गुरुवार, 21 जनवरी 2016

ROHIT VEMULA: अनुसूचित जाति वर्ग से ही है रोहित

आंध्र प्रदेश के राजस्व विभाग की ओर से जारी प्रमाण-पत्र में रोहित वेमुला की जाति माला।

वनांचल न्यूज़ नेटवर्क

नई दिल्ली। हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के शोधार्थी रोहित वेमुला की खुदकुशी का मामला विश्वविद्यालय प्रशासन और केंद्र की सत्ताधारी भाजपा के लिए गले का फांस बन गया है। इससे बचने के लिए एक रोहित वेमुला की जाति पर सवाल खड़ा कर रहा है तो दूसरा अपने गैर-जिम्मेदार मंत्री की जाति उजागर कर अपनी कारस्तानियों पर मिट्टी डालने की कोशिश में जुटा है। हालांकि रोहित वेमुला का जाति प्रमाण-पत्र सामने आ गया है जिसमें साफ लिखा है कि वह अनुसूचित जाति वर्ग के तहत आता है।


आंध्र प्रदेश के राजस्व विभाग द्वारा पिछले साल 16 जून को जारी समुदाय एवं जन्म प्रमाण-पत्र में साफ लिखा है कि गुंटूर मंडल निवासी वेमुला रोहित चक्रवर्ती पुत्र श्री वेमुला नागा मणि कुमार माला समुदाय से है जिसे 1950 के भारतीय संविधान आदेश, 1956 के अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों (सुधार) की आदेश सूची एवं 1976 के अनुसूचित जनजातियों (सुधार) अधिनियम-1976 के तहत अनुसूचित जाति का दर्जा प्रदान किया गया है। प्रमाण-पत्र के अनुसार रोहित वेमुला की जन्म तिथि 30 जनवरी, 1980 है। गौरतलब है कि रोहित वेमुला की मां राधा वेमुला अनुसूचित जाति वर्ग की हैं और उच्चतम न्यायालय के आदेश के अनुसार अगर बच्चे का जन्म अनुसूचित जाति वर्ग या ऐसे माहौल में हुआ है तो उसे अनुसूचित जाति वर्ग का ही माना जाएगा। 

गौरतलब है कि पिछले साल जुलाई में अंबेडकर स्टूडेंट एसोसिएशन से जुड़े रोहित वेमुला चक्रवर्ती और उसके साथियों ने हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय में 'मुजफ़्फ़रनगर अभी बाकी है' फिल्म का प्रदर्शन किया। इसके विरोध में एबीवीपी (एचसीयू) अध्यक्ष एन.सुशील कुमार ने फेसबुक पर उन्हें गुंडा कहा। बाद में उसने इसपर लिखित माफी मांगी लेकिन अगले दिन उसने रोहित और साथियों पर कथित तौर पर कमरे में हमला करने का आरोप लगाकर शिकायत दर्ज कराई। इसे शिकंदराबाद से सांसद और केंद्रीय श्रम राज्य मंत्री बंडारू दत्तात्रेय से भी किया। इसे संजीदगी से लेते हुए दत्तात्रेय ने केंद्रीय मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय को एक पत्र लिखा। इसमें उन्होंने अंबेडकर स्टूडेंट एसोसिएशन को जातिवादी, चरमपंथी और राष्ट्रवाद विरोधी राजनीति का गढ़ कहा। 

इसके बाद मंत्रालय ने सितंबर-अक्टूबर महीनों में छह सप्ताह के अंदर विश्वविद्यालय प्रशासन को पांच पत्र लिखे जिसमें उन्होंने रोहित और उसके साथियों पर कार्रवाई की रिपोर्ट मांगी। इसी दौरान सुशील की मां ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर दी। इससे दबाव में आए विश्वविद्यालय प्रशासन ने रोहित और उसके साथियों को विश्वविद्यालय के हास्टल में रहने समेत अन्य किसी प्रकार की गैर-शैक्षिक गतिविधियों में शामिल होने पर रोक सगा दी। इसके बाद रोहित और उसके साथ निष्कासित अन्य चार शोधार्थी विश्वविद्यालय के बाहर टेंट लगाकर विरोध दर्ज कराने लगे। रविवार को रोहित ने व्यथित होकर हास्टल के कमरे में जाकर खुदकुशी कर ली थी। 

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