मंगलवार, 15 दिसंबर 2020

खेती में विदेशी कंपनियों और कॉर्पोरेट की लूट बढ़ा रही सरकार: AIKSCC

फोटो साभारः फेसबुक सोशल मीडिया
अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (AIKSCC) ने सरकारी गतिविधियों और बयानों पर स्पष्ट की स्थिति। समिति के वर्किंग ग्रुप ने कहा- सरकार ऐसे लोगों से दिखावटी व भटकाने वाली वार्ता कर रही है, जो न तो संघर्षरत किसानों के प्रतिनिधि हैं, न उनकी मांग के पक्ष में हैं...

वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो

नई दिल्ली। अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (AIKSCC) ने कहा है कि सरकार खेती में विदेशी कंपनियों और कॉर्पोरेट की लूट बढ़ा रही है। सरकार देश में विकसित हो रहे ऐसे क्षेत्रों को कॉर्पोरेट तथा विदेशी निवेशकों के हवाले कर रही है। सरकार के तीनों कानूनों से किसानों की आमदनी पूरी तरह से समाप्त हो जाएगी। किसानों के कर्ज बढ़ेंगे और उनकी जमीन छिनेंगी जबकि कारपोरेट की आय में बढ़ोत्तरी होगी। इसलिए समिति तीन कानूनों के रद्दीकरण की मांग कर रही है। 

एआईकेएससीसी के महासचिव डॉ. आशीष मित्तल की ओर से आज जारी मीडिया बुलेटिन में ये बाते कही गई हैं। समिति के वर्किंग ग्रुप के हवाले से मीडिया बुलेटिन में कहा गया है कि सरकार तथाकथित ‘किसान नेताओं’ से वार्ता कर रही है। वह दिखावटी और किसानों की समस्याओं से ध्यान भटकाने वाली कार्यनीति है क्योंकि जिन लोगों से सरकार वार्ता कर रही है, वे न तो संघर्षरत किसानों के प्रतिनिधि हैं, न ही उनकी मांगों को सम्बोधित करते हैं। यह खुलकर स्पष्ट होता जा रहा है कि सरकार दिल्ली के आसपास एकत्र लाखों किसानों की आवाज नहीं सुनना चाहती और इसकी जगह वह प्रेरित लोगों व पिछलग्गुओं को एकत्र कर लोगों को भ्रम में डालना चाहती है। 

सरकार तथा मंत्रियों द्वारा जारी किये जा रहे बयान साबित कहते हैं कि ये तीन कानून केवल खेती के बाजार पर कारपोरेट का कब्जा करने, कृषि प्रक्रिया, किसानों की जमीन तथा कृषि अधिरचना पर उनके नियंत्रण को सुगम बनाने के किसान संगठनों के तर्क सही हैं। प्रधानमंत्री व रक्षामंत्री दोनों ने खेती में कारपोरेट निवेश की अपील जारी की है। यह बहस की जा रही है कि इससे आधुनिक कृषि मशीनरी, फसलों के भंडारण व शीत भंडारण, परिवहन, कृषि प्रसंस्करण, आधुनिक तकनीक, आदि विकसित होगी। सरकार ने छाती ठोंक कर बताया है कि इस साल के पहले 5 महीनों में, पिछले हर साल से अधिक 36 अरब डाॅलर का विदेशी निवेश आया है। उसके अनुसार तकनीक की कमी के कारण फसल नष्ट होती है और आर्थिक नुकसान होता है। नुकसान, तकनीक सुविधाओं व अधिरचना ये सब वही सवाल हैं जो किसानों की मांग का मुख्य आधार हैं, जिन्हें सरकार द्वारा सहकारी आधार पर पूरा करने की मांग किसान करते रहे हैं, जबकि सरकार चाहती है कि ये सब कारपोरेट के हाथ में चले जाएं। भारत में कारपोरेट बहुत कम रोजगार पैदा करते हैं। उद्योगों में सबसे बड़ा रोजगार जनक एमएसएमई है और देश में खेती है। सरकार इस बात पर अड़ी हुई है कि बेरोजगारी बढ़े।

किसान इस बात को जोर देकर बताना चाहते हैं कि इन विकसित हो रहे क्षेत्रों को कारपोरेट तथा विदेशी निवेशकों के हवाले कर, जैसा कि तीन कानूनों की मंशा है, पूरी तरह से किसानों की आमदनी समाप्त हो जाएगी, उनके कर्ज बढ़ेंगे व उनकी जमीन छिनेगी, जबकि कारपोरेट की आय वृद्धि होगी। तीन कानूनों के रद्दीकरण की मांग इसीलिए की जा रही है। सरकार का अपना दस्तावेज कहता है कि ये कानून ‘एग्री बिजनेस के लिए अवसर खोलेंगे’, किसानों के लिए नहीं। खेती में किसानों को मदद देने व सरकारी निवेश कराने की जगह निजी निवेश कराने से सरकारी मंडियां, गोदाम, आदि सब समाप्त हो जाएंगे, जैसा कि सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग, स्वास्थ्य सेवाएं, स्कूल, शुद्ध पानी आपूर्ति के साथ हुआ है और बिजली आपूर्ति में हो रहा है। इन कानूनों का मुख्य पहलू है, जो सरकार नहीं हल करना चाहती, कि सरकार निजी मंडियों को और कम्पनियों द्वारा ठेका खेती को बढ़ावा देगी। 

सरकार का तर्क है कि भारत के पास पर्याप्त खाना मौजूद है। इसका झूठ राष्ट्रीय परिवार व स्वास्थ्य सर्वेक्षण की 5वीं रिपोर्ट में सामने आ गया है, जो बताती है कि मोदी शासन के 5 सालों के दौरान 5 साल से कम उम्र के बच्चों में ठिगनापन बढ़ गया है। रिपोर्ट यह भी कहती है कि एक साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्युदर (आईएमआर) नहीं सुधरी है, जो खराब पोषण व स्वास्थ्य सेवाओं की ओर संकेत करता है।

एआईकेएससीसी की वर्किंग ग्रुप ने अपील की है कि सभी विरोध कार्यक्रमों का समन्वय सुधारते हुए गांव, तहसील व जिला स्तर पर विरोध बढ़ाया जाए और रिलायंस के सामानों का विरोध तेज किया जाए। 16 दिसंबर को कोलकाता में, 19 को मणीपुर में, 22 को मुम्बई में और 29 को पटना में बड़ी विरोध सभाएं होंगी। इस बीच दिल्ली के चक्का जाम में ताकत बढ़ती जा रहा है। साथ ही वर्किंग ग्रुप ने कहा है कि ये स्वागत योग्य विकास है कि कई आदिवासी संगठन, आईकेएससीसी घटकों के अलावा भी मध्य प्रदेश व गुजरात में इन 3 खेती के कानूनों व बिजली बिल 2020 के विरोध में बड़ी संख्या में उतरे हैं।

(प्रेस विज्ञप्ति)

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