मंगलवार, 1 सितंबर 2015

गलत सूचना देकर लोगों को गुमराह कर रहा सोनभद्र का सूचना विभाग

वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो
सोनभद्र। पिछले करीब 10 साल से जिला सूचना एवं जनसंपर्क अधिकारी की नियुक्ति से जूझ रहा जिला सूचना एवं जनसंपर्क विभाग, सोनभद्र गलत सूचना प्रसारित कर जनता समेत मीडियाकर्मियों को गुमराह कर रहा है। उक्त कार्यालय में तैनात उर्दू अनुवादक नेसार अहमद की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति में जिलाधिकारी संजय कुमार के हवाले से कहा गया है, 
जिलाधिकारी श्री संजय कुमार ने जानकारी देते हुए बताया कि चन्दौली जिले में 15 सितम्बर, 2015 से 23 सितम्बर, 2015 तक भारतीय सेना की खुली भर्ती होगी, जिसमें सोनभद्र जिले के तीनों तहसीलों के पात्र सोल्जर जी0डी0, सोल्जर ट्रेड मैन, सोल्जर टेक्निकल, सोल्जर क्लर्क/स्टोर कीपर टेक्निकल, सोल्जर टेक्निकल नर्सिंग, पशु चिकित्सक सेना की भर्ती में शरीक हो सकते हैं। जिलाधिकारी ने बताया कि सोनभद्र जिले के  अभ्यर्थियों के लिए सेना भर्ती के लिए चन्दौली में थल सेना भर्ती के लिए 23 सितम्बर, 2015 की तिथि निर्धाति है। जिलाधिकारी श्री संजय कुमार ने जिले के तीनों तहसीलों के पात्र एवं योग्य अभ्यर्थियों से अपेक्षा की है कि वे निर्धारित तिथि 23 सितम्बर, 2015 दिन बुद्धवार को भर्ती में सम्मिलित होकर सुनहरे मौके का फायदा उठायें। 

गौर करने वाली बात है कि भारतीय सेना की ओर से चंदौली जिले में सितंबर, 2015 के दौरान होने वाली भर्ती पंचायत चुनाव की वजह से टाल दी गई है। इसके बावजूद सोनभद्र का जिला सूचना एवं जनसंपर्क विभाग क्षेत्र के युवाओं को उक्त भर्ती में शामिल होने की सूचना प्रसारित कर रहा है। जब इस बाबत जिलाधिकारी संजय कुमार को मेसेज किया गया तो उन्होंने सोनभद्र सूचना विभाग की ओर से जारी विज्ञप्ति में प्रसारित सूचना को गलत बताया। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि सोनभद्र सूचना विभाग में तैनात उर्दू अनुवादक किस तरह लोगों को गुमराह कर रहा है। इससे पूर्व भी नेसार अहमद कई प्रकार की गलत सूचनाएं प्रसारित कर चुका है। जिसमें उसके द्वारा खुद को जिला सूचना अधिकारी, सोनभद्र बताने का मामला भी शामिल है। उसने जिले की अधिकारिक वेबसाइट पर भी इस सूचना को प्रकाशित करा दिया था। शिकायत के बाद वे सूचनाएं हटाई गईँ। 

रविवार, 9 अगस्त 2015

समस्याओं के समाधान के बिना मूलवासियों का भविष्य सुरक्षित नहीं

विश्व मूलवासी दिवस (9 अगस्त) पर विशेष
विश्व की कुल जनसंख्या करीब 6 अरब में से 3 अरब 70 करोड़ मूलवासी हैं, जो करीब 70 देशों में रह रहे हैं... भारत में वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार करीब आठ करोड़ चालीस लाख लोगों को मूलवासियों के रूप में चिन्हित किया गया है...

हरि राम मीणा

मूलवासी’ (इण्डीजीनिस) शब्द को परिभाषित करना अत्यधिक कठिन है। इस शब्द पर चर्चा करने के साथ-साथ आदिवासी (ट्राईब) देसी (नेटिव) एवं आदिम (अबोरिजनल) जैसे शब्दों की अवधारणाएं सामने आती हैं। वर्ष 1987 में ग्रेलर ने मूलवासी की व्याख्या करते हुए कहा कि यह ‘राजनैतिक दृष्टि से अधिकार-विहीन लोगों के ऐसे समुदाय हैं जो अपनी विशिष्ट नस्लगत पहचान बनाये रखते हैं और आधुनिक राष्ट्र की अवधारणा के मूर्तरूप लेने के बावजूद अलग ईकाई के रूप में समाज का हिस्सा बनकर चलते हैं। 

इससे पूर्व वर्ष 1972 में मूलवासी-जन के लिये गठित संयुक्त राष्ट्र संघ के कार्य समूह ने जोस माल्टीनेज कोज की परिभाषा से सहमति प्रकट करते हुए ’किसी भू-भाग पर विष्व के अन्य हिस्सों से आने वाले बाहरी मानव समूहों से पहिले वहां प्राचीन काल से रहने वाले लोगों के वंशज' के रूप में मूलवासी की पहचान की है। इस प्रक्रिया में बाहरी घुसपैठियों द्वारा आक्रमण एवं उस भू-भाग पर अधिकार करने तथा मूलवासियों को दोयम दर्जे का जीवन जीने को विवश किया गया। परिणास्वरूप वर्चस्वकारी व्यवस्था में उन्हें हेय दृष्टि से देखा जाने लगा और यहीं से विश्व की सबसे बड़ी समस्या नस्ल पर आधारित भेदभाव तथा मूलवासियों से सम्बन्धित अन्य मुद्दे सामने आये।

वर्ष 1983 में संयुक्त राष्ट्र संघ के स्तर पर ’मूलवासी’ शब्द की व्याख्या करते हुए माना कि ’किसी भू-भाग पर प्राचीन काल से रहने वाले मानव समुदाय के वंशज हैं जो नस्ल एवं संस्कृति के स्तर पर विशिष्टता रखते हों । इनमें से काफी लोग राष्ट्र-समाज की मुख्य धारा से अलग-थलग अपने पुरखों की परम्परा एवं रीति रिवाजों का संरक्षण करते हुए जीवन जीते चले आ रहे हैं और विकसित राष्ट्रीय, सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिवेश को ये लोग बाहरी (एलियन) मानते हैं।’ कुल मिलाकर ’’किसी भू-भाग के ज्ञात प्राचीनतम निवासियों’’ को मूलवासी कहना उचित होगा।

भौगोलिक दृष्टिकोण से आस्ट्रेलिया महाद्वीप के मूलवासियों को आदिम (अबोरिजनल) और शेष दुनिया के मूलवासियों को ’इण्डीजीनस’ कहा जाता है। आदिम शब्द में मौलिकता जैसे सांस्कृतिक-मनोवैज्ञानिक तत्व का तथा मूलवासी (इण्डीजीनस) में भू-भाग विशेष में जीवन जीते रहने का भाव संकेतित होता है। आदिवासी समुदाय आदिम एवं मूलवासी समाज का वह हिस्सा है जो अभी भी मुख्य समाज से अलग-थलग प्रमुख रूप से प्रकृति पर आधारित जीवन जीता आ रहा है और प्राचीनता एवं नैसर्गिकता के सन्दर्भ में आदिम सरोकारों का कमोबेश संरक्षण किये हुए है। 

सामान्य तौर पर निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि मूलवासी किसी भूखंड पर निर्विवाद रूप से लम्बे समय से वंषानुगत क्रम में निवास करने वाले ऐसे जन हैं जिनका नस्ल विशेष से गहरा संबंध होता है। यहां नस्ल, भू-भाग एवं प्राचीनता महत्वपूर्ण शब्द हैं। आधुनिक राष्ट्र- समाज एवं सरकारों के उद्भव के साथ अपनी स्वतन्त्र ईकाई के सन्दर्भ में ऐसे मूलवासी समुदाय राजनीति के स्तर पर अपने अस्तित्व एवं अधिकारों के लिये एक विषिष्ट पहचान बनाने की प्रक्रिया से गुजरते आये हैं। काल-खण्डानुक्रम की दृष्टि से प्राचीन काल, उपनिवेषवाद काल एवं आधुनिक काल के संदर्भ में इनकी अस्मिता, पराभव एवं पुनरूत्थान की प्रक्रिया को समझना आसान होगा। इस प्रक्रिया में होने वाले नस्ल परिवर्तन, सांस्कृतिक प्रदूषण, भाषागत अन्र्तक्रिया, मूल्यगत हृास की दृष्टि से परम्परा एवं आधुनिकता का अन्तर्संघर्ष, अन्तविर्रोध, अन्तक्र्रिया, परस्पर प्रभाव जैसी प्रमुख स्थितियां उभर कर सामने आती हैं । इस क्रम में भू-भाग विषेष महत्वपूर्ण तत्व न रहकर मानव समूहों के बिखराव एवं विस्थापन की स्थिति सामने आती है। यहां वनांचल से मुख्य भूमि, गावों से शहर और परम्परागत समाज से आधुनिक समाज की ओर अग्रसर होने की स्वाभाविकता या विवषता भी महत्वपूर्ण बन जाती है। निश्चित रूप से इतिहास एवं संस्कृति जैसे प्रमुख क्षेत्र प्रभावित होते हैं और प्राचीन ऐतिहासिकता एवं मौलिक संस्कृति के संरक्षण के प्रश्न सामने आते हैं।

विश्व मूलवासी अध्ययन केन्द्र की स्थापना वर्ष 1984 में डा0 रूडोल्फ सी0 रायसर एवं जार्ज मेनुअल ने एक स्वतंत्र शोध एवं शैक्षिक संगठन के रूप में की। जार्ज मेनुअल राष्ट्रीय भारत मैत्री संगठन (कनाडा) के पूर्व अध्यक्ष थे जिन्होंने उपनिवेषवाद से उबरे मूलवासियों के लिये कार्य किया। उन्होंने ही संयुक्त राष्ट्र संघ से सम्बन्धित मूलवासियों की विष्व परिषद के गठन में महत्पूर्ण योगदान दिया।

उल्लेखनीय है कि विश्व की कुल जनसंख्या करीब 6 अरब में से 3 अरब 70 करोड़ मूलवासी हैं, जो करीब 70 देशों में रह रहे हैं। भारत राष्ट्र के सन्दर्भ में मूलवासी श्रेणी में ही आदिवासियों को माना गया है। वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार करीब आठ करोड़ चालीस लाख लोगों को मूलवासियों के रूप में चिन्हित किया गया है। इनके कुल 461 समूह माने गये हैं। स्वतन्त्र शोध निष्कर्षो के अनुसार ऐसे कुल 635 आदिवासी घटक हैं जिनमें प्रमुख गोण्ड़, सन्थाल, उरांव, भील व नागा आदि हैं। जनगणना के मुताबिक 461 चिन्हित आदिवासी घटकों में से 220 उत्तर-पूर्वी राज्यों में रहते हैं, जो कुल आदिवासियों का 12 प्रतिशत जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करते हैं। वैसे मध्य भारत में कुल आदिवासियों की करीब 50 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है। ये आंकडे संविधान की सूचि में शामिल आदिम समुदायों के हैं. इनके अलावा नृतत्वविज्ञान की दृष्टि से अन्य आदिम समूह भी हैं जिनमें अपरिगणित, घुमंतू व अर्द्धघुमंतू हैं. इन चारों श्रेणियों को मिलकर हमारे अध्ययन के अनुसार कुल 1048 आदिम समुदाय भारत में हैं. ऐतिहासिक दृष्टिकोण से विचार किया जाये और आर्य-अनार्य संग्राम-शृंखला के सिद्धान्त को स्वीकार किया जाता है तो आदिवासी समाज के साथ दलित(अनुसूचित जाति) जनसंख्या भी मूलवासी की श्रेणी में आती है और साथ ही द्रविड़ मूल के अन्य घटक भी। 

वैश्विक मूलवासियों पर जब चर्चा की जाती है तो विश्व के सभी महाद्वीप विमर्श के केन्द्र में आते हैं। मूलवासियों की जनसंख्या अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, अमेरिका, एशिया, यूरोप आदि सभी महाद्वीपों से गहरा संबंध रखती आई हैं चाहे समस्या उत्तरी अमेरिका के रेड इंडियनस् की हो या दक्षिणी अमेरिका के ’बुश नीग्रो’ की हो या अफ्रीका के सांन की हो या मैक्सिको के माया लोगों की हो या न्यूजीलैंड के मोरानी की हो या आस्ट्रेलिया के कुरी, नुनगा, टीवी की हो या यूरोप के खिनालुग, कोमी, सामी की हो अथवा एषिया के अडंमान टापू के सेंटेनलीज या जारवा की हो।

मूलवासियों को सर्वाधिक त्रासदी का सामना उपनिवेष-काल के दौर में करना पड़ा था जो पन्द्रहवीं शताब्दी से शुरू होकर बीसवीं सदी के मध्य पार तक चला। नव साम्राज्यवाद एवं वैष्वीकरण के इस दौर में मूलवासियों की समस्याओं के और अधिक पेचीदा बनने की संभावनाएं सामने हैं। वे उच्च तकनीकी, बाजारवाद एवं पूंजी की वर्तमान भूमिका से सर्वथा अपरिचित हैं। मूलवासियों का विष्व-समाज आधुनिक प्रगतिशील जगत से स्वयं को पृथक व पिछड़ा हुआ महसूस करता है और है भी। 

अन्तर्राष्ट्रीय मूलवासी दिवस के रूप में नौ अगस्त को मनाने की पृष्ठभूमि यह है कि वर्ष 1982 में इसी तारीख को संयुक्त राष्ट्र संघ के मूलवासी लोगों के कार्यसमूह की प्रथम बैठक सम्पन्न हुई थी। तद्नुसार संयुक्त राष्ट्र संघ की साधारण सभा की दिनांक 23 दिसम्बर 1994 को हुई बैठक में इस तिथि को ’अन्तराष्ट्रीय मूलवासी दिवस’ मनाने का निर्णय लिया। विश्व के मूलवासियों के उत्थान के लिये वर्ष 1995 से 2004 तक की अवधि को ’प्रथम मूलवासी दशक’ एवं वर्ष 2005 से 2014 तक की अवधि को ’द्वितीय मूलवासी दशक’ के रूप में मनाये जाने का संयुक्त राष्ट्र संघ की साधारण सभा में घोषणा की गई।

मूलवासियों के प्रति सामान्यीकृत दृष्टिकोण विरोधाभाषी रहे हैं। मूलवासियों के समर्थक उनके इतिहास एवं संस्कृति को विश्व धरोहर तथा प्रकृति के साथ बेहतरीन सामंजस्य से आपूरित जीवन शैली एवं संस्कृति के रूप में देखते हैं, वहीं दूसरा दृष्टिकोण मूलवासियों को आदिम, असभ्य, जंगली एवं अविकसित श्रेणी का मानता है।
वर्तमान काल में मूलवासियों से संबंधित समस्याएं विश्व के सामने महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं जिनमें नस्लभेद, रोटी-कपड़ा-मकान, शिक्षा-स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाएं, विस्थापन, संस्कृति का संरक्षण, पहचान का संकट एवं मानवाधिकारों के संरक्षण आदि शामिल हैं। भारतीय परिप्रेक्ष्य में आदिवासी आबादी की आधी से अधिक जनसंख्या गरीबी के स्तर से नीचे का जीवन जीने को विवश है जबकि गरीबी की रेखा से नीचे जीने वाले भारत की कुल आबादी का करीब तिहाई अंश है । शेष विश्व के मूलवासियों की भौतिक दशा भी कमोबेश ऐसी ही है। इन समस्याओं के समाधान के बिना मूलवासियों का भविष्य सुरक्षित नहीं है, जो विश्व मानवता के सामने सबसे बड़ी चुनौती है।
(लेखक सेवानिवृत प्रशासनिक अधिकारी और विभिन्न विश्वविद्यालयों में  विजिटिंग प्रोफ़ेसर  हैं।)

भारत में 1866 राजनीतिक दल

नई दिल्ली (भाषा)। चुनाव आयोग के समक्ष राजनीतिक दल के रूप में पंजीकरण कराने के लिए काफी संख्या में आवेदन आ रहे हैं। मार्च 2014 से इस वर्ष जुलाई के बीच 239 नये संगठनों ने पंजीकरण कराया है। इससे देश में पंजीकृत राजनीतिक दलों की संख्या बढ़कर 1866 हो गई है।

चुनाव आयोग के अनुसार, 24 जुलाई को देश में पंजीकृत राजनीतिक दलों की संख्या 1866 दर्ज की गई जिसमें 56 मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय या राज्य स्तरीय दल थे जबकि शेष ‘गैर मान्यता प्राप्त पंजीकृत दल थे। पिछले लोकसभा चुनाव 2014 के समय चुनाव आयोग की ओर से एकत्र आंकड़ों के मुताबिक, 464 राजनीतिक दलों ने उम्मीदवार खड़े किये थे। चुनाव आयोग द्वारा एकत्र आंकड़ों को संसद में उपयोग के लिए विधि मंत्रालय के साथ साझा किया गया था। मंत्रालय का विधायी विभाग आयोग की प्रशासनिक इकाई है।

चुनाव आयोग के अनुसार 10 मार्च 2014 तक देश में ऐसे राजनीतिक दलों की संख्या 1593 थी। 11 मार्च से 21 मार्च के बीच 24 और दल पंजीकृत हुए और 26 मार्च तक 10 और दल पंजीकतृ हुए। इस दौरान ही पांच मार्च को लोकसभा चुनाव की घोषणा हुई थी।

सोमवार, 6 जुलाई 2015

मा.शि.पः जनता के पैसे पर शिक्षा माफियाओं की गुलामी!

माध्यमिक शिक्षा परिषद उत्तर प्रदेश के बाबू और अधिकारी शासन द्वारा निर्धारित मानकों की अनदेखी कर मानकविहीन विद्यालयों को दे रहे मान्यता।

रॉबर्ट्सगंज तहसील के बहुअरा गांव में संचालित हो रहे मानकविहीन ग्रामोदय शिशु विद्या मंदिर उच्चतर माध्यमिक विद्यालय और तेन्दू में संचालित हो रहे पं. परमेश्वर प्रसाद मिश्र उच्चतर माध्यमिक विद्यालय को मान्यता देने में की गई मानकों की अनदेखी।

विद्यालय के नाम भूमि और भवन नहीं होने पर दी गई मान्यता। योग्य अध्यापकों की नियुक्ति और वेतनमान में भी बरती जा रही है लापरवाही।

वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो

सोनभद्र। माध्यमिक शिक्षा परिषद उत्तर प्रदेश के अधिकारी और कर्मचारी जनता के हित में काम करने की जगह शिक्षा माफियाओं की गुलामी कर रहे हैं। वे शासन द्वारा निर्धारित मानकों की अनदेखी कर कागजों पर संचालित हो रहे मानकविहीन विद्यालयों को धड़ल्ले से हाई स्कूल और इंटर मीडिएट कक्षाओं के संचालन के लिए मान्यता प्रदान कर रहे हैं। इसके एवज में उन्हें शिक्षा माफियाओं की काली कमाई का एक हिस्सा सुविधा शुल्क के रूप में मिलने की बात कही जा रही है। इसके लिए वे शासन द्वारा निर्धारित किसी भी प्रावधान को शिथिल करने में जरा भी हिचकिचा नहीं रहे हैं। रॉबर्ट्सगंज विकास खंड के ग्राम पंचायत बहुअरा में संचालित हो रहे ग्रामोदय शिशु विद्या मंदिर उच्चतर माध्यमिक विद्यालय और भाजपा के एक पूर्व जिलाध्यक्ष के परिवार की ओर से तेन्दू गांव में संचालित हो रहे पं. परमेश्वर प्रसाद मिश्र उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के दस्तावेज कुछ ऐसा ही बयां कर रहे हैं। 

वनांचल एक्सप्रेस के पास मौजूद दस्तावेजों और फोटोग्राफ के मुताबिक रॉबर्ट्सगंज विकास खंड के बहुअरा गांव में मानकविहीन ग्रामोदय शिशु विद्या मंदिर उच्चतर माध्यमिक विद्यालय का संचालन वर्ष-2009 से किया जा रहा है (फोटोग्राफ देखें) जबकि माध्यमिक शिक्षा परिषद उत्तर प्रदेश, इलाहाबाद की ओर से ग्रामोदय शिशु मंदिर उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, बहुअरा, सोनभद्र को बालक विद्यालय के रूप में 21 जनवरी 2010 को परिषद की हाई स्कूल परीक्षा-2011 से सभी अनिवार्य और अतिरिक्त विषयों के साथ वित्त विहीन मान्यता प्रदान की गई। मान्यता प्रदान करते समय सामान्य और विशेष प्रतिबंधों को सुनिश्चित करने का निर्देश विद्यालय प्रबंधतंत्र को दिया गया था। इनमें कक्षा-9 की कक्षाओं का संचालन करने से पूर्व शिक्षण कार्य हेतु भवन की व्यवस्था, साज-सज्जा, शिक्षण सामग्री, प्रयोगशाला, पुस्तकालय, प्राभूत सुरक्षित कोष एवं योग्य अध्यापकों और उनके वेतन भुगतान की व्यवस्था करने आदि की शर्तें शामिल थीं जिससे जिला विद्यालय निरीक्षक को अवगत कराना था। विद्यालय प्रबंधतंत्र ने आज तक उक्त व्यवस्थाएं मानक के अनुरूप नहीं किया है। 

तत्कालीन और वर्तमान जिला विद्यालय निरीक्षकों की मिलीभगत से विद्यालय की मान्यता बनी हुई है और प्रबंधतंत्र अभी तक विद्यालय का संचालन कर रहा है जबकि बहुअरा गांव में संस्था के नाम से 16 मार्च 2015 तक किसी प्रकार की भूमि पंजीकृत नहीं थी। सभी मानकों की अनदेखी और माध्यमिक शिक्षा परिषद उत्तर प्रदेश के उच्चाधिकारियों को गुमराह करते हुए विद्यालय प्रबंधक हरिदास खत्री विद्यालय का संचालन कई सालों से कर रहे हैं। स्थानीय लोगों की मानें तो बालक विद्यालय के रूप में मान्यता होने के बावजदू विद्यालय प्रबंधतंत्र हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की कक्षाओं में बालिकाओं का प्रवेश लेकर उनसे भारी धनउगाही कर रहे हैं। मामले में शिकायत की संभावना होने पर हरिदास खत्री ने 17 मार्च 2015 को बहुअरा गांव स्थित अपनी साढ़े चार बिस्वा भूमि विद्यालय के नाम से बख्शिसनामा कर स्टांप चोरी के रूप में राज्य सरकार को लाखों रुपये का चूना लगाने की कोशिश की। हालांकि भूमि का नामांतरण अभी भी विद्यालय के नाम से नहीं हो पाया है और मामला नायब तहसीलदार, रॉबर्ट्सगंज के न्यायालय में विचाराधीन है। 

वास्तव में विद्यालय प्रबंधक हरिदास खत्री अपने दो भाइयों शिव दास और हरिनारायण की संयुक्त भूमि (करीब नौ बिस्वा) पर उक्त मानकविहीन विद्यालय का संचालन करीब एक दशक से कर रहे हैं और इसकी आड़ में वे पास से गुजरने वाली चंद्रप्रभा नदी की भूमि पर अवैध ढंग से कब्जा कर निर्माण करा रहे हैं। बहुअरा में संचालित हो रहे ग्रामोदय शिशु विद्या मंदिर उच्चतर माध्यमिक विद्यालय (जहां उच्च प्राथमिक विद्यालय स्तर की कक्षाएं भी संचालित होती हैं) का भौतिक अवलोकन करने पर प्रतीत होता है कि विद्यालय की चहारदीवारी कम से कम तीस बिस्वा जमीन पर निर्मित है जिसमें चंद्रप्रभा नदी की करीब 15 बिस्वा जमीन शामिल है। इसकी शिकायत स्थानीय नागरिकों ने जिलाधिकारी और मुख्यमंत्री से लिखित रूप से की भी है जिसकी जांच लंबित है। 

इसके बावजूद स्थानीय तहसील प्रशासन को चंद्रप्रभा नदी की भूमि पर अतिक्रमण दिखाई नहीं दे रहा। क्षेत्रीय लेखपाल मंगला यादव विद्यालय प्रबंधक से सांठगांठ कर तहसील प्रशासन समेत उच्चाधिकारियों को गुमराह करने में लगे हैं। सूत्रों की मानें तो इसके एवज में उन्होंने विद्यालय प्रबंधक से सुविधा शुल्क के रूप में मोटी रकम वसूली है। नदी, तालाब और नालों आदि समेत अन्य सार्वजनिक स्थानों पर अतिक्रमण के संबंध उच्चतम न्यायालय का स्पष्ट आदेश होने के बावजूद जिला प्रशासन शिक्षा माफिया के खिलाफ कार्रवाई करने से हिचकिचा रहा है। इसका फायदा उठाकर वह चंद्रप्रभा नदी की भूमि पर अवैध रूप से निर्माण कराते जा रहे हैं। मामले की शिकायत के बाद भी शिक्षा माफिया विद्यालय की चहारदीवारी और भवन का निर्माण कराता जा रहा है।

दूसरी ओर माध्यमिक शिक्षा परिषद उत्तर प्रदेश के अधिकारियों ने तेंदू गांव में पं. परमेश्वर प्रसाद मिश्र उच्चतर माध्यमिक विद्यालय को मानकों को ताक पर रखकर 9 जून 2006 को मान्यता दे दी जबकि यह विद्यालय अब तक कागजों पर संचालित हो रहा है। गौर करने वाली बात है कि जिस स्थान पर विद्यालय के संचालन होने की बात अब तक कही जा रही थी, वह भूमि मंदिर की है। वहां कक्षा-1 से कक्षा-8 तक की कक्षाएं संचालित होती हैं। पं. परमेश्वर प्रसाद मिश्र उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, तेंदू के लिए कभी-कभी एक व्यक्ति वहां रहता है और माध्यमिक शिक्षा परिषद उत्तर प्रदेश की औपचारिकताओं को पूरा करता है। यह विद्यालय अभी तक पूरी तरह से कागजों पर संचालित होता रहा है और हजारों छात्र कागजों पर इस विद्यालय से पढ़कर परिषद की परीक्षा पास कर चुके हैं और उच्च शिक्षा हासिल कर रहे हैं। 

सूत्रों की मानें तो इस शिक्षा-सत्र से यह विद्यालय बभनौली स्थित इलाहाबाद बैंक की शाखा के पास संचालित होने जा रहा है जिसे एक व्यक्ति ने बीस सालों के लिए समझौते पर लिया है। हालांकि इसमें कितनी सच्चाई है, यह जांच का विषय है। फिलहाल यह विद्यालय शिक्षा विभाग के भ्रष्ट अधिकारियों और कर्मचारियों की मिलीभगत से संचालित हो रहा है। भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष रमेश मिश्रा के पिता इस विद्यालय के प्रबंधक हैं और उनके परिवार के ही लोग इस विद्यालय के प्रधानाचार्य हैं। इस वजह से कोई भी अधिकारी अथवा कर्मचारी इस विद्यालय के खिलाफ कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं करता है। फिलहाल उक्त विद्यालयों से पढ़े कई छात्रों का भविष्य प्रमाण-पत्रों की त्रुटियों की वजह से अभी भी अधर में लटका हुआ है जो दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं।   

मा.शि.प.बोर्ड के क्षेत्रीय कार्यालय में मिली खामियां, कई फाइलें जब्त

बोर्ड मुख्यालय में कार्यरत अपर सचिव ने की शिकायतों की जांच। मानकविहीन विद्यालयों को मान्यता देने के मामले में भी हो रही छानबीन।

अनिल कुमार प्रजापति

वाराणसी। माध्यमिक शिक्षा परिषद उत्तर प्रदेश के स्थानीय कार्यालय में पिछले दिनों परिषद मुख्यालय से आए अपर सचिव ने छानबीन की जिसमें कई प्रकार की अनियमितताएं मिलीं। उन्होंने अनियमितताओं से संबंधित फाइलों को जब्त कर लिया।

गौरतलब है कि माध्यमिक शिक्षा परिषद उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद स्थित प्रधान कार्यालय में कार्यरत अपर सचिव राजेंद्र प्रताप पिछले दिनों वाराणसी स्थित परिषद के क्षेत्रीय कार्यालय पहुंचे। वहां उन्होंने विभिन्न शिकायतों से संबंधित फाइलों की जांच की और कुछ फाइलों को जब्त कर लिया। सूत्रों की मानें तो सुल्तानपुर में एक ऐसे विद्यालय को मान्यता प्रदान की गई है जिसकी हाईस्कूल की मान्यता निरस्त है। यह मामला कोर्ट में विचाराधीन है। 
कुछ ऐसे विद्यालयों को मान्यता देने की शिकायत है जिनके पास मानक के अऩुसार भूमि और भवन नहीं है। अपर सचिव प्रशासन ने मान्यता की फाइलों में से कई फाइलों की जांच गहनता से की। मान्यता अनुभाग के डिस्पैच क्लर्क पर कार्रवाई की चेतावनी भी दी। उक्त क्लर्क के छुट्टी के आवेदन में भी हेराफेरी कर छुट्टी बढ़ा दी गई है। परीक्षा सामग्री और अंकपत्रों के वितरण के लिए ट्रकों के किराये के भुगतान में भी अनियमितता बरतने और बगैर टेंडर के करोड़ों रुपये के भुगतान का आरोप भी है। अपर सचिव ने कई अन्य अनियमितताओं की जांच की है। जांच रिपोर्ट परिषद के सचिव को सौंपी जाएगी।


वहीं परिषद के क्षेत्रीय कार्यालय, वाराणसी की ओर से सुल्तानपुर और भदोही के दो विद्यालयों को नोटिस जारी किया गया। इसके बारे में क्षेत्रीय सचिव कामता राम पाल ने बताया कि सुल्तानपुर के बाबा परमहंसदास इंटर कॉलेज के प्रबंधतंत्र पर तथ्यों को छिपाकर इंटरमीडिएट की मान्यता लेने का आरोप है जबकि उसकी हाई स्कूल की मान्यता निरस्त है। इस बारे में विद्यालय प्रबंधतंत्र को स्थिति स्पष्ट करने को कहा गया है। भदोही के फैजरुल्ल इस्लाम इंटर कॉलेज पर आरोप है कि विद्यालय के पास मानक के अनुरूप भूमि नहीं है। इस बारे में विद्यालय तंत्र से आख्या मांगी गई है।  

गुरुवार, 11 जून 2015

पत्रकार जगेंद्र सिंह को जिंदा जलाने की घटना की जांच करे सीबीआईः रिहाई मंच

मंच ने राममूर्ति वर्मा और उसके भतीजे पर लगाया अवैध खनन कराने का आरोप।

वनांचल एक्सप्रेस ब्यरो

लखनऊ। शाहजहांपुर के पत्रकार जगेंद्र सिंह को जिंदा जलाने की घटना ने उत्तर प्रदेश की सपा सरकार और उसके मंत्रियों को कटघरे में खड़ा कर दिया है। आतंकवादियों के नाम पर जेलों में बंद बेगुनाओं की रिहाई समेत अन्य लोकतांत्रिक मुद्दों के लिए संघर्षरत संगठन "रिहाई मंच" ने जगेंद्र सिंह की जिंदा जलाने की घटना की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से कराने की मांग की है। साथ ही उसने आरोप लगाया है कि सूबे में गुंडों और माफियाओं की सरकार है। इसकी तस्दीक कथित खनन माफिया और सूबे के राज्यमंत्री राममूर्ति वर्मा के इशारे पर कोतवाल श्रीप्रकाश राय और अन्य द्वारा पत्रकार जगेंद्र सिंह को जिंदा जलाने की घटना करती है। मंच ने राममूर्ति वर्मा को तत्काल मंत्री पद से बर्खास्त करने की मांग की है। 

रिहाई मंच के राज्य कार्यकारिणी सदस्य अनिल यादव ने आरोप लगाया कि राज्य मंत्री राममूर्ति वर्मा दुष्कर्म का आरोपी और खनन माफिया है। पत्रकार जगेंद्र सिंह ने उसके कारनामों को बेनकाब किया था और उसके खिलाफ निरंतर अभियान चलाये हुए थे। सत्ता के नशे में डूबे राममूर्ति वर्मा ने जगेंद्र सिंह पर फर्जी मुकदमा लदवाया। फिर पुलिसवालों के सहयोग से उन्हें जिंदा जला दिया। उन्होंने कहा कि पत्रकार जगेन्द्र सिंह ने राममूर्ति वर्मा और उसके भतीजे अमित वर्मा द्वारा सपा सरकार के संरक्षण में गर्रा नदी में किए जा रहे अवैध खनन को बेनकाब किया था। इतना ही नहीं उन्होंने मंत्री और उनके करीबियों पर स्मैक कारोबार को प्रश्रय देने का आरोप भी लगाया था। अनिल यादव ने उत्तर प्रदेश की सपा सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश मंत्रिमंडल में गायत्री प्रजापति, विनोद सिंह उर्फ पंडित, मनोज पारस जैसे खनन और भू-माफियाओं की भरमार है। इनमें से कई हत्या और बलात्कार आरोपी भी हैं। ऐसे मंत्रियों को तत्काल उनके पदों से बर्खास्त किया जाना चाहिए।

वहीं रिहाई मंच नेता हरेराम मिश्र ने आरोप लगाते हुए कहा कि सपा मंत्री द्वारा पत्रकार को जिंदा जलाने की घटना सूबे में भ्रष्टाचार के खिलाफ हर आवाज उठाने वालों और शासन-प्रशासन के ईमानदार कर्मचारियों और अधिकारियों को यह चेतावनी देने की कोशिश है कि अगर वह सरकार के भ्रष्ट तंत्र में संलिप्त नहीं होंगे तो उनका भी यही हश्र होगा। पिछले दिनों अवैध खनन रोकने वाले झांसी के तहसीलदार गुलाब सिंह को सपा के राज्यसभा सांसद चन्द्रपाल सिंह यादव द्वारा धमकी दिया गया था। फिर बिजनौर में एसपी अखिलेश कुमार द्वारा अवैध खनन रोकने पर उनका तबादला कर दिया गया था। इन सभी प्रकरणों में अखिलेश यादव की चुप्पी ने राम मूर्ति सिंह वर्मा जैसे आपराधिक तत्वों के मनोबल को बढ़ाने का काम किया है। उन्होंने कहा कि जिस तरीके से पूर्व पुलिस महानिदेशक अंबरीश चन्द्र शर्मा और जेल में बंद सपा नेता शैलेन्द्र अग्रवाल द्वारा थानों और जिला पुलिस मुख्यालयों की बिक्री के तहत पुलिस प्रशासन के स्थानांतरण का कारोबार सामने आया है, उससे साफ है कि सपा सरकार इसमें साझेदार है। 

उधर इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स (आईएफडब्ल्यूजे) ने दिवंगत पत्रकार जगेंद्र सिंह परिवार के आश्रित सदस्यों को उत्तर प्रदेश सरकार से 25 लाख रुपये बतौर मुआवजा देने की मांग की है। साथ ही उसने आरोपी मंत्री, थानाध्यक्ष और अन्य पुलिसकर्मियों को उनके पदों से तत्काल बर्खास्त करने की मांग की है।

नई दिल्ली से मिली सूचना के मुताबिक भारतीय प्रेस परिषद (पीसीआई) के अध्यक्ष न्यायमूर्ति सीके प्रसाद ने शाहजहांपुर में पत्रकार जगेंद्र सिंह को जिंदा जलाने की घटना की जांच के लिए परिषद की फैक्ट फाइडिंग टीम को मौके पर भेजने की बात कही है। उन्होंने पत्रकार हत्याकंड की घोर निंदा करते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार मामले की निष्पक्ष जांच के लिए विशेष जांच टीम का गठन करे क्योंकि इस मामले में सूबे के एक राज्यमंत्री नाम भी शामिल है। 

बुधवार, 10 जून 2015

कनहर परियोजनाः निजी प्रतिष्ठानों के भरोसे विस्थापितों की जिंदगी

जिलाधिकारी ने निजी कंपनियों और औद्योगिक प्रतिष्ठानों से डूब क्षेत्र के परिवारों के सदस्यों को नौकरी देने की गुजारिश की।

वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो

सोनभद्र। दुद्धी तहसील के अमवार क्षेत्र में निर्माणाधीन ‘‘कनहर सिंचाई परियोजना‘‘ से प्रभावित होने वाले डूब क्षेत्र के 11गांवों के बाशिंदों को मुनाफाखोर निजी कंपनियों और औद्योगिक घरानों के शोषण का शिकार होना पड़ेगा। जिला प्रशासन की ओर से प्रभावित परिवार के सदस्यों को रोजगार उपलब्ध कराने की कवायद कुछ ऐसा ही बयां कर रही है। 

जिला सूचना एवं जनसंपर्क विभाग की ओर से जारी विज्ञप्ति में साफ कहा गया है कि जिलाधिकारी संजय कुमार ने गत 9 जून को कलेक्ट्रेट सभागार में औद्योगिक प्रतिष्ठानों के पदाधिकारियों के साथ हुई बैठक में उनसे प्रभावितों को रोजगार उपलब्ध कराने की गुजारिश की। विज्ञप्ति में लिखा है कि औद्योगिक प्रतिष्ठान डूब क्षेत्र में विशेष रोजगार मेला लगाकर विस्थापितों को रोजगार मुहैया करावें। हालांकि विज्ञप्ति में यह नहीं बताया गया कि जिलाधिकारी ने किन-किन औद्योगिक प्रतिष्ठानों के पदाधिकारियों के साथ बैठक की। 

विज्ञप्ति के मुताबिक जिलाधिकारी ने ‘‘कनहर सिंचाई परियोजना‘‘ अमवार क्षेत्र में 11 गांव डूब में आ रहे हैं। सरकार उन गांवों को हर मुमकिन सहुलियत मुहैया करा रही है। विस्थापित व्यक्तियों को रोजगार दिलाना एक काफी महत्वपूर्ण कार्य है। इसके लिए जिले में स्थापित औद्योगिक इकाईयों को आगे आना होगा। जिलाधिकारी ने जिला सेवायोजन अधिकारी को निर्देशित किया कि वे जून महीने के अन्त तक मुख्य विकास अधिकारी, उप श्रमायुक्त पिपरी, उपायुक्त जिला उद्योग केन्द्र और उत्तर प्रदेश प्रदूषणण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी से समन्वय स्थापित कर डूब क्षेत्र के विस्थापितों को रोजगार दिलाने के लिए पंजीकरण कैम्प आयोजित करें। 

इसी प्रकार से जिलाधिकारी ने डूब क्षेत्र के नागरिकों को रोजगार दिलाने के लिए पूरी व्यवस्था की समन्वयन की जिम्मेदारी मुख्य विकास अधिकारी को सौंपते हुए कहा कि जून महीने के अन्त तक जिले के सभी औद्योगिक इकाईयों से सम्पर्क कर औद्योगिक इकाईयों के स्टाल भी विषेश रोजगार मेला में लगवायें, ताकि डूब क्षेत्र के नागरिकों को रोजगार पंजीकरण व रोजगार पाने के लिए दौड़-भाग न करना पड़े। 

उन्होंने कहा कि ‘‘कनहर सिंचाई परियोजना‘‘ के तैयार होने से 108 गांवों में नहरों से सिंचाई का साधन होगा और क्षेत्र में हरियाली आने के साथ ही रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे। फिर भी विस्थापित नौजवानों व पात्रों को रोजगार दिलाना पुनीत कार्य है। इसलिए जिले में स्थापित औद्योगिक इकाईयां अकुशल मजदूरों को प्राथमिकता के आधार पर अपने संस्थानों में रोजगार मुहैया करायें। विशेष रोजगार मेला के दौरान कुशल मजदूर/तकनीकी सहायक पाये जाने पर रोजगार देने के लिए प्राथमिकता दिया जाय। बैठक में जिलाधिकारी संजय कुमार के अलावा मुख्य विकास अधिकारी महेन्द्र सिंह, उप श्रमायुक्त पिपरी राकेश द्विवेदी, उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी कालिका सिंह, जिला सेवा अधिकारी पदम वीर कृष्ण, औद्योगिक इकाईयों के पदाधिकारीगण सहित अन्य कर्मचारी मौजूद थे।

प्रदूषण फैलाने और आरओ प्लांट नहीं लगाने वाली इकाइयों पर दर्ज होगी प्राथमिकी

जिलाधिकारी ने यूपीपीसीबी के क्षेत्रीय अधिकारी को दिया निर्देश।

वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो
सोनभद्र। उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के लापरवाह और गैर-जिम्मेदार अधिकारियों की कारस्तानियों की वजह से जिले में प्रदूषण फैला रहे निजी एवं औद्योगिक प्रतिष्ठानों ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण के आदेशों और दिशा-निर्देशों ठेंगा दिया है। वे उसके दिशा-निर्देशों के अनुपालन में कोई रुचि नहीं ले रहे हैं। औद्योगिक इकाइयों की कारगुजारियों से चिंतित जिलाधिकारी संजय कुमार ने एनजीडी के दिशा-निर्देशों के अनुपालन में हिला-हवाली करने वाली औद्योगिक इकाइयों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई करने का निर्देश दिया है। साथ ही उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) के क्षेत्रीय अधिकारी कालिका सिंह से लापरवाही बरतने वाली औद्योगिक इकाइयों के खिलाफ प्रथम सूचना रपट (एफआईआर) दर्ज कराने का निर्देश दिया है। 

जिला सूचना एवं जनसंपर्क विभाग की ओर से जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि जिलाधिकारी ने गत 9 जून को कलेक्ट्रेट सभागार में एनजीटी के दिशा-निर्देशों के तहत जिले में औद्योगिक इकाइयों की ओर से स्थापित आरओ सिस्टम की समीक्षा की। इस दौरान उन्होंने कहा कि औद्योगिक इकाइयां मानक के अनुरूप अपने संयंत्रों का संचालन करें। जो औद्योगिक इकाइयां मानक के अनुरूप पालन नहीं करेंगे, उनके खिलाफ प्रभावी कार्यवाही नियमानुसार की जायेगी। 

जिलाधिकारी ने समीक्षा के दौरान एनसीएल सहित कई औद्योगिक इकाइयों की अनुपालन स्थिति धीमी पाये जाने पर मौके पर मौजूद मुख्य विकास अधिकारी महेन्द्र सिंह और यूपीपीसीबी के क्षेत्रीय अधिकारी कालिका सिंह को निर्देशित किया कि वे एनजीटी के आदेशों का अनुपालन कराने के लिए औद्योगिक इकाइयों की गतिविधियों पर पूरी तत्परता से निगाह रखें। जो औद्योगिक प्रतिष्ठान मानक के अनुरूप अपनी इकाई संचालित नहीं करते हैं, उनके खिलाफ सक्षम स्तर पर पत्राचार कर प्रभावी कार्यवाही सुनिश्चित करें। 

उन्होंने मुख्य विकास अधिकारी को निर्देशित किया कि वे जून महीने के अन्त तक औद्योगिक इकाईयों के प्रतिनिधियों के साथ ही सरकारी महकमों से जुड़े अधिकारियों की एक समन्वय बैठक इस आशय से आयोजित करायें कि इकाईयों से निकलने वाली राख से ईट निर्माण की प्रक्रिया के आर्थिक अध्ययन, क्षेत्रीय उपयोग, व्यक्तिगत उपयोग व सरकारी योजनाओं के निर्माण कार्यों के उपयोग पर व्यापक विचार-विमर्श हो। अगर राख से निर्मित ईट आर्थिक रूप से सस्ते और मजबूत हो, तो राख का उपयोग ईंट बनाने के लिए किया जाय। इससे स्थानीय स्तर पर लोगों को सस्ते दाम में ईंट मुहैया होने के साथ ही राख निस्तारण में भी मदद मिले। 

अनपरा, मधुपुर और डाला बनेंगे नगर पंचायत

नगर विकास विभाग को भेजा गया प्रस्ताव।

वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो
सोनभद्र। अगर सबकुछ ठीक रहा तो जल्द ही जिले के अनपरा, मधुपुर और डाला बाजारों को नगर पंचायत का दर्जा मिल जाएगा। इन बाजारों को नगर पंचायत बनाने का प्रस्ताव नगर विकास विभाग को भेज दिया गया है। साथ ही कोन और करमा क्षेत्र को नया विकास खण्ड बनाने की कवायद भी शुरू कर दी गई है। इसका प्रस्ताव भी ग्राम विकास विभाग को भेजा जा चुका है। 

जिलाधिकारी संजय कुमार ने गत 9 जून को इस बात की जानकारी दी। जिलाधिकारी के मुताबिक गुरमुरा में राजकीय इंटर कॉलेज और बभनी में राजकीय डिग्री कॉलेज खोले जाने की घोषणा हो चुकी है। इसे जल्द ही पूरा किया जाएगा। साथ ही उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने रॉबर्ट्सगंज में सर्किट हाउस बनाने की घोषणा भी की है जो जल्द ही निर्मित होगा। 

उन्होंने कहा कि जसौली सिंचाई परियोजना के निर्माण की घोषणा पर भी कार्य हो रहा है। जिले में पर्यटकों की आकर्षित करने के लिए हिन्दू-मुस्लिम राष्ट्रीय एकता के प्रतीक विजयगढ़ किला के साथ अमीला भगौती धाम को विकसित किये जाने की योजना है। हाथीनाला के पास बायोडायवर्सिटी, हाटस्पॉट बनाने की घोषणा भी की गयी है। इसी प्रकार से सतही जल को ध्यान में रखते हुए मीरजापुर के सिरसी बांध से पानी लेकर बड़ी पेयजल योजना बनाये जाने की घोषणा की गयी है। इससे 150 से अधिक ग्रामों के डेढ़ लाख से अधिक आबादी लाभान्वित होगी। योजना का प्रस्ताव जल निगम द्वारा प्रस्ताव तैयार कर ग्राम विकास विभाग को भेजा जा चुका है।

मंगलवार, 5 मई 2015

कनहर परियोजनाः समाजवाद के दर्शनशास्त्र में आदिवासियों की वेदना

(नोटः कनहर सिंचाई परियोजना को लेकर सोनभद्र के अमवार गांव में जारी संघर्ष कई खेमों में बंट गया है। गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओज) की आपसी लड़ाई में जिला प्रशासन अपना उल्लू सीधा कर रहा है। उनकी गैर-संवैधानिक इन गुजारियों में सूबे की सत्ता में काबिज राजनीतिक पार्टी के नुमाइंदे भी सहायता कर रहे हैं। अन्य राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियों के नुमाइंदे परियोजना निर्माण में खर्च होने वाली धनराशि में अपने-अपने हिस्से का जुगाड़ करने में मशगूल हैं। वहीं परियोजना निर्माण से प्रभावित होने वाले परिवारों की आवाज गुम सी हो गई है। उनका बहता लहू एनजीओज की जमीन को उर्वरा बना रही है तो कुछ कलमवीर इसमें भविष्य तलाश रहे हैं। पिछले दिनों देश की राजधानी से एक टोली भी यहां आई थी। उसने प्रायोजित विरोध-प्रदर्शनों समेत नौकरशाहों के गैर-कानूनी क्रियाकलापों के बीच इलाके का दौरा किया। इस टोली में से एक हैं स्वतंत्र पत्रकार अभिषेक श्रीवास्तव। उन्होंने एक रिपोर्ट भेजी है जिसे वैसे ही प्रकाशित किया जा रहा है। इसमें कुछ तथ्य वास्तविकता से परे हैं। इसके लिए बहुत हद तक जिला प्रशासन के आलाधिकारी भी जिम्मेदार हैं। वे जरूरी और आवश्यक सूचनाओं को मीडियाकर्मियों को उपलब्ध नहीं करा रहे हैं। इस वजह से बाहर से आने वाले पत्रकार एवं समाजसेवी चर्चाओं पर आधारित तथ्य को अपनी रिपोर्टों में इस्तेमाल कर रहे हैं जो समाज में भ्रम की स्थिति पैदा किये हुए है। फिलहाल अभिषेक श्रीवास्तव की रिपोर्ट यहां प्रकाशित की जा रही है। इस रिपोर्ट के कई तथ्यों से वनांचल एक्सप्रेस सहमत नहीं है। जल्द ही सही तथ्यों पर आधारित रिपोर्ट वनांचल एक्सप्रेस प्रकाशित करेगा- संपादक)


                 आओ देखो कनहर में बहता लहू...

reported by अभिषेक श्रीवास्‍तव

इस साल अक्षय तृतीया पर जब देश भर में लगन चढ़ा हुआ था, बारातें निकल रही थीं और हिंदी अखबारों के स्‍थानीय संस्‍करण हीरे-जवाहरात के विज्ञापनों से पटे पड़े थे, तब बनारस से सटे सोनभद्र के दो गांवों में पहले से तय दो शादियां टल गईं। फौजदार (पुत्र केशवराम, निवासी भीसुर) के बेटे का 22 अप्रैल को तिलक था। अगले हफ्ते उनके बेटे की शादी होनी थी। पड़ोस के गांव में 24 अप्रैल को देवकलिया और शनीचर (पुत्र रामदास, निवासी सुन्‍दरी) की बेटी की शादी थी। फौजदार समेत देवकलिया और शनीचर सभी 20 अप्रैल तक दुद्धी तहसील के ब्‍लॉक चिकित्‍सालय में भर्ती थे। देवकलिया की बेटी घर पर अकेली थी। 20 की शाम को अचानक फौजदार और शनीचर को गंभीर घायल घोषित कर के पांच अन्‍य मरीज़ों के साथ जिला चिकित्‍सालय में भेज दिया गया जबकि देवकलिया को दस मरीज़ों के साथ छुट्टी दे दी गयी। देवकलिया जानती थी कि चार दिन में अगर वह शादी की तैयारी कर भी लेगी तो उसके पति शनीचर को अस्‍पताल से नहीं छोड़ा जाएगा क्‍योंकि उत्‍तर प्रदेश के समाजवादी राज में सरकारी अस्‍पताल का दूसरा नाम जेल है।

यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को शायद नहीं पता कि हेम्बोल्ट विश्वविदयालय के अभिलेखागार से राममनोहर लोहिया की जिस गायब थीसिस पर वे अप्रैल के तीसरे सप्‍ताह में ट्वीट कर के चिंता जता रहे थे, उसे उत्‍तर प्रदेश की पुलिस ने कनहर नदी की तलहटी में हफ्ता भर पहले ही दफना दिया था। पिछले पांच महीने से सोनभद्र जि़ले को 'विकास' नाम का रोग लगा हुआ है। इसके पीछे पांगन नदी पर प्रस्‍तावित कनहर नाम का एक बांध है जिसे कोई चालीस साल पहले सिंचाई परियोजना के तहत मंजूरी दी गयी थी। झारखण्‍ड (तत्‍कालीन बिहार), छत्‍तीसगढ़ (तत्‍कालीन मध्‍यप्रदेश) और उत्‍तर प्रदेश के बीच आपसी मतभेदों के चलते लंबे समय तक इस पर काम रुका रहा और बीच में दो बार इसका लोकार्पण भी हुआ। पिछले साल जिस वक्‍त अखिलेश यादव की सरकार ने नयी-नयी विकास परियोजनाओं का एलान करना शुरू किया, ठीक तभी उनकी सरकार को इस भूले हुए बांध की भी याद हो आयी। कहते हैं कि उनके चाचा सिंचाई मंत्री शिवपाल सिंह यादव ने इसमें खास दिलचस्‍पी दिखायी और सोनभद्र को हरा-भरा बनाने के नाम पर इसका काम शुरू करवा दिया। दिसंबर में काम शुरू हुआ तो ग्रामीणों ने विरोध करना शुरू किया। प्रशासन से उनकी पहली झड़प 23 दिसंबर 2014 को हुई। इसके बाद 14 अप्रैल, 2015 को आंबेडकर जयन्‍ती के दिन पुलिस ने धरना दे रहे ग्रामीणों पर लाठियां बरसायीं और गोली चलायी। एक आदिवासी अकलू चेरो को छाती के पास गोली लगकर आर-पार हो गयी। वह बनारस के सर सुंदरलाल चिकित्‍सालय में भर्ती है। उसे अस्‍पताल लाने वाले दो साथी लक्ष्‍मण और अशर्फी मिर्जापुर की जेल में बंद हैं। इस घटना के बाद भी ग्रामीण नहीं हारे। तब ठीक चार दिन बाद 18 अप्रैल की सुबह सोते हुए ग्रामीणों को मार कर खदेड़ दिया गया, उनके धरनास्‍थल को साफ कर दिया गया और पूरे जिले में धारा 144 लगा दी गयी। यह धारा अगली 19 मई तक पूरे जिले में लागू है। अब तक दो दर्जन से ज्‍यादा गिरफ्तारियां हो चुकी हैं। आंदोलनकारियों को चुन-चुन कर पकड़ा जा रहा है।

फौजदार, शनीचर और देवकलिया उन पंद्रह घायलों में शामिल सिर्फ तीन नाम हैं जिन्‍हें 20 अप्रैल तक दुद्धी के ब्‍लॉक चिकित्‍सालय में बिना पानी, दातुन और खून से लथपथ कपड़ों में अंधेरे वार्डों में कैद रखा गया था। प्रशासन की सूची के मुताबिक 14 अप्रैल की घटना में 12 पुलिस अधिकारी/कर्मचारी घायल हुए थे जबकि सिर्फ चार प्रदर्शनकारी घायल थे। इसके चार दिन बाद 18 अप्रैल की सुबह पांच बजे जो हमला हुआ, उसमें चार पुलिसकर्मियों को घायल बताया गया है जबकि 19 प्रदर्शनकारी घायल हैं। दोनों दिनों की संख्‍या की तुलना करने पर ऐसा लगता है कि 18 अप्रैल की कार्रवाई हिसाब चुकाने के लिए की गयी थी। इस सूची में कुछ गड़बडि़यां भी हैं। मसलन, दुद्धी के सरकारी चिकित्‍सालय में भर्ती सत्‍तर पार के जोगी साव और तकरीबन इतनी ही उम्र के रुकसार का नाम सरकारी सूची में नहीं है।

हम वास्‍तव में नहीं जान सकते कि कनहर बांध की डूब से सीधे प्रभावित होने वाले गांवों सुन्‍दरी, भीसुर और कोरची के कितने घरों में इस लगन बारात आने वाली थी, कितने घरों में वाकई आयी और कितनों में शादियां टल गयीं। कितने घर बसने से पहले उजड़ गए और कितने बसे-बसाये घर बांध के कारण उजड़ेंगे, दोनों की संख्‍या जानने का कोई भी तरीका हमारे पास नहीं है। दरअसल, यहां कुछ भी जानने का कोई तरीका नहीं है सिवाय इसके कि आप सरकारी बयानों पर जस का तस भरोसा कर लें। वजह इतनी सी है कि यहां एक बांध बन रहा है और बांध का मतलब विकास है। इसका विरोध करने वाला कोई भी व्‍यक्ति विकास-विरोधी और राष्‍ट्र-विरोधी है।

सोनभद्र में हालांकि हालांकि विकास से काफी आगे जा चुकी है। याद करें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पद संभालने के बाद पिछले साल न्‍यूयॉर्क के मैडिसन चौक में एक बात कही थी कि उनकी इच्‍छा है कि ''विकास को जनांदोलन'' बना दिया जाए। इस बात को न तो बहुत तवज्‍जे दी गयी और न ही इसका कोई फौरी मतलब निकाला गया, लेकिन ऐसा लगता है कि ''विकास को जनांदोलन'' बनाने की सीख सबसे पहले लोहिया के शिष्‍यों ने उत्‍तर प्रदेश में ली और उसे आज सोनभद्र में लागू किया जा रहा हैा भरोसा न हो तो विंध्‍य मंडल के मुख्‍य अभियंता कुलभूषण द्विवेदी के इस बयान पर गौर करें जिनके क्षेत्राधिकार में कनहर परियोजना आती है। एक पत्रकार द्वारा नदियों की और पर्याव्‍रण की खराब सेहत पर सवाल पूछे जाने के जवाब में उसे टोकते हुए अभियंता ने कहा, ''पहली बार देश को मर्द प्रधानमंत्री मिला है। पूरी दुनिया में उसने भारत का सिर ऊंचा किया है वरना हम कुत्‍ते की तरह पीछे दुम दबाए घूमते थे।'' इनका कहना है कि मुख्‍य सचिव, मुख्‍यमंत्री और आला अधिकारी 14 अप्रैल की गोलीबारी के बाद कनहर बांध पर रोज़ बैठकें कर रहे हैं और पूरे इलाके को छावनी तब्‍दील करने का आदेश ऊपर से आया है। फिलहाल कनहर में मौजूद पुलिस चौकी को थाने में तब्‍दील किया जा रहा है। मोदी जिसे ''विकास का जनांदोलन'' कहते हैं, उसकी शक्‍ल यहां ''बांध बनाओ हरियाली लाओ'' नाम के कथित आंदोलन में देखी जा सकती है जिसने 20 अप्रैल को भाकपा (माले) की पोलित ब्‍यूरो सदस्‍य कविता कृष्‍णन के नेतृत्‍व में दिल्‍ली से यहां आए एक जांच दल को पुलिस के उकसावे पर भरपूर गालियां देते हुए दो घंटे तक अस्‍पताल में बंधक बनाए रखा और इसके सदस्‍यों को ''विकास विरोधी'', ''अंतरराष्‍ट्रीय आतंकवादी'' व ''आइएसआइ एजेंट'' के तमगों से नवाज़ा।

विकास के इस कथित उग्र ''जनांदोलन'' के बारे में सोनभद्र के पुलिस अधीक्षक शिवशंकर यादव ऐसे समझाते हैं, ''पूरी पब्लिक साथ में है कि बांध बनना चाहिए। सरकार साथ में है। तीनों राज्‍य सरकारों का एग्रीमेंट हुआ है बांध बनाने के लिए... हम लोगों ने जितना एहतियात बरता है, उसकी पूरी पब्लिक तारीफ़ कर रही है।'' यादव का यह बयान एक मान्‍यता है जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आकांक्षा और अभियंता द्विवेदी के दावे जैसा है। इस मान्‍यता के पीछे काम कर रही तर्क-प्रणाली को आप सोनभद्र के युवा जिलाधिकारी संजय कुमार के इस बयान से समझ सकते हैं, ''हमने जो भी बल का प्रयोग किया, वह इसलिए ताकि लोगों को मैसेज दिया जा सके कि लॉ ऑफ दि लैंड इज़ देयर...। आप समझ रहे हैं? ऐसे तो लोगों में प्रशासन और पुलिस का डर ही खत्‍म हो जाएगा। कल को लोग कट्टा लेकर गोली मार देंगे... आखिर हमारे दो गज़ेटेड अफसर घायल हुए हैं...! बेचारे एसडीएम ने अपनी जेब से दस लाख अपने इलाज पर खर्च किया है!''

यह बात अपने आप में चौंकाने वाली है कि एक एसडीएम ने अपने इलाज पर अपनी जेब से दस लाख रुपये कैसे खर्च कर दिए। ज़ाहिर है, होगा तभी खर्च किए होंगे। सुन्‍दरी, भीसुर और कोरची के आदिवासियों के पास अपने ऊपर खर्च करने को सिर्फ आंसू हैं। समय के साथ वे भी अब कम पड़ते जा रहे हैं। दुद्धी के अस्‍पताल में भर्ती जोगी साव (जिनका नाम घायलों की सरकारी सूची में दर्ज नहीं है) हमें देखते ही फफक कर रो पड़ते हैं। गला भर्रा जाता है। इशारे से दिखाते हैं कि कहां-कहां पुलिस की मार पड़ी है। पैर के ज़ख्‍म दिखाने के लिए हलका सा झुकते हैं तो कमर पकड़कर ऐंठ जाते हैं। इनकी उम्र सत्‍तर बरस के पार है। 18 अप्रैल की सुबह धरनास्‍थल पर ये सो रहे थे। जब पुलिस बल आया, तो नौजवानों की फुर्ती से ये भाग नहीं पाए। वहीं गिर गए। वे रोते हुए बताते हैं, ''ओ दिन हमहन रह गइली ओही जगह... एके बेर में पहुंच गइलन सब... धर-धर के लगावे लगलन डंटा। मेहरारू के झोंटा धर के लेसाड़ के मारे लगलन... लइकनवो के नाहीं छोड़लन...।'' जोगी साव के शरीर पर डंडों के निशान हैं। उनके आंसू नहीं रुकते जब वे हाथ दिखाते हुए कहते हैं, ''एक डंटा मरले हउवन... दू डंटा गोड़े में... तब जीप में ले आके इहां गिरउलन।'' यह पूछे जाने पर कि क्‍या कोई मुकदमा भी दर्ज हुआ है उनके खिलाफ़, वे बोले, ''मुकदमा त दर्ज नाहीं कइलन, बाकी कहलन कि अस्‍पताल में चलिए, जेल नहीं जाना पड़ेगा।''

जांच दल के सदस्‍यों कविता कृष्‍णन, प्रिया पिल्‍ल्‍ई, पूर्णिमा गुप्‍ता, ओमप्रकाश सिंह, रजनीश और सिद्धांत मोहन समेत देबोदित्‍य सिन्‍हा के साथ जब यह लेखक 20 अप्रैल को दुद्धी अस्‍पताल के इस वार्ड में पहुंचा, तो कुल आठ पुरुष यहां भर्ती थे। महिला वार्ड में पांच महिलाएं थीं और अस्‍पताल के गलियारे में दो घायलों को अलग से लेटाया गया था। कुल दस पुरुषों में बस एक नौजवान था जिसका नाम था मोइन। बाकी नौ पुरुषों की औसत उम्र साठ के पार रही होगी। गलियारे में पहले बिस्‍तर पर जो बुजुर्ग लेटे थे, उनके चेहरे पर कोई भाव नहीं था। नाम- बूटन साव, गांव कोरची। इन्‍हें भी डंडे की मार पड़ी थी। चोट दिखाते हुए बोले, ''आप जनते के तरफ से हैं न?'' हां में जवाब देने पर बोले, ''हम लोगों को छोड़वा दीजिए घर तक''। और इतना कह कर वे अचानक रोने लगे। यह पूछने पर कि कब यहां से छोड़ने को कहा गया है, बूटन बोले, ''छोड़ेंगे नहीं... किसी को मिलने भी नहीं आने दे रहे हैं। बोले हैं यहीं रहना है, नहीं तो जेल जाओ।''

सुन्‍दरी में 18 अप्रैल की सुबह साठ-सत्‍तर साल के बूढ़ों के सिर पर डंडा मारा गया है। औरतों के कूल्‍हों में डंडा मारा गया है। जहूर को पुलिस ने इतनी तेज़ हाथ पर मारा कि तीन उंगलियां ही फट गयी हैं। पुलिस अधीक्षक यादव कहते हैं, ''सिर पर इरादतन नहीं मारा गया, ये ''इन्सिडेन्‍टल'' (संयोगवश) है।'' ''क्‍या तीनों बुजुर्गों के सिर पर किया गया वार ''इन्सिडेन्‍टल'' है?'' इस सवाल के जवाब में वे बोले, ''बल प्रयोग किया गया था, ''इन्सिडेन्‍टल'' हो सकता है। हम कोई दुश्‍मन नहीं हैं, इसकी मंशा नहीं थी।'' ''और 14 अप्रैल को अकलू के सीने को पार कर गयी गोली?'' यादव विस्‍तार से बताते हैं, ''पुलिस ने अपने बचाव में गोली चलायी। थानेदार (कपिलदेव यादव) को लगा कि मौत सामने है। वैसे भी हमारे यहां पहले एसडीएम पर हमला हो चुका है। सबसे पहले अकलू ने बांस की पटिया से थानेदार को मारा। फिर उसके भाई रमेश ने थानेदार के हाथ पर कुल्‍हाड़ी से हमला किया। पुलिस अफसर नीचे गिर गया। उसे लगा कि वह नहीं बच पाएगा, तो उसने रक्षा के लिए हवा में दो राउंड फायर किया।'' यह पूछे जाने पर कि हवा में फायर करने से अकलू की छाती के पास गोली कैसे लगी, यादव कहते हैं,''थानेदार ''लेड डाउन'' (पीछे की ओर झुका हुआ) था, ऐसी आपात स्थिति में ज्‍योमेट्री नहीं नापी जाती है। उसने खुद कहा कि उसे पता ही नहीं चला कि गोली कहां लगी है।'' इस घटना के बारे में बीएचयू में भर्ती अकलू का कहना है, ''हमको मारकर के थानेदार (कपिलदेव यादव) अपने हाथे में गोली मार लिए हैं और कह दिए कि ये मारे हैं... बताइए...।''

यादव के मुताबिक आपात स्थिति में ''ज्‍योमेट्री'' नहीं नापी जाती है। उनके हिसाब से एकबारगी अगर मान भी लें कि पुलिस ने गोली ''आत्‍मरक्षा'' में चलायी और सिर पर डंडा ''संयोगवश'' चल गया, तो सवाल उठता है कि गांवों में घुसकर लोगों को पहाड़ तक खदेड़ देना, औरतों के साथ बदतमीज़ी करना, घरों पर हमला करना, उनके मुर्गे-मुर्गियां पकाकर खा जाना कौन सी गणित कहलाता है? यादव पूछते हैं, ''आप ही बताइए कौन सा घर तोड़ा गया। पुलिस आज तक गांव में नहीं घुसी है।'' डीएम भी उनकी बात का समर्थन करते हैं। ''और पीएसी?'' इससे भी वे इनकार करते हैं। यादव पलटकर कहते हैं, ''तब तो आपने यह भी सुना होगा कि छह लोगों को मारकर पुलिस ने दफना दिया है?'' हमारे इनकार करने पर वे दोबारा इस बात पर ज़ोर देते हैं। जिलाधिकारी संजय कुमार कहते हैं, ''हज़ारों मैसेज सर्कुलेट किए गए हैं कि छह लोगों को मारकर दफनाया गया है। इंटरनेशनल मीडिया भी फोन कर रहा है। एमनेस्‍टी वाले यही कह रहे हैं। हम लोग पागल हो गए हैं जवाब देते-देते। इतनी ज्‍यादा अफ़वाह फैलायी गयी है। चार दिन तक हम लोग सोये नहीं। ''  

कौन फैला रहा है यह अफ़वाह? जवाब में जिलाधिकारी हमें एक एसएमएस दिखाते हैं जिसमें 18 तारीख के हमले में पुलिस द्वारा छह लोगों को मार कर दफनाए जाने की बात कही गयी है। भेजने वाले का नाम रोमा है। रोमा सोनभद्र के इलाके में लंबे समय से आदिवासियों के लिए काम करती रही हैं। 14 अप्रैल की घटना के बाद जिन लोगों पर नामजद एफआइआर की गयी उनमें रोमा भी हैं। पुलिस को उनकी तलाश है। डीएम कहते हैं कि कनहर बांध विरोधी आंदोलन को रोमाजी ने अपना निजी एजेंडा बना लिया है। ''तो क्‍या सारे बवाल के केंद्र में अकेले रोमा हैं?'' यह सवाल पूछने पर वे मुस्‍करा कर कहते हैं, ''लीजिए, सारी रामायण खत्‍म हो गयी। आप पूछ रहे हैं सीता कौन है।'' डीएम और एसपी दोनों अबकी हंस देते हैं।

कनहर बांध के मामले में कुछ तो है जो छुपाया जा रहा है। कुछ है जो उजागर तो हो गया है लेकिन शीशे की तरह साफ़ नहीं है। एक सच उनका है जिनके घर डूब जाएंगे। इन्‍हें बदले में क्‍या मिलेगा, इस पर सवाल है। यह सवाल हमेशा से रहा है। भाखड़ा-नंगल से लेकर रिहंद तक एक से ज्‍यादा बार विस्‍थापित होने वाले परिवारों को साठ साल में कायदे से उचित मुआवज़ा नहीं मिला। नर्मदा की लड़ाई तीस साल से हमारे सामने है। बहरहाल, दूसरा सच उनका है जिनके घर नहीं डूबेंगे। जिनके घर डूब रहे हैं, वह आदिवासी ग्रामीण है। जिनके नहीं डूब रहे, वह मोटे तौर पर गैर-आदिवासी और शहरी है। चूंकि इस तबके को बांध बनने से कोई नुकसान नहीं है, लिहाज़ा इस तबके को बांध बनने तक कुछ न कुछ फायदा ज़रूर है। जब 2800 करोड़ का एक बांध बनता है तो उसमें बहुत सी चीज़ों की ज़रूरत होती है। किसी का डम्‍पर चलता है। कोई ट्रक चलवाता है। कोई रोड़ी देता है। कोई बालू और कंक्रीट देता है। कोई मजदूर सप्‍लाई करता है। किसी का गेस्‍ट हाउस चमक जाता है। एक बांध के इर्द-गिर्द एक समूची परजीवी अर्थव्‍यवस्‍था खड़ी हो सकती है। इसका मतलब कि बांध से नुकसान झेलने वाले और उससे लाभ उठाने वाले वर्ग वास्‍तव में परस्‍पर शत्रुवत स्थिति में होते हैं। इन दोनों से इतर एक तीसरा पक्ष भी है। इसका अपना सच है। यह सच उन लोगों से जुड़ा है जो कनहर बांध के खिलाफ़ आंदोलन का नेतृत्‍व कर रहे हैं। ये वे लोग हैं जिनका बांध बनने से कोई निजी नुकसान तो नहीं हो रहा, लेकिन फिर भी वे बांध के खिलाफ और आदिवासी ग्रामीणों के साथ खड़े माने जाते हैं। रोमा इसी पक्ष की नुमाइंदगी करती हैं, लेकिन कनहर बांध के संबंध में उनकी सक्रियता बहुत पुरानी नहीं मानी जाती है।

बताते हैं कि कनहर नदी को बचाने के लिए बांध के विरोध में आंदोलन का आरंभ गांधीवादी कार्यकर्ता महेशानंद ने आज से पंद्रह साल पहले किया था। उनके लोग आज भी गांवों में आदिवासियों के बीच सक्रिय हैं लेकिन महेशानंद समूचे परिदृश्‍य से नदारद हैं। दिलचस्‍प बात यह है कि बांध-विरोधी ग्रामीणों से लेकर बांधप्रेमी प्रशासन तक महेशानंद के बारे में एक ही राय रखते हैं जो अकसर एक ही जैसे वाक्‍य में भी ज़ाहिर होती है, ''वो तो भाग गया।'' 18 अप्रैल की सुबह जब सोते हुए ग्रामीणों पर लाठियां बरसायी गयीं, उसके कुछ देर बाद सुन्‍दरी गांव में आंदोलन का महिला नेतृत्‍व मानी जाने वाली सुकालो ने फोन पर बताया था, ''यहां कोई लीडर मौजूद नहीं था। महेशानंद तो भाग गया है। कहीं छुपा हुआ है।'' भीसुर गांव के नौजवान शिक्षक उमेश प्रसाद कहते हैं, ''सब लीडर फ़रार हैं। गम्‍भीरा, शिवप्रसाद, फणीश्‍वर, चंद्रमणि, विश्‍वनाथ- सब फ़रार हैं। इसीलिए जनता परेशान है। पहले ये लोग महेशानंद के ग्रुप के थे, बाद में इसमें रोमा घुस गयीं।'' य‍ह पूछने पर कि यहां के लोग अपने आंदोलन का नेता किसे मानते हैं, उन्‍होंने कहा, ''यहां के लोग तो गम्‍भीराजी को ही अपना नेता मानते हैं, लेकिन उनको फरार मानकर ही चलिए। जब से आंदोलन बदरंग हुआ, रामप्रताप यादव जैसे कुछ लोग बीच में आकर समझौता कर लिए। महेशानंद भी समझौते में चले गए हैं। रोमाजी तो यहां हइये नहीं हैं, बाकी आंदोलन तो उन्‍हीं का है। उन्‍हीं के लोग यहां लाठी खा रहे हैं।''

बांध विरोधी आंदोलन के नेता गम्‍भीरा प्रसाद को 20 अप्रैल की शाम इलाहाबाद से गिरफ्तार कर के जेल भेजा जा चुका है। सबसे ताज़ा गिरफ्तारी भीसुर के पंचायत मित्र पंकज गौतम की है।

आंदोलन के नेतृत्‍व के बारे में सवाल पूछने पर पुलिस अधीक्षक शिवशंकर यादव कहते हैं, ''महेशानंद आंदोलन छोड़कर भाग गए हैं। उन्‍होंने मान लिया है कि उनके हाथ में अब कुछ भी नहीं है। उनका कहना है कि बस उनके खिलाफ मुकदमा नहीं होना चाहिए। उनके जाने के बाद रोमाजी ने कब्‍ज़ा कर लिया है।'' आंदोलन पर ''कब्‍ज़े'' वाली बात इसलिए नहीं जमती क्‍योंकि लोग अब भी इसे रोमा का आंदोलन मानते हैं। ऐसा लगता है कि प्रशासन को दिक्‍कत दूसरी वजहों से है। यादव कहते हैं, ''महेशानंद बांध क्षेत्र से बाहर के इलाके में शांतिपूर्ण आंदोलन चलाते थे। इससे हमें कोई दिक्‍कत नहीं थी।'' प्रशासन को दिक्‍कत रोमा के आने से हुई। जिलाधिकारी संजय कुमार कहते हैं, ''रोमाजी बहुत अडि़यल हैं।'' वे इसके लिए ''पिग-हेडेड'' शब्‍द का इस्‍तेमाल करते हैं। वे कहते हैं, ''वे कहती हैं कि हमें बात करनी ही नहीं है... आप हमें गोली मार दीजिए, हम बांध नहीं बनने देंगे। उन्‍होंने संवाद की कोई जगह छोड़ी ही नहीं है। आखिर हम कहां जाएं?''

माना जाता है कि रोमा का यह समझौता नहीं करने वाला रवैया ही जनता को और महेशानंद के पुराने लोगों को उनके पाले में खींच लाया है। इसके अलावा महेशानंद के आंदोलन से हट जाने का लाभ कुछ दूसरे किस्‍म के समूहों ने भी उठाया है। मसलन, पीयूसीएल की राज्‍य इकाई से लेकर भाकपा(माले)-लिबरेशन और आज़ादी बचाओ आंदोलन के लोग भी अचानक इस आंदोलन में सक्रिय हो गए हैं। पड़ोस के सिंगरौली में महान के जंगल और नदी को बचाने के लिए अंतरराष्‍ट्रीय संस्‍था ग्रीनपीस के सहयोग से जिस महान संघर्ष समिति का गठन हुआ था, वह भी अब सोनभद्र के आंदोलन में जुड़ गयी है। ये सभी धड़े रोमा को आंदोलन का असली नेता मानते हैं। सबसे बड़ी विडंबना यह रही कि 14 और 18 अप्रैल को जब कनहर के आदिवासियों पर पुलिस का कहर टूटा, तब और उसके बाद भी रोमा वहां नहीं मौजूद रहीं क्‍योंकि उनके आते ही उन्‍हें गिरफ्तार कर लिया जाता। लोग इस बात को भी समझते हैं।

बांध के विरोध में अलग-अलग संगठनों का इतना बड़ा गठजोड़ बनने के जवाब में बांध समर्थक लोगों ने भी आंदोलन खड़ा कर दिया है। इस आंदोलन का नाम है ''बांध बनाओ, हरियाली लाओ''। दिलचस्‍प है कि इस आंदोलन में भाकपा(माले) के कुछ पुराने लोग शामिल हैं जिनमें अधिवक्‍ता प्रभु सिंह प्रमुख हैं। भीसुर गांव के रामप्रकाश कहते हैं, ''माले वाले भी हक के लिए ही लगे हुए हैं, लेकिन इनमें से कुछ लोग हैं जो बिचौलिये का काम कर रहे हैं। वे इधर भी हैं और उधर भी हैं।'' माले के एक स्‍थानीय नेता कहते हैं, ''हम लोग यहां स्थिति को ब‍हुत संभालने की कोशिश किए। रोमा तो हम लोगों के बाद आयीं और बने-बनाए आंदोलन में घुस गयीं।''

इस मामले में सबसे दिलचस्‍प पहलू यहां की विधायक रूबी प्रसाद से जुड़ा है। स्थानीय प्रशासन ने विधायक रूबी प्रसाद की अध्यक्षता में पुनर्वास एवं पुनर्स्थापना के मसले पर 16 जून 2014 को ग्रामीणों की एक सभा बुलायी। तहलका में प्रकाशित ''कनहर कथा'' में अंशु मालवीय लिखते हैं, ''इस सभा में हजारों लोग मौजूद थे। मंच पर आकर सभी ग्रामीण आदिवासियों ने कनहर बांध के विरोध में बात रखी। यहां वक्ताओं में वे ग्राम प्रधान भी मौजूद थे जिन्होंने बांध के विरोध में प्रस्ताव पारित कर रखा है। अंत में मुख्यमंत्री को संबोधित एक ज्ञापन भी प्रशासन को सौंपा गया, लेकिन जब इस सभा की कार्यवाही की रपट प्रधानों के पास पहुंची तो वे चकित रह गए। इसमें सिर्फ सरकारी अधिकारी एवं विधायक के वक्तव्य थे। जनता के विरोध को उसमें जगह ही नहीं दी गई थी। इससे पता चलता है कि प्रशासन एवं सरकार एक कृत्रिम सहमति बनाने की कोशिश कर रही है।''

रूबी प्रसाद की सभा में उठी ग्रामीणों की बांध के विरोध में आवाज़ों के चलते कई लोगों को यह भ्रम हुआ था कि विधायक खुद बांध के विरोध में हैं। पुलिस अधीक्षक यादव इसे साफ़ करते हुए कहते हैं कि रूबी प्रसाद तो बांध के समर्थन में हैं। लोगों को भ्रम है। विधायक ने खुद यादव से कहा था कि ''अगर आप खाली नहीं करवा पा रहे (बांध स्‍थल को प्रदर्शनकारियों से) तो कहिए हम करवा दें।'' यादव दावा करते हैं, ''सभी पार्टियों के लोग बांध के समर्थन में हैं। एक सौ एक परसेंट लोग चाहते हैं कि बांध बने।''

एक सौ एक परसेंट लोगों से यादव का आशय उन लोगों से है जिन्‍हें बांध के बनने से कोई नुकसान नहीं हो रहा। इसमें सरकार, प्रशासन, गैर-आदिवासी शहरी वर्ग और हर राजनीतिक दल शामिल है। ये सब बांध के समर्थन में एकजुट हैं, लिहाजा आदिवासी ग्रामीण बिलकुल अकेले पड़ गए हैं। कुल 22000 के आसपास इन आदिवासियों को कोई भी मनुष्‍यों के बीच नहीं गिन रहा। यह संख्‍या सिर्फ उनकी है जो उत्‍तर प्रदेश की सीमा में रहते हैं। कनहर की डूब में आने वाले छत्‍तीसगढ़ और झारखण्‍ड के गांवों को भी गिन लिया जाए तो 101 परसेंट का बर्बर चेहरा और साफ हो जाएगा। गोलीकांड के बाद कनहर के आदिवासियों की आखिरी उम्‍मीद रोमा, स्‍थानीय नेता गम्‍भीरा और शिवप्रसाद पर टिकी थी। रोमा मौके पर पहुंच पाने में असमर्थ हैं क्‍योंकि उन्‍हें जिला बदर कर दिया गया है जबकि गम्‍भीरा को 20 अप्रैल की रात इलाहाबाद से गिरफ्तार कर लिया गया जब वे पीयूसीएल के वकील रविकिरण जैन के घर गए हुए थे। गम्‍भीरा को वहां से सोनभद्र लाकर पूछताछ की गई और बाद में जेल भेज दिया गया।

बांध विरोधी आंदोलन में सक्रिय भीसुर के एक नौजवान दुखी मन से कहते हैं, ''आंदोलन की दिशा टूटने के कगार पर जा चुकी है। जनता बहुत चोटिल हो चुकी है। आधे लोग धरने से उठकर चले गए थे। उन्‍हें किसी तरह वापस लाया गया है। पूरा इलाका धारा 144 लगाकर सील कर दिया गया है। जैसे ही लोग जमा होते हैं, कोई न कोई पुलिस की मुखबिरी कर देता है।''

इस शहर में मुखबिरों की कमी नहीं है। हर आदमी एक संभावित मुखबिर है। सोनभद्र का शहरी समाज बिलकुल सिंगरौली की तर्ज पर विकसित हो रहा है जहां हर आदमी हर दूसरे आदमी को मुखबिर मानता है, हर कोई हर किसी पर अविश्‍वास करता है और छोटी-छोटी टुच्‍ची आकांक्षाओं व हितों का नतीजा अंतत: पुलिस की लाठी और गोली के रूप में दिखायी देता है जिसे ''लॉ ऑफ दि लैंड'' कह कर जायज़ ठहराया जाता है। ऐसा समाज बनाने में स्‍थानीय मीडिया की भूमिका सबसे ज्‍यादा नज़र आती है। सोनभद्र के प्रमुख अख़बारों में खबरों का प्रमुख स्रोत पुलिस और प्रशासन हैं। पत्रकार सच्‍चाई को सामने नहीं लाने के लिए कटिबद्ध हैं क्‍योंकि उनके अपने हित झूठ के कारोबार के साथ जुड़े हुए हैं। यही कारण है कि 14 और 18 अप्रैल की घटना के बाद आदिवासी ग्रामीणों के साथ हुई नाइंसाफी की ख़बर को इस कदर दबाया गया कि उसे सामने लाने के लिए दिल्‍ली से एक तथ्‍यान्‍वेषी दल को यहां आना पड़ा, जिसमें यह लेखक भी शामिल था।

इस तथ्‍यान्‍वेषी दल में कुल छह लोग थे- भाकपा(माले)-लिबरेशन की कविता कृष्‍णन, ग्रीनपीस की प्रिया पिल्‍लई, स्‍वतंत्र स्‍त्री अध्रिकार कार्यकर्ता पूर्णिमा गुप्‍ता, स्‍वतंत्र पत्रकार रजनीश, विंध्‍य बचाओ अभियान से देबोदित्‍य सिन्‍हा और यह लेखक। साथ में बनारस से पत्रकार सिद्धांत मोहन भी जुड़ गए थे। गोलीकांड की सच्‍चाई को दबाने के लिए स्‍थानीय प्रशासन किस हद तक जा सकता है, उसका पता इस दल के सामने खड़ी की गयी मुश्किलों और इसके उत्‍पीड़न से लगता है। इस दल ने 19 अप्रैल की सुबह बनारस में भर्ती अकलू चेरो से मुलाकात कर के उसका बयान दर्ज किया, जिसके सीने में 14 को गोली लगी थी। इसके बाद शुरू हुआ पुलिसिया निगरानी का सिलसिला, जो अगले दिन वापसी तक लगातार जारी रहा।

बनारस से रॉबर्ट्सगंज के बीच 19 अप्रैल को कड़ा पहरा था। हमारी गाड़ी को रास्‍ते में तीन बार रोकर जांचा गया। किसी तरह सूरज ढलते-ढलते दुद्धी के गांवों में जब दल ने प्रवेश किया, तो उसे बिलकुल अंदाज़ा नहीं था कि आगे क्‍या होने वाला है। कोरची से कुछ दूरी पर बघाड़ू नाम का एक गांव है। यह गांव आधा डूब में आता है। यहीं पर शाम सात बजे के आसपास दल के सदस्‍य एक चाय की दुकान के बाहर बैठकर सुस्‍ता रहे थे कि जंगल के घुप्‍प अंधेरे में अचानक पुलिस की कुछ गाडि़यां आकर रुकीं। अचानक कुछ पुलिसवाले एक सादे कपड़े वाले अफसर के नेतृत्‍व में नीचे उतरे और उन्‍होंने पूछताछ शुरू कर दी। सादे कपड़े वाले अफसर ने अपना परिचय नहीं बताया, अलबत्‍ता उसकी गाड़ी पर उपजिला मजिस्‍ट्रेट अवश्‍य लिखा हुआ था। पहले पूछा गया कि आप यहां क्‍या कर रहे हैं। फिर कहा गया कि यह नक्‍सली इलाका है और वे हमारी सुरक्षा करने आए हैं। उसके बाद कविता कृष्‍णन पर मोबाइल से रिकॉर्डिंग करने का आरोप लगाते हुए सादे कपड़े वाले अफसर ने कहा, ''ज्‍यादा होशियारी मत दिखाइए वरना बेइज्‍जत हो जाएंगी।'' ऐसा कहते हुए उसने कविता और दल की महिला सदस्‍यों के साथ बदतमीज़ी की और मोबाइल छीनने की कोशिश की। दल के सदस्‍य देबोदित्‍य सिन्‍हा ने जब इस कार्रवाई पर आपत्ति जतायी तो अफसर ने कहा, ''यही नक्‍सली है। इसे अंदर करो।'' कुछ हस्‍तक्षेप के बाद जब यह मामला ठंडा हुआ तो पुलिस ने दल के ड्राइवर को पकड़कर उसे धमकाना शुरू किया। बड़ी मुश्किल से उसे छुड़ाया गया तो कथित मजिस्‍ट्रेट ने सामान की तलाशी के आदेश दे डाले। एसडीएम की मौजूदगी में पुलिसवालों ने एक-एक कर के सबका सामान जांचना शुरू किया। जब दल की महिलाओं ने पुरुषों द्वारा महिलाओं के सामान की जांच पर आपत्ति जतायी, तब महिला सिपाहियों को बुलाने के लिए वायरलेस करने की बात कही गयी लेकिन अंत तक कोई नहीं आया।

छत्तीसगढ़ की सीमा से महज कुछ किलोमीटर की दूरी पर अंधेरे जंगल में पुलिस का व्‍यवहार ऐसा था जैसे आतंकवादियों के साथ किया जाता है। तकरीबन एक घंटे तक पुलिस ने दल को हिरासत में रखा। कथित मजिस्‍ट्रेट का आग्रह था कि दल को दुद्धी थाने ले जाकर पूछताछ की जाए। जब दल ने जिलाधिकारी को भेजे पत्र की प्रति दिखायी, तब अचानक खुद को मजिस्‍ट्रेट कह रहा सादे कपड़ों वाला शख्‍स कहीं गायब हो गया और एक सभ्‍य पुलिस इंस्‍पेक्‍टर जाने कहां से आ गया। इस दौरान घटना की सूचना बड़े पैमाने पर फोन और एसएमएस से फैलायी जा चुकी थी। कुछ पत्रकारों ने सोनभद्र के डीएम को फोन भी कर दिया था। इस दबाव में इंस्‍पेक्‍टर ने माना कि प्रशासनिक स्‍तर पर दल के आने की सूचना को निचले अधिकारियों तक नहीं भेजा गया था और यह एक चूक है। इसके बावजूद दल को गांव में रुकने से मना किया गया और नक्‍सलियों सुरक्षा के नाम पर खदेड़ कर दुद्धी तहसील तक ले आया गया।

बाज़ार में पुलिस की गाडि़यां नदारद हो गयीं और अचानक खुद को एसडीएम बताने वाले एक और अधेड़ शख्‍स सादे कपड़ों में अवतरित हुए। आखिर जंगल में मिला खुद को मजिस्‍ट्रेट कहने वाला वह शख्‍स कौन था? इसका पता अब तक नहीं चल सका है। बार-बार कहने पर जिलाधिकारी ने भी उसकी पहचान उजागर नहीं की। बहरहाल, रात में दुद्धी के जिस डीआर पैलेस नामक होटल में कमरा देखा गया, उसने भोजन के बाद कमरा देने से इनकार कर दिया। उसके ऊपर संभवत: कोई दबाव था, जिसका उद्घाटन सवेरे हुआ। रात में खुद को होटल का मालिक बताने वाले मनोज जायसवाल नाम के व्‍यक्ति से बातचीत कर के रुकने का इंतज़ाम हुआ लेकिन रात भर होटल की गश्‍त लगने की आवाज़ें आती रहीं। सवेरे पता चला कि रात में होटल में मौजूद कर्मचारी के पास थाने से दो बार फोन आए थे और पुलिसवाले भी वहां पहुंचे थे।

अगले दिन सुबह होटल से बाहर निकलते ही दल को पुलिस ने घेर लिया। डीएस यादव नाम के पुलिसकर्मी ने दल के ऊपर लौट जाने का भारी दबाव बनाया। यह दल जब घायलों से मिलने अस्‍पताल पहुंचा तो वहां पुलिस ने भीतर जाने से रोकते हुए धारा 144 का हवाला दिया। डीएम से फोन पर बातचीत के बाद भीतर जाने की अनुमति तो मिली, लेकिन असली दृश्‍य अभी बाकी था। थोड़ी देर बाद एक दो सितारा पुलिसकर्मी देवेश मौर्य एक उत्‍तेजित भीड़ को लेकर विजयी भाव में अस्‍पताल पहुंचे। यह भीड़ भड़काऊ नारे लगा रही थी और किसी तरह दल को बाहर निकालने पर आमादा थी। ''एनजीओ वापस जाओ'', ''विकास विरोधी मुर्दाबाद'', ''आइएसआइ एजेंट वापस जाओ'', ''मारो जुत्‍ता तान के'', आदि नारे लगाने वाले करीब डेढ़ सौ लोग थे जिन्‍होंने अस्‍पताल को घेर लिया था। पुलिस वालों में इस भीड़ में दोगुनप उत्‍साह आ गया था। संदीप कुमार राय नाम के एक पुलिसकर्मी ने पत्रकार सिद्धांत मोहन से चुटकी लेते हुए कहा, ''सबका समय आता है। कल तक आपका था, आज हमारा समय है।'' यह भीड़ पूरी तरह पुलिस की ओर से प्रायोजित थी जिसमें बाज़ार के लोग, व्‍यापारी, वकील और ठेकेदार शामिल थे जो बांध समर्थक हैं।

एक बार फिर डीएम के हस्‍तक्षेप के बाद पुलिस ने उग्र भीड़ को पीछे धकेला और तकरीबन दो घंटे तक दल को अस्‍पताल में बंधक बनाए रखने के बाद उसकी गाड़ी तक पुलिस संरक्षा में छोड़ा गया। इसके बावजूद एसडीएम की जिस गाड़ी में दल के सदस्‍यों को उनके होटल तक ले जाया गया, उस पर पीछे से जूते और चप्‍पल फेंके गए। दो बजे रॉबर्ट्सगंज में डीएम से बैठक थी। वहां जाते वक्‍त हाथीनाला पर एक बार फिर दल को पुलिस ने रोका और सबके नाम लिखवाए। डीएम से इन घटनाओं की बाबत पूछे जाने पर संक्षिप्‍त-सा जवाब मिला, ''अगर अभद्रता हुई है तो आइ फील सॉरी फॉर इट।''

पुलिस अधीक्षक का कहना था कि ''आपको इलाके में चुपके-चुपके नहीं जाना चाहिए था।'' जब ईमेल से भेजे गए पत्र का हवाला दिया गया तो यादव बोले, ''ईमेल की क्‍या विश्‍वसनीयता है?'' जांच दल की महिलाओं के साथ हुए दुर्व्‍यवहार पर यादव ने कहा, ''अगर आपने बता दिया होता कि पत्रकार हैं तो कोई दिक्‍कत नहीं होती।'' यह पूछे जाने पर कि क्‍या इसका मतलब यह माना जाए कि आपको सामाजिक कार्यकर्ताओं से दिक्‍कत है, तो यादव ने सामाजिक कार्यकर्ताओं के प्रति खुले तौर पर अपना विद्वेष जाहिर किया। बाद में निजी बातचीत में यादव ने कहा, ''हमें गुप्‍तचर विभाग से सूचना मिली थी कि दिल्‍ली से जो टीम आ रही है, वह गांवों में जाकर लोगों को संगठित करने का काम करेगी।''

जांच दल से मुलाकात के बाद 20 अप्रैल की देर शाम जिलाधिकारी संजय कुमार ने एक प्रेस नोट जारी किया। उसमें लिखा है:

''वाकई 'कनहर सिंचाई परियोजना' के विस्थापितों को सभी अनुमन्य सुविधाएं दी जाएंगी। किसी विस्थापित को विस्थापन राशि के लिए भटकना नहीं होगा। डूब क्षेत्र के सुन्दरी, भीसुर, कोरकी, कुदरी, बड़खोरा आदि गांवों में कैम्प लगाकर दस दिनों के अन्दर चेक वितरण का कार्य किया जाएगा।'' उक्त बातें जिलाधिकारी श्री संजय कुमार ने कनहर सिंचाई परियोजना के डूब के गांव सुन्दरी के प्राथमिक विद्यालय प्रांगण में वरिष्‍ठ सपा नेता इस्तयाक अहमद की पहल पर कनहर विस्थापितों के साथ खुली बातचीत/बैठक में कहीं।

''जिलाधिकारी श्री कुमार ने मौके पर मौजूद राबर्ट्सगंजजिलाध्यक्ष समाजवादी पार्टी अविनाश कुशवाहा, जिला महासचिव विजय यादव, विधानसभा अध्यक्ष दुद्धी श्री अवध नारायण यादव, जुबैर आलम, डा. लवकुश प्रजापति, तकरार अहमद, नूरूल हक सदर, चन्द्रमणि, ग्राम प्रधान कुदरी इस्लाउद्दीन, ग्राम प्रधान सुन्दरी राम प्रसाद, प्रधान कोरची रमेश कुमार, प्रधान भीसुर परमेश्‍वर यादव के सार्थक प्रयासों की तारीफ करते हुए सारा श्रेय ग्रामीणों/विस्थापितों को दिया।''

अगले दिन इस प्रेस नोट को सारे स्‍थानीय अखबारों ने प्रमुखता से छापा, लेकिन किसी ने भी यह सवाल पूछने की ज़हमत नहीं उठायी कि जिलाधिकारी की इस बैठक में समाजवादी पार्टी के वे तमाम नेता क्‍यों मौजूद थे जो उसी सुबह दुद्धी अस्‍पताल के बाहर जांच दल के खिलाफ नारा लगाते और गाली देते पाए गए थे। 22 अप्रैल के अखबारों में यह ख़बर तो छपी कि सुन्‍दरी गांव में सर्वे का काम शुरू हो गया है, लेकिन किसी ने भी यह सूचना मिलने के बावजूद छापने की ज़हमत नहीं उठायी कि अकलू के साथी लक्ष्‍मण और अशर्फी जिन्‍हें 14 के बाद से लापता बताया जा रहा था, वे मिर्जापुर जेल में हैं। अलबत्‍ता जो खबरें छापी गयीं उनका शीर्षक कुछ ऐसे था:

1. कनहर बांध के निर्माण ने अब पकड़ी रफ्तार (हिन्‍दुस्‍तान)
2. कनहर परियोजना मार्च 2018 तक होगी पूरी (हिन्‍दुस्‍तान)
3. पुलिस पर हमले का मुख्‍य आरोपी गिरफ्तार (दैनिक जागरण, गम्‍भीरा प्रसाद की खबर)
4. सुंदरी गांव में शुरू हुआ सर्वे (दैनिक जागरण)
5. एसडीएम, कोतवाल का हमलावर बंदी (अमर उजाला, गम्‍भीरा प्रसाद की खबर)

इनके अलावा एक अप्रत्‍याशित खबर सभी अखबारों के सोनभद्र संस्‍करण में 22 अप्रैल को प्रकाशित हुई:

                     ''खनन हादसे में दो खान अफसरों समेत आठ फंसे''

यह खबर 27 फरवरी 2012 को बिल्‍ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र में हुए एक हादसे की मजिस्‍ट्रेटी जांच से जुड़ी है जिसमें 11 मजदूर मारे गए थे। लंबे समय से इसकी जांच चल रही थी लेकिन अचानक इस जांच को पूरा कर के जिलाधिकारी संजय कुमार ने रिपोर्ट पेश कर दी जिसमें दो खन अधिकारी, एक डीएफओ और आठ लोगों को दोषी बना दिया गया है। स्‍थानीय अखबार ''वनांचल एक्‍सप्रेस'' के संपादक शिवदास का कहना है, ''यह रिपोर्ट इसलिए लायी गयी है ताकि कनहर में हुए गोलीकांड पर परदा डाला जा सके और प्रशासन की साफ-सुथरी छवि को सामने लाकर आदिवासियों के दमन पर उठी ताज़ा बहस को कमजोर किया जा सके।''

कनहर की जटिल कहानी यहीं रुकने वाली नहीं है। बांध पर लगातार काम जारी है। इलाके में पुलिस बल बढ़ा दिया गया है। जांच दल के आने से जो खबरें और तस्‍वीरें बाहर निकल पायी हैं, उनसे प्रशासन बहुत चिंतित है क्‍योंकि मामला सिर्फ एक अवैधानिक बांध बनाने का नहीं बल्कि पैसों की भारी लूट और बंटवारे का भी है जिसके सामने आने का डर अब पैदा हो गया है। जांच दल के बाद गांधीवादी संदीप पांडे और नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर भी इलाके का दौरा कर चुकी हैं। जांच दल की वापसी के बाद कनहर की ओर राष्‍ट्रीय मीडिया ने भी दबाव में अपना रुख़ कर लिया है। एनडीटीवी ने छोटी ही सही लेकिन एक अहम खबर आदिवासियों के दमन पर 21 अप्रैल को प्रसारित की है। जांच दल से दुर्व्‍यवहार की खबरें अंग्रेज़ी के अखबारों में आने के बाद उम्‍मीद बंधी है कि कि शायद यह मामला आने वाले दिनों में राष्‍ट्रीय फ़लक पर उठ सकेगा।

शनिवार, 25 अप्रैल 2015

ग्रामीणों की आवाज को दबाने के लिए सोनभद्र प्रशासन ने फोड़ा 'रिपोर्ट बम'

बिल्ली-मारकुंडी खनन हादसे में तीन सालों से अधिक समय से लंबित मजिस्ट्रेट जांच रिपोर्ट के अंशों को जिलाधिकारी ने किया सार्वजनिक। हादसे में मरने वाले मजदूरों और अवैध खननकर्ताओं के नामों पर जिला प्रशासन ने साधी चुप्पी। प्रभारी खनन अधिकारी और मुख्य विकास अधिकारी की संयुक्त मजिस्ट्रेट जांच रिपोर्ट की छायाप्रति उपलब्ध कराने से कतरा रहे जिलाधिकारी। बिल्ली-मारकुंडी खनन हादसे में दस मजदूरों की हुई थी मौत। 27 फरवरी 2012 को बिल्ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र के शारदा मंदिर के पीछे पत्थर की एक अवैध खदान में हुआ था हादसा।

written by Shiv Das Prajapati

सोनभद्र। दुद्धी तहसील के अमवार गांव के पास कनहर और पांगन नदियों के संगम पर बन रही कनहर सिंचाई परियोजना के डूब क्षेत्र के ग्रामीणों की आवाज को दबाने के लिए जिला प्रशासन ने 'रिपोर्ट बम' का सहारा लिया है। जिलाधिकारी संजय कुमार ने पिछले तीन सालों से अधिक समय से लंबित बिल्ली-मारकुंडी खनन हादसे की मजिस्ट्रेट जांच रिपोर्ट के अंशों पर आधारित प्रेस विज्ञप्ति पिछले दिनों जारी की। इसमें निर्धारित प्रक्रिया और मानकों का अनुपालन नहीं होने के साथ अवैध खनन को हादसे के लिए जिम्मेदार बताया है। साथ ही अपनी जिम्मेदारियों में लापरवाही बरतने के आरोप में दो पूर्व जिला खान अधिकारियों, दो खनन सर्वेक्षकों, तत्कालीन प्रभागीय वनाधिकारी, तत्कालीन ओबरा थाना प्रभारी समेत तत्कालीन क्षेत्रीय लेखपाल और ग्राम प्रधान को नामजद किया गया है। हालांकि जिलाधिकारी ने अपनी विज्ञप्ति में यह स्पष्ट नहीं किया है कि मजिस्ट्रेट जांच रिपोर्ट में खनन हादसे में कितने मजदूरों की मौत हुई थी, उनका नाम क्या है और वे कहां के रहने वाले हैं। साथ ही अवैध खननकर्ताओं का नाम भी विज्ञप्ति में नहीं है। उन्होंने यह भी नहीं स्पष्ट किया कि मजिस्ट्रेट जांच रिपोर्ट में अपनी जिम्मेदारियों में लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ उन्होंने क्या कार्रवाई की है। जिलाधिकारी संजय कुमार से जब मजिस्ट्रेट जांच रिपोर्ट की छायाप्रति मांगी गई तो वह कल-परसों देने की बात कहकर अपना पीछा छुड़ाते नजर आए। हालांकि उन्होंने अभी तक मजिस्ट्रेट जांच रिपोर्ट की छायाप्रति मुहैया नहीं कराई है।

जिला सूचना और जन संपर्क विभाग की ओर से गत 21 अप्रैल को जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि रॉबर्ट्सगंज तहसील के बिल्ली-मारकुंडी ग्राम में 27 फरवरी, 2012 को हुई खनन दुर्घटना में अपर जिला मजिस्ट्रेट, सोनभद्र और मुख्य विकास अधिकारी, सोनभद्र ने न्यायिक जांच की। मुख्य विकास अधिकारी महेंद्र सिंह ने मजिस्ट्रेट जांच की रिपोर्ट गत 18 अप्रैल को जिला अधिकारी के सामने प्रस्तुत की जिसमें पाया गया कि खदान धंसने की घटना अवैध खनन होने के साथ खनन कार्य में निर्धारित प्रक्रिया और मानकों की पालन नहीं होने के कारण हुई है। यह अवैध खनन कुछ व्यक्तियों ने बिना पट्टे वाली भूमि पर और कुछ पट्टाधारकों द्वारा अपने पट्टा क्षेत्र से अधिक भूमि पर किया गया। राजस्व एवं खनिज विभाग के अधिकारियों द्वारा किये गये संयुक्त निरीक्षण में यह पाया गया कि 27 फरवरी 2012 की घटना आराजी संख्या-4452 में हुई है जिसमें कोई पट्टा नहीं है और इस नम्बर के समीप आराजी संख्या-4449 तथा 4471 में भी अवैध खनन हुआ है जो पहाड़ खाते की भूमि, सुरक्षित वन भूमि तथा काश्तकारों की भूमि है। समीप के आराजी संख्या-4448, 4450 तथा 4471घ के पट्टाधारकों द्वारा भी नियमों के विपरीत खनन किया जाना पाया गया। उक्त घटना के संबंध में थाना ओबरा में जो प्रथम सूचना रिपोर्ट अंकित करायी गई थी, उसमें आरोप पत्र दाखिल किया जा चुका है।
          
विज्ञप्ति में कहा गया है कि मजिस्ट्रेट जांच में उक्त आराजी संख्याओं में अवैध खनन के साथ-साथ खनन कार्य में निर्धारित प्रक्रिया और मानकों का पालन नहीं किया गया है। नियमों के विपरीत खनन कार्य होने के लिए उत्तरदायी खनिज विभाग के तत्कालीन खान अधिकारी एके सेन, पूर्व खान अधिकारी वीपी यादव, तत्कालीन वरिष्ठ खनन सर्वेक्षक धीरेंद्र कुमार शर्मा, खनन सर्वेक्षक दयाराम, वन भूमि पर अवैध खनन होने के लिए उत्तरदायी तत्कालीन प्रभागीय वनाधिकारी, ओबरा एसपी चौरसिया, अवैध खनन होने और दबंगई के बल पर खनन कार्य करने की शिकायतें प्राप्त होने पर कोई कार्यवाही नहीं करने के लिए उत्तरदायी तत्कालीन थाना प्रभारी ओबरा शेषधर पाण्डेय, ग्रामसभा की पहाड़ और परती भूमि पर अवैध खनन की सूचना नहीं देने तथा उसे रोकवाने का प्रयास नहीं करने के लिए उत्तरदायी ग्राम पंचायत बिल्ली-मारकुण्डी के प्रधान राजाराम और ग्रामसभा की पहाड़, परती भूमि पर अवैध खनन होने की सूचना नहीं देने या उसे रोकवाने की कार्यवाही नहीं करने के लिए उत्तरदायी तत्कालीन क्षेत्रीय लेखपाल श्रीराम के विरुद्ध कार्रवाई प्रस्तावित की गई है। उक्त अधिकारियों और कर्मचारियों पर कार्रवाई के बाबत जब जिलाधिकारी संजय कुमार से बात की गई तो वे पूर्व के एफआईआर का हवाला देकर पल्ला झाड़ते नजर आए।


गौतरलब है कि सोनभद्र में कनहर सिंचाई परियोजना को लेकर विस्थापितों और जिला प्रशासन के नुमाइंदों में घमासान मचा हुआ है। गत 14 अप्रैल को विस्थापितों और पुलिस प्रशासन के नुमाइंदों के बीच झड़प और गोलीबारी की घटना भी हुई थी जिसमें सुंदरी गांव निवासी विस्थापित अकलू चेरो को पुलिस ने गोली मार दी थी। उसका इलाज वाराणसी स्थित सर सुंदरलाल चिकित्सालय, बीएचयू में चल रहा है। इसके बाद गत 18 अप्रैल की सुबह परियोजना स्थल पर धरना दे रहे विस्थापितों और पुलिस प्रशासन के बीच एक बार झड़प हुई जिसमें पुलिस और पीएसी के जवानों ने धरनारत विस्थापितों पर लाठीचार्ज किया। इतना ही नहीं उन्होंने उनके उपर रबर की गोलियां दागी और आंसू गैस के गोले छोड़े जिसमें करीब डेढ़ दर्जन लोग घायल हो गए। पुलिस प्रशासन ने घायलों को गिरफ्तार कर लिया। साथ ही धरनारत विस्थापितों को परियोजना स्थल से करीब दो किलोमीटर परिधि से दूर खदेड़ दिया है और पूरे इलाके को सीज कर उनकी आवाज को दबाने की कोशिश कर रही है। पिछले दिनों दिल्ली से सामाजिक कार्यकर्ताओं और पत्रकारों की स्वतंत्र जांच टीम विस्थापितों पर गोली चलाने की घटना की जांच करने डूब क्षेत्र के गांवों का दौरा करने जा रही थी लेकिन पुलिस ने उन्हें हिरासत में लिया। 

जिलाधिकारी के हस्तक्षेप के बाद उन्हें वापस दिल्ली रवाना कर दिया गया। इस बीच स्वतंत्र जांच दल को कनहर सिंचाई परियोजना निर्माण समर्थकों और सत्ताधारी पार्टी के नेताओं ने करीब दो घंटे दुद्धी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में बंधक बनाये रखा। बाद में दुद्धी तहसील के उपजिलाधिकारी ने अपने वाहन से उन्हें शहर से बाहर निकाला। जांच दल के साथ हुई इस घटना ने राष्ट्रीय स्तर पर विस्थापितों की आवाज पहुंचा दी जिससे जिला प्रशासन सकते में आ गया। राष्ट्रीय स्तर पर पहुंच रही विस्थापितों की आवाज से ध्यान बंटाने के लिए जिला प्रशासन ने आनन-फानन में पिछले तीन सालों से अधिक समय से लंबित बिल्ली-मारकुंडी खनन हादसे से संबंधित मजिस्ट्रेट जांच रिपोर्ट के अंशों को सार्वजनिक कर दिया। हालांकि उसकी यह रणनीति कारगर होती दिखाई नहीं दे रही है। उधर नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटेकर 25 अप्रैल को कनहर परियोजना के विस्थापितों से मिलने डूब क्षेत्र पहुंची। वहां उन्होंने लोगों से बात कीं। उन्होंने कहा कि जिला प्रशासन को लोगों से संवाद स्थापित करनी चाहिए। जबरदस्ती करने से संघर्ष और तेज होगा। उन्होंने पुलिस प्रशासन द्वारा ग्रामीणों के खिलाफ की गई कार्रवाई की निंदा कीं।