मौलाना खालिद और तारिक की गिरफ्तारी पर गठित निमेष कमीशन की रिपोर्ट पर कार्रवाई करते हुए दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करे। नागरिक परिषद के रामकृष्ण ने कहा कि जिस तरीके से बेगुनाहों के छूटने के बाद भी उनको जमानत लेना पड़ रहा है वह दरअसल हमारी व्यवस्था का अपने नागरिकों पर कोई भरोसा नहीं है की पुष्टि करता है। जो अलोकतांत्रिक है। उन्होंने कहा कि जमानत के पूरी प्रक्रिया को बदल कर सिर्फ देश के नागरिक होने के किसी भी पहचान पत्र पर जमानत देने की व्यवस्था बनाई जाए।

समाज सेवी अखिलेश सक्सेना ने कहा कि विकास के नाम पर जो केन्द्र सरकार ने जो भ्रम बेचा था उसे ही अखिलेश यादव भी बेचने लगे हैं। पर अखिलेश को यह जान लेना चाहिए कि भ्रम का बाजार एक बार चलता है बार-बार नहीं। उन्होंने कहा कि मैट्रो के नाम पर जिस तरीके से ठेला-पटरी के दुकानदारों को बिना कोई मुआवजा या पुर्नवास किए भगा दिया जा रहा है वह अखिलेश का गरीब विरोधी समाजवाद को उजागर करता है। एक तरफ बुंदेलखंड से लेकर पूरे सूबे के किसान आत्म हत्या करने को मजबूर है वहीं हाई वे के नाम पर किसानों की सिंचित भूमि का अधिग्रहण किया जा रहा है।

बैठक में रिहाई मंच के अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब, रिहाई मंच नेता राजीव यादव, शाहआलम, जियाउद्दीन, शकील कुरैशी, दिनेश चैधरी, अखिलेश सक्सेना, राम कृष्ण, शबरोज मोहम्मदी आदि मौजूद थे।

(प्रेस विज्ञप्ति)

शुक्रवार, 29 जनवरी 2016

संघ कार्यालय में शोधार्थी को बनाया बंधक

रिहाई मंच ने लगाया आरोप। संघ कार्यकर्ताओं नीरज शर्मा, रामवीर सिंह, आशुतोष और अनुभव शर्मा पर कार्रवाई की मांग। हिन्दू स्वाभिमान संगठन की गतिवधियों को प्रतिबंधित करने की मांग। संगठन के स्वामी जी उर्फ दीपक त्यागी पर सपा के युवा इकाई का सदस्य होने का आरोप।

वनांचल न्यूज नेटवर्क

लखनऊ। जनमुद्दों पर बेबाक बयानबाजी के पहचाने जाने वाले रिहाई मंच ने मुजफ्फरनगर स्थित संघ कार्यालय पर शोधार्थी अनिल यादव को बंधक बनाने और उनके साथ दुर्व्यवहार करने का आरोप लगाया है। साथ ही उसने कथित रूप से संघ से जुड़े नीरज शर्मा, रामवीर सिंह, आशुतोष और अनुभव शर्मा समेत इस मामले में शामिल अन्य लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने की मांग की है। मंच ने मुजफ्फरनगर स्थित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कार्यालय को आतंकी कारवाईयों का सेंटर बताया।

रिहाई मंच की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति में प्रवक्ता राजीव यादव ने बताया कि लखनऊ स्थित गिरि विकास संस्थान के पोजेक्ट रिसर्च एसोसिएट अनिल यादव 'मुजफ्फरनगर सांप्रदायिक हिंसा' विषय पर शोध कर रहे हैं। वे गत 27 जनवरी को शोध के लिए मुजफ्फरनगर गए थे। राजीव ने आरोप लगाया कि वहां शाम को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लिए कार्य करने वाले नीरज शर्मा, रामवीर सिंह, आशुतोष और अनुभव शर्मा समेत कई लोगों ने अनिल यादव को जबरन पकड़ लिया और रात करीब 8 बजे से 10 बजे तक मुजफ्फरनगर के अंसारी रोड स्थित आरएसएस कार्यालय में बंधक बनाकर रखा। उन्होंने आपराधिक तरीके तीन घंटे तक अनिल को अपने कार्यालय मे बंदकर पूछताछ किया और आईएसआई का एजेंट बोलकर जान से मारने की धमकी दी।

राजीव ने बताया कि अनिल बार-बार कह रहा था कि वह एक शोधार्थी है और परिचय-पत्र भी दिखाया। इसके बावजूद वे लाठी डंडे दिखाकर जान से माने की धमकी देते रहे। इस दौरान अनिल का फोन भी ले लिया और उसमें डायल नंबरों के बारे में यह पूछा गया कि किस आतंकवादी का नंबर है। इतने मुल्लाओं का नंबर तुम्हारे पर कैसे है। परिचय पत्र दिखाने के बाद भी मुसलमान कहकर प्रताडि़त करते रहे और आईएसआई, आईएसआईएस का एजेंट कहकर गांलियां देते रहे। घंटों प्रताड़ना के बाद मोबाइल वापस किया। मंच के प्रवक्ता ने बताया कि इस पूरी घटना में संघ से जुड़े नीरज शर्मा, रामवीर सिंह, आशुतोष और अनुभव शर्मा समेत दो और लोग शामिल थे।

रिहाई मंच के अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने गिरि विकास संस्थान लखनऊ के पोजेक्ट रिसर्च एसोसिएट अनिल यादव को बंधक बनाने की घटना को अकादमिक जगत के शोधों पर आरएसएस का हमला बताया। उन्होंने कहा कि रोहित वेमुला, दाभोलकर, पंसारे को मार देने या फिर मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित संदीप पाण्डेय को बीएचयू से और मोदी गो बैक का नारा लगाने वालों को बीबीएयू से निकालने और अब अनिल यादव को बंधक बनाने से सवालों को नहीं दबाया जा सकता। जो लोग कहते हैं कि देश में असहिष्णुता नहीं है उन्हें अनिल यादव से पूछना चाहिए की मुसलमान का नंबर रखने भर से जो उनके साथ किया गया उससे उनपर क्या गुजरी। जो यह सोचने पर विवस करता है कि  मुसलमान होना कितना गुनाह हो गया है।

रिहाई मंच के अध्यक्ष ने कहा कि जिस तरह से देश की राजधानी के करीब गाजियाबाद के डासना में पिछले दिनों पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हिंदू स्वाभिमान संगठन के लोग मुसलमानों के खिलाफ भड़काकर पिस्तौल, राइफल, बंदूक जैसे हथियार चलाने का प्रशिक्षण आठ-आठ साल के हिंदू बच्चों को दे रहे हैं उस पर खुफिया-सुरक्षा एजेंसियां और सरकार क्यों चुप है। आखिर इस संगठन के प्रमुख नसिहांनंद मुसलमानों और हिंदुओ की बीच युद्ध में पश्चिम उत्तर प्रदेश को आतंक की एक प्रयोगशाला बना रहे हैं उनके खिलाफ सपा सरकार सिर्फ इसलिए चुप है कि स्वामीजी उर्फ दीपक त्यागी कभी सपा के यूथ विंग के प्रमुख सदस्य रह चुके हैं। उन्होंने कहा की ठीक इसी प्रकार मुजफ्फरनगर साप्रदायिक हिंसा के दोषी संगीत सोम सपा से चुनाव तक लड़ चुके हैं। मुलायम सिंह को जो यह अफसोस हो रहा है कि उन्होंने बाबरी मस्जिद के सवाल पर गोली चलवा दी उन्हें और उन जैसे नेताओं को इस बात पर भी अफसोस होना चाहिए कि उन जैसे लोगों की छद्म धर्म निरपेक्षता के चलते हिंदुत्वादी संगठन कैसे छोटे-छोटे बच्चों को आतंकवादी बना रहे हैं और वह चुप हैं। जिस तरह से आतंकी हिंदू स्वाभिमान संगठन के महासचिव राज्य स्तरीय पहलवान अनिल यादव कहते हैं कि पहलवानों को योजनाबद्ध तरीके से कट्रपंथ की शिक्षा के जरिए तैयार कर सड़कों पर खुला छोड़ दिया जाए तो बड़ा हंगामा कर सकते हैं। ऐसे में यह हिंदू समाज के लिए भी सोचने का वक्त है कि एक अनिल यादव जो अपने धर्मनिरपेक्ष मूल्यों की वजह से प्रताडि़त होता है उसके साथ उसे खड़ा होना है या फिर वो जो इनके बच्चों को हिंदू स्वाभिमान के नाम पर आतंकी बना रहे हैं उनके साथ।


मुहम्मद शुऐब ने कहा कि अकादमी जगत के लोगों पर हो रहे हमले यह साफ करते है कि संघ तार्किक विचारों से कितना डरता है। उन्होंने कहा कि यह हमला देश के लोकतांत्रिक ढांचे को तहस-नहस करने का है इसे कत्तई बर्दास्त नहीं किया जाएगा।

वहीं, मुजफ्फरनगर संघ कार्यालय ने ऐसी किसी भी घटना से साफ इंकार किया है। 

शनिवार, 23 जनवरी 2016

मोदी-गो-बैक का नारा लगाने वाले छात्रों को रिहाई मंच ने किया सम्मानित


असहमति को कुचलने की साजिश का प्रतिवाद है नारा

वनांचल न्यूज नेटवर्क

लखनऊ। बाबा साहब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय में मोदी गो बैक का नारा लगाना वाले छात्र रामकरन, अमरेन्द्र और सुरेन्द्र को रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब ने हजरतगंज स्थित अंबेडकर प्रतिमा स्थल पर शाल ओढ़ाकर सम्मानित किया। रिहाई मंच नेता शाहनवाज आलम, राजीव यादव, शकील कुरैशी, लक्ष्मण प्रसाद, शबरोज मोहम्मदी, अनिल यादव, दिनेश चैधरी व आमिर अली अजानी ने छात्रों का माल्यार्पण किया।

छात्रों को सम्मानित करते हुए मुहम्मद शुऐब ने कहा कि मोदी गो बैक का नारा लगाने वाले दलित छात्रों ने पूरे दलित समाज में आरएसएस और मोदी सरकार के खिलाफ बढ़ते आक्रोश को व्यक्त किया है। जिसने आने वाले भविष्य का संकेत दे दिया है कि संघ और भाजपा का इस आंधी में उड़ना तय है। उन्होंने कहा कि छात्रों की नारेबाजी के बाद मोदी का भाषण के दौरान रुककर रोहित वेमुला की मौत पर अफसोस जताना मोदी की पैतरेबाजी है। जिसे दलित समाज बखूबी समझ रहा है। दुनिया में फासीवाद को छात्रों ने ही हर दौर में चुनौती दी है। मोदी गो बैक का नारा लगाने वाले छात्र उसी परम्परा के वारिस हैं।

इस मौके पर सम्मानित छात्र रामकरन, अमरेन्द्र और सुरेन्द्र कहा कि अगर आप संघ की विचारधारा से सहमत हंै तो आपको प्रोफेसर और वाइस चांसलर बनाया जाता है। विश्वविद्यालय का जिस तरह भगवाकरण किया जा रहा है उसे तत्काल बंद किया जाए। मोदी गो बैक का नारा क्यों लगाया इस बात का जवाब देते हुए कहा कि देश में दलितों के साथ हमेशा अन्याय होता रहा है। अगर हम इस अन्याय के खिलाफ आवाज नहीं उठाएंगे तो कौन उठाएगा। उन्होंने बताया कि पुलिस ने विरोध करने के बाद हमको गाड़ी में ले जाकर 30 मिनट तक मारा पीटा। छात्रों ने सवाल किया कि मोदी ने बीबीएयू में रोहित वेमुला के लिए क्यों संवेदना जताई? जबकि उन्हें तो हैदराबाद जाना चाहिए।

रिहाई मंच प्रवक्ता शाहनवाज आलम ने कहा कि जिस तरीके से लोकतांत्रिक तरीके से आवाज उठाने वाले छात्रों की पुलिस प्रताड़ना की गई और उन्हें उनके गेस्ट हाउस से निकाला गया वह इस बात का सबूत है कि हमारी व्यवस्था रोहित वेमुला की मौत से कोई सबक नहीं ले पाई है। उन्होंने कहा कि जिस तरह से बीबीएयू के वीसी आरसी सोबती ने छात्रों पर कार्यवाई करने की बात कहते हुए कहा कि जिन लड़कों ने पीएम के खिलाफ नारे लगाए वे दागी प्रकृति के हैं, उनके खिलाफ केस दर्ज है, यह कहकर उन्होंने साबित किया है कि जिस विश्वविद्यालय के कुलपति लोकतांत्रिक मूल्यों को नहीं मानते उस विश्वविद्यालय के हालात क्या होंगे। उन्होंने सवाल किया कि जब कुलपति छात्रों पर यह आरोप लगा रहे हैं कि वे विश्वविद्यालय में दलित मूवमेंट चला रहे थे तो ऐसे में उन्हें अंबेडकर विश्वविद्यालय का कुलपति बने रहने का कोई हक नहीं है क्योंकि इन छात्रों ने अम्बेडकर के विचारों से ही अन्याय का विरोध करने की प्रेरणा ली है।

रिहाई मंच नेता राजीव यादव ने कहा कि अगर मोदी गो बैक का नारा लगाने वाले छात्रों का करियर खराब करने की कोई साजिश की गई तो उसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। अब कोई रोहित आत्महत्या के लिए मजबूर नहीं होगा। यह नागरिक अभिनंदन इसी बात का प्रतीक है कि भगवा आतंक के खिलाफ अब समाज लड़ने को तैयार हो रहा है। उन्होंने छात्रों का मेडल और डिग्री ससम्मान देने की मांग की।

मोदी गो बैक का नारा लगाने वाले छात्रों के नागरिक अभिनंदन में मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित संदीप पाण्डे, पीयूसीएल महासचिव वंदना मिश्रा, वरिष्ठ साहित्यकार भगवान स्वरुप कटियार, सीपीआई एमएल के राजीव, डॉ. एम पी अहिरवार, सीमा चन्द्रा, दिवाकर, नदीम, आरिफ मासूमी, जुबैर जौनपुरी, सैयद मोईद, पीसी कुरील, खालिद कुरैशी, फहीम सिद्दीकी, अनिल यादव, केके वत्स, एस के पंजम, अजीजुल हसन, प्रदीप कपूर, अजय शर्मा, आशीष अवस्थी आदि उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन लक्ष्मण प्रसाद ने किया।

     ( प्रेस विज्ञप्ति)

शनिवार, 16 जनवरी 2016

नंगाकर कर पेट्रोल डाला और पेशाब पिलायाः अजीजुर्रहमान

देशद्रोह के आरोप में आठ साल से ज्यादा समय जेल में गुजारने के बाद दोषमुक्त हुये अजीर्जुरहमान, मोहम्मद अली अकबर और शेख मुख्तार हुसैन बयां किया दर्द।

वनांचल न्यूज नेटवर्क

लखनऊ। बिजली का झटका लगाना, उल्टा लटका कर नाक से पानी पिलाना, टांगे दोनों तरफ फैलाकर डंडा से पीटना, नंगा कर पेट्रोल डालना, पेशाब पिलाना जैसे तमाम  हथकंडे पुलिस ने हमपर आजमाया और छह दिन तक हमें एक मिनट के लिए भी सोने नहीं दिया। यह कहना है पश्चिम बंगाल में 24 परगना जिले के बशीर हाट निवासी इक्तीस वर्षीय अजीर्जुरहमान का जिन्हें उत्तर प्रदेश एटीएस ने देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर जेल में ठूंस दिया था। अदालत ने पिछले दिनों अजीर्जुरहमान को करीब आठ साल बाद देशद्रोह के आरोप से दोषमुक्त कर दिया। उनके अलावा अदालत ने मोहम्मद अली अकबर और शेख मुख्तार को भी देशद्रोह के आरोप से मुक्त कर उन्हें रिहा कर दिया है।

शनिवार को लखनऊ स्थित उत्तर प्रदेश क्लब में रिहाई मंच द्वारा आयोजित पत्रकार वार्ता के दौरान अजीर्जुरहमान ने बताया कि उसे 11 जून 2007 को सीआईडी वालों ने चोरी के इल्जाम में उठाया था। 16 जून को कोर्ट में पेश करने के बाद 22 जून को दोबारा कोर्ट में पेश कर 26 तक हिरासत में लिया। जबकि यूपी एसटीएफ ने मेरे ऊपर इल्जाम लगाया था कि मैं 22 जून को लखनऊ अपने साथियों के साथ आया था। आप ही बताएं की यह कैसे हो सकता है कि जब मैं 22 जून को कोलकाता पुलिस की हिरासत में था तो यहां कैसे उसी दिन कोई आतंकी घटना अंजाम देने के लिए आ सकता हूं। 12 दिन की कस्टडी में यूपी एसटीएफ ने रिमांड में 5 लोगों के साथ लिया और बराबर नौशाद और जलालुद्दीन के साथ टार्चर किया जा रहा था जिसे देख हम दहशत में आ गए थे कि हमारी बारी आने पर हमारे साथ भी ऐसा ही किया जाएगा। टार्चर कुछ इस तरह था कि हमारा रिमांड खत्म होने के एक दिन पहले लखनऊ से बाहर जहां ईट भट्टा और एक कोठरी नुमा खाली कमरा पड़ा था, वहां ले जाकर गाड़ी रोका और मीडिया के आने का इंतजार किया। यहां लाने से पहले एसटीएफ वालों ने हमसे कहा था कि मीडिया के सामने कुछ मत बोलना। 

इस बीच धीरेन्द्र नाम के एक पुलिस कर्मी ने सीमेंट की बोरी और फावड़ा लिया और कोठरी के अंदर गया फिर कोठरी के अंदर गड्डा खोदा, बोरी के अंदर से जो भी सामान ले गए थे गड्डे के अंदर टोकरी में रख दिया। फिर जब सारे मीडिया वाले आ चुके तो हमको गाड़ी से निकालकर उस गड्डे के पास से एक चक्कर घुमाया जिसका फोटो मीडिया खींचती रही। एसटीएफ वालों ने मीडिया को बताया कि ये आतंकी हैं जो कि यहां दो किलो आरडीएक्स, दस डिटोनेटर और दस हैंड ग्रेनेड छुपाकर भाग गए थे। इनकी निशानदेही पर यह बरामद किया गया है। मीडिया वाले बात करना चाह रहे थे पर एसटीएफ ने तुरंत हमें ढकेलकर गाड़ी में डाल दिया। हम लोगों को जब यूपी लाया गया उस समय उसमें एक लड़का बांग्लादेशी भी था। पूछताछ के दौरान उसने बताया कि वह हिन्दू है और उसका नाम शिमूल है। उसके बाद दो कांस्टेबलों ने उसके कपड़े उतरवाकर देखा कि उसका खतना हुआ है कि नहीं। जब निश्चिंत हो गए की खतना नहीं हुआ है तो पुलिस वालों ने उससे कहा कि यह बात कोलकाता में क्यों नहीं बताया। उसके बाद दो कांस्टेबल उसे फिर से कोलकाता छोड़ आए। सिर्फ मुसलमान होने के नाते हमें आतंकी बताकर फंसा दिया गया।

मिदनापुर निवासी शेख मुख्तार हुसैन जो कि मटियाबुर्ज में सिलाई का काम करते थे ने बताया कि उसने एक पुराना मोबाइल खरीदा था। उस समय उसकी बहन की शादी थी। उसी दौरान एक फोन आया कि उसकी लाटरी लग गयी है और लाटरी के पैसों के लिए उसे कोलकाता आना होगा। इस पर उसने कहा कि अभी घर में शादी की व्यस्तता है अभी नहीं आ पाउंगा। उसी दौरान उसे साइकिल खरीदने के लिए नंद कुमार मार्केट जाना था तो उसी दौरान फिर से उन लाटरी की बात करने वालों का फोन आया और उन लोगों ने कहा कि वे वहीं आ जाएंगे। फिर वहीं से उसे खुफिया विभाग वालों ने पकड़ लिया। जीवन के साढे़ आठ साल बर्बाद हो गए। उनका परिवार बिखर चुका है। उन्होंने अपने बच्चों के लिए जो सपने बुने थे उसमें देश की सांप्रदायिक सरकारों, आईबी और पुलिस ने आग लगा दी। उनके बच्चे पढ़ाई छोड़कर सिलाई का काम करने को मजबूर हो गए, उनकी बेटी की उम्र शादी की हो गई है। लेकिन साढे आठ साल जेल में रहने के कारण अब वे पूरी तरह बर्बाद हो चुके हैं। अब उनके सामने आगे का रास्ता भी बंद हो गया है। क्योंकि फिर से जिंदगी को पटरी पर लाने के लिए जो पैसा रुपया चहिए वह कहा से आएगा। सरकार पकड़ते समय तो हमें आतंकवादी बताती है पर हमारे बेगुनाह होने के बाद न तो हमें फंसाने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई होती है और न ही मुआवजा मिलता है। पत्रकारों द्वारा सवाल पूछने पर कि मुआवजा की लड़ाई लड़ेगे पर शेख मुख्तार ने कहा कि छोड़ने के वादे से मुकरने वाली सरकार से मुआवजे की कोई उम्मीद नहीं।

24 परगना बनगांव के रहने वाले अली अकबर हुसैन ने कहा कि देश के खिलाफ नारे लगाने के झूठे आरोप ने उसे सबसे ज्यादा झटका दिया। जिस देश में हम रहते हैं उसके खिलाफ हम कैसे नारा लगाने की सोच सकते हैं। आज जब यह आरोप बेबुनियाद साबित हो चुके हैं तो सवाल उठता है कि हम पर देश के खिलाफ नारा लगाने का झूठा आरोप क्यों मढ़ा गया। उन्होंने कहा कि हमारे वकील मु0 शुऐब जो कि हमारा मुकदमा लड़ने (12 अगस्त 2008) कोर्ट में गए थे को मारा पीटा गया और हम सभी पर झूठा मुकदमा दर्ज कर दिया गया कि हम देश के खिलाफ नारे लगा रहे थे।

जेल की पीड़ा और अपने ऊपर लगे आरोपों से अपना मानसिक असंतुलन का शिकार हो चुके अली अकबर के पिता अल्ताफ हुसैन ने कहा कि मेरे बेटे की हालत की जिम्मेदार पुलिस और सरकार है। एयर फोर्स के रिटायर्ड अल्ताफ ने कहा कि जिस तरह से झूठे मुकदमें में उनके लड़के और अन्य बेगुनाहों को फंसाया गया ऐसे में एडवोकेट मुहम्मद शुऐब की मजबूत लड़ाई से ही इनकी रिहाई हो सकी। उन्होंने कहा कि हमारे बेटों के खातिर मार खाकरद भी जिस तरीके से शुऐब साहब ने लड़ा उससे इस लड़ाई को मजबूती मिली। पत्रकार वार्ता में रिहा हो चुके लोगों के परिजन अब्दुल खालिद मंडल, अन्सार शेख भी मौजूद रहे।

पत्रकार वार्ता के दौरान जेल में कैद आतंकवाद के अन्य आरोपियों के बारे में सवाल पूछने पर अजीजजुर्रहमान ने बताया कि उनके साथ ही जेल में बंद नूर इस्लाम की आंख की रौशनी कम होती जा रही है। लेकिन मांग करने के बावजूद जेल प्रशासन उनका इलाज नहीं करा रहा है। शेख मुख्तार से यह पूछने पर कि अब आगे जिंदगी कैसे बढ़ेगी, उन्होंने कहा कि बरी होने के बाद भी हमें जमानत लेनी है और अभी तक हमारे पास जमानतदार भी नहीं है। हम एडवोकेट मोहम्मद शुऐब के उपर ही निर्भर हैं। इस सिलसिले में मोहम्मद शुऐब से पूछने पर कि जमानत कैसे होगी ये कहते हुए वो रो पड़े कि आतंकवाद के आरोपियों के बारे में फैले डर की वजह से मुश्किल होती है और लोग इन बेगुनाहों के जमानतदार के बतौर खड़े हों। इसीलिए मैंने इसकी शुरूआत अपने घर से की मेरी पत्नी और साले जमानतदार के बतौर खड़े हुए हैं। इन भावनाओं से प्रभावित होते हुए पत्रकार वार्ता में मौजूद आदियोग और धर्मेन्द्र कुमार ने जमानतदार के बतौर खड़े होने की बात कही। मु0 शुऐब ने समाज से अपील की कि लोग ऐसे बेगुनाहों के लिए खड़े हों। इस मामले में अभी और जमानतदारों की जरूरत है अगर कोई इनके लिए जमानतदार के बतौर खड़ा होगा तो ये जल्दी अपने घर पहुंचाए जाएंगे।

रिहाई मंच के अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि सपा सरकार ने अगर आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाहों को छोड़ने का अपना चुनावी वादा पूरा किया होता तो यही नहीं इन जैसे दर्जनों बेगुनाह पहले ही छूट गए होते। उन्होंने कहा कि सपा ने चुनाव में मुसलमानों का वोट लेने के लिए उनसे झूठे वादे किए। जिसमें से एक वादा छूटे बेगुनाहों के पुर्नवास और मुआवजे का भी था। लेकिन किसी भी बेगुनाह को सरकार ने उनकी जिन्दगी बर्बाद करने के बाद आज तक कोई मुआवजा या पुर्नवास नहीं किया है। पुर्नवास व मुआवजा न देना साबित करता है कि अखिलेश यादव हिन्दुत्वादी चश्मे से बेगुनाहों को आतंकवादी ही समझते हैं। उन्होंने पूछा कि सरकार को बताना चाहिए कि इन बेगुनाहों के पास से पुसिल ने जो  आरडीएक्स, डिटोनेटर और हैंडग्रेनेड बरामद दिखाया उसे वह कहां से मिला। किसी आतंकी संगठन ने उन्हंे ये विस्फोटक दिया या फिर पुलिस खुद इनका जखीरा अपने पास रखती है ताकि बेगुनाहों कों फंसाया जा सके। उन्होंने कहा कि ऐसी बरामदगी दिखाने वाले पुलिस अधिकारियों का समाज में खुला घूमना देश की सुरक्षा के लिए ठीक नहीं है। उन्होंने कहा कि जिस तरह से कुछ मीडिया संस्थानों ने इनके छूटने पर यह खबर छापी की ये सभी पाकिस्तानी है असल में यह वही जेहनियत है जिसके चलते पुलिस ने देश के खिलाफ नारा लगाने का झूठा एफआईआर करवाया। आज असलियत आपके सामने है कि यह अपनी बात कहते-कहते भूल जा रहे हैं। मानसिक रुप से असुंतलित हो गए हैं। ऐसे में देशद्रोह और आतंकी होने का फर्जी मुकदमा दर्ज कराने वाले असली देशद्रोही हैं उनपर मुकदमा होना चाहिए। उन्होंने सरकार से सवाल किया कि क्या उसमें यह हिम्मत है


रिहाई मंच नेता राजीव यादव ने बताया कि आफताब आलम अंसारी, कलीम अख्तर, अब्दुल मोबीन, नासिर हुसैन, याकूब, नौशाद, मुमताज, अजीजुर्रहमान, अली अकबर, शेख मुख्तार, जावेद, वासिफ हैदर वो नाम हैं जिन पर आतंकवादी का ठप्पा लगाकर उनकी पूरी जिंदगी बर्बाद कर दी गई। जिनके बरी होने के बावजूद सरकारों ने उनके प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं दिखाई। तो वहीं ऐसे कई नौजवान यूपी की जेलों में बंद हैं जो कई मुकदमों में बरी हो चुके है जिनमें तारिक कासमी, गुलजार वानी, मुहम्मद अख्तर वानी, सज्जादुर्रहमान, इकबाल, नूर इस्लाम है। उन्होंने कहा कि सरकार बेगुनाहों की रिहाई से सबक सीखते हुए इन आरोपों में बंद बेगुनाहों को तत्काल रिहा करे और सांप्रदायिक पुलिस कर्मियों के खिलाफ कारवाई करे। उन्होंने कहा कि जब इन बेगुनाहों को फंसाया गया तब बृजलाल एडीजी कानून व्यवस्था और बिक्रम सिंह डीजीपी थे और उन्होनें ही मुसलमानों को फंसाने की पूरी साजिश रची। जिनकी पूरी भूमिका की जांच के लिए सकरार को जांच आयोग गठित करना चाहिए ताकि आतंकवाद के नाम पर फंसाने वाले पुलिस अधिकारियों को सजा दी जा सके। मंच ने यूएपीए को बेगुनाहों को फंसाने का पुलिसिया हथियार बताते हुए इसे खत्म करने की मांग की है।
(प्रेस विज्ञप्ति)