शुक्रवार, 23 मार्च 2018

भगत सिंह के शहादत दिवस पर उठा भारत में ब्राह्मणवादी फासीवाद का मुद्दा

भगत सिंह 23 साल के जरूर थे लेकिन उनके पास दुनिया को बेहतर बनाने का एक बेहतरीन दर्शन था- प्रमोद बांगड़े
वनांचल न्यूज़ नेटवर्क
वाराणसी। क्रांतिकारी भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु एवं पाश के शहादत दिवस के अवसर पर "भगत सिंह छात्र मोर्चा" ने शुक्रवार को काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कला संकाय के राधाकृष्णन सभागार में "मौजूदा समय में भगत सिंह, छात्र राजनीति और हम" विषयक संगोष्ठी का आयोजन किया। इसमें वक्ताओं ने क्रांतिकारी भगत सिंह के मानवतावादी और आधुनिकतावादी पहलुओं के साथ वर्तमान फासीवादी सरकारों पर चर्चा की।

कार्यक्रम की शुरुआत क्रांतिकारी गीत "सूली चढ़ कर वीर भगत ने दुनिया को ललकारा है..." से हुआ। प्रो. डी.के.ओझा ने भगत सिंह को इतिहास में खोजा और पाया कि भगत सिंह एक मानवतावादी, आधुनिकतावादी और क्रांतिकारी व्यक्तित्व के धनी इंसान थे। उन्होंने आज के हालात पर भी चर्चा की। प्रो. प्रमोद बागड़े ने कहा कि भारत का फासीवाद यूरोपीय फासीवाद से अलग है। यहाँ का फासीवाद धर्मिक रूप में है। यह ब्राह्मणवादी फासीवाद के रूप अपने आप को व्यक्त करता है। उन्होंने भारत में भगत सिंह को बाकी रुढ़िवादी कम्युनिस्टों से अलग बताया और कहा कि भगत सिंह 23 साल के जरूर थे लेकिन उनके पास दुनिया को बेहतर बनाने का एक बेहतरीन दर्शन था।

शोध छात्र- गौरव पाण्डेय ने भूमंडलीकरण को विस्तार से समझाया कि वह किस तरह हमें बाज़ार में धकेल रहा है। साथ ही साथ इनका भी जोर फासीवाद पर रहा। उन्होंने सांस्कृतिक फासीवाद को भी समझाया। अंत में रितेश विद्यार्थी ने बी.एच.यू के अपने अनुभव को साझा करते हुए कहा कि किस तरह पिछले 8 सालों में दुनिया और देश की राजनीति बदली है। इसका परिणाम हुआ कि भगत सिंह छात्र मोर्चा जैसे संगठन पुरे भारत में बने हैं। साथ ही उन्होंने देश और समाज को बदलने के तरीकों में भगत सिंह के बताये रास्ते को ही अपनाने को कहा। उन्होंने छात्रों और नौजवानों को गांव के किसान-मजदूरों से जुड़ने के लिए कहा।

अंकित साहिर, अंकित भास्कर, अभय, विनय, वरुण आदि ने भी संक्षिप्त में अपनी बात रखी। अंत में युद्देश बेमिशाल, आरती, आकांक्षा, शाश्वत, शुभम, जागृति, मृत्युन्जय ने मिलकर क्रांतिकारी गीत गाए।  और संगोष्ठी को समाप्त किया। संचालन मुकुल और अनुपम ने किया।

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